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How to Adopt Science and Spirituality?

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1.विज्ञान और अध्यात्म को जीवन में कैसे अपनाएं? (How to Adopt Science and Spirituality?),विज्ञान और अध्यात्म को अपनाने की 3 टिप्स (3 Tips for Embracing Science and Spirituality?):

  • विज्ञान और अध्यात्म को जीवन में कैसे अपनाएं? (How to Adopt Science and Spirituality?) विज्ञान का उद्देश्य भी सत्य की खोज करना है तो अध्यात्म का उद्देश्य भी सत्य की खोज करना है।विज्ञान सत्य का अनुसंधान करता है परंतु इस अनुसंधान का आधार पदार्थ है।वह अपनी सीमाओं में अत्यंत प्रामाणिक है।उसकी सीमाएं हैं तर्क और तथ्य पर आधारित पदार्थ की वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त करना।जो दिखाई देता है,वह उसी को आधार मानकर चलता है,इसलिए वह अपनी सीमाओं में तो ठीक है पर जैसे ही तर्क मौन हो जाता है,पदार्थ समाप्त हो जाता है तो विज्ञान भी सीमित हो जाता है।वहीं से चेतना की यात्रा आरंभ होती है।
  • पदार्थ के आगे अध्यात्म की सीमा प्रारंभ होती है।मानव जीवन केवल पांच तत्वों (पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु,आकाश) से ही निर्मित नहीं होता है।पांच तत्वों से शरीर का निर्माण होता है जो मन और आत्मा के बिना केवल शव मात्र है।अतः अध्यात्म को बिना जाने मनुष्य का जीवन शव की तरह नष्ट हो जाता है।अध्यात्म के बिना अर्थात् आत्मा और परमात्मा का अनुभव किए बिना सारी भौतिक संपन्नता,धन संपदा,सुख-सुविधा आदि सब दो कोड़ी का हो जाता है।अतः जीवन जीने के लिए विज्ञान और अध्यात्म को अपनाना आवश्यक है और जीवन में इनका संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
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2.विज्ञान की खोज का आधार (The Basis of the Discovery of Science):

  • विज्ञान का आधार होता है पदार्थगत दृष्टि,अनेकान्त दृष्टि।प्राप्त सूचनाओं,प्रमाणों तथा प्रयोगों एवं परीक्षणों से उपलब्ध आंकड़ों का व्यवस्थित लिपिबद्ध संकलन और प्रस्तुतीकरण विज्ञान का आधार है।
  • आधुनिक युग विज्ञान का युग है और आज हर पहलू पर वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करना अच्छा माना जाता है।विज्ञान के कार्य क्षेत्र दो हैं:एक तो ज्ञात जो मनुष्य द्वारा जान लिया गया है और दूसरा अज्ञात यानी जितना अभी जानना बाकी है,जिसे आज नहीं तो कल जाना जा सकता है या जान लिया जाएगा।जानने की वैज्ञानिक पद्धति का संबंध भौतिक जगत के पदार्थों से रहता है इसलिए विज्ञान ने अभी तक जो जाना है वह भौतिक (Material) जगत के बारे में जाना है और जितना ओर जान सकेगा वह भी भौतिक जगत के बारे में होगा।इसकी वजह यह है कि हर पदार्थ,हर तत्व का,हर भौतिक चीज का विश्लेषण करने के लिए विज्ञान उसके खंड-खंड करता चला जाता है ताकि उसके मूल तक पहुंच सके और उसके बारे में सब कुछ जान सके।पश्चिम में विज्ञान ने इस दिशा में बहुत काम किया है।
  • बहुत समय पहले,पश्चिम में सिर्फ फिलासफी यानी दर्शनशास्त्र पर ही विचार होता था और वहां उच्चकोटि के दार्शनिक विद्वान हुए भी है पर बाद में विभाजन हो गया यानी दर्शन और विज्ञान अलग-अलग कर दिए गए।
  • विज्ञान विश्लेषण करने के लिए उसके खण्ड-खण्ड यानी टुकड़े-टुकड़े करना शुरू किए और फिजिक्स,केमिस्ट्री,बायोकेमिस्ट्री,बायोलॉजी,आर्गेनिक,इनआर्गेनिक,मेडिकल,पेथाॅलाजी,इंजीनियरिंग आदि अनेक खण्ड होते चले गए,इन खण्डों के भी उपखण्ड हुए और इस प्रकार विज्ञान ने ‘एक अखण्ड’ को अनेक खण्ड-उपखण्ड में विभाजित कर दिया है।उदाहरणार्थ मैथमेटिक्स के खण्ड और उपखण्ड होते गए:सेट थ्योरी,नम्बर थ्योरी,अलजेब्रा,एब्स्ट्रेक्ट अलजेब्रा,डिस्क्रीट मैथमेटिक्स,ज्योमेट्री,ट्रिग्नोमेट्री,मैथमेटिकल एनालिसिस,न्यूमेरिकल एनालिसिस,लिनियर अलजेब्रा,डिफरेंशियल कैलकुलस,एडवांस्ड डिफरेंशियल कैलकुलस,इंटीग्रल कैलकुलस,एडवांस इंटीग्रल कैलकुलस,डायनामिक्स,वेक्टर अलजेब्रा,एनायलटिकल ज्योमेट्री,मॉडर्न अलजेब्रा,वेक्टर कैलकुलस,कन्वर्जेंस,स्टेटिक्स,स्टेटिस्टिक्स,सॉलि़ड ज्योमेट्री,कोऑर्डिनेट ज्योमेट्री,डिफरेंशियल इक्वेशन,वेक्टर एनालिसिस,थ्योरी ऑफ इक्वेशन्स,हाइड्रोस्टेटिस्टिक्स,स्पेरिकल टिगनोमेट्री,रियल एनालिसिस,मैथमेटिकल स्टैटिस्टिक्स इत्यादि।
  • पदार्थ के खण्ड-खण्ड करता विज्ञान परमाणु,इलेक्ट्रॉन,प्रोटॉन,न्यूट्रॉन और इससे भी आगे अनेक कणों की खोज कर ली।पर इस मामले में एक चूक हो रही है कि खण्ड-खण्ड और अणु-परमाणु के विश्लेषण में उलझा हुआ विज्ञान ‘एक अखंड’ से वंचित हो गया है।अखंड पर उसकी नजर पड़ ही नहीं रही क्योंकि उसकी नजर ही ‘विभाजन और विश्लेषण’ की दृष्टि है।विज्ञान की विशेषता ही यह है कि वह हर पदार्थ का,हर विषयवस्तु का और हर तत्व का विश्लेषण कर उसमें विशेषज्ञता प्राप्त करने की कोशिश करता है,स्पेशलाइजेशन करने की कोशिश करता है और हर खण्ड तथा उपखंड के बारे में अधिक से अधिक जानने की कोशिश करता है।यह कोशिश अच्छी है और कई उपलब्धियां प्राप्त करने वाली भी पर इससे एक गड़बड़ यह हो रही है कि खंड-खंड और उपखण्डों में जो एक अन्तरतम पारस्परिक संबंध है,एक अविच्छिन्न तारतम्य है उसे विज्ञान देख-समझ नहीं पाता है।
  • शरीर के एक-एक अंग व प्रत्यंग का विश्लेषण कर वह अंग का विशेषज्ञ तो बन गया पर इस पूरे शरीर में व्याप्त उस ‘एक अखण्ड’ (आत्मा,परमात्मा) को विज्ञान नहीं जान पाता।जैसे शरीर में व्याप्त एक अखण्ड यानी आत्मा को नहीं जान पाता वैसे ही ब्रह्मांड में व्याप्त ‘एक अखण्ड’ यानी ब्रह्म (परमात्मा) को नहीं जान पाता।दरअसल उसकी दृष्टि सिर्फ स्थूल पर पड़ती है जिसे देखा जा सकता है,सूक्ष्म पर नहीं जिसे देखा नहीं जा सकता सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।
  • फलस्वरूप वैज्ञानिक अनुसंधान में सही और गलत सभी अनुसंधान किये जा रहे हैं।सही अनुसन्धान करना तो ठीक है परंतु युद्ध विनाश,अणु युद्ध,रासायनिक युद्ध,ध्वनि युद्ध (साउंड बार),न्यूट्रॉन बम,लेसर बम,नक्षत्र युद्ध (स्टार वार) आदि के लिए विनाशक हथियारों का अनुसंधान संपूर्ण मानवता के लिए खतरा है।विश्वभर में प्रति मिनट लाखों डॉलर की पूँजी केवल युद्ध सामग्री जुटाने में लग रही है।बस एक तीली जलाने,बटन दबाने भर की कसर है कि समस्त मानव जाति खतरे में पड़ सकती है।
  • यह सब जानते हुए भी वैज्ञानिक अपने अनुसंधान की दिशा सही और मानवता के लिए करने को तैयार नहीं है।रात-दिन विनाशक हथियारों का अनुसंधान करने में जुटे हुए हैं।

3.अध्यात्म की खोज का आधार (The Basis of the Search for Spirituality):

  • जिस तरह विज्ञान के क्षेत्र:ज्ञात और अज्ञात की बातें करता है वैसे धर्म यानी अध्यात्म तीन क्षेत्रों की बात करता है:ज्ञात,अज्ञात और अज्ञेय।ज्ञात वह है जिसे जान लिया गया है,अज्ञात वह है जिसे आज नहीं तो कल जान लिया जाएगा और अज्ञेय वह है जिसे संपूर्ण रूप से जाना नहीं जा सकता क्योंकि हमारी क्षमता सीमित और अपूर्ण है अतः सीमित और अपूर्ण होने की वजह से हम उस असीम (परमात्मा) और पूर्ण को जान ही नहीं सकते।जितना जानने की कोशिश करेंगे उतना ही यह जान पाएंगे कि अभी तो बहुत कुछ जानना बाकी है।इसलिए धर्म (आध्यात्म) खंड-खंड से अखंड की ओर,पत्तों व शाखों से जड़ की ओर तथा परिधि से केंद्र की ओर यात्रा करता है।वह खंड-खंड नहीं करता बल्कि खंड-खंड को जोड़कर ‘अखंड’ की ओर संकेत करता है,उसकी तरफ प्रेरित और अग्रसित करता है।
  • विज्ञान अखंड से खंड की तरफ और विराट से क्षुद्र की तरफ ले जाता है और धर्म खंड-खंड से अखंड की तरफ,क्षुद्र से विराट की तरफ ले जाता है और अनेकता से एकता की तरफ ले जाता है।धर्म एक सार्वभौतिक तारतम्य यानी ‘यूनिवर्सल इंटरलिंकिंग’ है।प्रकृति और जगत की सारी व्यवस्था को संचालित और व्यवस्थित रखकर,सबको परस्पर जोड़कर रखने वाली सर्वोच्च परम सत्ता यानी हाईएस्ट सुप्रीम पावर (परमात्मा) की ओर ले जाने वाली यात्रा यह धर्म ही है।धर्म श्रेय मार्ग है और विज्ञान प्रेय मार्ग है जो पार्थिव तत्वों के भिन्न-भिन्न उपखंडों के भौतिक विश्लेषण हेतु विभिन्न तत्वों,दिशाओं और आयामों में व्यस्त रखने वाली प्रक्रिया है।
  • अध्यात्म एकात्म और एकांत की अंतर्यात्रा है।जहां भीड़ है,वहाँ एकांत नहीं और एकांत में भीड़ नहीं होती है।अध्यात्म तो उस यात्रा का नाम है जिसे करने के लिए व्यक्तित्त्व का शीर्षासन करना पड़ता है।
  • अध्यात्म स्वयं से दूर भगाने का नाम नहीं बल्कि स्वयं को खोजने एवं पाने का नाम है।यहां पर कोई भागमभाग नहीं है बल्कि यहां तो स्थिर हो जाना है,शांत हो जाना है।यहां किसी के सहारे नहीं,स्वयं को अकेला चलना पड़ता है।
  • अध्यात्म की गली बड़ी सँकरी है और यहां अकेले ही यात्रा संभव है।अकेले का तात्पर्य है:किसी कामना-वासना,लोभ-मोह के साथ नहीं बल्कि सबको त्यागकर स्वयं के साथ,अपनी आत्मशक्ति के साथ।इससे कम में इस गली में गुजरना तो क्या प्रवेश भी असंभव है।पात्र में गंगाजल रखने से पहले पात्र को स्वच्छ एवं साफ करना पड़ता है।यही वह सिद्धांत है;जिसके अनुसार स्वयं को पवित्र (काम,क्रोध,लोभ इत्यादि से मुक्त) करना पड़ता है।यह पवित्रता ही वह आधार है,जिसके आधार पर अध्यात्म के मार्ग में प्रवेश मिलता है।
  • अध्यात्म असीम है,यहाँ चेतना के अनेक आयाम खुलते हैं।हर आयाम अनोखा व अद्भुत होता है।यहां सब शान्त,शीतल एवं स्थिर है परंतु तब भी गतिमान है और यह गति जीवात्मा से परमात्मा तक पहुंचने की यात्रा के लिए है।जीवात्मा परमात्मा में मिलकर चिदानंदरूप हो जाता है परंतु इसके विपरीत संसार में भटककर स्वयं को और परमात्मा को भूल जाता है और संचारचक्र में भटकता ही रहता है,फिर इस आवागमन का कोई अंत नहीं है।
  • मन में संसार हो तो संसार भटकाता है,फिर जब संसार मन से हट जाता है;तब अध्यात्म प्रारंभ होता है।अध्यात्म समस्त समस्याओं का समाधान भी है और गहरी उपलब्धि भी है।यह अंतर्यात्रा है।यही यात्रा सर्वोच्च है,अतः इसी यात्रा के लिए चल पड़ना चाहिए जहां सभी इच्छाएं,कामनाएँ एवं तृष्णाएँ विलीन हो जाती हैं और मनुष्य अपने आत्मरूप को उपलब्ध हो जाता है।यही जीवन का उद्देश्य भी है और यही एकमात्र उपलब्धि भी।

4.विज्ञान की प्रगति भी अंतर्दृष्टि पर निर्भर (The Progress of Science is Also Based on Insight):

  • वैज्ञानिक अपनी तर्कबुद्धि का सहारा लेकर प्रकृति की विभिन्न घटनाओं की व्याख्या करते हैं।चूँकि व्याख्या का आधार तर्कबुद्धि है,अतः जब घटनाएं इससे परे एवं पार चली जाती है तो फिर विज्ञान के पास उसका कोई तर्क नहीं होता है।यहीं पर आकर विज्ञान ऊहापोह की स्थिति में फंस जाता है।
  • हर वैज्ञानिक के जीवन में ऐसी परिस्थिति निर्मित होती है कि वह पदार्थ,जो दिखता है,उसी को माने या फिर जो घटित होने की तैयारी में है और जिसे अनुभव ही किया जा सकता है,उसको स्वीकारे।कोई भी वैज्ञानिक किसी भी आविष्कार का जन्मदाता नहीं होता है,वह तो केवल उसे प्रकट करने का माध्यम बनता है।यह सब अंतर्दृष्टि से ही जानना-समझना संभव है।तर्कबुद्धि के साथ अंतर्दृष्टि के महत्त्व को कई वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है।महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने इस तथ्य को स्वीकार किया था कि उनके अनुसार प्रत्येक वैज्ञानिक को अन्त में अंतर्ज्ञान की सहायता लेनी पड़ती है क्योंकि प्राकृतिक नियमों की रचना केवल तर्क मात्र से नहीं वरन अंतर्ज्ञान के आधार पर की जाती है।
  • प्रायः प्रत्येक वैज्ञानिक की अपनी खोज प्रज्ञा व बुद्धि के सहारे करनी पड़ती है।अतः आज भी ऐसे ही वैज्ञानिकों की आवश्यकता है जो तर्कबुद्धि के साथ अंतर्दृष्टि के महत्त्व को स्वीकार करते हैं।ऐसे वैज्ञानिक जो पदार्थ और चेतना के बीच अंतर्संबंधों को खोजते,समझते एवं अनुभव करते हैं वे मानवता के हित में ही अनुसंधान कार्य करते हैं,मानवता को नष्ट करने के अनुसंधान नहीं करते हैं।

5.अध्यात्म का दृष्टांत (Vision of Spirituality):

  • एक विद्यार्थी को सच्चे गुरु की तलाश थी।वह जानना चाहता था कि संसार में रहते हुए किस प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता है? तलाश करने पर उसे सच्चे गुरु का पता लग गया।वह विद्यार्थी उन गुरुजी के पास पहुंच गया।गुरुजी ने उसे पूछा कि वह क्यों आया है और क्या चाहता है? उस विद्यार्थी ने पूछा कि संसार में रहने के लिए किस प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता है और आत्मा का रहस्य क्या है?
  • उस विद्यार्थी के मुख से आधुनिक युग में आत्मा के रहस्य का प्रश्न सुनकर गुरुजी आश्चर्यचकित हुए।उन्होंने पहले प्रश्न के उत्तर में कहा कि सांसारिक,गृहस्थ का धर्म व पारिवारिक कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए भौतिक ज्ञान की आवश्यकता है जिससे तुम जाॅब प्राप्त कर सको।
  • जाॅब प्राप्त करके धनार्जन से तुम पारिवारिक व सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन कर सको।संसार में रहने के लिए व्यावहारिक ज्ञान की आवश्यकता है।
  • दूसरे प्रश्न के जवाब में गुरुजी बोले वह कोई ओर प्रश्न पूछ लें क्योंकि यह विषय इतना गूढ़ है कि हर कोई इसे नहीं समझ सकता।पर वह विद्यार्थी अपनी बात पर अड़ा रहा और निर्णायक स्वर में कहा कि यदि आप आत्मा के बारे में कुछ बता सकते हैं तो बता दें अन्यथा मुझे इंकार कर दें।
  • गुरुजी ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि वत्स,ये ऐसा रहस्य है जो मैं भी नहीं जानता।पर यदि तुम ज्ञान प्राप्त करो और विद्या अध्ययन करो तो तुम्हें सिर्फ इसी प्रश्न का ही नहीं बल्कि संसार के सभी प्रश्नों का उत्तर प्राप्त हो सकता है।क्योंकि विद्या वह खजाना है,जिसकी बराबरी संसार की कोई दूसरी वस्तु नहीं कर सकती है।
  • उस विद्यार्थी ने शिक्षा के साथ विद्या प्राप्त करने का प्रयास प्रारंभ कर दिया।वस्तुतः जीवन में भौतिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान दोनों की आवश्यकता होती है।भौतिक ज्ञान से असन्तुष्टि,लालसाएँ,इच्छाएँ बढ़ती जाती है और व्यक्ति अशांत,उद्विग्न रहता है।बहुत कुछ भौतिक सम्पदा प्राप्त करके भी उसका जीवन कंटकाकीर्ण रहता है।अतः उसे आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए जो उसे आत्म-संतुष्टि,शांति और संतोष धारण करने में मददगार साबित होता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में विज्ञान और अध्यात्म को जीवन में कैसे अपनाएं? (How to Adopt Science and Spirituality?),विज्ञान और अध्यात्म को अपनाने की 3 टिप्स (3 Tips for Embracing Science and Spirituality?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित शिक्षक से पिटाई का डर (हास्य-व्यंग्य) (Fear of Beating From Maths Teacher) (Humour-Satire):

  • राम पीरियड समाप्त होते ही पीछे से आगे की ओर दौड़ा।
  • श्याम:गणित शिक्षक से पीटने का इरादा है क्या?
  • राम:यार,पीटोगे तो तुम।तुमने सुना नहीं गणित शिक्षक पीछे केे कमरे से आ रहे हैं।

7.विज्ञान और अध्यात्म को जीवन में कैसे अपनाएं? (Frequently Asked Questions Related to How to Adopt Science and Spirituality?),विज्ञान और अध्यात्म को अपनाने की 3 टिप्स (3 Tips for Embracing Science and Spirituality?) से संबंधित पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सत्य को कैसे समझ सकते हैं? (How Can You Understand the Truth?):

उत्तर:प्रयोगों एवं परीक्षणों से उपलब्ध ज्ञान विज्ञान का एक पक्ष है।जब तक धर्म,कार्य नियति,स्वभाव एवं काल के प्रभावों को नकारा जाएगा,सत्य समझ में नहीं आएगा।अध्यात्म के बिना ज्ञान अधूरा है,अपूर्ण है।विज्ञान के लिए सम्यक ज्ञान,सम्यक दर्शन और सम्यक आचरण आवश्यक है।शरीर मात्र पांच तत्वों का ढांचा ही नहीं है बल्कि उसके साथ मन और आत्मा भी जुड़े हुए हैं।मन और आत्मा का संचालन तथा नियंत्रण चेतना से होता है।हमारी संवेदनाएं,भाव,विचार,सोच,कर्म,नियति,स्वभाव,चिंतन,काल तथा जीवनचर्या उसे प्रभावित करते हैं।भौतिक एवं आत्मिक बल भौतिक यंत्रों से नहीं मापा जा सकता है।इस कारण अनुभूत सत्य को नकारना असत्य,अवैज्ञानिक है।

प्रश्न:2.अंतर्ज्ञान का क्या महत्त्व है? (What is the Importance of Intuition?):

उत्तर:हम सदियों दर सदियों एक सच की सीढ़ी लाँघने हुए दूसरे सच के करीब अधिक खोज और समस्याएं लेकर बढ़ जाते हैं।इसी बीच कुछ अनसुलझे रहस्य पीछे छूट जाते हैं,जो कि हमारे अस्तित्व के साथ जुड़े हुए हैं,संबंधित हैं।इन्हें जानने,पाने एवं अनुभव करने के लिए अंतर्ज्ञान का सहारा लेना पड़ता है।अंतर्ज्ञान का प्रवाह थमता नहीं है।यह अनन्त आसमान में निरंतर गति करता है।वह आगत को वर्तमान की दृष्टि से देखता है और उसकी व्याख्या करता है।इससे सामान्य बुद्धि भ्रमित होती है,अविश्वास करती है क्योंकि उससे अनेक भ्रांतियां,वर्जनाएँ टूटती,बिखरती है।

प्रश्न:3.अध्यात्म के अंग कौनसे हैं? (What are the Parts of Spirituality?):

उत्तर:भगवान की आराधना,आत्मोन्नति के उपाय,योग साधना,तपस्या,परोपकार और जनकल्याण करने वाली गतिविधियां ही अध्यात्म के अंग है।अध्यात्म ही वह वटवृक्ष है जिससे अनेक शाखाएँ निकली हैं और उन शाखाओं के अलग-अलग नाम हो गए हैं,पर वास्तविकता यही है कि धर्म,संस्कृति,सभ्यता,दर्शन,ज्ञान,विज्ञान सभी शास्त्र इस अध्यात्म रूपी वट वृक्ष की शाखाएँ हैं और इसका मूल है वेद है।आध्यात्म धर्म का मार्ग निर्देशक है जिसके ज्ञान के बिना धर्म अंधविश्वास एवं पाखंड मात्र रह जाता है तथा वह अपने मार्ग से भटक जाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विज्ञान और अध्यात्म को जीवन में कैसे अपनाएं? (How to Adopt Science and Spirituality?),विज्ञान और अध्यात्म को अपनाने की 3 टिप्स (3 Tips for Embracing Science and Spirituality?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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