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Brain Drain of Mathematicians

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1 1.गणितज्ञों का प्रतिभा पलायन (Brain Drain of Mathematicians),प्रतिभा पलायन (Brain Drain):
2 2.गणितज्ञों का प्रतिभा पलायन (Brain Drain of Mathematicians),प्रतिभा पलायन (Brain Drain) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

1.गणितज्ञों का प्रतिभा पलायन (Brain Drain of Mathematicians),प्रतिभा पलायन (Brain Drain):

  • गणितज्ञों का प्रतिभा पलायन (Brain Drain of Mathematicians) ही नहीं हो रहा है बल्कि वैज्ञानिकों,चिकित्सकों,इंजीनियरों का भी देश से प्रतिभा पलायन हो रहा है।परंतु गणितज्ञों,इंजीनियरों का प्रतिभा पलायन भारत जैसे विकासशील देश के लिए हानिकारक है।देश के संसाधनों,धन संपत्ति को खर्च करने पर गणितज्ञ,इंजीनियर्स तथा वैज्ञानिक तैयार होते हैं। तैयार होने के बाद विदेशों में प्रतिभाओं का चले जाना भारत के विकास को अवरुद्ध करता है।बहुत सी प्रतिभाएं विदेशों में शिक्षा अर्जित करने के लिए जाती हैं परंतु शिक्षा अर्जित करने के बाद वही की होकर रह जाती हैं।प्रतिभाओं के पलायन के कई कारण होते हैं यदि उन कारणों को या उनमें से कुछ कारणों का समाधान कर दिया जाए तो ये प्रतिभाएं देश के विकास में अपना अमूल्य योगदान दे सकती हैं।
  • प्रतिभा पलायन के मुख्य कारण हैं:देश में सुविधाओं का न होना,रोजगार प्राप्त करने हेतु,अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने,आर्थिक कारण,उदारीकरण एवं भूमंडलीकरण इत्यादि।
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(1.)देश में समुचित सुविधाओं का न होना (Lack of Proper Facilities in the Country):

  • भारत स्वतंत्र हुआ था तब भारत में गणित,विज्ञान तथा अन्य विषयों के अध्ययन के लिए उचित सुविधाएं यथा प्रयोगशाला,उपकरण,अध्ययन के लिए उच्च गुणवत्ता युक्त संस्थान का न होना इत्यादि कठिनाइयाँ थी।हालांकि भारतीय प्रतिभाओं जगदीशचंद्र बसु (वनस्पति विज्ञान),प्रफुल्ल चन्द्र राय (रसायन शास्त्र),श्रीनिवासन् रामानुजन् (गणित) ने नए अनुसंधान करके सारे संसार को चकित कर दिया था।
  • 1912 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर तथा 1930 में चन्द्रशेखर वेंकट रामन को भौतिकी में नोबेल पुरस्कार मिला।इससे सिद्ध होता है कि भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। परंतु भारत में बहुत से बच्चे सुविधाओं के अभाव में,गरीबी के कारण,पढ़ाई में प्रोत्साहन न मिलने के कारण प्रतिभा विकसित नहीं हो पाती है,प्रतिभाओं को तराशा,या उभारा नहीं जाता है।इसके कुछ उदाहरण निम्न है:श्रीनिवास रामानुजन् को न तो कोई मार्गदर्शक मिला और न ही सुविधाएं।अंत में उन्हें अपनी प्रतिभा को विकसित करने के लिए इंग्लैंड जाना पड़ा।उन्होंने वहाँ गणित की कई नई-नई खोजें की।मेघनाथ साहा ने सुविधाओं के अभाव में खोज कार्य हेतु लंदन,जर्मनी में रहे तथा वहां 16 साल तक रहकर रिसर्च की (भौतिक विज्ञान में)।सत्येंद्रनाथ बसु ने मैडम क्यूरी की प्रयोगशाला में रहकर कार्य खोज कार्य किया। सुब्रमण्यम चंद्रशेखर को 1983 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।सुब्रमण्यम चंद्रशेखर,चंद्रशेखर वेंकट रामन के भतीजे थे।एम ए करने के बाद वे उच्च अध्ययन के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय (1930-1936) गए।भारत लौटने पर उन्होंने कोशिश की कि उन्हें प्रोफेसर का पद मिल जाए परंतु प्रयास करने पर भी उन्हें यह पद नहीं मिला।अंत में शिकागो (अमेरिका) गए।वहीं रहकर शोध कार्य किया तथा अमेरिका की नागरिकता मिलने के पश्चात उन्हें 1983 में नोबेल पुरस्कार मिला।
  • डॉ हरगोविंद खुराना को 1968 में जीवविज्ञान में शोध कार्य करने के लिए नोबेल पुरस्कार मिल चुका है।उस समय डॉक्टर खुराना अमेरिका में बस गए थे।जाहिर है कि उन्हें शोधकार्य करने के लिए भारत में सुविधाएं नहीं मिली थी।देश में खोज कार्य करने के अनुकूल वातावरण तैयार नहीं था।प्रयोगशालाएँ,उपकरण,उच्च संस्थानों के अभाव में देश के प्रतिभाशाली शोधकर्ता विदेशों में चले जाते हैं।विदेश में उन्हें उच्च स्तर की सुविधाएं मिलती हैं,पर्याप्त पैसा मिलता है।इसलिए वे वही बस जाते हैं।ऐसी प्रतिभाएं कम होती हैं जो मातृभूमि से प्रेम करती है तथा कठिनाइयों के बावजूद विदेशों में जाकर नहीं बसती हैं।
  • देश की इतनी उच्च प्रतिभाएं विदेश जाकर बस जाए तो यह देश तथा देश की सरकार के लिए शर्मनाक बात है।हमारी सरकार में उच्च पदों पर बैठे अधिकारी अन्य कार्यों में फालतू पैसा यथा विज्ञापन,टेलीफोन,आवास सुविधाओं,जलसे,समारोह के नाम पर लाखों रुपए खर्च कर देती है परंतु प्रतिभाओं के लिए सुविधा देने के लिए पैसा नहीं है।
  • हालांकि अब परिस्थितियां काफी बदल गई है लेकिन तुलनात्मक रूप से विकसित देशों के मुकाबले अभी भी प्रतिभाओं को पूर्ण सुविधा नाकाफी है।

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(2.)रोजगार प्राप्त करने के कारण (Reasons for Getting Employment):

  • युवा प्रतिभाओं द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त करने,डिग्री प्राप्त करने के बावजूद जॉब नहीं मिलता है या उनको बहुत कम वेतन पर रखा जाता है।विवश होकर ऐसी प्रतिभाएं विदेशों में जाकर बस जाती है।
  • कभी ऐसा समय भी था जब भारत में आर्थिक संपन्नता का स्वर्ण युग था लेकिन आर्थिक संपन्नता का वह युग फिलवक्त तो इतिहास बनकर रह गया है।सरकारें धनीवर्ग को अनुचित लाभ देने वाली होंगी तो प्रतिभाओं का सम्मान कैसे हो सकेगा?कई कंपनियां दिवालिया होने के कगार पर पहुंच चुकी है।कर्मचारी करें तो भी क्या करें?कोरोना काल के कारण प्रदर्शन नहीं कर सकते।मन ही मन जीभर भड़ास निकाल लेते हैं।लोग महंगाई से बहुत ज्यादा नाराज हैं लेकिन लाचार हैं।जाॅब उन्हें मिलता नहीं है।भारत में जिस गति से गरीबी और असमानता बढ़ रही है उसे देखकर तो यही लगता है कि कंपनी अपना बोरिया बिस्तर समेट कर युवाओं को अपनी मौत मरने के लिए छोड़ देती है।
  • एक तरफ शिक्षा प्राप्त करने के नाम पर प्रतिभाएं अपने बूते से बाहर धन खर्च कर देती हैं और दूसरी तरफ उन्हें जाॅब नहीं मिलता है।न घर के रहे न घाट के।ऐसी स्थिति में न चाहते हुए भी प्रतिभाएं जॉब की खातिर विदेशों का रुख कर लेती हैं।आज एक पीएचडी किए हुए युवा को चपरासी की नौकरी भी नसीब नहीं है।
  • उदारीकरण अर्थात् भूमण्डलीकरण की नीति 1991 में इस आशा के साथ लागू की गई थी कि देश की सारी समस्याएँ छूमन्तर हो जाएंगी।उस समय सरकारों ने यह राग अलापा था कि आज का दौर भूमंडलीकरण का है।हम इस प्रक्रिया से कटकर नहीं रह सकते हैं।अर्थव्यवस्था के लिए यह नीति जरूरी थी इसलिए इसे लागू किया जा रहा है। उदारीकरण का अर्थ है अधिक से अधिक निजीकरण और देश की कंपनियों का राष्ट्रीय कंपनियों से प्रतिस्पर्धा करना।इस प्रतिस्पर्धा के कारण कम्पनियाँ उत्पादन लागत कम करने के लिए मशीनों को बढ़ावा देती है।यानी कर्मचारियों,श्रमिकों तथा प्रतिभाओं को कम से कम रखने का प्रयास करना।उदारीकरण में प्रतिस्पर्धा इतनी होती है कि कंपनियां उत्पादन लागत कम करने के लिए मजबूर हैं।जब कम्पनियाँ उत्पादन लागत कम करने की सोचती है तो सबसे पहले कर्मचारियों की छँटनी करती है।
  • इन कर्मचारियों,श्रमिकों तथा प्रतिभाओं की छँटनी करने पर कहाँ जाएँगे और क्या करेंगे?जाहिर है बहुत से लोग ऋण लेकर विदेशों में जाॅब प्राप्त करने के लिए चले जाते हैं।आधुनिकीकरण के नाम पर बहुत से लोगों को इसलिए निकाल दिया जाता है कि वे तकनीक के जानकार नहीं है परंतु तकनीक का जानकार तो हुआ जा सकता है।कोई भी अपनी मां के पेट में तकनीक सीख कर नहीं आता है।उच्च शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि सक्षम तथा धनिक वर्ग ही ऐसी शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।यदि सामान्य व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए ऋण लेता है तो डिग्री हासिल करने के बाद जॉब की कोई गारंटी नहीं है।इसलिए ऐसे युवा प्रतिभाएं उच्च डिग्री प्राप्त करने के बाद विदेशों का रूख करती हैं।इसमें दोहरा नुकसान है।उच्च शिक्षा में देश का संसाधन तथा पैसा खर्च होता है तथा दूसरा नुकसान यह है कि तैयार प्रतिभाओं का लाभ भारत को नहीं मिल पाता है।
  • ऐसी बात नहीं कि उदारीकरण तथा भूमंडलीकरण के नुकसान ही नुकसान हैं,फायदे कुछ नहीं है।परन्तु तुलनात्मक रूप से ऐसी प्रतिभाएँ जिनके पास खर्च करने को कुछ नहीं है आज भी उसकी हालत वही है।यदि युवा प्रतिभाओं को रोजगार नहीं मिलेगा तो ऐसी हालत में वे विदेशों का ही रूख करती है।

(3.)अन्तर्राष्ट्रीय पहचान बनाने हेतु (To Create an International Identity):

  • ऐसी प्रतिभाएँ जो अपनी पहचान विश्वस्तरीय बनाना चाहती है वे भी देश से पलायन करके विदेशों में बस जाती है।क्योंकि उनका ऐसा मानना है कि देश में रहकर अन्तर्राष्ट्रीय पहचान नहीं बनायी जा सकती है।दायरा तथा स्काॅप नहीं बढ़ाया जा सकता है।
  • आज तकनीकी का इतना विस्तार हो चुका है कहीं भी बैठकर किसी के लिए भी काम किया जा सकता है।कोरोना काल में वैसे भी वर्क टु होम (Work to Home) ही ज्यादा कारगर सिद्ध हुआ है।अर्थात् यदि आप तकनीक में दक्ष हैं तो अपनी प्रतिभा का उपयोग कहीं पर भी रह कर कर सकते हैं।
  • दरअसल विदेशी आकर्षण में अंधे होकर बिना सोच-विचार करके विदेशों का रुख करना उचित नहीं है।प्रख्यात दार्शनिक तथा चिन्तक ओशो (आचार्य रजनीश) के साथ क्या हुआ,यह किसी से छुपा नहीं है।उन्होंने अमेरिका के लोगों का परोपकार करने के वास्ते वहीं रजनीशपुरम बसाकर आध्यात्मिक ज्ञान देना शुरू किया था।परंतु अमेरिका ने उसे अपना समझा ही नहीं साथ ही उनके खिलाफ कार्यवाही प्रारंभ कर दी।अंत में भगवान ओशो को अपनी मातृभूमि भारत का रुख करना पड़ा।दरअसल भारत की नीति हमेशा वसुधैव कुटुंबकम की रही है।परंतु पाश्चात्य देश भारतीय तथा अन्य देशों की प्रतिभाओं को हृदय से अपना मानती ही नहीं है बल्कि उनके साथ दोगला व्यवहार करती है।
  • प्रख्यात गणितज्ञ वशिष्ठनारायण सिंह ने अमेरिका के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया परंतु बहुत वर्षों तक बीमार रहने के बावजूद अमेरिका ने उनकी कोई सुध नहीं ली।इसी प्रकार श्रीनिवासन् रामानुजन् ने इंग्लैंड में रहकर गणित के क्षेत्र में कार्य किया।और जब वे बीमार पड़ गए तो इंग्लैंड ने कोई सुध नहीं ली।उनकी पत्नी जानकी रामानुजन् को जीवन के अंतिम समय में 1988 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से सम्बद्ध ट्रिनिटी काॅलेज ने अद्वितीय अनुसंधान कार्यों के लिए 2000 पौण्ड वार्षिक पेन्शन स्वरूप स्वीकृत किए।जबकि श्रीनिवासन् रामानुजन् 26 अप्रैल,1920 को संसार से विदा हो गए थे।1920 से 1988 तक उनकी पत्नी आर्थिक कष्ट उठाती रही।यह कैसा अंतर्विरोध है कि विकसित देशों के विकास में योगदान तो भारत जैसे देशों की प्रतिभाएं करें,नए अनुसंधान व खोजों पर ठप्पा भी अमेरिका जैसे विकसित देशों का रहे,उससे होने वाले लाभ पर हक भी विकसित देशों का ही हो परंतु प्रतिभाओं की बीमारी,विपन्नता अथवा असहाय स्थिति की जिम्मेदारी से विकसित देशों का कोई सरोकार नहीं हो।

(4.)विदेशी डिग्रियों का आकर्षण (Attraction of Foreign Degrees):

  • भारत के युवावर्ग तथा प्रतिभाएँ स्वदेशी संस्थानों की न तो कद्र समझते हैं और न ही भरोसा करते हैं। इसलिए आंख बंद करके विदेशी संस्थाओं को मुंह मांगी कीमत चुका कर डिग्री हासिल करने को तवज्जो देते हैं।विदेशी डिग्रियों की ललक आज भी युवाओं में उसी तरह कायम है जैसे स्वतंत्रता के समय थी।विदेशी विश्वविद्यालय डिग्रियां बेचकर मालामाल हो रहे हैं।धन के लिए विदेशी विश्वविद्यालय न तो यह देखते हैं कि डिग्री लेने वाला पात्र है या नहीं और न यह देखते हैं कि डिग्री लेने वाला कौन है?यह सनक अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली लागू किए जाने की देन है।इसमें भारत की अनेक संस्थाएं प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दे रही हैं।
  • युवा वर्ग तथा देश की प्रतिभाएँ यह भी जांच पड़ताल नहीं करती है कि यह विदेशी विश्वविद्यालय अपने खुद के देश में भी मान्यता प्राप्त हैं या नहीं अथवा उन्हें अपने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और भारतीय विश्वविद्यालय संघ (एफआईयू) ने मान्यता दे रखी है या नहीं।समाचार पत्रों अथवा सोशल मीडिया पर विज्ञापनों के झांसे में आकर छात्र-छात्राएं डिग्री लेने के लिए बेताब हो जाते हैं।ऐसे विश्वविद्यालयों का कार्य ज्ञान अथवा शिक्षा प्रदान करना नहीं केवल धन कमाना है।
    कोई भी गलत धंधा,व्यवसाय सरकार में कार्यरत अधिकारियों,कर्मचारियों की शह के बिना पनप ही नहीं सकता।लेकिन सरकार को ऐसे कार्य पर निगरानी रखने,कार्यवाही करने का समय नहीं है।
  • यदि इस अवैध कारोबार को रोकना है तो युवावर्ग को अपनी मानसिकता बदलनी होगी।भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली को चुस्त-दुरुस्त करने की आवश्यकता है।इस संबंध (विदेशी ललक) में विकसित देशों में (इंग्लैंड,फ्राँस,अमेरिका इत्यादि) भारत तथा भारत जैसे देशों के लिए फब्तियां और लतीफे गढ़े जाते हैं उसमें एक इस प्रकार है:
  • “भारत के एक महाराजा पेरिस (फ्रांस) गए।वे अपने घोड़े को भी साथ ले गए थे।पेरिस की गलियों से गुजरते हुए उन्होंने एक संकेतपट्ट (साइन बोर्ड) देखा जिस पर लिखा था “डी फिल पेरिस अवेलेबुल फाॅर 10,000 फ्रैंक्स”यानी यहां पर पेरिस की डी फिल उपाधि (डिग्री) दस हजार फ्रैंकों (फ्रांस की मुद्रा) में सुलभ है।महाराजा फौरन घोड़े पर से उतरे,दस हजार फ्रैंक चुकाए और अपने नाम से लिखा-पढ़ी कराकर डिग्री ले ली।डिग्री लेकर आगे बढ़े तो अचानक उनके दिमाग में एक ख्याल खटका,”क्यों न एक डिग्री अपने घोड़े के लिए ले लूं? आखिरी यह एक महाराजा का घोड़ा है और अपने महाराजा के साथ यहां तक आया है।” महाराजा पीछे लौटकर फिर उस साइनबोर्ड वाले कार्यालय में गए।उन्होंने 10000 फ्रैंक फिर खिड़की पर रखे और बाबू से कहा कि एक डिग्री उनके घोड़े के लिए भी बना दी जाए।बाबू ने विनम्रता के साथ निवेदन किया कि ऐसा संभव नहीं है।”क्यों?”महाराजा रोब के साथ बोले ,”साइनबोर्ड तो यही बताता है कि दस हजार फ्रैंक चुकाकर डिग्री किसी के नाम से भी बनवाई और ली जा सकती है।”बाबू ने पहले जैसी मीठी आवाज में कहा ,”हमारे विश्वविद्यालय के अध्यादेश के अनुसार यह डिग्री केवल गधे को दी जाती है घोड़े को नहीं।

(5.)आर्थिक कारण (Economic Reasons):

  • हालांकि उपयुर्क्त में किसी न किसी प्रकार आर्थिक कारण जुड़ा हुआ है परंतु यहां केवल आर्थिक कारण के बारे में बताया जाएगा।ऐसी प्रतिभाएँ जो केवल धन कमाने के लिए पलायन करती है।धन सबकुछ नहीं है परन्तु धन बहुत कुछ है।धन की कमी के कारण अच्छी-अच्छी प्रतिभाएं घुटने टेकने के लिए मजबूर हो जाती है।ऐसा कहा जाता है कि जो धन के लोभ में गिरफ्त हो जाता है उसकी कामनाएं कभी तृप्त नहीं होती है बल्कि बढ़ती ही जाती है।ऐसा व्यक्ति ऐसे दुष्चक्र में फंस जाता है कि जितना धन कमाता है ओर अधिक चिन्ताओं से घिर जाता है।इस बारे में एक सत्य दृष्टान्त निम्न प्रकार है:
  • राॅकफेलर (July 8,1839–May 23,1937) को कौन नहीं जानता।वह अपने युग का सबसे अमीर व्यक्ति था।उसका धन ही उसकी ख्याति का कारण था।वास्तव में राकफेलर अमेरिका का सबसे बड़ा पूंजीपति था।धन की महिमा दूर-दूर तक स्वयं फैलती है।अपने व्यापार से राकफेलर ने सबसे अधिक धन कमाया था।उसे लक्ष्मी पुत्र कहा जाता था।कहते हैं उसके पास इतनी असीम धनराशि थी कि पूरे शहर को भोजन देता रहे तो भी न समाप्त हो।कमाई भी न करें तो कई पीढ़ियाँ उसी शान से सुख भोगती रहे।हमारे यहां कुबेर को धन का देवता कहते हैं।इस दृष्टि से आधुनिक धनकुबेर राकफेलर था।मंडी में वह जिस माल को खरीदना प्रारंभ करता,पूरी मंडी की वस्तुओं को खरीद डालता।उसके मुकाबले में खड़े होने की हिम्मत किसी को न थी,कोई उसके साथ प्रतियोगिता करने की हिम्मत ही न कर पाता था।
  • यदि केवल धनसंपदा,जमीन जायदाद इत्यादि को ही मनुष्य की सुख-शांति का आधार या ऐशोआराम को ही चरम लक्ष्य समझा जाए या सफलता का मापदण्ड माना जाए तो राकफेलर को संसार का सबसे प्रसन्न और सफल व्यक्ति समझा जाना चाहिए था।वह रुपए की शक्ति से सबकुछ खरीद सकता था:उत्तमोत्तम भोजन,बढ़िया वस्त्र,आलीशान गगनचुंबी महल,कोठियाँ, मोटरकार,हवाईजहाज,आमोद-प्रमोद तथा भोगविलास की असंख्य आधुनिकतम वस्तुएँ,हर प्रकार का सुख और सुविधा।कुछ भी उसके लिए असम्भव नहीं था।इस समाज और धरती का कौन आनन्द था जो उसके रुपए उसे खरीदकर न दे सकते थे।राकफेलर की व्यापारिक बुद्धि का चमत्कार इस बात से जाना जा सकता है कि उसने अपने $1000000 23 वर्ष की कच्ची उम्र में ही कमा लिए थे।वह व्यापार में कुशल था,साहसी था,बाजार के भावों के उतार-चढ़ाव में दूरदर्शी था।उसके हाथों में व्यापारिक बल था और थी हृदय में अतृप्त आकांक्षा।संसार की प्रसिद्ध स्टैण्डर्ड वैक्यूम आइल कम्पनी का स्वामित्व उसने 43 वर्ष की आयु में ही प्राप्त कर लिया था।अपार धनराशि बैंकों में उसके नाम पर जमा थी।अनेक सूत्रों से अनाप-शनाप धन आ रहा था।

(ii)असमय ही मौत के मुँह में (John Davison Rockefeller Untimely in the Mouth of Death):

  • जीवन का हरा-भरा सुरभित और मधुर रूप वह नहीं देख पाया था।उसका यौवन धनरूपी फूलों पर फुदक रहा था पर अंदर से अतृप्त और शुष्क ही था।धन और सांसारिक उन्नति में लहरा-लहराकर वह अपना भ्रमर मन न टटोल पाया था।53 वर्ष का धन कुबेर मन से अशान्त और उद्विग्न था।उसे नाना प्रकार की छोटी-बड़ी चिन्ताओं ने अपना शिकार बना लिया था।बात यह थी कि उसे हर समय कोई न कोई चिंता बनी ही रहती थी।धन अपने साथ अतृप्ति भी लाता है।हर घड़ी विषाद,व्यापार में हानि की आशंका,हिसाब-किताब में गड़बड़ी,आयकर संबंधी मुकदमों की परेशानी,कंपनियों में नुकसान का डर,बैंकों के फेल हो जाने की कुकल्पना,चलते फिरते मुकदमे में फंस जाने की चिंता,रुपया न डूब जाए,चोरी न हो जाए इत्यादि चिंताएँ उसे हरदम सताती रहती थी।कभी वह सोचता कौन कार्यकर्ता कैसा काम कर रहा है?व्यर्थ समय बर्बाद तो नहीं कर रहा है?भ्रष्टाचार करेगा या नुकसान तो नहीं पहुंचाएगा,धोखा तो नहीं देगा?एक नहीं सैकड़ों प्रकार की छोटी-बड़ी तात्कालिक या देर में आने वाली चिंताओं ने उसे बुरी तरह अपने कुटिल पंजों में जकड़ लिया था.
  • बाहर से रेशमी सिल्क के बहुमूल्य वस्त्र पहननेवाला,गगनचुंबी अट्टालिकाओं में निवास करने और प्रतिदिन नवीन सुस्वादु कीमती भोजन करने वाला,सैकड़ों नौकरों से अपनी सेवा कराकर भी बेचारा राकफेलर 53 वर्ष की आयु में केवल अतृप्ति और चिंताओं के कारण सूखकर हड्डियों का नर-कंकाल मात्र रह गया था।कैसी दुर्वह विडम्बना थी?चिन्ता के कारण उसके शरीर का बुरा हाल था। सिर के बाल उड़ गए।फिर भौंह के बाल कम होने लगे।गंज होती जा रही थी।वह सोचता था यह क्या माजरा है?उसकी भूख कम होती जा रही थी।अब हालत यह थी कि बढ़िया भोजन मेज पर शान से लगा उसकी प्रतीक्षा कर रहा है और वह उसके सामने जाने में ढिलमिल कर रहा है।घर वाले चाहते हैं कि किसी प्रकार दो कौर भोजन कर ले,पर भोजन की ओर से उसे अरुचि है।कभी अग्निमान्ध तो कभी कब्ज, कभी दस्त तो कभी पेचिस!डाॅक्टर हैरान कि क्या करें,कैसे प्राण बचाएं।
    उसके चेहरे के तेज और लावण्य पर वृद्धावस्था की कालिमा मंडराने लगी है।मौत की कुटिल छाया उस पर पड़ रही थी।गाल पिचके और दांत जवाब देने लगे।रात को नींद न आती,गुदगुदे बिस्तर पर करवटें बदलते-बदलते आंखें खोले-खोले ही सारी रात कट जाती।बुरे स्वपन दीखते थे।कमर में दर्द और झुकाव था,चलते हुए पैर लडखड़ाते थे जैसे कि कोई भारी भरकम अट्टालिका अब गिरी,अब गिरी।चारों ओर उसे अपने काम के बिगड़ जाने का गुप्त भय सताया करता था।जीवन से वह निराश,निरुपाय था।मन में तनाव और हृदय बेचैन था।बाहर से कोई अनुमान तक नहीं कर सकता था कि इस अमीर को भी जीवन में कोई परेशानी हो सकती थी।पर उसके भीतर तो चिंताओं की आग जल रही थी और अत्यंत कुटिल संकल्पों का संघर्ष चल रहा था।प्रतिदिन उत्तरोत्तर उनकी संख्या बढ़ती जा रही थी।एक चिन्ता दस नयी-नयी चिंताओं को जन्म दे रही थी।वह चिंता के वास्तविक विषय से परेशान न रहकर उसके प्रतीक से परेशान रहने लगा।उस धनकुबेर के अस्थिपञ्जरवत् शरीर को देखकर दुख होता था।

(iii)युवावस्था में राकफेलर स्वस्थ्य तथा हट्टाकट्टा था (In his Youth John Davison Rockefeller was Healthy):

  • जीवन के प्रारंभिक काल में राकफेलर एक हट्टे-कट्टे स्वस्थ शरीर वाला युवक था।उसमें मानसिक तनाव न था।वह गाँव में रहता था।वहां के निर्द्वन्द्व वातावरण,उन्मुक्त वायु तथा खुले आकाश में बड़ा हुआ था।जिंदगी के प्रति उत्साह था;शरीर मजबूत था।कंधा उठा हुआ था।सीना तान मस्त बैल की तरह चला करता था।लेकिन माया के कुचक्र ने उन्हें चौपट कर दिया।जैसे-जैसे उसके पास धन आता और इकट्ठा होता गया वैसे-वैसे ही अधिकाधिक अमीर बनने की अदम्य अभिलाषा,अमीरियत में दूसरों को परास्त करने की प्रतियोगिता के भाव उसके मन को दबाने लगे।आर्थिक चिन्ताओं ने उसके फूल जैसे जीवन पर घातक विषैला तनाव डालना शुरू कर दिया।मानसिक तनाव के कारण उसकी तंदुरुस्ती क्रमशः गिरती गयी।53 वर्ष की आयु में वह सूखकर अस्थियों का ढाँचा मात्र रह गया।पानी में भी जैसे मछली प्यासी थी।जल में कमल सूख रहा था।उसका जीवन चलता-फिरता मुर्दा था।
  • तनिक कल्पना कीजिए उसकी आय प्रति सप्ताह $2000000 थी किन्तु प्रति सप्ताह दो डालर का भोजन भी नहीं पचा पाता था।थोड़े-से दूध तथा रोटी के एक टुकड़े को पचा लेना भी उसके लिए बड़ी बात थी।
    थोड़े-सी हानि या व्यापार में नुकसान की आशंका से बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता था।चिंता उसे बुरी तरह दबा देती।एक चिंता से ही रातभर उनींदा रह जाता था।

(iv)राकफेलर को केवल डेढ़ सौ डालर डूबने की चिन्ता (John Davison Rockefeller Worried about Sinking only $150):

  • राकफेलर ने चालीस हजार डालर मूल्य के अनाज का एक जहाज व्यापार के लिए विदेश भेजा था।यह ग्रजलेक्स से होकर गया था।माल की सुरक्षा के लिए प्राय: बीमा कराया जाता है।इस जहाज का बीमा कराने में डेढ़ $150 खर्च आता था।इस पैसे को बचाने के लोभ से बीमा नहीं कराया गया।वैसे ही जहाज यात्रा पर रवाना हो गया।संयोग की बात उसी रात को लेक्स पर बड़ा तूफान आया।इस तूफान का पता चलते ही,राकफेलर को अपने जहाज की सुरक्षा की भयानक चिंता लग गई।वह सोचने लगा-कहीं यह तूफान में डूब न जाए?भयंकर नुकसान हो जाएगा।कितनी बड़ी गलती हो गई।इस जहाज के माल के नष्ट हो जाने से व्यापार में बड़ी हानि हो होगी।तब क्या होगा?मेरी मूर्खता,मेरी अदूरदर्शिता …!अब क्या करूं?
  • हजारों प्रकार की चिंताओं ने उसे झँझोड़कर रख दिया।सारी रात करवटें काटते बीती।सवेरे जब उसका भागीदार जॉर्ज गार्डनर ऑफिस आया,तब उसने राकफेलर को बड़ा चिंतातुर देगा।सब आशंका सुनी।उसे भी लगा कि थोड़े से पैसे के लोभ में आकर भारी मूर्खता कर बैठे हैं।व्यापार में बड़ी हानि की आशंका थी।किन्तु अब क्या हो सकता था? तीर हाथ से छूट चुका था।अरे भाई!जो कुछ भी हो,जल्दी करो।किसी मूल्य पर बीमा हो सके तो तुरंत करा दो।अब देर मत करो।जल्दी दौड़ जाओ। जितनी अधिक देर होती है;नुकसान की आशंका बढ़ती जाती है।
  • राकफेलर ने अपनी भागीदार को किसी शर्त पर अधिक से अधिक प्रीमियम देकर तुरन्त अनाज से भरे हुए जहाज का बीमा करवाने को दौड़ाया।बेचारा गार्डनर दौड़ा-दौड़ा गया।बड़ी मिन्नते-खुशामद की,जो कुछ अधिक से अधिक बीमा की रकम मांगी गई,उसे देकर आखिर किसी तरह जहाज का बीमा करवा दिया गया।तब राकफेलर की चिंता दूर हुई।चाहे खर्च अधिक हो गया,पर बीमा तो हो ही गया।यही संतोष था।
  • किंतु चिंता भूत की तरह मनुष्य पर सवार हो जाती है और नए-नए कारण ढूंढती रहती है।राकफेलर के मन पर फिर हथौड़े की चोट लगी।एक नई परेशानी ने उसे फिर व्यग्र कर दिया।
    यह सब क्यों हुआ?
  • अभी बीमा करवाये 7-8 घंटे हुए थे कि इसी बीच समाचार आया कि उसका माल गंतव्य स्थान पर सही सलामत पहुंच गया था।सौभाग्य से उसे कोई नुकसान नहीं हुआ था।
  • और कोई शुद्ध प्रवृत्ति का व्यक्ति होता तो भगवान की बड़ी कृपा के लिए अनेक धन्यवाद देता,दान देता और खुशियां मनाता।प्रेम से मित्रों को भोजन कराता।उसकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं होता।

(v)राकफेलर पर नकारात्मक विचारों का प्रभाव (The Impact of Negative Thoughts on John Davison Rockefeller):

  • पर राकफेलर नकारात्मक विचारों (Negative Thinking) में फंसा रहनेवाला धनकुबेर था।उसने अब इस तरह सोचना प्रारंभ किया:
  • तनिक-सा काम था और मैं यूं ही इतना डर गया।इस व्यर्थ भय से आक्रांत होकर बीमा कराने में मैंने यूं ही अपने डेढ़ सौ डॉलर बर्बाद कर दिए।मेरा इतना धन जरा-से फिक्र से नष्ट हो गया।मैं भी कैसा अदूरदर्शी मूर्ख हूं।कितना नुकसान हो गया!ऐसे धन बर्बाद करता रहा तो मुझे व्यापार में लाभ कैसे होगा!कहीं मैं गरीब न हो जाऊँ।
  • इसी प्रकार कुत्सित चिंतन करते-करते अपने धन की चिंता में राकफेलर बीमार पड़ गया।उसने अधिक चिन्तित होकर खटिया ही पकड़ ली।दिनभर वह फजूलखर्ची पर परेशान रहता।उस हानि के विचारों ने मन में गुत्थी (Complex) बनकर जीर्ण चिन्ता का रूप धारण कर लिया।धन की रक्षा और हाथ से यूं ही निकले हुए धन के पश्चात ने जैसे उसे पागल जैसा कर दिया।आत्मग्लानि के विचार उसे परेशान करने लगे।यह झांकी है दुनिया के एक सबसे अमीर आदमी के जीवन की।ऐसे रुपए या व्यापार से क्या लाभ,जो मनुष्य का अंत कर दे?राकफेलर के पास अनाप-शनाप रुपया था जिसे शायद वह गिन भी नहीं पाता था।कोई सांसारिक अभाव नहीं था पर फिर भी वह अपना सारा दिन अधिकाधिक धन कमाने या उसे बनाए रखने,जोड़ने और उसी के विषय में सोचने विचारने में व्यय करता था और किसी कार्य के लिए उसके पास कोई समय नहीं था।
  • अब समस्या यह थी कि राकफेलर को मौत के मुँह से कैसे बचाया जाए?कौनसी चिकित्सा की जाय,जिससे उसके प्राण बचें?क्योंकि उसके मन में असंतोष,लालच और चिन्ताएँ भावना-ग्रन्थियों का रूप धारण किए बैठी थी।मनोवैज्ञानिकों से सलाह ली गई।किसी भी तरकीब से प्राण बचें।

(vi)मनोवैज्ञानिक की राकफेलर को ठीक करने की सलाह (Psychologists’ Advice to Heal John Davison Rockefeller):

  • मनोवैज्ञानिकों ने कहा जिस व्यक्ति में लोभ का भाव जितना अधिक होता है,वह उतना ही अधिक चिन्ताओं से भर जाता है।लोभी का मन संसार के उपयोगी रचनात्मक कार्यों को छोड़कर केवल एक छोटे से केंद्र में जम जाता है।धन की कामनाएँ कभी तृप्त नहीं होती।हजार से लाख और लाख से करोड़ होने पर भी धन की अधिक पिपासा बढ़ती ही जाती है।अतः संग्रह का भाव त्यागकर संतोष का भाव अपनाना चाहिए।
  • जिसके चित्त में संतोष है;उसके लिए सर्वत्र धन-संपत्ति भरी हुई है।जिसके पैर में जूते हैं,उसके लिए सारी पृथ्वी मानों चमड़े से ढकी हुई है।
  • संतोषरूपी अमृत से तृप्त एवं शांतचित्त वाले पुरुष को जो सुख प्राप्त है वह धन के लोभ से इधर-उधर दौड़ने वाले बड़े से बड़े धनवान लोगों को कहां प्राप्त हो सकता है?
  • राकफेलर के मित्रों को सलाह दी गई कि यदि उसे बचाना है तो उसका मन धन की अतृप्त कामनाओं से हटाकर अन्य मनोरंजक विषयों की ओर लगाना चाहिए।
  • राकफेलर के भागीदार गार्डनर महोदय ने उपर्युक्त सलाह को कार्यान्वित करने के लिए युक्ति सोची।वह इस प्रकार थी:
    गार्डनर ने दो हजार डालर में एक पालवाली नाव खरीदी।उसने स्वयं उसे चलाना सीखा।वह मजे में चलाता,प्रकृति के चिन्तारहित वातावरण में रहता और धार्मिक भजन गुनगुनाया करता था।इससे उसे लाभ हुआ।
  • एक शनिवार को उसने राकफेलर को नौका-विहार का निमन्त्रण देते हुए कहा:काम छोड़ों,चलो।इस धन के दम घुटने वाले वातावरण से बाहर निकलकर मन को हल्का करें।नाव में तथा प्रकृति के गोद में घूमने और भजन गाने से तन और मन ताजा हो जाएगा।जिन्दगी में रस और परिवर्तन आ जाएगा।इस परिस्थिति और स्थान का परिवर्तन करो।
  • राकफेलर उत्तेजित होकर बोला:ऐसे फालतू काम के लिए मेरे पास वक्त नहीं।
  • गार्डनर ने प्रेम-हठ किया।मेरे मित्र!तनिक खुले जीवन,प्रकृति और निश्चिन्त जीवन का आनंद लो। भगवान् के नाम में स्वास्थ्य की शक्ति छिपी हुई है।भक्ति के गीत गुनगुनाओ और सांसारिकता छोड़ो।
  • राकफेलर को उस वातावरण से हटाया गया।जैसे-जैसे वह धन के कुचक्र से निकला और भगवान् की ओर बढ़ा,वैसे-वैसे ही उसके स्वास्थ्य में लाभ दिखाई दिया।उसने अनुभव किया कि माया-मोह में अति लिप्त रहना मानसिक-शारीरिक बीमारियों का कारण है।अब उसने ओर भी ध्यानपूर्वक मनोवैज्ञानिक सलाह ली।मनोवैज्ञानिकों डाॅक्टरों ने उसे कुछ ओर विस्तार से लाभदायक सूत्र बताए जो इस प्रकार थे:
  • चिंता से दूर रहे क्योंकि यह मानसिक तनाव उत्पन्न करती है।रुपए कमाने,ऋण वसूली करने,शेयरों के भाव ऊँचे-नीचे होने,बैंकों के फेल होने या अपनी पूंजी के मारे जाने की किंचित भी चिंता न करें।मन से इस प्रकार का सारा तनाव (Tension) त्याग दें।
    शरीर से होने वाले मनोरंजक रचनात्मक कार्यों में दिलचस्पी लें।पर्याप्त मनोरंजन और आमोद-प्रमोद किया करें।बागवानी,पानी में तैरना,खूब टहलना, पर्वतीय प्रदेशों की पैदल यात्रा करना जैसे काम किया करें।प्रतिदिन हल्का व्यायाम किया करें।
    चिंता दूर करने के ऊपरी तरीके जैसे सिगरेट,शराब,जुआ व नशेबाजी के उपाय सब बिल्कुल ही छोड़ दें।
  • कई बार दिन में हल्का भोजन करें।चाय,कहवा, मिठाई,नाश्ते इत्यादि छोडकर हल्का और फल तथा दूधयुक्त भोजन किया करें।
    मन को भय और चिन्ताओं से बचाता रहे।संतोष और उदारता की भावनाओं का अभ्यास और प्रयोग करें।हानि-लाभ दोनों ही स्थितियों में मन को पूर्ण शान्त,संतुलित और अविचलित रखा करें।मन में सदा भगवान मेरे साथ हैं,मेरे सहायक और रक्षक हैं यह भाव रखें।किसी भी घटना के विषय में अधिक चिन्तित न रहें।अन्तिम परिणाम भगवान् पर छोड़कर हर दशा में अपने मन को संतुलित बनाए रहे।प्रतिदिन भगवत् पूजन से दिन का प्रारंभ करें और सोने से पूर्व दिन की समाप्ति पर भगवान् को धन्यवाद दें और प्रतिदिन भजन गाया करें।

(vii)सकारात्मक विचारधारा से राकफेलर को नया जीवन मिला (With Positive Thoughts John Davison Rockefeller Got a New Life):

  • अब राकफेलर इन नियमों का दृढ़ता से पालन करने लगा।जिन्दगी बचाने के लिए उसने इन नियमों को जीवन में डालना शुरू किया।
  • कुछ महीनों में उसको लाभ होने लगा।उसके जीवन का एक नया अध्याय आरम्भ हुआ।वह संकुचित स्वार्थ और लोभ के विचारों से मुक्त होकर संतोषरूपी अमृत से तृप्त होने लगा।खेलने-कूदने,आमोद-प्रमोद करने और नये-नये मनोरंजनों में समय देने लगा।वह बाग और खुले स्थानों में घूमता,नाचता और गाता था।सबसे बड़ी बात यह हुई कि वह भौतिकवाद से हटकर अध्यात्मवाद,भजन,पूजन,भगवत्-चिन्तन में ध्यान देने लगा।धार्मिक भाषण सुनना,प्रार्थना में सक्रिय भाग लेना उसके जीवन का अंग बन गया।
  • इस प्रकार राकफेलर की जिंदगी ने करवट ली।धन के मायाजाल से पिण्ड छूटा।सांसारिकता के दायरे से हटकर अब वह संतोषवृत्ति की ओर लगा।सेवा,कर्त्तव्य,भगवत पूजन,निर्द्वन्द्व प्रसन्नतामूलक आशावादी दृष्टिकोण आ गया।धीरे-धीरे उसके शरीर और मन का कायाकल्प हो गया।खोया हुआ स्वास्थ्य और जीवन फिर लौट आया।जो व्यक्ति मौत के मुंह में जाने की प्रतिदिन बाट देख रहा था,उसे नई जिंदगी मिली,नया यौवन मिला और 30 वर्ष ओर अधिक जीवित रहा।राकफेलर ने मनोरंजक संस्मरण लिखे हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं:
  • मैंने गोल्फ खेलना सीखा,खुली हवा में दूर-दूर तक टहलने की आदत डाली।प्रकृति के वातावरण में रहने की वजह से चिंता से छूटा तो मुझे नई जिंदगी मिली।मैंने अनुभव किया कि क्या असंतोष से बढ़कर और कोई दुख नहीं है।मैंने गोल्फ खेलना सीखा।खुली हवा में सुबह शाम दूर-दूर तक टहलने की आदत डाली।प्रकृति के वातावरण में रहने से चिन्ता भागी।मैंने अनुभव किया कि शराफत से जीवित रहने के लिए मनुष्य को बहुत थोड़े से पैसों की जरूरत है।
  • धन संचय की चिंता त्याग कर मैंने अपने पास-पड़ोस के साधारण व्यक्तियों के जीवन तथा व्यक्तिगत समस्याओं,उनके हर्ष-विषाद,दुख-दर्द में सहानुभूति पूर्वक हिस्सा लिया तथा उनके दुख-दर्द दूर करने का उपाय किया।नयों से मेलजोल बढ़ाया। इन नए संपर्कों से मेरी चिंता कम हो गई।
  • मैंने अपनी संपत्ति की चिंता छोड़ दी।मुझे अनुभव हो गया कि जीने के लिए सुरक्षा की दृष्टि से मुझे भविष्य में कपड़ा,भोजन और सम्मान सदा यूं ही मिलता रहेगा।इसलिए मैं प्रतिवर्ष कितना कमाता हूं और कितना खर्च करता हूं इस हानि-लाभ के विचार को मैंने त्याग दिया।मैंने अनुभव किया कि धन की अपेक्षा जीवन में ओर भी अधिक मूल्यवान बहुत से कार्य करने के लिए मौजूद है।
    कितना धन मैं कमा सकता था इसकी चिंता छोड़कर अब मैं यह सोचने लगा कि मेरा कितना धन गरीबों के लिए सुख,शांति,सेवा,आराम और आनंद खरीद सकता है।परोपकार और दान में मैंने करोड़ों रुपए वितरित करना प्रारंभ किया।अस्पतालों,अनाथालयों और पुस्तकालयों में बहुत सहायता की।इस प्रकार मेरी जिंदगी शुरू हुई और मुझे शांत,तृप्त और दीर्घ-जीवन मिला।
  • उपर्युक्त विवरण में गणितज्ञों का प्रतिभा पलायन (Brain Drain of Mathematicians),प्रतिभा पलायन (Brain Drain) के बारे में बताया गया है।

2.गणितज्ञों का प्रतिभा पलायन (Brain Drain of Mathematicians),प्रतिभा पलायन (Brain Drain) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.प्रतिभा पलायन का उदाहरण क्या है? (What is an example of brain drain?):

उत्तर:प्रतिभा पलायन का एक उदाहरण तब होता है जब लगभग सभी लोग जो उच्च शिक्षित हैं लेकिन जो तीसरी दुनिया के देश में रहते हैं,वे अमेरिका में नौकरी ढूंढते हैं और अपना गृह देश छोड़ देते हैं ।

प्रश्न:2.प्रतिभा पलायन से कौन ग्रस्त है? (Who suffers from brain drain?):

उत्तर:शब्द अक्सर डॉक्टरों (Doctors),स्वास्थ्य पेशेवरों (Healthcare Professionals),वैज्ञानिकों (Scientists),इंजीनियरों (Engineers) या वित्तीय पेशेवरों (Financial Professionals) के समूहों के प्रस्थान का वर्णन करता है।जब ये लोग छोड़ते हैं,तो उनके मूल स्थानों को दो मुख्य तरीकों से नुकसान पहुंचाया जाता है।

प्रश्न:3.प्रतिभा पलायन की अवधारणा के बारे में क्या है? (What is the concept of brain drain about?):

उत्तर:प्रतिभा पलायन को बेहतर जीवन स्तर और जीवन की गुणवत्ता,उच्च वेतन,उन्नत प्रौद्योगिकी तक पहुंच और दुनिया भर में विभिन्न स्थानों पर अधिक स्थिर राजनीतिक परिस्थितियों की तलाश में स्वास्थ्य कर्मियों (Health Personnel) के प्रवास (migration) के रूप में परिभाषित किया गया है ।

प्रश्न:4.तीन प्रकार के प्रतिभा पलायन क्या हैं? (What are the three types of brain drain?):

उत्तर:तीन प्रकार के प्रतिभा पलायन को प्रतिष्ठित किया जा सकता है:विकसित देशों के बीच,विकासशील से विकसित देशों के बीच और विकासशील देशों के बीच।

प्रश्न:5.क्या प्रतिभा पलायन का भारत पर असर पड़ता है? (Does brain drain effect India?):

उत्तर:नवीनतम भारत कौशल रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शिक्षण संस्थानों से बाहर आने वाले केवल 47% छात्र ही रोजगारपरक हैं।

प्रश्न:6.प्रतिभा पलायन का निष्कर्ष क्या है? (What is the conclusion of brain drain?):

उत्तर:प्रतिभा पलायन हमेशा नीति निर्माताओं के लिए मुख्य एजेंडा रहा है क्योंकि कुशल कर्मियों का नुकसान आर्थिक विकास में मंदी के बराबर है। हालांकि पहले शोधकर्ताओं द्वारा आयोजित घटना पर काफी शोध हुए हैं लेकिन बहुत कम ने इसे मात्रात्मक रूप से संचालित करने का प्रयास किया है ।

प्रश्न:7.किस देश में सबसे ज्यादा ब्रेन ड्रेन है? (Which country has the worst brain drain?):

उत्तर:नाइजीरिया (Nigeria),केन्या (Kenya) और इथियोपिया (Ethiopia) को सबसे ज्यादा प्रभावित माना जा रहा है।संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अनुसार,इथियोपिया ने 1980 और 1991 के बीच अपने कुशल कार्यबल का 75% खो दिया ।

प्रश्न:8.किस देश में सबसे ज्यादा ब्रेन ड्रेन है? (Which country has the highest brain drain?):

उत्तर:ईरान (Iran): 2006 में,आईएमएफ ईरान 90 देशों के बीच प्रतिभा पलायन में सबसे अधिक स्थान (दोनों विकसित और कम विकसित) दिया,180000 से अधिक लोगों को हर साल एक कम नौकरी बाजार (poor job market) और दमनकारी सामाजिक परिस्थितियों (oppressive social conditions) के कारण जा रहा है ।

प्रश्न:9.ब्रेन ड्रेन अच्छा है या बुरा? (Is brain drain good or bad?):

उत्तर:एक अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि यदि उच्च शिक्षित उत्प्रवास दर (emigration rate) 20 प्रतिशत से ऊपर है तो प्रतिभा पलायन का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।अत्यधिक कुशल पेशेवरों का उत्प्रवास जरूरी नहीं कि विकासशील देशों के लिए बुरी खबर है।कुछ उत्प्रवास एक स्वस्थ बात है,लेकिन बहुत ज्यादा समस्याग्रस्त हो सकता है ।

प्रश्न:10.प्रतिभा पलायन का क्या असर है? (What is the impact of brain drain?):

उत्तर:प्रतिभा पलायन से भेजने वाले क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है,जैसे मानव पूंजी में कमी (human capital),कुछ नया करने की सीमित क्षमता (limited capacity to innovate),आर्थिक विकास (economic growth) में कमी,जनसांख्यिकीय बदलाव (demographic shifts) और सार्वजनिक वस्तुओं (public goods) की अधिक लागत ।

प्रश्न:11.ब्रेन ड्रेन को कैसे नियंत्रित किया जाता है? (How is brain drain controlled?):

उत्तर:महिलाओं के लिए अधिक अवसर सुनिश्चित करने से स्वाभाविक रूप से उच्च कुशल महिलाओं का उत्प्रवास (emigration) कम होगा और देशों को प्रतिभा पलायन धीमा करने में मदद मिलेगी।एक अन्य सुझाव कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने का है।एक बड़ा प्रवासी मूल (A large diaspora) देशों के लिए आर्थिक लाभ पैदा कर सकता है।

प्रश्न:12.ब्रेन ड्रेन भारत कैसे रोक सकता है? (How India can stop brain drain?):

उत्तर:कुछ बुनियादी पहल हैं जो ब्रेन ड्रेन से निपट सकती हैं जो हैं:
ग्रामीण विकास−गांव भारत में उचित और प्रभावी विकास की आत्मा बनाते हैं ।
अंडर-एंप्लॉयमेंट से निपटना−कर्मचारियों की भर्ती करने वाली कंपनियों को अपने संगठन में किसी भी तरह के अल्परोजगार को हल करने का पूरा ध्यान रखना चाहिए ।

प्रश्न:13.हमारे देश के लिए प्रतिभा पलायन अच्छा क्यों नहीं है चर्चा करें? (Why brain drain is not good for our country discuss?):

उत्तर:प्रतिभा पलायन देश के लिए बुरा है क्योंकि यह कुशल श्रमिकों को खो रहा है जो उन्हें बनाने में समय और संसाधन लगते हैं।इससे उस देश में लोकतंत्र के पनपने की संभावना भी कम हो जाती है क्योंकि लोकतंत्र और शिक्षा सहसंबद्ध हैं। शिक्षित लोग बेहतर जीवन और कार्य की गुणवत्ता के लिए संघर्ष (strife) करते हैं ।

प्रश्न:14.क्या वैश्वीकरण के कारण प्रतिभा पलायन होता है? (Does globalization cause brain drain?):

उत्तर:वैश्वीकरण (Globalization) लोगों को यह समझने में मदद करता है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों को क्या पेशकश करनी है।यह इस अर्थ में प्रतिभा पलायन की सुविधा है कि लोगों को स्थानांतरित करने के लिए और बसने जहां वे फिट समझे।लेकिन एक अन्य कारक मूल देश में व्यक्ति के लिए उपयुक्त सुविधाओं की कमी है ।

प्रश्न:15.प्रतिभा पलायन के विपरीत क्या है? (What’s the opposite of brain drain?):

उत्तर:नेट ब्रेन ड्रेन (net brain drain) के विपरीत शुद्ध मस्तिष्क लाभ (net brain gain) है- जब एक राज्य को बाहर के प्रवास की तुलना में कौशल का अधिक से अधिक प्रवास प्राप्त होता है।

प्रश्न:16.क्या ब्रेन ड्रेन इंडिया के लिए अच्छा है? (Is brain drain good for India?):

उत्तर:प्रतिभा पलायन किसी भी राष्ट्र के लिए विशेष रूप से एक विकासशील राष्ट्र के लिए अच्छा नहीं है। प्रतिभा पलायन का अर्थ है अन्य देशों में योग्यता का पलायन तो देश में जो बचा है वह सामान्यता (mediocrity) है जो देश के विकास को स्टंट (stunts) करती है ।

प्रश्न:17.प्रतिभा पलायन के क्या नुकसान हैं? (What are the disadvantages of brain drain?):

उत्तर:ब्रेन ड्रेन के नुकसान
अच्छे श्रम बल और कार्य का नुकसान होगा-यदि लोग एक देश से दूसरे देश में प्रवास करते हैं।
कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होगी क्योंकि कोई कार्यबल नहीं होगा ।
कार्यबल पलायन कर गया तो देश का विकास नहीं होगा।
देश के विकास में रुकावट आएगी तो कुशल जनशक्ति खत्म हो जाएगी।

प्रश्न:18.क्या भारत ब्रेन ड्रेन को ब्रेन गेन में बदल सकता है? (Can India turn brain drain into brain gain?):

उत्तर:निष्कर्ष:-भारत वास्तव में ‘ब्रेन ड्रेन (brain drain)’ को ‘ब्रेन गेन (brain gain)’ में बदलने में सक्षम है।


प्रश्न:19.भारत में ब्रेन ड्रेन के क्या कारण हैं? (What are the reasons for brain drain in India?):

उत्तर:बेरोजगारी को भारत के प्रतिभा पलायन के कारण के रूप में ज्यादा देखा जा सकता है।साहित्य में तथाकथित धक्का-मुक्की और खींचतान कारकों में भेद है।पुश कारकों को राजनीतिक अस्थिरता, बेरोजगारी और अप्रतिस्पर्धी पारिश्रमिक के रूप में पहचाना जा सकता है ।

प्रश्न:20.प्रतिभा पलायन भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करता है? (How does brain drain affect Indian economy?),प्रतिभा पलायन हमारे देश के लिए अच्छा क्यों नहीं है?(Why brain drain is not good for our country?):

उत्तर:प्रतिभा पलायन वैश्वीकरण से जुड़ी शुरुआती घटनाओं में से एक है,जिसका स्थानीय स्तर पर महत्वपूर्ण प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।कुशल कामगारों के प्रस्थान से विकासशील देशों,विशेष रूप से छोटे लोगों को महत्वपूर्ण कौशल और कार्यबल से वंचित कर कमजोर किया जा सकता है।
घर देश (Home Country) पर प्रतिभा पलायन के प्रभाव
संभावित भविष्य के उद्यमियों की हानि।महत्वपूर्ण, कुशल कामगारों की कमी।पलायन से अर्थव्यवस्था में विश्वास की हानि हो सकती है,जिसके कारण व्यक्ति रहने के बजाय जाने की इच्छा करेंगे।शिक्षा में देश के निवेश का नुकसान।

प्रश्न:21.भारत में ब्रेन ड्रेन कब शुरू हुई? (When did brain drain started in India?):

उत्तर:यह इस संदर्भ में है कि वर्ष 1960-1970 को “प्रतिभा पलायन” वर्ष के रूप में जाना जाता है जबकि 1980-1990 की अवधि को “ब्रेन बैंक” घटना (खदरिया,1999) की अवधि माना जा सकता है।स्रोत:आईसीडब्ल्यूए,भारतवंशियों पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट,नई दिल्ली,भारतीय विश्व मामलों की परिषद,2001(Indian Council of World Affairs, 2001)।
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणितज्ञों का प्रतिभा पलायन (Brain Drain of Mathematicians),प्रतिभा पलायन (Brain Drain) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणितज्ञों का प्रतिभा पलायन (Brain Drain of Mathematicians),प्रतिभा पलायन (Brain Drain) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।Brain Drain of Mathematicians

Brain Drain of Mathematicians

गणितज्ञों का प्रतिभा पलायन
(Brain Drain of Mathematicians)

Brain Drain of Mathematicians

गणितज्ञों का प्रतिभा पलायन (Brain Drain of Mathematicians)
ही नहीं हो रहा है बल्कि वैज्ञानिकों,चिकित्सकों,इंजीनियरों का भी देश
से प्रतिभा पलायन हो रहा है।परंतु गणितज्ञों,इंजीनियरों का प्रतिभा पलायन

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