Menu

Penance of Great Mathematician

Contents hide

1.महान् गणितज्ञ का तप (Penance of Great Mathematician),महान् गणितज्ञ का अद्भुत तप और साधना (The Amazing Penance and Mental Training of Great Mathematician):

  • महान् गणितज्ञ का तप (Penance of Great Mathematician) का प्रभाव ही था कि जितना गणित शिक्षा के प्रति समर्पण था उतना ही वे आध्यात्मिक ज्ञान में पारंगत थे।अक्सर अध्यात्म का अर्थ सांसारिक कर्त्तव्यों को छोड़कर लंगोटी बांध लेना और दुनिया से कोई सरोकार नहीं रखना समझा जाता है।परंतु जो भारतीय अध्यात्म को विस्तृत और गहराई में नहीं जानता है वही सांसारिक कर्त्तव्यों से मुंह फेरता है।
  • योग साधना,आध्यात्मिक शिक्षा तथा भौतिक शिक्षा का अध्ययन-अध्यापन गृहस्थी रहकर भी की जा सकती है।परंतु करना उतना ही चाहिए जिससे सांसारिक कर्त्तव्यों व गृहस्थ धर्म निभाने में कोई बाधा न पहुंचे।
  • इस लेख में महान गणितज्ञ करुणाशंकर के बारे में बताया है जिन्होंने गणित शिक्षा के साथ-साथ अध्यात्म को,तप को अपनाया और आजीवन उसके लिए कार्य किया।गणित शिक्षा और अध्यात्म का समन्वय किया और सफल रहे।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:Solution to Disinterest in Mathematics

2.छात्रा के प्रति करुणा और गणितज्ञ की स्थिति (Compassion for the Student and the Position of the Mathematician):

  • गणितज्ञ करुणाशंकर की आंखों से करुणा बरस रही थी।उसकी आंखें एक अबोध छात्रा को देखकर नम हुई जा रही थी,जिसके पास न तो स्कूल व कोचिंग की फीस चुकाने के लिए रुपए थे,न पुस्तकें व नोटबुक खरीदने की कोई व्यवस्था।जिसके तन पर भी फटे पुराने कपड़े थे।उसकी माँ मैली सी साड़ी पहने हुए थी,जो उसके तन को ठीक से ढाँक भी नहीं पा रही थी; क्योंकि जगह-जगह से वह फटी हुई थी।
  • गणितज्ञ का हृदय इस कारुणिक दृश्य को देखकर फटा जा रहा था।उनके पास छात्र-छात्राओं द्वारा फीस के रूप में दिए गए कुछ रुपयों के अलावा कुछ नहीं था।गणितज्ञ ने कहा-“बेटी!ये ले,कुछ पैसे रख ले और जाकर दोनों अपनी उदरपूर्ति कर लो और स्वयं भी कुछ खा ले।हां,यह देख,कुछ रुपये ओर हैं,इन्हें भी ले जा।”इनसे अपने लिए कुछ कपड़े खरीद लो।
  • उस स्त्री ने कहा-“श्रीमान! ये रुपए मैं कैसे ले सकती हूं,मेरे पास इनको चुकाने की कोई व्यवस्था नहीं है।”उसकी बातें इतनी दर्द भरी थी कि गणितज्ञ की आंखों में आंसू छलक आए।गणितज्ञ ने कहा-“बेटी!बस इन्हें तू ले जा।इन्हें वापस लौटाने की जरूरत नहीं है।”
  • गणितज्ञ की आंखें अब भी नम थीं।उनका संवेदनशील हृदय अपने देश की इस गरीबी के लिए धड़क रहा था।गरीबी क्या होती है,वे स्वयं तो अच्छी तरह से अनुभव करते थे; क्योंकि जब गर्मी की छुट्टियों में उनके पास छात्र-छात्राएं पढ़ने नहीं आते थे तो उनको भी कई-कई दिन एक समय भोजन करके अपना समय गुजारना होता था।हालांकि वे इसे कड़े तप के माध्यम से गुजार लेते थे।उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था कि देह के लिए भोजन मिला या नहीं।
  • वे तो बस गणित शिक्षा के लिए समर्पित थे,अपने दिल की गहराई से गणित के प्रचार-प्रसार के लिए काम करते थे।उनके लिए तो छात्र-छात्राएं ही सब कुछ थे।छात्र-छात्राओं के अलावा अन्य से वे केवल रस्मी संबंध रखते थे।
  • गणित शिक्षा के लिए वे इतने डूबे रहते थे कि वे किसी को नहीं जानते थे और न इस दुनिया से संबंध ही बनाना चाहते थे।संबंध तो भावना व संस्कार का खेल है।वे भावनाओं से ऊपर उठ चुके थे,इसलिए उनका जीवन गणित के लिए समर्पित था और उनके सभी संस्कार कट चुके थे अतः पुराने कोई संबंध नहीं बचे थे।
  • गणितज्ञ करुणाशंकर केवल पीड़ित मानवता की पीड़ा का निवारण करते थे।उनकी कोचिंग में जो छात्र-छात्राएं पढ़ने आते थे उनकी पीड़ा का निवारण करते थे।भगवान ने उन्हें यही काम सौंपा था,अतः वे यही काम करते थे और अपनी आजीविका के लिए छात्र-छात्राओं से फीस के रूप में जो कुछ मिलता,उससे अपना गुजारा कर लेते थे।

3.गणितज्ञ की अनूठी दिनचर्या (Mathematician’s Unique Routine):

Penance of Great Mathematician

Penance of Great Mathematician
[गणितज्ञ करुणाशंकर (Mathematician Karunashankar),देवेन्द्र और उसकी पत्नी गंगा (Devendra and Wife Ganga)]

  • एक शाम गणितज्ञ देवेंद्र के घर में बैठे हुए थे।घर मिट्टी का था और उस पर ताड़ के पत्तों की छावनी थी।घर के अगल-बगल विशाल आंगन में नारियल एवं सुपारी के पेड़ लगे थे।समुद्री हवाओं के कारण ये पेड़ झुक जाते थे और इनके पत्तों से गुजरती हवा एहसास कराती थी कि यदि समुद्र में कम दबाव का क्षेत्र बन जाए तो उससे उठने वाली तूफानी हवा कितनी घातक हो सकती है।
  • देवेंद्र का घर कितनी ही बार इस तूफानी प्रहार से नेस्तनाबूद हो चुका था,परंतु देवेंद्र अपने पुरुषार्थ,साहस एवं सूझबूझ से उसे फिर से खड़ा कर सामान्य जीवन में लौट आते थे।इसमें गणितज्ञ करुणाशंकर का आशीर्वाद भी था।गणितज्ञ देवेंद्र के पुरुषार्थी जीवन से बड़े प्रभावित थे।
  • वे कहते थे-“देवेंद्र! दिल में अच्छा भाव और जज्बा हो तो बड़े-बड़े खतरे का दृढ़ता के साथ सामना किया जा सकता है।देख,ये नारियल के पेड़ तूफान में झुक जाते हैं और सारी हवा निकल जाती है।हवा के गुजरने के बाद ये पेड़ फिर से खड़े हो जाते हैं।
  • वैसे ही परिस्थिति के अनुरूप अपने को ढालकर अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए सही समय का इंतजार करना चाहिए।भावावेश में आकर हमें गलत समय में काम की शुरुआत नहीं करनी चाहिए।इसमें कार्य की सफलता संदिग्ध हो जाती है।”देवेंद्र गणितज्ञ की इन्हीं बातों से अपने जीवन की संजीवनी पाते थे।
  • गणितज्ञ जहां बैठते थे,वहां पर देवेंद्र की पत्नी गंगा ने गोबर से लिपाई कर दी थी और कई प्रकार की रंगोली डाल करके सजा दी थी।गंगा के लिए वह स्थान किसी श्रेष्ठ तीर्थ से कम नहीं था,क्योंकि वहां पर वह अपने इष्ट को स्थान देती थी।इसलिए गणितज्ञ भी आकर वहां बैठते थे और वे गणितज्ञ को भी वहीं बैठाते थे।
  • गणितज्ञ अपने स्थान पर विराजमान थे,उनकी आंखों से आत्मीयता एवं प्रेम की चमक बिखर रही थी।आंखें इतनी भोली एवं प्यारी थीं कि उनमें डूब जाने को मन करता था।गंगा को गणितज्ञ की आंखें बड़ी प्यारी लगती थीं।जब वह ध्यान करती थी तो उनके सरल सहज चेहरे के संग उन आंखों की छवि को मन में बसा लेती थी।
  • गणितज्ञ बैठे थे,पता नहीं नारियल के पेड़ में ऐसा क्या था,जिसे वे अपलक निहार रहे थे।काफी देर से बस उसे ही निहारते जा रहे थे।देवेंद्र एवं गंगा वहीं उनके पास बैठे थे।देवेंद्र को साहस नहीं हो पा रहा था कुछ कहने का।वह उनकी गंभीर मौन श्रृंखला में व्यवधान करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था,परंतु गंगा तो गणितज्ञ की पुत्रीवत् थी।
    Penance of Great Mathematician

    Penance of Great Mathematician
    [देवेन्द्र और उसकी पत्नी गंगा (Devendra and Wife Ganga)]

  • उससे रहा नहीं गया।वह बोली-“श्रीमान! आज आपने अपना पर्स नहीं खोला।पर्स में क्या है,दिखाएंगे नहीं क्या?”गणितज्ञ ने शांत एवं सहज ढंग से अपनी दृष्टि गंगा की ओर फेर ली।वे बड़े प्यार से गंगा को देखने लगे।
  • गणितज्ञ हर पल स्वयं को अपने इष्ट में घोलते रहते थे।वे भगवान से प्रार्थना करते थे-“हे भगवान! जो भी मेरे पास भूले-भटके छात्र-छात्राएं आ जाएं,उसका दुःख-कष्ट दूर करना एवं मुझसे जो भी समस्या पूछे उसे हल करने की शक्ति देना तुम पर है।मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है कि मैं उन्हें दे सकूं और न कुछ मैं रखना ही चाहता हूं।
  • तूने चांद,तारे,सूरज बनाया,सृष्टि बनाई,समस्त सृष्टि का संचालन तेरे हाथ में है,बस इन दीन-दुःखी छात्र-छात्राओं की पीड़ा हर लेना।मेरे पास पढ़ने के लिए आना,किसी समस्या का समाधान पूछने आना तेरे दरबार में आना है। तुम तो मेरे दिल में हो।मेरे दिल में तुम्हारे अलावा है ही कौन,जो मैं गुहार कर सकूं।बस,यही गुहार है कि इन पीड़ितों की पीड़ा को दूर कर देना।”
  • गणितज्ञ की प्रार्थना कभी अनसुनी नहीं होती थी।वे जिसके लिए जो कुछ भी कहते थे,आश्चर्यजनक ढंग से पूरा हो जाता था।उनकी पुकार एवं प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं गई।भक्त का संकट भगवान का संकट होता है।इस संकट में सबसे बड़ी परीक्षा तो भगवान की होती है,वह कैसे अपने भक्त को इससे निकाल ले।भक्त और भगवान के बीच सृष्टि का कोई भी विधान नहीं लगता।भक्त की पुकार ही विधान बन जाता है,जिसे पूरा करने के लिए भगवान दौड़ पड़ता है।
  • गणितज्ञ बस अपने भगवान को ही अपनी सांसों में बसा रखे थे।उनकी देह का कतरा-कतरा,उनके भगवान के लिए था।उनकी रग-रग में,कण-कण में बस वही बसते थे।इसलिए वे बीच-बीच में मौन हो जाते थे कि उनको पुकारने वालों की पुकार को अपने भगवान तक पहुंच सकें।

4.गणितज्ञ की भला करने की आदत (Mathematician’s Habit of Doing Good):

Penance of Great Mathematician

Penance of Great Mathematician
[गणितज्ञ करुणाशंकर (Mathematician Karunashankar)]

  • गंगा ने कहा-श्रीमान! आपको तो भला करने का रोग है। आप जिस दिन किसी का कुछ भला नहीं करते,आपको चैन नहीं मिलता।आपको कहीं छात्र-छात्राएं फीस नहीं देते हैं और पढ़कर चले जाते हैं।आप जानते हैं कि यह छात्र या छात्रा फीस नहीं देगा,फिर भी उसके बदले आप उसे डाँटते क्यों नहीं,उसे क्यों पढ़ा देते हैं?”
  • गंगा बोलते हुए थोड़े से आवेग में आ गई।उसकी आंखों में आंसू छलक आए और रुँधे स्वर में बोलने लगी-“श्रीमन! आपकी यह भलमनसाहत हमें पसंद नहीं।आपको तो कुछ लगता नहीं,पर हमारा दिल छलनी हो जाता है,आपके इस अपार कष्ट से।
  • आपको कई दिन एक समय इसलिए भूखे रहना पड़ता है,क्योंकि आपके पास न तो भोजन होता है और ना उसे खरीदने के लिए रुपए।
  • बहुत सारा नुकसान तो इस बेदर्द दुनिया के चालाक एवं स्वार्थी छात्र-छात्राएं कर जाते हैं।आपके पास तो कोचिंग का किराया,बिजली का बिल,पुस्तकें खरीदने के लिए रुपए,व्हाइट बोर्ड पर लिखने के लिए पेन व स्याही आदि के लिए पूरा मूल्य भी नहीं होता कि आप पढ़ाने का काम आगे जारी रख सकें।”
  • ऐसा कहते-कहते गंगा गणितज्ञ के चरणों में निढाल होकर गिर पड़ी और बेसुध हो गई।उसके आंसुओं से गणितज्ञ के कोमल पैर भीगने लगे।गणितज्ञ उसी अवस्था में बैठे रहे।
Penance of Great Mathematician

Penance of Great Mathematician
[देवेन्द्र (Devendra)]

  • गणितज्ञ ने गंगा को शांत किया,अपने हाथों से उसके आंसू पोंछे और बोले-“गंगा बेटी! परेशान मत हो।तुम मेरे लिए बिल्कुल परेशान मत होना।मेरी परवरिश मेरा भगवान करता है।वह सब जानता है कि मेरे साथ क्या हो रहा है।वह जानता है कि किसमें मेरा कल्याण होना है।यदि छात्र-छात्राओं को पढ़ाने के बदले मुझे फीस न मिलने में कल्याण है तो फिर इसे कौन रोक पायेगा!
  • रही बात दुनिया की,तो दुनिया तो जैसी है,वैसी ही रहेगी और उसके लोग भी ऐसे ही रहेंगे।यहां जैसा है,वैसा ही रहेगा।हर व्यक्ति अपनी नियति लेकर आया है और अपनी प्रकृति के अनुरूप आचरण करता है।व्यक्ति अपने आचरण के अनुरूप बर्ताव करता है।अतः तुम उसके आचरण से परेशान मत हो।उनको वैसा ही रहने दो और अपना श्रेष्ठ आचरण करो।”
  • गंगा गणितज्ञ की बातों से शांत थी और खामोश थी।वह जानती थी कि गणितज्ञ उसे चुप एवं शांत कर देंगे।गंगा बोली-“श्रीमन! हमें ऐसे स्वार्थी एवं प्रपंची लोगों से कैसे बर्ताव करना चाहिए।” गणितज्ञ ने कहा-“बेटी! सामान्य रूप से ऐसे लोगों से समझदारी एवं विवेकपूर्ण ढंग से बर्ताव करना चाहिए,परंतु मेरे लिए बात कुछ ओर है।
  • भगवान ने मुझे पीड़ित मानवता (छात्र-छात्राओं) की सेवा के लिए नियुक्त किया है।इसलिए मैं तो केवल पीड़ा-निवारण का कार्य करता हूं।फिर यह पीड़ा किसी (किसी भी छात्र-छात्रा) की भी क्यों ना हो।मेरे पास जो भी आ जाए और पीड़ा निवृत्ति के लिए निवेदन करे,तो मैं उसकी यथासंभव अपनी सामर्थ्य के अनुरूप पीड़ा दूर करने का प्रयास करता हूं।उसका दुःख दूर करने की चेष्टा करता हूं।मेरे लिए तो सब बराबर हैं।
  • सबमें मैं अपने परम प्रिय ईष्ट की झांकी करता हूं।सभी में एक उसी को देखता हूं।इसलिए मैं सबको उसी दृष्टिकोण से देखता हूं कि जिससे उसका कष्ट दूर हो सके।”

5.गणितज्ञ की अंतिम यात्रा (The Mathematician’s Last Journey):

  • उस दिन गणितज्ञ गंगा एवं देवेंद्र के घर से निकलकर गांव में घूम-घूम कर संपर्क करते रहे एवं उपदेश देते रहे तथा कोचिंग के समय छात्राओं को पढ़ाते रहे।आज भी कई छात्र-छात्राएं बिना फीस दिए पढ़कर चले गए परंतु वहां से निकलने के बाद वे सीधे कोचिंग के मकान के मालिक के पास पहुंचे और सारा हिसाब चुकती किया।
  • कमरे के मालिक ने भी कहा “श्रीमान! फ्री में पढ़कर जाने वालों से दूर रहिए,अन्यथा आपको भारी नुकसान होगा।” गणितज्ञ उसकी बातों से मुस्कुरा दिए।इस प्रकार गणितज्ञ अपने घाटे के कार्य में भी प्रसन्न थे।वे तो बस अपने समय की प्रतीक्षा कर रहे थे कि कब उचित समय आए और वे अपने परमधाम पहुंच सकें।गणितज्ञ को इसका पूरा ज्ञान था कि कब क्या होगा।
  • अपनी कुटिया में प्रातः गणितज्ञ ने जिन छात्र-छात्राओं में फीस बाकी थी उस नोटबुक को निकाला और उसे नष्ट कर दिया।जो फ्री में पढ़कर चले जाते हैं वे दुनिया में नहीं चलते परंतु भगवान और उसके बंदों के पास चल जाते हैं।आज वे अपने भगवान से प्रार्थना कर रहे थे-“हे भगवान! मैं जीवन भर फीस न देने वालों को भी पढ़ाता रहा और चलाता रहा हूं।मैंने भी आपको कोई फीस (भगवान का नाम) नहीं चुकाई।मुझे भी तू चला दे।मैं तो कहीं ओर नहीं चल सकता हूं।केवल तेरे पास ही चल सकता हूं।हे भगवान! इस दास को भी चला दे।”
  • अंतरतम भाव के साथ उसकी करुण पुकार सुन ली गई और वे अपने इष्ट के दरबार में चल गए।जिंदगी भर दूसरों के लिए जीने वाले,फ्री में पढ़ने वाले को चलाने वाले आज अपने इष्ट के पास चला लिए गए।अपने धाम ले चलने के लिए भगवान स्वयं पधारे थे।महान् गणितज्ञ करुणाशंकर अपने इष्ट के साथ तदाकार-एकाकार होकर उनके साथ उनके धाम सिधार गए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में महान् गणितज्ञ का तप (Penance of Great Mathematician),महान् गणितज्ञ का अद्भुत तप और साधना (The Amazing Penance and Mental Training of Great Mathematician) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:To Forget Studied Topic of Mathematics

6.कुंवारे शिक्षकों को नौकरी (हास्य-व्यंग्य) (Jobs for Unmarried Teacher) (Humour-Satire):

  • शिक्षक:बाॅस,आप कुँवारे शिक्षकों को ही नौकरी क्यों देते हैं?
  • बाॅस:क्योंकि उनको कम वेतन देना पड़ता है और वो भी कभी भी भुगतान किया जा सकता है।जबकि शादीशुदा शिक्षकों को अधिक वेतन देना पड़ता है और एक तारीख को ही ऑफिस पर चढ़ाई कर देते हैं।

7.महान् गणितज्ञ का तप (Frequently Asked Questions Related to Penance of Great Mathematician),महान् गणितज्ञ का अद्भुत तप और साधना (The Amazing Penance and Mental Training of Great Mathematician) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.भोगी और त्यागी में क्या अंतर है? (What is the Difference Between Voluptuous and Sacrificing Person?):

उत्तर:भोगी और त्यागी की दृष्टि में कोई फर्क नहीं होता है।ये दोनों एक दूसरे की तरफ पीठ करके खड़े रहते हैं लेकिन उनकी दृष्टि में कोई खास फर्क नहीं होता है।भोगी विषयों का भोग करता है और उसमें आसक्त रहता है अर्थात् भोगों को पकड़े रहता है।त्यागी विषयों का त्याग करता है और उसकी आसक्ति यह रहती है कि मैंने विषय भोगों के सुखों को त्यागा है।भोगी को भोगने में आसक्ति रहती है और त्यागी की त्यागने में आसक्ति रहती है।तात्पर्य यह है कि भोगी भी उतना ही हिसाब रखता है जितना हिसाब त्यागी रखता है।

प्रश्न:2.क्या त्याग बिना कामना के नहीं किया जा सकता है? (Can Renunciation Not Be Done Without Desire?):

उत्तर:त्याग के बिना कुछ नहीं मिलता है।यदि बिना त्याग किये कुछ पाना चाहते हैं तो यह अन्याय है या चोरी करना चाहते हैं या लूटना चाहते हैं अथवा धोखा देना चाहते हैं।लेना और देना उचित व्यवहार को संतुलित बनाए रखने वाली नीति है इस दृष्टि से कुछ पाने के लिए कुछ त्याग करना आवश्यक है।जो कुछ हम प्राप्त करना चाहते हैं उसके बदले में उसी मूल्य के बराबर त्याग करना भी जरूरी है ताकि संतुलन बना रहे परंतु इस तरह का त्याग शुद्ध त्याग नहीं है बल्कि व्यवसाय और विनिमय का ही एक हिस्सा होता है।यदि हम कुछ पाने के लिए त्याग कर रहे हैं तो त्याग नहीं कर रहे हैं बल्कि कुछ पाने के लिए त्याग कर रहे हैं।शुद्ध त्याग तो वही है जिसमें किसी प्राप्ति की इच्छा ना हो,बदले में कोई मांग ना हो,कोई शर्त नहीं हो और कोई कामना ना हो।

प्रश्न:3.भोगी और तपस्वी में क्या अंतर है? (What is the Difference Between Voluptuous and Ascetic?):

उत्तर:भोगी सुख का आयोजन करता है और तपस्वी दुःख का आयोजन करता है।भोगी सीधा खड़ा है तो तपस्वी शीर्षासन कर रहा है।भोगी सुख-शैय्या पर लेटता है तो तपस्वी कांटों पर लेटता है।लेकिन योगी की बात ही अलग है।वह न सुख का आयोजन करता है और न दुःख का,वह सुख-दुःख से परे,सब कुछ साक्षी भाव से देखता हुआ,आनंद में रहता है।आज संसार में ऐसे तथाकथित तपस्वियों यानी मेसोचिष्टों की ही संख्या ज्यादा है और बढ़ती जा रही है।योगी सुख व दुःख को एक समान भाव से झेलता है।जो सुख-दुःख को समान भाव से देखता है वही ज्ञानी है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा महान् गणितज्ञ का तप (Penance of Great Mathematician),महान् गणितज्ञ का अद्भुत तप और साधना (The Amazing Penance and Mental Training of Great Mathematician) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *