Menu

Individual Teaching in Mathematics

Contents hide
1 1.गणित में वैयक्तिक शिक्षण (Individual Teaching in Mathematics),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए वैयक्तिक शिक्षण (Individual Teaching for Mathematics Students):

1.गणित में वैयक्तिक शिक्षण (Individual Teaching in Mathematics),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए वैयक्तिक शिक्षण (Individual Teaching for Mathematics Students):

  • गणित में वैयक्तिक शिक्षण (Individual Teaching in Mathematics) विधि का उपयोग इसलिए किया जाता है कि अब यह विश्वास किया जाता है कि बालकों में व्यक्तिगत विभिन्नता होती है,अतएव उनको शिक्षण दिया जाय,वह उनकी विभिन्नता को ध्यान में रखकर ही दिया जाए जिससे उनका समुचित विकास हो सके।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:5 Techniques of Class Teaching of Math

2.वैयक्तिक शिक्षण (Individual Education):

  • कुछ काल तक वैयक्तिक शिक्षण पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था।व्यक्तिगत भिन्नता को ध्यान में रखकर शिक्षण देने की विधियों में कोई स्पष्टता नहीं थी।इसके दो कारण थे-एक तो यह कि इस क्षेत्र में बहुत कम अनुसंधान हुए थे और दूसरे यह विचार किया जाता था कि व्यक्तिगत विभिन्नताओं को कक्षा-शिक्षण के दोषों को दूर करके विकसित किया जा सकता है।इसके अतिरिक्त शिक्षण के वैयक्तिक स्वरूप को एक जनतंत्र-रहित क्रिया के रूप में देखा जाता था।परंतु अब यह समझा जाने लगा है कि यदि इस सिद्धांत को ध्यान में रखकर व्यक्तिगत योग्यता की वृद्धि के लिए पूर्ण अवसर दिए जा सकें तथा सबको समान विकास करने के अवसर प्रदान हों तो ये जनतंत्रीय भावना के सच्चे प्रतीक होंगे।
  • शिक्षण के व्यक्तिकरण का अर्थ है कि विद्यार्थी को ऐसे सीखने के अनुभव प्रदान किये जा सकें जिससे वह स्वयं अपने आप बिना समूह की सहायता के,और बहुत कम अध्यापक की सहायता के:समूह-विवाद,कक्षा-पाठन और प्रश्नोत्तर के स्थान पर व्यक्तिगत अध्यापन के आधार पर प्रगति कर सके।
  • वैयक्तिक शिक्षण पर नन महोदय भी बहुत बल देते हैं।उनके मतानुसार:व्यक्ति ही हर चीज का आधार है और शिक्षा द्वारा उन दशाओं का आयोजन करना चाहिए जिनमें व्यक्तित्व का विकास पूर्ण रूप से हो सके।
    कक्षा,पाठ्यक्रम तथा विद्यालय के लिए आवश्यक है वह प्रत्येक विद्यार्थी को सुविधा प्रदान करें जिससे विभिन्न बालक अपनी विभिन्न योग्यताओं का विकास कर सकें और उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो सके।ऐसी सुविधाओं के आयोजन से वैयक्तिक विभिन्नता के आधार पर शिक्षा संभव होगी।
  • वैयक्तिक शिक्षण में प्रतिभावान बालकों की तथा पिछड़े बालकों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता है परंतु इससे तात्पर्य यह नहीं है कि एक साधारण विद्यार्थी की आवश्यकताओं पर ध्यान नहीं दिया जाता।वैयक्तिक  शिक्षण का आधार ही यह है कि न केवल समस्यात्मक बालकों पर ध्यान दिया जाए वरन प्रत्येक विद्यार्थी की ओर विशेष ध्यान दिया जाए।

3.वैयक्तिक शिक्षण व्यावहारिक रूप से:टोलीगत कार्य की विधि (Individual Teaching Practically:Method of Team Work):

  • वैयक्तिक शिक्षण को व्यावहारिक रूप में कैसे रखा जाए? इस संबंध में टोलीगत कार्य करने की विधि को कुछ शिक्षा-शास्त्रियों ने श्रेष्ठ माना है।विद्यार्थियों को विभिन्न कार्यों को करने के लिए विभिन्न टोलियों में बाँट दिया जाता है।इन टोलियों का विभाजन कार्य के अनुसार किया जाता है;जैसे:उन कार्यों के लिए जो संवेगात्मक प्रेरणा पर आधारित होते हैं और जिनमें समूह उत्तेजना सक्रिय होती है,उनके लिए ऐसी टोलियाँ बनाई जाती हैं जिनमें विद्यार्थियों की संख्या अधिक होती है और ऐसे कार्यों में जिनमें शिक्षक द्वारा व्यक्तिगत निरीक्षण की आवश्यकता है,छोटी टोलियाँ बनायी जाती हैं।विभिन्न टोलियों को विभिन्न प्रकार के कार्य दे दिए जाते हैं और शिक्षक इस बात की ओर सचेत रहता है कि बालक कार्य में तीव्र रुचि लें।
  • जो शिक्षण-प्रणालियाँ टोलीगत कार्य को महत्त्व देती हैं,वे हैं डाल्टन प्रणाली,मॉरिसन प्रणाली और विनेटका शिक्षण-योजना इत्यादि।इन प्रणालियों में कार्य को इकाई के रूप में दिया जाता है और इनके आधार पर ही व्यक्तिगत प्रगति का मूल्यांकन किया जाता है।इन प्रणालियों एवं योजनाओं की सफलता योग्य एवं कुशल शिक्षकों पर बहुत-कुछ निर्भर रहती है।शिक्षक का कार्य केवल निर्देशन देना होता है।परंतु उसको इस कार्य को संपन्न करने के लिए प्रत्येक छात्र के संबंध में पूर्ण जानकारी रखना आवश्यक है एवं उन्हें समय-समय पर छात्रों के कार्यों का अत्यंत कुशलतापूर्वक निर्देशन करना होता है।
  • आधुनिक शिक्षण-प्रणालियों में शिक्षक मित्र,दार्शनिक एवं निर्देशक (Friend,Philosopher and Guide) के रूप में होना है।उससे आशा की जाती है कि बालकों की आवश्यकताओं एवं समस्याओं के संबंध में जानकारी रखेगा और सहानुभूतिपूर्वक उन्हें सुलझाने की चेष्टा करेगा।शिक्षक द्वारा बालकों को निर्देशन इस प्रकार दिया जाता है कि उनको नए अनुभव प्रदान किए जाएं।शिक्षक निर्देशन इस प्रकार नहीं देता कि बालकों की स्वतंत्रता नष्ट हो जाए।वह तो बालकों को प्रेरणा प्रदान करता है और उनमें आत्म-विश्वास का विकास करता है।परंतु वह इस बात का भी ध्यान रखता है कि बालक इतने स्वच्छंद ना हो जाएं कि उनका विकास ही रुक जाए।

4.वैयक्तिक शिक्षण की योजना के मानदंड (Norms of Individual Teaching Scheme):

  • वैयक्तिक शिक्षण की योजना बनाने में निम्नलिखित मानदंडों को ध्यान में रखना चाहिए:
  • (1.)स्पष्ट तथा निश्चित उद्देश्य निर्धारित किए जाएं (Definite and clear objectives)।
  • (2.)क्रियाओं की रूपरेखा स्पष्ट रूप से बना ली जाए (Activities must be carefully outlined)।
  • (3.)आत्म-शुद्धिकरण से अभ्यासों का आयोजन हो (Self-corrective practice must be provided)।
  • (4.)विद्यार्थी द्वारा किए गए कार्य का उचित मूल्यांकन हो (Poper assessment of the work done by the pupil)।
  • (5.)समय का उचित बँटवारा प्राप्त कर लिया जाय (Budgetting of the time be achieved)।

5.वैयक्तिक शिक्षण पर आधारित कुछ प्रणालियाँ (Some systems based on individual learning):

(1.)प्रोजेक्ट प्रणाली (Project System):

