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Ancient Teaching Method of Mathematics

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1.गणित की प्राचीन शिक्षण विधि का परिचय (Introduction to Ancient Teaching Method of Mathematics),गणित की प्राचीन भारतीय शिक्षण विधि (Ancient Indian Teaching Method of Mathematics):

  • गणित की प्राचीन शिक्षण विधि (Ancient Teaching Method of Mathematics) ज्ञान केंद्रित थी बालक केंद्रित नहीं थी।यह हर गणित का शिक्षक जानता है कि अधिकांश विद्यार्थी गणित में रुचि नहीं लेते हैं।वस्तुतः इसका कारण गणित की विषयवस्तु नहीं है बल्कि गणित पढ़ाने की उपयुक्त विधि का चयन न करने तथा सभी बालकों को एक ही गणित की विधि से पढ़ाने के कारण विद्यार्थी गणित विषय में रुचि नहीं लेते हैं।
  • यह आश्चर्य की बात है कि गणित जैसे प्रैक्टिकल विषय में जिसमें छात्र-छात्राओं को ज्ञान को कम-से-कम कंठस्थ करके की जरूरत होती है तथा समझने की अधिक आवश्यकता होती है,इसमें बालक रुचि नहीं लेते हैं।गणित विषय जहाँ आनंददायक विषय होना चाहिए वहां बालकों को नीरस,ऊबाऊ विषय लगने लगता है।
  • जब विद्यार्थियों को गणित विषय के सवाल समझाएं जाते हैं और हल करने को दिया जाता है तो वे इस मजबूरी में गणित के सवाल हल करते हैं क्योंकि उन्हें कक्षा में उत्तीर्ण होना है और आगे की कक्षाओं में गणित से पीछा छुड़ाना है।
  • इसी गणित को उपयुक्त विधि का चुनाव करके पढ़ाया जाता है तो बालक उसमें रुचि लेने लगते हैं और गणित विषय से प्रेम करने लगते हैं।
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2.बालक की मानसिकता के अनुरूप शिक्षण विधि हो (The Teaching Method Should be According to the Mental Ability of the Child):

  • भिन्न-भिन्न क्षमता के बालक के लिए भिन्न-भिन्न गणित पढ़ाने की विधि का प्रयोग किया जाता है।गणित पढ़ाते समय भिन्न-भिन्न क्षमता और स्तर के बालकों को ध्यान में रखना पड़ता है।इस कारण भिन्न-भिन्न स्तर के बालकों के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग करना पड़ता है।इसका कारण यह है कि हर बालक की मानसिकता अलग-अलग होती है और उनकी मानसिक क्षमता का विकास भी अलग-अलग तरह से होता है।
  • कुछ बालकों का मानसिक विकास धीरे-धीरे होता है तो कुछ बालकों का मानसिक विकास तीव्र गति से होता है जबकि अधिकांश बालकों का मानसिक विकास औसत गति से होता है।
  • इसके अतिरिक्त बालकों की आयु का भी फर्क पड़ता है।कुछ बालक 8-10 वर्ष के होते हैं तो कुछ बालक 15-16 वर्ष की आयु के होते हैं।इसके कारण उनकी मानसिक शक्तियों में अंतर होता है।
  • 15-16 वर्ष की आयु के बालक को गणित के जो विषय (Topic) जिस विधि से पढ़ाया जाता है उसी विधि से 7-8 वर्ष की आयु के बालक को नहीं पढ़ाया जा सकता है।छोटे बच्चों को खेल-खेल में गणित तथा सरल विधि से गणित को पढ़ाना पड़ता है जबकि बड़े बच्चों को पढ़ाने में तर्क का आधार अधिक विचारयुक्त तथा गम्भीर होता है।
  • स्पष्ट है कि जिस बच्चे का मानसिक विकास पूर्ण विकसित नहीं होता है उसको अधिक ध्यान देकर तथा सरल विधि से पढ़ाने की आवश्यकता होती है।एक गणित अध्यापक गणित को पढ़ाने में तभी सफल हो सकता है जबकि वह बालकों के मानसिक स्तर के अनुसार गणित पढ़ाने की विधि का चयन करता है तथा गणित को पढ़ाने का तरीका इतना रोचक हो कि बालक उसमें रुचि ले सके और गणित के सवाल को हल करने में आनंद का अनुभव कर सकें।
  • एक ही कक्षा में बालकों की मानसिक क्षमता अलग-अलग होती है।कुछ बालक बिल्कुल कमजोर होते हैं,कुछ बालक बहुत मेधावी होते हैं जबकि अधिकांश बालक औसत स्तर के होते हैं।मेधावी बालक कमजोर बालकों की अपेक्षा 5 से 8 गुना अधिक गति से गणित को सीख लेते हैं।इसलिए गणित के अध्यापक को ऐसी विधि का चुनाव करना चाहिए जिसमें सभी बालकों की मानसिक क्षमता का विकास हो।साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि एक ही विधि द्वारा संपूर्ण विषय (Topic) को समान दक्षता (Efficiency) के साथ नहीं पढ़ाया जा सकता है।

3.गणित शिक्षण की विधियां (Methods of Teaching Mathematics):

  • प्राचीन गणित की शिक्षण विधि को जानने से पहले यह भी जान लेना आवश्यक है की विधि (Method) से क्या तात्पर्य है और उसके अन्दर जिन युक्तियों (Devices) तथा प्रविधियों (Techniques) का प्रयोग किया जाता है वे क्या हैं अर्थात् विधि,युक्ति और प्रविधि में क्या अंतर होता है?
  • विधि (method):कक्षा में छात्र-छात्राओं और शिक्षक के द्वारा शिक्षण में जो क्रियाएं की जाती है उसके आधार पर ही विधि का पता चलता है।शिक्षण द्विमुखी प्रक्रिया होती है।यानी शिक्षक द्वारा सिखाने व छात्र-छात्राओं द्वारा सीखने की क्रिया होती है तभी उसे शिक्षण कहा जा सकता है।शिक्षक द्वारा कक्षा शिक्षण में निम्नलिखित बातें सम्मिलित होती हैं:
  • (1.)बालकों को गणित अथवा अन्य विषय को पढ़ने के लिए प्रेरित करना
  • (2.)विषय की थ्योरी समझाने के बाद छात्र-छात्राओं के सम्मुख समस्या प्रस्तुत करना
  • (3.)थ्योरी से संबंधित उदाहरण देकर समझाना
  • (4.)छात्र-छात्राओं को प्रश्नावली हल कराकर उसका परख करना
  • (5.)छात्र-छात्राओं के सामने समस्याएं आ जाए,बीच में अटक जाए तो उन्हें उचित दिशा देना
  • (6.)छात्र-छात्राओं की मदद से पढ़ाई गई विषयवस्तु का निष्कर्ष निकालना
  • (7.)विषयवस्तु का मूल्यांकन करना
    छात्र-छात्राओं की क्रियाए (Students Activities)
  • (1.)छात्र-छात्राओं द्वारा प्रेरित होना (stimulation)
  • (2.)गणित की विषयवस्तु का ध्यानपूर्वक निरीक्षण (observation) करना
  • (3.)अपने पुराने अनुभव,गत वर्षों तथा कक्षाओं में सीखी गई विषयवस्तु के आधार पर नए ज्ञान को समझने की कोशिश करना
  • (4.)शिक्षक द्वारा पढ़ाई गई थ्योरी व उदाहरण को एकाग्रचित्त होकर सुनना व समझना
  • (5.)विषयवस्तु में कठिन शब्दों व समस्याओं को समझने का प्रयास करना
  • (6.)पढ़ी गई विषयवस्तु का निष्कर्ष निकालना।
  • विधि वह प्रक्रिया है जिससे लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।विधि के अन्तर्गत गणित की विषयवस्तु को क्रम से रखना होता है।जैसे पहले सरल रेखाओं का परिचय करना,कोणों का परिचय कराना,त्रिभुज के प्रकार को कोणों व भुजाओं के आधार पर समझना,समांतर रेखाओं व प्रतिच्छेदी रेखाओं को समझना और उस पर आधारित सवालों को हल करना।
  • इस प्रकार यह एक क्रम में चलने वाली प्रक्रिया है।इसमें बहुत सी बातों को समझना होता है जिनकी सहायता से लक्ष्य की प्राप्ति होती है।ये सभी कार्य जिनकी सहायता से लक्ष्य की प्राप्ति होती है,युक्ति (Devices) कहलाती है।इस प्रकार एक विधि में बहुत से युक्तियां आती हैं।शिक्षक कक्षा में जो भी कार्य करता है वह सब विधि नहीं कहलाती है बल्कि विषयवस्तु संगठित करना कहलाती है जिससे छात्र भली प्रकार समझ सकें।
  • युक्तियाँ (Devices):प्रत्येक विधि के अन्तर्गत युक्तियों का प्रयोग किया जाता है।क्रियाएं जैसे वर्णन करना (Narration),प्रश्न करना (Questioning),प्रयोग प्रदर्शन करना (Demonstration) आदि युक्तियाँ कहलाती हैं।
  • ये युक्तियाँ सीखने की क्रिया में सहायता देती है।ये युक्तियाँ विधियों से भिन्न है परंतु उनके अन्तर्गत इनका प्रयोग किया जाता है तथा एक विधि के अन्तर्गत कई युक्तियों का प्रयोग सम्भव है।
  • प्रविधि (techniques):प्रविधि किसी युक्ति के अन्तर्गत प्रयोग की जाती है।शिक्षक की वास्तविक पढ़ाने संबंधी क्रियाएँ ही प्रविधि (techniques) कहलाती है।ये किसी भी युक्ति को एक विशेष रूप देती हैं।उदाहरणार्थ प्रश्न करना (questioning) एक युक्ति है परंतु प्रश्न किस प्रकार का हो,कौनसे छात्र को किस प्रकार का प्रश्न पूछा जाए,प्रश्नों की गति क्या हो,प्रश्न पूछने में शिक्षक के हाव-भाव कैसे हों,प्रश्नों का वितरण (distribution) कैसा हो आदि सभी क्रियाएं प्रविधि कहलाती हैं।
  • दो शिक्षक गणित-शिक्षण में एक ही युक्ति का प्रयोग कर रहे हों परंतु एक की प्रविधि (technique) दूसरे से भिन्न हो सकती है।कक्षा-शिक्षण में प्रविधि के आधार पर एक शिक्षक का शिक्षण सफल और दूसरे का असफल हो सकता है।अतः कक्षा-शिक्षण में शिक्षक को उन्हीं प्रविधियों का उपयुक्त प्रयोग सीखने की आवश्यकता है।यही शिक्षक का चातुर्य (skill) है जो पाठ्यवस्तु को व्यवस्थित रूप देती है।
  • इसी प्रकार कक्षा-शिक्षण में सहायक सामग्री यथा माॅडल,पहेली इत्यादि का सही प्रदर्शन भी एक प्रविधि है जिनको प्रयास द्वारा सीखा जाता है।इस प्रकार प्रविधि (techniques) अभ्यास द्वारा सीखा जाता है।अतः निष्कर्ष निकलता है कि विधि एक योजना है जिसके अंतर्गत युक्ति (devices) तथा युक्ति के अंतर्गत प्रविधियाँ (techniques) आती हैं।

4.गणित की प्राचीन शिक्षण विधि (The Ancient Teaching Method of Mathematics):

  • प्राचीनकाल में विद्यार्थियों को सबसे पहले गणित के सूत्र कण्ठस्थ कराए जाते थे तत्पश्चात उन सूत्रों का प्रयोग कराके गणित के प्रश्न हल कराए जाते थे।प्रश्न भी कण्ठस्थ करने पड़ते थे।यानी प्राचीनकाल में स्मरण पर अत्यधिक बल दिया जाता था।
  • गणित,पाटी(तख्ती) पर धूल बिछाकर हल कराई जाती थी।अंक,धूल पर अंगुली से या लकड़ी के नुकीले भाग से लिखे जाते थे।ज्यों-ज्यों गणना बढ़ती जाती थी,अनावश्यक अंक मिटा दिए जाते थे।कभी-कभी पाटी पर खड़िया के टुकड़े से भी लिखते थे।
  • गणना करने में विद्यार्थी पद-पद पर प्रयुक्त सूत्र का उच्चारण करता था।अध्यापक इसकी निगरानी करता था और अशुद्ध होने पर विद्यार्थी की सहायता करता था।जब विद्यार्थी अपनी पुस्तक में दिए हुए प्रश्नों को हल करने में पर्याप्त निपुण हो जाता था तब अध्यापक उसे अन्य प्रश्न करने को देता था।
  • प्रत्येक अध्यापक के पास ऐसे चुने हुए प्रश्नों का भण्डार होता था जो या तो उसके स्वयं के बनाए होते थे अथवा अन्य स्रोतों (sources) से संग्रहित (collected) होते थे।इस अवस्था में पहुँचने पर विद्यार्थी सरल सूत्रों का प्रमाण (proof) समझने लगता था।जब विद्यार्थी इस अवस्था तक पहुँच जाता था तब अध्यापक उसे अंकित कठिन सूत्रों के प्रमाण बताता था।
  • ऐसे अध्यापक बहुत कम होते थे,जो शिक्षण की सब अवस्थाओं में विद्यार्थी का पथ-प्रदर्शन कर सकते थे।अतएव उत्साही विद्यार्थी को जिसे आगे पढ़ने की इच्छा होती थी,किसी विद्या केंद्र या किसी सुप्रसिद्ध विद्वान के पास अध्ययन के लिए जाना पड़ता था।स्पष्ट है कि पहले गणित सीखने के लिए आज जैसे इंटरनेट,यूट्यूब,पुस्तकें,सोशल मीडिया जैसे माध्यम नहीं थे।गणित सीखने के लिए किसी गुरु की शरण लेनी ही पड़ती थी।

5.गणित की प्राचीन गणित शिक्षण विधि की कमियां (Shortcomings of the Ancient Teaching Method of Mathematics):

  • प्राचीन शिक्षण-विधि दोषपूर्ण (defective) थी।पहले दो अवस्थाओं में (कण्ठस्थ करना,स्मरण करना) में अध्ययन का काम बिल्कुल यंत्रवत (mechanised) होता था।जो विद्यार्थी अध्ययन की तीन अवस्थाओं को पूरा नहीं करता था,वह कण्ठस्थ किए हुए सूत्रों के अतिरिक्त कुछ नहीं जानता था और प्रयुक्त सूत्रों की उत्पत्ति से अनभिज्ञ (innocent) होने के कारण उनका प्रयोग करते समय अशुद्धियां करने को बाध्य होता था।
  • वस्तुतः प्राचीन काल में बालक की क्षमता का ध्यान नहीं रखा जाता था।प्राचीन काल की शिक्षा बाल केन्द्रित के बजाय ज्ञान केन्द्रित थी।आधुनिक युग में बालक अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार विषय का चयन करता है तथा उसी का अध्ययन करता है।इसी कारण प्राचीन काल में अधिकांश विद्यार्थी शिक्षा से वंचित रह जाते थे।परन्तु ऐसे बच्चों को व्यावहारिक प्रशिक्षण द्वारा किसी भी जाॅब को करने के लिए तैयार किया जाता था।शिक्षा से वंचित होने पर भी दर-दर की ठोकरें नहीं खानी पड़ती थी।आज सैद्धान्तिक शिक्षा ही दी जाती है जबकि प्राचीन काल में व्यावहारिक व जीवनोपयोगी शिक्षा दी जाती थी।

6.गणित की प्राचीन शिक्षण विधि का दृष्टान्त (An Example of the Ancient Teaching Method of Mathematics):

  • एक गुरुकुल में गणित का विद्यार्थी था।वह गणित में पारंगत होने के लिए गुरु के हर आदेश की पालना करता था।गुरु माता कहती कि पुत्र तुम स्वयं में शांत तथा स्थिर होना भी सीखो क्योंकि जल्दबाजी में काम बिगड़ भी जाता है।वह शिष्य बोला कि मैं गुरु का आदेश जल्दी से जल्दी पूरा करना चाहता हूं ताकि उनको प्रतीक्षा न करनी पड़े।तब गुरु माता सोचती की गणित के इस शिष्य का हृदय निश्छल और निर्मल है।आचार्य अपने इस शिष्य को रुचिपूर्वक गणित पढ़ाते।वह शिष्य सूत्रों को बड़ी मेहनत से याद करता और अगले दिन उन सूत्र और सवालों को हल करके बता देता।शिक्षा पूरी होने पर वे अपने शिष्यों को कहते की गणित के ज्ञान और सुख,शांति का प्रकाश फैलाओ।
  • गुरु माता उससे कहती कि पुत्र जब बुद्धि कार्य करना बंद कर दें तो तो स्थिर और शान्त होकर हृदय का स्वर सुनने का प्रयास करना।गुरुजी कहते कि दिल में त्याग की भावना हो,मन में कुछ करने का जज्बा हो,रगों में कर्त्तव्य का उष्ण रक्त प्रवाहित हो तथा नस-नाड़ियों में साहस हो तो हमें न तो कोई परिस्थिति डिगा सकती है और न कोई मानव व देव मानव विचलित कर सकता है।
  • एक दिन ऐसा आया कि आचार्य के आशीर्वाद तथा शिष्य की मेहनत से गणित शिक्षा पूरी कर ली।उसने जाॅब प्राप्त करने का व्यावहारिक प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लिया।इसके बाद कभी-कभी वह शिष्य आश्रम में आ जाता था।एक दिन गुरुकुल में 25 वर्ष पूरे होने पर महोत्सव मनाया जा रहा था।वह शिष्य भी उस दिन उपस्थित हुआ।
  • अपने आचार्य के गले में कमल पुष्प की माला पहनाकर वह उनके चरणों में लेट गया।उसने कहा कि इस महोत्सव पर मैं गुरु दक्षिणा देना चाहता हूं।शिष्य के संकेत करते ही लगभग पच्चीस बालक अपनी परंपरागत वेशभूषा में आचार्य के समक्ष उपस्थित हुए।उस शिष्य ने कहा आपने मुझे शिक्षा प्रदान करके मानव बनाया है।आपको मैं अपनी मूर्खता के सिवा गुरु दक्षिणा में ओर कुछ नहीं दे सकता हूँ।
  • मैं जानता हूं कि धन-संपत्ति आदि की भेंट तो आपके सम्पन्न शिष्य लाते ही रहते हैं।उनकी बराबरी तो मैं किसी तरह नहीं कर सकता हूं।फिर भी मैं ऐसी गुरुदक्षिणा देना चाहता हूं जो आपके अन्य शिष्यों से निराली हो और आपको प्रसन्न भी कर सके।
  • बहुत दिनों तक मैं इस संकोच में रहा।तब आपके उपदेश मेरे मन में गूंजने लगे कि ज्ञान के प्रकाश को संसार में फैलाकर ही उसकी सच्ची आराधना है।
  • मैंने गणित शिक्षा और व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करके तथा आपके उसी उपदेश के अनुसार इन अनपढ़,भोले और अंधविश्वासी बच्चों में बांटना शुरू कर दिया है।मैंने इन्हें गणित पढ़ना-लिखना सिखाया।इसके अलावा छोटी-छोटी कहानियों से इनको हमारे पुराण,गीता,महाभारत,रामायण आदि का ज्ञान कराया है।
  • आचार्य ने कहा कि जैसी गुरुदक्षिणा आज मुझे दी है,वैसी ही यदि हर एक शिष्य अपने आचार्य को देने लगे तो अज्ञान का अंधेरा संसार में कहीं भी नहीं ठहर सके।आचार्य ने उस शिष्य के सिर पर हाथ रखकर शुभ आशीर्वाद दिया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित की प्राचीन शिक्षण विधि (Ancient Teaching Method of Mathematics),गणित की प्राचीन भारतीय शिक्षण विधि (Ancient Indian Teaching Method of Mathematics) के बारे में बताया गया है।

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7.एक साथ गणित के दो-दो सवालों के हल (हास्य-व्यंग्य) (Solve Math Questions Simultaneously) (Humour-Satire):

  • पिताजी:संजय,तुम एक साथ गणित के दो-दो सवालों को हल क्यों कर रहे हो?
  • संजय:मुझे गणित अध्यापक जी ने डबल मेहनत करने के लिए कहा है।

8.गणित की प्राचीन शिक्षण विधि (Frequently Asked Questions Related to Ancient Teaching Method of Mathematics),गणित की प्राचीन भारतीय शिक्षण विधि (Ancient Indian Teaching Method of Mathematics) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.डाॅगमेटिक विधि में गणित कैसे पढ़ाई जाती है? (How is Mathematics Taught in the Dogmatic Method?):

उत्तर:इस विधि में गणित पढ़ाने की सूक्ष्म रूपरेखा अध्यापक का कड़ापन (Rigour) होता है।यह विधि मनोविज्ञान की विधि के बिल्कुल विपरीत होती है जहाँ पर शिक्षक बालकों की व्यक्तिगत योग्यता (ability) पर ध्यान नहीं देता है।इस विधि के अनुयायियों (followers) का मत है कि गणित पढ़ाने में विशेष ध्यान उसकी सत्यता (exactness) पर होना चाहिए।अध्यापक इस विधि में पर्याप्त मात्रा में सख्ती करके गणित पढ़ाते हैं।आधुनिक युग में इस विधि का प्रयोग गणित पढ़ाने में नहीं होता।

प्रश्न:2.गणित में कौनसी सहायक सामग्री काम में ली जा सकती है? (What Aids Can be Used in Mathematics?):

उत्तर:(1.)श्यामपट्ट व चाॅक (2.)प्रत्यक्ष वस्तु व मॉडल (3.)गणित संबंधी उपकरण (4.)चित्र,रेखाचित्र,चार्ट आदि (5.)गणित का संग्रहालय (6.)गणित परिषद (7.)गणित का पुस्तकालय (8.)गणित कक्ष (9.)सिनेमा फिल्म आदि।

प्रश्न:3.गणित में मौखिक कार्य में किस प्रकार के प्रश्नों का प्रयोग किया जाता है? (What Type of Questions are Used in Verbal Work in Mathematics?):

उत्तर:(1.)प्रत्यास्मरण (recall) (2.)तुलनात्मक (comparision) (3.)विपरीत (contrast) (4.)जाँच संबंधी (evaluation) (5.)कारण सम्बन्धी (cause) (6.)प्रभाव संबंधी (effect) (7.)उदाहरण (illustration) (8.)वर्गीकरण (classification) (9.)परिभाषा (definition) (10.)हल सम्बन्धी (proof) (11.)विश्लेषण (analysis) (12.)संश्लेषण (synthesis) (13.)प्रयोग (application)

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित की प्राचीन शिक्षण विधि (Ancient Teaching Method of Mathematics),गणित की प्राचीन भारतीय शिक्षण विधि (Ancient Indian Teaching Method of Mathematics) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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