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Discovery of Genius by Mathematician

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1.गणितज्ञ द्वारा प्रतिभा की खोज (Discovery of Genius by Mathematician),गणितज्ञ द्वारा प्रतिभा की खोज कैसे की गई? (How Was Genius Discovery by Mathematician?):

  • गणितज्ञ द्वारा प्रतिभा की खोज (Discovery of Genius by Mathematician) की गई जिसने आगे जाकर गणित में ऐसी खोज की जो उच्च कोटि की थी।प्रतिभा को सही दिशा मिल जाए तो वह संबंधित क्षेत्र में गजब का कार्य खड़ा कर देती है।गणितज्ञ धीरेंद्रसिंह ऐसी ही प्रतिभा की खोज करते थे।वे स्वयं तो उच्च कोटि के गणितज्ञ थे ही परंतु वे हमेशा आते-जाते समय यही खोज करते रहते थे कि कोई प्रतिभा खिलने से पहले ही मुरझा ना जाए,सड़-गल ना जाए।
  • ऐसी अनेक प्रतिभाएं हैं जिनकी उचित संभाल न हो पाने के कारण गुमनामी के अंधेरे में पड़ी रहती है।यदि उनकी पहचान करके उचित शिक्षा,प्रशिक्षण दिया जाए तो संसार को अनेक वरदानों से मालामाल कर देती है।
  • इस आर्टिकल में एक ऐसी प्रतिभा को प्रस्तुत किया गया है जो कल्पना पर आधारित है।इससे आपका मनोरंजन तो होगा ही साथ ही आपको मानसिक सन्तुष्टि भी मिलेगी और सोचने के लिए विवश करेगी।
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2.प्रतिभा का बचपन (Childhood of Genius):

  • कच्ची बस्ती में सामान बीनती छोटी-छोटी बच्चियों का एक समूह प्रतिदिन अपने काम की व खाने-पीने की चीजें ढूंढा करता था।कुछ खाने को मिल जाता तो खा-पीकर सभी बच्चियाँ ऊपर से पानी पीकर किसी वृक्ष के नीचे बैठकर कुछ गुनगुनाने लगते।भूखे पेट को कुछ तृप्ति मिल जाए,इसलिए भटकते इन बच्चों की अनकही पीड़ा को भला कौन समझे? कैसे कोई जाने की गरीब एवं दीन-दुर्बल होना क्या होता है? उसे केवल वही समझ सकता है,जो या तो इस दुरवस्था की पीड़ा एवं वेदना से गुजरा हो या संवेदनशील हो।बच्चों को जब सूखी रोटी के टुकड़े या खाने की कोई चीज मिल जाती थी तो मिलकर खा लेते थे और पास के एक नल से दोनों हाथ लगाकर पानी पीकर अपनी प्यास बुझा लेते थे।
  • शाम को फटे-मैले कपड़ों के संग हाथों में कच्ची बस्ती से बीनी गई कुछ चीजें होती थीं,जिन्हें बेचने से शायद कुछ मिल जाए और फिर सुबह इसी कार्य के लिए निकल जाना उनकी अंतहीन कहानी बन गई थी।इन्हीं में एक छोटी लड़की थी मेधा।वह भी अपनी खोज एवं धुन में मगन रहती थी।मेधा औरों से कुछ जुदा थी।उसकी आंखों में पता नहीं कौन सा सपना एवं कल्पना चल रही थी।वह शांत होकर अपनी चीजों की तलाश करती थी,परंतु जब कभी गिनती व पहाड़े गुनगुनाते लगती तो सभी बच्चे देखकर प्रसन्न हो जाते थे क्योंकि वह पहाड़े व गिनती को कविता का पुट देकर बोलती थी और उसकी आवाज में माधुर्य था।
  • दिन का 12:00 बजे का समय था।ठंड की ठिठुरन थी।सभी बच्चे स्वेटर पहने हुए थे,जो कई स्थानों से फटे हुए थे।उनको न तो ठंढ की परवाह थी और न स्वेटर और कपड़ों के फटेहाल की।उनको ब्रेड और जैम के कई पैक मिल गए थे।शायद किसी अभिजात्य वर्ग ने इन्हें पसंद नहीं किया होगा,इसलिए ये कच्ची बस्ती में यत्र-तत्र बिखरे हुए शोभायमान कर रहे थे।सभी बच्चे उन्हें देख खुशी से नाचने लगे,उनकी आंखों में चमक बिखर गई,क्योंकि भूख लग रही थी और भोजन मिल गया था और वह भी पर्याप्त मात्रा में।सभी बच्चे खाना खाकर गिनती और पहाड़े गुनगुना रहे थे।मेधा ने ब्रेड का एक टुकड़ा खाया और कुछ अपने पास रख लिया,ताकि उसको वह अपनी मां को खिला सके।वह बड़ी ही भावुक प्रकृति की थी।

3.गणितज्ञ की पारखी नजर पड़ी (The Mathematician Caught the Eye of the Connoisseur):

  • मेधा को क्या सूझा कि वह किसी एक पहाड़े को अपने कंठ का माधुर्य देकर गुनगुनाने लगी,फिर वह जोर-जोर से गाने लगी और उस कविता से विभोर होकर झूमने लगी।सभी बच्चे उसके साथ नाचने,गाने एवं झूमने लगे।ठीक इसी समय गणितज्ञ धीरेंद्रसिंह अपनी कार से निकल रहे थे।उन्होंने बच्चों को पहाड़े को कविता का रूप देकर गाते-नाचते देखा और वे वहीं रुक गए।थोड़ी दूर पर वे इन बच्चों को बड़े ध्यानपूर्वक देखने लगे।उनकी पारखी नजरे मेधा के हाव-भाव,पैरों के थिरकन तथा होठों से पहाड़े के बोल के माधुर्य पर टिक गई।वे देख रहे थे कि इतनी कम उम्र में कच्ची बस्ती में अपने भोजन के लिए तरशने और भोजन के लिए इधर-उधर भटकने वाली एक लड़की बिना गुरु का सानिध्य पाए,बिना अभ्यास किए गणित की इतनी मधुर कविता गा रही है।
  • मेधा की भाव भंगिमा के संग उसके पैरों की थिरकन अद्भुत थी।उसका गणित के प्रति प्रेम अद्भुत था।उसकी बात कुछ ओर ही थी,जो वहां पर किन्हीं अन्य बच्चों में दृष्टिगोचर नहीं हो रही थी।धीरेंद्रसिंह,मेधा को देखकर बस,देखते ही रह गए।शायद यह पहला अवसर था कि गणितीय शोध के ग्लैमर में रहने के बावजूद वे इतने कभी भावविभोर नहीं हुए थे,जितना वे मेधा का गणित के प्रति प्रेम देखकर हुए।उन्होंने पास के एक व्यक्ति को पूछा:”माफ कीजिए! क्या ये बच्चे यहां इस समय प्रतिदिन आते हैं।” उस व्यक्ति ने कहा:”हाँ! ये बच्चे कच्ची बस्ती के हैं और इधर-उधर से अपने लिए कुछ चुनते हैं।चूँकि यहां पास में ही कॉलोनी है,जहां धनाढ्य एवं संभ्रांत लोग रहते हैं जो बची-खुची चीजें,रोटी,ब्रेड आदि पटक जाते हैं,इसलिए ये बच्चे यहाँ प्रतिदिन आते हैं और मँडराते रहते हैं।ये बच्चे कुछ ना कुछ गुनगुनाते रहते हैं।धीरेंद्रसिंह ने सोचा कि यह व्यक्ति जिसे गुनगुनाना कह रहा है,उसे पता नहीं उस गुनगुनाने में कौन-सा बेशकीमती रत्न छिपा हुआ है।
  • धीरेंद्रसिंह वहां से चले गए,परंतु अपने व्यस्ततम समय में कुछ समय निकालकर वे वहाँ प्रतिदिन जाते और मेधा को देखकर प्रसन्न होते थे।धीरेंद्रसिंह पूर्व जन्म के सिद्धांत से परिचित थे,इसलिए वे मेधा को देखकर विवश हो जाते थे कि उसके साथ उनका कोई पिछला अटूट संबंध तो नहीं है।अन्यथा एक अपरिचित बच्ची से उनका इतना आकर्षण कैसे पैदा हो गया।वे चिंतन की इस गुत्थी को सुलझा नहीं पा रहे थे,परंतु मेधा की जन्मजात प्रतिभा में कुछ खोज जरूर कर रहे थे।एक दिन धीरेंद्रसिंह अपने साथ खाने की चीजें,जैसे:चने,बिस्किट,टॉफी,मिठाइयां आदि लेकर आए और उन्हें सभी बच्चों के बीच बांट दिया,परंतु उन्होंने मेधा को अलग से बुलाया और धीरे से कहा! प्यारी बच्ची! तुम अद्वितीय हो,गणित का सौंदर्य तथा कला का अपूर्व एवं अद्भुत सम्मिश्रण तुममें है।तुम चाहो तो क्या नहीं कर सकती? तुम कुछ ऐसा कर सकती हो,जो ओर कोई नहीं कर सकता।”
  • “सचमुच मैं कुछ कर सकती हूं? मेधा ने पूछा।”हां,तुम कुछ भी कर सकती हो,बहुत कुछ नया कर सकती हो,ऐसा जिसकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता।”-धीरेंद्र सिंह ने जवाब दिया।यह कहकर वे वहां से चले गए।धीरेंद्रसिंह की बातें सुनकर मेधा की कल्पनाएं शांत मन के समंदर में हिलोरे लेने लगीं,उठने गिरने लगीं,परंतु वे कोई आकार नहीं ले पा रही थीं।एकाएक वह सोच भी क्या सकती थी।कल्पना की दिशा क्या हो? वह क्या कल्पना करें और कैसे उसे मूर्त रूप प्रदान करें,समझ नहीं पा रही थी।इसी उधेड़बुन में वह एक मैले प्लास्टिक के थैले में धीरेंद्रसिंह द्वारा दिए गए चने,बिस्किट,मिठाइयां वगैरह घर ले आई।मेधा की कल्पनाएं पानी के बुलबुले के समान उठती और उसी पल फूटकर पानी में ही विलीन हो जाती थीं।

4.मेधा की शिक्षा और आगे का सफर (Medha’s Education and Journey Ahead):

  • घर में मेधा के अंतर्मुखी स्वभाव से सभी परिचित थे।वह अक्सर अपनी ही कल्पनाओं में खोई रहती थी।वह किसी चीज को देखती तो बस उसे देर तक देखती ही रहती थी।भोजन करते समय भी उसका यही हाल होता था।वह मुंह में ब्रेड का टुकड़ा रखे अपलक किसी चीज को निहारती रहती थी।जब तक उसकी माँ उसके मुंह में ब्रेड का टुकड़ा नहीं डाल देती,वह मुंह में निवाला लिए बैठी रहती थी परंतु आज मेधा खुशी से नाच उठी।वह एकाएक झूमने-नाचने लगी।घर में सभी को हैरानी हो रही थी।अचानक एवं औचक इसे हो क्या गया।मेधा अपनी कल्पनाओं में स्वयं गणित के क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए देख रही थी।
  • मेधा आस-पड़ोस में किसी भी छात्र-छात्रा को सवाल हल करते व पढ़ने देखकर उसी तरह हल करने का प्रयास करती,फिर अकेले में मूर्तरूप प्रदान करती थी।इस तरह बढ़ती उम्र के साथ उसकी कल्पनाएं सजीव और जीवन्त होने लगी,परंतु इनमें सरसता लाने के लिए वह उन कल्पनाओं के संसार में भावनाओं की आभा घोलने लगी।भावनाएं कल्पनाओं को पोषण देती हैं,ऊर्जा भरती है और कल्पना के सुदूर एवं अनंत आकाश में उड़ान भरने लगती हैं।मेधा की कल्पनाओं में पंख लग गए थे और वह जो भी कल्पना करती,उसे हल करने में कठिनाई नहीं होती,बल्कि इसमें वह डूबकर आनंदित हो उठती।
  • मेधा ने अपनी कल्पनाओं में एक नई पटकथा को जन्म दिया और उसे (गणित के सवाल) बड़े मनोयोगपूर्वक हल कर रही थी कि धीरेंद्रसिंह उसके घर पहुंचे और उसकी गणितीय प्रतिभा से मुग्ध होकर उसे गणित के संसार में ले आए।धीरेंद्रसिंह ने कहा:”मेधा! तुम्हारी कल्पनाएं,भावनाओं के संग मिलकर गणित को कला का एक नवीन आकार दे रही हैं।अब वक्त आ गया है कि तुम इस गणित के संसार में कुछ करके दिखाओ।” मेधा खुशी से झूम उठी।अंदर की यह प्रसन्नता उसकी आंखों से अश्रुकणों के रूप में झरने लगी।उसने कहा:”आपने मेरे जीवन में प्रेरणा का जो भाव भरा है,वह मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी।इसके लिए मेरे पास सिर्फ भावों के कोई शब्द नहीं हैं।”
  • मेधा को जितनी खुशी थी,खुशी के मारे जितना उसका सुकोमल हृदय सरोबार हो रहा था,उससे कहीं अधिक धीरेंद्रसिंह का तन-मन और भाव प्रसन्नता के अनगिनत रंगों से आंदोलित,उद्वेलित होकर घूम रहे थे।यह अव्यक्त भाव अभिव्यक्त होकर उस वातावरण में प्रसन्नता एवं उसके मिठास के रूप में घुल रहे थे और मेधा एवं धीरेंद्रसिंह उसे अनुभव कर पा रहे थे।मेधा कृतज्ञ थी कि धीरेंद्रसिंह ने उसको कच्ची बस्ती से निकलकर,एक बेशकीमती नगीना (गणितज्ञा) बना दिया और धीरेंद्रसिंह भावविभोर थे कि वह गणित जगत को एक खूबसूरत उपहार भेंट कर सके।
  • धीरेंद्रसिंह ने अपने भावों को सहेजते हुए धीरे से जवाब दिया:” मेधा! मैंने क्या किया है? यह तो तुम्हारी अटूट लगन,अविरल निष्ठा एवं भीषण चुनौतियों के प्रति जुझारू क्षमता के कारण ही संभव हो पाया है।मैंने एक दिशा दी और तुमने उस दिशा में बढ़कर यह साबित कर दिया कि गणितीय प्रतिभा और कुशलता को पैदा किया जा सकता है,कल्पनाओं को जीवंत किया जा सकता है और इसके लिए जन्मजात गुण नहीं होने के बावजूद इसे उपार्जित किया जा सकता है।यह सब तुम्हारे अपार धैर्य एवं सहजशीलता तथा लक्ष्य के प्रति समर्पित भाव का ही परिणाम है।”

5.गणितज्ञा की सफलता का सफर और पुरस्कार (Female Mathematician’s Journey and Rewards):

  • धीरेंद्रसिंह के सहयोग ने मेधा को गणितीय संसार में ला खड़ा ही नहीं किया,बल्कि उसे एक कीर्तिमान के रूप में स्थापित भी किया,मेधा ने गणित के इस संसार में अपनी गणितीय ज्ञान के सौंदर्य एवं जादू बिखेर दिया था।मेधा की गणित में अनेक खोजें सफलता के सभी मानकों को पार करने लगीं।उसकी अनेक खोजें महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई।कुछ समय पहले जिसे कोई नहीं जानता था और जो गुमनाम की जिन्दगी जी रही थी,वह आज सबकी चहेती बन गई थी।उसे कई पुरस्कार भी मिले।
  • मेधा को गणित में अवार्ड के लिए जब चुना गया,तब उस भव्य हाल में तालियों की गड़गड़ाहटें देर तक गूंजने लगीं।अवार्ड को हाथ में लेकर उसने कहा:”इस पुरस्कार के असली हकदार तो मेरे प्रेरणास्रोत गणितज्ञ धीरेंद्रसिंह हैं,जिन्होंने मुझे उस जिंदगी से यहां लाकर खड़ा किया,जहां के बारे में केवल फिल्मों में दिखाया जा सकता है,असल में जीना अति कठिन है।आप में से कोई मुझे इसके पहले मिला होता और उस समय मैं अपने इस मुकाम एवं मंजिल के बारे में कहती तो शायद किसी को यकीन नहीं हो पाता,परंतु ऐसा हुआ है और एक असंभव संभव बनकर आपके सामने इस पुरस्कार के साथ प्रस्तुत है।”उसकी इस भावाभिव्यक्ति से तालियों की अंतर्गूंज ही सुनाई दे सकी।
  • मेधा आगे बोली:” गणितीय प्रतिभा का जन्म भावनाओं के धरातल पर होता है और कल्पनाएं उसे पंख देती हैं,उड़ने के लिए ताकि वह सुदूर आकाश में उड़ सके।इसके लिए हमारे अंदर उर्जा का सैलाब होना चाहिए और यह मिलती है असीम सत्ता पर गहरी आस्था एवं विश्वास से।यदि आस्था गहरी हो तो सफलता में उन्माद नहीं होता है और असफलता में अवसाद नहीं होता है।गणितीय कुशलता,गणितीय कला तो गणित की अविरल धारा है।इस धारा में नए लोगों को खोजकर जोड़ते रहना चाहिए,नए लोगों को अवसर देते रहना चाहिए।पता नहीं,कौन कब इस मुकाम तक पहुंच जाए।”
  • मेधा के दिल से उठे इस उद्गार ने सभी के दिल को छुआ और सभी खुशमिश्रित अश्रुकणों से उसे आभार व्यक्त कर रहे थे।वह अपने सपनों में उनके सपनों को हकीकत में बदल डालने की सुंदर कल्पना लिए तालियों की गूँजों के बीच अपने स्थान पर आकर बैठ गई।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणितज्ञ द्वारा प्रतिभा की खोज (Discovery of Genius by Mathematician),गणितज्ञ द्वारा प्रतिभा की खोज कैसे की गई? (How Was Genius Discovery by Mathematician?) के बारे में बताया गया है।

