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Why Do Children Become Naughty?

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1.बच्चे शरारती क्यों बनते हैं? (Why Do Children Become Naughty?),बच्चों को शरारतें करने से कैसे रोकें? (How to Stop Children From Playing Pranks?):

  • बच्चे शरारती क्यों बनते हैं? (Why Do Children Become Naughty?) क्योंकि आज की पीढ़ी का भविष्य आज के जमाने के रंग-ढंग से प्रभावित होता है यह बात कुछ हद तक सही है।आज के युवा उपभोक्ता संस्कृति और मौज मजा करने की विचारधारा से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं जिससे वे मानवीय गुणों,संस्कृति के मूल तत्वों और हमारी उत्तम सभ्यता से दूर हटते जा रहे हैं।इस नशे में वे किस दिशा में बढ़ रहे हैं,इसका उन्हें खुद ही होश नहीं है।
  • उधर कई माता-पिता,अभिभावक सामाजिक कार्यों,क्लबों और अनेक संस्थाओं से जुड़े रहकर अपने शौक पूरे करने में व्यस्त रहते हैं।वे समाज और देश का तथाकथित कल्याण करने में व्यस्त रहते हैं और उनके बच्चों का दूसरे ढंग का कल्याण हो जाता है।
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2.बच्चों के पालन पोषण में खराबी (Defects in the Upbringing of Children):

  • माता-पिता व अभिभावक के रूप में बच्चों को भावनात्मक सहारा देना और उन्हें स्वस्थ माहौल में बड़ा होने की सुविधाएं और अवसर देना हमारे हाथ में है।अपने तनाव का दंश बच्चों को देकर असमय उनसे उनका बचपन छीन लेना और उन्हें एक दहशत के माहौल में बड़ा होने देना एक अपराध से कम नहीं है।
  • कुछ वर्षों पहले अमेरिका में किशोर बच्चे ने अन्धाधुन्ध फायरिंग करके कई बच्चों को मार दिया था।ब्रिटेन के कई शहरों में दंगे भड़के।इसके राजनीतिक और वर्णविभेद के कारणों और दंगों के बीच भारतीय चैनलों पर कई जगह यह कैप्शन बार-बार दिखाया कि बच्चों के लालन-पालन में खराबी के कारण किशोर,युवाओं की दंगों को भड़काने में,बड़े-बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर की लूट और फसाद में भागीदारी देखी गई।
  • बच्चों के पालन-पोषण में खराबी,बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव,घर में सही संस्कारों का न मिलना और उम्र का अपेक्षित भावनात्मक संरक्षण न मिलने के कारण उनका दिशाहीन होना।
  • पिछले दो-तीन दशकों से पश्चिमी देशों में बच्चों में बढ़ती हिंसा,कभी स्कूल में अपनी कक्षा के सहपाठियों को गोलियों से भून डालना,कभी शिक्षकों के साथ मारपीट-झगड़ा व गाली गलौज करना और कभी निराशा के गर्त में डूबे बच्चे का शून्य में ताकना और किसी सवाल का जवाब न देना,किशोर तथा युवाओं का अध्ययन काल में ही बाप बन जाना इस तरह की घटनाओं की लंबी फेहरिस्त आधुनिक समाज की इतनी विकराल समस्या रही है कि स्कूलों में एकाधिक काउंसलर तो होते ही हैं,कई बार शिक्षकों और प्रधानाचार्य को भी काउंसलर की भूमिका निभानी पड़ती है।
  • यह एक ऐसी समस्या है,जिसका हल तमाम कोशिशें के बावजूद अब तक ढूंढा नहीं जा सका और इसमें दिन-पर-दिन बढ़ोतरी होती जा रही है।अश्वेत की गोली मारकर हत्या के बाद फैले हुए दंगे और बच्चों का लूटपाट और हिंसा में शामिल होना बच्चों के पालन-पोषण में माता-पिता व अभिभावक की लापरवाही दर्शाता है।
  • मां-बाप का बच्चों को पर्याप्त समय न दे पाने के साथ-साथ इंटरनेट,ब्लैकबेरी और तमाम आधुनिक तकनीकी उपकरणों की वजह से बच्चे समय से पहले ही वयस्कों की दुनिया से परिचित हो जाते हैं और शरारतें,लड़ाई-झगड़ा,दंगा-फसाद,लूटपाट व दंगों में संलग्न हो जाते हैं।
  • जो माता-पिता दोनों ही जॉब करते हैं और घर-बाहर की दोहरी जिम्मेदारी के कारण वे बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं।जो गृहणियां है,वे भी अगर उच्च वर्ग की है तो मॉल कल्चर और किटी पार्टी की आदी हैं,अगर मध्यम वर्ग की हैं तो उनकी शिकायत है कि टीनएज में जाते ही बच्चे बात मानना बंद कर देते हैं और उनकी अवज्ञा करते हैं।
  • दरअसल जब तक भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली थी तब चाचा,ताऊ,बुआ,भाभी,भाई साहब आदि सबके बच्चे एक स्कूल बना लेते थे।उन्हें बाहर के बच्चों की जरूरत ही नहीं होती थी।एक जगह खाना बनता था और बच्चों के साथ मिल-बैठकर हर रोज खाना एक उत्सव होता था।रात को दादा-दादी या माता-पिता किस्से-कहानियों के द्वारा उनमें संस्कारों का बीजारोपण करते थे।इस प्रकार संयुक्त परिवार की अवधारणा में बच्चे स्वस्थ,सुसंस्कृत माहौल में बड़े होते थे।
  • आधुनिक युग में वैसे संयुक्त परिवारों की परंपरा प्रायः लुप्त हो गई है साथ ही आज घर की आर्थिक जिम्मेदारी में औरते भी सहभागी होती हैं और संयुक्त परिवारों की अवधारणा ही अतीत का स्वप्न बनकर रह गई हैं।यदि स्त्रियां घर में गृहिणी बनकर रहना बेहतर समझती हैं तो बच्चों को अपनी देखरेख में बड़ा कर सकती हैं।बाहर नौकरी करने के अगर फायदे हैं तो तनाव व कुंठाएं भी कम नहीं,जो कार्यालय में असहयोगी माहौल और प्रतिस्पर्धा रखने वाले सहयोगियों के कारण पैदा होती हैं।
  • आज पूरे विश्व में बच्चों को जो माहौल दिया जा रहा है,यही कहना पड़ेगा कि बच्चे माता-पिता के प्रेम की नहीं,हवस की निशानी है,जो हवस की समाप्ति पर उनकी जिम्मेदारी से हाथ धो लेते हैं।बच्चे अपनी मर्जी के साथ-साथ माता-पिता की मर्जी से इस दुनिया में आते हैं।

3.बच्चों को शरारतें करने से रोकने के उपाय (Ways to Stop Children from Playing Pranks):

  • आपने अक्सर माता-पिता को यह कहते सुना होगा कि बच्चों की शरारतें,शैतानियों व लड़ाई-झगड़ों की वजह से घर में शांति से रहना मुश्किल हो गया है,कहना मानता ही नहीं है।मैं तो बहुत परेशान हो गई हूं,वगैरह-वगैरह।पर प्रश्न यह है कि यह समस्या उत्पन्न कैसे हुई? उनकी शरारतों,शैतानी व लड़ाई-झगड़ा करने के जिम्मेदार कौन हैं?
  • माता-पिता अपने बच्चों पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते हैं,लापरवाह रहते हैं अथवा स्वयं किन्हीं पार्टियों या जॉब में व्यस्त रहते हैं।ऐसी स्थिति में बच्चे दिन-भर घर में शरारतें करते रहते हैं,कोई रोकने-टोकनेवाला नहीं है।
  • कई बार बच्चे रसोई गैस को खुली छोड़ देते हैं तो बड़ी दुर्घटना घट जाती है या बड़ी दुर्घटना होने से बच जाती है।ऐसे में माता-पिता उन्हें समझाने के उन्हें शह देते हैं।बच्चे चाहे कितनी बड़ी शरारतें,शैतानी करें,उसे कोई कुछ भी न कहे तो निडर होकर ओर अधिक शरारतें,शैतानियां,लड़ाई-झगड़ा करेगा।क्योंकि वह इस बात को अच्छी तरह समझ जाएगा कि हमें कभी डांट नहीं पड़ेगी।
  • यदि माता-पिता समझाते हैं या डांट-डपट करते हैं तो दादा-दादी पक्ष ले लेते हैं।परंतु वे शायद भूल जाते हैं कि बच्चों की शरारतें,शैतानियां भविष्य में किसी बड़ी दुर्घटना के रूप में परिवर्तित हो सकती है,जिसका परिणाम बहुत ही कष्टदायी होगा।
  • कई माता-पिता दोनों ही जॉब करते हैं वे बच्चों को नौकरों या नौकरानी के भरोसे छोड़ जाते हैं और शाम को जब घर लौटते हैं तो थके होने के कारण बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं जिससे बच्चा अपनी मर्जी से प्रत्येक काम करने लगता है।वह जिस बात की जिद करता है,माता-पिता उसे तुरंत पूरा कर देते हैं।उनके पास इतना समय नहीं होता है कि इस बात पर ध्यान दें कि जिस जिद को वह पूरा कर रहे हैं,वह उनके और उनके बच्चों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
  • आज न जाने कितने बच्चे अपराध की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं,उसका कारण पूर्व में बरती गई अभिभावकों की लापरवाही है।ध्यान न देने के कारण बच्चे खेल-खेल में बड़ा अपराध भी कर सकते हैं।घर का इकलौता बच्चा होने पर भी ये संभावनाएं उभरती हैं या ज्यादा बच्चे होने पर सभी बच्चों पर सही ढंग से ध्यान न दे पाना भी इसका एक कारण है।लाड-प्यार बच्चों को बिगाड़ देता है।
  • बच्चों की शरारतें,शैतानियां सीमित दायरे में हों,तभी तक ठीक है किंतु शैतानियां अपराधी प्रवृत्ति में नहीं बदलनी चाहिए।
  • टीवी व फिल्मों का प्रभाव भी बच्चों पर पड़ता है।बच्चे उस पर जो देखते हैं,उसे सीखने की कोशिश करते हैं।अतः बच्चों को ऐसे ही कार्यक्रम देखने दें जो शिक्षाप्रद हो अथवा जिससे मनोरंजन के साथ उन्हें रोचक जानकारी भी मिले।
  • अगर बच्चों का सुनहरा भविष्य देखना चाहते हैं,तो बच्चों का होमवर्क उनके द्वारा ही करवाएं और उनकी रिपोर्ट डायरी नित्य देखें।बच्चों को रोज होमवर्क करने की आदत डलवाएं।
  • महिलाओं को चाहिए कि वे घर का माहौल ठीक रखें।यदि घर का वातावरण ठीक नहीं होगा तो बच्चों पर उलटा असर पड़ेगा।बच्चों के सामने ऐसी बात न करें,जिससे बच्चे पर गलत प्रभाव पड़े।उनके सामने हमेशा अच्छे कार्यों को प्रेरित करने वाली बातें करें।यदि इन बातों को ध्यान में रखेंगी तो आपका बच्चा भी गर्व का पात्र होगा।
  • बच्चे जन्मजात शैतान नहीं होते हैं।घर के माहौल,मित्रों के संग तथा पास-पड़ोस के वातावरण,टीवी,वीडियो आदि के कारण भी शैतान बन जाते हैं।माता-पिता या तो बच्चे की शरारतों व शैतानी पर ध्यान नहीं देते हैं या फिर यह मान लेते हैं कि बच्चा है,जब बड़ा होगा तो सुधर जाएगा।ऐसे में बच्चे की दिन-प्रतिदिन शरारतें व शैतानी बढ़ती जाएगी और वह निष्फिक्र होकर शैतानी में लीन रहेगा।
  • बच्चों की शैतानियों पर ध्यान दें।बच्चों को अगर थोड़ा भी मौका मिल जाए तो वह घर की किसी चीज को व्यवस्थित नहीं रहने देंगे।कुछ-न-कुछ ऐसा करेंगे,जिसके कारण कभी-कभी काफी नुकसान उठाना पड़ जाता है।
  • बच्चे तो नादान होते हैं।जब भी वह शैतानी करें तो उन्हें रोकें।प्यार से समझाएं कि ऐसा न करो,इससे यह नुकसान हो जाएगा।उसे घर के पूरे सदस्यों का भरपूर सहयोग चाहिए,तभी वह शैतानी नहीं करेगा।
  • कभी-कभी बच्चे जब अन्य बच्चों के साथ मिलते हैं,तो खूब शैतानियां करते हैं।शैतानी-शैतानी में वह मारपीट भी अन्य बच्चों के साथ कर लेते हैं।कभी-कभी बच्चों के माता-पिता भी आपस में लड़ाई-झगड़ा कर लेते हैं परन्तु इन बच्चों की शैतानियों को रोकना भी आवश्यक है।
  • अक्सर सुनने में आता है कि बच्चे ने शैतानी में दूसरे बच्चे का बैग फाड़ दिया या उसे धक्का दे दिया।इस प्रकार की हरकतें करते हुए बच्चे को पकड़े,उसे प्यार से या डांटकर समझाएं।बच्चा अगर शैतानी करे तो उस पर नजर रखें,उसे प्यार से समझाएं,उसे किसी अन्य बातों में उलझा दें।वह शैतानी करना भूल जाएगा।धीरे-धीरे वह अच्छा बन जाएगा।

4.बच्चे झगड़े तो क्या करें? (What Do Children Do if They Fight?):

  • बच्चे बहुत ही भोले और निष्कपट होते हैं।उनके जल्दी ढेरों दोस्त बन जाते हैं।दोस्त जितनी तेजी से बनते हैं,लड़ाई भी बड़ी जल्दी से हो जाती है।बच्चे कभी-कभी नादानी में ऐसी हरकत कर जाते हैं जिसके कारण माता-पिता को भी शर्मिंदा होना पड़ता है।अक्सर ऐसा होता है,पड़ोस के बच्चों के साथ घर के बच्चे लड़ गए।बात-बात में हाथापाई हो गई।पर तुरंत दोनों बच्चों में दोस्ती हो गई।बच्चों की लड़ाई कब और किस बात पर हो जाए,कुछ पता नहीं रहता।परंतु लड़ाई में एक-दूसरे के माता-पिता आपस में झगड़ जाते हैं।
  • फिर माता-पिता स्वयं दुखी होते हैं कि बच्चों के चक्कर में पड़कर हमने अपने संबंधों को बिगाड़ लिया।बच्चों की लड़ाई कोई मायने नहीं रखती है।बच्चे तो पलभर में झगड़ लेते हैं और पलभर में मित्रता भी कर लेते हैं।बच्चों की लड़ाई में एक बात जरूर ध्यान रखनी चाहिए कि घर के किसी भी सदस्य को बीच में नहीं पड़ना चाहिए।इससे संबंधों में दरारें पड़ जाती है।बच्चे तो बच्चे होते हैं।
  • बातों-ही-बातों में अगर उनकी पसंद का कोई कार्य नहीं हुआ तो अपने साथी अथवा मित्र या फिर भाई-बहन को मार सकते हैं।
  • बच्चों की लड़ाई की शुरुआत कुछ ऐसी होती है: तुमने मेरी पुस्तक क्यों ली,तुमने मेरी पुस्तक फाड़ दी,तुमने मुझे धक्का क्यों दिया,तुमने मुझे गाली क्यों दी आदि।जरा-जरा सी बातों पर या फिर यूं कहें की छोटी-छोटी बातों पर बच्चों की लड़ाई होना स्वाभाविक सी बात है।बच्चों को जैसा वातावरण उपलब्ध होगा,जैसा सिखाएंगे उसके वैसे ही संस्कार जाग्रत हो जातें हैं।विशेषकर जब बच्चे अपने दोस्तों या फिर भाई-बहन से झगड़े तो बच्चों को इस बात के लिए कभी प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।उन्हें यही समझाएं की लड़ाई-झगड़ा करना अच्छी बात नहीं होती,तो बच्चे दुबारा जल्दी किसी से नहीं झगड़ेंगे।
  • बच्चों के साथ स्वयं को लड़ाई में शामिल मत करिए,नहीं तो बच्चे का मनोबल बढ़ेगा और वह माता-पिता का सहारा लेकर ओर लड़ाई-झगड़ा करेगा।इससे यह होगा की माता-पिता भी अपने बच्चों को लेकर दूसरे व्यक्ति से बिना बात के झगड़ा कर डालेंगे और वह छोटा-सा झगड़ा भयंकर दुश्मनी का रूप धारण कर लेगा,जो कि उचित नहीं है।बच्चों के ऊपर भी इसका गलत प्रभाव पड़ेगा।
  • बच्चों को आपस में झगड़ने दीजिए,थोड़ी देर बाद वे पुन: एक-दूसरे के मित्र बन जाएंगे।लेकिन बच्चों को शुरू से ही समझाना चाहिए कि ‘बेटा!लड़ाई-झगड़ा करना बुरी बात है।न तो किसी को नुकसान पहुंचाओ और न किसी को दुःख दो।तब बच्चे की समझ में आ जाएगा।फिर कभी लड़ेंगे नहीं।

5.शरारती बच्चे का दृष्टांत (The Parable of a Naughty Child):

  • एक विद्यार्थी शरारत करता तो माँ-बाप लाड़-प्यार के कारण उसको रोकते-टोकते नहीं थे।धीरे-धीरे उसका संग स्कूल में भी शरारती व शैतानी बच्चों के साथ हो गया।उन शरारती बच्चों का गिरोह बन गया।वे सीधे-सादे व सरल बच्चों को तंग करते और उन्हें पढ़ने नहीं देते थे।एक बार वह कोचिंग इंस्टिट्यूट में कोचिंग करने आया।वहां भी बच्चों को तंग करने लगा।
  • वे बच्चे शिक्षक को शिकायत करते।शिक्षक उस शरारती बच्चे को बहुत समझाते पर वह नहीं मानता था।दरअसल उसके मां-बाप उसे अत्यधिक लाड़-प्यार करते थे।वे बच्चा समझकर उसकी शरारतों और शैतानियों को नजरअंदाज कर देते थे।कोचिंग के छात्रों को वह ज्यादा ही तंग करने लगा तथा शिक्षक के मना करने पर भी उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो सारे बच्चों ने एक दिन सहमति कर ली कि उसे सबक सिखाना है।
  • ज्योंही दूसरे दिन वह शरारती लड़का आया तथा दूसरे बच्चों से लड़ाई-झगड़ा करने लगा तो सारे बच्चों ने मिलकर उसको पकड़ा।पहले तो खूब पिटाई की और फिर घसीट-घसीटकर उसका बुरा हाल कर दिया।वह रोने लगा तथा गिड़गिड़ाया कि वह कभी लड़ाई-झगड़ा नहीं करेगा।तब बच्चों ने उसे छोड़ दिया।इस शरारती लड़के ने शैतानी करना नहीं छोड़ा परंतु कोचिंग सेंटर छोड़ दिया।
  • धीरे-धीरे वह छोटे-छोटे अपराध करता-करता बड़े अपराध करने लगा।वह हिस्ट्रीशीटर बन गया।कभी वह दूसरों को पीट देता तथा कभी उसका दायां हाथ मिल जाता तो पिट लेता।कालान्तर में उसके ही ग्रुप के अपराधी लड़के ने उसको मारने की सुपारी ले ली और एक दिन चाकुओं से गोदकर उसकी हत्या करके सड़क के किनारे पटक दिया।इस प्रकार उसका दुःखद अन्त हुआ।
  • उसके माँ-बाप पढ़े लिखे थे,अच्छा जॉब करते थे।यदि शुरू से ही उसकी गलत आदतों,शरारतों व शैतानियों पर अंकुश लगाया होता तो वह सुधर जाता और उसका उद्धार हो जाता।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में बच्चे शरारती क्यों बनते हैं? (Why Do Children Become Naughty?),बच्चों को शरारतें करने से कैसे रोकें? (How to Stop Children From Playing Pranks?) के बारे में बताया गया है।

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6.अंदर का गणितज्ञ (हास्य-व्यंग्य) (The Inner Mathematician) (Humour-Satire):

  • पहला मित्र:देख तू मुझसे पंगा मत ले,वरना मेरे अंदर का गणितज्ञ जाग जाएगा।
  • दूसरा मित्र:कोई बात नहीं मेरे पास गणित की पुस्तक है,मैं तुझे गणित के सवालों को हल करवा लूंगा।

7.बच्चे शरारती क्यों बनते हैं? (Frequently Asked Questions Related to Why Do Children Become Naughty?),बच्चों को शरारतें करने से कैसे रोकें? (How to Stop Children From Playing Pranks?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.व्यस्तता के क्षणों में बच्चों के साथ कैसा बर्ताव करें? (How to Treat Children in Busy Moments?):

उत्तर:बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं।चाहे वे बोलकर अपनी भावनाएं व्यक्त न कर सकें,लेकिन वे आपके हर हाव-भाव को पढ़ते हैं और समझते हैं।पारिवारिक और अन्य जिम्मेदारियों के कारण हो सकता है आप व्यस्त हों या थोड़ा तनाव में हों और बच्चों से दूर रहें लेकिन यही वह समय है,जब आपको अपना तनाव भुलाकर बच्चों को दुलार करना चाहिए,उसे गले लगाना,चूमना और उसे देखकर मुस्कुराना चाहिए।ऐसा करने से बच्चे से आपका स्नेह ओर प्रगाढ़ होगा,वहीं आपका सारा तनाव भी पलभर में उड़न-छू हो जाएगा।

प्रश्न:2.बच्चे कोई सही या गलत काम करें तो क्या करें? (What to Do If Your Child Does Something Right or Wrong?):

उत्तर:कभी-कभी बच्चे किसी समस्या से घबरा जाते हैं।ऐसे में उनका साथ दें।इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।चाहे बच्चे कुछ अच्छा करें अथवा बुरा,उन्हें यह लगना चाहिए कि आप उनके साथ हैं।अच्छा करने पर उन्हें प्रोत्साहित करें और यदि बच्चे ने कुछ बुरा कर दिया हो तो उसे डांटने के बजाय,उनकी गलती के दूरगामी परिणामों को समझाएं।इससे बच्चों की समझ भी बढ़ेगी और वे आपसे अपनी हर बात शेयर करेंगे।हो सके तो रोजाना सुबह अथवा शाम को बच्चों के साथ टहलने निकलें।इस दौरान उन्हें प्रेरक प्रसंग सुनाएं,जिससे वे आदर्श बातें सीखें।

प्रश्न:3.बच्चों के साथ किस तरह का बर्ताव न करें? (How Not to Behave with Children?):

उत्तर:जरूरत से ज्यादा लाड़-प्यार न करें।गिफ्ट को लालच का जरिया न बनाएं।बच्चों की चिंता एक हद तक ही करें,ज्यादा नहीं।बच्चे की हर बात को मना न करें।उसकी गलतियों पर पर्दा डालने की बजाय,सुधारने की कोशिश करें।भावनात्मक ब्लैकमेल न करें।उसके दोस्तों व रिश्तेदारों से उसकी तुलना न करें।सजा दें,पर ऐसी नहीं जिससे उसे भावनात्मक रूप से चोट पहुंचे।अपनी हर बात मनवाने का दबाव उस पर न डालें।कोई बात जानने के लिए उससे जबरदस्ती न करें।बच्चे की अवहेलाना न करें,ना ही अकेला छोड़ें।उसके कार्यों की तारीफ करें,न की गलती निकालें।अपशब्द का प्रयोग न करें।अगर बच्चा किसी चीज की जिद करता है,तो उसे तुरंत न मानें बल्कि प्यार से उसकी जिद का कारण पूछे।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा बच्चे शरारती क्यों बनते हैं? (Why Do Children Become Naughty?),बच्चों को शरारतें करने से कैसे रोकें? (How to Stop Children From Playing Pranks?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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