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How to Control Students Their Thoughts?

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1.छात्र-छात्राएं विचारों का संयम कैसे करें? (How to Control Students Their Thoughts?),गणित के छात्र-छात्राएं विचारों का संयम कैसे करें? (How to Control Mathematics Students Their Thoughts?):

  • छात्र-छात्राएं विचारों का संयम कैसे करें? (How to Control Students Their Thoughts?) क्योंकि विचारों के संयम के बिना अध्ययन में सफलता अर्जित करना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है।संसार में जितने भी महान परिवर्तन,क्रांतियां,अन्वेषण,खोजें,अनुसंधान हुए हैं उसके पीछे विचारों के संयम का बहुत बड़ा हाथ है।चूँकि विचार एक सूक्ष्म शक्ति है इसलिए उसके कार्यकलाप और प्रभाव को अनुभव नहीं कर पाते।परंतु हम अपने आस-पास के मेधावी छात्र-छात्राओं और लोगों पर दृष्टिपात करें तो इसका रहस्य समझ में आ जाएगा।
  • आरंभ में जिनके विचार थे,वे आगे चलकर उसी दिशा में कार्यान्वित हुए और जिनमें जितनी प्रतिभा,योग्यता,कर्मठता थी उसी परिणाम में उनको सफलता प्राप्त हुई।
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2.विचारों के असंयम के परिणाम (Consequences of Incontinence of Thoughts):

  • यदि छात्र-छात्राएं हीन और निकृष्ट विचारों में तल्लीन रहेंगे।घृणा,द्वेष,क्रोध की भावनाओं का पोषण करते रहेंगे तो हमारा पतन होता जाएगा।इसके फलस्वरूप आपके मन में चोरी,डकैती,लूटपाट,लड़ाई-झगड़ा,परीक्षा में नकल करना,अध्यापकों को डराना-धमकाना,अनैतिक रूप से परीक्षा प्रश्न-पत्र हासिल करना,घूस देकर अंकतालिका में अंक बढ़वाना आदि कार्यों में संलग्न हो जाएंगे।
  • अपने विचारों के प्रभाव से ही छात्र-छात्राएं हीनता,दुःखी,उद्विग्न,अशान्त,अशक्तता के विचारों में लगा रहे तो उसके अध्ययन करने में कमजोर,फिसड्डी बनने में कुछ भी देर न लगे।
  • वस्तुतः विचार दुधारी तलवार की तरह है जिनसे अच्छे,बुरे दोनों तरह के उद्देश्य सिद्ध किए जा सकते हैं।
  • विद्या,धन,शारीरिक बल की तरह विचारों का सदुपयोग करना और दुरुपयोग करना छात्र-छात्राओं के हाथ में है।
  • शिक्षित बनकर कुछ छात्र-छात्राएं अच्छा जॉब पाकर श्रेष्ठ कार्य करते हैं,लोगों का भला करते हैं परंतु कुछ छात्र-छात्राएं उसी शिक्षा का प्रयोग लोगों को ठगने,मूर्ख बनाने और अपना उल्लू सीधा करने में लगाते हैं।शारीरिक बल से निर्बलों की सहायता भी की जा सकती है और असमर्थों पर अत्याचार भी किया जा सकता है।यही बात विचारों की शक्ति के बारे में हैं।उनसे शुभ उद्देश्यों की पूर्ति भी कर सकते हैं और अशुभ उद्देश्यों का पोषण करके बुराई भी बढ़ा सकते हैं।
  • जो छात्र-छात्राएं अपने मस्तिष्क को गंदे,घृणित,निन्दित विचारों में लगाए रहेंगे,उन्हीं का अध्ययन और मनन करते रहेंगे वे एक नंबर के हिस्ट्रीशीटर,चोर,लुटेरे,डाकू,अपराधी,गुंडे और बदमाश बन जाते हैं।उनका रहन-सहन,स्वभाव,आचरण गलत कार्यों के साँचे में ढलता जाएगा।एक दिन हमारी गिनती ऐसे भयंकर और घृणित जीवों में होने लगेगी जिनसे बचकर निकल जाने की ही प्रत्येक व्यक्ति चेष्टा करेगा।
  • लोग छूत के रोग की तरह ऐसे व्यक्तियों से दूर रहना चाहते हैं क्योंकि उनसे किसी प्रकार लाभ या उपकार की आशा तो रहती नहीं,उल्टा यही खटका रहता है कि कहीं वे हमको भी अपने फँदे में फंसाने की चेष्टा न करें।ऐसे व्यक्ति समाज के लिए अभिशाप समझे जाते हैं और कोई संकोच या भय से उनसे कुछ न कहे,पर मन में सब कोई उनसे दूर रहने और उपेक्षा का ही भाव रखते हैं।
  • छात्र-छात्राओं में कुविचार,गंदे विचार,अश्लील विचार संगति के कारण पनपते हैं।छात्र-छात्राएं गुंडे,बदमाश,अय्याश,चोर किस्म के छात्र-छात्राओं की संगति में रहेंगे तो उनके मन में वैसे ही विचार पनपेंगे और वे भी उसी तरह बनते चले जाएंगे।
  • पाश्चात्य जीवनशैली,भोगवादी जीवन शैली,उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव के कारण भी छात्र-छात्राओं में इस तरह के विचारों को अपनाने की आदत पड़ जाती है।माता-पिता,अभिभावकों की लापरवाही तथा अच्छी शिक्षा,नैतिक शिक्षा,सदाचारयुक्त शिक्षा न मिलने के कारण भी छात्र-छात्राओं के मन में अनैतिक व बुरे विचार पनपने लगते हैं।

3.विचारों के संयम के परिणाम (The Consequences of Restraint of Thoughts):

  • विचारों की शक्ति बड़ी प्रचण्ड है जब छात्र-छात्राएं दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ते जाते हैं तो अध्ययन में और गणित में अनेक कीर्तिमान स्थापित करते चले जाते हैं।विचारों की प्रचण्ड शक्ति के कारण ही गणित का छात्र अल्बर्ट आइंस्टीन महान गणितज्ञ और वैज्ञानिक बन गए।जेम्स वाट भाप के इंजन के आविष्कारक बन गए।मूर्ख कालिदास महाकवि कालिदास बन गए और बोपदेव संस्कृत के महान विद्वान बन गए।
  • यदि छात्र-छात्राएं मन में सत्य,अहिंसा,संयम,परोपकार,ईमानदारी,धैर्य,संतोष आदि के विचार रखेंगे तो न केवल वे पढ़ने में मेधावी होंगे बल्कि उनका जीवन सदाचार युक्त होगा और उनकी गणना श्रेष्ठ व महान व्यक्तियों में की जाएगी।
  • अच्छे और श्रेष्ठ विचार,सद्विचारों को धारण करने के कारण उनकी संगति अच्छे,मेधावी,निपुण और श्रेष्ठ छात्र-छात्राओं के साथ ही होगी।वे ईमानदारी और परिश्रमपूर्वक ही अपने अध्ययन क्षेत्र या जॉब में आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं।परीक्षा में अपनी मेहनत के बल पर ही अच्छे अंक प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
  • अच्छे विचारों से हमारे अंदर अच्छी आदतें और अच्छे संस्कारों का निर्माण होता है।हमारे मानसिक धरातल की शुद्धि,उसका संस्कार विचार शक्ति द्वारा ही संभव है।हमारे उत्थान और पतन का आधार हमारी आदतें और हमारे संस्कारों पर ही निर्भर करता है।दुष्प्रवृत्तियां हमको कुमार्ग,बुरे मार्ग,अनैतिक पर ले जाकर नीचे गिराती हैं और शुभ प्रवृतियां अच्छे,श्रेष्ठ मार्ग की ओर प्रेरित करके ऊंचा उठाती हैं।
  • यदि छात्र-छात्राएं हानिकारक प्रवृत्तियों को त्यागकर श्रेष्ठ,प्रशंसनीय और हितकारी विचारों में तल्लीन रहता है और उनको दूसरों के साथ व्यवहार में लाने की चेष्टा करता है तो उसका जीवन उच्चता की ओर बढ़ता जाएगा,अन्य छात्र-छात्राएं और लोग भी उसके प्रति सद्भाव रखेंगे,उसका आदर,सम्मान बढ़ता जाएगा और उनकी गिनती अच्छे,समझदार,नेक,ईमानदार,मेधावी,निपुण छात्र-छात्राओं में होने लगेगी।अन्य छात्र-छात्राएं तथा लोग भी ऐसे छात्र-छात्राओं की प्रशंसा करते हैं और उन्हें किसी न किसी प्रकार सम्मानित करते हैं।
  • लोग अच्छे छात्र-छात्राओं का उदाहरण देकर उनके चरित्र को अनुकरणीय बतलाएंगे और उसका उदाहरण सामने रखकर स्वयं भी ऊंचा उठने की कोशिश करेंगे।ऐसे छात्र-छात्राएं परिवार,समाज व देश का गौरव बढ़ाते हैं और उनका यश दीर्घकाल तक स्थायी बना रहता है।
  • इतना अधिक अंतर केवल सुविचारों और कुविचारों के कारण हो जाता है।अगर छात्र-छात्राएं अपने विचारों को ठीक मार्ग पर चलाता है तो सबका हितकारी,प्यारा,आदरणीय बन जाता है और यदि वह विचारधारा को दूषित करके उल्टे मार्ग पर चलने लगे तो वही सब लोगों की निगाहों में खटकने लगता है।वे उसे समाज,परिवार व देश पर कलंक लगाने वाले के रूप में देखते हैं और ऐसे छात्र-छात्राओं से अच्छे छात्र-छात्राएं एवं लोग उनसे किसी तरह का संबंध रखना अनुचित और हानिकारक मानने लग जाते हैं।

4.विचारों का संयम कैसे करें? (How to Control Thoughts?):

  • विचारों को असीम प्रशिक्षण दिया जा सकता है और उनको प्रशिक्षित और नियंत्रित करने के शुभ परिणाम आते हैं।हमेशा मन और आने वाले विचारों पर सतत निगरानी रखो।ज्योंही कोई बुरा विचार आए तो उसकी कंपनी न दें।जब हम लापरवाह होते हैं तभी चुपके से बुरे विचार हमारे मन में प्रवेश कर जाते हैं।
  • विचारों को बेलगाम घोड़े की तरह छोड़कर मन को विवश कर देते हैं कि उस परिस्थिति और घटना को बदलने के लिए कोई प्रयत्न ही न करें।यदि आप अपनी भलाई चाहते हैं और उनका भी हित करना चाहते हैं तो जो आप पर आश्रित है तो आपके लिए यह आवश्यक है कि आप अपने विचारों को नियंत्रित करने के उपायों पर विचार करें।तभी आपके व्यक्तित्त्व का विकास हो सकेगा और तभी आप उनका हित कर सकेंगे जो आप पर आश्रित है।
  • अक्सर छात्र-छात्राएं तथा लोग यही सोचते हैं कि मन की प्रवृत्तियों पर रोक लगाना कठिन ही नहीं,निरर्थक भी है।वे समझते हैं कि विचारों का विश्लेषण करना बहुत कठिन है और इसके लिए फालतू समय आदि की जरूरत है।लेकिन यह बात गलत है।
  • भले ही कोई व्यक्ति कितना ही अबोध हो,कितना भी असंस्कृत हो,कितना भी अज्ञानी हो,कितना भी व्यस्त हो इतनी सामर्थ्य उसमें अवश्य होती है कि वह अपने विचारों को समझ सके,उनका विश्लेषण कर सके,उनकी खोजबीन कर सके और तब अपने स्वभाव,अपने क्रियाकलाप,अपने चरित्र और अपने जीवन में जितना चाहे परिवर्तन कर सके।हर व्यक्ति तथा छात्र-छात्रा की समस्याएं दूसरे से भिन्न होती है जिन्हें उसे स्वयं सुलझाना होता है।इसी प्रकार हर छात्र-छात्रा का लक्ष्य भी भिन्न होता है।लेकिन विचारों को सुधारने और उन्हें अपने लक्ष्य के अनुकूल बनाने की प्रक्रिया सभी के लिए एक जैसी होती है।
  • अपने विचारों और चरित्र में सुधार के लिए आपको प्रयत्न करना होगा,कांछ-छांट करनी होगी,स्पष्ट सोच लेना होगा कि आप क्या चाहते हैं और कैसे उसे कर सकते हैं।इसके बाद आपको अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए,अपनी कल्पना को साक्षात एवं मूर्त रूप देने के लिए कठोर परिश्रम एवं प्रयत्न करना होगा तभी आपके विचार सुंदर बन पाएंगे।सुंदर विचार ही सफलता की गारंटी होते हैं।
  • आपका प्रत्येक विचार आपकी अपनी ही नहीं बल्कि औरों की भलाई के लिए भी हो और तब दृढ़ इच्छाशक्ति से अपनी कार्यशक्ति को नियोजित करके आप अपनी कल्पना के अनुरूप सफलता प्राप्त कर सकते हैं।ध्यान रहे,आप चाहे जितनी भी सच्चाई और ईमानदारी से अपने विचारों को नियंत्रित करें अथवा अपने लक्ष्य पर अपनी सामर्थ्यानुसार कितनी ही पैनी दृष्टि से देखें,आपके विचार करने का ढंग और आपकी पुरानी आदतें,आपके चित्त की एकाग्रता को अवश्य विचलित करेंगी।
  • विचारों को संयमित करने,शुभ विचारों को मन में स्थान देने के लिए सबसे अच्छा साधन है:साधना,सत्संग और स्वाध्याय।साधना,सत्संग और स्वाध्याय द्वारा धीरे-धीरे आपका मन वश में आ सकेगा।वह आपके विश्वासपात्र मित्र जैसा बन सकेगा।इससे आपको प्रसन्नताभरी मानसिकता प्राप्त होगी।इसके द्वारा आपके व्यक्तित्त्व में सुसंगति आएगी जो जीवन के रचनात्मक शक्तियों का विकास करेगी।
  • लेकिन साधना,सत्संग और स्वाध्याय उन लोगों को बहुत कठिन लगेगी जिनका मनोमस्तिष्क वर्षों से अशुभ विचारों और नकारात्मक दृष्टिकोण वाला हो चुका है।इस नयी रचनात्मक विधि से विचार करने के लिए कठोर अनुशासन की आवश्यकता पड़ सकती है।याद रखिए कि कोई भी मूल्यवान वस्तु सरलता से नहीं मिलती और यदि आपने परिश्रम करके मन को वश में कर लिया तो यह आपके लिए किसी मूल्यवान उपलब्धि से कम नहीं है।

5.केवल विचार ही करते रहने का दृष्टान्त (The Parable of Just Thinking):

  • शुभ विचारों,अच्छी बातों को केवल मन में धारण करने से ही कुछ नहीं होता है।चाहे आप किसी भी कारण से,किसी बाधा,विकट परिस्थिति के कारण उन पर अमल नहीं कर पाते तो उससे कोई लाभ नहीं होगा।अध्ययन,अध्ययन की रट लगाने से अध्ययन करना नहीं आ जाएगा।सवालों का अभ्यास न करने से सवाल हल करना नहीं आ जाएगा।
  • एक गणित का विद्यार्थी घबराया हुआ घर पहुंचा और अंदर घुसते ही फटाक से दरवाजा बंद कर लिया।उसकी माँ ने उसकी घबराहट और चिन्तित स्थिति देखकर पूछा,क्या हुआ? तुम इतने घबराए हुए क्यों हो,मामला क्या है? वह विद्यार्थी बोला आज तो बाल-बाल बच गया।
  • माँ चिन्तित हो उठी,बोली बाल-बाल कैसे बच गए?क्या कोई एक्सीडेंट हो गया? एक्सीडेंट तो नहीं हुआ परन्तु रास्ते में एक गुण्डा मिल गया और रास्ता रोककर,मुझे चाकू दिखाया।
  • मेरा मोबाइल,मेरी जेब में रुपए थे वे और ऊँगली में सोने की अँगूठी वह सब कुछ निकाल लिया।कुछ भी नहीं छोड़ा सबकुछ निकाल लिया।
  • माँ हैरान होकर बोली तुम तो जूडो-कराटे में डबल ब्लैक बेल्ट हो न।विद्यार्थी ने कहा मैंने उसे यह नहीं बताया वरना वह यह कहकर कि तुम ब्लैक बेल्ट हो,मेरी धुनाई,पिटाई ओर करता लेकिन मैंने बताया नहीं।
  • माँ बोली जूडो-कराटे का कोर्स किया था तब तो बाते लम्बी चौड़ी करते थे और जूडो-कराटे में डबल ब्लैक बेल्ट होते हुए भी लुटकर चले आए।फिर जूडो-कराटे करने का फायदा क्या हुआ? विद्या को उपयोग में न लेने से,आचरण में न उतारने से तुम्हारे पढ़ने व न पढ़ने से क्या फायदा होगा?
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं विचारों का संयम कैसे करें? (How to Control Students Their Thoughts?),गणित के छात्र-छात्राएं विचारों का संयम कैसे करें? (How to Control Mathematics Students Their Thoughts?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित के सवालों को हल करने का वादा (हास्य-व्यंग्य) (Promise to Solve Math Questions) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक:अमित,गणित के सवालों को तत्काल हल कर दो।
  • अमित:सर (sir),आज मूड नहीं है,कल कर दूंगा।
  • गणित शिक्षक:तुम्हारे इन वादों के चक्कर में ये गणित के सवाल हल नहीं हो पाएंगे और तुम परीक्षा में असफल हो जाओगे।मेरा भी नाम बदनाम करोगे।

7.छात्र-छात्राएं विचारों का संयम कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Control Students Their Thoughts?),गणित के छात्र-छात्राएं विचारों का संयम कैसे करें? (How to Control Mathematics Students Their Thoughts?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या विचारों को सृजन की दिशा में लगाकर संयमित किया जा सकता है? (Can Ideas Be Restrained by Channelising Them Towards Creation?):

उत्तर:विचारों को सृजनात्मक बनाया जाना चाहिए।वे समाधानकारी सुझाव ढूंढने में लगें।सृजन की रूपरेखा प्रस्तुत करें।उलझनों का हल ढूँढे और कल्पनाओं को यथार्थता के साथ जोड़े तभी विचारधारा का स्तर उपयोगी एवं सराहनीय ठहराया जा सकेगा।प्रतिशोध,घृणा,ईर्ष्या,निन्दा,छिद्रान्वेषण की बातें सोचते रहने से हम आक्रमणकारी और विध्वंसक ही बन सकते हैं।प्रकाश बाहर से नहीं मिलता भीतर से उगता है।परामर्श या मार्गदर्शन बाहर वालों का काम नहीं देता।दिशा-निर्देश के प्रभावशाली बोल तो अंतःकरण ही बोलता है।क्या किया जाए,किधर चला जाए इसके संबंध में वादी-प्रतिवादी के वकीलों की तरह बाहरी व्यक्ति विविध प्रकार के परामर्श देते रहते हैं।उनसे मन इधर-उधर लहराता-ललचाता भर है।निर्णय की शान्ति तो अपने अंदर ही है।

प्रश्न:2.विचारशक्ति का लाभ कैसे प्राप्त कर सकते हैं? (How Can We Get the Benefit of Thinking Power?):

उत्तर:हमारा चिंतन यथार्थवादी और सृजनात्मक दिशा में चल सकने वाला बन सके,तभी विचारशक्ति की अद्भुत क्षमता से लाभान्वित हो सकते हैं और महत्त्वपूर्ण उपलब्धि की सुरक्षा कर सकने वाले एवं उसका सदुपयोग कर सकने वाले समझदार कहला सकते हैं।

प्रश्न:3.क्या मन को नियंत्रित करके भी विचारों को संयमित कर सकते हैं? (Can We Control Thoughts by Controlling the Mind?):

उत्तर:विचार प्रवाह मन में चलते रहते हैं।अतः मन को नियंत्रित करके भी विचारों को संयमित किया जा सकता है।गीता में अर्जुन ने कहा है कि मन बड़ा चंचल,मथनेवाला और शक्तिशाली है इसलिए उसका संयम करना मुझे वायु को वश में लाने की तरह अति दुष्कर जान पड़ता है।तब श्री कृष्ण ने कहा कि इसमें संदेह नहीं है कि मन चंचल और कठिनता से वश में आने वाला है परंतु अभ्यास (अच्छे कार्यों में लगाना) तथा वैराग्य (बुरे कार्यों में न जाने देना) से वश में हो जाता है।विवेक,धैर्य,साहस तथा मन की एकाग्रता से भी मन को वश में किया जा सकता है।इसके अलावा अध्ययन को साधना और पूजा समझकर करें,उसको डूबकर करें तब भी मन वश में हो जाता है।मन को ध्यान और योग के द्वारा भी वश में किया जा सकता है।इसमें ध्यान यही रखना चाहिए कि मन को बलपूर्वक नियन्त्रित नहीं करना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं विचारों का संयम कैसे करें? (How to Control Students Their Thoughts?),गणित के छात्र-छात्राएं विचारों का संयम कैसे करें? (How to Control Mathematics Students Their Thoughts?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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