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Growth Mindset in Learning Neglect Fixed Mindset in Math Course Design

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सीखने में विकास मानसिकता उपेक्षा “निश्चित” गणित पाठ्यक्रम डिजाइन में मानसिकता का परिचय (Introduction to Growth Mindset in Learning Neglect Fixed Mindset in Math Course Design)

1.सीखने में विकास मानसिकता उपेक्षा “निश्चित” गणित पाठ्यक्रम डिजाइन में मानसिकता का परिचय (Introduction to Growth Mindset in Learning Neglect Fixed Mindset in Math Course Design):

  • सीखने में विकास मानसिकता उपेक्षा “निश्चित” गणित पाठ्यक्रम डिजाइन में मानसिकता (Growth Mindset in Learning Neglect Fixed Mindset in Math Course Design) में बताया गया है कि गणित सीखने के लिए विकास की मानसिकता का क्या योगदान है।यदि हम निश्चित मानसिकता के साथ के स्थान पर विकास की मानसिकता रखें तो इसमें कोई सन्देह नहीं है कि गणित को सीखने में कुछ न कुछ योगदान जरूर होता है। इसके साथ ही अन्य पहलुओं का भी वर्णन किया गया है।
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2.सक्रिय जागरूकता (Active Awareness):

  • गणित को कोई भी सीख सकता है इसके लिए जिज्ञासा, रुचि और सक्रिय जागरूकता की आवश्यकता है। यदि गणित में आपकी थोड़ी सी भी जिज्ञासा या रुचि है तथा सक्रिय जागरूकता है तो आप गणित सीखने में आगे बढ़ सकते हैं।

3.विकास मानसिकता (Mentality Development):

  • विकास अधिकांश रूप से व्यवसाय और कंपनियों में प्रचलित है तथा विकास का अर्थ अधिकांशतः व्यवसाय व कंपनी के विकास से लिया जाता है। पूर्वकाल तक शिक्षा तथा निगमों में बंधें हुए या निश्चित नियम के अन्तर्गत कार्य किया जाता था। परन्तु वर्तमान युग में विकास माॅडल को हर क्षेत्र में प्रयोग किया जाने लगा है।
  • बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ज्यों-ज्यों गणित की लोकप्रियता बढ़ने लगी इसके फलस्वरूप अनेक गणितज्ञों की रुचि बढ़ी और इस दिशा में अनेक अध्ययन होने लगे। उन्होंने अनुभव किया कि विभिन्न आयु स्तर पर गणित सम्बन्धी विद्यार्थियों में अनेक परिवर्तन होते हैं। विद्यार्थियों में समय के साथ गणित सम्बन्धी परिवर्तन होते हैं उनका वैज्ञानिक अध्ययन ही गणित शिक्षा में विकास कहा जाता है।
  • बालक अपने जीवनकाल में जो गणित सम्बन्धी ज्ञान अर्जित करता है, बोध इसी पर आधारित है। यह कोई वंशानुगत क्षमता नहीं है। जन्म के समय बालक में किसी प्रकार के गणित का बोध करने की क्षमता नहीं होती है। वह गणित शिक्षा के नाम पर केवल रोना जानता है। बालक में परिपक्वता के साथ गणित सीखने की योग्यता बढ़ती जाती है। वह अपनी ज्ञानेन्द्रियों की सहायता से देखकर, सुनकर या अनुभूति के द्वारा गणित के प्रत्ययों को समझने की कोशिश करता है। धीरे-धीरे इन प्रयासों द्वारा उसे गणित का बोध होने लगता है। उसके ज्ञान के विकास के साथ-साथ उसकी वातावरण में रुचि बढ़ती है। वातावरण उसके लिए अर्थपूर्ण होता जाता है।
  • परिपक्वता बालक को शारीरिक और मानसिक रूप से गणित का बोध करने के लिए तैयार करती है। गणित के बोध के लिए परिपक्वता और ज्ञानेन्द्रियों का विकास आवश्यक है।
  • गणित के बोध की क्षमता उन बालकों में अधिक होती है जिनमें मानसिक विकास स्वरूप से अधिक होता है तथा उन बालकों में बोध का विकास सामान्य से कम होता है जिनकी मानसिक क्षमताओं का विकास सामान्य से कम होता है।
  • ज्यों-ज्यों बालकों में स्मृति, कल्पना और चिन्तन का विकास होता जाता है उनमें गणित सम्बन्धी प्रत्ययों का विकास भी होने लगता है।

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(1.)स्मृति (Memory):

  • स्मरण एक प्रकार की मानसिक प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य धारण की गई विषय-सामग्री का पुन: स्मरण कर चेतना में लाकर पहचानने का प्रयास करता है। विषय-सामग्री को धारण करने के लिए उसे सीखना आवश्यक है। परन्तु बालक चिन्ताग्रस्त रहता है तो उसका पुन: स्मरण उतना ही कम हो जाता है।

(2.)कल्पना (Imagination):

  • कल्पना गत अनुभवों से सम्बंधित होती है इसमें हमेशा नवीनता पाई जाती है। बालक को कल्पना में यह अनुभव होता है कि कल्पना से सम्बन्धित अनुभव नवीन है। कल्पना पूर्व अनुभवों पर आधारित वह प्रक्रिया है जो रचनात्मक (Constructive) होती है परन्तु आवश्यक नहीं है कि सृजनात्मक (Creative) भी हो।
  • बालक जब पुन:स्मरण अर्थात् स्मृति और कल्पना करना सीख लेता है तब उसका गणित कौशल व ज्ञान अधिक बढ़ जाता है। इस योग्यता के प्राप्त होते ही बालक गणित की उन वस्तुओं के सम्बन्ध में भी विचार करने लग जाता है जो उसके सामने नहीं होती है। कल्पना का महत्त्व विभिन्न विकासात्मक प्रक्रियाओं में है।
  • कल्पना के विकास के साथ ही बुद्धि के क्षेत्र में गणित के लिए खोज प्रवृत्ति विकसित होने लगती है।

3.चिन्तन (Thinking):

  • चिन्तन एक उच्च ज्ञानात्मक (Cognitive) प्रक्रिया है, जिसके द्वारा ज्ञान संचय होता है। इस मानसिक प्रक्रिया में बहुधा स्मृति, कल्पना आदि मानसिक क्रियाएं सम्मिलित होती है। बालक के सामने जब गणित की कोई समस्या उपस्थित होती है तो वह उस समस्या से सम्बन्धित क्षेत्र में कठिनाई का अनुभव करने लगता है। कठिनाई को दूर करने के लिए वह चिन्तन करता है ।इसके लिए वह समस्या का विश्लेषण करते समय वर्तमान अनुभवों को अपने गत अनुभवों के आधार पर वह समस्या समाधान के सम्बन्ध में अनुमान करता है जिससे उसके सामने कई समाधान सामने प्रस्तुत होते हैं। उनमें से वह उचित समाधान का चयन करता है अर्थात् वह इस कार्य के लिए निर्णय लेता है कि कौनसा उचित हो सकता है और कौनसा अनुचित है।
  • चिन्तन तथा कल्पना दोनों ही ज्ञानात्मक व रचनात्मक प्रक्रियाएं हैं। दोनों क्रियाओं में गत अनुभवों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। चिन्तन की सहायता से बालक समस्या के विभिन्न पहलुओं को समझने की कोशिश करता है क्योंकि पहलुओं को समझे बिना समस्या समाधान नहीं हो सकता है। दूसरी ओर कल्पना में समस्या समाधान की परिस्थिति को नये-नये रूपों में देखता है। चिन्तन में तर्क की प्रधानता होती है जबकि कल्पना में तर्क का अभाव होता है।

4.विकास का मूल आधार (Background of Development):

  • विकास की मूल धारणा व्यवसाय एवं कम्पनियों से अन्य क्षेत्रों में विकसित हुई है इसलिए विकास के माॅडल में व्यावसायिकता है। इस प्रकार शिक्षा तथा गणित शिक्षा का भी व्यावसायिकरण हो गया है। व्यावसायिक भावना रखना बुरा नहीं है यदि विद्यार्थियों के हितों और कल्याण का पूरा ध्यान रखा जाए परन्तु यदि व्यावसायिकता में विद्यार्थियों के हितों को नुकसान पहुंचाया जाये और अपना स्वार्थ सिद्ध किया जाए तो ऐसी व्यावसायिकता की भावना गलत है। चूँकि शिक्षा में व्यावसायिकता में कई संस्थाएं मात्र धन अर्जित करने में ही संलग्न रहती है तथा विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की तरफ उनका ध्यान नहीं रहता है तो ऐसी व्यावसायिकता से विद्यार्थियों को नुकसान ही होता है। दीर्घकालीन दृष्टि से ऐसी संस्थाओं के लिए भी यह नुकसानदायक है।

5.विद्यार्थियों के विकास की स्थिति (Position of Development of Students):

  • विद्यार्थियों को गणित सीखने के लिए विकास की मानसिकता अपनाने के लिए कहा जाता है तो लगभग आधे विद्यार्थियों का नकारात्मक उत्तर रहता है कि उन्हें गणित विषय का चुनाव ही नहीं करना है जबकि गणित का हर क्षेत्र में महत्त्व है तथा गणित का उपयोग होता है। ऐसी स्थिति इसलिए निर्मित हुई है क्योंकि शिक्षा पर शासन का अधिकार हो गया है और उसमें राजनैतिक हस्तक्षेप होता है।
  • इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि कुछ शिक्षकों को गणित विषय अच्छा लगता है और उन्हें गणित विषय अपने लिए ठीक लगता है तो वे सोचते हैं कि गणित विषय औरों के लिए भी ठीक होगा। गणित विषय में जिसकी रुचि नहीं है, उन पर गणित विषय थोंपना या पढ़ाना ज्यादती है उसमें शिक्षक को प्रतिरोध का ही सामना करना पड़ता है।
    आज का युग लोकतान्त्रिक युग है और सबको अपनी इच्छा व रुचि, योग्यता के अनुसार कार्य करने का अधिकार है। इसलिए किसी पर जबरन गणित थोंपना न्यायसंगत नहीं है।

6.गणित में श्रेष्ठता का मापदंड (Criterion of Superiority in Mathematics):

  • यदि गणित में आप अच्छा करना चाहते हैं तो गणित से प्रेम व प्यार करना होगा उसके प्रति अपनी रुचि व जिज्ञासा को बनाए रखना होगा। चाहे कितनी ही कठिन समस्या आ जाए। इसके लिए आपको धैर्य धारण करना होगा। हालांकि गणित में काव्यात्मकता नहीं है परन्तु लगातार आप गणित का अभ्यास करते रहेंगे तो गणित के क्षेत्र में जो हासिल करेंगे उसे देखकर आप खुद आश्चर्यचकित रह जाएंगे।

7. गणित की वर्तमान स्थिति (Current position of Mathematics):

    • गणित अब व्यावहारिक होती जा रही है अर्थात् हमारे जीवन के कई भागों में इसका प्रयोग किया जाता है, इसमें क्रियात्मक गणित का भी योगदान है। हमें भी अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में गणित का प्रयोग करना चाहिए जिससे गणित में आपकी रुचि जागृत हो।
    • इस प्रकार गणित के क्षेत्र में विकास का माॅडल अच्छा ही है यदि इसका सदुपयोग किया जाए तो अर्थात् इसमें जो व्यावसायिकता है उसको सही अर्थ में लेने की जरूरत है।

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  • उपर्युक्त आर्टिकल में सीखने में विकास मानसिकता उपेक्षा “निश्चित” गणित पाठ्यक्रम डिजाइन में मानसिकता (Growth Mindset in Learning Neglect Fixed Mindset in Math Course Design) के बारे में बताया गया है.

Growth Mindset in Learning Neglect Fixed Mindset in Math Course Design

सीखने में विकास मानसिकता उपेक्षा “निश्चित” गणित पाठ्यक्रम डिजाइन में मानसिकता (Growth Mindset in Learning Neglect Fixed Mindset in Math Course Design)

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सीखने में विकास मानसिकता उपेक्षा “निश्चित” गणित पाठ्यक्रम डिजाइन में मानसिकता
(Growth Mindset in Learning Neglect Fixed Mindset in Math Course Design)
में बताया गया है कि गणित सीखने के लिए विकास की मानसिकता का क्या योगदान है।
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