Menu

How Do Students Solve Maths Problems?

Contents hide

1.छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को कैसे हल करें? (How Do Students Solve Maths Problems?),गणित के छात्र-छात्राएं जटिल समस्याओं को हल करने हेतु दृष्टिकोण को सुधारें (Mathematics Students Improve Approach to Solving Complex Problems):

  • छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को कैसे हल करें? (How Do Students Solve Maths Problems?) यह प्रश्न उनके मस्तिष्क में बार-बार घूमता रहता है।क्या गणित की समस्याओं को छात्र-छात्राएं साधन-सुविधाओं के बल पर हल कर सकते हैं? क्या गणित की समस्याओं का संबंध आर्थिक अभावों,योग्य शिक्षकों के अभावों,गुणवत्तायुक्त विद्यालय के अभावों,माता-पिता के अशिक्षित होने,परिवार व समाज में सहयोग न मिलना,मित्रों द्वारा सहयोग न करना अथवा मित्रों द्वारा अध्ययन में रुकावट डालना से हो सकता है? वस्तुतः उपर्युक्त कारणों को गणित की समस्याओं को हल न कर पाने का आंशिक कारण ही समझा जाना चाहिए।मुख्य कारण छात्र-छात्राओं के अंदर ही निहित है।वह कारण है व्यक्तित्व तेजस्वी और प्रखर न होना,दुर्बल मनःस्थिति का होना।
  • आर्थिक दृष्टि से तेल कन्ट्री कुवैत,सऊदी अरब,इराक,ईरान धनकुबेर है परन्तु वहां के विद्यार्थी प्रतिभा में अन्य विकसित देशों अमेरिका,जापान,रूस,जर्मनी,फ्रांस इत्यादि से बहुत पिछड़े हुए हैं तथा समस्याओं के मामले में भी वे अनेक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।साधन-संपन्नता,सुविधाएं खरीदी जा सकती है परंतु व्यक्तित्त्व तो तराशना पड़ता है।आप पासबुक्स,गाइडे,सन्दर्भ पुस्तकें खरीद सकते हैं,अच्छी कोचिंग में शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं,अच्छे विद्यालय में पढ़ सकते हैं परंतु अध्ययन तथा गणित की समस्याओं को इनके द्वारा हल करके व्यक्तित्व संपन्न नहीं बन सकते हैं।जब तक आप हाथ-पैर तथा शरीर से अभ्यास नहीं करेंगे,मानसिक चिंतन तथा मनन नहीं करेंगे,स्वयं समस्याओं को हल नहीं करेंगे,प्रचंड पुरुषार्थ करके दिमाग पर जमा हुआ कूड़ा-करकट दूर नहीं करेंगे तब तक समस्याओं को हल करना तो बहुत दूर की बात है।
  • बहुत से बालक-बालिकाएं निर्धन परिवारों में रहते हुए,झुग्गी झोपड़ियों में रहते हुए तथा साधनों के अभावों में अध्ययन करते हैं परंतु उनकी गणितीय प्रतिभा देखकर अचंभित रह जाते हैं।प्राचीन काल में विद्यार्थी नगर व गांव से बाहर गुरुकुल में अभाव व कठिनाईयों में जीवनयापन करते थे,साधु,संत गुफाओं और कन्दराओं में रहते थे परंतु राजा महाराजा भी उनकी प्रतिभा,बुद्धिबल,आत्मबल व व्यक्तित्व के सामने नतमस्तक होते थे।
  • तात्पर्य यही है कि अभावों,कठिनाइयों,असुविधाओं में उन्हीं बालक-बालिकाओं की प्रतिभा सड़-गल जाती है,प्रतिभा मुरझा जाती है,विकसित नहीं होती है जिनकी मनःस्थिति दुर्बल होती है।उच्च मनोबल तथा दृढ़ संकल्पशक्ति के बल पर बड़ी से बड़ी बाधाओं को पार किया जा सकता है।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके । यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए । आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:3 Tips to Use Discretion to Solve Math

2.गणित की समस्याओं को हल न कर पाने के कारण (Reasons for not Being Able to Solve Mathematics Problems):

