How to make mathematics question papers?
to make mathematics question papers?
1.गणित के प्रश्न पत्रों का निर्माण कैसे करें?(How to make mathematics question papers?)-
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How to make mathematics question papers? |
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2.गणित के प्रश्न-पत्रों के निर्माण में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए(Following things should be kept in mind to make mathematics question papers)-
(1.)गणित के प्रश्न-पत्रों के निर्माण करने(to make mathematics question papers) में विशेष परिश्रम एवं प्रयासों की आवश्यकता होती है। प्रश्न-पत्र के निर्माण करने वाले को गणित का अच्छा ज्ञान होना चाहिए तथा अध्यापन के उद्देश्यों की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए।
(2.)यदि अध्यापक ,गणित का अध्यापन कराते समय अर्थात पाठ पढ़ाते समय भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रश्नों का निर्माण कर ले तो उनको प्रश्न-पत्रों के निर्माण के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हो जाएगी।
(3.)प्रश्नों के निर्माण में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रश्नों की विशेषताओं की जानकारी उपयोगी सिद्ध होगी।
(4.)प्रत्येक प्रश्न-पत्र बनाते समय नए प्रश्नों का निर्माण करना चाहिए। पिछले वर्षों के प्रश्न-पत्रों में प्रश्न उठाकर ले लेना ,विद्यार्थियों के लिए लाभप्रद नहीं माना जा सकता है।
(5.)प्रश्न-पत्रों में ऐसे प्रश्नों को विशेष स्थान दिया जाना चाहिए जिनके द्वारा विद्यार्थियों के गणितीय चिंतन,समझ एवं सोच के स्तर का मापन होता है।
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(6.)गणित की समस्याओं में जीवन की परिस्थितियों के तथ्यों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
(7.)प्रश्न-पत्रों में गणना संबंधी प्रश्नों को कम तथा प्रयोग सम्बन्धी प्रश्नों को अधिक स्थान देना चाहिए।
(8.) आधुनिक गणित में अंकगणित,बीजगणित तथा ज्यामिति का एकीकरण किया गया है।एकीकृत संकल्पनाओं का परीक्षण भी किया जाना चाहिए।
(9.)गणित के प्रश्न भाषा की दृष्टि से अधिक लंबे नहीं होने चाहिए।
(10.)प्रश्न का निर्माण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि विद्यार्थी प्रश्न को देखते ही समझ जाए कि प्रश्न में क्या पूछा गया है तथा परीक्षार्थी से क्या अपेक्षाएं हैं?
(11.)प्रश्न-पत्र में ऐसे प्रश्न भी हों जो प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की पहचान करने में मदद करें।बीजगणित भविष्य की गणितीय भाषा है। ज्यामिति तथा अंकगणित को बीजगणित के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन का आधार बनाया जाना चाहिए।
(12.)गणित के प्रश्न-पत्र इस प्रकार के हों जिन्हें विद्यार्थी हल कर अपनी समर्थता को सिद्ध करते हों। प्रत्येक प्रश्न द्वारा विद्यार्थी की क्षमता का वस्तुनिष्ठ मापन हो।
(13.)ऐसे प्रश्न न दिए जाएं जो विद्यार्थियों की क्षमता,योग्यता तथा पाठ्यक्रम से बाहर हों। इस प्रकार के प्रश्नों को देखकर विद्यार्थी संतुलन खो बैठते हैं तथा इसका कुप्रभाव अन्य प्रश्नों को हल करने की क्षमता पड़ता है।
(14.)कभी-कभी गणित ज्यामितीय प्रश्नों के चित्र भी प्रश्न के साथ देने से विद्यार्थियों को प्रश्नों को समझने में सुविधा होती है। इससे विद्यार्थी स्वयं गलत चित्र खींचने की सम्भावना से बच जाते हैं।यह सब उस प्रश्न के उद्देश्य पर निर्भर करता है।
(15.)प्रश्नों में आंकड़े अनावश्यक रूप से बड़ी संख्याओं में नहीं दिए जाएं तो उत्तम रहेगा। अरबों एवं करोड़ों की संख्याओं के आंकड़े दुविधाएं पैदा करते हैं।
(16.)गणित के प्रश्नों को जीवन की वास्तविकताओं के तथ्यों के आधार पर निर्माण करना उपयुक्त है। प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने पर विद्यार्थी यह जान सकें कि प्राप्त उत्तर प्रश्न के परिस्थितियों के अनुसार संभावित एवं सही लगता हो। कहीं प्राप्त उत्तर असंभव तो नहीं है।
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(17.)प्रत्येक प्रश्न का निर्माण करते समय यह भी स्पष्ट हो कि इस प्रश्न को किस विशेष योग्यता के विद्यार्थी सफलता के साथ हल कर सकते हैं।
(18.)प्रश्न-पत्र के निर्माण करते समय यह भी ध्यान रखा जाए कि प्रश्न देखकर विद्यार्थी घबरा न जाए।जो कक्षा में प्रभावी ढंग से पढ़ाया गया है उसी को प्रश्न-पत्र में सम्मिलित किया जाए। बहुधा परीक्षक प्रश्न-पत्र बनाते समय अपने कठोर हृदय एवं निरंकुश प्रवृत्ति के कारण ऐसे प्रश्नों को प्रश्न-पत्र में सम्मिलित कर लेते हैं जिन्हें पढ़कर विद्यार्थियों को उस प्रश्न के सिर-पैर का पता नहीं लगता है।ऐसा करना मूल्यांकन सिद्धांतों के विपरीत है।
(19.)प्रश्न-पत्रों में हिंदी के कठिन शब्दों के साथ-साथ समान अर्थ वाले अंग्रेजी शब्दों को भी कोष्टक में लिख दिया जाए तो विद्यार्थियों को सुविधा होगी। उदाहरणार्थ-एकीकरण,अधिकतम,परिमेय,सम्मिश्र,द्विधारी,रिक्त आदि।
(20.)विद्यार्थियों के उत्तरों का अध्ययन कर इस बात की जानकारी एकत्रित की जाए कि ऐसे कौन से प्रश्न हैं जिन्हें विद्यार्थी समझ नहीं सके तथा उनके उत्तर संभावनाओं से हटकर दिए। साथ ही ऐसे कौन से प्रश्न है जिन्हें विद्यार्थियों ने हल किया ही नहीं क्योंकि प्रश्न के निर्माण में कोई गंभीर त्रुटि थी।
(21.)आधुनिक गणित में संक्षिप्त बीजगणितीय भाषा के उपयोग के कारण गणित की पाठ्य-सामग्री अधिक अमूर्त, गूढ़, कठिन,सारपूर्ण तथा संवेदनशील हो गई है।जो बालक गणितीय भाषा को स्पष्टता एवं सहजता से नहीं समझते वे परीक्षा में गणित को जानते हुए भी प्रश्न को सही प्रकार से हल नहीं कर सकते क्योंकि गणितीय भाषा संबंधी कठिनाइयां उनके लिए बाधक होती है।
3.आधुनिक गणित तथा मूल्यांकन(Modern Mathematics and Assessment)-
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विद्यार्थियों में भूलने की गति तेज होती है तथा वे स्मृति पर निर्भर रहते हैं तथा परीक्षा पास करने के लिए ही पढ़ते हैं। इन सब बातों का उनकी उपलब्धि पर प्रभाव पड़ता है।इस व्यवधान को कम करने के लिए अधिक उद्देश्य परख प्रश्नों को प्रश्नपत्र में स्थान दिया जाना चाहिए।धीरे-धीरे विद्यार्थियों में परीक्षा के भय को समाप्त करने की आवश्यकता है।प्रोफेसर जे.एन.कपूर ने लिखा है -“गणित को सीखने की सर्वोत्तम विधि गणित को पुनः खोजना है। गणित अध्यापन की सर्वोत्तम विधि है कि स्वयं विद्यार्थी गणित को पुनः खोजे”.
4.निष्कर्ष(Conclusion)-
उपयुक्त विश्लेषण स्पष्ट है कि प्रश्न-पत्र का निर्माण विद्यार्थियों में भय पैदा करना नहीं है बल्कि विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमता तथा सीखने का मूल्यांकन करना है।सही मूल्यांकन तभी हो सकता है जबकि विद्यार्थी सहर्ष परीक्षा देने हेतु तैयार हो।वर्तमान में गणित का प्रश्न-पत्र तैयार किया जाता है उनमें समस्याओं अर्थात् प्रश्नों का संबंध जीवन से संबंधित तथ्यों पर आधारित नहीं है।केवल परंपरागत तरीके से घिसी-पिटी समस्याओं को प्रश्नपत्र में शामिल किया जाता है।प्रश्न-पत्र से परीक्षार्थी में किसी प्रकार का व्यवहारगत परिवर्तन का मूल्यांकन नहीं होता है। विद्यार्थियों में रटने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है।यदि ऊपर बताई गई बातों को अमल में लेकर प्रश्न पत्र का निर्माण किया जाए तो ऐसा प्रश्न-पत्र प्रगतिशील व आधुनिक होगा । परीक्षार्थी प्रश्न-पत्र को हल करने में रुचि व जिज्ञासा प्रकट करेंगे।
गणित की परीक्षाओं में औपचारिकता का पुट अधिक नहीं होना चाहिए।प्रश्न-पत्र ऐसे गणितज्ञों द्वारा तैयार किया जाना चाहिए जिन्हें व्यावहारिक ज्ञान होने के साथ-साथ विद्यार्थियों से जुड़े हुए हो।
गणित विषय से विद्यार्थियों का भय खाने का कारण यही है कि परीक्षा प्रश्न पत्र में यथोचित बातों का ध्यान नहीं रखा जाता है। हालांकि वर्तमान प्रश्न-पत्रों में पिछले समय की अपेक्षा कुछ सुधार हुआ है परंतु इसमें सुधार की ओर आवश्यकता है।
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