Menu

Reasons for Craze for Cricket in India

Contents hide

1.भारत में क्रिकेट के प्रति दीवानगी के कारण (Reasons for Craze for Cricket in India),क्रिकेट के प्रति भारतीयों में दीवानगी के कारण (Reasons for Indians Craze for Cricket):

  • भारत में क्रिकेट के प्रति दीवानगी के कारण (Reasons for Craze for Cricket in India) यह खेल भारत में सबसे अधिक खेला जाता है।भारत में तीन क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें भारतीय बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।मंदिरों में त्योहारों व आम दिनों में भगवान के दर्शन के लिए,फिल्मों के प्रति और क्रिकेट के प्रति भी दीवानगी देखी जा सकती है।
  • क्रिकेट के प्रति दीवानगी सबसे,अधिक जनसंख्या वाला देश,प्रतिभाशाली खिलाड़ियों होने तथा विभिन्न संतो द्वारा स्वास्थ्य (खेलों) के प्रति सकारात्मक रूख,अपना क्षेत्र चयन करने के बावजूद दो बार के अलावा विश्व कप नहीं जीत पाया है।इस आर्टिकल में इन सभी बिंदुओं पर फोकस किया गया है।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:Importance of health for students

2.क्रिकेट विश्व कप की चर्चा (Cricket World Cup Discussion):

  • विश्वकप से पूर्व लोग घरों,दफ्तरों में,चौराहे पर,दुकानों पर,ड्राइंग रूम में,बेडरूम में क्रिकेट के बारे में ही बातचीत कर रहे थे।वे स्वयं ही एक टीम के जीतने के जितने जीतने के तर्क देते थे फिर स्वयं ही उसे काटते हुए दूसरी टीम के पक्ष में तर्क देने लगते थे।लोगों की सद्इच्छा तथा प्रधानमंत्री जी की भी हार्दिक कामना थी कि जैसे भारत 1983 में कपिल देव के नेतृत्व में तथा 2011 महेंद्र सिंह धोनी के नेतृत्व जीतकर पूरे राष्ट्र के सामने गौरव का क्षण प्रस्तुत किया था,वैसे ही उसकी 2023 में हैट्रिक लगाए।
  • लेकिन इस सारे मंथन,तर्क-वितर्क और दावों-प्रतिदावों से जो एक बात जाहिर है और जो स्पष्ट दिखाई पड़ी है वह है विश्वकप के प्रति उत्साह के बारे में होने वाली निरंतर वृद्धि।इस उत्साह का अंदाज आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि इस विश्व कप में विजेता टीम को भारत के प्रधानमंत्री ने ट्रॉफी देने की घोषणा की थी और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने भी इस विश्व कप के फाइनल में शिरकत की थी।भारत के तमाम शौकीनों ने विश्वकप के मैचों को देखने के लिए खुद को पूरी तरह तैयार कर लिया था।इन तैयारी में तकनीकी तैयारियों के अलावा मानसिक तैयारी भी शामिल है।तकनीकी तैयारियों से अभिप्राय है लोगों ने अपने-अपने टीवी सेटों को दुरुस्त करवा लिया था,कुछ लोगों ने इसी मौके के लिए 29 और 33 इंची बड़े स्क्रीन वाले टीवी कैमरे खरीदे थे।
  • लेकिन मान लीजिए मैचों के दौरान केबल वाले की लाइट चली जाए? लोगों ने उसकी भी व्यवस्था कर ली थी।लोगों ने इस स्थिति से निपटने के लिए ‘एंटीना’ की व्यवस्था कर ली थी ताकि वे दूरदर्शन पर तो मैच देख पायें।मान लीजिए घरों की भी लाइट चली गई? उसके लिए लोगों के पास मोबाइल फोन का विकल्प तो था ही।यानी वह किसी भी तकनीकी कारण से मैच का कोई भी अंश देखने से वंचित नहीं रहना चाहते।मानसिक तैयारी में क्रिकेट के शौकीनों ने जितने दिन विश्वकप के मैच चले उसके अनुसार ही अपने-अपने ‘शिड्यूल्स’ तय किए थे।यानी यदि उन्हें किसी ऐसे दिन जब भारत का कोई मैच है-शहर से बाहर जाना है या अन्य कोई ऐसा कार्य करना था जिस दिन मैच देखना संभव न हो तो उन्होंने उसे उस दिन के लिए स्थगित कर दिया था जिस दिन भारत का मैच हो।
  • कुछ मजेदार वाकये ऐसे भी देखने में आए कि क्रिकेट के शौकीन पतियों ने अपनी-अपनी पत्नियों को मैके भेज दिया ताकि वे आराम से क्रिकेट मैच देख सकें।यानी क्रिकेट मैच के लिए व्यक्ति अपने परिवार से भी,कुछ दिनों के लिए ही सही,विमुख होने को तैयार थे।एक बड़ा सा सवाल यहां यह पैदा होता है कि आखिर भारतीयों में क्रिकेट के लिए इतनी दीवानगी क्यों है? इस जुनून की जड़ कहाँ है? क्या वजह है कि खेलों के अब तक के इतिहास में हमने अपने तमाम पारंपरिक खेलों को पीछे छोड़कर क्रिकेट के ही सजदे का चयन किया है? ऐसा नहीं कि आम आदमी के जेहन में ये सवाल पैदा नहीं होते।वह अक्सर सोचता है कि हाकी,फुटबॉल,टेनिस और अन्य खेलों के मुकाबले हमें क्रिकेट ही क्यों भाता है।लेकिन क्रिकेट का नशा उसे इन सवालों के सही जवाब तलाशने नहीं देता।या तो वह तर्क देता है, “हम क्रिकेट को पसंद करते हैं तो करते हैं-इसमें क्यों का सवाल ही पैदा नहीं होता।
  • या फिर वह कहता है कि क्रिकेट ही एकमात्र ऐसा खेल है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमें सम्मान या विजय हासिल होती है।इसलिए हमें क्रिकेट ही रास आता है।दूसरा तर्क यह हो सकता है कि क्रिकेट को मीडिया द्वारा बेपनाह प्रचार किए जाने के कारण भारत में क्रिकेट इतना लोकप्रिय है।लेकिन आम आदमी स्वयं जानता है कि इन तर्कों में बहुत अधिक दम नहीं है।क्योंकि अगर ऐसा होता तो फिर भारत में हाकी को सर्वाधिक पसंद किया जाना चाहिए था।क्योंकि हॉकी में तो भारत लंबे समय तक विजेता रहा है और ध्यानचंद के हाकी के जादू ने तो हिटलर तक को चमत्कृत कर दिया था।इतना ही नहीं हाकी के मुकाबले क्रिकेट में तो भारत को बहुत बाद में जीत मिलना शुरू हुई।जहां तक मीडिया में प्रचारित किए जाने का सवाल है,तो क्रिकेट उस समय भी उतना ही लोकप्रिय था जब क्रिकेट मैचों का प्रसारण भी शुरू नहीं हुआ था।इस तथ्य की पुष्टि निम्न वक्तव्यों से की जा सकती है।
  • “रामचंद्र गुहा ने क्रिकेट पर लिखी अपनी एक पुस्तक में भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता का खुलासा करते हुए लिखा है कि 1947 में महात्मा गांधी की सभा में से उस वक्त उनके बहुत खास लोग भी गायब हो जाते थे,जब क्रिकेट मैच चल रहे होते थे।”
  • “आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक बार संसद में अनधिकृत रूप से कहा था कि क्रिकेट मैचों के दौरान तमाम सरकारी बाबुओं का ध्यान अपने काम के बजाय क्रिकेट पर रहता है इसलिए क्रिकेट मैचों के प्रसारण की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।”
  • ” इंदिरा गांधी के शासनकाल में एक केंद्रीय मंत्री की टिप्पणी थी कि क्रिकेट मैचों की कमेंट्री और प्रसारण पर तत्काल रोक लगा दी जानी चाहिए क्योंकि क्रिकेट मैचों के दौरान कम से कम सरकारी कार्यालय में तो कामकाज एकदम ठप्प हो जाता है।”
  • ” महात्मा गांधी से लेकर आज के दौर तक आते-आते क्रिकेट की लोकप्रियता का ग्राफ निरंतर बढ़ता ही रहा है।क्या ऐसा हमारे न चाहने के बावजूद हो गया।क्या क्रिकेट हम पर थोपा जा रहा है? या फिर क्रिकेट भारतीय समाज के स्वभाव के सबसे अनुकूल बैठता है?यह जानने के लिए क्रिकेट अतीत के कुछ पन्ने पलटने होंगे।

3.क्रिकेट की भारत में शुरुआत (Cricket’s Debut in India):

  • गौरतलब है कि भारत में क्रिकेट की शुरुआत अंग्रेजों ने की।यह वह दौर था जब उपनिवेशवाद अपनी चरम पर था और भारत भी ब्रिटेन का ही एक उपनिवेश था।अंग्रेजी शासन और लॉर्ड भारत में क्रिकेट खेलने के अपने शौक को पूरा करने के लिए अपने-अपने घरों के बाहर क्रिकेट खेला करते थे।इसमें भारतीय लोग उनकी मदद किया करते थे।धीरे-धीरे भारतीयों की भी इस क्षेत्र में रुचि पैदा होने लगी।नतीजतन क्रिकेट का भारत में विकास चाहने वाले अंग्रेज शुभचिंतकों ने भारत में क्रिकेट के प्रचार-प्रसार के लिए एक अनधीकृत औपनिवेशिक सांस्कृतिक नीति बनायी।उनकी राय थी कि भारतीय समाज अलग-अलग समुदाय में बंटा,अनुशासनहीन और आलसी समाज है।अंग्रेज चाहते थे कि क्रिकेट उनके भीतर पौरुष पैदा करेगा,उन्हें अनुशासित बनाएगा और उनके आलस्य को दूर करेगा।पता नहीं अंग्रेजों का यह मकसद पूरा हुआ या नहीं लेकिन उस दौर में छोटे-छोटे भारतीय नवाबों ने अंग्रेजों का सान्निध्य पाने की गरज से क्रिकेट खेलना शुरू किया।
  • 1870 से 1930 के इस पहले औपनिवेशिक चरण में क्रिकेट खेलने वाले अधिकांश भारतीय नवाब ही थे।मिसाल के तौर पर रणजीतसिंह (1872-1932),जिनके नाम से आज रणजी ट्रॉफी प्रचलित है,सौराष्ट्र की एक छोटी-सी रियासत के मालिक थे।इस तरह भारत में क्रिकेट का आगमन हुआ।और भारतीय समाज का जो विशिष्ट तबका था उसने सर्वप्रथम क्रिकेट खेलना शुरू किया।लेकिन दो ढाई दशकों में ही भारतीय जनमानस को क्रिकेट ने अपनी गिरफ्त में ले लिया।और ऐसा अकारण नहीं हुआ।इसके पर्याप्त कारण भारतीय समाज के संस्कारों और उसके मनोविज्ञान में मौजूद थे।क्रिकेट के इस जुनून की जड़ कहां है जानने के लिए उन बिंदुओं को क्रमशः रेखांकित करना निहायत जरूरी है।

4.भारत में उत्सवधर्मिता (Festivities in India):

  • इतिहास गवाह है कि उत्सवधर्मिता भारतीय समाज का मूल स्वभाव रहा है यानी भारतीय समाज उत्सवमना समाज है।हमारे यहां साल के 365 दिनों में कम से कम 250 दिन कहीं ना कहीं कोई ना कोई उत्सव अवश्य होता है।राष्ट्रीय उत्सवों को यदि छोड़ भी दें तब भी प्रांतीय उत्सवों की संख्या बहुत है।और इन सर्वमान्य उत्सवों के अलावा गांवों में लगने वाले मेले,तमाशे,सपेरों के खेल,मैजिक शो आदि ढेरों ऐसी चीजें जिनमें भारतीय समाज उत्सव का-सा मजा लेता है।अकारण भी भीड़ इकट्ठी कर लेना भारतीय चरित्र रहा है।
  • इसकी एक खूबसूरत मिसाल राजधानी दिल्ली के कनॉट प्लेस में शक्तिवर्धक दवाइयां बेचनेवालों के रूप में दी जा सकती है।मजेदार बात है कि लंच टाइम में इनके इर्द-गिर्द हजारों की संख्या में लोग एकत्र होते हैं-खरीदते बेशक उनमें से कुछ ही लोग-लेकिन शेष लोग खड़े होकर मजे लेते हैं।आप अपने-अपने दिलों से पूछकर देखिए कहीं झगड़ा हो जाए,कोई एक्सीडेंट हो जाए,लाइन में लगकर प्याज लेने का मामला हो या पानी लेने का,क्या इसमें भी आपको एक आनंद नहीं आने लगता?
  • दरअसल,यही उत्सवधर्मिता है।लिहाजा क्रिकेट भारतीयों के लिए एक उत्सव की भाँति है,जिसमें (शुरू में टेस्ट मैचों के दौरान और बाद में एक दिवसीय मैचों के दौरान भी) बैठकर तमाम भारतीय उत्सव का सा मजा लेते हैं।उत्सव का मतलब है लंबा और देर तक चलने वाला।और अन्य खेलों के मुकाबले क्रिकेट (खासकर टेस्ट मैच) सबसे लंबा चलने वाला खेल है।
  • इसलिए भारतीय जनमानस ने इस खेल को अपने स्वभाव और मनोविज्ञान के सर्वाधिक अनुकूल पाया।उन्हें लगा कि क्रिकेट 5 दिन चलने वाला एक ऐसा उत्सव है जिसमें हार और जीत भी होती है,जिसमें उतार-चढ़ाव है और जिसमें आपको कुछ नहीं करना बस बैठ कर देखना है और तालियां बजानी हैं।यही उत्सवधर्मिता है,जो भारत में क्रिकेट के जुनून का एक अहम कारण है।

5.नायकवादी मानसिकता (Heroist Mindset):

  • अगर हम भारतीय समाज में धार्मिक,सांस्कृतिक, पौराणिक,राजनीतिक नायकों की सूची बनाएं तो यकीन मानिए सिर्फ नायकों के नाम लिखने में ही अनेक ग्रंथ भर जाएंगे।हर क्षेत्र में हमने अपने-अपने नायक तय कर रखे हैं।यानी नायकों के बिना हमारा गुजारा नहीं है।राजनीति में कभी हमने भगतसिंह,सुभाष चंद्र बोस,चंद्रशेखर आजाद व महात्मा गांधी को नायक माना तो कभी जवाहरलाल नेहरू और लालबहादुर शास्त्री व इंदिरागांधी,अटल बिहारी वाजपेयी,नरेंद्र मोदी को।क्रिकेट में भी यही स्थिति है।कभी सुनील गावस्कर हमारे नायक बने,कभी कपिल देव,सचिन तेंदुलकर,महेंद्र सिंह धोनी।फिल्मवक्त क्रिकेट का नया नायक विराट कोहली है।
  • कहने का अर्थ यह है कि हम नायकों की उंगली पकड़े बिना जीवन में एक कदम आगे नहीं बढ़ पाते और क्रिकेट एक खेल है,जिसमें स्वीकृत नायकों के अलावा हर क्षण नए-नए नायकों के पैदा होने की संभावनाएं मौजूद रहती है।मिशाल के तौर पर 1983 के एक लीग मैच को देखिए जिंबॉब्वे के विरुद्ध एक लीग मैच में भारतीय टीम पहले बल्लेबाजी करते हुए 17 रनों में अपने पांच बेशकीमती विकेट गवाँ चुकी थी।ऐसे में पूरा भारतीय जनमानस ऐसे नायक की तलाश में था,जो भारत की डूबती नैया को पार लगा दे।
  • कपिलदेव बल्लेबाजी करने आए।देखते ही देखते उन्होंने जिंबॉब्वे के गेंदबाजों की धज्जियां उड़ा दी और 175 रन (अविजित) ठोंक दिए।भारत ने न केवल यह मैच जीता बल्कि विश्व कप भी जीत लिया।और इसी क्षण से कपिल भारतीयों के लिए एक नायक हो गए।भारतीय क्रिकेट टीम की स्थिति कई बार ऐसी ही हुई,जब भारतीय टीम को जिताने कोई नहीं आया और भारतीय टीम को विपक्षी टीम ने परास्त कर दिया।कहने का अर्थ यह है कि अपनी नायकवादी मानसिकता के चलते भारतीय जनममानस स्वयं को क्रिकेट के अधिक नजदीक पाता है।यही वजह है कि वह क्रिकेट को जुनून की हद तक चाहता है।

6.क्रिकेट सामन्ती खेल (Cricket Feudal Game):

  • एक समय क्रिकेट हमारे शासकों का खेल रहा है।बाद में इसे पहले नवाब खेलते रहे और फिर धनाढ्य और उच्चवर्ग के लोगों ने इसे खेलना शुरू किया।रणजीतसिंह,मंसूर अली खाँ पटौदी,गावस्कर,रवि शास्त्री,सचिन तेंदुलकर,महेंद्र सिंह धोनी….. तमाम क्रिकेट के ऐसे स्टार हैं जो उच्चवर्ग से आते हैं,जिनकी भाषा अंग्रेजी है,जिनमें पहनने-ओढ़ने का विदेशी सलीका है,जिनके व्यवहार में एक खास किस्म का विदेशीपन है।
  • ये लोग एक विशिष्ट वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।यदाकदा ही अपवादस्वरूप कुछ क्रिकेटर ऐसे रहे होंगे जो छोटे शहरों,कस्बों,गांवों या मध्य पिछड़े वर्गों से आए हों।यदि आए भी होंगे तो वे हमारे नायक कभी नहीं बन पाए।यानी भारतीय जनमानस क्रिकेटरों में अपने शासक की छवि देखता है।और जब शासक कुछ कर रहा हो तो उसको ना देखना या उसकी उपेक्षा करना भारतीय मानस का स्वभाव नहीं रहा है।इस बात को भारतीय समाज के अन्य व्यवहार से समझा जा सकता है।मान लीजिए छोटे से गांव का एक छोटा-सा जमीदार था।जब वह गांव में निकलता,तो जो लोग उसे जानते थे वे भी और जो एकदम नहीं जानते थे वे भी उसे नतमस्तक होकर प्रणाम करते थे।
  • लिहाजा,इस सारे क्रिकेट के जुनून के पीछे भी अब महानगरीय और विशिष्ट लोगों के प्रति निष्ठा,सम्मान और अभिवादन प्रदर्शित करना भी है।यही वजह है कि हम अपने क्रिकेट सितारों को देखकर उसी तरह खुश होते हैं जिस तरह प्रशंसक अपने नायक को देखकर होते हैं।

7.पलायनवादी चरित्र (Escapist Character):

  • मूल रूप से भारतीयों का चरित्र पलायनवादी चरित्र है यानी हम भारतीय अपनी वास्तविक समस्याओं से, मौजूद पीड़ाओं से,अपने दुखों से पलायन का कोई ना कोई रास्ता खोज लेते हैं।कभी हमें यह रास्ता अमिताभ की फिल्मों के रूप में दिखाई पड़ता है,जिनके बारे में कहा जाता था कि अमिताभ की फिल्में आदमी को सपनों की दुनिया में ले जाती है,जहां वह अपने तमाम कष्टों को भूल जाता है-तो कभी क्रिकेट में।
  • उन दिनों में जब क्रिकेट मैच नहीं चल रहे होते तो अक्सर वे लोग जो अपनी वर्तमान स्थितियों से खुश नहीं हैं,अक्सर यह कहते पाए जाते हैं, “यार क्रिकेट मैच चल रहे होते तो कुछ तो डिप्रेशन कम होता।वास्तव में किसी का ऐसा कहना अकारण नहीं है।जब कोई ऐसा कह रहा होता है तो वह जानता है कि क्रिकेट मैच उसकी समस्याओं का निदान नहीं है।तब दरअसल वह यथार्थ से पलायन का मार्ग ढूंढ रहा होता है-और यही मार्ग उसे क्रिकेट तक पहुंचा देता है।वह क्रिकेट मैच देखता है।उसके उतार-चढ़ाव से दुखी या खुश होता है।यही वजह है कि अधिकांश मध्यवर्ग में क्रिकेट की दीवानगी पाई जाती है।
  • पलायनवादिता का ही एक और रूप है चीजों को टालना,जिम्मेदारियां को हस्तांतरित करना और फिर भी उम्मीद बनाए रखना।क्रिकेट में यह सब मौजूद है।मिसाल के तौर पर मान लीजिए मैच के शुरू से पूर्व तक आप उम्मीद कर रहे हैं सचिन इस मैच में जोरदार प्रदर्शन करेगा।लेकिन दुर्भाग्य से सचिन जल्दी आउट हो जाता है।तब आप क्या करेंगे? क्या मैच देखना बंद कर देंगे? नहीं! तब आप सचिन से लगायी गई अपेक्षाओं को विराट कोहली को स्थांतरित कर देंगे…. यदि विराट कोहली भी जल्द आउट हो जान हो जाएं तो आप राहुल द्रविड़ से उम्मीद लगाने लगेंगे…. इस तरह आप अपनी उम्मीदें और अपेक्षाओं का स्थान हस्तांतरण क्रमशः दूसरे खिलाड़ियों पर करते जाएंगे।यह खास किस्म की प्रवृत्ति है,जो भारतीय समाज में पाई जाती है।चूँकि यह क्रिकेट में मौजूद है इसलिए दर्शक क्रिकेट को अपने व्यवहार और मनोविज्ञान के अनुकूल पाते हैं और उसे पसंद करते हैं।
  • आजादी के बाद की यदि उन घटनाओं की एक सूची बनाई जाए जिनमें संपूर्ण राष्ट्र ने एक साथ गौरव का अनुभव किया हो तो यकीन मानिए इस सूची में पहले नहीं तो दूसरे या तीसरे स्थान पर ‘1983 में भारत का विश्व कप जीतना’, ‘2011 में विश्व कप जीतना’ जरूर शामिल होगा।यही वह मौका था जब पहली या दूसरी बार भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरव का अनुभव किया।यानी,क्रिकेट एकमात्र ऐसा खेल जो आम भारतीयों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिर उठाने का गौरव देता है।
  • एक साथ बेशक हाॅकी में भारत विजेता रहा हो लेकिन यह वह समय था जब अधिकांश देश हाॅकी नहीं खेलते थे ।अन्यथा भारतीय हाॅकी टीम एक लंबे अरसे से ओलंपिक में गोल्ड मेडल क्यों नहीं जीत पायी? कहने का अर्थ यह है कि आज आम भारतीय उस खेल में भारत को विजयी देखना चाहता है,जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेला जाता हो या लोकप्रिय हो।और निस्संदेह उसे ऐसा खेल क्रिकेट ही दिखाई पड़ता है।इसलिए वह क्रिकेट से आशिकी करता है।उपर्युक्त तथ्यों और तर्कों को देखते हुए कहा जा सकता है कि अकारण नहीं है भारतीयों में क्रिकेट का जुनून।

8.भारत में क्रिकेट के प्रति दीवानगी के महत्त्वपूर्ण प्रश्न (Important Questions About the Craze for Cricket in India):

  • प्रश्न:1.भारत में खेलों में गिरावट क्यों हैं? (Why is there a Decline in Sports in India?):
    उत्तर:(1.)भारत के कमजोर प्रदर्शन के लिए राजनीति और नौकरशाही ही जिम्मेदार है।तमाम मुख्यमंत्रियों और अन्य राजनेताओं की सिफारिश से अपने चहेतों को अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में शामिल कराने की रहती है।
  • (2.)जब सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट में राजनीतिक और भ्रष्टाचार अपनी जड़े जमा चुका है तब कम लोकप्रिय खेलों की तो क्या स्थिति होगी,इसका सहज अदांजा लगाया जा सकता है।उदाहरणार्थ विनोद कांबली जैसे खिलाड़ी को खेल से बाहर रखना यही दर्शाता है।
  • (3.)हॉकी टीम के गोलरक्षक आशीष बलाल और कप्तान धनराज पिल्ले को हाकी प्रतिष्ठान द्वारा कितना अपमानित किया गया है कि आशीष बलाल ने तो यहां तक कह दिया कि भारतीय हॉकी प्रतिष्ठान के पदाधिकारी कूड़े-करकट से भी गए गुजरे हैं।उनके बिना भी हमने स्वर्ण पदक जीता है।
  • (4.)मणिपुर के एक अनाथ डिकोंसिंह जिसने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता है,को पहले खिलाड़ियों की अंतिम सूची में से काट दिया गया।खेल मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने तो यहां तक कह दिया कि क्या तुम उसे भेज कर भारत की नाक कटवाना चाहते हो? परंतु खेलमंत्री उमा भारती के हस्तक्षेप के कारण डिंकोसिंह को शामिल किया गया।
  • (5.)गंभीरता से देखा जाए तो खेलों में निरंतर आ रही गिरावट दरअसल हमारी राजनीति,अर्थव्यवस्था,उत्पादन,समाज,व्यवहार और व्यापार में आ रही गिरावट की ओर इशारा करती है।यानी मूल्यों और प्रतिबद्धताओं के स्तर पर हम हर क्षेत्र में गिरावट महसूस कर रहे हैं,तो खेल उससे कैसे बचे रह सकते हैं?
  • पिछले कुछ दशकों में हमारे सामाजिक को जिस तरह पतनशीलता ने प्रभावित किया है,उसका असर खेलों पर भी देखा जा सकता है।खेलों के प्रतिष्ठानों से जुड़ी तंगदिली,पक्षपात और भाई-भतीजावाद की राजनीति खेलों के स्तर,कार्य प्रणाली और खिलाड़ियों के उत्साह को हर बार प्रभावित किया है।जब तक हम अपने व्यवहार में ईमानदार नहीं रहेंगे तब तक अपनी रणनीतियां बनाने में ईमानदार होने का कोई अर्थ नहीं है।सुधार की कोई संभावना नहीं है जब तक राजनीति और नौकरशाही और यहां तक की समाज में ईमानदार आचरण की प्रक्रिया शुरू नहीं हो जाती।
  • प्रश्न:2.भारत के खेलों के स्तर में सुधार कैसे संभव है? (How is it Possible to Improve the Standard of Sports in India?):
  • उत्तर:खेलों में अब तक विश्व विजेता बनने का सौभाग्य मिला,तो उसके पीछे समुचित टीम का योगदान नहीं बल्कि उस खेल के किसी एक सुपरस्टार का रहा-हाॅकी में ध्यानचंद,क्रिकेट में सुनील गावस्कर,सचिन तेंदुलकर,महेंद्र सिंह धोनी,बैडमिंटन में प्रकाश पादुकोण,बिलियर्ड में माइकल फरेरा और फिर गीत सेठी,निशानेबाजी यानी शूटिंग में जसपाल राणा,शतरंज में विश्वनाथन आनंद,ट्रैक पर पीटी उषा,भारोत्तोलन में कुंजरानी देवी और टेनिस में लिएंडर पेस और महेश भूपति।
  • लेकिन सवाल यह है कि आखिर हम हमेशा एक ही स्टार या एक ही स्टार जोड़ी पर कब तक अपनी सारी उम्मीदें लगाए बैठे रहेंगे।
  • खेल संघों को गंदी राजनीति से दूर रखना चाहिए क्योंकि खिलाड़ियों में कठिन परिश्रम की दरकार होती है।अपने खेल को जिस स्तर पर पहुंचने के बाद सफलता हाथ लगती है,उस स्तर को बनाए रखना साथ ही अपने खेल में और चमक व निखार लाना भी आवश्यक होता है,ताकि सफलता के लिए संघर्ष कर रही भीड़ में से कोई खिलाड़ी नयी चुनौती बनकर नहीं उभर सके।
  • किसी भी खेल में महारत हासिल करने के लिए कठिन परिश्रम की दरकार होती है,ना कि आरामदेह कारों में चलने पर।यह काम खेल संघों को निष्पक्षता के साथ करना चाहिए तथा प्रतिभाओं के चयन में निष्पक्षता बरतनी चाहिए।युवाओं को खड़ा करने,तैयार करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।खिलाड़ी में लगन और तड़प जैसे गुणों की आवश्यकता है,जिसकी खिलाड़ी में मौजूदगी आगे बढ़ने के लिए अनिवार्य होती है।साथ ही खिलाड़ियों में टीम भावना विकसित करनी चाहिए।
  • टीम के कप्तान को बार-बार नहीं बदला जाना चाहिए क्योंकि बार-बार टीम का कप्तान बदलने से टीम के प्रदर्शन में स्थायित्व नहीं आता है और न उसका जीत का प्रतिशत बढ़ पाता है।टीम का कप्तान बार-बार बदलने से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों,गेंदबाजों तथा क्षेत्ररक्षकों के होते हुए टीम का प्रदर्शन हल्का क्यों रहता है इसकी तहकीकात करना चाहिए।
    क्रिकेट बोर्ड को केवल अपनी आमदनी तथा मुनाफे को देखकर सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए।बोर्ड की यह जिम्मेदारी है कि वह अच्छे और पेशेवर खिलाड़ी पैदा करे और ऐसी स्थिति देश में बनाए जिससे हमारी टीम को शर्मिंदगी का सामना न करना पड़े।
  • लेकिन मजेदार बात यह है कि बिना किसी लाभ-हानि पर काम करने वाला बोर्ड क्रिकेट के लिए बेहतर परिस्थितियाँ बनाने के अलावा शेष सब कुछ कर रहा है।विश्वकप में भारतीय टीम के शर्मनाक प्रदर्शन पर जब पूरा देश शर्म से अपना सिर नहीं उठा रहा था तब बोर्ड इस खुशफहमी में था कि इस प्रतियोगिता में उसने करोड़ों रुपये कमाए।लेकिन क्या बोर्ड इस कमाई गई राशि को भारत में क्रिकेट के विकास के लिए इस्तेमाल कर रहा है?
  • जब तक बोर्ड इस बात के प्रति जागरूक नहीं होगा कि उसे कितना रुपया कहाँ खर्च करना है तब तक भारत में क्रिकेट का सही विकास नहीं हो पायेगा।
  • आखिर क्या कारण हैं कि भारतीय खिलाड़ी बौने साबित हो रहे हैं।एक और शाश्वत समस्या क्रिकेट के साथ यह है कि हमलोग क्रिकेट की सेकण्ड लाइन तैयार नहीं कर पा रहें हैं।जाहिर है जब तक क्रिकेट की नयी पौध को तैयार करने की जिम्मेदारी नहीं होगी तब तक सेकण्ड लाइन तैयार नहीं हो सकती।इस नयी पौध को तैयार करने की जिम्मेदारी भी बोर्ड की ही है।
  • बोर्ड के पास धन की कमी नहीं है।लेकिन जब तक यह पैसा युवा खिलाड़ियों पर खर्च नहीं होगा,अकादमियों का निर्माण नहीं होगा,अच्छी तेज पिचें नहीं बनायी जाएंगी तब तक हमारे खिलाड़ी इसी तरह फिसड्डी साबित होते रहेंगे।और इसका विडम्बनापूर्ण पहलू यह होगा कि हर मिलने वाली पराजय की जिम्मेदारी कभी टीम के कप्तान पर डाल दी जाएगी और कभी उन खिलाड़ियों पर जिनका प्रदर्शन खराब रहा है।बार-बार कप्तान बदले जाएंगे,टीम में खिलाड़ियों की आवाजाही चलती रहेगी।और हर बार बोर्ड अपनी नाकामियों को छिपाने में कामयाब होता रहेगा।लिहाजा,यह जरूरी है कि अब टीम की दुर्दशा के लिए कोच,कप्तान और खिलाड़ियों से सवाल पूछे जाने के बजाय बोर्ड से सवाल पूछे जाये कि ऐसा क्यों हो रहा है और ऐसा कब तक चलेगा?
  • वस्तुतः क्रिकेट अब क्रिकेट नहीं रह गया है बल्कि एक युद्ध में परिवर्तित हो चुका है।विपक्षी टीमों को कैसे मात देनी है, कैसे उनकी रणनीतियों को जानना है,कैसे उसे कमजोर करना है,कौन-सा बयान सामने वाली टीम का मनोबल कमजोर करेगा,आपके किस बयान से सामने वाली टीम में भ्रम की स्थिति पैदा होगी… ये तमाम चीजें क्रिकेट का हिस्सा बन चुकी हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में भारत में क्रिकेट के प्रति दीवानगी के कारण (Reasons for Craze for Cricket in India),क्रिकेट के प्रति भारतीयों में दीवानगी के कारण (Reasons for Indians Craze for Cricket) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:3 Tips for Students to Do Yogic Posture