  • प्राचीन काल अथवा मध्यकाल में आज जितने सुविधा-साधन कहाँ थे? गणित-विज्ञान की इतनी प्रगति कहां हुई थी? शिक्षा प्राप्ति के विद्यालय,महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय कहां थे? विद्या प्राप्ति के स्वल्प साधन ही थे।फिर भी प्राचीनकाल की तुलना में चिंतन,चरित्र तथा व्यक्तित्व का स्तर गिरा है।
  • गणित की समस्याओं को हल न कर पाने का पहला कारण है श्रद्धा का न होना। आजकल विद्यार्थियों में आत्म-श्रद्धा,गुरु-श्रद्धा,भगवद्-श्रद्धा का अभाव होना।गीता में कहा है किः
    “श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
    ज्ञानं लब्धवा परां शांतिमचिरेणाधिगच्छति”।।
  • अर्थात् श्रद्धा से युक्त,गुरुजनों की सेवा,उपासना में लगा हुआ,जितेंद्रिय व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त करता है और ज्ञान प्राप्त करके अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर लेता है।श्रीमद्भगवद्गीता में आगे कहा गया है किः
    “अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
    नायं लोकोस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः”।।
  • अर्थात गुरुजनों के बतलाये हुए विषय को न समझने वाला,गुरुवाक्य तथा शास्त्रों में श्रद्धा से शून्य एवं प्रत्येक बात में संदेह रखने वाला मनुष्य नष्ट हो जाता है (अपने वांछित अर्थ वा साधन से पतित हो जाता है) कारण कि संदिग्ध चित्त मनुष्य के लिए वर्तमान जीवन और आगामी जीवन में समस्याओं से मुक्त नहीं हो सकता है।जो समस्याओं का समाधान नहीं करता है वह सुखी नहीं हो सकता है अर्थात् संशय करने वाला विनाश को प्राप्त करता है।इसका अर्थ यह नहीं है कि छात्र-छात्राओं को गुरु से अपने संशयों (doubts) का समाधान प्राप्त नहीं करना चाहिए।हर बात तथा हर सवाल गुरु से पूछना,स्वयं प्रयास न करना,गुरु द्वारा बताए गए हर सवाल के हल पर संदेह करना,स्वयं पर विश्वास न रखना इत्यादि से समस्याओं का समाधान प्राप्त नहीं कर सकता है।
  • गणित में समस्याओं का हल न कर पाने का दूसरा कारण है प्रारंभिक कक्षाओं से ही गणित के अभ्यास करने,सवालों को हल करने में लापरवाही करना।अभ्यास न करने के कारण धीरे-धीरे उच्च कक्षाओं तक पहुंचते-पहुंचते प्रारंभिक कक्षाओं की अनेक मूलभूत बातों का ज्ञान नहीं होता है इसलिए उच्च कक्षाओं में गणित के सवालों को हल करने में कठिनाई महसूस होती है।
  • तीसरा कारण है माता-पिता धन कमाने में इतने व्यस्त रहते हैं कि बच्चों की शिक्षा-दीक्षा को विद्यालयों के भरोसे छोड़ कर निश्चिंत हो जाते हैं।पढ़े-लिखे माता-पिता घर पर बालक-बालिकाओं की गणित में आने वाली समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।उनके साथ नियमित रूप से बैठकर समाधान कर सकते हैं।
  • चौथा कारण है कि शिक्षकों का केवल व्यावसायिक दृष्टिकोण होना।आजकल की शिक्षा को व्यावसायिक स्वरूप देने के कारण शिक्षक छात्र-छात्राओं को समर्पण की भावना से नहीं पढ़ाते हैं।ऐसे शिक्षक बहुत कम है जो समर्पण और पूर्ण निष्ठा से पढ़ाते हैं।बाकी के शिक्षक जो कुछ पढ़ाते हैं वह बालक-बालिकाओं के समझ में आए तो ठीक,नहीं समझ में आए तो ठीक।ऐसी स्थिति में अधिकांश छात्र-छात्राएं गणित में पिछड़ जाते हैं।
  • पांचवा कारण है वातावरण व संगी-साथियों के द्वारा सहयोग न करना।प्राचीन काल में छात्र-छात्राएं मिलते थे तो किसी भी टॉपिक पर वार्ता और विचार-विमर्श करते थे जिससे जटिल से जटिल समस्याएं सुलझ जाती थी।आजकल के अधिकांश बालक-बालिकाएं हाय-हेलो तक ही सीमित रखते हैं।यदि वार्ता करते भी हैं तो फिल्मों,राजनीति इत्यादि की करते हैं।गणित की समस्याओं पर बहुत कम छात्र-छात्राएं आपस में वार्ता व विचार-विमर्श करते हैं।
  • छठवा कारण है कि गणित में जो खोज,अनुसन्धान करते हैं,महान गणितज्ञ हैं उनका लोगों तथा छात्र-छात्राओं से जुड़ाव न होना।प्राचीन काल में गुरु,साधु-संत,विद्वान तथा सज्जन व्यक्ति विद्यार्थियों तथा लोगों के संपर्क में रहते थे और उनकी समस्याओं का समाधान करते थे।उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित,प्रोत्साहित करते रहते थे।आजकल के अधिकांश गणितज्ञ अपने खोज कार्य व अनुसंधान में तल्लीन रहते हैं।
  • सातवा कारण है विद्यार्थी गणित को बोझ समझकर,जाॅब प्राप्त करने के दृष्टिकोण तथा मात्र परीक्षा उत्तीर्ण करने के दृष्टिकोण से पढ़ते हैं।गणित का अध्ययन ज्ञान प्राप्ति,समाज व देश हित तथा आनंद प्राप्ति के दृष्टिकोण नहीं से पढ़ते हैं।

3.गणित की समस्याओं का समाधान करने के सूत्र (Formulas for Solving Mathematics Problems):

  • गणित की समस्याओं को हल करने में दूसरों के व्यवहार और परिस्थितियों को पूर्णतः दोषी तो नहीं ठहराया जा सकता है परंतु इसमें सबसे बड़ी रुकावट छात्र-छात्राओं का खुद का चिन्तन,चरित्र और व्यवहार है।छात्र-छात्राओं का चिन्तन,चरित्र और व्यवहार उत्कृष्ट स्तर का तभी हो सकता है जबकि वे गणित के अध्ययन के साथ-साथ थोड़ा सा सत्साहित्य,अच्छी पुस्तकें,धार्मिक,नीति व सदाचार की पुस्तकें पढ़ें।स्वाध्याय करने से न केवल आत्मिक व आध्यात्मिक शांति मिलती है बल्कि हमें गणित की समस्याओं को सुलझाने के रास्ते और तरीके भी पता चलते हैं।
  • दूसरे व्यक्तियों को हम अपने अनुशासन व मर्जी के अनुसार चलाना चाहते हैं परंतु हम यह भूल जाते हैं यह संसार हमारे लिए ही नहीं बना है।दूसरों से सहयोग व सहायता प्राप्त करने के लिए उनसे तालमेल बिठाने की कुशलता प्राप्त करनी चाहिए।छात्र-छात्राएं विनम्र,सरल,सज्जन तथा सक्रिय व जागरूक रहते हैं तो दूसरे भी उनका सहयोग,सहायता प्रदान करने के लिए तत्पर हो जाते हैं।
  • तीसरा तरीका है कि छात्र-छात्राओं को अपना दृष्टिकोण परिवर्तित करने की आवश्यकता है।यदि आप अपनी तुलना प्रखर,तेजस्वी तथा प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के साथ करेंगे तो आप सोचेंगे कि हम तो गणित में फिसड्डी हैं,गणित में कमजोर हैं,गणित के सवालों को तत्काल हल नहीं कर सकते हैं इत्यादि सोच-सोचकर दुखी होंगे।दुखी होने से हमारी मानसिक चिन्तन प्रणाली गड़बड़ा जाएगी।हम पूर्ण दक्षता तथा क्षमता के साथ गणित के सवालों को हल नहीं कर पाएंगे।परंतु यदि आप अपने से कमजोर छात्र-छात्राओं से तुलना करेंगे तो आपके आत्मबल में वृद्धि होगी।आपको अनुभव होगा कि आपसे भी बहुत से छात्र-छात्राएं कमजोर है।आप अपने मन में सुख व शांति का अनुभव करेंगे।यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि छात्र-छात्राएं मानसिक सुख-शांति व सुखद मनःस्थिति में अधिक तरक्की करते व आगे बढ़ते हैं।अपनी समस्याओं को हल कर पाते हैं।
  • चौथा तरीका यह है कि गणित की समस्याओं को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें।कठिनाइयों,समस्याओं के कारण छात्र-छात्राओं में धैर्य,साहस,कौशल,विवेक,सक्रियता,जागरूकता,एकाग्रता इत्यादि सद्गुणों का विकास होता है जो गणित की जटिल से जटिल समस्याओं को हल करने में सहायक है।गणित के जटिल समस्याओं में दुर्बल मनःस्थिति वाले छात्र-छात्राएं टूट जाते हैं तथा गणित से जैसे-तैसे पीछा छुड़ाना चाहते हैं।परंतु जिन छात्र-छात्राओं में जीवट है वे अनेक गुना शक्ति के साथ गणित की समस्याओं को न केवल हल करते हैं बल्कि उनका व्यक्तित्व उभरता हुआ देखा जा सकता है।सुख-सुविधाओं की अपनी उपयोगिता है परंतु समस्याओं का भी अपना महत्त्व है।यदि दोनों का लाभ उठाया जा सके तो व्यक्तित्त्व उभरने में देर नहीं लगती है।गणित के अध्ययन में साधन-सुविधाओं तथा गणित की समस्याओं को हल करने वाली बाधाओं में विपरीत स्थिति है।परन्तु दोनों में समन्वय से ही समस्याओं का हल निकलकर आता है।
  • पाँचवा उपाय कि संसार में किसी भी छात्र-छात्रा को सभी सुख-सुविधाएं मिली हो,परिस्थितियां अनुकूल हो,कोई समस्या न आई हो,कोई अभाव न हो ऐसा उदाहरण देखने को नहीं मिलेगा।जो सुख-सुविधाएं छात्र-छात्राओं को मिली है उनका चिंतन-मनन करें और गणित की समस्याओं को हल करने में उनका भरपूर फायदा उठाएं।उन उपलब्धियों पर संतोष प्रकट करते हुए प्रसन्न रहें,इससे आपका कौशल व कार्यक्षमता बढ़ेगी।जो छात्र-छात्राएं उपलब्ध सुविधाओं को कम करके आंकते हैं तथा उनके सामने गणित की समस्याओं,बाधाओं को बहुत बड़ा मानते हैं,ऐसे छात्र-छात्राएं असंतुष्ट रहते हैं,समस्याओं को आमंत्रण देते हैं तथा समस्याओं को हल नहीं कर पाते हैं।ऐसे छात्र-छात्राएं दूसरों पर दोषारोपण करते हैं,अपने भाग्य को कोसते हैं,माता-पिता,अभिभावकों,मित्रों तथा शिक्षकों को दोषी ठहराते हैं कि उन्होंने अमुक साधन सुविधाएं नहीं जुटाई जिससे वे उन्नति कर सकते तथा गणित की समस्याओं को हल कर सकते थे।गणित में अपनी कमजोरी का दोष दूसरों के मत्थे मढ़ते हैं।
  • छठवाँ तरीका है कि गणित में आने वाली समस्याओं को बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत न करें बल्कि उतनी ही स्वीकार करें तथा समझे जितनी वास्तव में वे हैं तो हमारा मनोबल बना रहेगा।
  • सातवाँ तरीका है यदि वास्तव में यदि गणित में साधन-सुविधाओं की आवश्यकता है और घर-परिवार से साधन-सुविधाएँ नहीं जुटाई जा सकती है तो आप अधिक पुरुषार्थ करें।पार्ट टाइम ट्यूशन करके अच्छे विद्यालय व कोचिंग की फीस जुटाई जा सकती है।साथ ही अपने अनावश्यक खर्चों को कम कर दें।कहीं भले आदमी से आर्थिक सहयोग ले सकते हैं तो ले लें।यदि आईआईटी,इंजीनियरिंग वगैरह करना चाहते हैं और कहीं से भी सहयोग-सहायता नहीं मिल पा रहा है तो जो साधन-सुविधाएं उपलब्ध हैं,उन्हीं से तैयारी करके आगे बढ़ने की कोशिश करें।ऐसी स्थिति में अपने से अधिक सुख-सुविधाओं से वंचित छात्र-छात्राओं से तुलना करके सुख व संतोष का अनुभव किया जा सकता है।

Also Read This Article:Why do you need a tutor or coaching in mathematics?

4.गणित की समस्याओं के हल का दृष्टांत (Illustration of Solving Math Problems):

  • एक विद्यार्थी था।उसको गणित के सवाल हल करने में बहुत आनंद आता था।12वीं कक्षा में उत्तीर्ण होने तक उसको ज्यादा परेशानी महसूस नहीं हुई।गणित पढ़ने में तो वह सिद्धहस्त था ही सो जेईई (आईआईटी) की प्रसिद्धि सुनकर उसका मन मचल उठा।उसने जेईई-मेन व एडवांस्ड का पाठ्यक्रम गौर से देखा।अच्छी तरह से निरीक्षण करने के बाद उसने जेईई-मेन प्रवेश परीक्षा के लिए आवेदन कर दिया।12वीं कक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने तथा विजयी होने की खुशी से उसका आत्मविश्वास बढ़ गया।
  • ज्योंही उसने जेईई-मेन परीक्षा की तैयारी प्रारंभ की तथा उसके पाठ्यक्रम की गहराई में गया तो उसका सिर चकरा गया।उसने पिछले वर्षों के प्रश्न-पत्र देखे तो निराशा बढ़ने लगी।उसको यह चिन्ता सताने लगी की गणित की इतनी जटिल समस्याओं और अन्य विषयों की समस्याओं को कैसे हल कर पाएगा? जैसे जैसे उसके मस्तिष्क में ऐसे विचार आने लगे तो शरीर शिथिल और मनोबल गिर गया।
  • वह विद्यार्थी गणित में तथा भौतिक विज्ञान में मेधावी होने के बावजूद बिना असफल हुए ही अपने को असफल समझने लगा।उसने सोचा लोग मुझे धिक्कारेंगे,मूर्ख और आलसी समझेंगे,मित्रों के सामने मेरी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाएगी।माता-पिता व अभिभावक मेरा तिरस्कार करेंगे।
  • लेकिन जैसे ही उसने संयत होकर ध्यान मग्न होकर एकांत में इस पर मनन किया तो उसे सकारात्मक ऊर्जा का बोध हुआ।ध्यान से उसने अपने अंदर परिवर्तन का अनुभव किया।उसके शरीर में शक्ति का संचार हुआ।
  • उसने सोचा कि सफलता अर्जित न करने का मतलब है अब तक जो भी पाया है उसको डुबो देना।सफल होने का अर्थ है जो कुछ भी उसने अर्जित किया है उसमें ओर अधिक वृद्धि करना।इस सोच से उसे संजीवनी मिल गई।उसने सोचा कि जब असफल ही होना है तो सफलता के लिए गणित व अन्य विषयों की समस्याओं को हल करने का प्रयास क्यों नहीं किया जाए? निराशा,भय का स्थान विश्वास ने ले लिया।इसी संकल्प के साथ उसने अपनी पूरी सामर्थ्य,एकाग्रता तथा जागरूकता व सक्रियता के साथ दिन-रात कठिन परिश्रम किया।पढ़ने के लिए निश्चित रणनीति बनाई।मानसिक संतुलन को बनाए रखा।इसका परिणाम यह हुआ कि उसने जेईई-मेन व एडवांस परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।उसका आईआईटी के लिए चयन हो गया।
    उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को कैसे हल करें? (How Do Students Solve Maths Problems?),गणित के छात्र-छात्राएं जटिल समस्याओं को हल करने हेतु दृष्टिकोण को सुधारें (Mathematics Students Improve Approach to Solving Complex Problems) के बारे में बताया गया है।

5.धनाढ्य गणितज्ञ और नरक (हास्य-व्यंग्य) (Rich Mathematician and Hell) (Humour-Satire):

  • एक धनाढ्य गणितज्ञ मर गया और स्वर्ग का दरवाजा खटखटाकर बोला मुझे स्वर्ग में जगह चाहिए।
    इन्द्रदेवःतुमने स्वर्ग में रहने लायक कौनसा काम किया है?
  • धनाढ्य गणितज्ञःमेरी कोचिंग में कई छात्र-छात्राएं बिना फीस दिए पढ़ जाते थे।हालांकि मैं उनको फीस देने के लिए दबाव भी खूब डालता था।कई छात्र-छात्राओं को तो कोचिंग से बाहर भी निकाल देता था।फिर भी कुछ छात्र-छात्राएं मुफ्त में ही पढ़ जाते थे।मुफ्त में पढ़ने वाले बच्चों का पुण्य तो मुझे मिलना ही चाहिए।
  • इन्द्रदेव (दूसरे देव से):मुफ्त में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की फीस चुकाकर इसको नरक में भेज दो।

6.छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को कैसे हल करें? (Frequently Asked Questions Related to How Do Students Solve Maths Problems?),गणित के छात्र-छात्राएं जटिल समस्याओं को हल करने हेतु दृष्टिकोण को सुधारें (Mathematics Students Improve Approach to Solving Complex Problems) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

प्रश्नः1.समान परिस्थिति में एक छात्र सफल व दूसरा असफल क्यों हो जाता है? (Why does one Student Succeed and Another Fail Under the Same Circumstances?):

उत्तरःजो छात्र-छात्राएं परीक्षा में,पढ़ाई में तथा जीवन में घटित होने वाली अन्य घटनाओं में मानसिक संतुलन बनाए रखते हैं तथा भय,शोक,निराशा,हताशा,अभावों,विपत्तियों तथा गणित की समस्याओं से विचलित नहीं होते हैं वे सफल हो जाते हैं।जबकि जो छात्र-छात्राएं मानसिक संतुलन खो देते हैं,गणित समस्याओं और अन्य समस्याओं को पहाड़ के सदृश्य मानते हैं वे असफल हो जाते हैं।

प्रश्नः3.विपरीत स्थिति में छात्र-छात्राएं क्या करें? (What Should Students do in Adverse Situations?):

उत्तर:विपरीत स्थिति तथा अनुकूल स्थितियों में समन्वय बनाकर चलें।समस्याओं का समाधान तभी होता है जब अनुकूलता और प्रतिकूलता में समन्वय का कौशल छात्र-छात्राएं सीख जाते हैं।खट्टे और मीठे अनुभव प्राप्त किए जाएं और इनका लाभ लेकर आगे बढ़ते रहा जाए।

प्रश्नः3.विपरीत स्थिति में छात्र-छात्राएं क्या करें? (What Should Students do in Adverse Situations?):

उत्तर:विपरीत स्थिति तथा अनुकूल स्थितियों में समन्वय बनाकर चलें।समस्याओं का समाधान तभी होता है जब अनुकूलता और प्रतिकूलता में समन्वय का कौशल छात्र-छात्राएं सीख जाते हैं।खट्टे और मीठे अनुभव प्राप्त किए जाएं और इनका लाभ लेकर आगे बढ़ते रहा जाए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को कैसे हल करें? (How Do Students Solve Maths Problems?),गणित के छात्र-छात्राएं जटिल समस्याओं को हल करने हेतु दृष्टिकोण को सुधारें (Mathematics Students Improve Approach to Solving Complex Problems) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

How Do Students Solve Maths Problems?

छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को कैसे हल करें?
(How Do Students Solve Maths Problems?)

How Do Students Solve Maths Problems?

छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को कैसे हल करें? (How Do Students Solve Maths Problems?)
यह प्रश्न उनके मस्तिष्क में बार-बार घूमता रहता है।क्या गणित की समस्याओं को
छात्र-छात्राएं साधन-सुविधाओं के बल पर हल कर सकते हैं?

No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *