3 Tips for Students to Do Yogic Posture
1.छात्र-छात्राओं के लिए योगासन करने की 3 टिप्स (3 Tips for Students to Do Yogic Posture),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए योगासन करने की 3 टिप्स (3 Tips for Mathematics Students to Do Yogic Postures):
- छात्र-छात्राओं के लिए योगासन करने की 3 टिप्स (3 Tips for Students to Do Yogic Posture) के आधार पर अपने शरीर को स्वस्थ तथा मेधा (बुद्धि) को कुशाग्र कर सकेंगे।आधुनिक युग की व्यस्तता और भागदौड़ से भरी जिंदगी जीने के आदि युवक-युवतियां तथा लोगों को योगसाधना और योगासन-प्राणायाम,ध्यान-धारणा इत्यादि के लिए कहना वैसे ही है जैसे साँड को लाल कपड़ा दिखा दिया हो।योगासन-प्राणायाम और यम-नियम का पालन करने के नाम से ही आजकल के युवक-युवतियां बिदकते हैं।
- कोरोनावायरस से फैली महामारी के कारण कई हजारों लोगों की जान जा चुकी है तथा कई लोग बमुश्किल कोरोनावायरस के शिकंजे में फंसकर मौत के मुंह से निकले हैं लेकिन फिर भी युवक-युवतियां तथा लोग सम्हलने के लिए तैयार नहीं है।
- कोरोनावायरस से फैली महामारी कोविड-19 को देखकर कई लोगों ने तो योगासन की फुटकर और थोक दुकान खोल ली है जिनमें अधिकांश योग के नाम पर केवल कसरत करवाते हैं और उनसे अच्छी फीस वसूल करते हैं।वस्तुतः यह देखकर खेद होता है कि योगसाधना का सदुपयोग कम और दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है।
- यम (अहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह),नियम (शौच,संतोष,तप,स्वाध्याय,भगवद्भक्ति) पर आचरण किए बिना आसन करने का समुचित फायदा नहीं हो सकता है।अष्टांग योग की पहली सीढ़ी यम,दूसरी सीढ़ी नियम और तीसरी सीढ़ी आसन है।अष्टांग योग की दो सीढ़ियों को छोड़कर सीधे तीसरी सीढ़ी आसन लगाने वाला योगासन,योगसाधना करना नहीं है बल्कि शारीरिक कसरत करना ही है।
- जिन छात्र-छात्राओं में दुर्गुण हैं,जो दंगे-फसाद,लड़ाई-झगड़ा,लूटपाट करते हैं वे आसन करके ओर ज्यादा ताकतवर बन जाएंगे तथा ओर अधिक हिंसक तथा शक्तिशाली लुटेरे,दंगा-फसाद करने वाले बन जाएंगे।अच्छी चीज का बुरा उपयोग किए जाने की संभावना बढ़ जाएगी।इसलिए प्राचीन काल के ऋषि,मुनि और योगी पात्र तथा योग्य व्यक्ति को ही विद्या,योगसाधना तथा विभिन्न विद्याओं को सिखाते थे,रहस्य बताते थे।आधुनिक युग की तरह बाजार की डिमान्ड देखकर धन कमाने,व्यवसाय करने के लिए योग केन्द्र व योग सेंटर नहीं खोलते थे।
- दूसरी ओर एक विरोधाभास देखने को मिलता है कि कोरोनावायरस के एक के बाद एक झटके लगने के बावजूद युवक-युवतियां तथा लोग योगासन-प्राणायाम अथवा व्यायाम को अपने जीवन का अंग नहीं बना पा रहे हैं।कुछ जागृति अवश्य आई है परन्तु वह ऊँट के मुँह में जीरा वाली कहावत को चरितार्थ करती है।योग्य योगाचार्य की तलाश करके महामारी से सबक लेकर तथा इस अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से सीख लेकर छात्र-छात्राओं को योगासन-प्राणायाम शुरू कर देना चाहिए।
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2.छात्र-छात्राएं योगासन-प्राणायाम शुरू क्यों करें? (Why Should Students Start Yoga and Pranayama?):
- प्रातःकाल जल्दी उठकर छात्र-छात्राओं को ध्यान,मन को एकाग्र करने और योगासन-प्राणायाम से शुरू करना चाहिए।कई आलसी छात्र-छात्राएं आलस्य और लापरवाही के कारण देर तक सोए पड़े रहते हैं।हमारे ऋषियों ने प्रातःकाल को अमृतबेला कहा है जिसमें हमारे महत्त्वपूर्ण कार्य ध्यान,मन को एकाग्र करने,योगासन-प्राणायाम और अध्ययन करने से शुरुआत कर देनी चाहिए।यह याद रखना चाहिए कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।यदि हम तन मन से बीमार,अस्वस्थ रहेंगे तो उसका असर मन पर अवश्य पड़ता है।रोग्रग्रस्त अथवा जिस शरीर में चुस्ती-फुर्ती न हो तो अध्ययन एकाग्रतापूर्वक नहीं किया जा सकता है।छात्र-छात्राओं के लिए छात्र जीवन तप,संयम,साधना और शरीर को सशक्त करने का है।इस समय में यदि ऊर्जा संचित करेंगे,ऊर्जा का निर्माण करेंगे तो इंद्रियों का विकास और बुद्धि प्रखर होती है।
- कमजोर और अस्वस्थ शरीर जीवन की सुख-सुविधाओं का उपयोग नहीं कर सकता है और रोगों से ग्रस्त होने पर एकाग्रतापूर्क अध्ययन नहीं किया जा सकता है।जिन विद्यार्थियों को गणित विषय कठिन लगता है और अधिकांश विद्यार्थियों को गणित विषय को हल करने में कठिनाई महसूस होती ही है,उन्हें मन की एकाग्रता की आवश्यकता होती है।
- जिस विद्यार्थी ने संयमपूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन किया है,उसका न केवल शरीर सशक्त होगा बल्कि वह विद्या अर्जित कर सकेगा और ऐसे विद्यार्थी अपने अंदर दक्षता और पात्रता विकसित कर लेते हैं कि वे कोई भी जॉब करने,जाॅब प्राप्त करने अथवा स्वयं का कोई छोटा-मोटा धन्धा करने में आने वाली समस्याओं को हल कर लेते हैं।
- परिश्रम,संयम,तप और ब्रह्मचर्य का पालन करने के कारण वह गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते समय उतनी ही कामना और लालसा रखता है जितनी उसमें सामर्थ्य है और जिनकी पूर्ति वह कर सकता है।अपनी कामनाओं और लालसाओं को बेलगाम घोड़े की तरह नहीं रखता है बल्कि उन पर नियंत्रण रखता है तथा कामनाओं व लालसाओं में फँसता नहीं है।
- यह बात ठीक से समझ में लेने की है कि विद्यार्थी काल में जितना तप,संयम,परिश्रम और ब्रह्मचर्य का पालन किया जाएगा उतना ही सुखद आपका गृहस्थाश्रम और जाॅब करने का कार्यकाल रहेगा।यदि युवाकाल को सुख-सुविधाओं को भोगने तथा ऐशोआराम करने में गुजरेगा तो गृहस्थाश्रम और जाॅब का कार्यकाल तथा आगामी जीवन उतना ही दुःखद,संकटों,विघ्नों,बाधाओं से घिरा होगा।
- आधुनिक युग में कई छात्र-छात्राएं तथा युवक-युवतियां कुसंगति में पड़कर कामुक,अश्लील हरकतें,गंदे उपन्यास पढ़ते हैं तथा इंटरनेट पर पोर्न वेबसाइट को खँगालते रहते हैं।युवाकाल में ही वे धूम्रपान,मदिरा सेवन,ड्रग्स का सेवन,नशीली दवाओं,अय्याशी करना इत्यादि करके अपने शरीर और स्वास्थ्य का सत्यानाश कर लेते हैं जिससे जीवनभर उन्हें पश्चाताप करता रहना पड़ता है।इन नशीली दवाओं,अय्याशी करने तथा सैक्स का भरपूर मजा लूटने के कारण कच्ची उम्र में ही उनके शरीर और मन में इतना जहर घुल जाता है कि इसका प्रभाव मरते दम तक नहीं छूटता है।क्योंकि बुरी आदतों को एक बार अपनाने के बाद उनसे छूटना बहुत मुश्किल होता है।
- ये बुरी आदतें न केवल उनके जीवन को नरक बना देती है बल्कि आने वाली संतान भी प्रभावित होती है।क्योंकि बच्चे भी माता-पिता के आचरण से ही सीखते हैं।
- जो युवक-युवतियां तथा छात्र-छात्राएं अपना जीवन सुखद,आनंदमय और भविष्य का निर्माण करना चाहते हैं उन्हें युवाकाल को कठिन तप,साधना,संयम तथा योगसाधना में बिताना चाहिए।हालांकि कुछ युवक-युवतियों को तप,साधना और योगसाधना तथा ब्रह्मचर्य की बातें करना बासी,ऊबाऊ और गुजरे जमाने की बातें लगती होंगी और हो सकता है बहुत जगह,बहुत बार तथा इस वेबसाइट पर भी अनेक लेखों में पढ़ने को मिली होगी तो फिर बार-बार इन बातों को कहने का औचित्य क्या है? कारण यह है कि ये बातें कितनी ही पुरानी होंगी और कितनी ही बार आपने पढ़ा हो तब भी इन बातों का महत्त्व,इनका संदेश हर पल,हर क्षण,हर युग में शाश्वत रहा है और रहेगा।
- योगासन,तप,संयम,यम,नियम इत्यादि का पालन करने पर हमें कुछ पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ता है और इनको अपनाने पर न केवल शरीर सुडौल,सशक्त,सुन्दर बनता है बल्कि मन को एकाग्र करने,मन को संयमित रखने तथा रोगग्रस्त होने से बचने में भी सहायता मिलती है।हमारा काम आप तक उचित संदेश पहुंचाना था,अब पालन करना,न करना आपके हाथ में है परंतु जो भी करेंगे उसका परिणाम भी आपको ही भुगतना पड़ेगा।
3.अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर संदेश (Message on International Yoga Day):
- अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015 (रविवार) से प्रतिवर्ष भारत के अथक प्रयासों से मनाया जाता है।संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 11 दिसंबर 2014 को प्रतिवर्ष 21 जून को योग दिवस मनाने के लिए स्वीकृत किया और 177 देशों ने इसके पक्ष में मत दिया।इस योग दिवस के द्वारा भारत को आध्यात्मिक क्षेत्र में नेतृत्व करने का अवसर मिला है।इस दिन भारत की प्राचीन धरोहर योग के दर्शन करवाए जाते हैं।
- योग का प्राचीन भारतीय ग्रंथों वेदों,उपनिषदों में यत्र-तत्र उल्लेख मिलता है परंतु सर्वप्रथम महर्षि पतञ्जलि ने इसको वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। योग जीवन जीने की कला है,सम्पूर्ण जीवन पद्धति है।योग द्वारा मनुष्य को अपनी चेतना का बोध होता है।योग का सीधा-सादा अर्थ है मिलना,जुड़ना अर्थात् आत्मा का परमात्मा से मिलन।आत्मा और परमात्मा भिन्न-भिन्न महसूस होती है मनोवृत्ति और चित्त की चंचलता के कारण,दूषित खान-पान,दोषपूर्ण रहन-सहन व दूषित आचरण के कारण।इसीलिए महर्षि पतंजलि ने योगसाधना को “योगश्चित्तवृत्ति निरोधः” के रूप में परिभाषित किया है।
- आधुनिक युग में युवक-युवतियां सुख-सुविधाओं का भोग करने,आरामतलबी होने,स्वास्थ्य की ओर ध्यान न देने के कारण रोग ग्रस्त हो जाते हैं,जीवन तनावग्रस्त होता जा रहा है अतः इनसे बचने का आधार योग है।
- भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्मयोग,ज्ञानयोग और भक्तियोग का अभूतपूर्व संदेश दिया था।पतंजलि के अष्टांग योग से तुलना की जाए तो यम,नियम,आसन और प्राणायाम एक प्रकार से कर्मयोग के ही अंग है।इसके बाद प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा ज्ञानयोग के अंग समझे जा सकते हैं और ध्यान व समाधि की सहायता से साधक अपने शरीर,मन और बुद्धि का समर्पण आत्मा में कर देता है जो कि भक्तियोग है।
- योगसाधना छात्र-छात्राओं को किसी योग्य योगाचार्य की देखरेख में किया जाना चाहिए।क्योंकि विधिवत पालन न करने पर कभी-कभी इसके द्वारा नुकसान भी हो सकता है।योगसाधना धीरे-धीरे अपनी सामर्थ्य-क्षमता के अनुसार करना चाहिए।बलपूर्वक या हठपूर्वक व दुराग्रह रखकर योगसाधना नहीं करना चाहिए क्योंकि योगसाधना मन की एकाग्रता,मन को प्रसन्न करने,शरीर तथा मन को साधने,मन को संयमित करने,ब्रह्मचर्य का पालन करने,बुद्धि को तेजस्वी व प्रखर बनाने इत्यादि के लिए किया जाता है।बलपूर्वक व हठपूर्वक तथा दुराग्रह रखकर,शान्तिपूर्वक न रहकर,अशान्त मन से किया जाता है तो लाभ के स्थान पर हानि होने की संभावना रहती है।
- भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के दूसरे अध्याय में कहा है कि “समत्व योग उच्यते” अर्थात हे अर्जुन!तुम इंद्रियासक्ति अथवा फल तृष्णाओं का त्याग करके,इष्ट वस्तु की प्राप्ति एवं इष्ट वस्तु की अप्राप्ति दोनों ही दशाओं में एकरुप होकर,योगस्थ (परमेश्वरार्पण बुद्धि से परमेश्वर में ही परायण) होते हुए कर्म करो क्योंकि समत्व ही (इष्ट की प्राप्ति और इष्ट की अप्राप्ति दोनों में एकरूपता ही) कर्मयोग कहा जाता है।इसी अध्याय में आगे कहा गया है कि “योगः कर्मसु कौशलम्” अर्थात् स्थिर बुद्धि से युक्त अथवा इष्ट की प्राप्ति और इष्ट की अप्राप्ति दोनों ही दशाओं में एकरूप रहने वाली बुद्धि से युक्त विवेकी पुरुष इस संसार में ही पाप और पुण्य दोनों से ही अलिप्त रहता है इसलिए तुम निष्काम-कर्मयोग का अनुष्ठान करो,पाप और पुण्य से बचकर कर्मों के करने की कुशलता ही को कर्मयोग कहते हैं।
4.योगासन का दृष्टांत (Parable of Yoga):
- एक गणित का छात्र था।वह गांव में अध्ययन करता था तो व्यायाम भी करता था इसलिए स्वस्थ रहता था।परंतु ज्योंही वह कॉलेज में दाखिला लेने शहर गया तो व्यायाम करना छोड़ दिया।गणित विषय में अत्यधिक परिश्रम करने और व्यायाम न करने के कारण धीरे-धीरे उसका शरीर कमजोर हो गया।वह थोड़े दिनों बाद बीमार पड़ गया फलस्वरूप शहर छोड़कर उसे गांव आना पड़ा।वार्षिक परीक्षा निकट ही थी।अत्यधिक परिश्रम करने तथा व्यायाम न करने पर बीमार पड़ने के कारण उसे बीमार अवस्था में ही परीक्षा देनी पड़ी।एक दिन तो उसके इतना तेज बुखार चढ़ा कि एक प्रश्न-पत्र देते समय परीक्षा कक्ष में ही बेहोश हो गया।जैसे-तैसे उसने परीक्षा दे दी।बहुत कड़ी मेहनत करने के बावजूद उसके परीक्षा में बहुत कम अंक आए।
- ग्रीष्मावकाश में उसने चिन्तन किया कि उसके परीक्षा में बहुत कम अंक क्यों आए? गम्भीर चिंतन करने के बाद उसे यह बात समझ में आई कि कठोर परिश्रम,मेधावी होने तथा पुस्तक का सम्पूर्ण अध्ययन करने के बावजूद प्रश्न-पत्र को जब तक सही तरह से हल नहीं किया जाएगा तब तक अच्छे अंक अर्जित नहीं किए जा सकते हैं।प्रश्न-पत्र का सही उत्तर देने तथा वैसे भी अध्ययन करने के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी है।केवल शरीर से स्वस्थ होने से बात नहीं बन सकती है और केवल मानसिक रूप से स्वस्थ होने से बात नहीं बन सकती है अर्थात् अच्छा परिणाम प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
- अगले वर्ष के सत्रारम्भ से ही उसने नियमित रूप से योगासन-प्राणायाम तथा स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखा।स्वास्थ्य सुधार के लिए स्वस्थ रहने के नियमों का कड़ाई से पालन करना शुरू कर दिया और उन प्रयासों में तत्परता पूर्वक जुट गया।बीमारियों को पास में भी फटकने नहीं दिया।जहाँ परिश्रम किया जाता है,जहाँ पसीना निकलता है वहाँ बीमारियाँ पास में बिल्कुल भी नहीं फटकती हैं।बीमारियां कमजोर,परिश्रम न करने वालों,पसीना न बहाने वालों पर ही आक्रमण करती हैं।गन्दी
- बस्तियों,गन्दगी,आलसी,अकर्मण्य व्यक्तियों तथा छात्र-छात्राओं के यहाँ ही बीमारियाँ पनपती और फैलती है।योगासन-प्राणायाम अथवा व्यायाम करके,परिश्रम करके न केवल बीमारियों को भगाया जा सकता है बल्कि ऐसे लोगों के पास अभाव व दरिद्रता भी नहीं फटकती है।
- अगले वर्ष उस छात्र ने न केवल अच्छे प्राप्तांक हासिल किए बल्कि बीमारियाँ भी उसके पास नहीं फटकी।तब उसने योगासन-प्राणायाम का महत्त्व समझा और उसे जीवन का अंग बना लिया।योगासन-प्राणायाम के लिए नियमित रूप से 25-30 मिनट देने लगा।एक दिन वह मूर्धन्य गणितज्ञों में गिना जाने लगा।संयम,प्रयत्न और पुरुषार्थ से कुछ भी उन्नति कर सकते हैं।
- उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए योगासन करने की 3 टिप्स (3 Tips for Students to Do Yogic Posture),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए योगासन करने की 3 टिप्स (3 Tips for Mathematics Students to Do Yogic Postures) के बारे में बताया गया है।
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5.गर्लफ्रेंड और गणित की पुस्तकें (हास्य-व्यंग्य) (Girlfriend and Mathematicians Books) (Humour-Satire):
- एक धनाढ्य छात्र के कमरों में डकैत घुस गए।जब वे सारा सामान ट्रक में लादकर ले जाने लगे तो उस छात्र ने एक सन्दूक की ओर इशारा करते हुए कहाःभैया इसे भी अपने साथ लेते जाओ।
- एक डकैत (मजाक करते हुए):क्या इसमें तेरी गर्लफ्रेंड बैठी है?
- छात्रःनहीं वो तो गोदरेज की अलमारी में पहले ही चली गई,इसमें मेरी गणित पुस्तकें रखी हुई हैं और मेरे लिए ये दोनों ही आफत का कारण हैं।इसको ले जाने पर दोनों आफत से छुटकारा मिल जाएगा।
6.छात्र-छात्राओं के लिए योगासन करने की 3 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 3 Tips for Students to Do Yogic Posture),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए योगासन करने की 3 टिप्स (3 Tips for Mathematics Students to Do Yogic Postures) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.योग के लिए महत्त्वपूर्ण शर्त क्या है? (What is the Important Condition for Yoga?):
उत्तर:योग के लिए मन को एकाग्र करने,चित्त तथा इन्द्रियों को बुरी प्रवृत्तियों से रोककर तथा चित्त व इन्द्रियों को सही कार्यों (अध्ययन आदि) में लगाना अनिवार्य है।तात्पर्य यह कि अभ्यास और वैराग्य धारण करने से मन को वश में किया जा सकता है और मन को वश में करना ही योग की प्राथमिक शर्त है।
प्रश्न:2.प्राणायाम का क्या महत्व है? (What is the Significance of Pranayama?):
उत्तर:जैसे अग्नि में तपाने पर सोना,चांदी आदि धातुओं की अशुद्धि जलकर भस्म हो जाती है और शुद्ध हो जाती है।उसी प्रकार प्राणायाम का अभ्यास करने से इंद्रियों,मन और शरीर में उत्पन्न दोष भस्म हो जाते हैं,नष्ट हो जाते हैं।प्राणायाम के बल पर मेधा शक्ति तो बढ़ती ही है परंतु शारीरिक व मानसिक बल को बढ़ाया जा सकता हैं।कई लोग प्राणायाम के बल पर अद्भुत चमत्कार कर दिखाते हैं जैसे गाड़ी को रोक लेना,पशुओं को वश में कर लेना इत्यादि।
प्रश्न:3.ब्रह्मचर्य और योगासन का क्या महत्त्व है? (What is the Significance of Celibacy and Yoga?):
उत्तरःब्रह्मचर्य का पालन करने से शरीर और स्वास्थ्य की रक्षा तो होती ही है परंतु अध्ययन करने के लिए ऊर्जा की दिशा सहस्रसार अर्थात् ऊपर की ओर हो जाती है जिससे मेधा शक्ति बढ़ती है।योगासन से शरीर और स्वास्थ्य की वृद्धि होती है तो साथ ही स्मरणशक्ति और मेधाशक्ति बढ़ती है।शरीर पर रोगों और कीटाणुओं से मुकाबला करने की प्रतिरक्षा करने की शक्ति बढ़ती है और हम बीमार होने से बचे रहते हैं फलतः विद्याध्ययन पूर्ण एकाग्रता से करने में सक्षम रहते हैं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए योगासन करने की 3 टिप्स (3 Tips for Students to Do Yogic Posture),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए योगासन करने की 3 टिप्स (3 Tips for Mathematics Students to Do Yogic Postures) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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