9.मोबाइल फोन का प्रयोग (हास्य-व्यंग्य) (Use of Mobile Phone) (Humour-Satire):

  • चिंकू परीक्षा हाॅल में परीक्षा देने गया।वहाँ नोटिस बोर्ड पर लिखा था-डू नाॅट यूज मोबाइल हियर।
  • चिंकू ने फौरन अपना मोबाइल निकाला और एक-एक करके अपने सभी दोस्तों को काॅल करके हिदायत दी,अभी मुझे काॅल मत करना,यहाँ परीक्षा हाॅल में मोबाइल यूज करना मना है।

10.भारत में क्रिकेट के प्रति दीवानगी के कारण (Frequently Asked Questions Related to Reasons for Craze for Cricket in India),क्रिकेट के प्रति भारतीयों में दीवानगी के कारण (Reasons for Indians Craze for Cricket)से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:3.सचिन तेंदुलकर को कौन-सा पुरस्कार मिल चुका है? (Which Award Has Been Received by Sachin Tendulkar?):

उत्तर:सचिन तेंदुलकर को राजीव गांधी खेल रत्न तथा भारत रत्न जैसे पुरस्कार मिल चुके हैं।इसके अलावा अमेरिका की विश्व प्रसिद्ध पत्रिका टाइम ने सचिन को अपने आवरण पृष्ठ पर स्थान देते हुए उनकी तुलना फुटबॉल के महान खिलाड़ी अर्जेंटीना डिएगो मारडोना से की।’टाइम’ ने सचिन को ‘बांबे बांबर’ की संज्ञा देते हुए लिखा कि सचिन के प्रदर्शन को कुछ शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है,वह अनेक चमत्कार कर चुका है।

प्रश्न:4.विश्व कप क्रिकेट में विज्ञापन में कौन-कोन सक्रिय रहते हैं? (Who are Active in Advertising in World Cup Cricket?):

उत्तर:यह साफ दिखाई पड़ रहा है कि विश्व में कोरोना की वजह से छायी आर्थिक मन्दी के बावजूद विज्ञापनदाताओं और प्रायोजकों में टीवी,प्रिंट मीडिया और अन्य स्थानों पर विज्ञापन देने की होड़ लगी हुई थी।एक अनुमान के अनुसार देशी-विदेशी कम्पनियाँ लगभग 1000 करोड़ रुपए इस मद में खर्च किया होगा।
अधिकृत प्रायोजकों के अलावा बिस्कुट,कैंडी,कार निर्माता,एयरलाइंस के साथ-साथ ढेरों अन्य कम्पनियाँ ईएसपीएन और दूरदर्शन के बाहर लम्बी कतार में समय खरीदने के लिए खड़ी थी।पैकेज टूर में भी विश्व कप में व्यापक वृद्धि हुई है।अनेक एजेंसियाँ आकर्षक पैकेज टूर से लोगों को लुभाने की कोशिश कर रही हैं।

प्रश्न:5.क्रिकेट में पहली बार सफेद गेंद और हाइटेक स्टिक कब शामिल की? (When was the First White Ball and Hi-tech Stick Included in Cricket?)

उत्तर:पहली बार 1999 के विश्व कप में रंगीन पोशाकों,सफेद गेंदों और हाइटेक सिस्टम में खिलाया गया 1999 तक का सबसे भव्य व महंगा विश्व कप था जिसे बेंसन एवं हेजेज विश्व कप से जाना गया परन्तु इन सब में 2023 तक आते-आते तो बहुत कुछ बदल गया है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा भारत में क्रिकेट के प्रति दीवानगी के कारण (Reasons for Craze for Cricket in India),क्रिकेट के प्रति भारतीयों में दीवानगी के कारण (Reasons for Indians Craze for Cricket) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *