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What is main cause of anger in hindi

1.गुस्से का मुख्य कारण क्या है? का परिचय (Introduction to What is main cause of anger in hindi),गुस्से पर नियंत्रण कैसे रखें? (How to control anger?):

  • गुस्से का मुख्य कारण क्या है? (What is main cause of anger in hindi),गुस्से पर नियंत्रण कैसे रखें? (How to control anger?):क्रोध को कभी अपने ऊपर आता है और कभी दूसरों पर।अपने ऊपर गुस्से को आदमी पी जाता है क्योंकि सिवाय इसके कोई चारा नहीं है।लेकिन जब किसी दूसरे पर गुस्सा आता है तो यह देखा जाता है कि जिस पर गुस्सा आ रहा है उसकी हैसियत क्या है?अगर आदमी अपने से ज्यादा ताकतवर है या अपने से ऊँची हैसियत रखता है तो उस पर गुस्सा उतारने की हिम्मत नहीं होती।लेकिन अगर वह कमजोर है या नीची हैसियत का हो तो उसे आँखें दिखाई जाती है।ताकतवर या ऊँची हैसियत वाले के सामने अपनी चलती नहीं इसलिए बर्दाश्त करनी पड़ती है।
  • लोग अपने नौकरों या मातहत काम करने वालों को डाँटते हैं और वे बेचारे चुप रहते हैं।
    एक अफसर अपने मातहतों को डाँट-फटकार लगाता है पर अपने से ऊँचे अफसर के सामने भीगी बिल्ली बन जाता है।मन्त्री अफसरों को खरी-खोटी सुनाता है पर मुख्यमंत्री के आगे गिड़गिड़ाता है।दुनिया भर में यही तौर-तरीका देखने में आता है।
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2.गुस्से का मुख्य कारण क्या है? (What is main cause of anger in hindi),गुस्से पर नियंत्रण कैसे रखें? (How to control anger?):

  • मन के छः विकार हैं काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद,मत्सर (ईर्ष्या)।इनमें क्रोध मन का एक विकार है।कामनाओं की पूर्ति न होने या बाधा उत्पन्न होने पर क्रोध आता है।हम जैसा चाहते हैं वैसा नहीं होता है तो क्रोध आता है।साधारणतः हम क्रोध का कारण बाहरी मानते हैं।हम समझते हैं कि किसी ने हमारी बात नहीं मानी या हमारी कामना की पूर्ति में बाधा डाली तो हमें क्रोध आता है।हम क्रोध का कारण हमेशा दूसरों को मानते हैं।दरअसल यह अपने आपको निर्दोष मानने का तरीका है।वरना यदि क्रोध हमारे अंदर नहीं होता तो प्रकट कैसे होता।किसी भी चीज के पैदा होने के लिए उसके बीज का होना यानी मूल कारण का होना जरूरी होता है।क्रोध का बीज भी हमारे अन्तर्मन में दबे हुए पड़े रहते हैं जो हमारे संस्कारों के कारण संचित हो जाता है और मौका पड़ते ही प्रकट हो जाता है।
  • क्रोध जब प्रकट होता है तो हमारा विवेक नष्ट हो जाता है।क्रोध और विवेक एक साथ नहीं रह सकते हैं।जो मनुष्य इन छः विकारों पर विजय पा लेता है उसे क्रोध नहीं आता है।प्रथम दो विकार काम और क्रोध सबसे ताकतवर है।दरअसल क्रोध से सबसे अधिक नुकसान मनुष्य को स्वयं को होता है जबकि हम समझते हैं कि हम दूसरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
  • क्रोध पैदा होने का कारण हीन भावना होती है।जिस मनुष्य में हीन भावना होती है वह क्रोध करके यह दिखाना चाहता है कि वह हीन नहीं है।वह अपने को बड़ा सिद्ध करने के लिए क्रोध करता है।
  • क्रोध किस प्रकार पैदा होता है?मनुष्य पहले विषयों का चिंतन करता है।विषयों के चिंतन से फिर विषयों में प्रीति उत्पन्न होती है।प्रीति उत्पन्न होने से फिर उनको पाने की इच्छा होती है।पाने की इच्छा उत्पन्न होने के बाद,जब इच्छा पूर्ति नहीं होती तब क्रोध उत्पन्न होता है।क्रोध से अविवेक उत्पन्न होता है अर्थात् क्या करना चाहिए,क्या नहीं करना चाहिए यह विचार करने की शक्ति नहीं रहती।जब विचार शक्ति नहीं रहती,तब वह अपने आपको भूल जाता है।तब उसकी बुद्धि भले-बुरे का विचार करके किसी निर्णय तक पहुंचने की शक्ति नष्ट हो जाती है और जहां यह शक्ति नष्ट हुई कि मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है।
    इसलिए काम से उत्पन्न होने वाला क्रोध,सब पापों का मूल है।मनुष्य को क्रोध नहीं करना चाहिए।
  • क्रोध का मतलब यह नहीं है कि क्रोध का कोई अंश मनुष्य के अन्दर न रहे बल्कि इसका इतना ही मतलब है कि ऐसे क्रोध को धारण न करो जिससे स्वयं अपनी अथवा दूसरे की हानि हो।हां,विवेक के साथ क्रोध करने से कोई हानि नहीं हो सकती।क्रोध के साथ यदि विवेक शामिल होता है तो वह क्रोध तेज के रूप में परिवर्तित हो जाता है।ऐसा क्रोध दरअसल क्रोध नहीं होता।
  • डांट-डपट करना या सख्ती करना अलग बात है और क्रोध करना अलग बात है।दूसरों की भलाई के लिए किया गया क्रोध या ताड़ना यदि अच्छी भावना  से किया जाए तो उसे क्रोध नहीं माना जा सकता है।ऐसा क्रोध लोगों या बच्चों को अनुशासन और कर्त्तव्य पालन के लिए आवश्यक हो तो कर सकते हैं।अच्छी भावना होगी तो उसका परिणाम भी अच्छा ही होगा।
  • क्रोध उत्पन्न होने पर जो मनुष्य विवेक के द्वारा उसको अपने अन्दर ही रोक लेता है उसको तेजस्वी कहते हैं और इस तेजस्विता की मनुष्य के लिए बड़ी जरूरत है।तेजस्वी मनुष्य अंदर से कोमल रहता है परंतु ऊपर से कठोरता धारण करता है।दुष्टों का दमन करने और पीड़ितों को अत्याचार से छुड़ाने के लिए तेजस्विता दिखानी पड़ती है।तेजस्विता ही शूरता और निर्भयता की जननी है।तेजस्वी पुरुष की बुद्धि सदैव निर्मल रहती है।वह क्रोध करता है परन्तु क्रोध के कारण उसके हाथ से कोई अनर्थ अथवा पाप नहीं होता है।
  • अतः सर्वसाधारण को चाहिए कि छोटी-छोटी बातों पर अथवा बिना कारण क्रोध आ जाए तो उसको साधने का प्रयत्न करे।और यदि क्रोध करने की आवश्यकता ही मालूम पड़े तो आपे में रहकर तात्कालिक थोड़ा सा क्रोध दिखलाकर फिर तुरन्त शान्ति धारण कर ले।दूसरा यदि क्रोध करता हो तो कभी उसके बदले में क्रोध न करना चाहिए।बल्कि ऐसे मौके पर स्वयं पूर्ण शान्ति धारण करके उसके क्रोध को शांत करना चाहिए।
  • क्रोध से दुर्बलता आती है।शान्ति से बल बढ़ता है इसलिए काम,क्रोधादि दुष्ट मनोविकारों का सामना विवेक,धैर्य,शान्ति और स्नेह जैसे शुभगुणों के साथ करना होगा ताकि हम क्रोध करने से बच सके।शांति से चित्त प्रसन्न रहता है,मन और शरीर का सौन्दर्य बढ़ता है।जिसके हृदय में शान्ति रहती है,उसके चेहरे पर भी शान्ति विराजती है।उसके प्रफुल्ल और प्रसन्न वदन को देखकर देखने वाले को आनंद प्राप्त होता है।इसके विपरीत जिसके मन में क्रूरता और क्रोध के भाव उठते रहते हैं,उसका चेहरा विकृत और बदसूरत हो जाता है,ऐसे मनुष्य को देखकर घृणा होती है।इसलिए मन,वचन और कर्म तीनों में मधुरता और शान्ति धारण करने से मनुष्य स्वयं सुखी रहता है और संसार को भी उससे सुख प्राप्त होता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गुस्से का मुख्य कारण क्या है? (What is main cause of anger in hindi),गुस्से पर नियंत्रण कैसे रखें? (How to control anger?) के बारे में बताया गया है।
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