  • इस पद्धति में बालकों को कार्य करने के लिए कुछ समस्याएँ दे दी जाती हैं और उनको इस बात की स्वतंत्रता प्रदान कर दी जाती है कि वे समस्या को हल करने के लिए जो भी प्रदत्त सामग्री आवश्यक समझें,उसे इकट्ठा करें और समस्या का हल ढूंढ निकालें।इसमें जो समस्या बालकों के सम्मुख प्रस्तुत की जाती है,वह यथासंभव जीवन की यथार्थता से संबंधित होती है।समस्या का हल प्राप्त करने के लिए बालकों को विश्लेषण करने की,संश्लेषण करने की,अपनी सफलता का मूल्यांकन इत्यादि करने की आदत का निर्माण हो जाता है।

(2.)खेल विधि (Game Method):

  • खेल-विधि भी वैयक्तिक शिक्षण की विधि है।खेल-विधि में जो कार्य बालकों को दिया जाता है,वह उनके द्वारा खेल ही खेल में संपन्न किया जाता है।यह कार्य प्रत्येक बालक की बुद्धि,योग्यता और रुचि के अनुसार ही किया जाता है।

(3.)प्रश्नोत्तर (Dialogue):

  • प्रश्नोत्तर विधि को हम वैयक्तिक शिक्षण की विधि के अंतर्गत इस प्रकार मानते हैं कि इस विधि द्वारा वे बालक भी सक्रिय हो जाते हैं जो निष्क्रिय होते हैं और यह विद्यार्थियों को चिंतन करने में सहायता प्रदान करती है।

(4.)डाल्टन प्रणाली (Dalton System):

  • इस प्रणाली की मुख्य प्रवर्तक श्रीमती हेलन पार्कहर्स्ट हैं।यह तीन सिद्धांतों पर आधारित है:(1.)बालकों की स्वतंत्रता,(2.)शिक्षक एवं विद्यार्थी का सहयोग तथा (3.)समय का समुचित मूल्यांकन और उपयोग।
    शिक्षक द्वारा “कार्य” 20 दिन के लिए पहले से निर्धारित कर दिया जाता है और फिर बालक को अपनी गति से कार्य करने की स्वतंत्रता दे दी जाती है।हर एक बालक स्वयं अपने पढ़ने के समय का विभाजन अपनी रुचि और आवश्यकता के अनुसार करता है।

(5.)मॉरिसन योजना (Mauritius Plan):

  • माॅरीसन-योजना तथा विनेटका-योजना भी पाठ्य-वस्तु को शिक्षण की इकाई के रूप में रखकर प्रत्येक बालक को व्यक्तिगत रूप से प्रगति करने के लक्ष्य को सामने रखती है।

(6.)समूह विवाद विधि (Group-Discussion Method):

  • यह विधि मानसिक सक्रियता को बढ़ाती है और सृजनात्मक चिंतन को विद्यार्थियों में प्रोत्साहित करती है।समूह-विवाद में प्रत्येक सदस्य अपना विचार प्रस्तुत करता है और प्रत्येक बालक दूसरे से सीखता है।समूह-विवाद की सफलता बहुत-कुछ इस पर निर्भर रहती है कि इसके लिए सावधानीपूर्वक तैयारी की जाय और इसमें भाग लेने वाले सदस्य सक्रिय रहें।
    इन विधियों के अतिरिक्त और भी कई विधियां हैं,जैसे-ह्यूरिस्टिक पद्धति,वैज्ञानिक विधि इत्यादि,जो वैयक्तिक शिक्षण पर ही आधारित हैं।

6.वैयक्तिक शिक्षण में गुण (Qualities in Individual Learning):

  • व्यक्तिगत शिक्षण में अनेक गुण हैं।हम यहाँ संक्षेप में उनका वर्णन करेंगे:
  • (1.)वैयक्तिक शिक्षण में प्रत्येक विद्यार्थी के कार्य पर ध्यान दिया जाता है जबकि कक्षा-शिक्षण में सामूहिक कार्य पर अधिक बल दिया जाता है।इस प्रकार प्रत्येक विद्यार्थी की समस्याओं,सवाल संबंधी दिक्कतों को हल किया जा सकता है।
  • (2.)इस प्रकार के शिक्षण में प्रत्येक बालक को अपनी गति से प्रगति करने के अवसर मिल जाते हैं।धीमी तथा तेज गति से विद्यार्थी द्वारा गणित को हल करने से उनमें किसी प्रकार की कमजोरी नहीं रहती है।
  • (3.)प्रतिभावान बालक एवं पिछड़े बालकों की ओर उचित प्रकार से ध्यान दिया जा सकता है।कक्षा-शिक्षण में औसत विद्यार्थी को ध्यान में रखकर पढ़ाया जाता है।जिससे प्रतिभावान एवं पिछड़े बालकों का समुचित विकास नहीं होता है परंतु व्यक्तिगत शिक्षण में प्रतिभावान एवं पिछड़े बालकों की हर समस्या का समाधान करने के कारण वे गणित में पिछड़ते नहीं हैं।
  • (4.)बालक अपनी प्रगति के संबंध में दूषित धारणाएँ नहीं रख पाता।क्योंकि हर बालक की समस्याओं का तत्काल एवं ध्रुतगति से समाधान किया जाता है।अतः किसी भी छात्र-छात्रा के साथ पक्षपात करने का अवसर नहीं मिल पाता है।
  • (5.)शिक्षक बालक की रुचियों एवं व्यावसायिक प्रवृत्तियों को समझने में सफल होता है।हर छात्र-छात्रा पर व्यक्तिगत ध्यान देने से पता चल जाता है कि उसकी गणित में या किसी अन्य विषय में कितनी रुचि है।इसके आधार पर ऐच्छिक विषय एवं जाॅब का चयन आसानी से किया जा सकता है।
  • (6.)यह शिक्षण समय के विभाजन को उचित ढंग से करने में सहायता पहुंचाता है।यानी प्रतिभावान छात्र-छात्रा को कितना समय,पिछड़े छात्र-छात्राओं को ज्यादा समय और औसत विद्यार्थी को उसकी आवश्यकता के अनुसार समय का विभाजन किया जाता है।
  • (7.)शिक्षकों को बालकों की कठिनाइयों इत्यादि का निदान करने की आवश्यकता प्रतीत होती है और वह निदान करने की दक्षता प्राप्त करने की चेष्टा करता है।प्रत्येक बालक की गणित में समस्याएं हल होने से छात्र-छात्रा तीव्र गति से विकास करता है।गणित जैसे विषयों को जिनमें छात्र-छात्रा कठिनाई महसूस करते हैं वे दूर हो जाती हैं।
  • (8.)यह बालक के सर्वांगीण विकास को प्राप्त करने में सफल होता है।जैसे कठिन परिश्रम करने की आदत,सृजनात्मक चिंतन,बौद्धिक क्षमता,समय का पालन,ईमानदारी,सच्चाई आदि व्यक्तिगत गुणों का विकास होता है।
  • (9.)बालक की मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं की ओर उचित प्रकार से ध्यान दिया जाता है।छात्र-छात्राओं का स्तर जान-समझ कर गणित को पढ़ाया जाता है।पहले सरल सवालों को और समस्याओं को हल करवाया जाता है,फिर धीरे-धीरे कठिनाई के स्तर को बढ़ाया जाता है ताकि गणितीय समस्याओं की हल करने की उसकी क्षमता में वृद्धि हो सके।जबकि कक्षा शिक्षण में पिछड़े बालकों में गणित का डर पैदा हो जाता है क्योंकि गणित औसत विद्यार्थी के आधार पर पढ़ाई जाती है।

7.वैयक्तिक शिक्षण में दोष (Defects in Individual Learning):

  • (1.)वैयक्तिक शिक्षण में प्रत्येक विद्यार्थी के लिए एक शिक्षक की आवश्यकता होती है।विकसित से विकसित और धनी से धनी देश भी प्रत्येक विद्यार्थी के लिए एक शिक्षक की आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर सकता है।यदि टोली में (बहुत कम छात्रों) को रखकर भी शिक्षण किया जाए तो भी बहुत अधिक शिक्षकों की आवश्यकता है जिसकी पूर्ति नहीं की जा सकती है।
  • (2.)इस शिक्षण विधि में दूसरों छात्र-छात्राओं को देखकर पढ़ने की कला का विकास नहीं होता है।जब समूह में होते हैं तो दूसरे छात्र-छात्राओं को देखकर प्रत्येक छात्र-छात्रा में गणित या अन्य विषयों को पढ़ने की प्रेरणा मिलती है जिसका व्यक्तिगत शिक्षण में अभाव रहता है।
  • (3.)छात्र-छात्रा शिक्षक के बजाय अपने सहपाठी से पूछने में संकोच नहीं करता है।अतः बहुत ही समस्याओं को समूह या कक्षा-शिक्षण में सहपाठियों से पूछकर समस्याओं को हल कर लेते हैं।इस शिक्षण विधि में सहपाठियों के अभाव के कारण ऐसा नहीं कर पाते हैं।
  • (4.)छात्र-छात्राओं में एक-दूसरे को देखकर जो प्रतियोगिता का विकास होता है वह इस विधि में नहीं हो पाता है।गणित या अन्य विषय ही नहीं बल्कि अनेक गुणों का विकास प्रतियोगिता के आधार पर होता है।
  • (5.)वैयक्तिक शिक्षण में छात्र समूह में नहीं रहते हैं अतः सहयोग की भावना,सहिष्णुता,टीम भावना,सहानुभूति,समन्वय,प्रतियोगिता,संघर्ष तथा नेतृत्व आदि गुणों का विकास नहीं हो पाता है।जबकि ये गुण सामाजिक एवं व्यावसायिक जीवन में बहुत लाभदायक हैं।
  • (6.)व्यक्तिगत शिक्षण में सामूहिक कार्य करने,सवालों को हल करने की प्रेरणा बालकों को नहीं मिल पाती है।बालक शिक्षक तथा अच्छे छात्रों का अनुसरण करके बहुत कुछ सीख जाता है परंतु इस विधि में ऐसा नहीं हो पाता है।बालकों में उत्साह का संचार नहीं हो पाता है।
  • (7.)बालक सरसता का अनुभव नहीं करता है क्योंकि अन्य छात्र-छात्रा उनके साथ नहीं पढ़ रहे होते हैं।अतः एक समय के बाद वे बोरियत महसूस करने लगते हैं।ऐसे छात्र-छात्रा बहुत कम होते हैं जो स्वप्रेरणा से आगे बढ़ते हैं और एकाकी पढ़ सकते हैं।अधिकांश छात्र-छात्रा समूह में पढ़ना पसंद करते हैं।आपस में वार्तालाप करके वे वातावरण को बोझिल नहीं होने देते हैं।मन की बातें एक-दूसरे से करने पर अपने आप को हल्का महसूस करते हैं,परंतु इस विधि में ऐसा संभव नहीं है।
  • वैयक्तिक शिक्षण तथा कक्षा-शिक्षण दोनों में बहुत-कुछ दोष तथा गुण है।वास्तविक रूप में जो कक्षा-शिक्षण के गुण हैं,वे वैयक्तिक शिक्षण के दोष हैं और जो वैयक्तिक शिक्षण के गुण हैं,वे कक्षा-शिक्षण के दोष हैं।हमारा ध्येय यह होना चाहिए कि कक्षा-शिक्षण और वैयक्तिक शिक्षण के अधिकतर गुण उस प्रणाली में हों,जिसे हम अपनायें।यदि शिक्षक यह ध्यान रखें और परिश्रम करे तो कक्षा-शिक्षण में भी वैयक्तिक रूप से ध्यान दिया जा सकता है।कक्षा-शिक्षण में शिक्षकों की संख्या बढ़ाकर तथा छात्र-छात्राओं की संख्या कम रखकर ऐसा किया जा सकता है।
  • समर्थ छात्र-छात्रा कक्षा शिक्षण के बाद गणित जैसे विषयों में कठिनाई अनुभव करते हैं तो वह होम ट्यूशन या कोचिंग करके अपनी कमजोरी को दूर कर सकते हैं और व्यक्तिगत शिक्षण के लाभ प्राप्त कर सकते हैं।होम ट्यूशन व्यक्तिगत शिक्षण का ही रूप है।कई माता-पिता और अभिभावक इस कठिनाई से परिचित हैं,अतः अपने बच्चों के लिए ट्यूटर की व्यवस्था करते हैं और उनकी (छात्र-छात्रा की) कमजोरियों को दूर करते हैं। परंतु कुछ अभिभावक जागरूक नहीं रहते हैं और वे स्कूल-कॉलेज के भरोसे छात्र-छात्राओं को छोड़ देते हैं जिससे वे पिछड़ते चले जाते हैं।मुख्य बात है छात्र-छात्रा,माता-पिता व अभिभावक का जागरूक रहना।यदि वे जागरूक रहेंगे तो छात्र-छात्रा की स्थिति का पता लगाकर (मूल्यांकन आदि के द्वारा) यदि उन्हें आवश्यकता है तो व्यक्तिगत शिक्षण (होम ट्यूटर या कोचिंग) की व्यवस्था कर सकते हैं।यदि जागरूक नहीं रहेंगे तो कैसी भी शिक्षण विधि हो उसे लाभ नहीं उठाया जा सकता है।शिक्षक भी यदि जागरूक नहीं रहेंगे तो किसी भी शिक्षण विधि में दोष आ जाएंगे।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित में वैयक्तिक शिक्षण (Individual Teaching in Mathematics),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए वैयक्तिक शिक्षण (Individual Teaching for Mathematics Students) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:Lecture Method in Mathematics

8.पिता के वश में नहीं (हास्य-व्यंग्य) (Not Under Control of Father) (Humour-Satire):

  • बेटा:पापा,आप गणित की हर प्रश्नावली हल करते समय कहते हैं कि इसे हल करना तुम्हारे बस की बात नहीं है।मेरे पास भी ऐसी बात है जो आपके बस की बात नहीं है।
  • पिताजी:ऐसी क्या बात है?
  • बेटा:मेरे लिए स्कूल में पढ़ना बस की बात है परंतु आप द्वारा स्कूल में अब पढ़ना आपके बस की बात नहीं है।

9.गणित में वैयक्तिक शिक्षण (Frequently Asked Questions Related to Individual Teaching in Mathematics),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए वैयक्तिक शिक्षण (Individual Teaching for Mathematics Students) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.वैयक्तिक और कक्षा-शिक्षण में कौन सी श्रेष्ठ है? (Which is better in individual and classroom teaching?):

उत्तर:दोनों विधियाँ अपनी-अपनी जगह श्रेष्ठ हैं।दोनों एक-दूसरे की पूरक हैं।अतः कक्षा-शिक्षण में शिक्षकों की संख्या बढ़ाकर तथा छात्र-छात्राओं की संख्या कम रखकर दोनों के लाभ उठाए जा सकते हैं।

प्रश्न:2.शिक्षण विधि के दोषों को दूर करना किसके हाथ में है? (In whose hands is it to remove the defects of the teaching method?):

उत्तर:शिक्षक समर्पित,निष्ठावान,जागरूक हो तथा छात्र-छात्राओं में विद्या ग्रहण करने की तीव्र उत्कण्ठा हो तो किसी भी शिक्षण विधि के दोषों को दूर करके उससे अधिकतम लाभ उठाया जा सकता है।

प्रश्न:3.वैयक्तिक-शिक्षण एवं कक्षा-शिक्षण में समन्वय प्राप्त करने वाली विधियों के नाम लिखो। (Name the methods which achieve coordination between individual teaching and classroom teaching):

उत्तर:मैकमन की शिक्षण विधि,परीक्षित स्वाध्याय (cocenrosed study) (हालक्वेस्ट द्वारा प्रतिपादित),टीम शिक्षण (Team Teaching) विधियों में कक्षा-शिक्षण तथा वैयक्तिक शिक्षण के अधिकतर गुणों का समावेश करने की चेष्टा की गई है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित में वैयक्तिक शिक्षण (Individual Teaching in Mathematics),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए वैयक्तिक शिक्षण (Individual Teaching for Mathematics Students) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here
7. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *