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Journey of India’s Popular Personality

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1.भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय शख्सियत का सफरनामा (Journey of India’s Popular Personality),देश की सर्वाधिक लोकप्रिय शख्सियत (Most Popular Personality in Country):

  • भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय शख्सियत का सफरनामा (Journey of India’s Popular Personality) के बारे में जानने के लिए इस वाक्यांश पर गौर करें।18वीं शताब्दी में फ्रांस के शासक और योद्धा रहे नेपोलियन बोनापार्ट कहा करते थे, “असंभव शब्द मेरे शब्दकोश में नहीं है।”असंख्य लोगों को अभिभूत कर देने वाले इस वाक्य में तमाम चीजों के बावजूद एक योद्धा का दम्भ और तानाशाही की ध्वनि स्पष्ट सुनी जा सकती है।
  • लेकिन 20वीं और यहां तक की 21वीं सदी के भी क्रिकेट जगत के नए योद्धा सचिन तेंदुलकर कहते हैं,”मुझे नहीं लगता दुनिया में कुछ भी असंभव है।लेकिन निश्चित रूप से मैं हमेशा ही सही साबित नहीं हो सकता।”
  • सचिन और नेपोलियन बोनापार्ट दोनों ही लगभग एक ही बात कहना चाहते हैं।दोनों यह बताना चाहते हैं कि वे कितने समर्थ हैं और उन्हें अपने कौशल पर कितना भरोसा है।लेकिन फिर भी नेपोलियन के बयान में जहां दम्भ,तानाशाही और खुद को मनुष्य जाति से श्रेष्ठ मानने का भाव मौजूद है,वहीं सचिन का बयान विनम्रता,लोकतांत्रिक मूल्यों और मनुष्य होने को प्रकट करता है।यानी सचिन खुद पर भरोसा होने के बावजूद मनुष्य होने के मूलभूत अधिकार को नकारते नहीं है।वह जानते हैं कि मनुष्य होने के नाते वह असफल भी हो सकते हैं।सचिन के यही गुण हैं जो उन्हें तेजी से लोकप्रियता के शिखर पर ले जा रहे हैं।
  • और उनकी लोकप्रियता महज लोकप्रियता नहीं है।युवाओं के लिए वह प्रेरणास्रोत हैं,तो बुजुर्गों के लिए वह गर्व करने योग्य पुत्र की भाँति हैं।बच्चे उनके जैसा होना चाहते हैं तो लड़कियां उनकी मासूमियत की कायल हैं।अकारण नहीं है कि भारत के कई शहरों में हुए एक सर्वेक्षण में उन्हें सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रेरणादायक शख्सियत के रूप में चुना गया।आश्चर्यजनक रूप से इस सर्वेक्षण में सचिन को फिल्मी दुनिया के सुपरस्टार शाहरुख खान और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी ज्यादा वोट मिले।उनको मत देते समय युवाओं का तर्क था कि सचिन बोलने से ज्यादा काम करने में यकीन करते हैं।वह बड़बोला सिर्फ खेल के मैदान में हैं,अपनी निजी जिंदगी में नहीं खेल के मैदान में अपने बल्ले से जाहिर करते हैं मुंह से नहीं।वह एक संपूर्ण व्यक्ति हैं।
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(1.)पसंदगी का सबब (Reason for Choice):

