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How Become Students Optimistic?

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1.छात्र-छात्र आशावादी कैसे बनें? (How Become Students Optimistic?),छात्र-छात्राएँ आशावादी दृष्टिकोण कैसे रखें? (How Have Students an Optimistic Outlook?):

  • छात्र-छात्र आशावादी कैसे बनें? (How Become Students Optimistic?) आशावादी से तात्पर्य हमेशा अच्छी बातों और कल्याणमय परिणाम की आशा करने वाला।यानी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की इच्छा और उसमें उम्मीद का किंचित विश्वास।
    इस प्रकार आशावादी विचार,दृष्टिकोण हमें अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है और हम सतत आगे बढ़ते रहते हैं।
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2.निराशावाद का परिणाम (The Consequences of Pessimism):

  • आशावादी रुख मनुष्य की सफलता एवं सार्थकता का सर्वोपरि मापदंड है।इसके विपरीत जीवन के प्रति निराशावादी रुख,व्यक्ति की विफलता,दीनता-हीनता एवं परतंत्रता का निश्चित आधार है।जीवन के प्रति आशा-उत्साह से भरा रुख स्वयं में अद्भुत शक्ति है।जब तक यह आशा मन में जीवित रहती है,व्यक्ति को कोई हरा नहीं सकता।जीवन की बड़ी से बड़ी विपत्ति एवं प्रतिकूलता भी उसे बुझा नहीं सकती।मानव जीवन को यदि एक जहाज की संज्ञा दें तो आशा उसका कप्तान है।यह जीवन रूपी बेड़े को देर-सबेर अपनी अभीष्ट मंजिल तक पहुंचा ही देती है।जीवन रूपी जहाज में यदि आशा का स्थान निराशा ने ले लिया तो जलयान की यात्रा का संकट में होना तय है।इसके रहते जलयान यदि मंजिल से भटक जाए या सागर तल में ही समाधि ले ले तो कोई आश्चर्य ना होगा।
  • दिल डूबा तो नौका डूबी।उत्साह भंग के सिवाय कोई भी दूसरी चीज नहीं,जो अकेली ही मनुष्य को इतनी हानि पहुंचा सकती है।उत्साह भंग होने से आशाएं धुंधली पड़ जाती हैं,आकांक्षाएं क्षीण होकर नष्ट होने लगती है तथा कार्य करने की शक्ति समाप्त हो जाती है।इसीलिए कहा भी गया है कि ‘जब तक सांस तब तक आस।’जब आशा ही नष्ट हो जाए तो जीवन में रह क्या जाता है? सारा उत्साह ही ठंडा हो जाए तो सब कुछ सूना,सब कुछ फीका,सब कुछ आनंदहीन हो जाता है।
  • अतः इस स्थिति में मन पूरी तरह से निषेधात्मक बन जाता है और इसकी तमाम गतिविधियाँ ध्वंसात्मक रूप लिए होती है,जो व्यक्ति की जीवन शक्ति,विचार शक्ति,भाव शक्ति आदि सब कुछ को दूषित कर कार्यशक्ति से लेकर मानवीय संबंधों को नष्ट-भ्रष्ट कर अपने लिए विनाश का सरजांम खड़े करती हैं,जबकि जीवन में सुख-शांति एवं उज्जवल भविष्य का निर्माण आशावादी मन द्वारा सकारात्मक विचारों के साथ संपन्न होता है।ऐसा व्यक्ति मन लगाकर परिश्रम,निरंतर अध्यवसाय तथा अचल निष्ठा के साथ हर अवसर का सदुपयोग करते हुए उन्नति के शिखर की ओर आरोहण करता है।
  • एक निर्धन छात्र था।पिता की असामयिक मृत्यु ने इसकी निर्धनता को और भी विपन्न बना दिया था,किंतु उसकी माँ असाधारण थी,जो सकारात्मक चिंतन की प्रतिमूर्ति थी।कठिन परिश्रम,माँ के आशीर्वाद और प्रोत्साहन से वह छात्र आगे से आगे बढ़ता गया।हर कक्षा में उच्च श्रेणी से उत्तीर्ण होता।उसकी ईमानदारी एवं लगन के कारण शिक्षा पूरी करते ही उसे प्राइवेट स्कूल में शिक्षक के पद पर नियुक्त कर लिया।उसने अध्ययन करना जारी रखा और उसकी पदोन्नति होती गई और एक दिन वह उसी स्कूल का प्राचार्य बन गया।उसकी प्रामाणिकता की बदौलत लोगों से भी उसे बहुत प्रशंसा एवं सम्मान मिला।आशावाद का दामन थामे उस छात्र ने पीछे मुड़कर नहीं देखा,शिक्षा के क्षेत्र में चरम शिखर पर पहुंच गया और स्कूल को क्रमोन्नत करके कॉलेज स्तर तक पहुंचा दिया।यह सब सकारात्मक और आशावाद का ही परिणाम था।

