Menu

What is Self-Control and education?

1.संयम और शिक्षा क्या है का परिचय (Introduction to What is Self-Control and education?),संयम और शिक्षा का क्या महत्त्व है का परिचय (Introduction to What is importance self control and education?):

  • संयम और शिक्षा क्या है (What is Self-Control and education?)।संयम का अर्थ है यम का पालन करने वाले आचरण को संयम कहते हैं। महर्षि पतञ्जलि के अनुसार अष्टांग योग के आठ अंग हैं:यम (अहिंसा, सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह),नियम (शौच,संतोष,तप,स्वाध्याय,भगवद भक्ति),आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान,समाधि। अष्टांग योग का पहला अंग है यम। यम जैसा कि ऊपर वर्णित पांच है।
  • अहिंसा:मन,वचन,कर्म से किसी प्राणी की हिंसा न करना अहिंसा है।जीवन में अहिंसा का बहुत अधिक महत्त्व है।हिंसा अन्य अनैतिक कर्मों में प्रवृत्त करती है।
  • सत्य:यम का दूसरा अंग है।मन,वचन,कर्म से झूठ न बोलना। लेकिन ऐसा सत्य भी नहीं बोलना चाहिए जिससे किसी प्राणी का अहित होता हो। सत्य में छल,कपट का सहारा नहीं लिया जाता है।वह सत्य नहीं है जिसमें छल हो।
  • अस्तेय:किसी की वस्तु,विचारों की चोरी न करना।मन,वचन,कर्म से किसी की वस्तु व विचारों की चोरी न करना अस्तेय है।
  • ब्रह्मचर्य:मन,वचन,कर्म से ब्रह्मचर्य का पालन करना।ब्रह्मचर्य का अर्थ है ऐसा आचरण करना जिससे भगवान की समीपता प्राप्त होती है।गुप्तेन्द्रिय-मूत्रेन्द्रिय का संयम रखना भी ब्रह्मचर्य है।
  • अपरिग्रह:अपनी आवश्यकताओं से अधिक द्रव्य,धन-सम्पत्ति, पदार्थों का संग्रह न करना अपरिग्रह है।
    संयम का बलपूर्वक पालन करना संयम नहीं है। बल्कि सहजता से,स्वाभाविक रूप से संयम का पालन करना वास्तविक संयम है।किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक पालन करने के लिए संयम का पालन बहुत आवश्यक है।
    संयम के शत्रु:
  • (1.)भूतकाल में किए गए सम्भोग को याद करना और भविष्य में सम्भोग करने की योजना बनाना।
  • (2.)काम-क्रीड़ा,कामुकता सम्बन्धी छेड़छाड़ करना,हँसी-मजाक करना तथा कामुक व सेक्स सम्बन्धित साहित्य पढ़ना।
  • (3.)कामुक विचार-चिन्तन करना जिससे वीर्यपात होता हो। गुप-चुप रूप से काम-वासना सम्बन्धी स्त्री-पुरुष, विद्यार्थियों द्वारा बातें करना और उसमें दिलचस्पी लेना।मैथुन करने की योजना बनाना तथा उसके उपाय करना। काम-वासना में लिप्त स्त्री-पुरुष को छिपकर देखना जिससे स्वयं में भी काम-वासना जाग्रत हो। काम-क्रीड़ा का विचार-चिन्तन करना।
  • उपर्युक्त उपायों से बचकर रहना ब्रह्मचर्य का पालन करना है।उपर्युक्त सभी संयम के शत्रु है। विद्यार्थियों को विद्याध्ययन करने के लिए इनसे दूर रहना चाहिए,संयम का पालन करना चाहिए।आधुनिक युग में इनका पालन करना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। परन्तु इनका पालन करने से व्यक्ति का व्यक्तित्व महान बनता है। दरअसल महान् व्यक्ति बनते हैं वे ऐसे ही नहीं बन जाते हैं। बल्कि कठिनाइयों,समस्याओं का सामना करने से,उनका सामना करने से महान बनते हैं।
  • इस वीडियो में बताया गया है कि वास्तव में शिक्षित व्यक्ति वही है जो संयम का पालन करता है। किसी कार्य में अति नहीं करता है।संयम का पालन करने से व्यक्ति सोने से कुन्दन बन जाता है। शिक्षा द्वारा संयमपूर्ण जीवन जीने का अभ्यास बालक-बालिकाओं को शुरू से कराना चाहिए क्योंकि नींव जैसी लगती है वैसा ही भवन तैयार होता है।

what is Self-Control and education in hindi|| what is importance self control and education

 

via https://youtu.be/tN-9H3EB-vQ

  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस Video को शेयर करें। यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके । यदि वीडियो पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए । आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं। इस वीडियो को पूरा देखें।

2.संयम और शिक्षा क्या है? (What is Self-Control and education?),संयम और शिक्षा का क्या महत्त्व है? (What is importance self control and education?):

  • संयम का अर्थ है किसी भी कार्य की अति न करना और न बिल्कुल ही त्याग करना।भौतिक पदार्थों को न तो भोग करने में अत्यधिक लिप्त होना चाहिए और न ही भौतिक पदार्थों का बिल्कुल त्याग करना चाहिए।विषयों अर्थात् पदार्थों का अत्यधिक सेवन करने अर्थात उपभोग में लेने से विषयों में आसक्ति बढ़ती जाती है यानी उनको ओर अधिक उपभोग करने की इच्छा होती है यह इच्छा समाप्त नहीं होती है बल्कि जितना हम उपभोग करते जाते हैं उतनी ही बढ़ती जाती है।जिससे मनुष्य दुष्प्रवृत्तियों की ओर बढ़ता जाता है फलस्वरुप उसमें चटोरापन,कामुकता,आवारागर्दी जैसी दुष्प्रवृत्तियाँ उत्पन्न हो जाती है।विषयों का बिल्कुल ही सेवन न करने से न तो शरीर का निर्वाह हो सकता है और जब शरीर ही नहीं रहेगा तो हमारे सांसारिक कर्त्तव्यों का भलीभाँति निर्वाह नहीं कर सकेंगे और सांसारिक पदार्थों की उपयोगिता से भी वंचित रहेंगे।
    इस प्रकार संयम का अर्थ है:
  • समय को बर्बाद न करना,समय का सदुपयोग करना,धन और साधनों को हितकारी कार्यों में लगाना।फैशन,विलासिता न अपनाकर सादगीपूर्ण जीवन जीना।मन से विषयों का चिंतन न करते रहना क्योंकि विषयों का चिंतन करने से ईर्ष्या,द्वेष,राग,प्रतिशोध,छल-प्रपंच जैसी दुष्प्रवृत्तियाँ मन में उठने लगती है।
  • शिक्षा के द्वारा संयमपूर्ण जीवन जीने का अभ्यास बालकों को शुरू से करा देना चाहिए क्योंकि नींव जैसी लगती है अर्थात् मजबूत होती है तो वैसा भवन टिकाऊ तथा ज्यादा समय तक चलता है।
  • इसलिए शिक्षा द्वारा मनुष्य में पूर्णता का समावेश हो इसके लिए स्वयं को तथा बालकों को बचपन से ही संयमपूर्ण जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिए।शिक्षा से मनुष्य में पूर्णता का समावेश इसी कारण संभव हो पाता है।इसलिए संयम का पालन करना,संयमपूर्ण आचरण जीवन का अंग बन सके इसके लिए विद्यार्थियों में शुरू से ही अभ्यास कराया जाए।
  • आजकल के युवकों,लोगों तथा विद्यार्थियों का जीवन फैशन,विलासिता,खर्चीला,साधन जुटाने में व्यतीत होता है।उन्हें संयमपूर्ण जीने से कोई लेना देना नहीं है इसे वे आउटडेटेड (outdated) समझते हैं।इसलिए विद्यार्थी स्वयं तो असंयमपूर्ण जीवन और विलासिता पूर्ण जीवन जीते हैं परंतु माता-पिता भी उनको खुली छूट देते हैं।ऐसी स्थिति में जबकि पूरे कुएं में ही भाँग मिली हुई हो तो देश का भविष्य कैसा होगा इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है?
  • असंयमपूर्ण जीवन से विद्यार्थियों की मनोवृत्ति दूषित हो जाती है जिसके दुष्परिणाम उनको ही भुगतने पड़ते हैं और कोई नहीं भुगत सकता है।जैसे किसी के दस्त लग जाए तो उसकी एवज में दूसरा दस्त नहीं जा सकता है खुद को कष्ट और परेशानी उठानी पड़ती है।इसलिए शिक्षण काल से ही उन्हें संयमपूर्ण जीवन के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे विद्यार्थियों को दुष्प्रवृत्तियों से बचाया जा सके।माता-पिता व अध्यापकों को भी संयमपूर्ण जीवन जीना चाहिए क्योंकि उपदेश के बजाए विद्यार्थियों पर आचरण का ज्यादा प्रभाव पड़ता है।
  • संयमपूर्ण जीवन व्यतीत करने से बुद्धि निर्मल होती है,विचारों में सकारात्मकता का समावेश होता है,उपयोगी कार्यों के लिए बचत करना और अनावश्यक संग्रह से मुक्ति मिलती है।इस प्रकार संयमपूर्ण जीवन का सांसारिक और आध्यात्मिक महत्त्व है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में संयम और शिक्षा क्या है? (What is Self-Control and education?),संयम और शिक्षा का क्या महत्त्व है? (What is importance self control and education?) के बारे में बताया गया है।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *