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Concept of Zero in hindi

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2 2.शून्य की अवधारणा निष्कर्ष (Conclusion of Concept of Zero in hindi):

1.शून्य की अवधारणा (Concept of Zero in hindi):

  • शून्य की अवधारणा (Concept of Zero in hindi):शून्य एक संख्या है और अन्य अंकों के साथ शून्य का प्रयोग करके संख्यात्मक अंकों को संख्या के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।यह पूर्णांकों,वास्तविक संख्याओं और कई अन्य बीजीय संक्रियाओं की योगात्मक संक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका अर्थात् केन्द्रीय भूमिका निभाता है।एक अंक के रूप में 0 का उपयोग स्थानीय मान प्रणालियों में प्लेसहोल्डर के रूप किया जाता है।
  • शून्य की परिभाषा (Definition of Zero):शून्य को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि शून्य में न तो कुछ जोड़ा जा सकता है,न शून्य में से कुछ घटाया जा सकता है।न शून्य में कुछ मिलाया जा सकता है,न शून्य में से कुछ निकाला जा सकता है।न शून्य का कोई आकार होता है,न शून्य की कोई सीमा होती है।
  • शून्य को रिक्तता,अभावसूचक,बिन्दु,निर्जन स्थान,खाली जगह,आकाश,अभाव,ब्रह्म,निराकार के रूप में भी व्यावहारिक रूप में प्रयोग किया जाता है।

(1.)शून्य का महत्त्व (Importance of Zero):

  • जैसे विज्ञान में गणित का महत्त्व है।गणित को विज्ञान की रानी कहा जाता है।विज्ञान में जितने भी आविष्कार हुए हैं उसमें गणित की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।आज मानव जीवन इतना उन्नत और विकसित है तो विज्ञान के कारण और विज्ञान में भी नए-नए आविष्कार,खोजे हुई है गणित के कारण हुई है।
  • कल्पना कीजिए कि यदि गणित का अस्तित्व नहीं होता तो जितना विकास हम आज देख रहे हैं उतना विकास नहीं हुआ होता और आज भी हम पशुवत् जीवन व्यतीत कर रहे होते।
  • इसी प्रकार गणित में शून्य सहित 10 अंकों का सबसे अधिक महत्त्व है।शून्य का अपने आप में अकेले कुछ भी महत्त्व नहीं है। संख्याओं के साथ इसका प्रयोग किया जाए तो महत्त्व अनन्त गुना तक बढ़ सकता है।
  • रसायन विज्ञान में जैसे उत्प्रेरण तथा उत्प्रेरक की भूमिका होती है वही भूमिका शून्य की गणित में होती है।जैसे कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो रासायनिक क्रियाओं के वेग को प्रभावित करते हैं तथा उनकी उपस्थिति मात्र से रासायनिक अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है परंतु रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप उत्प्रेरक स्वयं की संरचना व गुणधर्म अप्रभावित रहते हैं।इस प्रकार के रासायनिक पदार्थों को उत्प्रेरक और इस प्रकार की रासायनिक क्रियाओं को उत्प्रेरण कहते हैं।उदाहरणस्वरूप यदि पोटेशियम क्लोरेट को बहुत अधिक ताप पर गर्म किया जाए तो इससे धीरे-धीरे ऑक्सीजन गैस निकलती है।परंतु यदि इसके साथ ही पर्याप्त मात्रा में मैंगनीज डाइआॅक्साइड की मिला दी जाए तो इसके कम ताप पर ही तीव्र गति से पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन गैस निकलती है।इस प्रकार मैंगनीज डाइआॅक्साइड इस अभिक्रिया में उत्प्रेरक का कार्य करता है।इसी प्रकार शून्य का अपने आप में कोई महत्व नहीं है परंतु अंकों के साथ लगाने पर इसका महत्त्व दस गुणा,सौ गुणा तथा अनेक गुना बड़ा हो जाता है यदि इसे दायीं ओर लगाया जाता है (जबकि दशमलव का प्रयोग नहीं किया गया हो)।परंतु यदि दशमलव के बाद तथा अंक के बायीं ओर लगाया जाता है तो यह संख्यात्मक मान को घटाता जाता है।

(2.)मय सभ्यता की अंक पद्धति (Numerology of Mayan Civilization),Concept of Zero in hindi By Mayan:

  • अमेरिका का नया इतिहास मुश्किल से 500 साल पुराना है।कोलंबस ने जब नई तरह से अमेरिका की खोज की तो बड़ी संख्या में यूरोप के लोग अमेरिका में जाकर बसने लग गए थे।आज इन्हीं लोगों का अमेरिका के देशों में प्रभुत्व है।
  • परंतु इसके पहले भी अमेरिका में लोग बसते थे और वे स्वतंत्र रूप से एक सभ्यता को जन्म दे चुके थे।कुछ मानों में यह लोग काफी पिछड़े हुए थे।जैसे ये लोहे के हथियार और गाड़ी के पहिए से परिचित नहीं थे।पर दूसरी ओर यह बहुत विकास कर चुके थे।पिरामिड जैसे मंदिर बनाते थे,बहुत पहले लिपि की खोज कर चुके थे और कागज भी बनाना जानते थे।लेकिन इन्होंने सबसे अधिक उन्नति कालगणना और अंक गणना में की।मध्य अमेरिका के लोगों का पंचांग यूरोप के ग्रेगोरी पंचांग से बेहतर था और मय लोगों की अंक पद्धति भी रोमन अंक-पद्धति से बेहतर थी।मय लोगों का इतिहास दो-तीन साल हजार साल पुराना है।
  • 16 शताब्दी के स्पेनिश साम्राज्यवादियो ने मय लोगों के पुराने अवशेषों को बुरी तरह नष्ट कर दिया।खोज-खोजकर मय पुस्तकों को जमा किया गया और उनमें आग लगा दी गई।मुश्किल से 3 पुस्तकें बच पाई है।इन्हीं पुस्तकों के अध्ययन से पुनः मय लिपि और अंक पद्धति की खोज हुई है।मय लोगों की अंक-पद्धति की खोज कुछ पहले हुई है,पर उसकी लिपि का उद्घाटन अभी कुछ साल पहले सोवियत वैज्ञानिकों ने किया है।
  • सभी पुरानी सभ्यताओं की अंक-पद्धति दस पर आधारित है।सुमेरू अंक का आधार 60 था।लेकिन मय अंक-पद्धति 20 पर आधारित थी।
  • इसका कारण है कि हाथों की उंगलियां दस है,इसलिए प्राचीन काल में दस के आधारवाली गणना ने जन्म लिया था।लेकिन हमारे दो पैर भी हैं। दो हाथ और दो पैर की कुल 20 उंगलियां होती हैं। यही कारण है कि मय लोगों ने बीस पर आधारित अंक पद्धति को जन्म दिया था।मय 19 तक की संख्याओं को केवल दो संकेत से लिखते थे।ये दो संकेत थे आड़ी लकीर और बिंदु।
  • एक के लिए एक बिन्दु और 5 के लिए एक आडी लकीर का प्रयोग होता था।इस प्रकार आडी लकीरों के ऊपर बिंदुओं को रखते हुए वे 19 तक की संख्याएं लिखते थे।वे शून्य का आविष्कार कर चुके थे और इसके लिए कौड़ी की शक्ल के एक चिन्ह का प्रयोग करते थे।इस चिन्ह के ऊपर एक बिन्दु रख देने से यह 20 चिन्ह बन जाता था।
  • इस प्रकार मय लोगों ने स्वतंत्र रूप से शून्य संकेत और शून्य की धारणा (Concept of Zero in hindi) को जन्म दिया था।इसलिए शून्य की खोज करने का हकदार केवल भारत ही नहीं है।

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(3.)भारतीय अंक पद्धतियां (Indian numeral systems),Concept of Zero in hindi:

  • हमारा शरीर पांच तत्वों क्रमशः पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु और आकाश से बना है।संसार के सभी पदार्थों का मूल गुण शब्द है।इसी कारण शब्द को शब्द ब्रह्म का प्रतीक माना जाता है।शब्द के मूल को आकाश कहते हैं और अंक के मूल को भी शून्य कहते हैं।
    यदि अंक (संख्या) का किसी वस्तु या क्रिया से संबंध नहीं होता तो हमारे शास्त्रों में अंक विद्या का विधान नहीं होता।भास्कराचार्य से पहले कई शताब्दियों पहले लिखे गए वेदांग ज्योतिष नामक ग्रंथ में गणित के महत्त्व के बारे में कहा गया है कि
  • “यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो तथा।
    तद्वद्वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम्।”
  • अर्थात् जिस प्रकार मोरों की शिखा (सिर के ऊपर का तुर्रा) और शेषनाग के मस्तक का मणि ऊंचे स्थान पर विराजमान है,उसी प्रकार वेद आदि शास्त्रों में गणित का स्थान सर्वोच्च है।
  • अंक-पद्धति का विभिन्न सभ्यताओं ने अपने-अपने तरीके से विकसित किया है।ऊपर हमने मय लोगों की अंक-पद्धति का परिचय प्राप्त किया।हमारी वर्तमान अंक-पद्धति के महत्त्व को समझने के लिए प्राचीन अंक पद्धतियों को भी जानना जरूरी है।
  • आदमी ने धीरे-धीरे उन्नति की है।ज्ञान-विज्ञान की बातें भी धीरे-धीरे खोजी गई है।यदि कोई कहे कि ज्ञान-विज्ञान की सारे बातें हमारे देश भारत में ही खोजी गई है,तो यह कोरी पोंगापंथी की बात होगी। दूसरे देशों की सभ्यताएं हमारे देश की सभ्यता से कम प्राचीन नहीं है।वेदों की रचना होने के सैकड़ों साल पहले दूसरे देशों में केवल धर्म-कर्म की,बल्कि गणित,चिकित्सा आदि विषयों पर स्वतंत्र पुस्तकें लिखी जा चुकी थी।हमारे वैदिक ऋषियों को ज्योतिष और गणित का जितना ज्ञान था उससे कहीं अधिक ज्ञान उनके सैकड़ों साल पहले मिस्र और मेसोपोटामिया के पंडितों-पुरोहितों को था।
  • तात्पर्य यह है कि हमें अपने दिमाग से दकियानूसी ख्याल निकाल देना चाहिए कि हमारे पूर्वज हमसे और सारी दुनिया से हर मामले में बढ़े चढ़े थे।आज हम जानते हैं की हमारी वर्तमान अंक-पद्धति की खोज भारत में हुई है।आज सारे संसार में इसी अंक-पद्धति का प्रयोग होता है।विज्ञान के क्षेत्र में संसार को भारत की सबसे बड़ी देन है।
  • परंतु इससे हमें यह नहीं समझना चाहिए कि हमारे देश की यह खोज बहुत पुरानी है।इस नई अंक-पद्धति का प्रयोग हमारे देश में पिछले लगभग डेढ़ हजार साल से ही हो रहा है।उसके पहले हमारे देश में कई दूसरी अंक पद्धतियां जैसे-खरोष्ठी,ब्राह्मी का अस्तित्व रहा है।हमारे देश की ये दूसरी अंक पद्धतियां दूसरे देशों की प्राचीन अंक पद्धतियों से श्रेष्ठ नहीं थी।इसलिए हमारी आज की अंक-पद्धति को जानने के लिए हमें अपने देश की दूसरी अंक पद्धतियों को भी जानना जरूरी हो जाता है।

(4.)शून्य का आविष्कार (Invention of zero),Concept of Zero in hindi:

  • आज हम केवल 10 चिन्हों से सारी संख्याएं लिखते हैं।बड़ी से बड़ी संख्या इन दस चिन्हों से लिखी जा सकती है।इनमें से प्रत्येक चिन्ह का एक स्वतंत्र मान है।इसके अलावा संख्या की पंक्ति में हर अंक का मान स्थान के अनुसार निर्धारित होता है।उदाहरण के लिए दो का अर्थ दो वस्तुएं।परंतु संख्या 21 में इस 2 का अर्थ होगा 20 वस्तुएं।संख्या 43258 में दो का अर्थ होगा 200।
  • आज हम केवल 10 चिन्हों से सारी संख्याओं को लिखने के आदी हो गए हैं।हर अंक का स्थान के अनुसार अर्थ बदलता है,यह बात भी हम आसानी से समझ सकते हैं।पर यह बात इतनी सरल बात नहीं है जितनी कि हम इसे समझते हैं।यदि सरल बात होती तो यूनान के बडे-बडे गणितज्ञों में से कोई गणितज्ञ अवश्य इसका आविष्कार कर चुका होता। हमारे देश के वैदिक काल के पंडित-पुरोहित भी इसका आविष्कार कर चुके होते।पर वे शून्यवाली दाशमिक स्थानमान अंक-पद्धति का आविष्कार न कर सके।
  • शून्यवाली स्थानमान  अंक-पद्धति एक दिन का देवी चमत्कार नहीं है।धीरे-धीरे इसके बारे में विचार पक्के होते गए।सारे देश में इसका प्रचार होने में शताब्दीयां लगी।इस नई अंक-पद्धति की खोज होने पर भी लगभग 1000 साल तक हमारे देश में पुरानी अंक-पद्धति का व्यवहार होता रहा।न केवल अपने देश में बल्कि विदेशों में भी इस पद्धति को सरलता से स्वीकार नहीं किया गया।
  • इस नई अंक-पद्धति की खोज भारत में ठीक किस समय में हुई,कहां हुई,किस व्यक्ति ने की आदि बातों के बारे में हमें आज कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती।
  • पुराने जमाने में लेख खुदवाए जाते थे।राजा या धनी लोग दान देते थे।दान की बातें तांबे के पत्रों पर लिख दी जाती थी -शब्दों में और कभी-कभी अंकों में भी।ऐसे ही एक दान पत्र में हमें पहली बार इस नई पद्धति के अंक देखने को मिलते हैं।
  • संखेड़ा से गुर्जर राजाओं का एक दानपत्र मिला है। इसमें तिथि दी हुई है,चेदि-संवत् 346।इस संख्या को ठीक इसी तरह लिखा गया है जैसा कि हम आज लिखते हैं।फर्क इतना है कि इसमें उस समय के 3,4 और 6 अंक इस्तेमाल हुए हैं।चेदि-संवत् 346 का अर्थ हुआ ईसवी सन् 594।इस दानपत्र में संख्या 346 स्थानमान पद्धति के अनुसार लिखी गई है।पर इस संख्या में शून्य का संकेत नहीं आया है।शून्य न आने का कारण यही है कि वह दानपत्र ऐसी संख्या वाले साल में नहीं लिखा गया था जिसमें शून्य हो।
  • पर उस समय शून्यवाली दाशमिक अंक-पद्धति का आविष्कार अवश्य हो चुका था वरना संख्या 346 को नई पद्धति के अनुसार न लिखा जाता।इसके बाद कई लेखों और दानपत्रों में नई अंक-पद्धति की संख्याएं मिलती है।पहली बार आठवीं सदी के एक दानपत्र में शून्य वाली संख्या मिलती है।यह राघोली दानपत्र राजा जयवर्धन (द्वितीय) का है।इसमें संख्या 30 में शून्य आता है। इसमें शून्य का आकार वृत्त की तरह है।
  • इसके बाद बहुत से लेखों और दानपत्रों में नई अंक-पद्धति में संख्याएं देखने को मिलती है।इसका मतलब यह नहीं है कि सारे लेखों में नई अंक-पद्धति का प्रयोग हुआ है।नहीं कुछ लेखों में पुरानी अंक-पद्धति देखने को मिलती है।ईसा की दसवीं शताब्दी तक यानी आज से लगभग 1000 साल पहले तक छुटपुट लेखों में पुरानी अंक-पद्धति देखने को मिलती है।
  • इसका अर्थ यह हुआ कि शून्यवाली दाशमिक अंक-पद्धति का आविष्कार हुए एक लंबा समय गुजर जाने पर भी हमारे देश में जल्दी स्वीकार नहीं किया गया।पुराने का मोह जल्दी नहीं छूटता,उसका यह एक उदाहरण है।पर 10वीं शताब्दी से सभी जगह नई अंक-पद्धति का प्रयोग देखने को मिलता है।इस समय तक भारत की यह अंक-पद्धति अरब देशों में भूमध्य सागर के आसपास के देशों में और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में पहुंच चुकी थी।
  • ईसा की पहली शताब्दी से कुछ भारतीय जावा,सुमात्रा,कंबोडिया आदि देशों में जाकर बसने लग गए थे।वहां उन्होंने राजवंश भी स्थापित किए थे।वहां ब्राह्मण और बौद्ध धर्म पहुंचा;भारतीय भाषाएं पहुंची।सुमात्रा के पलेबंग स्थान से कुछ ऐसे लेख मिले हैं जिनमें शक-संवत् की 605,606 और 608 संख्याएं नई अंक-पद्धति में लिखी हुई मिलती है।नई अंक-पद्धति का आविष्कार होते ही अभिलेखों में तुरंत उसका इस्तेमाल नहीं होने लगा होगा।आविष्कार होने के सदियों बाद अभिलेखों में नई अंक-पद्धति को अपनाया होगा।इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि ईसा की पहली शताब्दी तक हमारे देश में शून्यवाली अंक-पद्धति का आविष्कार हो चुका था।
  • करीब 90 साल पहले पेशावर जिले के भक्षाली गांव के एक किसान को भोजपत्र पर लिखी हुई गणित की एक पोथी मिली थी।अब यह भक्षाली-हस्तलिपि के नाम से प्रसिद्ध है।यह दसवीं सदी की शारदा लिपि में लिखी हुई है।यह किसी पुरानी पुस्तक की प्रतिलिपि है।कुछ विद्वानों का मत है कि मूल पुस्तक तीसरी या चौथी सदी में लिखी गई होगी।इस हस्तलिपि में 1 से 10 अंक संकेत हैं।नई अंक-पद्धति का प्रयोग हुआ है।शून्य के लिए बिन्दी के आकार का चिन्ह है।इस पुस्तक में आए दस अंक संकेत इमेज में अंकित हैं:
  • उपर्युक्त विवरण में शून्य की अवधारणा (Concept of Zero in hindi) के बारे में बताया गया है।
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2.शून्य की अवधारणा निष्कर्ष (Conclusion of Concept of Zero in hindi):

  • अंकगणित की आधारशिला का विवेचन करते हुए प्रोफेसर जी.बी. हाॅलस्टीड लिखते हैं:
    “शून्य के आविष्कार तथा इसके महत्त्व की जितनी स्तुति की जाए कम है।कुछ नहीं वाले इस शून्य को न केवल एक स्थान नाम,चिन्ह या संकेत प्रदान करना बल्कि इसमें उपयोगी शक्ति भरना उस भारतीय मस्तिष्क की एक विशेषता है जिसने इसे जन्म दिया है।यह ‘निर्वाण’ को विद्युत-शक्ति में बदलने जैसा है।गणित के किसी भी अन्य आविष्कार ने मानव की बुद्धि एवं शक्ति को इतना अधिक बलशाली नहीं बनाया है।’
  • सवाल यह है कि ईसा की पहली शताब्दी तक शून्यवाली दाशमिक अंक-पद्धति की खोज हो चुकी थी फिर इतना लंबा समय इस पद्धति को स्वीकार करने में क्यों लगा?
  • इसका पहला कारण यह है कि इस नई अंक-पद्धति का आविष्कार किसी ब्राह्मण-पुरोहित ने नहीं किया है।क्योंकि शिलालेखों या ताम्रपत्रों की रचना राज दरबार के लेखक और ब्राह्मण-पुरोहित करते थे उसमें इसका उल्लेख नहीं है।वैदिक ऋषियों ने भी इसकी खोज नहीं की है क्योंकि वेदों में कहीं भी इसका उल्लेख नहीं मिलता है।
  • दूसरा कारण यह है कि इसकी खोज किसी स्वतंत्र ज्योतिषी या गणितज्ञ के दिमाग की उपज है।राजदरबार के ब्राह्मण-पुरोहित स्वतंत्र विचारकों को पनपने नहीं देते थे।
  • तीसरा कारण यह है कि उस समय गणित का कैरियर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं थी। इसलिए राजदरबार में किसी गणितज्ञ की नियुक्ति नहीं की जाती थी और ना ही आवश्यकता महसूस होती थी।
  • चौथा कारण है कि शून्यवाली दाशमिक अंक-पद्धति को पुरानी अंक-पद्धति के कारण नहीं अपनाया गया।
  • पांचवा कारण है कि जिस भी विद्वान ने नई शून्यवाली दाशमिक अंक-पद्धति की खोज की उसने गौतम बुद्ध की तरह प्रचार-प्रसार करने का बीड़ा नहीं उठाया यानी इसे जन आंदोलन का हिस्सा नहीं बनाया और जब तक जनता के जीवन का हिस्सा नहीं बनती या राजदरबार द्वारा संरक्षण नहीं दिया जाता तब तक वह विद्या प्रचार-प्रसार नहीं पा सकती है बल्कि समाप्त हो जाती है।परन्तु नई अंक-पद्धति अपनी विशिष्ट खूबियों के कारण धीरे-धीरे जनता तथा शासकों द्वारा प्रयोग की जाती रही और धीरे-धीरे यह फलती-फूलती गई।
  • छठवा कारण है कि कोई भी नई अंक-पद्धति या आविष्कार कितना ही उपयोगी तथा सरल हो परंतु जब तक लोगों तथा विद्वानों को उसका व्यावहारिक ज्ञान नहीं होता तब तक वह उसके लिए कठिन ही लगता है।ज्यों-ज्यों हम अभ्यास करते जाते हैं त्यों-त्यों वह चीज सरल लगती है और हमारे जीवन का अंग बन जाती है।
  • नई शून्यवाली अंक-पद्धति को भारत में महत्त्व नहीं दिए जाने के कारण ही आज हमें इसके असली खोजकर्ता को नहीं जानते हैं।परन्तु ज्यों-ज्यों यह अंक-पद्धति गणित व ज्योतिष के प्रचलन में आने लगी और जनसाधारण में उपयोग होने लगी तभी इसका अभिलेखों में प्रयोग शुरू हुआ।
  • नई शून्यवाली अंक-पद्धति का कुछ विद्वानों के अनुसार काफी देर बाद प्रचार-प्रसार होने का कारण यह हो सकता है इसका आविष्कारक कोई ब्राह्मणेतर पंडित रहा होगा।गणितशास्त्र विशेषतः संख्या सिद्धांत जैन मुनियों का विषय रहा है।कई जैनाचार्य जैसे महावीराचार्य उच्चकोटि के गणितज्ञ हुए हैं।असंभव नहीं है कि किसी जैन विद्वान ने इस नई अंक-पद्धति की खोज की हो।ऐसी स्थिति में ब्राह्मण धर्म के अनुयायी पंडित-पुरोहित इस नई अंक-पद्धति को तुरंत स्वीकार कर लेते इस बात की संभावना कम ही है।
  • इस नई शून्यवाली अंक-पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता है शून्य की धारणा एवं उसका संकेत। हमारे देश के गणितज्ञ एवं ज्योतिषी यदि इस नई अंक-पद्धति के महत्त्व को समझते और इसका प्रयोग करते तो नई अंक पद्धति के प्रचार-प्रसार में इतना समय नहीं लगता।आज भारत की दशा और दिशा दोनों ही उच्च कोटि की होती।
  • उपर्युक्त विवरण में शून्य की अवधारणा (Concept of Zero in hindi) की समीक्षा की गई है।

