Importance of Wisdom Rather Than Sense
1.बुद्धि के बजाय सद्बुद्धि की महत्ता (Importance of Wisdom Rather Than Sense),बुद्धि और सद्बुद्धि में भेद (Distinction Between Sense and Wisdom):
- बुद्धि के बजाय सद्बुद्धि की महत्ता (Importance of Wisdom Rather Than Sense) अधिक है,सद्मार्ग पर चलाने वाली है और अनेक गुणों से झोली को भरने वाली है।बुद्धि को अंग्रेजी में conningness (चालाकी) कह सकते हैं और सद्बुद्धि को wisdom (समझदारी)। यों ऊपरी तौर पर देखने पर ये दोनों शब्द एक जैसे मालूम पड़ते हैं परन्तु गहराई से देखने पर इनका फर्क मालूम पड़ता है।
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2.बुद्धि की देन (The gift of wisdom):
- बुद्धि में निर्णायक क्षमता होती है।वह निर्णय करती है कि किस ओर जाना है,परंतु सत्पथ पर ही बढ़ना है,सत्यानुसंधान करना है,इसका निर्णय सद्बुद्धि करती है।केवल बुद्धि भौतिक सफलताओं के अर्जन की कामना करती है।इसकी वैचारिक सीमाएं पदार्थ-जगत तक ही सीमित होती है।आधुनिक विज्ञान के अद्भुत आविष्कार इसी बुद्धि की देन हैं।बुद्धि के कारण ही विश्व में इतनी साधन-सुविधाएँ संभव हो सकी हैं।इसने समस्त विश्व को घर के एक आंगन में समेट देने का असंभव कार्य कर दिखाया है।सुदूर अंतरिक्ष में टिमटिमाते तारों को तोड़ लाने की कहावत भी कुछ सीमा तक इसने साकार कर दिखाई है,परंतु बुद्धि ने मानव समाज एवं विश्व का जितना उपकार किया है,उतना ही इसे विनाश के मुंह की ओर भी धकेल दिया है।बुद्धि ने अमृत भी बाँटा है तो हलाहल पिलाने में कोताही नहीं बरती है।
- आज का आधुनिक समाज सफलता के लिए बुद्धि को ही एकमात्र साधन ठहराता है और इसका मानदंड और मापदंड बुद्धि-परीक्षण (आई०क्यू०) मानता है,परंतु अति बुद्धिमानों के वर्तमान समाज में जितनी मनोवैज्ञानिक विकृतियाँ एवं समस्याएं पैदा हुई हैं,उन्हें देख मानव मन काँप उठा है,असुरक्षित एवं आतंकित हो गया है।आखिर कहां चूक हो गई है।समग्र सफलता पाने की दिशा में कहां भटकाव आया है।चुनौती पेश करती इस गंभीर समस्या के समाधान में आधुनिक मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमेन कहते हैं की बुद्धि के साथ भावना का अभाव,विचार के साथ संवेदना की कमी ही इसका प्रमुख कारण है।इस सन्दर्भ में माॅरिश जे० इलियास की मान्यता है कि सामान्यतः बुद्धि-परीक्षण बुद्धि के एक सीमित क्षेत्र को जान व समझ पाते हैं।अतः उनसे प्राप्त बुद्धिलब्धि व्यापक दृष्टि से उपयोगी एवं उपादेय सिद्ध नहीं होती।प्रचलित बुद्धि-परीक्षणों में अधिकतर संज्ञानात्मक तत्त्वों पर ही बल दिया जाता है।इनके अंतर्गत शब्द-भंडार,वाचिक संबंध,गणितीय योग्यता,स्मृति,प्रत्यक्षीकरण,तर्कणाशक्ति आदि का निर्विकल्प रूप से मापन व आकलन किया जाता है।यह सब अमूर्त स्तर पर किया जाता है।इस दौरान उपलब्ध अध्ययनों के प्रमाण बुद्धि के कई पक्षों को प्रस्तुत करते हैं।
- हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक होवर्ड गार्डनर ने बुद्धि के सात प्रकारों का उल्लेख किया है।ये हैं:वाचक बुद्धि,गणितीय तार्किक बुद्धि,देश या स्थानगत बुद्धि,सांगीतिक बुद्धि,शरीर-गति से जुड़ी बुद्धि,अंतर्वैयक्तिक बुद्धि और स्वयं अपने को समझने की बुद्धि।इस क्रम में येल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉबर्ट स्टर्नबर्ग ने सफल बुद्धि की जीवनोपयोगी अवधारणा प्रस्तुत की है।उनके अनुसार सफल व्यक्ति वैयक्तिक और सामाजिक,दोनों रूपों से सफल होते हैं।इस सफलता के पीछे बुद्धि के तीन अवयव कार्य करते हैं।इन अवयवों को विश्लेषणात्मक योग्यता,सर्जनात्मक क्षमता और व्यावहारिक कुशलता कहते हैं।जीवन में इन तीनों का उचित समन्वय एवं उपयुक्त संतुलन व्यक्ति को सफलता के पथ पर अग्रसर करता है।
- विश्लेषणात्मक बुद्धि समस्याओं का समाधान करती है,परंतु अपने आप में यह अपूर्ण एकांगी है।सृजनात्मक बुद्धि में समस्याओं का प्रभावी निदान मिलता है,परंतु समस्या का निदान मिलना ही पर्याप्त नहीं है,उसे जीवन में उतारने के लिए व्यावहारिक होना भी आवश्यक एवं अनिवार्य है।बुद्धि के इन तीन अवयवों से ही जीवन विकसित एवं परिपक्व होता है तथा सफलता के शिखर को स्पर्श करता है।स्टर्नबर्ग के अनुसार सफल बुद्धि वाले व्यक्ति अपने अंदर विद्यमान अनंत सामर्थ्य की संभावना को समझते हैं तथा साथ ही इसे क्रियान्वित करने के लिए अत्यंत कठिनाइयों से भी परिचित होते हैं।अतः इन कठिनाइयों का निदान पहले से तय कर लेते हैं,जिससे कि हताशा,निराशा की नकारात्मक सोच न पनपने पाए।इनमें विधेयात्मक चिंतन के साथ-साथ सृजनात्मक दृष्टिकोण भी होता है,जो सफलता के लिए एक अपरिहार्य मानदंड है।
3.सद्बुद्धि के कार्य (Acts of Wisdom):
- सफल बुद्धि वाले अपनी राह खुद तलाशते हैं।ये अवसर की प्रतीक्षा नहीं करते और न उस पर निर्भर करते हैं,बल्कि स्वयं परिस्थिति को गढ़ते हैं।मानव परिस्थिति का कृतदास नहीं है,वरन अपनी संकल्पित मनःस्थिति से परिस्थिति का सर्जनकर्त्ता है।सफल बुद्धि इस तथ्य को भलीभाँति जानती है।सामान्यतः बुद्धि परिस्थिति की विषमता के सामने घुटने टेक देती है और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाती है।उसे नहीं सूझता की विषमता में समता का सौंदर्य कैसे निखारा जाए,कटुता को सौम्यता में तथा भयावह रिक्तता को सृजन की समृद्धि में कैसे बदला जाए।सफल बुद्धि इन कलाओं का उपयोग करने में दक्ष एवं प्रवीण होती है।वह समस्याओं को अनियंत्रित होने से पहले ही नियंत्रण में लाने के लिए सजग एवं सतर्क रहती है।ऐसे व्यक्ति रचनात्मकता के पक्षधर होते हैं।कुछ अच्छा करने में विश्वास रखते हैं,साथ ही इसको करने में आने वाले अवरोधों का सामना करने के लिए युक्ति एवं योजना बनाते हैं।अतः ऐसी बुद्धि अपने कर्मक्षेत्र में असफलता से निराश नहीं होती,बल्कि उसका उचित कारण खोजती है।अपनी असफलता पर खुले मन से मूल्यांकन करती है,चिंतन करती है।जहां भी त्रुटियां एवं गलतियां दिखाई देती हैं,उन्हें सदैव दूर करने का प्रयास करती है।
- एस० ब्रायन के अनुसार सफल बुद्धि संवेदनात्मक भावबोध को स्वीकार करती है,क्योंकि बुद्धि से भाव-शक्ति कहीं गहरी होती है तथा उसकी दक्षता एवं प्रेरणा भी अत्यधिक सशक्त होती है।मनुष्य विचारशील ही नहीं,संवेदनशील भी है।बुद्धि-सतह से एक ओर जहां चिंतन चेतना फूटती है,वहीं दूसरी ओर भावना के धरातल पर उदारता,सज्जनता,संयमशीलता एवं शालीनता पनपती,विकसित होती है।अतः एस० ब्रायन की मान्यता है कि बुद्धि के साथ भावना का पुट व्यक्तित्व का गठन करता है और व्यक्तित्व सर्वांग सुंदर बनता है।
- केवल बुद्धि से मनुष्य क्षुब्ध,चिंतित,खिन्न रुष्ट एवं असंतुष्ट रहता है।संवेदना की सरसता ही जिंदगी को हंसाती,मुस्कुराती,हल्की-फुल्की,सुखी-संतुष्ट बना सकती है।बौद्धिक कुशलता व्यक्ति को कितना ही सफल क्यों न बना दे,अंदर के गहरे अभाव एवं उद्विग्न अतृप्ति को मिटा नहीं पाती।इसी कारण भगवान व्यास जी अनेक तर्कसंगत धार्मिक ग्रंथो का लेखन करने के बावजूद आंतरिक शांति से वंचित थे।नारद जी के सद्परामर्श से भावपूर्ण भागवत पुराण की रचना के पश्चात ही उन्हें उस भावनात्मक अभाव से महाभाव की प्राप्ति हुई।आज भी बौद्धिक कौशल से संपन्न मानवीय जीवन इसी अतृप्ति की महाव्यथा से व्यथित है।
इसे केवल भावना की ठंडी छाँह ही शीतलता प्रदान कर सकती है।मानव जीवन की समस्त समस्याएं बुद्धि से नहीं हल हो सकतीं,इसके लिए हृदय की आवश्यकता होगी।बुद्धि के साथ-साथ हृदय को भी पवित्र एवं पावन बनाओ,उसे आधिकारिक संस्कारित बनाओ।वह हृदय ही है,जिसके द्वारा भगवान स्वयं कार्य करते हैं और बुद्धि द्वारा केवल मनुष्य।विचार-शक्ति के साथ भावशक्ति की भी उतनी ही आवश्यकता है।भाव एवं विचार के इस संयोग संबंध को ही सद्बुद्धि कहते हैं,जिसे आधुनिक मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमेन एवं अन्य मनीषी ई०क्यू० के नाम से पुकारते हैं।हालांकि ई०क्यू० सद्बुद्धि का पर्याय तो नहीं हो सकती,परंतु इसमें सद्बुद्धि की झलक-झाँकी मिलती है।
4.सद्बुद्धि की महत्ता (The Importance of Wisdom):
- आज बुद्धि की नहीं,सद्बुद्धि की महत्ता एवं विशेषता अधिक है,क्योंकि बुद्धि खंडन करती है,विरोध एवं विवाद करती है।बुद्धि आलोचना करती है।सद्बुद्धि समालोचना एवं संवाद करती है।बुद्धि की दृष्टि भेद की दृष्टि है।वह सदा भेद व विभाजन को खोजती है,जबकि सद्बुद्धि का दृष्टिकोण अभेद है।वह बुद्धि द्वारा विभाजित खाइयों को पाटती है और उसके परे एवं पार पहुंच जाती है।बुद्धि का आधार विश्लेषण है और सद्बुद्धि का आधार संश्लेषण है।बुद्धि सीमाएं खींचती है,सद्बुद्धि सीमाएं मिटाती है और जब सभी सीमाएं मिट जाती है तो उस असीम भावबोध की उपलब्धि होती है।बुद्धि चालाकी करती है और सद्बुद्धि समझदारी करती है।बुद्धि संसार में कुशलता का नाम है तो सद्बुद्धि परमात्मा में कुशलता का पर्याय है।भगवान बुद्ध का घर-परित्याग सद्बुद्धि के अनावरण की महान घटना है,परंतु आज एक ऐसी बुद्धि की आवश्यकता है,जिसकी गति संसार में उतनी ही हो,जितनी की भगवान में।इसे विवेक-बुद्धि कहते हैं,जिसमें सर्वांगीण एवं परिपूर्ण व्यक्तित्व का सूत्र समाहित है।
- मानव समाज को आज ऐसी सद्बुद्धि की आवश्यकता है,जो वैयक्तिक जीवन को परिष्कृत करे एवं समाज को भी विकसित करे,जिससे आंतरिक एवं बाह्य,दोनों जीवन पूर्णता प्राप्त करें-चाहे उसे सफल बुद्धि,संवेगात्मक बुद्धि या सद्बुद्धि के नाम से क्यों न जाने,जिसमें विकृति नहीं,संस्कृति पनपे तथा विचार के साथ भावना का भी सम्मान हो।इसी सद्बुद्धि से मानव एवं विश्व का भाग्य-भविष्य उज्ज्वल हो सकता है।अतः इस सद्बुद्धि का अर्जन ही युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
5.बुद्धि तीन गुणों से प्रभावित (Wisdom influenced by three qualities):
- हमारी बुद्धि सत,रज और तम इन गुणों से प्रभावित और ग्रस्त रहती है।जो व्यक्ति माया के प्रपंच से अलिप्त रहकर अनासक्त भाव से अपने कर्त्तव्यों का धर्मानुसार आचरण करते हुए परोपकार करने में भी तत्पर रहते हैं ऐसे श्रेष्ठ,सात्विक एवं स्थित-प्रज्ञ व्यक्ति की बुद्धि सतोगुणी होती है,इसे सद्बुद्धि,सद्ज्ञान,विवेक आदि भी कहा जा सकता है।
- जो व्यक्ति अपना भला करते हुए सबका भी भला करते हैं और सांसारिक सुख भोगों को भोगने के लिए प्रयत्नशील बने रहते हैं,किसी को दुःख नहीं देते और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीते हैं ऐसे व्यक्ति रजोगुणी एवं चंचल बुद्धि के होते हैं।
- जो अपने सुख और लाभ के लिए दूसरों को दुःख व हानि पहुंचाते हैं और अपना ही स्वार्थ सिद्ध करने में जुटे रहते हैं ऐसे व्यक्ति तमोगुणी और दुष्ट बुद्धि के होते हैं।
- और कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो दूसरों को अकारण ही दुःख व हानि पहुंचाते रहते हैं और इसी में आनंद का अनुभव करते हैं,ऐसे लोग किस प्रकार के गुण और बुद्धि के होते हैं यह हम भी नहीं जानते हैं।
- सतोगुणी बुद्धि ही स्थिर बुद्धि होती है और स्थिर बुद्धि से ही सदाचार का पालन करना,अच्छे गुणों को धारण करना संभव है।अतः सतोगुण को ही धारण और सक्रिय करने का प्रयास करते रहना चाहिए।जब तक सफलता न मिले तब तक धैर्यपूर्वक सतत प्रयत्नशील बने रहना चाहिए।एक न एक दिन सफलता मिल ही जाएगी।सतोगुण धारण करने के कितने लाभ हैं यह तो धारण करने पर अपने आप ही महसूस किया जा सकता है।बुद्धि सतोगुण,रजोगुण और तमोगुण से प्रभावित रहती है।जब यह तमोगुण से प्रभावित होती है तो खोटे,निकृष्ट और पापपूर्ण कर्म करने के लिए प्रेरित करती है।
6.आज के छात्र-छात्राओं की बुद्धि (The Wisdom of Today’s Students):
- उपर्युक्त विवरण से बुद्धि और सद्बुद्धि का फर्क समझ में आ गया होगा।आजकल के हालात को देखते हुए यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि हमारी चालाकी का नाम बुद्धि है और सद्बुद्धि नाम है समझदारी का।चालाकी (conningness) और समझदारी (wisdom) में बहुत फर्क है इसलिए दुनिया में जितनी बुद्धिमानी बढ़ रही है उतनी चालाकी भी बढ़ रही है।
- आज के शिक्षण संस्थानों में अधिकांश छात्र-छात्राएं चालाक होकर ही निकल रहे हैं विवेकवान होकर नहीं,डिग्रीधारी (Qualified) होकर निकल रहे हैं एजुकेटेड (educated) होकर नहीं।इसलिए आज के युवा और छात्र-छात्राएं (अधिकांश) चालाक,अहंकारी,पाखंडी और बेईमान हो गए हैं।दूसरों को मूर्ख बनाने और शोषण की कला में बहुत कुशल हो गए हैं।जाॅब या नौकरी प्राप्त करने के लिए जायज-नाजायज सभी तरीके व हथकण्डे अपनाते हैं।रिश्वतखोरी,घूस,पेपर चुराना,अपनी जगह दूसरों को बिठाकर परीक्षा उत्तीर्ण करने के तरीके अपनाकर येनकेन प्रकारेण जाॅब तथा नौकरी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
- पकड़े जाने पर उनकी मान-मर्यादा भंग होगी,सजा होगी,जिंदगी बर्बाद हो जाएगी इसकी वे तनिक भी परवाह नहीं करते।छोटे रास्ते से,बिना परिश्रम के सफल होने का प्रयास करते हैं।अनपढ़ लोगों के बजाय ज्यादा धूर्तता,कामचोरी,पाखंडी और चालाक हो गए हैं।जीवन की शुरुआत ही गलत ढंग से कर रहे हैं तो आगे जिंदगी में कितने छल,प्रपंच,झूठ,पाखंड,फरेब में गुजरेगी ही।इन सब कार्यों को करने का उन्हें तनिक भी मलाल नहीं होता है क्योंकि चारों ओर ऐसे लोगों की भरमार है इसलिए उन्हें अपराधबोध नहीं होता है।जेल से निकलने पर ऐसे लोगों का इस तरह स्वागत किया जाता है जैसे कोई महाननायक निकल रहा हो।किशोर,नवयुवाकाल और छात्र-जीवन मौज-मस्ती,दायित्व और कर्त्तव्यपरायणता की अवहेलना करके,अय्याशी,अपराधी प्रवृत्ति तथा सुखपूर्वक गुजारा तो यह अच्छी शुरुआत नहीं होगी क्योंकि इससे हमारा शेष जीवन इन्हीं कुकर्मों में व्यतीत होता जाएगा।
- होना तो यह चाहिए की जितने शिक्षित होते,जितने बुद्धिमान होते उतने ही विनम्र,सरल,विद्यावान और सदाचारी होते पर इसका उलटा ही हो रहा है।जहां सद्बुद्धि,सांसारिक व्यवहार कुशलता और सफलता देता है वहाँ चालाकी वाली बुद्धि उलझन,दिखावा,तिकड़मबाजी,तनाव,छल-कपट और नाना प्रकार के अन्य अवगुणों को करने की प्रेरणा देती है जबकि सद्बुद्धि समझदारी,दायित्व बोध,सुकर्म,ईमानदारी,तत्त्वज्ञान,आध्यात्मिक शक्ति,मन की शांति और भगवान के प्रति प्रेम करने की प्रेरणा देती है।
- हालांकि यह गलत काम करने में युवाओं,छात्र-छात्राओं का इतना दोष नहीं है क्योंकि वे वातावरण,साथ-संगत में ऐसा ही करते हुए देखते हैं और सीखते हैं।शिक्षण संस्थानों से सदाचार ग्रहण करने की शिक्षा मिलती नहीं है उल्टे अधिकांश शिक्षक भी ऐसे ही रंग में रंगे हुए हैं।प्रबुद्ध,समझदार,माता-पिता तथा स्वयं छात्र-छात्राओं को यह प्रयास करना होगा कि वे अच्छी शुरुआत करें,अच्छी शिक्षा ग्रहण करें,अच्छे आचार-विचार का पालन करें।अच्छे आचार-विचार का पालन करने में शुरुआत में कठिन परिश्रम करते हुए,असुविधाओं को झेलते हुए और कठोर अनुशासन में गुजारा तो बाद का जीवन सुखपूर्ण रहेगा,इसे समझ लें।काश युवा पीढ़ी इस मुद्दे पर ध्यान दें,इसके महत्त्व और दूरगामी परिणामों को जान समझ लें तो उनके भावी जीवन की गति सुधर जाए वरना उन्हें दुर्गति से कोई बचा न सकेगा।इस मुद्दे पर नए सिर्फ विचार करें बल्कि अपने जीवन के भले के लिए इस सलाह पर अमल भी करें।
- उपर्युक्त आर्टिकल में बुद्धि के बजाय सद्बुद्धि की महत्ता (Importance of Wisdom Rather Than Sense),बुद्धि और सद्बुद्धि में भेद (Distinction Between Sense and Wisdom) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:Students Should Use Wisdom in Practice
7.टीचर जोर से कब बोलते हैं? (हास्य-व्यंग्य) (When Does Teacher Speak Loudly?) (Humour-Satire):
- राजेश:तुम्हारे टीचर धीरे कब बोलते हैं?
- मकरध्वज:जब उन्हें कोई सवाल हल करना नहीं आता।
- राजेश:तुम्हारे टीचर जोर से कब बोलते हैं?
- मकरध्वज:जब उन्हें सवाल का हल अच्छी तरह से याद होता है।
8.बुद्धि के बजाय सद्बुद्धि की महत्ता (Frequently Asked Questions Related to Importance of Wisdom Rather Than Sense),बुद्धि और सद्बुद्धि में भेद (Distinction Between Sense and Wisdom) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.बुद्धिमत्ता क्या है? (What is wisdom?):
उत्तर:अच्छी तरह सोचना बुद्धिमता है,अच्छी योजना बनाना उत्तम है और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमता है।
प्रश्न:2.उत्तम और निकृष्ट कार्य के बारे में बताएं। (Tell us about the best and worst work):
उत्तर:बुद्धि से विचार कर किए जाने वाले कार्य श्रेष्ठ होते हैं,केवल बाहुबल के सहारे होने वाले मध्यम श्रेणी के।विचार और उत्साहितरहित केवल पैरों के भरोसे होने वाले कार्य निकृष्ट होते हैं जो भाररूप हैं।
प्रश्न:3.मनुष्यता से कोई कैसे गिर जाता है? (How can one fall from humanity?):
उत्तर:जिस मनुष्य की बुद्धि का विकास नहीं होता अथवा जो बुद्धिद्रोही या अविवेकी होता है वह मनुष्यता से गिर जाता है।
प्रश्न:4.मनुष्य के पास श्रेष्ठ चीज क्या है? (What is the best thing that man has?):
उत्तर:मनुष्य के पास बुद्धि और बल से बढ़कर श्रेष्ठ कोई दूसरी चीज नहीं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा बुद्धि के बजाय सद्बुद्धि की महत्ता (Importance of Wisdom Rather Than Sense),बुद्धि और सद्बुद्धि में भेद (Distinction Between Sense and Wisdom) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.