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How Do Students Develop Art of Living?

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1.छात्र-छात्राएँ जीवन जीने की कला कैसे विकसित करें? (How Do Students Develop Art of Living?),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए जीवन जीने की कला को विकसित करने की 3 टिप्स (3 Tips to Develop Art of Living for Mathematics Students):

  • छात्र-छात्राएँ जीवन जीने की कला कैसे विकसित करें? (How Do Students Develop Art of Living?) क्योंकि आधुनिक युग में शिक्षा संस्थानों में छात्र-छात्राओं को जीवन जीने की कला विकसित करने की शिक्षा नहीं दी जाती है।व्यावहारिक जीवन,आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा के बिना जीवन जीने की कला को विकसित नहीं किया जा सकता है।आधुनिक शिक्षा पद्धति में अर्थशास्त्र,इतिहास,भूगोल,विज्ञान,गणित जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं।इन विषयों से जाॅब तो प्राप्त किया जा सकता है परंतु छात्र-छात्रा में जीवन जीने की कला का विकास नहीं होता है।आज छात्र-छात्राओं को अंतरराष्ट्रीय घटनाओं,खेलकूद,वैज्ञानिक,इतिहास,राजनीति,अर्थनीति का ज्ञान और जानकारी तो हो जाती है परंतु इनकी जानकारी प्राप्त करके आत्मिक संतुष्टि नहीं मिलती है।जाॅब प्राप्त करके छात्र-छात्राएँ भौतिक सुख-सुविधाओं को जुटाने में लग जाता है।इन सुख-सुविधाओं को जुटाने के बाद भी हम अशान्त,उद्विग्न,खिन्न तथा असंतुष्ट रहते हैं।
  • अधिकांश छात्र-छात्राएं समझते हैं कि अच्छा जाॅब मिलने पर तथा वेतन व धन-संपत्ति मिलने और साधन-सुविधाओं से संपन्न होने पर दुःखों से और अभावों से छुटकारा पाया जा सकता है।यह प्रत्यक्ष रुप से देखा गया है कि जो छात्र-छात्राएं सम्पन्न,समृद्ध तथा स्वस्थ देखे जाते हैं वे भी दुःख व पीड़ाओं से ग्रस्त रहते हैं।प्रश्न उठता है कि साधन,सम्पन्नता,धन-संपत्ति तथा भौतिक सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने पर सुख नहीं है तो सुखी कैसे रहा जा सकता है? वस्तुतः सुखी और आनंद की अवस्था में रहना जीवन जीने की कला विकसित करके ही प्राप्त हुआ जा सकता है।
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2.जीवन जीने की कला से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by the Art of Living?):

  • जीवन जीने की कला को सीखने की हर किसी को आवश्यकता है।यदि छात्र-छात्राएं उसे सीखने के लिए आनाकानी करता है या हिचकिचाता है अथवा इस पर ध्यान नहीं देता है अर्थात् विद्यार्थी काल में होशपूर्वक नहीं रहता है तो जीवन जीने की कला से वंचित रह जाता है।जीवन में मिलने वाली असफलताएं,परेशानियां,चुनौतियां,अपमान,शारीरिक व मानसिक कष्ट उसे क्यों मिल रहे हैं इसे वे समझ नहीं पाते हैं।वे कोई न कोई भूलों पर भूलें करते हैं इसीलिए उन्हें ये परिणाम भुगतने पड़ते हैं।ये परिणाम भुगतने के बावजूद अपनी भूलों को नहीं सुधारेंगे,अपने तौर-तरीके नहीं बदलेंगे तो आने वाला भविष्य ओर कंटकाकीर्ण हो सकता है।इसलिए जीवन जीने के तरीके को गहराई से समझना होगा।जीवन जीने के सिद्धांतों को जानना जरूरी है और अपनी क्षमताओं को पहचानना और उनका उपयोग करना जरूरी है।
  • छात्र-छात्राएं जीवन में खुशियां तलाशता है लेकिन उसे तृप्ति नहीं मिलती है।वह सुकून उसे नहीं मिल पाता है जो उसे संतुष्टि दे सके।इसके लिए छात्र-छात्राओं को अपनी चाहतों के ढेर में से सही चाहत को तलाशना होगा।जो छात्र-छात्राओं की चाहते हैं वे पूरी हो जाने पर क्या वे संतुष्ट हो जाएंगे या उसकी अतृप्ति ओर बढ़ जाएगी? ऐसी कौनसी चाहत है जिसकी पूरी हो जाने पर उसकी अतृप्ति समाप्त हो सकती है? इस प्रश्न पर बार-बार विचार करना होगा और सही उत्तर की तलाश करनी होगी।
    छात्र-छात्राओं का जीवन जिन शक्तियों से संचालित है उनका सदुपयोग और दुरुपयोग करने में वे स्वतंत्र है लेकिन उसका परिणाम भोगने में परतन्त्र हैं।कर्म का फल भोगने में स्वतंत्रता खत्म हो जाती है।
  • जीवन में जिस प्रकार के परिणाम की आशा करते हैं उसके अनुरूप ही कर्म करने होंगे।यदि उनके कर्म करने की दिशा सही और क्षमता अधिक है तो परिणाम भी आशा से अधिक अच्छे मिल सकते हैं।यदि कर्म करने की दिशा गलत है या क्षमता कम है तो आशा के विपरीत परिणाम मिल सकते हैं।परंतु भविष्य में मिलने वाले परिणामों का आकलन केवल वर्तमान परिणामों के आधार पर करना उचित नहीं है क्योंकि मिलने वाले परिणाम हमारे कई जन्मों,भूतकाल में संचित कर्मों के फल हो सकते हैं।कौनसे कर्म का फल कब मिलेगा यह परम सत्ता के विधि-विधान पर आधारित है।सामान्य मनुष्य उसको नहीं जान पाता है।कर्मों का फल मिलना परम सत्ता का अटल नियम है।सामान्यतः मनुष्य उसको नहीं जान पाता है।इसलिए हमें निष्काम भाव से (अनासक्त कर्म) कर्म करते रहना चाहिए।
  • हमारे जीवन के दो पक्ष हैंःआंतरिक और बाहरी।बाहरी जीवन में किए गए कर्म व्यवहार द्वारा दिखाई दे देते हैं।परंतु आंतरिक जीवन में विचार,रुचियाँ,इच्छाएँ एवं भावनाएँ आदि होती हैं जो दिखाई नहीं पड़ती है लेकिन इन्हे हम महसूस करते हैं।कोई भी व्यक्ति किसी वस्तु के प्रति कोई व्यवहार करता है तो उसका प्रभाव दिखाई नहीं देता है क्योंकि उसके अंदर विचार और भावनाएं नहीं होती है।लेकिन किसी व्यक्ति के प्रति किए गए व्यवहार से उसकी भावनाएं प्रभावित होती है।अच्छा व्यवहार दूसरों को अपना बना लेता है और बुरा व्यवहार उसकी भावनाओं को बुरी तरह से उद्वेलित करता है जिससे उसकी भावनाएँ भी प्रतिक्रिया देती हैं।भावनाओं की यह घुटन,पीड़ा ही दूसरे व्यक्ति के लिए संस्कार बन जाती है।
  • जीवन में आने वाली विपरीत परिस्थितियों का सामना करने पर दूसरों पर अथवा भगवान पर दोषारोपण करने के बजाय उसे सहज भाव से सहना सीखे क्योंकि कठिन समझी जाने वाली विपरीत परिस्थितियां हमें जगाती हैं,जीवन की सही समझ पैदा करती है और हमारी क्षमताओं को निखारती है।इन परिस्थितियों से गुजरने पर हमें पता चलता है कि हम अभी कितने पानी में है?
  • व्यक्ति के जीवन में आने वाली किसी भी तरह की परिस्थिति उसके विकास के लिए सर्वोत्तम होती है।यदि इस तथ्य को व्यक्ति हर समय स्मरण कर सके और अपनी क्षमताओं से उसका सामना कर सके तो किसी भी तरह की परिस्थिति उसके व्यक्तित्व की क्षमताओं को अधिकतम निखारेगी और अपने अधिकतम अच्छे परिणामों को देकर जाएगी।

3.जीवन जीने की कला को विकसित करने के उपाय (Ways to Develop the Art of Living):

  • (1.)जीवन में विभिन्न लक्ष्यों की ओर दौड़ लगाने के बजाय जीवन में एक लक्ष्य तय करें।जीवन का लक्ष्य सोच समझ कर,अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार होना चाहिए।बार-बार लक्ष्य को न बदलें।
  • (2.)जीवन का लक्ष्य भोजन,जीवन का निर्वाह करना जैसे नहीं होने चाहिए क्योंकि ये लक्ष्य तो सहजता से प्राप्त किए जा सकते हैं।जीवन का लक्ष्य ऊंचा होना चाहिए तथा जिससे मानव पीढ़ी का हित जुड़ा हुआ हो।जैसे यदि छात्र-छात्राएं गणित का अध्ययन करते हैं तो गणित में खोज कार्य करना,गणितज्ञ बनना,गणित अध्यापक बनना इत्यादि हो सकता है।यह ध्यान रखना चाहिए कि भोजन,आवास की व्यवस्था करने का कार्य तो पशु-पक्षी भी भलीभांति कर लेते हैं।फिर मनुष्य और पशु-पक्षियों में क्या अंतर है,यह विचार करना चाहिए।
  • (3.)लक्ष्य के लिए उपलब्ध साधन-सुविधाओं में संतुष्टि का भाव रखना तथा जो साधन-सुविधाएं  उपलब्ध नहीं है उनके लिए व्याकुल नहीं होना चाहिए।इस स्थिति में रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति आगे बढ़ता हुआ रह सकता है।
  • (4.) अपने लक्ष्य अथवा उपलब्धि को अर्जित करने के लिए अपने आपको संतुलित रखें तथा अपने आपको परिमार्जित अर्थात् उत्तरोत्तर सुधार करते रहें।
  • (5.)विवेक,बुद्धि के द्वारा अपनी भावनाओं को सही दिशा दें और उन्हें नियंत्रित रखें।भावनाओं को प्रशिक्षित करते रहें।
  • (6.)प्रतिकूल,विपन्न परिस्थितियों,कष्टों,बाधाओं का सामना होने पर भी उन्हें सकारात्मक ढंग से सोचें और अपना मनोबल व धैर्य बनाएं रखें।
  • (7.)मन और इन्द्रियों पर संयम रखिए तथा सद्गुणों को विकसित करने का प्रयत्न करें।
  • (8.)मनुष्य जीवन के मुख्य लक्ष्य को प्राप्त करने में सैकड़ों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है परंतु सांसारिक भोगों और क्षणिक सुखों में फंसकर अपने लक्ष्य को छोड़ देने पर हमेशा पछताना पड़ेगा।
  • (9.)जीवन के उद्देश्य तक पहुंचने के लिए यह आवश्यक है कि मार्ग में आने वाले कष्टों,विघ्न,बाधाओं,दुखों को सहन करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना ही हमारा ध्येय हो।मार्ग में आने वाले विघ्न,बाधाओं इत्यादि को बुद्धि एवं विवेक से समाधान करते रहना होगा।
  • (10.)जीवन यात्रा में गतिशीलता और कर्मशीलता को जारी रखने के लिए कष्टों,प्रतिरोधों का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहना आवश्यक है।
  • (11.)लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए थोड़ा झुकना भी सीखें।जंगल के राजा शेर को भी पानी पीने के लिए झुकना पड़ता है।यह मत समझो कि तुम्ही श्रेष्ठ,निर्दोष और बुद्धिमान हो।दूसरे लोग भी अपने दृष्टिकोण के अनुसार सही हो सकते हैं और हो सकता है जिन परिस्थितियों में वे रह रहे हैं,उनमें उनके लिए वैसा ही सोचना,बनना,करना भी स्वाभाविक हो।इसलिए दूसरों को समझने की कोशिश करो।उनके दृष्टिकोण की,उनकी परिस्थितियों की भिन्नता को स्वीकार करो।इस दुनिया का सारा कारोबार एक-दूसरे को समझने और सहन करने की नींव पर ठहरा हुआ है।यदि तुम अड़ियल और जिद्दी बनकर अपने ही मन की श्रेष्ठता प्रतिपादन करते रहोगे तो कुछ ही दिन में अपने को अकेला पड़ा हुआ और असफलता के गर्त में गिरता हुआ पाओगे।
  • (12.)आंतरिक दुर्बलताओं,त्रुटियों के कारण ही हमारा जीवन अभावग्रस्त,अविकसित और अशांत रहता है परंतु हमारे अंदर आत्मबल होगा तो जीवन में आशा,उत्साह,स्फूर्ति,तेजस्विता और पुरुषार्थ से युक्त पूर्ण जीवन हो जाएगा और ये अभाव,कष्ट इत्यादि दूर हो जाएंगे।
  • (13.)जीवन लक्ष्य के प्रति दृढ़ता होनी चाहिए।लक्ष्य प्राप्ति में बाधाएँ हमारे मनोविकार हैं।इन्हीं से जीवन बर्बाद होता है।काम,क्रोध,लोभ,मोह इत्यादि के द्वारा हमारा जीवन अपवित्र बनता है।छात्र-छात्राओं को इंद्रिय,मन और बुद्धि का अभ्यास करना चाहिए।

4.जीवन जीने की कला का दृष्टांत (Illustration of the Art of Living):

  • एक गणित का विद्यार्थी था।बीएससी करते हुए बुरी संगत के कारण उसे शराब और जुए की लत पड़ गई।फलस्वरूप माता-पिता की धन-संपत्ति को जुए में हार बैठा।माता-पिता ने परेशान होकर उसे धक्के देकर घर से बाहर निकाल दिया।काफी दिनों तक दर-दर की ठोकरें खाता रहा और ऐसे दिन आ गए कि उसको भोजन भी नसीब नहीं होता था।अचानक एक दिन उसे अपने गुरु की याद आई।उसने अपने गुरु के पास जाने का निश्चय किया।गुरु के पास जाकर उसने आपबीती सारी घटना सुनाई।
  • गुरु ने धैर्यपूर्वक उसकी पूरी बात सुनी तथा पूछा कि तुम बीएससी किए हुए हो तुम्हें पता नहीं कि बुरी आदतों का परिणाम भी बुरा होता है।युवक ने सकारात्मक जवाब में सिर हिला दिया।गुरुजी ने पूछा कि फिर तुमने गलती क्यों की।युवक ने कहा कि साथ-संगत तथा सही दिशा न मिलने व वातावरण के प्रभाव के कारण ये बुरी आदतें सीख ली।आजकल के वातावरण में सीधे-सादे ढंग से रहने वाले,ईमानदार,सज्जन,विनम्र व्यक्ति को बेवकूफ समझा जाता है।
  • गुरुजी ने कहा कि यहीं आजकल के युवक-युवतियाँ भ्रमित हो जाते हैं।पाश्चात्य संस्कृति या कहें कि अपसंस्कृति के प्रभाव में आकर वे शराब पीना,नशा करना,जुआ खेलना,चोरी करना,गुंडागर्दी करना,अय्याशी करना,ड्रग्स का सेवन करने को बड़प्पन,प्रगतिशीलता,सभ्यता और आधुनिकता का सूचक मानते हैं।परंतु सचमुच ही कोई विचारशील व्यक्ति होगा तो इनको कभी उचित नहीं मानेगा।यह बात अब ठोकर खाने के बाद तुम्हारी भी समझ में आ गई है।
  • बड़पन शान-शौकत से रहना,पहनावे,ओढावे में तड़क-भड़क वस्त्र पहनना,पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण,ड्रग्स का सेवन इत्यादि बुरी बातों को अपनाने से नहीं है।बड़ा अपने अच्छे आचरण,अच्छे चिन्तन-मनन,सद्विचारों और कर्तृत्व से बनता है।
  • गुरुजी ने कहा कि चलो देर आयद दुरुस्त आयद।उन्होंने अपने पास उस युवक को लगभग एक वर्ष तक रखा।वर्ष भर में उसकी आदतों में सुधार हो गया।इसके बाद गुरुजी ने नसीहत दी कि अब पुरुषार्थ करके कोई जॉब प्राप्त करो,पढ़े लिखे हो। ईमानदारी,सज्जनता,विनम्रता और सादगी से जीवनयापन करो।
  • युवक ने वचन दिया और गुरुजी को प्रणाम करके चल पड़ा।उसके बाद वह ट्यूशन करके अपनी जीविका चलाता तथा शेष समय में अध्ययन करता रहा।कठोर परिश्रम,अभ्यास,दृढ़ निश्चय से उसका चयन बहुराष्ट्रीय कंपनी में हो गया।अपनी लगन,मेहनत,ईमानदारी,सज्जनता,विनम्रता,काम पर गहरी पकड़ से एक दिन वह कंपनी का निदेशक बन गया।
  • काफी वर्षों बाद अचानक वह एक दिन अपनी कार से उस साधारण से मकान के सामने जाकर रुक गया जिस मकान में गुरुजी रहते थे।युवक ने बड़ी आत्मीयता से गुरुजी के चरण स्पर्श किए और हाथ जोड़कर कहा कि क्या आपने मुझे पहचाना?गुरुजी असमंजस में पड़ गए।तब उस युवक ने कहा कि मैं वही युवक हूं जिसकी आपने सेवा की थी और यह नसीहत दी थी कि नेक कार्य करके आगे बढ़ो।
  • परिचय प्राप्त करने पर गुरुजी ने कहा कि अरे तुम हो।उन्होंने अपने घर के अंदर आने के लिए कहा।युवक ने अपनी तरक्की,प्रगति और संघर्ष की पूरी कहानी सुनाई।वह अपने साथ ढेर सारे उपहार लेकर आया था।साथ ही कहा कि मेरे साथ चलें और वही रहें जिससे मुझे आपकी सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हो।गुरुजी ने प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा कि तुम जैसी हालत में आए थे वैसी ही हालत में युवकों की सेवा करो और उन्हें सही दिशा और मार्गदर्शन दो।भटको को रास्ते पर ले आओगे वही मेरी सेवा हो जाएगी।रही उपहार की बात तो यह स्मृति चिन्ह पर्याप्त है बाकी पैसो की मुझे आवश्यकता नहीं है।मेरे जीवनयापन जितना धन मैं अर्जित कर लेता हूं।जीवनभर भटके हुए को रास्ता दिखाना,पिछड़ों को उठाना यही मेरे प्रति सच्ची कृतज्ञता होगी।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएँ जीवन जीने की कला कैसे विकसित करें? (How Do Students Develop Art of Living?),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए जीवन जीने की कला को विकसित करने की 3 टिप्स (3 Tips to Develop Art of Living for Mathematics Students) के बारे में बताया गया है।

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5.गणित के बिना हल किए सवाल (हास्य-व्यंग्य) (Unsolved Questions of Mathematics) (Humour-Satire):

  • अध्यापक (गणित अध्यापक से):तुम अपने गणित के हल किए हुए सवालों की नोटबुक पर टाइटल यह क्यों डाल रहे हो कि “गणित के बिना हल किए सवाल”?
  • गणित अध्यापक (अध्यापक से):छात्र-छात्राओं को धोखा देने के लिए जिससे वे नकल नहीं कर सके।
    अध्यापक:छात्र-छात्राओं को तुम धोखा क्यों देना चाहते हो?
  • गणित अध्यापक:अरे यार!आजकल के छात्र-छात्राएँ स्वयं सवालों को हल करना चाहते ही नहीं हैं।उन्हें तो बस एक बार हल किए हुए सवाल मिल जाने चाहिए और तत्काल उसकी नकल करना चालू कर देते हैं।अपने दिमाग को काम लेना चाहते ही नहीं है।

6.छात्र-छात्राएँ जीवन जीने की कला कैसे विकसित करें? (Frequently Asked Questions Related to How Do Students Develop Art of Living?),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए जीवन जीने की कला को विकसित करने की 3 टिप्स (3 Tips to Develop Art of Living for Mathematics Students) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.जीवन में सफलता कैसे प्राप्त करें? (How to Achieve Success in Life?):

उत्तर:जीवन को सफल और सार्थक बनाने के लिए छात्र-छात्राओं को अपनी पूरी शक्ति,योग्यता और क्षमता लगा देनी चाहिए।भरपूर पुरुषार्थ करना चाहिए।सफलता बहुत प्रयत्न करने और अनेक गुणों को धारण करने से मिलती है।जो छात्र-छात्राएं थोड़े से प्रयत्न के साथ मनोवांछित सफलता प्राप्त करना चाहते हैं वे किसी चीज का पूरा मूल्य चुकाए बिना ही सफलता के लिए लालायित रहते हैं।ऐसे लोभी-लालची व्यक्ति के चरित्र का पतन कभी भी हो सकता है।वे मानवीय गुणों से कभी भी पतित हो सकते हैं।सदा फल की लालसा मनुष्य को मिथ्याचारी और बेईमान बना सकती है।ऐसे कई छात्र-छात्राओं को देख सकते हैं जो आज पेड़ लगाते हैं और कल उस पर फल प्राप्त करने की आशा करते हैं।अनीति से प्राप्त सफलता कभी भी यथार्थ रूप में संतोषदायक नहीं होती।यथार्थ उन्नति के लिए कोई अवधि निश्चित नहीं है और न उसे करना चाहिए।उचित आदर्शों के साथ अपना कर्त्तव्य पालन करते रहना चाहिए,समय आने पर सफलता आप से आप उपलब्ध हो जाएगी।

प्रश्न:2.जीवन का क्या महत्व है? (What is the Importance of Life?):

उत्तर:मनुष्य जीवन ऐसी तुच्छ वस्तु नहीं है जिसे हल्के कार्यों में खर्च किया जाए।यह निरन्तर प्रगति और तप का परिणाम है।उसके मूल्य और महत्त्व को समझना चाहिए।यह सोचना चाहिए कि इस जीवन का लाभ किस प्रकार उठाया जाए? ऐसा जीवन बार-बार नहीं मिलता है जिसे उपहास और उपेक्षा में गंवा दिया जाना चाहिए बल्कि सतर्कतापूर्वक यह चेष्टा करनी चाहिए कि समुचित सदुपयोग और पूर्ण लाभ मिले।श्रेष्ठ कार्यों को अपनी दिनचर्या में शामिल करना ही वह उपाय है जिसे मनुष्य ऊँचा उठता है और सफल जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है।

प्रश्न:3.जीवन की विशिष्टता किसमें है? (What is the Uniqueness of Life?):

उत्तर:मनुष्य को सोचने-समझने और करने की स्वतन्त्रता प्राप्त है।उसका उपयोग भली या बुरी,सही या गलत किसी भी दिशा में वह स्वेच्छापूर्वक कर सकता है।अब बन्धन में बंधना भी उसका स्वतंत्र कर्तृत्व ही है।सद्कार्यों में सदुपयोग करके जीवनमुक्त स्थिति प्राप्त करें अथवा दुरुपयोग कर मोह,लोभ,लिप्सा के जाल में फँसकर,उलझकर अपना विनाश करे।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएँ जीवन जीने की कला कैसे विकसित करें? (How Do Students Develop Art of Living?),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए जीवन जीने की कला को विकसित करने की 3 टिप्स (3 Tips to Develop Art of Living for Mathematics Students) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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छात्र-छात्राएँ जीवन जीने की कला कैसे विकसित करें? (How Do Students Develop Art of Living?)
क्योंकि आधुनिक युग में शिक्षा संस्थानों में छात्र-छात्राओं को जीवन जीने की कला विकसित करने की शिक्षा नहीं दी जाती है।

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