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6.दो शिक्षिकाओं में झगड़ा (हास्य-व्यंग्य) (Quarrel Between Two Female Teachers) (Humour-Satire):

  • दो गणित शिक्षिकाओं में झगड़ा हो गया।
  • पहली गणित शिक्षिका:मैं तुम्हें पढ़ी-लिखी,समझदार,इज्जतदार,शिक्षित समझती थी परंतु तुम तो इतनी लालची निकली कि मेरी ट्यूशन की छात्र-छात्राओं को प्रलोभन देकर अपने पास बुला लिया।
  • दूसरी शिक्षिका:मैं भी तुम्हें ऐसा ही समझती थी,परंतु तुमने भी मेरे स्टूडेंट्स को तोड़कर अपने पास बुला लिया।
  • पहली शिक्षिका:हाँ,तुम्हीं ठीक समझती थी।गलतफहमी में तो मैं ही थी।

7.गणितज्ञ द्वारा प्रतिभा की खोज (Frequently Asked Questions Related to Discovery of Genius by Mathematician),गणितज्ञ द्वारा प्रतिभा की खोज कैसे की गई? (How Was Genius Discovery by Mathematician?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.प्रतिभा की क्या विशेषता होती है? (What is the Speciality of talent?):

उत्तर:प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती,न धन की,न किसी विश्वविद्यालय की डिग्री की और न ही सम्मान की।प्रतिभावान व्यक्ति कभी अनुकूल परिस्थिति की प्रतीक्षा नहीं करते और न ही किन्हीं प्रतिकूलताओं से घबराते हैं।परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी क्यों ना हों,वे कभी घबराते नहीं और न ही कभी रुकते हैं।वे बने बनाए रास्तों पर चलने के आदी नहीं होते।वे तो जिस दिशा में चल देते हैं,वहीं नई राहें बन जाती हैं।

प्रश्न:2.प्रतिभा को कैसे पहचाना जा सकता है? (How Can talent Be Identified?):

उत्तर:गणितीय प्रतिभा अनेक छात्र-छात्राओं तथा लोगों में विद्यमान होती है परंतु उनकी प्रतिभा को सही मायने में एक पारखी गणितज्ञ ही पहचान दिला सकता है। तभी प्रतिभा के कार्यों को समुचित मान्यता और यथोचित सम्मान मिल सकता है।

प्रश्न:3.क्या विकट परिस्थितियाँ कार्य करने में अवरोध नहीं है? (Are Dire Circumstances a Hindrance to work?):

उत्तर:यदि व्यक्ति जीवन में कुछ करना चाहता है तो कोई भी परिस्थिति उसके मार्ग में ज्यादा देर तक बाधा नहीं बन सकती।दृढ़ संकल्प,सशक्त मनोबल वाला व्यक्ति न कभी परिस्थितियों से घबराता है और न ही अपना रास्ता बदलता है।यदि व्यक्ति चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकता।जो व्यक्ति कभी परिस्थितियों से हार नहीं मानता,जो इतना दृढ़ है कि उसके लक्ष्य के सामने किसी भी प्रलोभन का कोई मोल नहीं,वही जीवन में महान कार्य कर सकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणितज्ञ द्वारा प्रतिभा की खोज (Discovery of Genius by Mathematician),गणितज्ञ द्वारा प्रतिभा की खोज कैसे की गई? (How Was Genius Discovery by Mathematician?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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