  • सचिन को सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रेरणास्रोत के रूप में चुना जाना उस समाज के लिए थोड़ी-सी अजीब बात हो सकती है,जो समाज भ्रष्टाचार और बेइमानियों में आकंठ डूबा हो,जिस समाज में ईमानदार और प्रतिबद्ध लोगों की कोई पूछ ना हो,जहां प्रतिभाशाली व्यक्ति के मुकाबले औसत व्यक्तियों को हर क्षेत्र में ‘प्रमोट’ करने की परंपरा रही हो और जिस समाज में हर स्तर पर असुरक्षा और अविश्वास का बोलबाला हो।
  • सवाल यह उठता है कि इस तरह का समाज ऐसे व्यक्ति को क्यों सर्वाधिक पसंद करता है जो समाज के तमाम लोगों के विपरीत अपने पेशे के प्रति पूरी तरह ईमानदार और प्रतिबद्ध है,जो अपनी असफलता और टीम की पराजय पर बाकायदा शर्मिंदा होता है,जिसके लिए टीम और देश सर्वोपरि है,जिसकी गिनती महज चुनिन्दा भारतीयों में हो गई हो,दम्भ जिसे आसपास भी छूकर नहीं गुजरा है? इसका जवाब यह हो सकता है कि जिस तरह बेईमान और भ्रष्ट आदमी को ईमानदार और प्रतिबद्ध आदमियों की सबसे ज्यादा दरकार होती है संभवतः उसी तरह भ्रष्ट और गैरईमानदार समाज को ईमानदार और प्रतिबद्ध नायकों की दरकार होती है।
  • सचिन ऐसी ही शख्सियत है।लेकिन इसके साथ ही एक सवाल यह उठता है कि आज के इस तरह के माहौल में सचिन खुद को किस तरह बचाए हुए हैं? क्यों उन पर इस तरह के माहौल का कोई भी असर नहीं होता? खासकर इसलिए भी कि क्रिकेट की दुनिया में भी आज रिश्वत और सट्टेबाजी की छायाएं साफ दिखाई पड़ती हैं।इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए सचिन की उस पारिवारिक पृष्ठभूमि को जानना निहायत जरूरी है जिसमें सचिन का लालन-पालन हुआ।

(2.)सचिन का प्रारंभिक जीवन (Sachin’s Early Life):

  • सचिन का जन्म 24 अप्रैल 1973 में एक ऐसे परिवार में हुआ जिसकी रग-रग में साहित्य दौड़ता था।सचिन के पिता रमेश तेंदुलकर मराठी भाषा के लोकप्रिय लेखक,आलोचक और कवि हैं।उनकी मां रजनी लंबे समय तक जीवन बीमा निगम में काम करती रही।घर में सचिन से बड़े दो भाई और हैं-यानी सचिन सबसे छोटे हैं।सचिन की परवरिश आम मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चों की तरह ही शुरू हुई उसमें सिवाय इसके कि वह सबसे छोटा होने के कारण अपने परिवार के लाडले थे-कुछ भी खास नहीं था।जब सचिन ढाई वर्ष के हुए तो अन्य खिलौने की तरह ही सचिन को भी एक बैटबॉल लाकर दिया गया।सचिन ने बैटबाॅल की शुरुआत अपनी बाई लक्ष्मी बाई के साथ की।तब तक उसके भविष्य के बारे में कुछ भी सुनिश्चित नहीं था।
  • सचिन जब कुछ और बड़े हुए हैं तो उन्हें मुंबई के ही एक साधारण स्कूल ‘शारदाश्रम’ में डाल दिया गया।स्कूल में सचिन को एक निहायत सामान्य विद्यार्थी माना जाता था।जैसे-जैसे समय बीता सचिन ने क्रिकेट के मैदान में अपनी जगह बनानी शुरू कर दी।सचिन के चमत्कारिक खेल ने उन्हें मुंबई के स्कूली बच्चों में जबरदस्त लोकप्रिय बना दिया।स्कूल में ही सचिन को अपने क्रिकेट गुरु रमाकांत अचरेकर मिले।इसके बाद तो सचिन का खेल दिनोंदिन निखरता गया।खेल के मैदान में चमकते सचिन ने बमुश्किल पढ़ाई करते हुए बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण की।लेकिन इससे पूर्व 1984-85 में मात्र 11 वर्ष की उम्र में सचिन क्रिकेट की गिनीज शील्ड जीत चुके थे।1985-86 में उन्होंने हैरी शील्ड जीती और इसी वर्ष उन्होंने विजय मर्चेंट माटूंगा ट्रॉफी जीती।14 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते सचिन ने रणजी ट्रॉफी जीती।
  • इसी वर्ष हैरी शील्ड ट्रॉफी के लिए खेलते हुए सचिन ने 329 रनों की शानदार पारी खेली जबकि टीम की कुल रन संख्या 649 थी।तभी से सचिन को भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल किए जाने की संभावनाएं व्यक्त की जाने लगी।1989 के पाकिस्तानी दौरे में सचिन का चयन हो गया।उस समय सचिन की उम्र 17 वर्ष से भी कम थी।इस समय सचिन ने करांची में टेस्ट मैच खेलकर अपने टेस्ट जीवन की शुरुआत की।इसी दौरे के दूसरे टेस्ट में भारतीय टीम के 5 शीर्ष बल्लेबाज 181 रनों पर आउट हो चुके थे।जबकि मैच बचाने के लिए भारतीय टीम को 450 रन बनाने थे।ऐसे मौके पर सचिन पाकिस्तानी गेंदबाजों के सामने चट्टान की माफिक अड़ गए और मैच को ड्रा करा दिया।16 साल और कुछ दिनों की आयु वाले सचिन के उस कौशल को देखकर बड़े-बड़े क्रिकेटरों ने दांतों तले उंगली दबा ली थी।
  • पाकिस्तान की जिस टीम से सचिन ने मैच ड्रॉ करवाया था उसमें तूफानी इमरान तथा जमेजमाये बल्लेबाज को चकमा देने वाले अब्दुल कादिर और अनुभवी सरफराज नवाज भी मौजूद थे।इसी दौर में सचिन क्वेटा में खेले गए एक दिवसीय मैच में अब्दुल कादिर के एक ही ओवर में तीन छक्के मार कर पूरे क्रिकेट विश्व को आगाह कर दिया था कि सचिन का क्रिकेट में प्रवेश मात्र एक खिलाड़ी का क्रिकेट में पदार्पण नहीं है बल्कि क्रिकेट के एक नए अवतार का जन्म है।यह सचिन के क्रिकेट जीवन का बाकायदा आगाज था।इसके बाद सचिन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।रफ्ता-रफ्ता सचिन के प्रदर्शन में निखार आता चला गया।देखते-देखते सचिन ने टेस्ट खेलने वाले सभी देशों-पाकिस्तान,श्रीलंका,इंग्लैंड,ऑस्ट्रेलिया,वेस्टइंडीज,जिंबॉब्वे,न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ शतक मार लिए।
  • जब तक सचिन टेस्ट मैचों में (1989 के अंत तक) 16 शतक जमा चुके थे।एक दिवसीय मैचों में तो सचिन डेसमंड हेंस के 18 शतकों के रिकॉर्ड को भी भंग कर चुके थे।सचिन तब तक 21 शतक लगा चुके थे।

(3.)कप्तानी का दबाव (Captaincy Pressure):

  • लगभग 10 साल के अपने क्रिकेट करियर में सचिन के सामने कोई ऐसा समय नहीं आया जब वह ‘फ्लॉप’ रहे हों,सिवाय उस समय के जब वह कप्तान थे।बकौल सचिन,”मैंने उस समय भी पर्याप्त रन बनाए थे”, और आंकड़े भी सचिन की बात को ही सही साबित करते हैं।टेस्ट मैचों में कप्तानी के दौरान भी सचिन ने तब तक 45.96 के औसत से रन बनाए।इसी तरह एक दिवसीय मैचों में कप्तानी से पूर्व का औसत 39.37 था और कप्तानी के दौरान सचिन ने 37 के औसत से रन बनाए।फिर भी ऐसा माना गया कि सचिन पर कप्तानी का दबाव था।परिणामस्वरूप सचिन को कप्तानी से हटा दिया गया।उस समय तात्कालिक रूप से सचिन समर्थकों को धक्का लगा था।
  • लेकिन कप्तानी से हटने के बाद तो मानों सचिन का बल्ला आग उगलने लगा।वर्ष 1998 में तो उनकी उपलब्धियां अविस्मरणीय रहीं।इस पूरे कैलेंडर वर्ष में सचिन ने 34 एक दिवसीय मैच में 1894 रन बनाए।सचिन ने इस दौरान कुल 9 शतक लगाए।सचिन ने 1998 में भारत द्वारा जीते गए 6 टूर्नामेंट में से पांच के फाइनल में शतक जमाया।इस वर्ष कुल भारतीय टीम द्वारा बनाए गए रनों में से 28.55% रन सचिन द्वारा बनाए गए।यह वर्ष सचिन के लिए चमत्कारिक वर्ष रहा। सचिन ने अपने खेल से क्रिकेट के बड़े से बड़े पंडित को प्रभावित किया।
  • आज भी क्रिकेट के महानायक माने जाने वाने सर डान ब्रैडमैन ने सचिन के विषय में कहा, “उसकी शैली देखकर लगता है कि वह लगभग उसी तरह खेलता है जैसे मैं खेला करता था।मैं विस्तार से उसकी व्याख्या नहीं कर सकता,लेकिन उसकी संपूर्णता,स्ट्रोक लगाने का अंदाज और तकनीक देखकर मुझे यही महसूस होता है।मैं कह सकता हूं कि सचिन मेरा आधुनिक अवतार है।”
  • सर डॉन ब्रैडमैन ने सचिन को अपने जन्मदिवस पर विशेष रूप से आमंत्रित किया,यह सचिन के लिए सबसे गौरवमय क्षण था।इसके बाद तो मानों इस सदी का बड़े से बड़ा क्रिकेटर स्वयं की सचिन से तुलना करने लगा।महानतम बल्लेबाज विवियन रिचर्ड्स तक ने कहा कि सचिन उनकी तरह खेलते हैं।खेल के अलावा मॉडलिंग अनुबंधों ने सचिन के सामने रूपयों का ढेर लगा दिया।लेकिन इस सबसे बेपरवाह सचिन एकाग्रचित्त होकर अपना खेल खेलते रहे।
  • आज भी वह बांद्रा के अपने उसी फ्लैट में रहते हैं जहां से उन्होंने क्रिकेट की बारीकियां सीखीं।उनका तर्क है कि उस फ्लैट की एक खिड़की से वह मैदान पर खेलते बच्चों को देख सकते हैं।बचपन में कविताएं लिखने वाले भावुक सचिन आज भी उतने ही भावुक हैं।भावनात्मक रूप से पूरी तरह अपने परिवार पर निर्भर हैं।अपने से 4 वर्ष बड़ी अंजलि से सचिन ने पहले प्रेम किया और फिर विवाह।अंजलि बाल विशेषज्ञ के तौर पर मुंबई के जेजे अस्पताल में कार्यरत है।सचिन के बच्चे भी हैं।वह पिता,पति और पुत्र तीनों की भूमिकाएं पूरी ईमानदारी से निबाह रहे हैं।इसलिए घुंघराले बालों वाला यह मासूम-सा लड़का आज भी सबका प्रिय है।

2.सचिन का शानदार सफरनामा (Sachin’s Great Journey):

  • जिन लोगों ने 13 नवंबर 1998 को शारजाह में,कोकाकोला कप के फाइनल मैच में सचिन तेंदुलकर को बल्लेबाजी करते देखा है,वे अब इस तथ्य से अवगत हो चुके हैं कि सचिन आज के युग का निर्विवाद क्रिकेट नायक हैं।शारजाह में अपने जीवन का 21वां शतक बनाने के बाद जिस तरह उसकी यशगाथा बसों में,कार्यालयों में,चौराहों पर और पूरे मीडिया में सुनाई,दिखाई पड़ी,उससे एकबारगी पूरा माहौल ही सचिनमय हो गया।और मजे की बात यह है कि ये चर्चाएं क्रिकेट के जानकारों और शौकीनों के बीच नहीं हुई बल्कि वे महिलाएं और बच्चे जो क्रिकेट से नितांत अनजान हैं और वे बुद्धिजीवी,जो क्रिकेट को एक व्यर्थ का खेल मानते हैं,वे भी सचिन से अभिभूत दिखे।क्या यह महज क्रिकेट का ही चमत्कार हो सकता है? नहीं,सचिन के व्यक्तित्व में कुछ और है,जो उसे तेजी से नायकों की पंक्ति में सबसे आगे ले आया है।उसके व्यक्तित्व में वह क्या है यह जानने के लिए अलग से अध्ययन की जरूरत है।लेकिन 13 नवंबर को उसने क्या किया यह जानकर उसके व्यक्तित्व के कुछ गुणों को जाना जा सकता है।

