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Wrong Decisions in Competitive Exams

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1.प्रतियोगिता परीक्षाओं में गलत निर्णय (Wrong Decisions in Competitive Exams),प्रतियोगिता परीक्षाओं में दोषपूर्ण तैयारी का प्रभाव (Impact of Faulty Preparation in Competitive Exams):

  • प्रतियोगिता परीक्षाओं में गलत निर्णय (Wrong Decisions in Competitive Exams) कैंडिडेट्स के लिए घातक सिद्ध होता है।प्रतियोगिता परीक्षाओं में कैंडिडेट के गलत निर्णय के कारण उनका चयन होने से रह जाता है।उनमें प्रतिभा भी भरपूर होती है।कुदरती प्रतिभा होने के बावजूद ऐसे कैंडिडेट का प्रतियोगिता परीक्षा में चयन होने से रह जाता है।ऐसे कैंडिडेट गलत निर्णय जैसे किसी के देखा-देखी विषयों का चयन करना,जिन विषयों का ट्रेंड है उनका चयन करना,गलत कोचिंग संस्थान का चयन करना,परीक्षाओं के प्रश्न पत्रों में हो रहे बदलाव को नजरअंदाज करना,टॉपर्स के विषयों को देखकर उनका चयन करना,माध्यम (हिन्दी,अंग्रेजी आदि) का गलत चुनाव करना इत्यादि कोई भी निर्णय हो सकता है।
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(1.)विषयो का गलत चुनाव करना (Misjudging the Subjects):

  • बहुत से कैंडिडेट अपनी रुचि,प्रतिभा के अनुसार ऐच्छिक विषय का चुनाव नहीं करते हैं बल्कि वे टाॅपर्स के विषयों को देखकर चुनाव कर लेते हैं।जबकि कैंडिडेट की रुचि, योग्यता तथा प्रतिभा अलग-अलग होती है।गलत विषय का चयन करने के कारण वे वैकल्पिक विषय की तैयारी ठीक से नहीं कर पाते हैं।कोई भी सब्जेक्ट अच्छा या बुरा परिणाम नहीं देता है बल्कि कैंडिडेट ही है जो विषय को लेकर श्रेष्ठ प्रदर्शन दिखाते हैं।कैंडिडेट्स की प्रतिभा और परीक्षा की उसकी तैयारी ही सफलता अथवा असफलता सुनिश्चित करती है।कई कैंडिडेट्स को देखा होगा जो परंपरागत विषयों इतिहास,भूगोल,राजनीति शास्त्र इत्यादि को छोड़कर बिल्कुल जो पॉपुलर सब्जेक्ट नहीं है उसको लेकर टॉप कर जाते हैं।
    इसलिए ऐच्छिक विषय का चयन अपनी रुचि,प्रतिभा और योग्यता के अनुसार करने पर ही श्रेष्ठ परिणाम देता है।

(2.)कोचिंग संस्थान का गलत चयन (Mis-Selecting a Coaching Institute):

  • कुछ कैंडिडेट्स किसी कोचिंग संस्थान का चयन उनमें एक-दो टाॅपर्स के चयन होने पर कर लेते हैं।टाॅपर्स में तो स्वाभाविक प्रतिभा होती है इसलिए उनका चयन तो होना ही है।वस्तुतः कोचिंग संस्थान का चयन इस आधार पर भी करना चाहिए कि कोचिंग करने वाले कैंडिडेट का कितना प्रतिशत का चयन हुआ है।केवल टाॅपर्स को देखकर चयन करना गलत हो जाता है।
  • कैंडिडेट्स टॉपर्स को देखकर ही कोचिंग संस्थान का चयन करते हैं।यदि किसी कोचिंग संस्थान में किसी वर्ष में किसी टाॅपर्स का चयन नहीं हुआ है तो रातोंरात उस कोचिंग संस्थान की प्रतिष्ठा गिर जाती है।कैंडिडेट्स को कोचिंग संस्थान में विषयों की तैयारी की गुणवत्ता,फैकल्टी की योग्यता आदि को देखकर करना चाहिए।केवल टाॅपर्स के नाम के सहारे कोचिंग का चयन हानिकारक हो सकता है।

(3.)प्रश्न-पत्रों के बदलाव को नजरअंदाज करना (Ignoring the Change of Question Papers):

  • प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्न-पत्रों के पैटर्न तथा प्रश्नों की प्रकृति में बदलाव होता रहता है।कई कैंडिडेट्स माॅडल पेपर्स तथा पिछले प्रश्न-पत्रों के आधार पर तथा परंपरागत रूप से परीक्षा की तैयारी करते रहते हैं।प्रश्नों में आपकी सजगता,जागरूकता और समझ की परख करने से संबंधित प्रश्न आते हैं।यदि आप केवल पुस्तकों के ज्ञान को रटकर उत्तीर्ण होना चाहते हैं तो यह गलत निर्णय है।
  • आधुनिक युग में प्रतियोगिता परीक्षाओं में परम्परागत तरीके के प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं।इसलिए अपने अध्ययन में नवीन तकनीक का प्रयोग करें।अर्थात् आप अपनी समझ के अनुसार उत्तर देने का अभ्यास करें।प्रश्न-पत्रों में अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से रखना चाहिए।

(4.)माध्यम का गलत चुनाव (Mis-Choose the Medium):

  • बहुत से कैंडिडेट्स परीक्षा में अंग्रेजी माध्यम से सफल होने वाले कैंडिडेट्स की अधिकता को देखकर अंग्रेजी माध्यम का चयन कर लेते हैं।जबकि माध्यम आपका वह होना चाहिए जिसमें आप उत्तर सहजता से दे सकते हैं तथा जिसमें आप अपने विचारों को ठीक तरह से व्यक्त कर सकते हैं।
  • वर्तमान समय में अंग्रेजी माध्यम के टक्कर की विषय सामग्री,पुस्तकें इत्यादि हिंदी माध्यम में भी मिल जाती है।इसलिए माध्यम का चुनाव सोच समझकर तथा अपनी प्रकृति के अनुसार करें।हिंदी माध्यम में भी अच्छी खासी संख्या में सफल कैंडिडेट्स मिल जाएंगे।इसलिए केवल परीक्षा परिणाम के कट ऑफ को देखकर माध्यम का चयन करना आपके लिए गलत हो सकता है।

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(5.)निष्कर्ष (Conclusion of Wrong Decisions in Competitive Exams):

  • वस्तुतः प्रतियोगिता परीक्षाओं में थोड़ी-सी चूक अथवा गलत निर्णय आपके चयन को रोक सकता है।यदि ऋणात्मक अंकन है तो बहुत अधिक प्रश्नों को हल करने के बजाय आपको सही किए गए सवालों को चयन करना चाहिए।प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल होना या असफल होना बौद्धिक खेल है।यदि आप बुद्धि का सही उपयोग करते हैं तो सफल हो जाते हैं।
  • कोचिंग संस्थान की प्रसिद्धि को देखकर उसका चयन न करें बल्कि यह भी देखें कि एक क्लास में बहुत अधिक स्टूडेंटस को तो नहीं पढ़ाया जाता है। एक समय पर 40-50 स्टूडेंट्स को ही बेहतर तरीके से पढ़ाया जा सकता है।कोचिंग संस्थान में आपकी चिंतन शक्ति को उभारा जाता है या नहीं इसको भी देखें।क्योंकि किसी भी कोचिंग संस्थान में प्रत्येक टॉपिक्स,घटना व मुद्दे को नहीं पढ़ाया जा सकता है।परंतु कोचिंग संस्थान यह तो कर ही सकते हैं कि कैंडिडेट्स में समझ,जागरूकता तथा बौद्धिक क्षमता को बढ़ाएं।
  • कोचिंग संस्थान का दायित्व केवल यह नहीं है कि ज्ञान को ठूँस दिया जाए।कोचिंग संस्थानों में प्रश्न-पत्रों के बदलाव के अनुसार अपने स्टडी कराने की तकनीक में परिवर्तन किया जाता है या नहीं यह भी देखें।
    निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि आप कोई गलत निर्णय या दोषपूर्ण तैयारी तो नहीं कर रहे हैं,यह सुनिश्चित करें।टाॅपर्स के अनुभवों का लाभ उठाएं।उनकी तैयारी की रणनीति, कार्यशैली में कोई उपयोगी व आपके लिए हितकर लगता है तो उस तकनीक को अपने स्टडी प्लान में अवश्य शामिल करें।प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी सटीक रणनीति, स्मार्ट तरीके के साथ करें।यदि कहीं कोई गलत नजर आ रहा है तो उसमें संशोधन करें।सही स्टडी प्लान को शामिल करें।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में प्रतियोगिता परीक्षाओं में गलत निर्णय (Wrong Decisions in Competitive Exams),प्रतियोगिता परीक्षाओं में दोषपूर्ण तैयारी का प्रभाव (Impact of Faulty Preparation in Competitive Exams) के बारे में बताया गया है।

(6.)गणित में फेल होना (हास्य-व्यंग्य) (To Be Fail in Mathematics) (Humour-Satire):

