Amazing and Beautiful Our World
1.अद्भुत और सुंदर हमारा संसार (Amazing and Beautiful Our World),संसार की कार्यप्रणाली अद्भुत (Working of World is Amazing):
- अद्भुत और सुंदर हमारा संसार (Amazing and Beautiful Our World) में एक से बढ़कर एक रहस्य भरे पड़े हैं।इसकी सुव्यवस्थित कार्यप्रणाली को देखकर आश्चर्य होता है।और इसके व्यवस्थापक की व्यवस्था देखते ही बनती है,कहीं कोई गड़बड़ और अव्यवस्था नहीं।
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2.संसार की व्यवस्था अनुशासित (The System of the World Disciplined):
- मूर्धन्य इस तथ्य को आदिकाल से ही मानते आए हैं कि यह समूचा विश्व-ब्रह्मांड,ग्रह-नक्षत्र,नदी-पर्वत,वृक्ष-वनस्पति एवं मनुष्य सहित समस्त प्राणी-समुदाय के क्रियाकलाप एक अदृश्य चेतन सत्ता से संचालित है और अनुशासनबद्ध है।संसार के दृश्यगोचर पदार्थ,ब्रह्मांडीय क्रियाकलाप कोई अपने आप मशीन की तरह नहीं चल रहे हैं,वरन वे एक शक्ति से संचालित हैं।सूर्य और चांद का निकलना,अस्त होना,मौसम-परिवर्तन आदि घटनाओं की सुनियोजितता आदि बतलाती है कि इन सब में एक नियमितता और अनुशासनबद्धता है।ये सभी एक लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं,जिनका दृष्टा,सृष्टा एवं संहारकर्त्ता अवश्य ही अदृश्य रूप में विद्यमान है।इसीलिए मनुष्य भी इन्हीं नियमों और अनुशासनों में आबद्ध है।जिस प्रकार सारी नदियां नियमपूर्वक समुद्र में जा मिलती हैं,उसी प्रकार जीवात्मा की परमात्मा में मिलने की श्रृंखला है,जो कर्मों के प्रतिफलों पर आधारित है।प्रत्येक जन्म में वह एक सीढ़ी आगे बढ़ता है और अंत में अपने परम लक्ष्य तक जा पहुंचता है।
- संसार की समस्त जड़-चेतन वस्तुएं और दृश्य पदार्थ कैसे इस पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए और किस प्रकार से उनका प्रभाव जाना गया,अब यह रहस्य का विषय नहीं रहा है।विज्ञान ने भी इसका रहस्य खोज निकाला है और बतलाया है कि ये सब साधन और व्यवस्थाएं,जो दृष्टिगोचर हो रही हैं,यह धीरे-धीरे निरंतर स्वाभाविक विकास का गतिक्रम है।हमारा यह संसार बहुत सुंदर,सुरुचिपूर्ण आश्चर्यों से भरा पड़ा है और यह निरंतर अबाध गति से किसी अदृश्य शक्ति से संचालित प्रगति की ओर निरंतर बढ़ता चला जा रहा है।विज्ञान एक प्रकार का विशिष्ट ज्ञान है,जो किसी विशेष ज्ञान की धारा का रहस्य खोलता है।यह भी सत्यान्वेषण का एक मार्ग है,जो सूक्ष्मतम गुत्थियों का निराकरण करता है।
- प्रख्यात वैज्ञानिक मनीषी प्रोफेसर रुडोल्फ ओटो,जो कि एक बड़े विचारक भी थे,उन्होंने टिमटिमाते हुए सुसज्जित तारों से भरे आसमान में जनसंख्या का घनत्व,नियमितता,अपनी-अपनी कक्षाओं में उनकी भ्रमणशीलता और प्रगतिशीलता को देखा और देखकर कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि इन सबके पीछे कोई दिव्य और महान शक्ति काम कर रही है।उनने भी उस कविहृदय के उद्गार की पुष्टि की,जिसमें कहा गया है-“उस सर्वशक्तिमान की कितनी सर्वश्रेष्ठ और महान कल्पना है,यह संसार।” निश्चित ही जब प्रकृति की अनुपम सौंदर्यता का अवलोकन करते हैं तो सृष्टिकर्त्ता के इस कृत्य में एक महान लक्ष्य परिलक्षित होता है।नियमितता,सौंदर्यता,विकासशीलता को ही संसार के समस्त जड़-चेतन प्राणियों में कार्यरत देखा जाता है।समूची प्रकृति उस परम चेतना का अभिव्यक्तिकरण है,जो सत्यम्,शिवम्,सुंदरम् से ओत-प्रोत है।मनोरम सौंदर्यबोध से उसकी अनुभूति होती है।मनुष्य को विलक्षण मस्तिष्क और अलौकिक शक्तियों से भरपूर अंतःकरण उसने इसलिए दिया है कि उसके माध्यम से वह उस कलाकार की सुंदर रचना की अनुभूति कर सके और जीवन का लक्ष्य निर्धारित करके उस ओर अग्रसर हो सके।
3.वैज्ञानिकों और मूर्द्धन्यों का मत (The opinion of scientists and cerebral):
- विकासवादी वैज्ञानिकों में चार्ल्स डार्विन का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है।उनने इन सबको विकासवाद की संज्ञा दी है।उनके अनुसार एक कोशिकीय अमीबा से परिष्कृत मनुष्य के रूप में सृष्टि का विकासक्रम चलता रहा है,पर विज्ञान की कसौटी पर यदि इसका परीक्षण किया जाए तो हो सकता है कि डार्विन इसमें सफल न हों,क्योंकि विज्ञान इस विकास के लक्ष्य को जानना चाहता है।इस संदर्भ में मूर्द्धन्य मनीषी फ्रांसिस मेशन ने विश्व-ब्रह्मांड की अभिकल्पना एवं उसके लक्ष्य का जो खाका बनाया है,वह अन्य विचारकों व विकासवादियों से भिन्न है।वे पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हैं,इसलिए विश्व-ब्रह्मांड संबंधी उनकी कल्पना अन्यान्य कवियों,साहित्यकारों,दार्शनिकों एवं समाजशास्त्रियों आदि से भिन्न है।उनका कहना है कि समस्त संसार का निर्माण इलेक्ट्रॉन,प्रोटॉन जैसे सूक्ष्म कणों के संयोग से मिलकर बना है।विश्व-ब्रह्मांड इन्हीं के निर्माण का प्रतिफल है।सभी पदार्थ इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन के अलावा कुछ नहीं हैं।यदि ये विद्युत परमाणु घटक बंद हो जाएं,तो अतिरिक्त मैटेरियल भी अदृश्य हो जाएगा।यद्यपि ये विद्युतकण शून्य में विलीन नहीं हो जाते,वरन विकिरण का रूप ले लेते हैं,फिर चाहे वे प्रकाश के रूप में दृष्टिगोचर हो अथवा विकिरण के रूप में।
- फ्रांसिज मेशन कहते हैं कि ये विद्युत अणु प्रोटॉन के चारों ओर घूमते हैं और शीघ्रता से चक्कर लगाते हैं।इससे एक विशेष शक्ति का उद्भव होता है।यही एक अद्भुत गणित ज्योतिष है,जो भगवदीय गणित-ज्योतिष से भिन्न है।सूर्य एक छोटा सा तारा है,किंतु यह लाखों वर्षों से फैलाव एवं विकिरण करता चला आ रहा है।इसका प्रभाव पृथ्वी सहित अन्य ग्रह-गोलकों पर पड़ता है,परंतु पृथ्वी पर सूर्य की ऊर्जा उत्सर्जित होने से नदी,पहाड़,पेड़-पौधे,हवा और वर्षा आदि पर बहुत प्रभाव पड़ता है।कहते हैं,पृथ्वी पर जीवन तभी से चला आ रहा है,इसलिए वे इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि सूर्य जैसे छोटे ग्रह से पृथ्वी के आध्यात्मिक और भौतिक क्रियाकलाप चलते हैं तो अन्य ग्रहपिंड,जो अगणित संख्या में हैं,उनका संचालन और व्यवस्थापन निश्चित ही किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया गया होगा।मेशन के अनुसार प्रकृति के अद्भुत दृश्यों को देखकर आश्चर्यचकित तो होना ही पड़ता है,पर सबसे बड़ा आश्चर्य मानव काय संरचना को देखकर होता है।शरीर में टिश्यूज अर्थात् जैवऊतक जीव में एक विशेष क्रिया करते हैं और अपने आप में सामंजस्य स्थापित करते हैं।जैसे कोई सर्जन जब शरीर की त्वचा को काटता है अथवा कोई काट-छाँट करता है तो शरीर के अंदर ही ऐसी व्यवस्था है कि वह शीघ्रतिशीघ्र ठीक हो सके।मात्र बाह्योपचार करने या दवा लगा देने भर से घाव या रोग दूर नहीं होते,वरन अंदर से इस प्रकार संरचना की गई है कि वह शरीर के विजातीय तत्त्वों को जल्दी से जल्दी बाहर निकाल दे और शरीर रोगमुक्त हो सके।
4.मनुष्य के क्रियाकलाप अचरजयुक्त (Man’s Activities Astonishing):
- मनुष्य के साथ ही साथ अन्य प्राणियों के उन आंतरिक अवयवों और क्रियाकलापों को देखकर और भी अधिक आश्चर्यचकित हो जाना पड़ता है कि कैसे और किस प्रकार का कार्य इतने वर्षों तक अबाधित रूप से चलता रहता है।जैसे हृदय,जो रक्त को साफ करता और पूरे शरीर में पंप करता रहता है।फेफड़े तथा गुर्दे एवं रक्त धमनियाँ,शिराएं,तंत्रिकातंत्र आदि मानवीय काया में कितनी उपयुक्त,मापक और सटीक है और उचित ढंग से कार्य करती है।इस जैसी अभी तक ऐसी कोई मशीन नहीं बन पाई।यह सब अवलोकन करने से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति की योजना में एक लक्ष्य है,उसका उद्देश्य है और वह बड़ी बुद्धिमत्तापूर्ण है।इसी तरह हवा में उड़ने वाले पक्षी,पृथ्वी पर रहने वाले जीव-जंतु,पानी में रहने वाले जलचर आदि अद्भुत क्षमताएं रखते हैं और एक दिशा,एक नियम और एक मर्यादा में बंधे दिखाई पड़ते हैं।उनमें अपने वातावरण और परिस्थितियों में समायोजित होने और अनुकूलन की विशिष्ट क्षमता होती है।इस तरह उड़ने वाले एक भुनगे से लेकर बड़े पक्षी तक छोटी सी मछली से लेकर बड़ी व्हेल तक,भ्रूण में रहने वाले शिशु से लेकर एक विद्वान तक ऐसी सृष्टि-संरचना है,जो अद्वितीय एवं अनुपम कही जा सकती है।
मनीषी फ्रांसिज मेशन का विश्वास है कि जिस प्रकार एक बैठक-कक्ष में सजावट,सुव्यवस्था और उचित वस्तुएं उचित स्थान पर रखी होती हैं और सुंदरता उत्पन्न करती हैं,उसी प्रकार विश्व-ब्रह्मांड में एक निश्चित लक्ष्य है और सृष्टिकर्त्ता ने नदी-पहाड़,वृक्ष-वनस्पतियां,सभी चेतन प्राणी और अचेतन पदार्थ इस तौर-तरीके से बनाए हुए हैं कि जिनको देखकर सबको आनंद आता है।इस सुव्यवस्था और सुंदरता के पीछे अवश्य ही दैवी विधान है और इसका एक महान लक्ष्य है।इस सृष्टि-संरचना का सृजेता इतना महान और विशाल है कि सामान्य व्यक्ति इस महान उद्देश्य को नहीं समझ सकता।
5.मृत्यु के समय भगवान की याद (Remembering God at the Time of Death):
- फ्रांस देश का एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक “लाप्लास” था जिसने जगदुत्पत्ति के संबंध में प्रचलित पाश्चात्य सिद्धांत “नैबुलर थिओरी” (Nebular Theory) का विवरण देते हुए एक पुस्तक लिखी थी जिसमें सूर्य चन्द्रादि नक्षत्रों की उत्पत्ति का विवरण अंकित था।पुस्तक के तैयार हो जाने पर उसकी एक प्रति (कॉपी) उसने महान सम्राट नेपोलियन को भेंट की।नेपोलियन ने पुस्तक को पढ़ा और लाप्लास से भेंट होने पर प्रश्न किया।प्रश्न यह था कि तुमने पुस्तक में जगत के रचयिता भगवान का क्यों कहीं वर्णन नहीं किया।लाप्लास नास्तिक था।उसने नास्तिकता पूर्ण उत्तर दिया।उत्तर यह था कि मुझे इस जगदुत्पत्ति का विचार करते हुए भगवान की कल्पना करने की कहीं आवश्यकता ही नहीं प्रतीत हुई।नेपोलियन उसका उत्तर सुनकर चुप हो गया।
- परंतु जब लाप्लास के मृत्यु का समय उपस्थित हुआ और उसको निश्चय हो गया कि अब कुछ क्षण में मृत्यु आकर उसके प्राण हरण करना चाहती है तो वह इतना भयभीत हो गया कि भय की अधिकता के कारण उसे कुछ भी सुधबुध नहीं रही।और अनायास उसके मुख से ये शब्द निकल पड़े “Love is greater than thousands of any mathematics” अर्थात् भगवान का प्रेम मेरी सहस्त्रों गणित से अच्छा है।यह भगवान का प्रेम उस समय स्मरण आया जब उसने समझ लिया कि अब मृत्यु उसका गला घोंटना चाहती है।कहने का तात्पर्य यह है कि यदि साधारण स्थिति के आदमी एक मृत्यु से भयभीत होते हैं तो दूसरी ओर लाप्लास जैसे विद्वानों को भी मृत्यु कम डरावनी नहीं लगती है और तब उन्हें सृष्टि के विधि-विधान और सृष्टि के संचालक की याद आती है।लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है क्योंकि तब जो करना चाहिए था वह किया जा सकता ही नहीं है।जीवन में
- सत्कर्म,कल्याण,परोपकार आदि करने का समय था उस समय को भोग-विलास,मौज-मस्ती,स्वार्थ सिद्ध करने,झूठ-पाखंड बोलने में,एक-दूसरे को नीचे दिखाने में,एक-दूसरे की टांग खींचने में,एक-दूसरे को नीचा गिराने में लगे रहते हैं।क्योंकि हम मोह,अज्ञान आदि विकारों से घिरे हुए रहते हैं और इन विकारों को ग्रस्त व्यक्ति को सृष्टि के सही उद्देश्य का,सृष्टि के विधि विधान का,सृष्टि के संचालक का ज्ञान नहीं रहता है और ज्ञान नहीं रहता है इसीलिए इस प्रकार के कुटिल षड्यंत्रों को करने में रस लेता है।ऐसे लोग वाममार्गी,चार्वाक दर्शन की थ्योरी को अपनाकर ‘खाओ पीओ और मौज करो,कोई कामनाएँ बाकी मत छोड़ो क्योंकि मरने पर यह शरीर भस्म हो जाएगा और फिर लौटकर आना नहीं है’ जीवन जीते हैं।
- यह सच है कि क्रियात्मक संसार में मृत्यु दुःखप्रद प्रतीत होती है पर विचारने के योग्य तो यही बात है कि मृत्यु के समय में होने वाले दुःख का कारण स्वयमेव मृत्यु है या और कोई कारण है जिसे हमने उपस्थित कर लिया है।
- ममता में दुःख होता है मृत्यु से नहीं-कारण का संकेत कुछ तो ऊपर कहा गया है कुछ उसे और स्पष्ट अब किया जाता है।जगत की प्रत्येक वस्तु भगवान की है और मनुष्य को प्रयोग के लिए मिली है।मनुष्य को जगत की समस्त वस्तुओं में केवल प्रयोगाधिकार है।ममता,मोह के वशीभूत होकर जब मनुष्य उन्हें अपना समझने लगता है तभी उसे कष्ट भोगना पड़ता है।
6.विद्यार्थियों का मुख्य कर्त्तव्य (The main duty of the students):
- विद्यार्थियों को यदि इस रहस्य को समझना है तो रुचिपूर्वक विद्या और ज्ञान अर्जित करना चाहिए,केवल जानकारी जुटाने,तथ्यों को याद कर लेने और बहुत बड़ा पद,जाॅब प्राप्त कर लेने से ही मूल लक्ष्य की सिद्धि नहीं हो सकती है।मूल लक्ष्य है प्रकृति के रहस्य को समझना,मनुष्य जीवन के उद्देश्य को समझना और अद्भुत रूप से इस विश्व को,प्रकृति को,मनुष्य को संचालित करने वाली शक्ति को जानना,पहचानना और उसकी उपासना करना ताकि आप उस अनंत शक्ति के कुछ स्वरूप को जान सके।
- सत्य (यथार्थ) को जानने के लिए विद्या का अभ्यास और उसकी उपासना करना जरूरी है।यह एक दिन में अभ्यास कर लेने से नहीं सधती है।व्यक्ति-व्यक्ति,विद्यार्थी-विद्यार्थी की अलग-अलग क्षमता होती है।किसी की साधना जल्दी फलित हो जाती है और किसी की साधना फलित होने में वर्षों लग जाते हैं,यहां तक की कई जन्म लग जाते हैं।आप इस संसार को संचालित करने वाली शक्ति को जान समझ लेंगे,अनुभव कर लेंगे तभी आप अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर पाएंगे अन्यथा धन-संपदा,पद-प्रतिष्ठा,साधन-सुविधाएं प्राप्त कर लेने मात्र से आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने से वंचित ही रहेंगे।आपको अपने अंदर एक रिक्तता,खालीपन,सूनापन नजर आएगा,आप सदा असंतुष्ट रहेंगे।
- यहां यह मंतव्य नहीं है कि विद्यार्थी को जाॅब प्राप्त करने की कला नहीं सीखनी चाहिए,साधन-सुविधाएँ जुटाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए,पद-प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं चाहिए।परंतु इन सब में विद्या को ही सबसे प्रमुख स्थान देना होगा।विद्या अर्जित करने पर आपको पद-प्रतिष्ठा,मान-सम्मान सब कुछ हासिल हो जाएगा।विद्या से ही ज्ञान और सत्य को उपलब्ध हुआ जा सकता है।यहाँ विद्या से तात्पर्य केवल भौतिक शिक्षा,तकनीकी शिक्षा से तात्पर्य नहीं है,ये तो अर्जित करनी ही चाहिए क्योंकि आजीविका,जाॅब प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है परंतु जिस ज्ञान से आप अपनी अनुभूति कर सकते हैं,जिस विद्या से आप इस संसार की सत्ता को जान-समझ सकते हैं,जिससे आप परम सत्ता की अनुभूति कर सकते हैं,वह है अध्यात्म विद्या,आध्यात्मिक ज्ञान,अध्यात्म।इसकी आपमें तड़प होगी तभी अनुभूति कर पाएंगे।
- उपर्युक्त आर्टिकल में अद्भुत और सुंदर हमारा संसार (Amazing and Beautiful Our World),संसार की कार्यप्रणाली अद्भुत (Working of World is Amazing) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:गणित में संसार के सात आश्चर्य
7.स्वप्न का संसार (हास्य-व्यंग्य) (World of Dreams) (Humour-Satire):
- नीरज (गणित शिक्षक से):सर कल मुझे स्वप्न में पूरा संसार गणितमय ही नजर आने लगा,चारों तरफ गणित ही गणित दिखाई देने लगी।
- गणित शिक्षक:पर इससे तुम्हें कुछ नुकसान तो नहीं हुआ न।
- नीरज:नुकसान तो हुआ न,मैंने डरकर नई-नई खरीदी हुई सारी पुस्तकें फाड़ डाली,अब वे पुस्तकें बिल्कुल भी पढ़ने लायक नहीं रही।
8.अद्भुत और सुंदर हमारा संसार (Frequently Asked Questions Related to Amazing and Beautiful Our World),संसार की कार्यप्रणाली अद्भुत (Working of World is Amazing) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.संसार क्या है? (What is the world?):
उत्तर:यह संसार एक सुंदर पुस्तक है;परंतु जो इसे पढ़ नहीं सकता उसके लिए व्यर्थ है।
प्रश्न:2.दुःखों का कारण क्या है? (What is the cause of suffering?):
उत्तर:मछली जैसे मांस को ही देखती है,उसके नीचे छिपे वंशी को नहीं,वैसे ही व्यक्ति संसार के बाह्य आकर्षणों को ही देखता है,उन बाह्य आकर्षणों विषयों में आसक्त होने के परिणामस्वरूप मिलने वाले दुखों को नहीं देख पाता है और दुःखी होता है।
प्रश्न:3.संसार में चित्त क्यों नहीं लगाना चाहिए? (Why should not the mind be applied to the world?):
उत्तर:संसार तथा संसार के सभी पदार्थ में आसक्ति रखने से व्यक्ति दुःखी होता है,ये सब नष्ट होने वाले हैं अतः उन्हें त्याग की भावना के साथ भोग करना चाहिए तथा इस संसार की मूल सत्ता में ही चित्त को लगाना चाहिए।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अद्भुत और सुंदर हमारा संसार (Amazing and Beautiful Our World),संसार की कार्यप्रणाली अद्भुत (Working of World is Amazing) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.