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How to Improve Maths Students Outlook?

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1.गणित के छात्र-छात्राएं दृष्टिकोण में सुधार कैसे करें? (How to Improve Maths Students Outlook?),छात्र-छात्राएँ दृष्टिकोण को परिष्कृत कैसे करें? (How to Refine Students Approach?):

  • गणित के छात्र-छात्राएं दृष्टिकोण में सुधार कैसे करें? (How to Improve Maths Students Outlook?) छात्र-छात्राएं एक ही परिस्थिति में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण रखते हुए पाए जाते हैं।कारण स्पष्ट है कि एक छात्र सकारात्मक दृष्टिकोण से देखता है जबकि दूसरा छात्र उसी परिस्थिति को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखता है।हरेक छात्र-छात्रा का देखने का अपना-अपना नजरिया है।दूसरों में दोष देखने,कमी ढूंढने वाले छात्र-छात्राओं को हर कहीं कमी,बुराई और ओछापन व समस्याएं एवं कठिनाई ही दीख पड़ती है।न वह स्वयं शांति से अध्ययन करता है और न दूसरों को शांति से अध्ययन करने देता है।स्वयं भी ईर्ष्या-द्वेष से ग्रस्त रहता है तो दूसरे छात्र-छात्राओं के मार्ग में भी अड़चनें खड़ी करता रहता है ताकि वे शांति से अध्ययन न कर सकें।ऐसे छात्र-छात्राएं घर,परिवार,समाज और विद्यालय में उत्पात करते रहते हैं और अशांति का वातावरण बनाए रहते हैं।
  • जब छात्र-छात्राएं अपना दृष्टिकोण बदल लेता है अर्थात् अपने अन्तःकरण की ओर दृष्टि डालकर संसार को देखता है तो सब कुछ अलग तरीके से दिखाई देने लगता है।जब हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है तो परिस्थिति भी बदलती चली जाती है।दृष्टिकोण सकारात्मक होगा तो हमें चारों ओर अपने सहयोगी नजर आएंगे।
  • दूसरों में दोष देखने,मीन-मेख निकालने से हमारा खुद का ही अधिक अहित होगा।हमारी एकाग्रता भंग होगी,मन उद्विग्न,चिन्तित,असन्तुष्ट और अविश्वासी होगा।फलतः अध्ययन कार्य को 100% योगदान के साथ नहीं कर सकेंगे।कदम-कदम पर असफलता मिलेगी।परीक्षा में कम अंक प्राप्त होंगे। जाॅब मिलने में भी परेशानी होगी क्योंकि आजकल जाॅब भी उन्हीं को दिया जाता है जो योग्य,कुशल व सदाचारी हों।
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2.छात्र-छात्राएं दृष्टिकोण को परिष्कृत करें (Refine the Approach of Students):

  • यदि आप अध्ययन में अव्वल आना चाहते हैं,योग्यता अर्जित करना चाहते हैं,शिक्षित होना चाहते हैं,किसी कार्य में कुशल होना चाहते हैं तो अपने दृष्टिकोण को सुधारों।अपने मन को निर्मल,विकार रहित,पवित्र बनाओ,दूसरों में अकारण दोष दर्शन करना छोड़ दो।
  • महान गणितज्ञों,महान वैज्ञानिकों और महापुरुषों बुद्ध,महावीर,महात्मा गांधी,विनोबा भावे,रामकृष्ण परमहंस के जीवन से भी हमें यही प्रेरणा मिलती है कि किसी में बुराई मत देखो,सभी में अच्छाई देखो और उन्हीं को बढ़ावा दो।ये महामानव शुरू में साधारण मानव थे परंतु दृष्टिकोण को परिवर्तित करते ही महामानवों की पंक्ति में खड़े हो गए।
  • सकारात्मक दृष्टिकोण से दूसरों को देखने,दूसरों की प्रशंसा करने से दूसरों का भला तो होगा ही आपका भी भला होगा।क्योंकि ज्योंही आपका दृष्टिकोण उदार,सात्त्विक,पवित्र,मन में सद्भावना व सात्त्विक बनेगा तो अन्य छात्र-छात्राएं,शिक्षक तथा लोग भी आपके अध्ययन में आने वाली कठिनाइयों,समस्याओं को हल करने के लिए सहायता हेतु तत्पर रहेंगे।
  • दूसरा फायदा यह होगा कि अध्ययन के प्रति आपकी एकाग्रता बढ़ेगी क्योंकि सत्य,अनुशासन,समय का सदुपयोग,कठिन परिश्रम जैसे सद्गुण छात्र-छात्राओं में तभी पनपते हैं जब आपका दृष्टिकोण सकारात्मक व सात्त्विक होगा।
  • अध्ययन में आने वाली कठिन से कठिन व जटिल से जटिल समस्या को भी हल कर पाओगे।यही वह कुंजी है जिसके आधार पर व्यक्तित्त्व प्रखर,तेजस्वी बनता है और निखरता है।
  • आप अध्ययन काल से ही,विद्यार्थी काल से ही,बचपन से ही सद्गुणों को धारण करोगे,मनन-चिंतन करोगे,उन्हें अपने व्यवहार में उतारोगे तो सफलता,प्रगति,उन्नति और विकास क्यों नहीं होगा? आप मनोबल से सुदृढ़,संकल्पशक्ति से सम्पन्न है तो प्रतिकूलताएँ धीरे-धीरे अनुकूलता में बदलती जाएगी।
  • यदि मन के दरवाजे को खुला छोड़ दोगे,मन पर सतत होशपूर्वक निगरानी नहीं रखोगे,मन पर नियन्त्रण नहीं होगा तो अध्ययन करना तो बहुत दूर की बात है आपके अंदर राग-द्वेष,कुविचार,नकल करने,लड़ाई-झगड़ा करने जैसे अनेक विकार घुस जाएंगे और जड़ जमा लेगें।
  • हमेशा होशपूर्वक रहकर मन की चौकसी करनी होगी,विचारों पर नजर रखनी होगी,अपने आपकी समीक्षा करनी होगी।प्रतिदिन सोते समय दिनभर की गतिविधियों पर नजर दौड़ाएं कि क्या गलत किया है,क्या सही किया है।समय का दुरुपयोग किया है या नहीं,कौन-कौन सी गलतियां की है और उन्हें कैसे सुधारना है।
  • अध्ययन के लिए जो लक्ष्य तय किया था उसको पूरा कर पाए हैं या नहीं,अध्ययन में कौन-कौनसी समस्याएं एवं जटिलताएं सामने आई हैं जिन्हें हल नहीं कर पाए हैं और अब उनको कैसे हल करना है? मन नशीली चीजों का सेवन करने की तरफ तो नहीं जाता है न,समय-असमय सोशल मीडिया पर तो नहीं बिताया जाता है आदि।इस प्रकार दिनभर की समीक्षा करने और उनको दूर करने के उपाय करने पर दृष्टिकोण सुधरेगा,आदतें और संस्कार बदलेंगे।
  • बुरे विचार,बुरी भावनाएं जैसे लड़ाई-झगड़ा करना,अनावश्यक वाद-विवाद करना,परीक्षा में नकल करने का विचार करना,शिक्षकों से उलझना,नशे और मादक द्रव्यों का सेवन करना आदि के चंगुल में फंसना तो आसान है परंतु इनसे छुटकारा पाना बहुत कठिन है।
  • बुरी आदतों को अपनाने पर हम उनके गुलाम हो जाते हैं और उनके इशारे पर वैसी ही हरकतें करने लगते हैं।जैसे शहद में कीड़े-मकोड़े फँस जाते हैं और उससे छूटने के लिए छटपटाते रहते हैं।इसलिए मन के मालिक बन कर रहना,मन का सतत निरीक्षण करते रहना तथा सदगुणों को धारण करते रहना,सज्जनता व सरलता को अपनाने से आप अपने लक्ष्य को सहजता से ही प्राप्त कर लेते हैं।
  • आपकी उन्नति,उत्थान,विकास और प्रगति में सबसे बड़ी भूमिका होती है मनःस्थिति और दृष्टिकोण की।अध्ययन में मनोबल और दृष्टिकोण प्रबल सहायक है।
  • परिष्कृत दृष्टिकोण वाला विद्यार्थी अध्ययन में आनेवाली अड़चनों में धैर्य नहीं खोता है,दुःखी नहीं होता है।वह कठिनाइयों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत नहीं करता है।वह अध्ययन में आने वाली कठिनाइयों में रोता-झींकता नहीं है।वह तो शांत मनःस्थिति और सुधरे हुए दृष्टिकोण से उन पर विचार करता है।फिर अपनी पूर्णशक्ति,आत्मबल,धैर्य से अपनी कठिनाइयों को हल करने का भरपूर प्रयास करता है।वह कठिन परिश्रम और साहस से अपनी कठिनाइयों पर विजय पाकर ही दम लेता है।

3.दृष्टिकोण सुधारने से संबंधित अन्य बातें (Other Things Related to Improving Attitude):

  • छात्र-छात्राओं को यह सोचना चाहिए कि सब कुछ हमारे अनुकूल हो जाए यह संभव नहीं है।भगवान प्रत्येक छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति के जीवन में थोड़े-बहुत कष्ट-कठिनाईयाँ,अभाव अवश्य रख देता है।विवेकशील विद्यार्थी का सुधरा हुआ दृष्टिकोण ही उन कष्ट,कठिनाइयों व अभावों में सुखी-सन्तुष्ट रखता है।भगवान ने हमें जो कुछ दिया है उसके लिए उचित दृष्टिकोण रखनेवाला विद्यार्थी कृतज्ञता व्यक्त करता है।जो कुछ साधन-सुविधाएं मिली हुई है उनके बल पर ही वह कष्ट,कठिनाइयों व समस्याओं को हल करता है।
  • जबकि अविकवेकी छात्र-छात्रा और व्यक्ति नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण उपर्युक्त से उल्टा व्यवहार करता है।वह उसे जो सुख-सुविधाएं मिली हुई है उसे भुला देता है तथा हमेशा अभावों,कष्टों व कठिनाइयों से परेशान,उद्विग्न,दुःखी,असहाय बनकर सबके सामने अपना रोना रोता रहता है,विलाप करता है।वह स्वयं तो चिंता,द्वेष,ईर्ष्या और दुःख से पीड़ित रहता ही है साथ ही अपने साथ के छात्र-छात्राओं व व्यक्तियों को भी वैसा ही करने के लिए प्रेरित करता है।ऐसे छात्र-छात्रा व व्यक्ति कभी भाग्य को,कभी भगवान को,कभी किसी दूसरे छात्र-छात्रा व व्यक्ति को कोसते रहते हैं।उनकी अधिकांश शक्ति इन्हीं कार्यों में नष्ट होती रहती है।उनकी प्रतिभा और समय कोसते रहने,रोने-झींकने,बिलखने की प्रक्रिया में ही नष्ट हो जाती है।इसमें उन्हें लाभ के बजाय हानियाँ ही होती है।
  • हर छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति जीवन में सफलता,उन्नति,प्रगति व विकास करना चाहता है।परंतु ये तभी मिलती हैं जब वे अपने दृष्टिकोण की त्रुटियों को समझते हैं और उन्हें सुधारने का प्रयास करते रहते हैं।सुधरे हुए दृष्टिकोण से ही कम साधन-सुविधाओं और कठिन परिस्थितियों में भी वे अपने अध्ययन को जारी रखते हैं और सफलता अर्जित करते हैं तथा प्रगति करते हुए आगे बढ़ते जाते हैं।
  • सोचने वाली बात यह है कि क्या साधन-सुविधाएं जिन विद्यार्थियों के पास हैं क्या वे प्रतिभावान हैं,क्या वे हमेशा सफलता अर्जित करते हैं,क्या वे प्रगति और विकास करते जाते हैं? यदि इसका अवलोकन किया जाए और इसको सही माना जाए तो सभी धनाढ्य व्यक्तियों के पुत्र-पुत्रियां प्रतिभावान होते,सफल होते,प्रगति करते तथा निर्धन,असहाय व लाचार छात्र-छात्राएं प्रतिभा,उन्नति,प्रगति व विकास से वंचित रहते।
  • साधन-सुविधाओं के औचित्य से इनकार नहीं किया जा सकता है परंतु साधन-सुविधाएं ही हमारी समस्याओं व कठिनाइयों का निवारण नहीं कर सकती हैं।जैसे किसी विद्यार्थी के पास अध्ययन की पुस्तकों का अंबार लगा हुआ है।जो कोचिंग करने में भी सक्षम है।अच्छे स्कूल (अधिक फीस वसूल करने वाले स्कूल) में भी पढ़ता है,तो क्या इन साधन-सुविधाओं के बल पर वह अव्वल आ सकता है? दरअसल जब तक वह कठिन परिश्रम नहीं करेगा तब तक इन साधन-सुविधाओं का लाभ नहीं उठा सकता है।
  • इस संसार में धनिक व निर्धन छात्र-छात्राओं की कठिनाइयों व समस्याओं के स्वरूप में भिन्नता है।परन्तु अध्ययन में कष्ट,कठिनाइयां समस्याएं दोनों के सामने ही आती हैं।निर्धन छात्र-छात्राएं अभावों,सुख-सम्पत्ति,साधन-सुविधाओं के न होने से परेशान रहते हैं जबकि अमीर छात्र-छात्राएं सुख-सम्पत्ति,साधन-सुविधाओं के होते हुए भी कठिन परिश्रम,अध्ययन करने से जी चुराते हैं।
  • जो छात्र-छात्राएं अपनी मनःस्थिति और दृष्टिकोण को परिष्कृत कर लेते हैं वे पढ़-लिखकर अपनी तरक्की व प्रगति करते जाते हैं।परंतु साधन-सुविधाएं होते हुए भी जो छात्र-छात्राएं अपनी मनःस्थिति व दृष्टिकोण को परिष्कृत नहीं करते हैं वे अध्ययन में पिछड़ जाते हैं,वे अध्ययन को बोझ समझते हैं।

4.दृष्टिकोण को सुधारने से संबंधित मुख्य बातें (Key Points Related to Improving the Approach):

  • (1.)उपलब्ध साधन-सुविधाओं में सुखी-सन्तुष्ट रहने वाला विद्यार्थी ही अध्ययन को श्रेष्ठ तरीके से संपन्न कर सकता है।निर्धन छात्र-छात्राएं भी थोड़े से सुख-साधनों से उच्च पदों को प्राप्त कर लेते हैं,अच्छा जाॅब प्राप्त कर लेते हैं।सुख-सम्पत्ति तथा साधन-सुविधाओं वाले छात्र-छात्राएं भी सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं,मनःस्थिति सही रखते हैं,मेहनती हैं तो अध्ययन में सफलता अर्जित कर लेते हैं।
  • (2.)सज्जनता,परिष्कृत व्यक्तित्त्व वाले छात्र-छात्राएं अपने आपमें प्रसन्न,संतुष्ट और सम्मान अर्जित कर लेते हैं।जबकि तथाकथित शिक्षा (डिग्री धारण करने वाले) अर्जित करने वाले शिक्षित छात्र-छात्राएं दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं उनके बजाय तो बिना पढ़े-लिखे अपना जीवनयापन ठीक से कर लेते हैं और सुखी-संतुष्ट रहते हैं।
  • (3.)विद्यालयों में साधन-सुविधाएं तथा शिक्षा के केंद्र बढ़ाने के उपाय किए जा रहे हैं और शिक्षा को ही हर समस्या का हल समझा जाता है।परंतु यह अतिवादी दृष्टिकोण है।विद्यालय में साधन-सुविधाओं और शिक्षा की वृद्धि और व्यवस्था करनी चाहिए,ऐसे प्रयत्नों के लिए कोई भी इनकार नहीं करेगा।इनकी उपयोगिता और महत्त्व है।पर इतना होने पर भी उनका उतना ही महत्त्व समझा जाना चाहिए जितना कि वास्तव में है।समस्याएं व कठिनाइयां न साधन-सुविधाओं व न शिक्षा की उपलब्धता से उत्पन्न होती है।उनका मूल कारण है व्यक्तित्त्व का स्तर गिरना,नकारात्मक दृष्टिकोण का होना,मनःस्थिति ठीक नहीं होना आदि।अभाव व अशिक्षा को व्यक्तित्त्व की गिरावट का एक ओर कारण गिना जा सकता है परंतु सारा दोष इन्हीं पर थोपना और इन्हीं उपलब्धियों के सहारे उज्जवल भविष्य का स्वप्न देखना,कठिनाइयों के हल की बात सोचना निरर्थक है।
  • (4.)यथार्थवादी दृष्टिकोण रखते हुए छात्र-छात्राओं को अध्ययन में आने वाली कठिनाइयों व समस्याओं के स्वरूप को समझने का प्रयत्न किया जाए तो भौतिक-सुविधाओं से ही विपत्तियाँ उत्पन्न नहीं होती है परंतु उनका मुख्य कारण अपरिपक्व व्यक्तित्त्व व ओछा दृष्टिकोण है।चिन्तन-मनन न करने से छात्र-छात्राओं के आचरण ऐसे विचित्र बन जाते हैं,उसके आश्चर्यजनक कुतूहल आए दिन सामने आते रहते हैं।जैसे छात्र-छात्राओं द्वारा आंखों की पुतलियों को छिदवाना।हाथ-पैरों पर टैटू बनवाना इत्यादि।यह सब चिन्तन व दृष्टिकोण के स्तर का गिर जाना ही है।
  • (5.)स्वास्थ्य,धन-संपत्ति,साधन-सुविधाओं,सहयोग आदि का महत्त्व तो है पर यह भी निश्चित है कि यदि व्यक्तित्त्व व दृष्टिकोण ओछा हो तो ये सुविधाएं जितनी मात्रा में मिलेंगी उतना ही उनका अधिक दुरूपयोग होने की संभावना बढ़ जाएगी।
  • (6.)यदि संपूर्ण स्थिति की समीक्षा की जाए तो छात्र-छात्राओं के अध्ययन में आने वाली समस्याओं,व्यक्तियों के जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान एक मात्र यही प्रतीत होगा कि वे अपनी चेतना की अनुभूति करें,अपने अंदर झांके,अपना आत्म-निरीक्षण,अपना दृष्टिकोण परिष्कृत करें।इसके बिना प्रगति के लिए किए जाने वाले प्रयत्न हमें मृगतृष्णाओं में ही भटकाते रहेंगे।

