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4 Amazing Ways to Learn for Students

1.छात्र-छात्राओं के लिए सीखने के 4 अद्भुत तरीके (4 Amazing Ways to Learn for Students),जीवन में सीखने के 4 अद्भुत तरीके (4 Amazing Ways to Learn in Life):

  • छात्र-छात्राओं के लिए सीखने के 4 अद्भुत तरीके (4 Amazing Ways to Learn for Students) पढ़कर जान सकेंगे कि वे चाहे तो कदम-कदम पर प्रकृति की हर चीज से सीख सकते हैं।जीवन में बहुत कुछ सीख सकते हैं,प्रतिक्षण सीख सकते हैं बशर्ते हम सीखना चाहें,शिक्षा लेना चाहें और अपना अज्ञान दूर करना चाहें।ऐसा तभी हो सकता है जब हम यह जानते हों कि हम बहुत कम जानते हैं और बहुत कुछ जानने को बाकी है,हम यह मानते हों कि हम अज्ञानी हैं,हमें बहुत कुछ सीखना है और दूसरों में हमसे ज्यादा ज्ञान है।ऐसा तभी हो सकता है जब हम में अहंकार ना हो,अकड़ ना हो और दम्भ न हों।क्योंकि अहंकार हमको झुकने नहीं देता,दूसरों को अपने से अधिक योग्य नहीं मानने देता और इसी शेखी में डुबाए रखता है कि हम किसी से कम नहीं।
  • एक कहावत है कि ‘अपनी अकल और दूसरे की दौलत’ ज्यादा नजर आती है।अपनी अकल दूसरे से ज्यादा समझना ही अहंकार है,दम्भ यानी मिथ्या अभिमान है और काबिलियत का हैजा होना है और जिसे हैजा हो जाता है वह कोई चीज ग्रहण कर नहीं पाता क्योंकि वह तो जो कुछ अंदर होता है उसे ही उल्टी व दस्त द्वारा बाहर निकाल रहा होता है।ग्रहण करने की उसकी स्थिति ही नहीं होती।आप यदि जबरन खिला भी दो यानी ग्रहण करा भी दो तो भी वह उल्टी दस्त द्वारा बाहर निकाल देगा।यही बात अहंकारी यानी अकड़बाज और शेखीबाज व्यक्ति में होती है।वह सीखने को,समझने को और शिक्षा ग्रहण करने को राजी ही नहीं होता जबकि चतुराई की बात तो यह होती है कि आगे वाला गिरता है तो पीछे वाला होशियार हो जाता है और गिरने से बच जाता है।जो चतुर होते हैं वे इंसान से ही क्या पशुओं यहां तक कि निर्जीव प्रकृति की चीजों से शिक्षा ले लेते हैं।
    प्रत्येक शिक्षा खुद ही अनुभव करके ग्रहण की जाए यह जरा मुश्किल काम है।जहर खाने से मृत्यु हो जाती है हमने बड़े-बुजुर्गों से सुना है अतः जहर खाकर खुद अनुभव करने की आवश्यकता नहीं है।इसी प्रकार आग में हाथ डालने से हाथ जल जाता है अतः आग में हाथ डालकर खुद अनुभव करने की आवश्यकता नहीं है।जिन बुरे कामों के बुरे परिणाम दूसरे भोग रहे हैं उन्हें देखकर उन कामों को न करने की शिक्षा ग्रहण कर लेना चाहिए।इसी प्रकार जिन अच्छे कामों को करने से जिनका जीवन सुधर रहा है उन्हें अपने जीवन में ग्रहण कर लेना चाहिए।सीखने के लिए व्यक्ति में तीव्र लगन,आकुल जिज्ञासा और साध हो तो उन्हें कहीं भटकने की जरूरत नहीं है बल्कि अपने आसपास ही सीखने के माध्यम मिल जाएंगे।
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2.ज्ञान प्राप्ति के माध्यम (Means of gaining knowledge):

  • (1.)बालकों से हम सीख सकते हैं कि वे सरल,आनंद,झूठ-कपट से रहित,निर्दोष और ऊर्जावान होते हैं।जितनी चालाकी आती है वह बड़े होने पर,दुनिया की हवा लगने पर आती है।बच्चे आलसी नहीं होते हैं।उनको खेलते-कूदते,उठा-पटक करते देखकर हम आश्चर्यचकित रहते हैं कि इनमें इतनी ऊर्जा कहां से आती है।बच्चे चिंताग्रस्त नहीं होते,निराश नहीं होते,अभी उन्हें यह पता ही नहीं होता की आसक्ति क्या होती है,फल की इच्छा क्या होती है,फल मिलना क्या होता है और असफलता क्या होती है इसलिए उनकी ऊर्जा अवरुद्ध नहीं होती,बाधित नहीं होती है और इसीलिए वे आलसी नहीं होते ऊर्जावान होते हैं।यदि हम भी ऐसी मानसिक अवस्था को उपलब्ध हो सकें तो आलसी हो नहीं सकते।सरल,निष्कपट,अनासक्त,आनंद की स्थिति में जीवन जी सकते हैं।
  • (2.)विद्यार्थी में विद्या ग्रहण करने की रुचि,जाॅब प्राप्त करने की तीव्र उत्कंठा,गुरुजनों के प्रति श्रद्धाभाव,चित्त की एकाग्रता,सुदृढ़ संकल्पशक्ति,आत्म-विश्वास,जिज्ञासु प्रवृत्ति,कठिन परिश्रमी,समय प्रबंधन,सच्चरित्रता,विनम्रता,घर के प्रति मोह न रखना,अल्पाहार आदि गुण होते हैं।अतः एक विद्यार्थी से हम उपर्युक्त गुण सीख सकते हैं।एक सच्चा विद्यार्थी जहां विद्या ग्रहण करने की आवश्यकता होती है वहां जाता है,कष्ट सहन करता है और सतत प्रयास करता है।भूख से थोड़ी कम मात्रा में आहार लेने से आलस्य नहीं रहता है।सत्रारम्भ से ही परीक्षा के लिए कठिन परिश्रम करता है,नियमित रूप से विभिन्न परीक्षाओं के दौर से गुजरता है।कोई सवाल प्रश्न नहीं आता है तो गुरुजनों से पूछता है इस प्रकार लगातार जिज्ञासु प्रवृत्ति रखता है।
    एकाग्र चित्त होकर अध्ययन करता है,जाॅब के लिए या विद्या ग्रहण करने के लिए घर छोड़ना पड़े तो घर भी छोड़ देता है।समय की कद्र करता है,एक-एक क्षण का सदुपयोग करता है।परीक्षा के दिनों में तो थोड़ा-सा सोकर ही अपनी नींद पूरी कर लेता है।हमेशा इस प्रयत्न में लगा रहता है कि उसे अच्छा से अच्छा परिणाम और सफलता प्राप्त हो।
  • एक विद्यार्थी अनुशासन का पालन करता है।अनुशासन का पालन करने से विद्यार्थी का जीवन सुव्यवस्थित,सुनियोजित और नैतिकता के अनुकूल रहने से जीवन सुखी,प्रसन्न,निश्चिन्त और संपन्न होता है।यह अनुशासन दो प्रकार का होता है।एक स्वयं अपनी इच्छा से,जो कि विद्यार्थी को अपने संस्कारों से प्राप्त होता है और दूसरा,दूसरे के द्वारा अर्थात् स्कूल प्रशासन द्वारा विद्यार्थी पर लागू किया जाता है भले ही विद्यार्थी राजी हो या ना हो।जो अनुशासन विद्यार्थी अपने संस्कारों के आधार पर स्वीकार करता है वही श्रेष्ठ और टिकाऊ होता है।अतः विद्यार्थी से हम अनुशासन का पाठ सीख सकते हैं।यदि नदी के दोनों किनारे ना हो तो उसकी जल राशि इधर-उधर बिखर जाएगी।नदी के पानी से मिलने वाले लाभों से तो वंचित रहेंगे साथ ही किनारो के टूटने पर कहीं बाढ़ के दृश्य दिखेंगे तो कहीं सूखा नजर आएगा।अनुशासन के बिना हमारा भी जीवन निस्तेज व निष्प्राण हो जाएगा,जीवन लक्ष्य की प्राप्ति असंभव हो जाएगी।
  • (3.)सत्पुरुषों से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।सत्पुरुष अच्छे-बुरे,सुख-दुख,पाप-पुण्य आदि के द्वैतभाव से ऊपर उठ चुके होते हैं।सत्पुरुष विकार रहित होते हैं।अतः उन्हें किसी चीज की इच्छा नहीं होती।अनासक्त होकर निष्काम करते हैं,मानव मात्र की भलाई का कार्य करते हैं।क्षमा भाव धारण करते हैं।उनका चरित्र पवित्र,शुद्ध,निष्कलंक और अनुकरणीय होता है।सबके प्रति समभाव रखते हैं।यदि हम उनके आदर्श का पालन करने की कोशिश करें तो हम अनेक गुणों को धारण कर सकते हैं।अनेक दुखों और कष्टों से छुटकारा मिल सकता है और अनेक भयों से त्राण दिलाता है।
  • (4.)खिलाड़ी से हम लक्ष्य का निर्धारण,आत्मविश्वास,दिमाग पर काबू,टीम भावना,प्रेरित रखना,कमी को ताकत बनाना और समर्पण की भावना का पाठ सीख सकते हैं।बिना लक्ष्य तय किए मंजिल नहीं मिल सकती।हर खिलाड़ी लक्ष्य के अनुसार तैयारी करता है।वह रोजाना अपने से सवाल करता है कि लक्ष्य की तरफ बढ़ रहा हूं या नहीं,लक्ष्य के कितना निकट पहुंच गया।देश का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ी पहले घरेलू स्तर की रणनीति पर काम करता है।एक बड़े लक्ष्य के लिए छोटे-छोटे लक्ष्यों पर काम करना जरूरी है।
  • आत्मविश्वासःखेल के दौरान विरोधी पक्ष के समर्थकों के दबाव जैसी कई बाधाएँ आती हैं,लेकिन आत्मविश्वास के बल पर खिलाड़ी जीतता है।हालांकि सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में कठिन परिश्रम और पूरी ताकत भी लगानी पड़ती है।
    कई बार विरोधी खिलाड़ी का कौशल,क्षमता और तकनीक कई गुना बेहतर होती है।फिर भी जीत उसी की होती है जिसका दिमाग पर नियंत्रण है।खेल में शरीर की सीमाओं की परीक्षा तो होती ही है,पर जो चीज परिणाम तय करती है वह खिलाड़ी का दिमाग पर नियंत्रण।
  • प्रशंसक जहां किसी खिलाड़ी पर जीतने के लिए दबाव बनाते हैं,वहीं उसका मनोबल भी बढ़ाते हैं।इसी तरह श्रेष्ठ खिलाड़ी और कीर्तिमान भी खिलाड़ियों को प्रेरणा देते हैं।मुश्किल परिस्थितियों से निकलकर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय खेल जगत पर छा जाने वाली हस्तियों की कहानियाँ हमेशा इनके जीत के जुनून को बनाए रखती है।इस प्रकार अपने आप को प्रेरित करने का मंत्र सीख सकते हैं।
  • एक खिलाड़ी कठोर दिनचर्या के साथ लंबे व मेहनत वाले अभ्यास सत्र से गुजरता है।कई अभ्यास मैच प्रदर्शन को निखारते हैं।इस दौरान अपनी कमजोरी और ताकत को समझता है।दूसरों से सीखता है और फीडबैक के आधार पर सुधार करता है।उसे चोटों और परिस्थितिजन्य कमजोरियों से भी लड़ना पड़ता है।पर वह हार कभी नहीं मानता।इस प्रकार अपनी कमजोरी को ताकत में तब्दील किया जा सकता है।
  • खेल के प्रति समर्पण और टीम भावना के आधार पर ही जीत हासिल होती है।इसके लिए अपने अहंकार का त्याग करना पड़ता है।कई लोग उनके प्रदर्शन पर टीका-टिप्पणी भी करते हैं परंतु वह हमेशा समर्पण की भावना और टीम को एकजुट रखने के मंत्र के आधार पर खेलता है।
  • (5.)नारी से समर्पण,सहिष्णुता,दूसरों का ख्याल रखना,अहंकार रहित होकर कार्य करना,हमेशा काम में जुटे रहना,त्याग,प्रेम आदि गुणों को सीखा जा सकता है।अपनी कोई कामना नहीं रखती,हमेशा दूसरों की कामनाओं को पूरा करने में लगी रहती है।आगंतुकों का सम्मान करना आदि गुणों के कारण परिवार में संघर्ष और टकराव की स्थिति पैदा नहीं होती है।परिवार को एकजुट रखने का प्रयास करती है।यह नारी ही है जिसके कारण घर स्वर्ग बना रहता है।एक ही लक्ष्य निर्धारित करके उसे प्राप्त करने में नारी जुटी रहती है।
  • (6.)सैनिक देश का प्रहरी है।सीमा पर घर-परिवार छोड़कर हमेशा सजग रहता है।देश के नागरिक निश्चिंत होकर विश्राम करते हैं।अतः हम सैनिक से हमेशा सजग,सतर्क और सावधान रहने का पाठ सीख सकते हैं।सैनिक की थोड़ी सी भी गफलत बहुत बड़े संकट का कारण बन सकती है।राष्ट्र संकट में पड़ सकता है।हमेशा मुस्तैद और चौकन्ना रहता है।रात में भी सुरक्षा करता है।अपनी जान हथेली पर रखकर साहस के साथ डटा रहता है।
  • (7.)किसान सर्दी,गर्मी और वर्षा ऋतु में खेत पर डटा रहता है।लगातार परिश्रम करता रहता है।प्रकृति के कोप का भी सामना करना पड़ता है।कभी फसल चौपट भी हो जाती है,परिश्रम का फल नहीं मिलता है।पुनः उसी जोश के साथ खेती में जुट जाता है।अतः हमें भी सफलता व असफलता में घबराना नहीं चाहिए बल्कि अपने मिशन में जुटे रहना चाहिए।बिना हतोत्साहित हुए,उसी उत्साहित के साथ जुट जाना चाहिए।यदि हम हिम्मत हार जाते हैं,उत्साह नहीं रहता,निराश हो जाते हैं तो सफलता संदिग्ध हो जाती है।पुनः प्रयास करने की हिम्मत नहीं रहती है।सर्दी,गर्मी,वर्षा जैसी विपरीत परिस्थितियों में अपने मिशन में जुटे रहना चाहिए।हमारे हाथ में केवल कठिन परिश्रम करना,कर्म करना ही होता है।फल हमारे हाथ में नहीं होता है,अतः फल के बारे में चिंता-फिक्र नहीं करनी चाहिए।
  • (8.)संन्यासी और तपस्वी घर-बार,सब कुछ त्याग कर माया-मोह से मुक्त हो जाता है।ब्रह्मचर्य का पालन करता है और वैराग्य धारण कर लेता है।विद्या ग्रहण करने वाले को भी ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और सुख-दुख से समभाव रखना चाहिए।बुरे कर्मों से विरक्ति अर्थात् वैराग्य धारण करना चाहिए।संन्यासी और तपस्वी से त्याग वृत्ति भी सीखनी चाहिए।विद्या ग्रहण करते हुए हमें सुखों,सुख-सुविधाओं का त्याग करना होता है और नियम-संयम का पालन करना होता है।अतः इन सभी गुणों का पाठ हमें संन्यासी और तपस्वी से सीखना चाहिए।ऐसा सोचना गलत है कि यह उम्र का प्रारंभिक काल है अतः जितने ऐशोआराम का मजा लिया जाए,उतना ही बढ़िया है।
  • यदि विद्या ग्रहण करने में सुख-सुविधाओं का भोग आवश्यक भी हो तो उन भोगों को त्याग की भावना के साथ भोगना चाहिए,उसमें लिप्त होकर नहीं,अलिप्त होकर भोग करना चाहिए ताकि अति न कर सको।चाहे स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग लगाने का सवाल हो या विषय को भोगने की बात हो अर्थात् जहां भोग को भोगने का सवाल हो उसमें अति करना अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारना सिद्ध होता है।
  • संन्यास का अर्थ कर्मों और कर्त्तव्यों का त्याग करना नहीं है बल्कि समस्त कर्मों को करते हुए अपने आप को कर्त्ता न समझना और फल में आसक्ति न रखना ही सच्चा संन्यास होता है।मोह-माया में न फंसना संन्यास है। संन्यास का अर्थ बिना हाथ-पैर चलाए,चुपचाप बैठे रहना नहीं है।निष्क्रियता,अकर्मण्यता संन्यास नहीं है।
  • (9.)शिक्षक से हम अनेक बातों की शिक्षा ले सकते हैं।विद्यार्थियों को सिखाने के लिए उसे लगातार सीखना पड़ता है।शिक्षक से समर्पण,सच्चरित्रता,सीखने की वृत्ति,विद्या ग्रहण करने की तीव्र उत्कण्ठा,धैर्य आदि अनेक गुणों की सीख ले सकते हैं।माता-पिता संतान के शरीर को जन्म देते हैं,परंतु शिक्षक ही बालक को ज्ञान से परिपूर्ण करके सच्चे अर्थों में मानव बनाता है।शिक्षक बालक को दूसरा जन्म देता है।सच्चा शिक्षक बालक को ऐसे संस्कारों से युक्त करता है जिससे एक विद्यार्थी अपने जीवन लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर पाता है।
  • विद्यार्थी के जीवन पर माता-पिता के बाद शिक्षक के चरित्र का ही सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।शिक्षक का नाम लेते ही सिर श्रद्धा से झुक जाता है।हमारा देश जगतगुरु रहा है तो इसके पीछे शिक्षकों का त्याग और तप ही रहा है।शिक्षक अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला व्यक्तित्व होता है,शिक्षक विद्यार्थी के अज्ञान को दूर करता है।अध्यापक का व्यक्तित्व प्रेरणाप्रद होता है।
  • शिक्षक से हम धैर्य,समर्पण,परिश्रम,उत्साह,दूसरों (विद्यार्थियों) के हित की सोच रखना,प्रत्युत्पन्नमति,विवेक,संकल्पशक्ति,संवेदना,अपने आपको अपडेट व अपग्रेड करने का गुण,बार-बार अभ्यास करना,तत्परता,अपने कार्य (अध्यापन) के प्रति निष्ठा,सतत प्रयत्नशील बने रहना,विकट स्थिति में घबराना नहीं,ईमानदारी,सच्चाई,सरलता,विनम्रता,व्यावहारिक कुशलता,प्रेम,सद्भाव,सबको साथ लेकर चलना,अहंकार रहित होना,एकाग्रता,अपने लक्ष्य (अध्यापन) पर नजर आदि अनेक गुणों को सीख सकते हैं और अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।शिक्षक के चिन्तन,चरित्र और व्यवहार से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं और अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।शिक्षक ऐसा व्यक्तित्व होता है जो विद्यार्थी को उसके लक्ष्य तक पहुँचा देता है।उसका कायाकल्प कर देता है।शिक्षक का व्यक्तित्व ही विद्यार्थी को प्रेरणा प्रदान करता है और वह भी उस जैसे चरित्र के व्यक्तित्व का बनना चाहता है।शिक्षक तो गुणों की खान है यदि हम उनसे सीखना चाहें तो सहज ही हमारे सामने उसका व्यक्तित्व घूमता रहता है,हमारे सामने मौजूद रहता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए सीखने के 4 अद्भुत तरीके (4 Amazing Ways to Learn for Students),जीवन में सीखने के 4 अद्भुत तरीके (4 Amazing Ways to Learn in Life) के बारे में बताया गया है।

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3.सीखना और गुनना में क्या फर्क है? (हास्य-व्यंग्य) (What is Difference Between Learning and Pondering?) (Humour-Satire):

  • प्रश्न:सीखना व गुनना में क्या फर्क है?
  • उत्तर:सीखने से विद्यार्थियों को नींद आने लगती है और डेस्क पर लुढ़कने लगते हैं,जबकि गुनने में विद्यार्थियों को दिन में ही तारे नजर आने लगते हैं।

4.छात्र-छात्राओं के लिए सीखने के 4 अद्भुत तरीके (Frequently Asked Questions Related to 4 Amazing Ways to Learn for Students),जीवन में सीखने के 4 अद्भुत तरीके (4 Amazing Ways to Learn in Life) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.शत्रु से क्या सीख सकते हैं? (What can we learn from the enemy?)

उत्तर:शत्रु को मात देने के लिए आप अपने आपको कड़े संघर्ष के लिए तैयार करते हैं।अतः प्रतिद्वन्द्वी से संघर्ष करने की रणनीति सीख सकते हैं।

प्रश्न:2.माता-पिता से क्या सीख सकते हैं? (What can you learn from parents?):

उत्तर:माता-पिता ही हमें बोलना,चलना,व्यवहार,शिष्टाचार सीखाते हैं।अतः माता-पिता से व्यवहार करने की कला,शिष्टाचार,दूसरों (बच्चों के लिए) की हर ख्वाहिश पूरी करने की तरकीब,हमेशा दूसरों (बच्चों) का ख्याल रखना,समर्पण,त्याग आदि अनेक गुणों को सीख सकते हैं।

प्रश्न:3.भक्त से क्या सीख सकते हैं? (What can you learn from a devotee?):

उत्तर:भक्त मन को एकाग्र करके सबकुछ अपने प्रियतम (भगवान) को सौंप देता है।भगवान जिस हाल में रखे उसी में खुश रहता है।अतः भक्त से एकाग्रता,समर्पण,हर हाल में खुश रहना,सब कुछ न्यौछावर कर देने के गुणों को सीख सकते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए सीखने के 4 अद्भुत तरीके (4 Amazing Ways to Learn for Students),जीवन में सीखने के 4 अद्भुत तरीके (4 Amazing Ways to Learn in Life) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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