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What is ancient Indian Education system?

1.प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली क्या है? का परिचय (Introduction to What is Ancient Indian Education System?),प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की आलोचना (Criticism of ancient Indian Education system):

  • प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली क्या है? (What is Ancient Indian Education System?),प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की आलोचना (Criticism of ancient Indian Education system):प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली सैद्धान्तिक ज्ञान के बजाय चारित्रिक, सदाचार तथा नैतिक मूल्यों और धर्म पर आधारित शिक्षा थी।प्राचीन भारतीय शिक्षा में गुरु और शिष्य दोनों को पात्र होना आवश्यक था।वर्तमान भारतीय शिक्षा में पात्रता तथा जीनव मूल्यों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।शिक्षा प्रणाली में प्रगतिशीलता,नवीनता तथा आधुनिकता इत्यादि तत्त्व शामिल हों तभी वह जीवन्त समझी जाती है इनके अभाव में शिक्षा मृतक ही है।
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via https://youtu.be/iwrZd6XB8v0

2.प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली क्या है? (What is Ancient Indian Education System?),प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की आलोचना (Criticism of ancient Indian Education system):

  • प्राचीन भारत में शिक्षा का स्वरूप वैदिक तथा धार्मिक था।वैदिक शिक्षा में धार्मिक शिक्षा,चरित्र का निर्माण,सामाजिक कर्तव्यों का विकास तथा संस्कृति के प्रचार-प्रसार का अध्ययन कराया जाता था।चरित्र निर्माण तथा सदाचार पर अधिक बल दिया जाता था।मनुस्मृति में उल्लेख है कि ज्ञानवान के बजाय सदाचारी व्यक्ति श्रेष्ठ है क्योंकि विद्वान व्यक्ति दुराचारी भी हो सकता है।जैसे रावण विद्वान होकर भी दुराचारी था।इस प्रकार प्राचीन शिक्षा धर्म से प्रेरित थी परंतु उस समय धर्म का तात्पर्य संप्रदाय से नहीं था।बल्कि ‘यतोअभ्युदय निःश्रेयस सिद्धि स धर्मः’ के अनुसार जिससे इस लोक अर्थात् वर्तमान जीवन तथा परलोक अर्थात् आगामी जीवन में सुख मिलें वह धर्म है।कर्त्तव्य पालन के अर्थ में धर्म का अर्थ लिया जाता था।
  • इसके अतिरिक्त धर्म से तात्पर्य था कि व्यक्ति के जीवन में पूर्णता तथा समग्रता का विकास करना।” सा विद्या या विमुक्तये” के अनुसार ज्ञान मुक्ति का साधन था।व्यक्तित्व के विकास में वाद-विवाद,तर्क,विधि,दर्शन तथा वेद-वेदांग का अध्ययन करना शामिल था।विद्यार्थियों में आत्म-सम्मान,आत्मविश्वास,संयम और विवेक जैसे गुणों का विकास किया जाता था।बालकों के मानसिक,चारित्रिक,बौद्धिक,शारीरिक और आध्यात्मिक विकास पर बल दिया जाता था।
  • इसके अतिरिक्त अर्थोपार्जन के योग्य बनाने पर बल दिया जाता था।जिस बालक की जिस व्यवसाय में रूचि होती थी उसी व्यवसाय को सीखाने पर बल दिया जाता था।
  • शिक्षा ग्राम से बाहर गुरुकुल में ही दी जाती थी।शिक्षा सब के लिए अर्थात् गरीब,अमीर,ऊंच-नीच के लिए समान रूप से उपलब्ध थी।किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता था।जैसे कृष्ण और सुदामा ने एक ही गुरुकुल में शिक्षा अर्जित की थी।शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी अतः धन शिक्षा अर्जित करने में बाधक नहीं था।शिक्षा पर राज्य का नियंत्रण नहीं था।शिक्षा केवल धनोपार्जन का साधन नहीं था।शिक्षा बालकों के साथ बालिकाओं को भी दी जाती थी।गुरुकुल में शिक्षा का केंद्र व्यक्ति को माना जाता था।शिक्षा बालकों के साथ बालिकाओं को भी दी जाती थी।गुरुकुल में शिक्षा का केन्द्र व्यक्ति को माना जाता था।अतः बालक-बालिकाओं के समग्र विकास पर बल दिया जाता था।शिक्षा के लिए वाद-विवाद,श्रवण (सुनना),मनन अर्थात् चिन्तन व विचार करना तथा अभ्यास पर जोर दिया जाता था।
  • उस काल में कागज और मुद्रण का आविष्कार नहीं हुआ था अतः शिक्षा मौखिक ही दी जाती थी।
  • समीक्षाःवैदिक शिक्षा ने भारतीय जीवन पद्धति को अत्यधिक प्रभावित किया था।वैदिक काल में शिक्षा कर्म के आधार पर थी परन्तु कालांतर में धर्म को ज्यादा महत्त्व देने तथा भौतिक विकास को कम प्राथमिकता देने के कारण निःश्रेयस (अर्थात् आध्यात्मिक उन्नति) तथा अभ्युदय अर्थात् भौतिक उन्नति में असंतुलन पैदा हो गया।इसके कारण देश का आर्थिक विकास कमजोर होता गया।इसका परिणाम यह हुआ कि शिक्षा में जो गतिशीलता और निरन्तरता थी उसमें ठहराव आ गया।विचारों की स्वतंत्रता खत्म होने लगी।ग्रन्थों में जो लिखा हुआ था उसी को अंतिम सत्य मान लिया गया जिससे नवीन चिंतन,नई दृष्टि तथा निरंतर खोज करते रहने का सिद्धांत भुला दिया गया।पुराने ग्रंथों को बिना समझे बस रट लेने की प्रवृत्ति को कर्तव्य मान लिया गया।
  • वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर होने लगी।शुद्रों पर अत्याचार तथा स्त्री शिक्षा का लोप हो गया। कर्मकांड को महत्त्व दिया जाने लगा।इन बुराइयों को दूर करने हेतु बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ जिसका मुख्य सिद्धान्त अहिंसा का पालन करना था।इसके प्रतिक्रिया स्वरूप देश सैनिक दृष्टि से कमजोर हो गया हो गया।परिणामस्वरूप विदेशी आक्रमणों का सामना न करने के कारण भारत पर विदेशियों का शासन कायम हो गया।इससे हम यह सीख ले सकते हैं कि आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति में संतुलन होना चाहिए।किसी भी एक पक्ष को महत्त्व देने से उपर्युक्त दुष्परिणाम भुगतना होगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली क्या है? (What is Ancient Indian Education System?),प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की आलोचना (Criticism of ancient Indian Education system) के बारे में बताया गया है।
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