5.दृष्टिकोण का दृष्टान्त (Illustration of Point of View):

  • दो विद्यार्थियों ने गणित ऐच्छिक विषय ले रखा था।दोनों एक ही विद्यालय में पढ़ते थे।लगभग उनकी परिस्थिति समान थी।दोनों जुड़वा भाई थे।परन्तु दोनों के दृष्टिकोण में अन्तर था इसलिए परिस्थिति भी अलग हो जाती है।जब देखने का नजरिया ही अलग हो तो समान परिस्थिति को भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से ही देखा जाएगा।
  • छोटा भाई कड़ी मेहनत करता था तथा बड़े भाई को भी कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करता था परन्तु वह परिस्थितियों का,भाग्य का रोना रोता रहता था। परीक्षा हुई तो बड़ा भाई फेल हो गया और छोटा भाई अच्छे अंको से उत्तीर्ण हो गया।
  • बड़े भाई ने सोचा अनुत्तीर्ण होने से मित्रों में,परिवार में व समाज में बदनामी होगी,मेरी इज्जत धूल में मिल जाएगी।घरवाले तथा अन्य लोग मेरा तिरस्कार करेंगे,इस प्रकार उसका मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया।उसने अपने मन में न जाने क्या-क्या कुकल्पनाएंँ सोच ली? परिणाम यह हुआ कि वह घर से भाग गया।घर से भागने के बाद वह गुंडों-बदमाशों की संगत में रहने लगा और गुंडागर्दी करना सीख गया।
  • उसके माता-पिता शिक्षित और पढ़े-लिखे थे उन्होंने उसको बहुत समझाया परंतु लाइन पर नहीं आया।एक बार लाइन से उतर जाने पर लाईन पर आना बहुत कठिन होता है।वह नामी हिस्ट्रीशीटर बन गया और एक दिन उसके गिरोह में फूट पड़ गई।गिरोह के एक लड़के ने ही उसकी हत्या कर दी।
  • छोटा भाई पढ़ने में कुशाग्र था।उसने गणित से उच्च डिग्री हासिल कर ली और प्राध्यापक बन गया।सम्मान का जीवन जी रहा है और छात्र-छात्राओं को तन-मन से पढ़ाता है।समर्पण और श्रद्धा के भाव से पढ़ाता है।उसके पढ़ाए हुए कई छात्र-छात्राएं आज उच्च पदों पर पहुंच चुके हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित के छात्र-छात्राएं दृष्टिकोण में सुधार कैसे करें? (How to Improve Maths Students Outlook?),छात्र-छात्राएँ दृष्टिकोण को परिष्कृत कैसे करें? (How to Refine Students Approach?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित की पुस्तक को खाना और चाटना (हास्य-व्यंग्य) (Eating and Licking a Math Book) (Humour-Satire):

  • पिता (राजू की शरारत से तंग आकर):राजू तुम गणित नहीं पढ़ रहे हो,शरारत कर रहे हो।तुम्हें चांटा खाना है क्या?
  • पुत्र:नहीं पिताजी,आज गणित के अध्यापक जी ने कहा है कि यदि तुम्हें गणित में उत्तीर्ण होना है तो इस गणित की पुस्तक को खा जाओ,पूरी तरह से चांट डालो।इसके अलावा कुछ भी खाने से मना किया है।

7.गणित के छात्र-छात्राएं दृष्टिकोण में सुधार कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Improve Maths Students Outlook?),छात्र-छात्राएँ दृष्टिकोण को परिष्कृत कैसे करें? (How to Refine Students Approach?) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.उत्कृष्ट दृष्टिकोण से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Excellent Approach):

उत्तर:संसार में भलाई और बुराई,हानि-लाभ,प्रिय-अप्रिय का अस्तित्व है और वह बना ही रहने वाला है।हमें किसी का भी प्रभाव अपने ऊपर ऐसा नहीं पड़ने देना है चाहिए जो मानसिक संतुलन बिगाड़कर ही चिंतन में अपंग असमर्थ बनाकर रख दे।लाभ का,सुविधा-संपत्ति का उपयोग यह है कि सफलता देखकर उत्साह प्राप्त करें और उपलब्धियों का अधिकाधिक सदुपयोग करके उनसे अपने संपर्क क्षेत्रों को लाभान्वित करें।हानि-विपत्ति या विकृति आने पर उससे दूसरी प्रकार का लाभ लिया जाना चाहिए।सोचा जाना चाहिए कि क्या भूलें या दुर्बलताएं इस कठिनाई में कुछ कारण तो नहीं रही हैं? यदि रही हों तो इस प्रमाद को अविलंब हटा देने में तत्परता बरतनी चाहिए ताकि वैसी असफलता की पुनरावृत्ति भविष्य में न हो,वास्तव में ठोकर लगने का दण्ड भविष्य में अधिक सतर्कता बरतने की चेतावनी देता है।यदि ठोकर से एक कड़वा पाठ पढ़ा जा सके तो उसे भविष्य में सत्परिणाम देने वाला सस्ता सौदा ही कहा जा सकता है।

प्रश्न:2.मानसिक दुर्बलता से कैसे बचें? (How to Avoid Mental Infirmity?):

उत्तर:यदि सोचने का तरीका सही हो तो हर परिस्थिति में अनुकूलता सोची जा सकती है और संतुलन बनाए रखा जा सकता है।मानसिक दुर्बलता विक्षोभ का प्रधान कारण होती है।मनस्वी व्यक्ति संकट में ओर अधिक जागरूकता का परिचय देते हैं ताकि उनका मानसिक संतुलन बना रहे।

प्रश्न:3.जीवन का स्वरूप कैसे बनता है? (How is Life Formed?):

उत्तर:विचारों और कृतित्व से जीवन का निर्माण होता है।अपने दृष्टिकोण के आधार पर ही जीवन का बाह्य स्वरूप बना है और आन्तरिक स्तर का निर्माण होता है।सोचने के गलत ढंग से असफलता व सही चिन्तन से सफलता मिलती है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के छात्र-छात्राएं दृष्टिकोण में सुधार कैसे करें? (How to Improve Maths Students Outlook?),छात्र-छात्राएँ दृष्टिकोण को परिष्कृत कैसे करें? (How to Refine Students Approach?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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