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Current education system demerit and solution in hindi

1.वर्तमान शिक्षा प्रणाली,दोष और समाधान का परिचय (Introduction to Current education system demerit and solution in hindi),भारत में शिक्षा प्रणाली (Education system in India):

  • वर्तमान शिक्षा प्रणाली,दोष और समाधान (Current education system demerit and solution in hindi),भारत में शिक्षा प्रणाली (Education system in India):वर्तमान भारतीय शिक्षा अंग्रेजों द्वारा चलाई गई है।इसको अंग्रेज गर्वनर लार्ड मैकाले ने लागू किया गया था।हालांकि इस शिक्षा पद्धति में काफी बदलाव हुए हैं परन्तु मूलरूप से लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति ही है।भारतीय संस्कृति के अनुसार इस शिक्षा में पद्धति में प्रगतिशील तरीका अपनाते हुए परिवर्तन करने की आवश्यकता है।
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via https://youtu.be/cdqLybjmG9k

2.वर्तमान शिक्षा प्रणाली,दोष और समाधान (Current education system demerit and solution in hindi),भारत में शिक्षा प्रणाली (Education system in India):

  • भारत को स्वतंत्र हुए लगभग 70 वर्ष हो चुके हैं परंतु शिक्षा प्रणाली में मूलभूत परिवर्तन नहीं किया गया है।आज के लोकतांत्रिक भारत देश में लोगों को लोकप्रिय होना तथा वोट प्राप्त करके सत्ता में बने रहना ही मुख्य उद्देश्य रह गया है।जबकि शिक्षा व्यक्ति,समाज व देश के लिए नींव का कार्य करती है परंतु देश के राजनीतिज्ञों तथा शिक्षाविदों द्वारा इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है।लोकलुभावन मुद्दों पर ध्यान देना एकमात्र मकसद रह गया है।
  • हमारे नवयुवक विदेशों में शिक्षा प्राप्त करना अपना गौरव समझते हैं।किसी समय भारत विश्व गुरु रहा है परंतु आज की शिक्षा प्रणाली को देखकर ऐसा आभास ही नहीं होता है।आज भी शिक्षा के क्षेत्र में जो निर्णय लिए जाते हैं उनमें उन शिक्षाविदों का सुझाव व परामर्श से निर्णय लिए जाते हैं जो विदेशों में पढ़े लिखे हैं तथा जिन्हें ठीक से भारत की संस्कृति का ज्ञान भी नहीं है।
  • विदेशी विद्वानों तथा विदेशों में पढ़े-लिखे शिक्षाविदों को आमंत्रित करना व परामर्श लेना,विश्वबन्धुत्व की भावना रखना तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग लेना अच्छी बात है परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारे देश की मिट्टी से जुड़े हुए हैं जो शिक्षाशास्त्री हैं उनकी बुद्धि को गिरवी रख दिया जाए।
  • प्रश्न:1.वर्तमान शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों के नैतिक विकास पर ध्यान कैसे दिया जा सकता है?
  • समाधान:वर्तमान शिक्षा प्रणाली में नैतिक तथा चारित्रिक विकास को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है।बालकों के चिन्तन,मनन शक्ति का विकास तभी सम्भव है जब पाठ्यक्रम में आध्यात्मिक,नैतिक व चारित्रिक बातों को शामिल किया जाए तथा उनको आचरण में उतारने पर बल दिया जाए।
  • माता-पिता तथा अध्यापकों को विशेष रूप से इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए परंतु माता-पिता व अध्यापक तभी ध्यान दे पाएंगे जब वे स्वयं इन बातों को अपने जीवन में अपनाएंगे अर्थात् उनकी कथनी और करनी में अंतर न हो।बालक देखकर या अनुकरण से ज्यादा सीखता है।अतः माता-पिता का यह दायित्व है कि वे अपने घर में इस तरह का वातावरण रखें जिससे बच्चों का नैतिक व चारित्रिक विकास हो,स्वयं दुर्व्यसनों से दूर रहें तथा अपना चरित्र इतना शुद्ध व पवित्र रखें जिससे बच्चों पर दुष्प्रभाव न पड़े।
  • अध्यापकों का भी विशेष उत्तरदायित्व है कि वे अपने आचरण को श्रेष्ठ,तप,समर्पण से युक्त रखें।
  • आजकल का वातावरण तथा संगति ऐसी है कि बच्चे सुख-सुविधाओं में रहना चाहते हैं।भौतिक तथा विज्ञान के आविष्कारों से आज की दुनिया चकाचौंध है।क्या माता-पिता,क्या अध्यापक तथा क्या ही विद्यार्थी चारो ओर नैतिकता तथा चरित्र का पतन होता जा रहा है।आशा की किरण यही है कि कुछ शिक्षण संस्थान ऋषि-मुनियों,साधु-संतों द्वारा संचालित हैं जिनमें बहुत पवित्र,भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत वातावरण उपलब्ध है।वे विद्यार्थियों में गुणात्मक परिवर्तन की नींव रख रहे हैं।
  • परन्तु ऐसे विद्यार्थियों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है जो टीवी,फिल्मों से प्रेरित होकर काल्पनिक जगत के सपने देखते हैं।ऐसे युवा डिग्री लेकर वास्तविक जीवन में जब प्रवेश करते हैं तो जीवन की वास्तविक सच्चाइयों से सामना होने पर घबरा जाते हैं तब उन्हें अपना जीवन अंधकारमय नजर आता है।उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता तथा न कुछ सोच पाते हैं कि वे क्या करें क्या न करें?ऐसी स्थिति में माता-पिता व अध्यापकों का दायित्व बढ़ जाता है और विद्यार्थियों को उनके मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।
  • प्रश्नः2.भौतिक सुख-सुविधाओं,तकनीकी और वैज्ञानिक विकास के बावजूद तथा शिक्षण सुविधाएं,कोचिंग की सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद विद्यार्थियों का उचित विकास क्यों नहीं हो रहा है?
  • समाधान:वर्तमान शिक्षा प्रणाली परीक्षा केन्द्रित है जबकि प्राचीन शिक्षा प्रणाली ज्ञान केन्द्रित थी।वर्तमान शिक्षा प्रणाली बाल केन्द्रित अवश्य है परन्तु व्यावहारिक रूप में प्रत्येक बच्चे पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
    इस प्रणाली में बच्चे की सोचने,समझने की योग्यता का परीक्षण नहीं होता है।बच्चों के सामने नई समस्याएं सामने आती हैं तो वे उसे सुलझा नहीं पाते हैं।बच्चों पर एक ही बात का दबाव रहता है कि उन्हें प्रथम तथा सबसे अव्वल आना है।अभिभावकों तथा अध्यापकों का एक ही लक्ष्य होता है कि परीक्षा परिणाम अच्छा कैसे रहे?अच्छे माता-पिता,अच्छे अध्यापक तथा अच्छा विद्यालय वे ही माने जाते हैं जिनके बच्चों का परीक्षा परिणाम उत्तम रहता है।इस प्रतिस्पर्धा में बच्चों के शारीरिक,मानसिक और चारित्रिक विकास गौण हो जाता है।परिणामस्वरूप विद्यार्थियों का मानसिक चिंतन का विकास करने के बजाय रटने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
  • पाठ्यपुस्तकें,नोट्स,गाइडे सभी परीक्षा केंद्रित हो गई है जिससे विद्यार्थियों के विकास पर बहुत घातक प्रभाव पड़ता है।ज्यों ही परीक्षा निकट आ जाती है विद्यार्थियों को रात-दिन पाठ्यपुस्तकों,नोट्स तथा गाइडो का पाठ करना,उनको रटना शुरू करा दिया जाता है।जिससे बच्चों का शारीरिक तथा मानसिक विकास नहीं हो पाता है।अतः बच्चे येन-केन प्रकारेण अर्थात् नकल करके,अनुचित साधनों का प्रयोग करके परीक्षा में सफल होने का प्रयास करते हैं।इस प्रकार विद्यार्थियों के मानसिक विकास का मापदण्ड परीक्षाफल हो जाता है।ऐसी स्थिति में आध्यात्मिक विकास की बात तो सोची ही नहीं जा सकती है।इस स्थिति को बदलना ही होगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में वर्तमान शिक्षा प्रणाली,दोष और समाधान (Current education system demerit and solution in hindi),भारत में शिक्षा प्रणाली (Education system in India) के बारे में बताया गया है।
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