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How to educate by imitation in hindi

1.अनुकरण द्वारा शिक्षित कैसे करें का परिचय (Introduction to How to educate by imitation),शिक्षण की अनुकरण विधि क्या है का परिचय (Introduction to What is imitation method of teaching?):

  • अनुकरण द्वारा शिक्षित कैसे कैसे करें (How to educate by imitation)।इसके तीन तरीके हैं। महात्मा कन्फ्यूशियस के अनुसार बुद्धिमान होने तथा सीखने के तीन तरीके है:गहन चिन्तन तथा मनन से,दूसरों को देखकर तथा अपने अनुभव से सीखकर।
  • एक दूसरा तरीका ओर है महात्मा कन्फ्यूशियस से मिलता जुलता है। वह इस प्रकार है:दुनीया में मनुष्य तीन मार्गों से ज्ञान प्राप्त करता है। पहला मार्ग है चिन्तन और मनन का जो सबसे उत्तम और आदर्श है। दूसरा मार्ग है दूसरो का अनुकरण और नकल करने का जो सबसे आसान है। और तीसरा मार्ग है अपने निजी अनुभवों का जो सबसे कठिन है।
  • तीसरा मेथड निम्न प्रकार है:”तीन से बुद्धिमान और विवेकवान बना जा सकता है। ज्ञानी विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से सीखते हैं, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से सीखते है।
  • एक दृष्टि से देखा जाए तो कोई भी मार्ग सरल और सीधा-सपाट नहीं है। क्योंकि अनुकरण से अच्छी तथा बुरी बाते सीखी जा सकती है। बुरी बातों से सीखने पर बुद्धिमान और विवेकवान नहीं हुआ जा सकता है।इसलिए अनुकरण में भी चिन्तन-मनन और सोच-विचार करना होगा तभी बुरी बातों से बचा जा सकता है और बुद्धिमान हुआ जा सकता है।स्वयं के अनुभव से भी सीखने मे खतरा है। जैसे कोई व्यक्ति कहता है कि जहर खाने व्यक्ति मर जाता है,इसे मान ही लेना चाहिए तथा दूसरों के अनुभव का उपयोग करना चाहिए। वरना स्वयं अनुभव करने से व्यक्ति की इहलीला समाप्त हो सकती है, जान जा सकती है।
  • इस वीडियो में बताया गया है कि सशक्त मनोबल वाले बालक-बालिकाएं अनुकरण द्वारा अच्छी बातें सीखते हैं। जबकि दुर्बल या कमजोर वाले विद्यार्थी अच्छी बातें कम बल्कि बुरी बातें अधिक सीखतें है।

how to educate by imitation in hindi || what is imitation method of teaching


via https://youtu.be/v3I4kUHaf0c

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2.अनुकरण द्वारा शिक्षित कैसे करें?(How to educate by imitation in hindi),शिक्षण की अनुकरण विधि क्या है? (What is imitation method of teaching?):

  • जनसाधारण या सामान्य व्यक्ति और विद्यार्थी अनुकरण द्वारा सीखते हैं अर्थात् किसी की देखा-देखी सीखने का उनका स्वभाव होता है।देखा-देखी सीखने के दोनों तरह के उदाहरण देखने को मिलते हैं।जो कमजोर मनोबल के होते हैं वे गलत तरीके वाले विद्यार्थियों का अनुकरण करके चोरी,बेईमानी,परीक्षा में नकल करना,शिक्षकों तथा अपने साथियों से लड़ाई-झगड़ा करना सीख जाते हैं।ऐसे विद्यार्थी कठोर परिश्रम करना नहीं चाहते हैं और गलत रास्ता अपनाकर यानी नकल करके,प्रश्न-पत्र परीक्षा से पहले प्राप्त करने की जुगत लगाना,बिना परिश्रम किए अर्थात् बेईमानी,बदमाशी करके अच्छे अंको से उत्तीर्ण होने का प्रयास करना तथा बिना कर्मठता व पुरुषार्थ के ही वाहवाही लूटना क्योंकि परिश्रम करके सही रास्ता अपनाने पर सफलता देर से मिलती है परंतु उसमें आत्मिक संतोष प्राप्त होता है।
  • विद्यार्थियों को गलत कार्यों की तरफ जाने से रोकने के लिए उन महापुरुषों के उदाहरण दिए जाने चाहिए जिनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त हो सके।महापुरुषों के संपूर्ण जीवन वृत्तांत को न सुनाकर उन्होेंने अपने जीवन में जिन कठिनाइयों का सामना किया और उनका किस तरह अपने नैतिक बल से समाधान किया,वे ही दृष्टांत सुनाना चाहिए।जैसे अब्राहम लिंकन,गोपाल कृष्ण गोखले,स्वामी विवेकानंद इत्यादि।संसार में ऐसे मनस्वियों के उदाहरण भरे पड़े हैं जो सुदृढ़ता,परिपक्वता के आधार पर दूसरों के जीवन की दिशा व दशा को बदलने का माद्दा रखते हैं।
  • संस्थानों में इसी प्रकार के शिक्षकों का चयन करना चाहिए जिनका जीवन श्रेष्ठ हो तथा विद्यार्थी उनके पवित्र आचरण व जीवन का अनुकरण करके अपने आप को श्रेष्ठ बना सके।
  • प्रकृति का नियम है कि गिरना सरल हैं,उठना कठिन है।जैसे पर्वत पर चढ़ने में बहुत कठिनाई का सामना करना होता है,परिश्रम करना पड़ता है और पसीना बहाना पड़ता है तथा पर्वत पर से नीचे गिरना सरल है परंतु गिरने के पश्चात उस मनुष्य की क्या स्थिति होगी? यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।इसलिए शिक्षा संस्थानों में इस तरह के शिक्षकों का ही चयन करना चाहिए जिनका आचरण उत्तम तथा पवित्र हो।ऐसे शिक्षकों का चयन नहीं करना चाहिए जिनमें कुसंस्कार और बुरी प्रवृतियां हों क्योंकि अनुकरण द्वारा बालक सरलता से तत्काल अच्छी या बुरी बात को ग्रहण करते हैं।पतनोन्मुख प्रवृत्ति आकर्षक और तत्काल फल देने वाली प्रतीत होती है।
  • विद्यार्थी अथवा किसी भी मनुष्य पर उपदेश के बजाय आचरण का अधिक प्रभाव पड़ता है।इसलिए जिस प्रकार के मनुष्य के हम संपर्क में रहेंगे वैसी आदतें सीखते जाएंगे।हम सबसे अधिक माता-पिता,शिक्षकों व मित्रों के संपर्क में रहते हैं। माता-पिता व शिक्षकों का जिस प्रकार का आचरण होगा बालक उनका अनुकरण करता है तथा वही बातें सीखने का प्रयास करता है।
  • इसलिए माता-पिता व शिक्षकों को अपना आचरण अच्छा व पवित्र रखना चाहिए तथा कभी भी इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए जिसका गलत प्रभाव बालको पर पड़े।बालकों की अनुपस्थिति में भी गलत व्यवहार व आचरण नहीं करना चाहिए क्योंकि गलत व बुरे आचरण का मालूम अवश्य पड़ता है जिसका नकारात्मक प्रभाव बच्चों पर पड़ता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अनुकरण द्वारा शिक्षित कैसे करें?(How to educate by imitation in hindi),शिक्षण की अनुकरण विधि क्या है? (What is imitation method of teaching?) के बारे में बताया गया है।
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