(1.)सचिन की गम्भीरता (Sachin’s Seriousness):

  • 13 नवंबर को कोकाकोला कप के फाइनल में भारत और जिम्बाब्वे आमने-सामने थे।भारत एक लीग मैच में जिम्बाब्वे के युवा गेंदबाज ओलांगा ने अपनी आक्रामक गेंदबाजी से दुनिया के इस श्रेष्ठ बल्लेबाज को एक ही ओवर में दो बार आउट किया।ओलांगा की पहली ही गेंद पर सचिन कैच आउट हो गए ।लेकिन इस गेंद को ‘नो बाॅल’ करार दिया गया।इसके बाद इसी ओवर में ओलांगा ने सचिन को फिर आउट कर दिया।सचिन आउट होकर पवेलियन लौट आये।देखने वालों ने नहीं देखा कि आउट होने के बाद सचिन के चेहरे पर किस तरह के भाव हैं।उनके लिए यह क्रिकेट की एक सामान्य घटना थी।लेकिन सचिन के लिए यह सामान्य बात नहीं थी।उन्होंने इसे बाकायदा गम्भीरता से लिया।और सचिन की इस गम्भीरता का नतीजा फाइनल मैच में सामने आया।
  • जिम्बाब्वे की पूरी टीम 50 ओवरों में 196 रन बना सकी थी।इसके बाद सचिन और सौरव बल्लेबाजी के लिए मैदान में उतरे।ओलांगा के पहले ही ओवर में सचिन ने आक्रामक शॉट लगाने शुरू कर दिए।ओलांगा संभल पाते,इससे पहले ही सचिन ने उसके चार ओवर में 41 रन ठोककर अपने इरादे जाहिर कर दिए।सचिन ने मात्र 28 गेंदों पर अर्द्धशतक बनाकर पूरे मैच को इकतरफा कर दिया।चारों ओर शानदार छक्कों की बौछार करते हुए सचिन ने मात्र 91 गेंदों पर 124 रन बना दिए।इसमें 12 चौके और 6 दर्शनीय छक्के शामिल थे।सौरव ने भी 63 रनों के व्यक्तिगत योग में तीन शानदार छक्के लगाए।जाहिर है,इसके बाद मैच में ना कुछ बचना था न बचा।भारत ने 10 विकेट से कोकाकोला कप जीता।संयोग से यह इस वर्ष का अंतिम खिताबी टूर्नामेंट था।और इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि भारतीय क्रिकेट के लिए 1998 का वर्ष एक यादगार वर्ष रहेगा।

(2.)विजय का सिलसिला (Winning Streak):

  • अप्रैल में भारत-न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच शारजाह में खेले गए कोकाकोला कप में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को छह विकेट से पराजित किया।फाइनल मैच में सचिन ने शानदार 134 रनों की पारी खेली।इसके बाद पुनः भारत,केन्या और बांग्लादेश के बीच कोकाकोला कप खेला गया।इस मैच में भारत ने केन्या को 9 विकेट से पराजित किया।इस मैच में भी सचिन ने 100 अविजित रन बनाए।भारत ने अपना चौथा खिताब श्रीलंका में जून के अंतिम और जुलाई के प्रथम सप्ताह में खेले गए इंडिपेंडेंस कप के रूप में जीता।इसमें भारत के अलावा श्रीलंका और न्यूजीलैंड ने भी भाग लिया था।7 जुलाई को प्रेमदास स्टेडियम में खेले गए फाइनल मैच में भारत ने पहले खेलते हुए 307 रन बनाए।सचिन ने इस मैच में भी 128 रन बनाए।इसी प्रकार अक्टूबर में जिंबॉब्वे के साथ खेले गए हीरो होंडा कप में भारत ने जिंबॉब्वे को 2-1 से पराजित किया।यह भारत का पांचवी खिताबी जीत थीं।छठी खिताबी जीत भारत को 13 नवंबर को शारजाह में मिली।शारजाह के इस कोकाकोला कप में भारत और जिंबॉब्वे के अलावा श्रीलंका की टीम भी शामिल थी।इस दृष्टि से भारत के लिए चमत्कारिक वर्ष कहा जा सकता है।
  • लेकिन ऐसा नहीं है कि भारत को इस वर्ष पराजयों का सामना नहीं करना पड़ा।सर्वप्रथम,फरवरी-मार्च में भारत में ही भारतीय टीम को ऑस्ट्रेलिया और जिंबॉब्वे के साथ खेली गई त्रिकोणीय श्रृंखला के फाइनल में पराजय का मुंह देखना पड़ा।इसके अलावा टोरंटो में सहारा कप में पाकिस्तान ने भारत को 1-4 से परास्त किया।गोकि इस पराजय की जिम्मेदारी क्रिकेट बोर्ड पर डाली गई,जो जायज भी थी।खासकर इसलिए क्योंकि भारतीय टीम का विभाजन करके एक टीम राष्ट्रमंडल खेलों में शामिल होने के लिए क्वालालंपुर भी भेजी गई थी।क्वालालंपुर  में भेजी जाने वाली टीम के कप्तान अजय जडेजा थे और इसमें सचिन और रॉबिन सिंह को भी शामिल किया गया था।
  • परिणाम यह हुआ कि भारत राष्ट्रमंडल खेलों में भी परास्त हुआ और सहारा कप में भी।लेकिन इसके बाद अक्टूबर में होने वाली मिनी वर्ल्ड कप में भारत के प्रदर्शन पर सबकी निगाहें टिकी थी।क्योंकि इसमें क्रिकेट खेलने वाली सभी 9 टीमें शामिल थीं और इस मिनी वर्ल्ड कप को 1999 में होने वाले विश्व कप के आयोजन का पूर्वाभ्यास कहा जा रहा था।इसलिए यह उम्मीद थी कि भारत इस मैच में बेहतर प्रदर्शन करेगा।भारत ने अपने पहले ही मैच में ऑस्ट्रेलिया को इकतरफा मैच में पराजित करके अपनी इरादे जाहिर कर दिए थे।इस मैच में सचिन ने 141 रन बनाए थे और चार विकेट लिए थे।लेकिन सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज के विरुद्ध पहले खेलते हुए सचिन असफल रहे थे और भारतीय टीम मात्र 242 रन ही बना सकी थी,जिसे वेस्टइंडीज की टीम ने बनाकर मैच जीत लिया था।यदि इन कुछ पराजयों को छोड़ दें,तो भारतीय क्रिकेट के लिए यह वर्ष यादगार रहा।
  • यह वर्ष यादगार इसलिए भी रहा कि इस पूरे वर्ष में सचिन के बल्ले से रनों का सोता फूटता रहा।सचिन ने इस पूरे कैलेंडर वर्ष में 34 मैचों में 1894 रन बनाए। सचिन ने इस वर्ष कुल 9 शतक बनाए।इस दौरान सचिन ने एक दिवसीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतकों का विश्व रिकॉर्ड भी बनाया।इससे पहले वेस्टइंडीज के डेसमंड हेंस ने 18 शतक बनाए थे।अब सचिन 21 शतक बनाकर सबसे आगे निकल चुके हैं।भारतीय टीम सचिन पर कितनी निर्भर थी,इसका अंदाजा इस बार से लगाया जा सकता है कि सचिन ने भारत द्वारा जीते गए 6 टूर्नामेंट में से पांच के फाइनल मैचों में शतक लगाया।

3.सचिन तेंदुलकर के विश्व रिकॉर्ड और सम्मान (Sachin Tendulkar’s World Records and Honors):

  • (1.)सचिन तेंदुलकर ने इंटरनेशनल करियर में 200 टेस्ट और 463 वनडे मुकाबले खेले जो वर्ल्ड रिकॉर्ड है।सचिन क्रिकेट के सबसे लंबे फॉर्मेट में 200 मैच खेलने वाले दुनिया के एकमात्र बल्लेबाज हैं।अपने टेस्ट करियर में 329 पारियों में 53.78 की औसत से कुल 15921 रन बनाएं वही वनडे में लिटिल मास्टर के बल्ले से 18426 रन बनाए।
  • (2.)सचिन ने टेस्ट क्रिकेट में 51 और वनडे फॉर्मेट में कुल 49 शतक जमाए हैं।
  • (3.)सचिन के 22 साल के करियर में 200 टेस्ट मैच और 463 वनडे मैच जीते।
  • (4.)सचिन ने 200 टेस्ट मैच खेले तथा इस दौरान 51 शतक और 68 फिफ्टी लगाई।सचिन सफेद जर्सी में खेलते हुए 2127 बार बाॅल बाउंड्री के पार पहुंचाया जिसमें 2058 चौके और 69 गगनचुम्बी छक्के शामिल हैं।
  • (5.)सचिन छह बार वर्ल्ड कप 1992,1996,1999,2003,2007 और 2011 में हिस्सा लिया है जो एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है।
  • (6.)भारत:4 फरवरी 2014 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भारत रत्न से सम्मानित किया ।
  • 1994:अर्जुन पुरस्कार,खेल में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा दिया गया।
  • 1997-98:राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित एकमात्र क्रिकेट खिलाड़ी हैं।
  • 1999:भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित।
  • 2001:महाराष्ट्र के सर्वोच्च पुरस्कार महाराष्ट्र भूषण से सम्मानित किया गया।
  • 2008:भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित।
  • 1997:इस साल के विजडम क्रिकेटर।
  • 2002-03:क्रिकेट वर्ल्ड कप के प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट।
  • 2010:विजडन लीडिंग क्रिकेटर ऑफ द ईयर।
  • 2010:वर्ष के बेस्ट क्रिकेटर के लिए आईसीसी पुरस्कार सर गारफील्ड सोबर्स ट्रॉफी।
  • 2010:एलीजी पीपुल्स च्वाइस अवार्ड।
  • 2010:भारतीय वायुसेना द्वारा मानक ग्रुप कैप्टन की उपाधि।
  • 2011:बीसीसीआई द्वारा वर्ष के बेस्ट इंडियन क्रिकेटर।
  • 2011:कैस्ट्राॅल वर्ष के भारतीय क्रिकेटर।
  • 2012:विजडन इंडिया आउटस्टैंडिंग अचीवमेंट पुरस्कार
  • 2012:सिडनी क्रिकेट ग्राउंड की मानद आजीवन सदस्यता।
  • 2012:ऑस्ट्रेलिया के आदेश मानद सदस्य (ऑस्ट्रेलिया सरकार द्वारा दिए गए)
  • 2013:भारतीय पोस्टल सर्विसेज तेंदुलकर का एक डाक टिकट
    उपर्युक्त आर्टिकल में भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय शख्सियत का सफरनामा (Journey of India’s Popular Personality),देश की सर्वाधिक लोकप्रिय शख्सियत (Most Popular Personality in Country) के बारे में बताया गया है।

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4.ड्राइंग रूम (हास्य-व्यंग्य) (Drawing Room) (Humour-Satire):

  • पिताजी:अरे विक्रम,तुमने कमरे की दीवारों पर ज्यामितीय आकृतियां बनाकर पूरे कमरे की दीवारों को खराब कर दिया।
  • विक्रम:पिताजी आप ही ने तो कहा था कि यह हमारा ड्राइंग रूम यानी ड्राइंग करने का रूम है।

5.भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय शख्सियत का सफरनामा (Frequently Asked Questions Related to Journey of India’s Popular Personality),देश की सर्वाधिक लोकप्रिय शख्सियत (Most Popular Personality in Country) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न:1.सचिन को किस-किसने सम्मानित किया? (Who Honored Sachin Tendulkar?):

उत्तर:(1.)कप्तानी मिलने के दो रोज बाद ही क्रिकेट की बाइबल कई जाने वाली मासिक पत्रिका ‘विजडन’ ने सचिन को सर्वश्रेष्ठ टेस्ट बल्लेबाज के किताब से नवाजकर मानो उसकी ताजपोसी का जश्न मनाया।
(2.)भारतीय क्रिकेट के धुरंधर खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन के मद्देनजर उन्हें ‘राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।उक्त पुरस्कार के तहत उन्हें ₹100000 और प्रशस्ति पत्र मिले।
(3.)सर डॉन ब्रैडमैन ने सचिन के खेल से प्रभावित होकर अपने 80 वें जन्म दिवस (27 अगस्त 1998) पर सचिन से मिले।निश्चय सचिन के लिए गौरव की बात है।
(4.)अमेरिका की विश्व प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्रिका ‘टाइम’ ने सचिन को अपने आवरण पृष्ठ पर स्थान देते हुए उसकी तुलना फुटबॉल के महान खिलाड़ी अर्जेंटीना के डिएगो मारडोना से की।’टाइम’ ने सचिन को ‘बाम्बे बांबर’ की संज्ञा देते हुए उसकी बल्लेबाजी की भरपूर प्रशंसा करते हुए लिखा कि सचिन के प्रदर्शन को कुछ शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है,वह अनेक चमत्कार कर चुका है।
(5.)सचिन को भारत सरकार ने अपने सर्वोत्कृष्ट पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया है।इसके अलावा भी ढेरों पुरस्कारों से उनको सम्मानित किया जा चुका है।

प्रश्न:2.क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर किस प्रकार के जीनियस हैं? (What kind of Genius is Cricketer Sachin Tendulkar?):

उत्तर:दुनिया में दो तरह के जीनियस होते हैं।पहले वे लोग होते हैं जो अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियों,अपने प्रयासों,अपने समर्पण,अपनी आस्था के मामले में जीनियस होते हैं।इस किस्म के लोगों की उपलब्धियों पर आप उंगली नहीं उठा सकते।दूसरी किस्म के जीनियस ऐसे लोग होते हैं जो अपने व्यक्तिगत प्रयासों और कार्य क्षेत्र के मामले में तो जीनियस होते ही हैं लेकिन साथ ही ये लोग अपने साथ या अपने संरक्षण में काम करने वाले लोगों को भी जीनियस में तब्दील करने की क्षमता रखते हैं।दुर्भाग्य से सचिन तेंदुलकर अब तक पहली श्रेणी के जीनियस साबित हुए हैं।

प्रश्न:3.सचिन तेंदुलकर पहली श्रेणी के जीनियस कैसे साबित हुए? (How Did Sachin Tendulkar Prove to Be a First-class Genius?):

उत्तर:सचिन कप्तानी के मामले में नए थे और उन्हें बहुत कुछ सीखना था।साथ ही हर पराजय के बाद कप्तानी पर सवाल उठाना न्याय संगत नहीं है।सचिन तेंदुलकर को कप्तानी के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया जिससे वे अपने अनुसार टीम को नहीं ढाल सके।दो-तीन वर्ष कप्तानी संभालने के बाद यह तय किया जाना चाहिए था कि सचिन तेंदुलकर में अपने साथी खिलाड़ियों को लेकर एक बेहतरीन और जीतती हुई टीम बनाने का माद्दा है या नहीं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय शख्सियत का सफरनामा (Journey of India’s Popular Personality),देश की सर्वाधिक लोकप्रिय शख्सियत (Most Popular Personality in Country) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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