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What is education and secularism?

शिक्षा और धर्मनिरपेक्षता क्या है का परिचय (Introduction to What is Education and Secularism?),धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का क्या अर्थ है? (What is meant by secular education?):

  • शिक्षा और धर्मनिरपेक्षता क्या है? (What is Education and Secularism?)भारतीय संस्कृति में धर्म व्यापक अर्थ वाला शब्द है।Religion को सम्प्रदाय,फिरका का समानार्थी शब्द है। भारतीय संस्कृति के धर्म के समानार्थी शब्द अन्य संस्कृतियों में मिलता ही नहीं है। भारतीय संस्कृति के अनुसार धर्म का अर्थ है धरतीती स: धर्म: अर्थात् जो धारण किया जाए वह धर्म है। अपने कर्त्तव्यों का पालन करना धर्म है। यतोअभ्युदय नि:श्रेयससिद्धि स: धर्म:के अनुसार जिन कर्मों का पालन करने से वर्तमान और आगामी जीवन सुधरता है वह धर्म है।इससे मालूम होता है कि जितने भी सत्कर्म हैं वे धर्म के अन्दर आ जाते हैं।
    वह धर्म नहीं जिसमें सत्य न हो तथा वह सत्य नहीं जिसमें छल कपट हो।
  • मनुस्मृति के अनुसार धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं :
    धृति:क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह।
    धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणमं।।
  • अर्थात् जिस मनुष्य में धैर्य हो,क्षमा हो,जो विषयों में फंसा न हो,जो दूसरे की वस्तु को मिट्टी के समान समझता हो,जो भीतर-बाहर से शुद्ध हो,जो इन्द्रियों को विषयों की ओर से रोकता हो,जो विद्वान हो, जो सत्यवादी हो,जो क्रोध न करता हो वही पुरुष धार्मिक है
  • ये दस बातें यदि मनुष्य अपने अन्दर धारण कर ले, तो वह न तो स्वयं दुख पावे, न कोई उसको दुख दे सके और न वह किसी को दुख दे सके।
  • मनुष्य इस संसार में जो सत्कर्म करता है, जो कुछ वह धर्म संचय करता है, वही इस लोक में उसके साथ रहता है और आगामी जीवन में भी वही उसके साथ जाता है। साधारण लोगो में कहावत भी है कि “यश-अपयश रह जाएगा और चला जाएगा सब।
    उपर्युक्त आर्टिकल में तथा पाश्चात्य देशों में धर्मनिरपेक्ष का तात्पर्य सम्प्रदाय निरपेक्ष अर्थात् सभी सम्प्रदायों को समान समझना से होना चाहिए।
What is education and secularism in hindi ||what is meant by secular education in hindi

  • via https://youtu.be/2cRZRELIwX4
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1.शिक्षा और धर्मनिरपेक्षता क्या है? (What is Education and Secularism?),धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का क्या अर्थ है? (What is meant by secular education?):

  • वर्तमान लोकतांत्रिक देश व समाज के उद्देश्य हैंः
  • (1.)आर्थिक समृद्धि (2.)तकनीकी विकास (3.)धर्मनिरपेक्षता (4.)राष्ट्रीय एकता (5.)लोक कल्याण।
    इनमें धर्मनिरपेक्षता का जो राष्ट्रीय उद्देश्य है उसको प्राप्त करने में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है। प्राचीनकाल में आध्यात्मिक तथा धार्मिक उद्देश्य होने से वे उद्देश्य शिक्षा के द्वारा अर्जित किए जाते थे।परंतु शिक्षा गतिशील तथा परिवर्तनशील है।अतः उस समय समाज व व्यक्तियों के जो उद्देश्य थे वे आज के लोकतांत्रिक देश के उद्देश्य नहीं हो सकते है।देश में विभिन्न धर्मों के व्यक्ति रहते हैं।अतः आज के सन्दर्भ के अनुसार उद्देश्यों को प्राप्त करना राष्ट्रीय उद्देश्य है।शिक्षा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक है।
  • विश्व के अधिकांश देशों की तुलना में भारत में अशिक्षा का अनुपात सर्वाधिक है।पिछड़े वर्ग तथा नारी जगत में शिक्षा की मात्रा कम है।जिस समाज में नारी अज्ञान,उत्पीड़न और शोषण का शिकार होती हैं वहाँ धार्मिक उन्माद एवं संप्रदायवाद आसानी से हावी हो जाते हैं।अतः धर्मनिरपेक्षता को सुदृढ़ बनाने के लिए सभी को समान शिक्षा मिलनी चाहिए।भारतीय धर्मनिरपेक्षता सामंजस्य एवं समन्वय के भावों से प्रेरित है।यह राष्ट्रीय एकता,सद्भाव एवं अनुशासन का मूलमन्त्र है।धर्म से पृथक राष्ट्र एवं समाज दिशाहीन एवं भ्रमित हो जाते हैं और तथ्य एवं मूल्य में अंतर नहीं कर पाते हैं।
  • व्यक्ति के स्वतंत्र होने के कारण विज्ञान का अभूतपूर्व विकास हुआ जिससे धर्म का प्रभाव कम होने लगा।वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास के कारण दैनिक जीवन में इनका महत्त्व बढ़ता गया।हिन्दू धर्म में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ जैसी मान्यताएँ स्वीकार की गई किन्तु व्यवहार में शोषण और असमानता थी।
  • स्वामी विवेकानंद के अनुसार “हिन्दू धर्म में मानव सम्मान और गौरव सर्वोत्तम ढंग से बताया गया है परंतु वास्तविकता यह है कि विश्व में हिंदू धर्म जैसा ओर धर्म नहीं जो गरीबों और दलितों को इतना कुचला गया है।इसके पीछे अशिक्षा,अज्ञानता तथा जातीय प्रथा उत्तरदायी”।
  • यह ठीक है कि धर्म-निरपेक्षता में धार्मिकता,पवित्रता,प्रज्ञा,आस्था तथा श्रद्धा को मान्यता नहीं दी जाती है।धर्म व्यक्ति का निजी मामला माना जाता है तथा उसे मानने, न मानने के लिए कोई बाध्यता नहीं है।जाति,लिंग तथा धार्मिकता के आधार पर कोई भेदभाव व पक्षपात नहीं होता।सबको शिक्षा,संस्कृति एवं मान्यताओं के प्रचार-प्रसार की स्वतंत्रता होती है।धर्मनिरपेक्षता में उदार और सहानुभूतिपूर्ण नीति का पालन किया जाता है।धर्म निरपेक्षता की सार्थकता,स्वतंत्रता और समानता जनतंत्र में ही सार्थक है।
  • धर्मनिरपेक्षता के लिए बौद्धिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण आवश्यक है।जिस देश में अशिक्षा हो तो वहाँ बौद्धिकता का अभाव होता है वहाँ धर्मनिरपेक्षता की प्रवृत्ति का विकास नहीं हो पाता।अशिक्षा,गरीबी तथा अभाव से समाज सांप्रदायिकता से आसानी से ग्रसित हो जाता है।अतः शिक्षा,तकनीकी धर्मनिरपेक्षता में सहायक है।इसलिए उचित और उपयोगी शिक्षा का प्रसार महत्त्वपूर्ण है।इसके द्वारा सर्वधर्म समन्वय और सद्भाव की वृद्धि करने वाले विषय को शिक्षा पद्धति में शामिल करना चाहिए।समाज में एकता और सामंजस्य बढ़ाने वाले पाठ्यक्रमों को शामिल करना चाहिए।राज्य सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता है।
  • धर्मनिरपेक्षता का भारतीय संदर्भ में आकलन करें तो इसका यह अर्थ नहीं है कि आध्यात्मिक,धार्मिक एवं नैतिक मूल्यों का कोई महत्त्व नहीं है।वस्तुतः आध्यात्मिकता,धार्मिकता तथा नैतिकता के बिना सच्ची मानसिक शांति उपलब्ध नहीं होती है।आध्यात्मिकता,धार्मिकता व नैतिकता के जो नियम सार्वभौमिक है उनको शिक्षा में शामिल किया जाना चाहिए।यदि ऐसा संभव नहीं है तो इनका उचित विकास अभिभावकों,समाज सुधारकों,चिन्तकों,मनीषियों द्वारा किया जाना चाहिए।
  • इस आर्टिकल में शिक्षा और धर्मनिरपेक्षता क्या है? (What is Education and Secularism?),धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का क्या अर्थ है? (What is meant by secular education?) के बारे में बताया गया है।
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