  • पिता (पुत्र से):तुम फिर गणित में फेल हो गए।
  • पुत्र:क्या पिताजी आप भी गणित को लेकर हमेशा पीछे पड़े रहते हो।महान् बनने और आगे बढ़ने के लिए गणित में अव्वल होना जरूरी नहीं है।महान् क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर कौनसे गणितज्ञ थे?लता मंगेशकर कौनसी बड़ी गणितज्ञा थी?
  • पिता:आधुनिक युग में तरक्की करने के लिए गणित में अव्वल रहना जरूरी है।तुम सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर का उदाहरण देकर फेल होने को सही सिद्ध नहीं कर सकते हो।
  • पुत्र:छोड़ो भी पिताजी, इस बात को।आप हमेशा गणित को लेकर पीछे पड़े रहते हो।गणित, गणित, गणित।आखिर गणित ऐसी कौनसी बला है जिसके लिए आपने मेरे अच्छे खासे मूड को खराब कर दिया है।आप तो गणित का बखान इस तरह करते हो जैसे गणित के बिना इस संसार में जीना नरक में जीने के तुल्य हो।
  • पिता:आखिर तुम किस चीज में बेहतर हो जिसमें अपना भविष्य बना लोगे।कोई एक क्षेत्र तो बता दो।संगीत में, खेल में, व्यवसाय में, भजन में या किस क्षेत्र में प्रतिभा है जिससे तुम निश्चिन्त हुए बैठे हो।उस क्षेत्र का नाम बताओ जिसमें तुम आगे बढ़ पाओगे।
    तुम्हें तो सही बात बताना और हित की बात कहना भैंस के आगे बीन बजाने के समान है।तुम्हारे मूड में ऐसा कौनसा बढ़िया आइडिया आ रहा था जिससे तुम्हारा मूड खराब हो गया है।
  • गणित के लिए मैं इसलिए कहता हूं कि गणित का बहुत-सा स्काॅप है जिससे भविष्य बनाया जा सकता है।
    तुम्हें मटरगश्ती करना, बेकार और फिजूल की बाते करने से तो मूड फ्रेश हो होता है।और हित की बात कहने से मूड खराब हो जाता है।
  • यदि अब भी नहीं संभले तो दर-दर की ठोकरें खानी पड़ेगी।जिन्दगी भर कोल्हू के बैल जैसे काम करना पड़ेगा।मेरा कर्त्तव्य तुम्हें सचेत और सावधान करना था सो कर रहा हूँ।बाकी जैसी तुम्हारी मर्जी और मौज।उसका परिणाम तुम्हें ही भुगतना पड़ेगा।

(7.)प्रतियोगिता परीक्षाओं में गलत निर्णय (Wrong Decisions in Competitive Exams),प्रतियोगिता परीक्षाओं में दोषपूर्ण तैयारी का प्रभाव (Impact of Faulty Preparation in Competitive Exams) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.प्रतियोगिता परीक्षा की सही रणनीति क्या है? (What is the Correct Strategy of Competitive Examination?):

उत्तर:विवेक सम्मत ज्ञान और तार्किक दृष्टिकोण सबसे अच्छा मंत्र एवं गलत उत्तर की पहचान करके सही उत्तर की ओर बढ़ना और उसे ढूँढ निकालना सटीक रणनीति है।हमेशा विवेक को जाग्रत करने का प्रयास करते रहने से जागरूकता और सतर्कता बढ़ती है।जो कैंडिडेट अपने विवेक को जाग्रत करते हैं वे शानदार प्रदर्शन करते हैं।

प्रश्न:2.प्रश्न-पत्र लम्बा हो तो क्या करें? (What to do if the question paper is long?):

उत्तर:सम्पूर्ण प्रश्न-पत्र को हल करना और शत-प्रतिशत प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य नहीं है।यदि प्रश्न-पत्र लम्बा है तो वह सभी के लिए लम्बाहै।इससे केवल आप अकेले प्रभावित नहीं होते हैं।अधिकतम प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करना चाहिए।विवेक और धैर्य से काम लेकर प्रश्न-पत्र को हल करना चाहिए।इसके लिए नियमित अभ्यास करने की आवश्यकता होती है।

प्रश्न:3.प्रतियोगिता परीक्षा सम्बन्धी मिथक क्या है? (What are the Myths Related to the Competitive Examination?):

उत्तर:पहला मिथक यह है कि यदि किसी विषय में 50 तक या टाॅपर्स नहीं है तो उस विषय को खराब समझा जाता है।
दूसरा मिथक यह है कि किसी कोचिंग संस्थान से कोई टाॅपर्स नहीं है तो उसे अच्छा संस्थान नहीं समझा जाता है।

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा प्रतियोगिता परीक्षाओं में गलत निर्णय (Wrong Decisions in Competitive Exams),प्रतियोगिता परीक्षाओं में दोषपूर्ण तैयारी का प्रभाव (Impact of Faulty Preparation in Competitive Exams) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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प्रतियोगिता परीक्षाओं में गलत निर्णय
(Wrong Decisions in Competitive Exams)

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प्रतियोगिता परीक्षाओं में गलत निर्णय (Wrong Decisions in Competitive Exams) कैंडिडेट्स के लिए घातक सिद्ध होता है।
प्रतियोगिता परीक्षाओं में कैंडिडेट के गलत निर्णय के कारण उनका चयन होने से रह जाता है।उनमें प्रतिभा भी भरपूर होती है।

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