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The Great Dutiful Mathematician

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1.महान कर्मनिष्ठ गणितज्ञ (The Great Dutiful Mathematician),सफलता का पर्याय कर्मनिष्ठ गणितज्ञ (The Dutiful Mathematician Synonymous with Success):

  • महान् कर्मनिष्ठ गणितज्ञ (The Great Dutiful Mathematician) अखंडानंद बच्चों को गणित पढ़ाते थे।उनके पढ़ाने का अंदाज इतना निराला,अद्भुत तथा विस्मित करने वाला था कि कमजोर से कमजोर छात्र-छात्रा को गणित सहजता और सरलता से समझ में आ जाती थी,जिसके कारण बच्चों को उनका पढ़ाना अच्छा लगता था।जिस समर्पण भाव से वे बच्चों को गणित पढ़ाते थे,उसी तन्मयता,रुचि और उत्साह के साथ बच्चे पढ़ते थे।
  • दरअसल गणित को रुचिकर बनाने के लिए वे बीच-बीच में महान् गणितज्ञों के प्रेरक दृष्टांत,उद्धरण,पहेलियों,हास्य-व्यंग्य आदि का इस तरह से समावेश करते थे कि उनका पढ़ाया हुआ हृदयगम हो जाता था और बच्चों को पढ़ाया हुआ याद करने के लिए मस्तिष्क पर बहुत अधिक दबाव डालने या तनावग्रस्त होने की आवश्यकता नहीं थी।
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2.गणितज्ञ की निडरता (The Fearlessness of the Mathematician):

  • भू-माफियाओं की आदत थी कि वे किसी भी सार्वजनिक जमीन को औने-पौने दामों में खरीद लेते थे।फिर उस सार्वजनिक जमीन पर जिनका भी कब्जा होता था उसे वे जोर जबरदस्ती से हटा देते थे।यहां तक कि कोई सार्वजनिक स्थल पर सेवा कार्य करता था उसे भी नहीं छोड़ते थे।यदि कोई व्यक्ति उनका सामना करता,प्रतिरोध करता था तो उसे वे समाप्त कर देते थे।
  • ऐसा ही एक भू-माफिया था भुजबल जो अपनी ताकत,दौलत के बल पर शासन और सत्ता को रखैल समझ रखा था।अपने अहंकार को तुष्ट करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता था।अपनी इसी आदत और रणनीति के तहत उसने अपार संपदा,ठाठ-बाट,शानो-शौकत और राजनीतिक क्षेत्र में ऊपर तक अपनी पैठ बना ली थी।उसके वैभव और रुतबे का प्रत्यक्ष उदाहरण था:उसका राजसी फार्महाउस,उसकी सुरक्षा करने वाले दबंग व्यक्ति और लठैत और उसकी सुरक्षा में खड़े अनेक गनमैन।आसपास के क्षेत्र में दबंग व्यक्ति के रूप में उसका दबदबा चारों ओर फैला हुआ था।
  • ऐसे में भला अहंकार,शक्ति व दौलत के मद को उसे कोई कैसे चुनौती दे सकता था? परंतु उसने उसी जमीन को शासन व सत्ता में राजनीतिक पहुंच के चलते खरीद लिया जिस जमीन पर गणितज्ञ महोदय शिक्षा संस्थान चलाते थे और बच्चों को गणित पढ़ाया करते थे।गणित के अतिरिक्त भी अन्य विषय अन्य अध्यापक पढ़ाते थे।उस अदने से गणितज्ञ ने भुजबल के अहंकार को चुनौती दी थी।भुजबल शांत कैसे बैठ सकता था।ना सुनना तो उसकी आदत में था ही नहीं।
  • भुजबल के भीतर क्रोध उनके समक्ष खड़े लठैतों और गनमैनों पर फूट पड़ा।वह कह रहा था,तुम लोगों को इतना खिलाता-पिलाता हूं और मोटी तनख्वाह लेते हो परंतु तुम इतने निकम्मे कैसे हो गए? एक छोटे से शिक्षा संस्थान के निदेशक को नहीं हटा पाए।इधर हमारा अरबों रुपए का प्रोजेक्ट अधूरा पड़ा हुआ है।प्रतिदिन लाखों रुपयों का नुकसान हो रहा है।जाओ! जो कुछ भी करो परंतु गणितज्ञ अखंडानंद और शिक्षा संस्थान को हटा दो,चाहे अखंडानंद की हत्या ही करना पड़े तो भी कर डालो।
  • भुजबल के एक मित्र ने कहा कि मामला काफी उलझ चुका है।तुम्हारे विरोधी भी गणितज्ञ का साथ दे रहे हैं।आपने जो शक्ति,दौलत और संपदा तथा राजनीतिक हैसियत प्राप्त कर रखी है उसको भारी नुकसान हो सकता है।अहंकारी भुजबल को कुछ भी सुनना पसंद नहीं था।जिसने भी इंकार करने की कोशिश की,उसे मिटा दिया गया।भुजबल की आंखों में हैवानियत तैरने लगी,उसके अंदर का जंगली जानवर जाग गया।उसकी आंखें क्रोध से लाल हो गई।वह बोला,गणित शिक्षक से वह आज ही मिलना चाहता है।आज ही उसे लेकर मेरे सामने आओ।वह न आए तो उठाकर ले आओ।

3.भू-माफिया का अहंकार नष्ट (Destroy the Arrogance of Land Mafia):

  • भू-माफिया भुजबल के मित्र ने कहा;गणितज्ञ अखण्डानन्द अपने उसूल के पक्के हैं।उन्हें जीने-मरने की परवाह नहीं है।उनके आगे-पीछे कोई भी नहीं है।एक दुर्घटना में उसके परिवार के सभी लोग मर चुके हैं।अब उनका परिवार उनके कस्बे के लोग ही हैं।अब अकेले ही उस शिक्षा संस्थान में रहते हैं और गरीब-अमीर घरानों के सभी बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं।गरीब बच्चों के पढ़ने का खर्च भी वही वहन करते हैं।कस्बे वाले उन्हें देवता ही मानते हैं।आतंकित करके आपने इतने बड़े भू-भाग के शेष क्षेत्रों से लोगों को हटा दिया,परंतु गणितज्ञ अखंडानंद को ताकत के बल से नहीं हटाया जा सकता।अब भी बच्चे बेखौफ होकर उनके पास पढ़ने आते हैं।भुजबल के मित्र ने कहा कि उनसे मिलने के लिए हमें खुद वहाँ चलना चाहिए।भुजबल ने कहा,ठीक है।चलो उनसे मिलने चलते हैं,पर आज मैं आर या पार करके रहूंगा।
  • गणितज्ञ अखंडानंद ध्यानावस्था में बैठे हुए थे।शिक्षा संस्थान की बगल में उनकी स्वच्छ और सुंदर कुटिया थी।कुटिया के बाहर भू-माफिया भुजबल,भुजबल के लठैत और हुड़दंगी भीड़ इकट्ठी हो गई थी और कुछ लोग गणितज्ञ अखंडानंद को धमकियाँ दे रहे थे,गाली-गलौज कर रहे थे।अखण्डानन्द ध्यानावस्था से उठकर कुटिया के बाहर आए।सभी को नीचे साफ-सुथरी जमीन पर दरी बिछाकर बैठने के लिए कहा।उनका तथा भुजबल का सामना पहली बार हो रहा था,परंतु उनके बीच के तनाव से सभी परिचित थे।समस्या गणितज्ञ की नहीं,भू-माफिया भुजबल की थी।अधीर होकर क्रोधावेश में भुजबल ने कहा:आपको तो पता है कि इस जमीन को हम खरीद चुके हैं।एक बहुत बड़ा उद्योग स्थापित करने के लिए हम ऐसा कर रहे हैं।अतः उचित यही होगा कि आप इस जगह को जल्दी से जल्दी खाली कर दें।
  • गणितज्ञ अखण्डानन्द ने शांत एवं गंभीर होकर कहा: आप तो शक्तिशाली,सामर्थ्यवान हैं और राजनीति में भी आपकी ऊपर तक पहुंच है।परंतु जनता के हित का ध्यान रखना भी आपका कर्त्तव्य है।शिक्षा के प्रसार करने के लिए उचित प्रयास करना भी आपका कर्त्तव्य है।परंतु आप अपनी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु अनीति व अधर्म का सहारा ले रहे हैं।हम तो यहां गरीब बच्चों को निःशुल्क पढ़ाते हैं और अमीर बच्चों से भी जो शुल्क,फीस प्राप्त होती है उसे अन्य शिक्षकों का वेतन देने,भवन का निर्माण व मरमत करने में खर्च कर देते हैं।ऐसे पुण्य कार्य में तो आपको सहायता प्रदान करनी चाहिए।इतना सुनकर भुजबल का क्रोध सातवें आसमान पर चढ़ गया और वह अपशब्द बोलने लगा।
  • गणितज्ञ अखण्डानन्द ने कहा कि इतना अहंकार उचित नहीं है।अहंकार के वशीभूत होकर हिरण्यकश्यप,कंस,जरासंध,कालयवन,दुर्योधन,रावण आदि अपने आपको भगवान समझने लगे थे परंतु उनका क्या हश्र हुआ,यह सब जानते हैं।कोई भी शक्तिमान,सामर्थ्यवान हो सकता है,पर भगवान नहीं बन सकता।
  • अब भुजबल का क्रोधावेश ठंडा पड़ने लगा।नीति व तर्कयुक्त बातों ने अहंकार के नीचे दबी उसकी अंतरात्मा को छू लिया था।जिसने जिंदगी में आज तक ना नहीं सुनी थी,वही भुजबल गणितज्ञ अखण्डानन्द के रूप में खड़े इंसानियत के मिशाल के समक्ष झुक गया था।अब अपनी फौज,लठैतों और गनमैन को साथ लेकर वापस चले जा रहा था और गणितज्ञ के सच्चे वाक्य उसके दिल-दिमाग पर चोट कर रहे थे।

4.गणितज्ञ की पढ़ाने की शैली (Teaching Style of Mathematician):

  • अखण्डानन्द प्रौढ़ हो चले थे।सिर के बालों में सफेदी चमकने लगी थी,परंतु आंखों की चमक एवं चेहरे की दमक एवं दीप्ति उन्हें किसी कर्मयोगी के समान दर्शाती थी।मितभाषी गणितज्ञ अपने कर्त्तव्य के प्रति पूर्ण निष्ठावान थे।वे साधारण वस्त्र ,साफ-धुले हुए पहनते थे एवं पैरों में साधारण पदवेश धारण करते थे।उनके पदचाप से ही उनके आगमन की सूचना मिल जाती थी।उनका व्यक्तित्त्व अत्यंत गंभीर,विशाल एवं बहुआयामी था।उन्हें गणित के साथ-साथ,अध्यात्म,धर्म,दर्शन,संस्कृति का गहरा ज्ञान था।इसलिए बच्चों के लिए वे आकर्षक एवं अपनों से भी अपने के समान थे।वे कर्त्तव्यनिष्ठ थे।ऐसा बहुत कम होता था कि वह पढ़ाई के दिनों में शिक्षा संस्थान से दूर रहते हों।अपनी कुटिया में शयन व नित्यकर्म के अलावा सारा समय शिक्षा संस्थान में व्यतीत होता था।
  • अखण्डानन्द जी कभी अपनी कुटिया से शिक्षा संस्थान में नहीं आते थे तो पूरा शिक्षा संस्थान सूना सूना लगता था परंतु उनके आते ही शिक्षा संस्थान जीवंत हो उठता था।उनके बिना छात्र-छात्राएं मायूस हो जाते थे।उनको लगता था,जैसे उनकी कोई बहुमूल्य एवं वेशकीमती चीजें चोरी चली गई हों।अन्य शिक्षकवर्ग भी इन सबसे पूर्ण परिचित थे।वे भी अखंडानंद जी का अनन्य सम्मान करते थे।यह अखण्डानन्द जी का समर्पण ही था कि शिक्षा संस्थान में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति शत-प्रतिशत रहती थी।यदि कोई छात्र-छात्रा किसी कारण से शिक्षा संस्थान न आ पाता था तो वे स्वयं छुट्टी के बाद उसके घर पहुंच जाते थे और उसकी समस्या का हर संभव निदान करते थे।

5.गणितज्ञ की कालांश का एक विशिष्ट दिन (A Typical Day in the Mathematician’s Period):

  • आज की कक्षा में छात्र-छात्राओं के साथ शिक्षक वर्ग भी सम्मिलित थे।अखण्डानन्द जी को अध्ययन बहुत प्रिय था।वे बहुत गहन-गंभीर अध्ययन करते थे।वे कह रहे थे: “बच्चों! सफलता का तात्पर्य है-अपनी कड़ी मेहनत,पूर्ण निष्ठा,समझदारी एवं समय प्रबंधन के साथ किया गया वह कार्य,जो हमें सुकून एवं संतोष प्रदान करता है।जिस कार्य में हमारी ऊर्जा लगी हो,समय खपा हो एवं बुद्धि का प्रयोग किया गया हो,उस कार्य को ही सत्कर्म कहते हैं और इसका परिणाम अत्यंत सुखद एवं संतोषजनक होता है।यही परिणाम ही तो सफलता है।
  • छात्रा पूनम ने हाथ खड़ा करके पूछा:गुरुजी! यदि गणित,विज्ञान जैसे विषयों में कड़ी मेहनत की,हमने अपना सब कुछ उसमें झोंक दिया,फिर भी हमें उसका वांछित एवं आशातीत परिणाम नहीं मिला तो क्या हम उसे सफल कहेंगे? निदेशक ने पूनम को स्नेहिल दृष्टि से देखा और उसकी पीड़ा को उसके प्रश्नों में तैरता हुआ पाया।यही तो उनकी विशिष्टता थी कि वे किसी छात्र-छात्रा या व्यक्ति के व्यक्तित्त्व की गहराई में उतरकर झांक लेते थे।वे कहने लगे:यहाँ पर हम कह सकते हैं कि सफलता के लिए जो प्रयास किया गया था उसमें यदि जानकार व्यक्ति (श्रेष्ठ गणित शिक्षक) बड़ी सूक्ष्मता से देखे तो वह पता लगा सकता है कि आखिर वह कौनसा टॉपिक था,जिसे ठीक से नहीं समझा गया एवं पढ़ा नहीं गया और जिसके कारण वांछित सफलता नहीं मिल पाई।इस संदर्भ में तुम्हारी दृष्टि से कहीं अधिक एक विशेषज्ञ (गणित जैसे विषय के शिक्षक) की सूक्ष्मदृष्टि की आवश्यकता है,जो तुम्हें अपनी कमियों एवं खामियों को सही ढंग से बता सके।यदि उसे पूरा कर लिया जाए तो सफलता सुनिश्चित है।
  • एक अन्य छात्र कपिल ने प्रश्न किया:”गुरुजी! वर्तमान समय में सफलता किसे कहेंगे? अखण्डानन्द ने कहा: प्रिय छात्रों:असफलता के मायने बदल गए हैं।आज की सफलता के मायने हैं कि आज आप किस क्षेत्र में कितना उपयोगी एवं श्रेष्ठ हैं।जिस क्षेत्र में आप सफल होना चाहते हैं वह उस क्षेत्र के लिए कितना उपयोगी है।अगर आपमें उस विषय की समझ,उसे करने की क्षमता एवं लगन,निष्ठा हो तो आप अवश्य सफल होंगे।एक अन्य छात्रा ने पूछा सफलता के सूत्र क्या हैं? अखंडानंद जी ने कहा:सफलता का रहस्य व्यक्ति के पुरुषार्थ,आत्मविश्वास एवं भगवान की कृपा में समाया हुआ है।
  • वे इसको समझाते हुए आगे बोले:भगवत कृपा उस परमात्मा पर संपूर्ण एवं अगाध विश्वास है,जो हमें कभी निराश नहीं करता,सदा हमारे साथ खड़ा मिलता है और हमारी बाँहें पकड़े रहता है।अब पुरुषार्थ की तकनीक समझो।इसमें पहली चीज है:क्या पाना है इसका स्पष्ट निर्धारण।साथ ही इसकी तीव्रतम इच्छा।अपने मन में वही कल्पना करना चाहिए,जिसे पाना है।दूसरा बिंदु: प्रबल विश्वास (आत्म-विश्वास)।यह विश्वास हमें अपनी इच्छा पर भी हो,स्वयं पर भी हो और उस पर भी,जिसकी तुम उपासना-आराधना करते हो।तीसरा बिंदु:निरंतर व सतत,परंतु संतुलित प्रयास।अपने प्रयास में आने वाले विघ्नों के बावजूद बिना घबराए जुटे रहो।मन से कभी हार न मानो,निरंतर लगे रहो।हां,इसमें संतुलन भी बनाए रखो,ताकि कोई तनाव तुम्हारी क्षमता को कम न कर पाए।चौथा तत्त्व है:परिस्थितियों के प्रति स्वीकार्यता।इसकी समझ एवं स्वीकार्यता से अवसरों को अपनाने में सुविधा मिलती है।पांचवा बिंदु है:निरंतर आगे की ओर बढ़ना।इसका तात्पर्य है जीवन में जो भी परिस्थितियाँ आएँ,उनमें उपयुक्त राह खोज लेना।छठवाँ  बिंदु है अपने मिशन में जुटे रहना,बिना विचलित व निराश हुए।
  • वे आगे बोले:”इन सूत्रों को यदि जीवन में उतार लिया जाए,इनको क्रियान्वित किया जाए तो जीवन सफलता का पर्याय बन जाएगा और उस पर असफलता की काली छाया कभी नहीं पड़ेगी।सफलता हमें सुकून,शान्ति,संतोष एवं प्रेरणा प्रदान करती है।अतः हम सफलता की ओर अग्रसर हों।इतना कहकर गणितज्ञ अखंडानंद जी ने अपनी सामूहिक भगवत स्मरण,वैदिक मंत्रों एवं शांति पाठ के मंत्रों से समाप्त किया।सभी बच्चे आज गणित में सफलता के सूत्र,जीवन में सफलता के सूत्र तथा गणित के अतिरिक्त व्यावहारिक ज्ञान पाकर गदगद थे।उन्होंने गुरुजी का अभिवादन किया।अखण्डानन्द जी बड़े सहज भाव से अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करके अपनी कुटिया की ओर प्रस्थान कर गए।छात्र-छात्राएं प्रिय गुरुजी की दूर तक पदचाप सुनते रहे।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में महान कर्मनिष्ठ गणितज्ञ (The Great Dutiful Mathematician),सफलता का पर्याय कर्मनिष्ठ गणितज्ञ (The Dutiful Mathematician Synonymous with Success) के बारे में बताया गया है।

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6.शिक्षक रिटायर्ड होने पर क्या होगा? (हास्य-व्यंग्य) (What Happens When Teacher Retired?) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक:यदि मैं रिटायर्ड होकर घर चला गया जाऊंगा,तो तुम क्या करोगे?
  • छात्र:सर,हम भी स्कूल को छोड़ देंगे और घर चले जाएंगे।
    गणित शिक्षक:क्यों?
  • छात्र:क्योंकि कई बार ज्यादा खुशी में भी व्यक्ति पागलपन की हरकतें करने लगता है।

7.महान कर्मनिष्ठ गणितज्ञ (Frequently Asked Questions Related to The Great Dutiful Mathematician),सफलता का पर्याय कर्मनिष्ठ गणितज्ञ (The Dutiful Mathematician Synonymous with Success) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या गणित शिक्षा के अलावा भी ज्ञान अर्जित करें? (Do You Acquire Knowledge Other Than Math Education?):

उत्तर:जीवन क्षेत्र में जॉब के अलावा भी अनेक क्षेत्रों में अपने कर्त्तव्य का पालन करना होता है अतः उन कर्त्तव्यों का पालन तभी किया जा सकता है जब हमें व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ थोड़ा-बहुत आध्यात्मिक,नैतिक,धार्मिक व सांस्कृतिक ज्ञान हो।

प्रश्न:2.अहंकार से क्या तात्पर्य है? (What is Meant by Ego?):

उत्तर:अहंकार भगवान से अलग होने की अनुभूति है।इसका मतलब है,संपूर्ण अस्तित्व से अलगाव,अपने आपको विराट अस्तित्व से अलग-थलग महसूस करने लगना।

प्रश्न:3.गणित में बोरियत कैसे दूर करें? (How to Overcome Boredom in Mathematics?):

उत्तर:गणित विषय को दिल से पढ़ें बोझ समझकर,केवल परीक्षा के दृष्टिकोण से ही न पढ़े।यह दृष्टिकोण विकसित होता है आध्यात्मिक,नैतिक,धार्मिक व व्यावहारिक ज्ञान अर्जित करने से।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा महान कर्मनिष्ठ गणितज्ञ (The Great Dutiful Mathematician),सफलता का पर्याय कर्मनिष्ठ गणितज्ञ (The Dutiful Mathematician Synonymous with Success) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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