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Students Should Do Work Wholeheartedly

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1.छात्र-छात्राएं काम को दिल से करें (Students Should Do Work Wholeheartedly),छात्र-छात्राएँ कर्म को पूजा समझकर करें (Students Should Consider Work as Worship):

  • छात्र-छात्राएं काम को दिल से करें (Students Should Do Work Wholeheartedly) अर्थात् श्रद्धा के साथ पूजा समझकर करें तो उसमें असीम आनंद की प्राप्ति होगी।महान् गणितज्ञ और वैज्ञानिक अपने काम में डूबे रहते हैं तब कहीं खोज कार्य व अनुसंधान कर पाते हैं।जीवन में ऊंचाइयों को वही छू सकता है जो अपने काम को साधना समझकर करे और उसमें तल्लीन रहे।चाहे वह गणितज्ञ हो,वैज्ञानिक हो,कलाकार हो,शिक्षक हो या विद्यार्थी।यदि साधना में बोरियत होने लगे तो परिणाम अच्छे प्राप्त नहीं हो सकते हैं।
  • यदि अभ्यर्थी है और जॉब करता है तो जाॅब को केवल वेतन प्राप्त करने का दृष्टिकोण या जरिया न समझकर पूर्ण निष्ठा,लगन और एकाग्रता के साथ संपन्न करने वाला ही आगे उन्नति कर सकता है।
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2.मन की पूर्ण एकाग्रता के बिना काम करने वाला अपना शत्रु (An Enemy who Works without Full Concentration of Mind):

  • जो विद्यार्थी चाहे अध्ययन कार्य हो,अपने दैनिक जीवन के कार्य हो,घर के कार्य हो अथवा अन्य कोई कार्य हो उसको मन लगाकर नहीं करता वह स्वयं अपना शत्रु है।किसी भी कार्य को मन से न करने वाला विद्यार्थी क्या अपने अध्ययन कार्य को पूर्ण निष्ठा के साथ कर सकता है? बहुत संभावना यही है कि संस्कारवश अपने कार्य के प्रति भी समर्पित होकर नहीं करेगा।
    ऐसा विद्यार्थी न तो किसी काम में सफलता प्राप्त कर सकता है,न परीक्षा में सफलता प्राप्त कर सकता है।ऐसा विद्यार्थी अपने पाठ्यक्रम (सिलेबस) का पूर्ण अध्ययन नहीं करता है अर्थात् अपूर्ण ही छोड़ देता है।
  • वह अपने काम को करने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाता है,ऐसा विद्यार्थी कदापि अच्छा विद्यार्थी नहीं बन सकता है।इसी प्रकार जो विद्यार्थी जॉब करता है और अपने जाॅब को पूर्ण दिलचस्पी के साथ नहीं करता है उसे जाॅब में आनंद का अनुभव नहीं हो सकता है।काम करके जो संतोष का अनुभव नहीं करता है वह विद्यार्थी जीवन में कितना सफल हो सकता है,इसका अनुमान सब लोग आसानी से लगा सकते हैं।
  • इस प्रकार के अभ्यर्थी (कर्मचारी/अधिकारी) जाॅब को एक भार समझते हैं।इस प्रकार के लोग चेतना एवं जीवन के इस लक्षण की उपेक्षा करते हैं कि कर्म ही पूजा है।जॉब करने के मार्ग में व्यक्ति को संघर्ष और प्रगति करने के अवसर प्राप्त होते हैं।साथ ही उन्हें कर्मठता,कार्यकुशलता,सहनशीलता,विनम्रता आदि गुणों का विकास करना होता है,ये ऐसे गुण हैं जिन्हें मानवता की पहचान और उसका वरदान माना जाता है।
  • वेद में कहा गया है कि काम के द्वारा ही व्यक्ति को ऐश्वर्य एवं कीर्ति की प्राप्ति होती है।परंतु कोई व्यक्ति अपना काम करते समय रोता-झींकता और शिकवा-शिकायत करता है,तो वह न तो अपने काम को ठीक तरह कर पाता है और न किसी प्रकार की सहानुभूति एवं श्रद्धा का ही पात्र बन पाता है,अधिक से अधिक वह दया एवं उपेक्षा का पात्र बन सकता है।
  • सारांश यह है कि जब हम किसी काम को आधे मन से अथवा मनोयोगपूर्वक नहीं करते हैं तो लोग तथा समाज हमें निकम्मा समझता है और इसका सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम यह होता है कि हमारा पुरुषार्थ कुंठित हो जाता अर्थात् हम गड्ढे में भरे हुए पानी की भाँति स्थिर रहकर सड़ान्ध पैदा करने लगते हैं।निरंतर पुरुषार्थ करने का अर्थ बहते हुए पानी की भांति प्रतिक्षण पवित्र होते रहना एवं आगे बढ़ते रहना होता है।इसका अर्थ यही है कि जो व्यक्ति प्रगति करना चाहता है उसे अपने काम में गौरव का अनुभव करना चाहिए और हो सके तो उसमें कुछ न कुछ नवीनता लानी चाहिए।
  • विद्यार्थी अथवा अन्य व्यक्ति को अपना कार्य को पूरी निष्ठा एवं तत्परता के साथ करना चाहिए।प्रायः वे लोग मन लगाकर काम नहीं करते हैं और काम के प्रति लापरवाही दिखाते हैं।संभवतः वे या तो यह समझते हैं कि काम बिगड़ने से उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा अथवा वे अपने आपको अपने काम की अपेक्षा अधिक महत्त्व देते हैं।इस श्रेणी के व्यक्ति न तो काम की पवित्रता को समझते हैं और न लोक-व्यवहार का ही ज्ञान रखते हैं।
  • मान लीजिए एक विद्यार्थी अध्ययन को मन लगाकर नहीं करता है अर्थात् दिल से नहीं करता है तो अध्ययन में कमजोर रहेगा फलस्वरूप परीक्षा परिणाम अच्छा नहीं होगा।उस विद्यार्थी के प्रति लोगों की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है? लोग,मित्र तथा माता-पिता व शिक्षक उसको बुरा-भला कहेंगे,उसको सम्मान नहीं देंगे और अवसर आने पर उसकी बुराई करेंगे।नतीजा यह होगा कि उस विद्यार्थी की लापरवाही के कारण उसको अच्छा जॉब नहीं मिलेगा।
  • इसके विपरीत वह यदि मन लगाकर तथा दिल से अध्ययन करता है तो उसके अध्ययन में निखार आएगा और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त होंगे।उसके कार्य से उसके मित्र,शिक्षक,माता-पिता व लोग संतुष्ट होंगे।वे चाहेंगे कि उसको अच्छा जाॅब मिल जाए।अवसर मिलने पर लोगों के सामने उसकी प्रशंसा करेंगे और उसकी मदद करने का प्रयास करेंगे।फलतः उस विद्यार्थी की हर कहीं मांग बढ़ जाएगी।
  • कोई भी विशेष कार्य व्यक्ति को महत्त्व नहीं देता है,व्यक्ति कार्य को विशेष भाँति करके स्वयं अपने आपको महत्त्व प्रदान करता है।व्यक्ति का महत्त्व यह है कि वह जिस कार्य को करता है उसमें अपनी दक्षता के कारण हर समय काम करने वालों के द्वारा घिरा रहे।

3.व्यक्ति काम के कारण ही प्रिय होता है (A Person is Loved Because of Work):

  • किसी जॉब में यदि व्यक्ति से अधिकारी अथवा वरिष्ठ अधिकाधिक काम करने को कहता है,तो इसका अर्थ यह होता है कि अधिकारी अथवा वरिष्ठ उसके काम से संतुष्ट है,उसको एक सक्षम व्यक्ति मानता है और उसके प्रति उसकी कृपा दृष्टि है।संसार में सबको काम प्यार होता है,उसका रूप रंग प्यारा नहीं होता है।सब काम ही नहीं,अच्छा काम चाहते हैं।महान् गणितज्ञों,वैज्ञानिकों व महापुरुषों का जीवन चरित उठाकर देख लो जीवन में सफलता उन्हीं व्यक्तियों को प्राप्त हुई है जिन्होंने पूर्ण मनोयोग एवं निष्ठा के साथ अपना काम किया है।ऐसे अनेक लोग हैं जिन्होंने छोटे से पद पर कार्य प्रारंभ किया और फिर उच्च पद पर पहुंच गए।
  • वरमौण्ट (अमेरिका) में चार्ल्स सी फास्ट नाम का मोची था।उसने मोची का कार्य करते हुए भी नियमपूर्वक गणित का अध्ययन किया और एक दिन उच्चकोटि का गणितज्ञ बना।गणितज्ञ अलहसन काहिरा में नसीरुद्दीन की तरह टोपी सीकर और कुरान लिखकर रोटी कमाने का जुगाड़ करते थे।परंतु धीरे-धीरे उन्होंने गणित,ज्योतिष और भौतिकी में असाधारण कार्य करके महान विद्वान बन गए।
    वास्तव में कार्यक्षेत्र ही वह प्रयोगशाला है जहां अंतर्निहित शक्तियों का विकास होता है और व्यक्ति का सर्वांग सुंदर स्वरूप निखरता है।
  • आपका काम आपकी पहचान है,आप उससे पृथक नहीं हो सकते।काम कोई भी,कैसा भी हो,आप उसको अच्छा या बुरा बना सकते हैं।आप किसी काम को जैसा रूप प्रदान करते हैं,उसी के अनुरूप समाज में,लोगों के हृदयों में आपकी छवि अंकित होती है।अतः आप जो भी काम करें,उसको करते हुए यह ध्यान रखें कि वह अधिक से अधिक व्यक्तियों के सुख का हेतु हो और आपके प्रति उनके मन में सम्मान की मात्रा में वृद्धि हो,इसके लिए आवश्यक है कि आपकी मनोवृत्ति एवं भावना सदैव ऊँची एवं उद्दात हो।आपके सम्मुख यह मानदंड प्रतिपल रहना चाहिए कि आप जिस आसन पर बैठे हुए हैं,वह आपके कारण ऊपर की ओर उठ रहा है या नहीं।
  • प्रायः कार्य की रुचि एवं योग्यता के अनुसार न होने पर व्यक्ति का मन उसमें नहीं लगता है।कभी-कभी लोग कहते हैं कि वह तो केवल इतना ही काम करते हैं जिससे उसका जाॅब बचा रहे।परंतु प्रश्न यह है कि यदि आप इसी प्रकार जाॅब रखाने भर तक अपने प्रयत्नों को सीमित रखेंगे,तो आपके सामने उन्नति का मार्ग किस प्रकार खुलेगा?
  • यदि काम आपके स्तर के अनुरूप नहीं है तो आप उसको श्रेष्ठता प्रदान करके अपने स्तर के अनुरूप बना दीजिए,आप उसको कलात्मक रूप प्रदान करने का प्रयत्न कीजिए,आप उस काम को सेवक या नौकर की तरह न करके स्वामी एवं मालिक की तरह कीजिए।आप स्वयं अपनी और समाज की नजरों में उठ जाएंगे और आपको उसमें रस आने लगेगा।

4.समर्पण के साथ काम करो (Work with Dedication):

  • एतरेय ब्राह्मण में कहा गया है कि सोते रहना ही कलयुग है।ऊँघते रहना ही द्वापर है।उठ बैठना त्रेता है और कार्य में लग जाना सतयुग है।इसलिए काम करो,काम करो,काम करो।
  • युगों की परिभाषा ठीक जान पड़ती है।जब हम अज्ञान के अंधकार में पड़े हुए आलस्य और भ्रममय जीवन व्यतीत करते हैं तो वही कलयुग है।जब हम अपनी दशा का निरीक्षण करते हैं,भूल पर पछताते हैं,आगे की सुधि लेते हैं,कर्त्तव्य का सम्मान करते हुए ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील होते हैं तो वह द्वापर है।जब कर्त्तव्य धर्म का पालन करने के लिए कमर कसकर खड़े हो जाते हैं,विघ्न बाधाओं की परवाह न करते हुए,साहस के साथ आगे को कदम बढ़ाते हैं,बुराई का घृणापूर्वक परित्याग करते हुए सत्य रूपी सूर्य का दर्शन करते हैं,तो वह त्रेता हुआ।जिस समय कर्त्तव्य धर्म को पूरा करने के लिए मनुष्य बेचैन हो जाता है,सत्य के सामने प्राणों को भी तुच्छ समझता है,आलस्य,जड़ता और अज्ञान का परित्याग करके धर्म का पालन करता है,विषय विकारों से मन को हटाकर आत्मा और परमात्मा की ओर झुकता है,तब समझना चाहिए कि सतयुग का उदय हो रहा है।
  • युगों का यह प्रभाव संपूर्ण देश और जातियों में सदैव देखने में आता है।कुछ लोग कलयुग में पड़े हुए हैं,तो कुछ द्वापर में पदार्पण कर रहे हैं।कोई त्रेता तक पहुंच चुका है,तो किसी ने सतयुग में पदार्पण कर दिया है।यह सब सदैव वर्तमान रहते हैं।
  • जिनकी जैसी इच्छा होती है,रुचि के अनुसार चुन लेता है।हाट में सभी तरह की चीज बिक रही है,जिसके जी में जो आवे,खरीद सकता है।बेशक हाट में गाजर मूली ढेरों हैं और केसर कस्तूरी कम,पर चाहने वाले को तो उसकी इच्छित चीज मिल ही सकती है।
  • चाहे कोई सा भी देश,काल क्यों न हो,सत्पथगामी के लिए अपना आचरण शुद्ध करने की सदैव सुविधा है।
  • अज्ञानी तथा अधर्मरतों को ही कलयुगी जीव कहा जा सकता है।जिसकी आत्मा जाग्रत है,वे क्यों कलियुगी जीव कहे जाएंगे? सतयुग एक दिव्य आदर्श है,जो लोग उस समय को देखने की इच्छा करते हैं,वे इस ऋषि वचन को अपनाते हैं कि चरैवेति,चरैवेति,चरैवेति अर्थात् काम करो!काम करो!!काम करो!!! सतयुग अपने आप दौड़कर हमारे पास कभी नहीं आएगा,उसे प्राप्त करने के लिए हमें भगीरथ प्रयत्न करना पड़ेगा।उद्योगी पुरुषों को ही लक्ष्मी मिलती है और उद्योगी ही सतयुग का आनंद लेते हैं,इसलिए सत् धर्म की ओर बढ़ो,ज्ञान प्राप्ति का प्रयत्न करो,नवीन युग लाने का उद्योग करो।

5.काम को दिल से करने का दृष्टांत (The Parable of Doing the Work from the Heart):

  • एक युवक प्राइमरी स्कूल में अध्यापक के पद पर कार्यरत था।शुरू-शुरू में वह अपने कार्य में ध्यान नहीं देता था।बच्चे और बच्चों के अभिभावक अध्यापक से संतुष्ट थे।अध्यापक का जीवन सरलता से गुजर रहा था।
  • लेकिन एक दिन उस युवक ने स्वेच्छा से अपने पढ़ाने के ढंग,बच्चों पर गंभीरता से ध्यान देना,अभिभावकों से बच्चों के बारे में संपर्क करना आदि पर ध्यान देना और अधिक से अधिक रोचक ढंग से पढ़ना चालू कर दिया।
  • उसने अनुभव किया कि काम में बदलाव करने से तथा काम को दिल से करने के कारण बच्चे अधिक दिलचस्पी से पढ़ने लग गए।उसने इस अनुभव को कार्य रूप में बदल दिया।इससे सभी बच्चे व अभिभावक खुश हुए।
  • जिला शिक्षा अधिकारी ने प्रसन्न होकर उसकी पदोन्नति कर दी।अध्यापक ने अपने कार्य में रुचि लेना और पूरी निष्ठा से करना जारी रखा।उसने अतिरिक्त समय में M.Ed और एमसीसी कर ली।नेट की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।उसके रुचि लेने और डिग्री हासिल कर लेने के कारण एक दिन वह विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बन गया।
  • एक दिन उसके कार्य को देखते हुए विश्वविद्यालय का उपकुलपति बना दिए गए।उसने विश्वविद्यालय की कार्य प्रणाली में बहुत से बदलाव किए।विश्वविद्यालय टॉप के विश्वविद्यालयों में गिना जाने लगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं काम को दिल से करें (Students Should Do Work Wholeheartedly),छात्र-छात्राएँ कर्म को पूजा समझकर करें (Students Should Consider Work as Worship) के बारे में बताया गया है।

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6.सवाल हल न करने का दंड (हास्य-व्यंग्य) (Penalty for Not Solving Questios) (Humour-Satire):

  • बेटा:मां,₹1 दे दो।
  • माँ:क्यों बेटा।
  • बेटा:स्कूल में गणित का सवाल हल नहीं कर पाया इसलिए गणित अध्यापक ने ₹1 दंड लगाया है।
  • मां:तू स्कूल में पढ़ने जाता है या मटरगश्ती करने जो तुझे सवाल नहीं आया।

7.छात्र-छात्राएं काम को दिल से करें (Frequently Asked Questions Related to Students Should Do Work Wholeheartedly),छात्र-छात्राएँ कर्म को पूजा समझकर करें (Students Should Consider Work as Worship) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.आगे बढ़ने का क्या तरीका है? (What’s the Way Forward?):

उत्तर:अपने मन में सदैव उन्नति की सीढ़ी पर एक ओर ऊंचा कदम उठाते रहने का दृढ़ विचार रखिए,उसी के अनुसार अपने कर्म करिए।यदि आपके द्वारा किए गए अतिरिक्त और अच्छे कार्य का पुरस्कार न मिले तो,धीरज नहीं खोइए।अपने मन में सदैव सफलता से भरे विचार रखिए।वर्तमान पद से प्रसन्नता न मिलने पर बिना किसी मनोमालिन्य या बुरी भावना के उसे छोड़कर ऐसा कार्य शुरू करिए जिसमें आपकी सचमुच में रुचि हो।आप कहां से प्रारंभ करते हैं यह महत्त्वपूर्ण नहीं है,महत्त्वपूर्ण है वह मंजिल जहां आप जा रहे हैं।ध्यान रखिए सफलता तथा महानता सबसे पहले आपके मन में जन्म लेती है।

प्रश्न:2.विद्यार्थी असफल होने पर किसे दोष देते हैं? (Who Do Students Blame for Failing?):

उत्तर:अक्सर विद्यार्थी असफल हो जाते हैं तो अपने कार्य की समीक्षा नहीं करते हैं और न उसमें सुधार करते हैं।वे अपनी असफलता का दोष पाठ्यक्रम,प्रश्न पत्र कठिन होने,शिक्षक द्वारा ठीक से न पढ़ाने,माता-पिता द्वारा कोचिंग की व्यवस्था न कराने अर्थात् दूसरों पर ही दोषारोपण करते हैं।जबकि असली दोषी विद्यार्थी स्वयं होते हैं।ऐसी बात नहीं है की परिस्थितियाँ विपरीत नहीं होती है अथवा परिस्थितियों के कारण असफलता नहीं मिलती है।परंतु परिस्थितियों का सामना,विघ्न बाधाओं का सामना वे विद्यार्थी ही नहीं कर पाते हैं जो अपने अध्ययन कार्य को पूर्ण निष्ठा व दिल से नहीं करते हैं अन्यथा उन्हीं परिस्थितियों में अन्य विद्यार्थी कैसे सफल हो जाते हैं।

प्रश्न:3.कोई कार्य कब साध्य या असाध्याय हो जाता है? (When is Something Feasible or Unfeasible?):

उत्तर:कोई कार्य एक के लिए साध्य है तो दूसरे के लिए असाध्य हो सकता है।इसी प्रकार एक के लिए असाध्याय कार्य दूसरे के लिए साध्य हो सकता है।इसलिए साध्य तथा असाध्य शब्द सापेक्ष है।कोई कार्य किसी के लिए तभी साध्य हो सकता है जब उस कार्य के लिए उसमें लगन,उत्साह,क्षमता तथा योग्यता हो तथा वह उसे दिल से करता हो।इनके अभाव में सरल कार्य भी असाध्य है।जिस व्यक्ति में उत्कट लगन,हिम्मत और अध्यवसाय हो उसके लिए ऐसे काम भी साध्य हो जाते हैं जो दूसरों के लिए असाध्य हों।इसलिए कोई भी कार्य हाथ में लेने से पहले मनुष्य को सोचना चाहिए कि उसकी जितनी योग्यता तथा क्षमता है,उसके हिसाब से वह साध्य है या नहीं।बिना ऐसा सोच-विचार जो कार्य किया जाता है उसे करने में घोर परिश्रम करना होता है,वह भी व्यर्थ जाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं काम को दिल से करें (Students Should Do Work Wholeheartedly),छात्र-छात्राएँ कर्म को पूजा समझकर करें (Students Should Consider Work as Worship) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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