3.शून्य की अवधारणा (Concept of Zero in hindi) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

Concept of Zero in hindi

प्रश्न:1.शून्य की अवधारणा का आविष्कार किसने किया? (Who invented the concept of zero?),Concept of Zero in hindi:

उत्तर:मायानों (Mayans)
पहला रिकॉर्ड किया गया शून्य मेसोपोटामिया में 3 ईसा पूर्व के आसपास दिखाई दिया।मायाओं ने स्वतंत्र रूप से लगभग 4 ईस्वी में इसका आविष्कार किया था।इसे बाद में भारत में पांचवीं शताब्दी के मध्य में तैयार किया गया था,जो सातवीं शताब्दी के अंत में कंबोडिया में फैल गया और आठवीं के अंत में चीन और इस्लामी देशों में फैल गया।
यह प्रथम Concept of Zero in hindi था।

प्रश्न:2.गणित में शून्य की परिभाषा क्या है? (How do I teach my child the concept of zero?):

उत्तर:शून्य वह पूर्णांक है जिसे 0 से दर्शाया जाता है,जब गिनती संख्या के रूप में उपयोग किया जाता है,इसका अर्थ है कि कोई वस्तु मौजूद नहीं है।यह एकमात्र पूर्णांक (और वास्तव में,एकमात्र वास्तविक संख्या) है जो न तो ऋणात्मक है और न ही धनात्मक है।

प्रश्न:3.भारत में सबसे पहले शून्य की खोज किसने की थी? (Who discovered zero first in India?):

उत्तर:ब्रह्मगुप्त (Brahmagupta):
भारत में गणित और शून्य का इतिहास
अंक शून्य का पहला आधुनिक समकक्ष एक हिंदू खगोलशास्त्री (Astronomer) और गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त से 628 में आता है।भारत का Concept of Zero in hindi भाारत का अपना चिंतन था।

प्रश्न:4.शून्य का जनक कौन है? (Who is the father of zero?):

उत्तर:ब्रह्मगुप्त (Brahmagupta) का Concept of Zero in hindi का पहला लिखित प्रयास प्राप्त हुआ।
गोबेट्स (Gobets) ने कहा,”शून्य और इसके संचालन को सबसे पहले [हिंदू खगोलशास्त्री और गणितज्ञ] ब्रह्मगुप्त ने 628 में परिभाषित किया था।”उन्होंने शून्य के लिए एक प्रतीक विकसित किया: संख्याओं के अन्तर्गत (Underneath) एक बिंदु।

प्रश्न:5.गणित के जनक कौन है ? (Who is the father of mathematics?):

उत्तर:सिरैक्यूज़ के आर्किमिडीज़ (Archimedes of Syracuse)
सिरैक्यूज़ के आर्किमिडीज़ 212 ईसा पूर्व (लगभग 75 वर्ष की आयु) सिरैक्यूज़ (Syracuse),सिसिली (Sicily) में मृत्यु, मैग्ना ग्रीसिया (Magna Graecia)”आर्किमिडीज़ के सिद्धांत” के लिए जाना जाता है आर्किमिडीज़ के स्क्रू स्टेटिक्स (screw Statics),लीवर का हाइड्रोस्टैटिक्स नियम (Hydrostatics Law of the lever) अविभाज्य न्यूसिस निर्माण (Indivisibles Neuseis Construction) वैज्ञानिक कैरियर क्षेत्र (Scientific career Fields) गणित भौतिकी इंजीनियरिंग खगोल विज्ञान (Astronomy) यांत्रिकी (Mechanics)

प्रश्न:6.आप संख्या अवधारणाओं को कैसे पढ़ाते हैं? (How do you teach number concepts?):

उत्तर:प्रीस्कूलर (Preschooler) को नंबर कैसे सिखाएं
नंबर राइम्स (Number Rhymes) के साथ गिनना सिखाएं।
संख्या को दैनिक कार्यों में शामिल करें।
बच्चों के समूह के साथ नंबर गेम खेलें।
नंबर लिख लें और बच्चे को वह मात्रा ड्रा कराएं।
विज्ञापन बोर्डों और वाहनों पर अंक इंगित करें।
कनेक्ट द डॉट्स के साथ नंबरों का क्रम सिखाएं।
उंगलियों और पैर की उंगलियों की गणना करें।

प्रश्न:7.आप बुनियादी गणित अवधारणाओं को कैसे स्पष्ट करते हैं? (How do you clear basic math concepts?):

उत्तर:गणित की समस्या को हल करने के लिए 7 टिप्स
अभ्यास,अभ्यास और अधिक अभ्यास।केवल पढ़ने और सुनने से गणित का ठीक से अध्ययन करना असंभव है।
समीक्षा त्रुटियाँ।
मुख्य अवधारणाओं में महारत हासिल करें।
अपनी शंकाओं को समझें।
एक व्याकुलता मुक्त अध्ययन वातावरण बनाएं।
एक गणितीय शब्दकोश बनाएं।
गणित को वास्तविक दुनिया की समस्याओं पर लागू करें।

प्रश्न:8.शून्य हमारे जीवन में कितना उपयोगी है? (How useful is zero in our life?):

उत्तर:शून्य मानव जीवन की सबसे महत्वपूर्ण खोज है।  अगर शून्य न होता तो इंसान चांद पर नहीं पहुंच पाता।संख्या जब अन्य संख्या के आगे रखी जाती है,तो यह अधिक मूल्य लाती है।

प्रश्न:9.1 का आविष्कार किसने किया? (Who invented 1?):

उत्तर:हिंदू-अरबी अंक,10 प्रतीकों का सेट- 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 0- जो दशमलव संख्या प्रणाली में संख्याओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।वे 6वीं या 7वीं शताब्दी में भारत में उत्पन्न हुए और 12वीं शताब्दी के बारे में मध्य पूर्वी गणितज्ञों,विशेष रूप से अल-ख्वारिज्मी और अल-किंडी (al-Khwarizmi and al-Kindi) के लेखन के माध्यम से यूरोप में पेश किए गए।

प्रश्न:10.एक सामान्य शून्य क्या है? (What is a common zero?):

उत्तर:इसका मतलब है कि ऐसा कोई मान नहीं है जो दोनों बहुपद का शून्य हो।

प्रश्न:11.गणित का आविष्कार किसने किया? (Who invented math?):

उत्तर:छठी शताब्दी ईसा पूर्व में पाइथागोरस (Phythagoreans) के साथ,ग्रीक गणित के साथ प्राचीन यूनानियों ने अपने आप में एक विषय के रूप में गणित का व्यवस्थित अध्ययन शुरू किया।लगभग 300 ईसा पूर्व, यूक्लिड(Euclid) ने आज भी गणित में उपयोग की जाने वाली स्वयंसिद्ध (Aixomatic) पद्धति की शुरुआत की, जिसमें परिभाषा, स्वयंसिद्ध, प्रमेय और प्रमाण शामिल हैं।

प्रश्न:12.शून्य से पहले क्या उपयोग किया जाता था? (What was used before zero?):

उत्तर:हमने शून्य के आविष्कार से पहले रोमन संख्याओं और शब्द संख्या का इस्तेमाल किया था।सबसे पहले इसका जवाब दिया गया: भारत में शून्य का आविष्कार होने से पहले, 9 के बाद गिनती कैसे की जाती थी?उन्होंने इसे एक निश्चित आधार प्रणाली में उपयोग नहीं किया।संख्या के लिए अक्षरों के उपयोग से यूनानियों को बाधा उत्पन्न हुई।

प्रश्न:13.शून्य एक संख्या है हाँ या नहीं? (Is zero a number Yes or no?):

उत्तर:0 (शून्य) एक संख्या है, और संख्यात्मक अंक उस संख्या को अंकों में दर्शाने के लिए उपयोग किया जाता है।यह पूर्णांकों,वास्तविक संख्याओं और कई अन्य बीजीय संरचनाओं की योगात्मक पहचान के रूप में गणित में एक केंद्रीय भूमिका को पूरा करता है।एक अंक के रूप में, 0 का उपयोग स्थानीय मान प्रणालियों में प्लेसहोल्डर के रूप में किया जाता है।

प्रश्न:14.भारतीय गणित का जनक किसे कहा जाता है? (Who is called the father of Indian mathematics?):

उत्तर:आर्यभट,जिसे आर्यभट प्रथम (Aryabhatta) या आर्यभट द एल्डर भी कहा जाता है,(जन्म 476, संभवतः अश्माका (Ashmaka) या कुसुमपुर ((Kusumapura),भारत), खगोलशास्त्री (Astronomer) और सबसे पुराने भारतीय गणितज्ञ जिनका कार्य और इतिहास आधुनिक विद्वानों के लिए उपलब्ध है।

प्रश्न:15.भारतीय गणित के जनक कौन है ? (Who is father of Indian mathematics?):

उत्तर:आर्यभट (Aryabhatta) जन्म 476 ई.पू. कुसुमपुरा(Kusumapura) (पाटलिपुत्र (Pataliputra)) (वर्तमान पटना (Patana), भारत) 550 BC में मृत्यु,शैक्षणिक पृष्ठभूमि सूर्य सिद्धांत (Influences Surya Siddhanta) को प्रभावित करती है।

प्रश्न:16.आप किसी संख्या को 0 से कैसे परिचित कराते हैं? (How do you introduce a number to 0?):

उत्तर:शून्य की अवधारणा आमतौर पर गिनती और अन्य प्रारंभिक संख्या अवधारणाओं की तुलना में कठिन होती है।इस प्रकार,हम आमतौर पर इसका परिचय तभी देते हैं जब कोई बच्चा कुछ हद तक संख्याओं के मूल्य को समझ लेता है।0 और अन्य संख्याओं के बीच का अंतर यह है कि अन्य सभी संख्याओं का एक मूर्त दृश्य रूप होता है,जबकि 0 नहीं होता है।

प्रश्न:17.संख्या अवधारणाएं क्या हैं? (What are number concepts?):

उत्तर: संख्या अवधारणा दिलचस्प गुण हैं जो संख्याओं के बीच मौजूद होते हैं।ये विचार हमें गणना करने और समस्याओं को हल करने में मदद करते हैं।

प्रश्न:18.प्रारंभिक संख्या अवधारणाएं क्या हैं? (What are the early number concepts?):

उत्तर:संख्या का सहज ज्ञान बहुत कम उम्र में शुरू होता है।दो वर्ष से कम उम्र के बच्चे एक,दो या तीन वस्तुओं की पहचान आत्मविश्वास से कर सकते हैं, इससे पहले कि वे वास्तव में समझ के साथ गिन सकें (जेलमैन (Gelman) एंड गेलिस्टेल (Gellistel), 1978)।ऐसा माना जाता है कि उप-विभाजन के लिए अधिकतम संख्या,यहां तक ​​कि अधिकांश वयस्कों के लिए भी, पांच है।

प्रश्न:19.नंबर सेंस इतना महत्वपूर्ण क्यों है? (Why is number sense so important?):

उत्तर:आपके युवा गणित सीखने वालों के लिए नंबर सेंस इतना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आत्मविश्वास को बढ़ावा देता है और लचीली सोच को प्रोत्साहित करता है।यह आपके बच्चों को संख्याओं के साथ संबंध बनाने और गणित के बारे में एक भाषा के रूप में बात करने में सक्षम बनाता है।

प्रश्न:20.गणित का सबसे आसान टॉपिक कौन सा है? (What is the easiest topic in math?):

उत्तर:हालाँकि सांख्यिकी और प्रायिकता आसान विषय हैं क्योंकि इन विषयों की समस्याओं को हल करने के लिए आपको किसी पूर्वापेक्षित गणित ज्ञान की आवश्यकता नहीं है।
मैं आपको एक ज्यामिति प्रश्न दे सकता हूँ जिसमें निम्नलिखित अवधारणाएँ शामिल हो सकती हैं:
क्षेत्रमिति (mensuration)।
सर्कल गुण(Circle Properties)।
रेखांकन (Graphs)।
असमिकाएं,असमानताएँ(Inequalities)।
संख्या सिद्धांत(Number Theory)।
त्रिकोणमिति (Trigonometry)।
कलन (Calculus)।

प्रश्न:21.गणित में बुनियादी अवधारणाएं क्या हैं? (What are the basic concepts in mathematics?):

उत्तर:बुनियादी गणित और कुछ नहीं बल्कि गणित से संबंधित सरल या बुनियादी अवधारणा है।आम तौर पर गिनती,जोड़,घटाव,गुणा और भाग को मूल गणित ऑपरेशन कहा जाता है।अन्य गणितीय अवधारणा उपरोक्त 4 कार्यों के शीर्ष पर बनाई गई हैं।

प्रश्न:22.शून्य क्यों मौजूद है? (Why does zero exist?):

उत्तर:शून्य मौजूद है क्योंकि इसमें 0 वाली सभी संख्याएं,जैसे 10, केवल 1 होंगी।शून्य मौजूद है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता है,तो आप शून्य के बजाय कुछ नहीं कहेंगे।

प्रश्न:23.क्या शून्य का कोई मतलब नहीं है? (Does zero mean nothing?):

उत्तर:”शून्य” को एक संख्या माना जाता है जबकि “कुछ नहीं(Nothing)” को एक रिक्त(empty) या शून्य सेट (Null set) माना जाता है।शून्य का अंकीय मान (numeric value)”0″ होता है।शून्य एक संख्यात्मक अंक (Numerical Digit) के साथ-साथ एक संख्या (Number) भी है और इसका उपयोग उस संख्या को संख्यात्मक मानों (Numerical Values) में दर्शाने के लिए किया जाता है।हालांकि,”कुछ नहीं(Nothing)” केवल एक अवधारणा है जो किसी भी प्रासंगिक शून्य या अनुपस्थिति को दर्शाती है (concept depicting a void or absence of anything relevant)।

प्रश्न:24.सबसे बड़ी संख्या क्या है? (What is the biggest number?):

उत्तर:ब्रह्मांड में परमाणुओं से अधिक संख्या होने के बावजूद,यह साबित करने की कोशिश करना कि आपका पूर्णांक किसी और के पूर्णांक से बड़ा है, सदियों से जारी है।नियमित रूप से संदर्भित सबसे बड़ी संख्या एक गूगोलप्लेक्स (googolplex)(10^googol) है, जो (10^10)^100 के रूप में काम करती है।

प्रश्न:25.अंक किसे कहते हैं? (Who named numbers?):

उत्तर:उदाहरण के लिए,आज हम जिस अरबी अंक (Arabic Numeral) प्रणाली से परिचित हैं,उसका श्रेय आमतौर पर प्राचीन भारत के दो गणितज्ञों को दिया जाता है: छठी शताब्दी ई.पू. का ब्रह्मगुप्त।और आर्यभट 5वीं शताब्दी ई.पू. आखिरकार, केवल चीजों को गिनने से कहीं अधिक के लिए संख्याएं आवश्यक थीं।

प्रश्न:26.गणित में शून्य के लिए दूसरा शब्द क्या है? (What is another word for zero in math?):

उत्तर:जहां एक फ़ंक्शन मान शून्य के बराबर होता है (0)।इसे “रूट (root)” भी कहा जाता है।

प्रश्न:27.क्या होगा अगर 0 का आविष्कार नहीं किया गया था? (What if 0 was not invented?):

उत्तर:शून्य के बिना,आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स मौजूद नहीं होंगे।शून्य के बिना,कोई गणना नहीं है,जिसका अर्थ है कोई आधुनिक इंजीनियरिंग या स्वचालन नहीं।शून्य के बिना,हमारी आधुनिक दुनिया का अधिकांश भाग सचमुच बिखर जाता है।

प्रश्न:28.भारत में शून्य की उत्पत्ति क्या है? (What is the origin of zero in India?):

उत्तर:शून्य भारत में संख्या प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।Concept of Zero in hindi को ब्रह्मगुप्त (Brahmagupta) एक विद्वान और गणितज्ञ ने 628 ईस्वी में पहली बार शून्य और उसके संचालन को परिभाषित किया और इसके लिए एक प्रतीक विकसित किया जो संख्याओं के अन्तर्गत एक बिंदु है।उन्होंने शून्य का उपयोग करके जोड़ और घटाव जैसे गणितीय कार्यों के लिए नियम भी लिखे थे।इस प्रकार उन्हें Concept of Zero in hindi का जनक माना जाता है।

प्रश्न:29.क्या शून्य एक सम संख्या है? (Is zero an even number?):

उत्तर:गणितज्ञों के लिए उत्तर आसान है: शून्य एक सम संख्या है।क्योंकि कोई भी संख्या जिसे दो से विभाजित करके एक और पूर्ण संख्या बनाई जा सकती है वह सम होती है।शून्य इस परीक्षा को पास करता है क्योंकि यदि आप शून्य को आधा कर देते हैं तो आपको शून्य मिलता है।
इस प्रकार उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा Concept of Zero in hindi के बारे

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा शून्य की अवधारणा (Concept of Zero in hindi) के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है।तो यह है Concept of Zero in hindi.

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