3.आशावाद के दृष्टांत और परिणाम (Parables and consequences of optimism):

  • साइराक्यूज के राजा हिरो से एक मुकुट (सोने का) बनवाया।उसे संदेह पैदा हो गया की कहीं सुनार ने सोने में मिलावट तो नहीं कर दी है।प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं वैज्ञानिक आर्कमिडीज हिरो का मित्र था।आर्किमिडीज को ही इस मिलावट का पता लगाने का काम सौंपा गया।आर्किमिडीज बहुत दिनों तक परेशान रहा परंतु उसने आशावाद का सहारा नहीं छोड़ा।एक दिन आर्किमिडीज नहाने के लिए एक नगर के सार्वजनिक स्नानागार में गया।पर यह क्या? उसके पानी में उतरते ही किनारों पर से कुछ पानी उछल गया।कारण एकदम उसकी समझ में आ गया,उसे अपनी समस्या का हल मिल गया।यानी घनत्व के कारण ऐसा हुआ था।
  • इसी प्रकार ईसाक न्यूटन ने किसी विषय पर शोध पत्र लिखकर टेबल पर रख दिया था।एक दिन वे घूमने चले गए।पीछे से उसके पालतू कुत्ते (डायमंड) ने टेबल पर जंप लगायी और जलती हुई मोमबत्ती रिसर्च पेपर्स पर गिर गयी।सारे रिसर्च पेपर जलकर राख हो गए।न्यूटन जब वापस लौटे तो बिल्कुल भी निराश नहीं हुए और न कुत्ते पर गुस्सा निकाला।अपनी मेहनत,लगन और आशावाद के बल पर पुनः सारे रिसर्च पेपर्स लिखे।महापुरुषों में आशावाद का दीपक जलने के कारण ही बड़ी से बड़ी समस्या को हल कर लेते हैं।
  • कई वैज्ञानिकों ने अभाव,संघर्ष,दुश्चिंता और नैराश्य के प्रभाव से हिम्मत और आशा का दामन नहीं छोड़ा क्योंकि वे आशावाद का महत्त्व समझते थे।असफलता में भी उन्होंने रोना-धोना और भाग्य को कोसना जैसे प्रलाप नहीं किये तथा अपना स्वभाव विनोदी प्रकृति का रखते थे,हमेशा उम्मीदों के सहारे अपना शोध कार्य करते थे।इस तरह वे कष्टों को झेलकर और निषेधात्मक चिन्तन के ध्वंसात्मक प्रभावों को दरकिनार करके आगे बढ़ते रहे।इसी कारण वे रचनात्मक शक्ति और आशावाद के बल पर महत्त्वपूर्ण शोध कार्य कर सके थे।
  • कई गणितज्ञों और वैज्ञानिकों के बचपन में माता-पिता का सहारा छिन गया।परंतु कठिन संघर्षों,उम्मीदों और किसी न किसी शुभचिन्तकों के प्रोत्साहन से उनमें आशा का संचार होता रहा।जीवन में उन्हें असफलता भी मिली लेकिन पुनः अपने शोध कार्य में लग रहे।एक दिन वे सफलता के शिखर पर पहुंचे और महामानवों की पंक्ति में जा खड़े हुए।उन्होंने निराशाजनक और असफलता के विचारों को मस्तिष्क में स्थान ही नहीं दिया और पूरी लगन और ईमानदारी के साथ अपने स्वपनों को साकार रूप देने में जुटे रहे।
  • संकट एवं मुसीबत की घड़ियों में भी सकारात्मक नजरिया ही वह आधारभूमि है,जिससे मस्ती एवं खुशमिजाजी के प्रसून खिलते हैं,अन्यथा निराशावादी के लिए तो यह मरणांतक पीड़ा देने वाले क्षण ही सिद्ध होते हैं।अतः आशावादी रुख की महिमा अपरंपार है।
  • प्रसन्नचित रहने से सब दुःख दूर होते हैं और बुद्धि स्थिर होती है।वस्तुतः यह सकारात्मक दृष्टिकोण एवं विधेयात्मक जीवन शैली के दीर्घकालीन अभ्यास की परिणिति होती है।
  • इस तरह विकसित सकारात्मक मानसिक भाव के अंतर्गत विश्वास,दृढ़ता,आशावादिता,उदारता,दयालुता,सहनशीलता जैसे सद्गुणों का समावेश रहता है।महान् गणितज्ञों एवं वैज्ञानिकों का जीवन उनकी जीवंत अभिव्यक्ति होता है।वे इसी के बल पर अपना मानसिक संतुलन बनाए रखते हैं और निराशा के भाव को पास फटकने नहीं देते।अनेकों के जीवन बहुत कठिन दौर से गुजरा।उनका जीवन परिस्थितियों के विषम प्रहारों से ओत-प्रोत रहा।उन्हें कितने विरोधों का सामना करना पड़ा,किंतु चिर आशावाद की संजीवनी के बल पर वे सब आघातों को संघर्ष एवं धैर्यपूर्वक झेलते रहे।उनका अदम्य आशा-उत्साह ही उनके शोध कार्य के लिए प्राण फूंकता था।
  • एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में विख्यात है कि उनकी उपस्थिति से ही वैज्ञानिकों में उत्साह का संचार फूँक देता था।कठिन से कठिन मिशन में भी वे कामयाब हो जाते थे।

4.जीवन की समस्त चुनौतियों पर भारी आशावाद (Huge optimism over all of life’s challenges):

  • जीवन की समस्त चुनौतियों पर भारी पड़ने वाला यह जीवट वस्तुतः सकारात्मक जीवनशैली से निःसृत होता है।इसी के बल पर व्यक्ति इन सशक्त संकेतों से अपने अंतर्मन को पुष्ट करता रहता है कि ‘तुम समुद्र किनारों पर सीना ताने खड़ी उत्तुंग चट्टान के सम्मान हो जो एक सच्चे शूरवीर की भाँति समुद्र की उत्ताल तरंगों का दृढ़तापूर्वक सामना कर रहे हो।संसार के कष्टों में इतनी शक्ति नहीं कि वे तुम्हें हिला सकें।तुम मुसीबतों के मध्य महिमान्वित अविचल-हिमालय की तरह अडिग हो,अविचल हो,जिस पर सांसारिक प्रहारों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
  • इसके विपरीत उत्साह की कमी अंतर्मन को निराशावादी संकेतों से दूषित करती रहती है,जो जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है।यह जीवन की सबसे बुरी स्थिति है।यह उन्नति के पथ की सबसे बड़ी बाधा है।निराशा एक प्रकार की कायरता है।जो आदमी कमजोर होता है,वह कठोर परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाता,वह एक कायर की तरह युद्ध छोड़कर भाग जाता है।निराशा एक प्रकार की नास्तिकता है।जो व्यक्ति संध्या में डूबते सूरज को देखकर दुःखी होता है और प्रातःकाल के सुनहरे अरुणोदय की आशा नहीं करता,वह नास्तिक है।
  • जो माता के क्रोध को स्थायी समझता है और उसके प्रेम पर विश्वास नहीं करता,वह नास्तिक है।हमें अपनी इस नास्तिकता का,इस निराशावाद का,इस निषेधात्मक रुख का दंड रोग,शोक,विपत्ति,संताप,असफलता और अल्पायु में भोगना पड़ता है,जबकि हर तरह के दुःख-कष्ट आदि क्षणिक हैं,अल्पकाल में दूर होने वाले हैं और यदि ये कुछ अधिक स्थायी व वृहतर हैं तो भी हमारे अंदर विद्यमान शक्तियों,असीम संभावनाओं एवं दैवीय गुणों से श्रेष्ठ एवं महान नहीं है।हमारी अंतर्निहित क्षमता अनेकों द्वन्द्वों के वज्र से भी अधिक दृढ़ एवं सक्षम है।इस स्थिति में विजय-आनंद,सफलता,उन्नति आदि हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
  • यदि इसका प्रखर बोध अभी नहीं हो पाता हो और राह की थकान कुछ भारी है तो भी निराशा की कोई बात नहीं।थके पक्षी को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हुए किसी कवि ने कहा है:
  • यदि मंद-मंद मंथर गति से चलकर चारों ओर से संध्या बढ़ती जा रही है,दिन का संगीत रुक गया है,संगी-साथी छूटने से जीवन सूना-सा मालूम हो रहा है,तेरे अंग-अंग में थकान उभर आई है,मन में आशंका उभर आई है,दिग-दिगंत वाली चादर ताने सो रहे हैं तो भी मेरे विहंग।तू अपने पंख बंद न कर।
  • समस्त तारागण आकाश में तेरी ही ओर अनिमेष दृष्टि लगाए हुए हैं।नीचे सागर में शत-शत लहरें उछल-उछलकर उल्लास का संदेश लिए उद्वेलित हो तेरी ओर दौड़ रही हैं।वे जाने कौन! वहां दूर करुण अनुनय करके ‘आओ!आओ’ की पुकार कर रहे हैं? सभी ओर तेरा स्वागत है।इसलिए मेरे विहंग!तू अपने पंख अभी बंद न कर।
  • चिर आशा का यह मधुर गान यदि हमारे जीवन का संगीत बन सके तो पथ की हर कठिनाई,विफलता एवं चुनौती हमारी मंजिल की ओर बढ़ने का एक सोपान बनती जाएगी और जीवन नित-नूतन सफलता,सार्थकता एवं उल्लास की सुवास में महकने लगेगा।

5.छात्र-छात्राओं के लिए आशावादी बनने की युक्ति (Tips for students to be optimistic):

  • अपने मन में सुबह प्रातः उठते ही मन को स्वसंकेत दें,अधिक से अधिक सकारात्मक ऊर्जा से भर दें।सोचें आज का दिन मेरा अच्छा ही रहेगा,सब कुछ शुभ और सकारात्मक ही होगा।ऐसा स्वसंकेत (auto suggestion) देने से मन प्रफुल्लित रहेगा,मन में उत्साह बना रहेगा।काम को करने में दिलचस्पी लें।अध्ययन रुचिपूर्वक करें,बोझ समझकर न करें।एक उत्सव,उमंग की तरह अध्ययन को करें।
  • सोचें कि आज मैं कुछ ना कुछ रचनात्मक और अच्छा ही करूंगा (अध्ययन में)।मैं दिनभर रुचिपूर्वक और प्रसन्नता के साथ अध्ययन कार्य करूंगा।दिनभर इसी तरह की आशावादी बातें कहते रहिए और करते रहिए।बीच में कोई सवाल समझ में नहीं आए,कोई टॉपिक हल करने में परेशानी महसूस हो रही हो या कोई आपकी आलोचना करें,तो भी निराश या उदास मत होइए।ऐसे मौके पर सोचिए कि गलती तो महान् गणितज्ञों और वैज्ञानिकों से भी हुई है,मुझसे भी हो गई तो कोई खास बात नहीं।मैं अपनी गलती से शिक्षा लूंगा और अध्ययन में कुछ बढ़िया करके दिखाऊंगा।वेदों में भी कहा है कि चलते रहो,चलते रहो।शाबाश बढ़े चलो।सब ठीक होगा।शुभ होगा।
  • आशा भरी बातें कहने से हमारे मन के विचार आशावादी बनने लगते हैं।इन्हें दोहराते रहने से वे हमारे मस्तिष्क द्वारा विचार करने की प्रक्रिया के अंग बन जाते हैं।इसके फलस्वरूप ये विचार अध्ययन के फलस्वरूप किसी परेशानी,कठिनाई से उत्पन्न निराशा,उदासी और अवसाद को दूर कर देते हैं।आशा भरे विचारों को मन में बार-बार लाने से हमारा मनोमस्तिष्क उन्हें अपना अनिवार्य अंग बना लेता है।
  • आप यह प्रश्न उठा सकते हैं कि बिना कोई बात या विषय के अपने से आशाभरी बातें कैसे की जाएं।सुख-सफलता मिलने के कुछ संकेत या चिन्ह हों तब तो कहा जा सकता है,अन्यथा नहीं।
  • वस्तुतः मन से आशाभरी बातें उस समय करना ज्यादा जरूरी होता है,जब चारों ओर निराशा दिखाई पड़ती है।उसी समय इस सच्चाई को समझा जा सकता है कि घोर अंधेरे के बाद ही दिन का प्रकाश फैलना शुरू होता है।यही प्रकृति का नियम है।इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति कभी दुःख,कष्ट और नाकामयाबी से परेशान या उदास नहीं होते।
  • इस दृष्टिकोण को अपनाने का यह मतलब नहीं कि हम जीवन में नित्यप्रति मिलने वाले कठोर और कटु सत्यों की उपेक्षा कर दें या उनकी ओर ध्यान तक न दें।परंतु मन में आशा बनाए रखने से हम इन कठोर और कड़वी सच्चाइयों का सामना करने तथा उन पर विजय पाने में सफल हो सकते हैं।अवसाद या दुःख को हटाने की कारगर विधि अपनाइए।सदैव आशावादी रहिए।इससे आपको ऐसी शक्ति और संतुलन प्राप्त होगा जो कठिनाइयों को हल करने में सहायता करेगा।जहां दूसरे लोगों को असफलता का बदसूरत चेहरा देखना पड़ता है,वहीं आशा की मशाल थामे व्यक्तित्व को सफलता की देवी अपनी जयमाल पहनाती है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्र आशावादी कैसे बनें? (How Become Students Optimistic?),छात्र-छात्राएँ आशावादी दृष्टिकोण कैसे रखें? (How Have Students an Optimistic Outlook?) के बारे में बताया गया है।

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6.आलसी छात्र (हास्य-व्यंग्य) (Lazy Student) (Humour-Satire):

  • पवन (आलसी छात्र से):सुना है तुम फिर से गणित विषय में पढ़ने जा रहे हो?
  • आलसी छात्र:अरे नहीं मैं तो पहले ही दो बार फेल होकर बदनाम हो चुका हूं।
  • पवन:इसमें बदनाम होने जैसी कोई बात नहीं है।यदि पास हो गए तो स्कूल का और सभी का नाम रोशन करोगे।फेल हो गए तो भी हैट्रिक लगा दोगे।हैट्रिक हर कोई खिलाड़ी थोड़ी लगा सकता है।

7.छात्र-छात्र आशावादी कैसे बनें? (Frequently Asked Questions Related to How Become Students Optimistic?),छात्र-छात्राएँ आशावादी दृष्टिकोण कैसे रखें? (How Have Students an Optimistic Outlook?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.अध्ययन करना कैसे आसान हो सकता है? (How can it be easier to study?):

उत्तर:निस्संदेह अध्ययन करना कठोर साधना है,पर आशा की ‘लेसर बीम’ कठोर से कठोर बाधा को भी भस्म कर देती है।आशाओं से भरे मस्तिष्क वाला छात्र-छात्रा अध्ययन में आने वाली बड़ी से बड़ी कठिनाई पर विजय पाकर ही दम लेता है।अतः आप भी अपने मन को आशा भरे विचारों की शक्ति से बलवान बनाइए।इससे निश्चय ही आपके उत्साह और आपको अध्ययन कार्य करने की ऊर्जा में वृद्धि होगी।

प्रश्न:2.अवसाद की औषधि क्या है? (What is the medicine for depression?):

उत्तर:गंभीर अवसाद या उदासीनता से पीड़ित व्यक्ति सदा दुःखी रहता है,उसके शरीर और मस्तिष्क की प्रतिक्रियाएं धीमी पड़ जाती हैं और वह खुद अपनी कटु आलोचना करने लगता है।उसके मन में सुख,सफलता या प्रसन्नता की रंचमात्र भी ज्योति नहीं रहती है।ऐसे व्यक्ति के अवसाद को आशा भरी बातें करके दूर किया जा सकता है।जिसके मन में आशा का दीपक जल जाता है,उसके पास उदासी,अवसाद का अंधेरा पास नहीं फटकता।

प्रश्न:3.उदासीनता के क्या लक्षण हैं? (What are the symptoms of apathy?):

उत्तर:उत्साह की कमी,अकेलापन महसूस करना,हीनता का भाव होना,जीवन एक भार-सा मालूम होना,सांत्वना का अभाव,दुःख,अशांति आदि उदासीनता के लक्षण हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्र आशावादी कैसे बनें? (How Become Students Optimistic?),छात्र-छात्राएँ आशावादी दृष्टिकोण कैसे रखें? (How Have Students an Optimistic Outlook?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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