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Diagnosis Test in Mathematics Teaching

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1.गणित शिक्षण में नैदानिक परीक्षाएँ (Diagnosis Test in Mathematics Teaching),गणित में कमजोर छात्रों का नैदानिक परीक्षण (Diagnostic Test of Students with Weak in Mathematics):

  • गणित शिक्षण में नैदानिक परीक्षाएँ (Diagnosis Test in Mathematics Teaching) ऐसे बच्चों के लिए प्रयुक्त की जाती है जो या तो गणित में कमजोर है या गणित में बहुत प्रखर हैं।इसका उद्देश्य बच्चों को गणित का सही शिक्षण उपलब्ध कराना है।
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2.गणित शिक्षण में निदान का अर्थ (Meaning of Diagnostics in Mathematics Teaching):

  • निदान (Diagnosis) शब्द का प्रयोग आयुर्विज्ञान में (Medical Science) में किया जाता है।रोगी का उपचार करने से पूर्व उनके लक्षणों का अध्ययन कर निदान किया जाता है तथा यह निश्चित किया जाता है कि रोग किस प्रकार का है तथा इसका उपचार कैसे संभव है? रोगी का उपचार करने से पूर्व निदान आवश्यक है।यदि निदान करने में त्रुटियां हो गईं तो रोगी को ठीक करना कठिन होगा।आयुर्विज्ञान में निदान का अत्यंत महत्त्व है।सही निदान करने के लिए रोगी के लक्षणों का विस्तार से अध्ययन करना आवश्यक है।यदि लक्षणों के अध्ययन में असावधानी बरती गई तो उपचार का कार्य प्रभावी नहीं होगा।
  • गणित के अध्यापकों के लिए भी कक्षा में निदान एवं उपचार का कार्य आवश्यक है।इस विषय में बहुत छात्र कमजोर पाए जाते हैं तथा वे अनेक शब्दों (प्रत्ययों) एवं सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाते हैं।यदि अध्यापक विद्यार्थियों की कठिनाइयों और कमजोरियों का निदान कर लेता है तो वह उन्हें इस विषय को सीखने में सहायता दे सकता है।उचित निदान के पश्चात ही वह अध्यापन विधि को आवश्यकतानुसार समायोजित कर सकता है।
  • यहाँ पर यह विचार करना आवश्यक है कि छात्रों के गणित में कमजोर होने के क्या कारण है तथा इन कारणों की जानकारी किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है? हम जानते हैं की कक्षा में बालकों के शारीरिक,मानसिक एवं सामाजिक विकास एक समान नहीं होते।इसके अतिरिक्त कुछ विद्यार्थी अपनी शारीरिक एवं शैक्षिक सामर्थ्य में विशेष रूप से असाधारण होते हैं। ऐसे लक्षणों में वे उत्कृष्ट भी हो सकते हैं एवं निकृष्ट भी।गणित अध्यापक का कर्त्तव्य है कि प्रत्येक विद्यार्थी कक्षा में अध्यापन का पूरा लाभ उठाएं।कक्षा में ऐसे विद्यार्थी भी होते हैं जो अपनी आयु वाले सहपाठियों के साथ प्रगति नहीं कर सकते तथा इस विषय में पिछड़ जाते हैं।
  • कक्षा में पिछड़ने वाले छात्रों के कारण अध्यापक के कार्य में बाधा पहुंचती है तथा वह गणित विषय को उन छात्रों के लिए रुचिकर विषय बनाने में कठिनाइयाँ अनुभव करता है।नैदानिक परीक्षाओं द्वारा गणित में विद्यार्थियों का निदान किया जा सकता है।गणित में नैदानिक परीक्षाएं भी एक प्रकार की उपलब्धि परीक्षाएं ही हैं,किंतु नैदानिक परीक्षाओं का मुख्य उद्देश्य छात्रों की गणित संबंधी कठिनाइयों का निदान करना है जिससे कि उपचार किया जा सके।नैदानिक परीक्षा में विद्यार्थी को अंक प्रदान नहीं किए जाते,किंतु उसके उत्तरों को देखकर इस बात का अध्ययन किया जाता है कि छात्र ने किस प्रकार की त्रुटियां की है तथा इन त्रुटियों में कौनसी विशेष बातें हैं जो अध्यापक की जानकारी के लिए आवश्यक है।
  • नैदानिक परीक्षा तथा उपलब्धि परीक्षा में एक विशेष अंतर यह भी है कि उपलब्धि परीक्षा में संपूर्ण पाठ्यक्रम के बारे में प्रश्न होते हैं,किंतु नैदानिक परीक्षा में किसी उप-विषय के भिन्न-भिन्न खण्डों के लिए अलग-अलग परीक्षाओं का निर्माण किया जाता है।उदाहरणार्थ-गणित में यदि हमें प्रतिशत के बारे में नैदानिक परीक्षा का निर्माण करना हो तो हम प्रतिशत की विषय-सामग्री को भिन्न-भिन्न खण्डों में बाँट कर नैदानिक परीक्षा का निर्माण करेंगे तथा प्रत्येक खंड को संबंधित प्रत्ययों,प्रक्रियाओं,संबंधों,गणनाओं आदि पर प्रश्नों को सम्मिलित करेंगे और इस बात का अध्ययन करेंगे कि छात्र इन क्षेत्रों में किस प्रकार त्रुटियां करते हैं।’प्रतिशत’ की विषय-सामग्री को हम आवश्यकतानुसार निम्न खण्डों में बाँटकर निदान के लिए प्रश्नों का निर्माण करेंगे:
  • (1.)प्रतिशत का अर्थ।प्रतिशत का जीवन में व्यावहारिक उपयोग।
  • (2.)प्रतिशतों को दशमलव भिन्नों में तथा साधारण भिन्नों को प्रतिशतों में बदलना।
  • (3.)प्रतिशतों को साधारण भिन्नों में तथा साधारण भिन्नों को प्रतिशत में बदलना।
  • (4.)किसी संख्या का निश्चित प्रतिशत ज्ञात करना।
  • (5.)प्रतिशत को लेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित करना।
  • गणित की नैदानिक परीक्षाओं में छात्रों की गणना संबंधी अशुद्धियों का भी अध्ययन करना आवश्यक है,क्योंकि अधिकांश छात्र दशमलव की गणना संबंधी तथा इकाइयों संबंधी त्रुटियां करते हैं।यदि छात्रों की गणना संबंधी त्रुटियों का उपचार नहीं किया जाता है तो वे समस्याओं के सही हल नहीं ज्ञात कर सकेंगे।अध्यापक को नैदानिक परीक्षाओं के द्वारा छात्रों की कठिनाइयों एवं कमजोरियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए और अग्रिम पाठ की पाठ्यवस्तु को कक्षा में पढ़ाने के पूर्व आवश्यक उपचार करना चाहिए।

3.गणित में नैदानिक परीक्षा (Diagnostic examination in mathematics):

  • किसी नैदानिक परीक्षा में पूरी पाठ्य-सामग्री में से प्रश्न नहीं देने चाहिए।नैदानिक परीक्षा में किसी उप-विषय के कठिन पक्षों को ध्यान में रखते हुए प्रश्नों का निर्माण किया जाए।विषयवस्तु के किसी एक विशेष पक्ष को ही ध्यान में रखकर निदान करना अधिक लाभदायक होता है।अध्यापकों को चाहिए कि वे भिन्न-भिन्न उप विषयों के लिए भिन्न-भिन्न नैदानिक परीक्षाएं बनाएं।इन नैदानिक परीक्षाओं का उपयोग आवश्यकतानुसार किया जाए। नैदानिक परीक्षाओं द्वारा अध्यापक को निम्न प्रकार की जानकारी मिलती हैः
  • (1.)छात्र किस तरह की त्रुटियां करते हैं?
  • (2.)इन त्रुटियों को किन-किन स्थितियों में करते हैं?
  • (3.)इन त्रुटियों के करने के क्या कारण है?
  • (4.)इन त्रुटियों का अन्य त्रुटियों से क्या कोई संबंध है?
  • (5.)इन त्रुटियों का विस्तार कितना है? कौनसी त्रुटियां बार-बार हो रही हैं?
  • (6.)ऐसी कौन-सी त्रुटियां हैं जिनका सामूहिक स्तर पर उपचार आवश्यक है?
  • (7.)ऐसी कौन-सी त्रुटियां हैं जिनका व्यक्तिगत स्तर पर उपचार आवश्यक है?
  • (8.)इन त्रुटियों का विषय-सामग्री को सीखने पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  • अध्यापक को नैदानिक परीक्षाओं का निर्माण करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:
  • (1.)अध्यापक को छात्रों की पारिवारिक परिस्थितियों एवं व्यक्तिगत विशेषताओं की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए जिससे वह यह ज्ञात कर सके कि इनका छात्रों की प्रगति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  • (2.)अध्यापक स्वयं नैदानिक परीक्षाओं का निर्माण करे।
  • (3.)प्रत्येक उप-विषय की विषयवस्तु के कठिनाई के स्तर को ध्यान में रखकर नैदानिक परीक्षा का निर्माण किया जाए।यदि आवश्यक हो तो एक उप-विषय पर एक से अधिक नैदानिक परीक्षाओं का निर्माण किया जाए।
  • (4.)कक्षा में उप-विषय पढ़ाते समय संबंधित विषयवस्तु के कठिन स्थलों को भलीभाँति स्पष्ट किया जाए।
  • (5.)प्रभावी अध्यापन के लिए किसी भी प्रकार की ढील नहीं बरती जाए।प्रत्ययों को स्पष्ट करने के लिए सब उपयुक्त साधनों का प्रयोग किया जाए।
  • (6.)नैदानिक परीक्षा में दिए गए छात्रों के उत्तरों का सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाए तथा उनकी त्रुटियों के प्रकार एवं विस्तार को नोट किया जाए।
  • (7.)त्रुटियों के उपचार के लिए योजना तैयार कर कक्षा में अध्यापन किया जाए।
  • (8.)नैदानिक परीक्षा बनाते समय छात्रों द्वारा की गई त्रुटियों का उपयोग करना चाहिए।
  • (9.)अध्यापक को प्रत्येक उप-विषय की कठिन विषय-सामग्री पर नैदानिक परीक्षाएँ तैयार करनी चाहिए।
  • (10.)उपचारात्मक अध्यापन के पश्चात यदि उपयुक्त लगे तो नैदानिक परीक्षा का फिर से प्रयोग किया जाए।
  • (11.)नवीन उप-विषय पढ़ाने के पूर्व नैदानिक परीक्षा का प्रयोग किया जा सकता है।प्रत्येक पाठ की तैयारी हेतु नैदानिक उपचार का ध्यान आवश्यक है।
  • अब हम अंकगणित की कुछ विख्यात परीक्षाओं का संक्षेप में वर्णन करेंगे जिससे पाठकों को यह ज्ञात हो सकेगा कि नैदानिक परीक्षाओं में प्रश्न किस प्रकार से कठिनाई के क्रम में रखे जाते हैं और उनसे विद्यार्थियों की विभिन्न प्रकार की त्रुटियों के संबंध में किस प्रकार सूचना प्राप्त की जा सकती है।

4.अंकगणित में मौलिक प्रक्रियाओं के लिए बुसवेल-जॉन डायग्नोस्टिक टेस्ट (Buswell-John Diagnostic Test for Fundamental Processes in Arithmetic):

  • यह एक व्यक्तिगत परीक्षा है जिसकी सहायता से अध्यापक यह ज्ञात कर सकता है कि विद्यार्थी अंकगणित में किस प्रकार की त्रुटियां करते हैं।इस परीक्षा में दो खंड हैंःप(1.)प्यूपिल्स वर्कशीट (Pupil’s Worksheet),तथा (2.)टीचर्स डायग्नोस्टिक चार्ट (Teacher’s Diagnostic Chart)।प्यूपिल्स वर्कशीट में जोड़,बाकी,गुणा,भाग संबंधी अनेक समस्याएं लिखी होती है जिन्हें विद्यार्थी हल करता है।जिस समय विद्यार्थी प्रश्नों को हल करता है उसे अपने विचारों को बोलकर प्रकट करने को कहा जाता है जिससे अध्यापक यह समझ सके कि छात्र ने कहाँ त्रुटि की है,किस प्रकार की त्रुटि की है तथा क्यों की हैं? जिस समय विद्यार्थी अपने वर्कशीट में कार्य करता है,अध्यापक विद्यार्थी के बोलने से सोचने संबंधी त्रुटि को डायग्नोस्टिक चार्ट में लिखता जाता है।
    अध्यापक को इस बात का विस्तार से अध्ययन करना चाहिए कि किसी उप-विषय में छात्रों की त्रुटियों के क्या कारण है तथा उनका विषयवस्तु से क्या संबंध है।
  • उदाहरण:वर्गमूल संबंधी त्रुटियों के कारण छात्र वर्गमूल संबंधी निम्न प्रकार की त्रुटियाँ करते हैंः
  • (1.)छात्र वर्ग का अर्थ नहीं जानते हैं।
  • (2.)छात्र वर्गमूल का अर्थ नहीं जानते हैं।
  • (3.)छात्र वर्ग तथा वर्गमूल का ज्यामितीय अर्थ नहीं समझते हैं।
  • (4.)छात्र उन संख्याओं को नहीं पहचानते जिनका वर्गमूल ज्ञात किया जा सकता है।
  • (5.)छात्र दी गई संख्या का वर्ग,उसी संख्या को उससे गुणा कर ज्ञात नहीं कर पाते हैं।
  • (6.)छात्र गुणनखंड द्वारा वर्गमूल ज्ञात नहीं कर पाते हैं।
  • (7.)छात्र यह नहीं जानते हैं कि जिन संख्याओं में इकाई के स्थान पर 3 या 7 होते हैं,उनका वर्गमूल पूर्ण संख्या में ज्ञात नहीं किया जा सकता है।
  • (8.)छात्र ऋणात्मक संख्याओं का वर्ग लिखते समय ऋणात्मक चिन्ह लगाते हैं।
  • (9.)छात्र नहीं जानते कि 1 प्रत्येक संख्या का गुणनखंड होता है।
  • (10.)छात्र ऐसी संख्याओं के वर्ग या वर्गमूल ज्ञात करते समय त्रुटियाँ करते हैं जिनमें इकाई के स्थान पर शून्य होता है।
  • (11.)छात्र भिन्नों के वर्गमूल ज्ञात करने में त्रुटियां करते हैं।
  • (12.)छात्र दशमलव संख्याओं के वर्गमूल तथा वर्ग लिखते समय त्रुटियाँ करते हैं।
  • (13.)छात्र वर्गमूल की संकल्पना का प्रयोग बीजगणित तथा ज्यामिति में नहीं कर पाते।छात्र वर्ग बनाकर वर्गमूल को स्पष्ट नहीं करते हैं।
  • (14.)छात्र वर्गमूल में दिए गए शून्यों का महत्त्व वर्गमूल में नहीं समझते।
  • (15.)छात्र भाग की क्रिया द्वारा वर्गमूल ज्ञात करते समय त्रुटियाँ करते हैं।
  • (16.)वर्गमूल के चिन्ह को सही प्रकार व्यक्त नहीं करते तथा वर्गमूल निकालते समय ठीक प्रकार व्यक्त नहीं कर पाते हैं।
  • (17.)छात्र वर्गमूल तथा वर्ग के ज्यामितीय प्रत्ययों का सही प्रयोग नहीं करते हैं।
  • उपर्युक्त त्रुटियों की जानकारी नैदानिक परीक्षाओं द्वारा की जा सकती है तथा इनकी जानकारी के पश्चात ही उपचार की योजना तैयार की जानी चाहिए।यह आवश्यक नहीं है कि निदान के लिए विशेष रूप से मुद्रित नैदानिक प्रश्न-पत्र को ही काम में लिया जाए।अनुभवी अध्यापक नैदानिक परीक्षाओं का स्वयं निर्माण कर सकता है तथा अपने साथी विषय-अध्यापकों के परामर्श से उनमें सुधार कर सकता है।परंतु यह स्पष्ट है कि जब तक अध्यापक व्यक्तिगत त्रुटियों को ठीक करने को तत्पर नहीं होगा तब तक नैदानिक परीक्षाओं का सार्थक उपयोग संभव नहीं माना जा सकता।

5.निदान प्रक्रिया (Diagnostic Process):

  • शैक्षणिक निदान की प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण पद निम्न पांच है:

(1.)निदान के लिए उपयुक्त छात्रों का चयन (Selection of Students Who Need Diagnosis):

  • सर्वप्रथम उन छात्रों की खोज की जाती है जो विद्यालय में समायोजन कर पाने में कठिनाई का अनुभव कर रहे होते हैं।ये वे छात्र है जो किसी एक अथवा अधिक विषयों में कमजोर होते हैं तथा स्कूल की कुछ अन्य क्रियाओं में ठीक से समायोजन नहीं कर पाते हैं।ऐसे बालकों का पता लगाने के लिए अग्रलिखित विधियों का प्रयोग किया जा सकता हैः
  • (1.)विद्यालय में हुई विभिन्न परीक्षाओं के आधार पर भी ऐसे छात्रों का चयन किया जा सकता है।
  • (2.)ऐसे छात्रों के चयन में साक्षात्कार प्रविधि काफी हद तक सहायक सिद्ध हो सकती है।
  • (3.)ऐसे छात्र भी होते हैं जिनकी बुद्धिलब्धि (I.Q.) काफी ऊंची होने पर भी निष्पादन (Achievement) बहुत ही निम्न स्तर का होता है तथा ऐसे छात्र भी मिलते हैं जो कक्षा में तो प्रथम आते हैं लेकिन समाज में समायोजन स्थापित नहीं कर पाते।ऐसे छात्रों का बड़ी सावधानी से चयन करना चाहिए।
  • (4.)प्रत्येक छात्र को अपनी कमजोरी एवं प्रायः उसके कारण भी ज्ञात होते हैं अतः ऐसे बालकों को जिन्हें निदान की आवश्यकता हो,स्वयं ही अध्यापक के सम्मुख आना चाहिए।
  • (5.)जिन छात्रों की उपलब्धि (Achievement) असंतोजनक हो उन्हें साफल्य परीक्षा (Achievement Test) तथा बुद्धि परीक्षाएँ (Intelligence) देकर छाँट लिया जाए।

(2.)छात्रों की कठिनाई स्थलों की खोज करना (Exploring Students’ Difficulty Spots):

  • इस तथ्य की जानकारी प्राप्त करने के लिए कि किसी विषय को सीखने के लिए बालक किस प्रकार की कठिनाइयों का अनुभव कर रहा है,नैदानिक (Disgnostic) तथा निष्पादन (Achievement) (अध्यापक निर्मित या प्रमाणीकृत) परीक्षाओं से सहायता ली जा सकती है लेकिन इस कार्य के लिए सबसे उत्तम यंत्र नैदानिक परीक्षाएं ही हैं जो बालक की कमजोरियों एवं क्षमताओं का सही चित्र हमारे सम्मुख प्रस्तुत करती है।यद्यपि नैदानिक परीक्षा का क्षेत्र संकुचित और सीमित होता है,फिर भी,जिस ढंग से सीमित तथा संकुचित क्षेत्र का परीक्षण ये परीक्षाएँ करती हैं,वह ढंग विलक्षण है।परीक्षा का नैदानिक महत्त्व उसको प्रयोग करने वाले अध्यापक पर अधिक निर्भर करता है,परीक्षा के स्वरूप पर कम।कभी-कभी तो अनौपचारिक परीक्षाएं भी इस क्षेत्र में अधिक सहायक सिद्ध होती है।

(3.)कठिनाई कारणों का विश्लेषण (Analysis of Difficult Point):

  • कोई बालक एक विशेष प्रकार की गलती क्यों लगातार कर रहा है यह जानना बड़ा कठिन है,क्योंकि प्रत्येक बच्चे का मस्तिष्क विलक्षण ढंग से कार्य करता है।बालक की विषयगत कमजोरी तथा कठिनाई के कारणों का पता लगाया जाता है।अध्यापक इन कारणों को शारीरिक दोषों,संवेगों की अस्थिरता,अरुचि,बुरी आदतों,सामान्य एवं विशिष्ट बुद्धि का अभाव,विद्यालयीकारणों (उचित शिक्षण का अभाव,अध्यापक एवं सहपाठियों का दुर्व्यवहार,परीक्षा में बार-बार विफलता,अध्यापक द्वारा छात्र में व्यक्तिगत रुचि न लेना,पक्षपातपूर्ण रवैया,कठोर अनुशासन आदि) घरेलू कारणों (मां-बाप एवं संबंधियों का दुर्व्यवहार,पढ़ाई के लिए उचित साधनों एवं वातावरण का अभाव,निर्धनता,घरेलू कार्यों में व्यस्तता आदि) आदि में ढूंढने का प्रयास करता है।कभी-कभी वह इन कारणों का अंदाजा अपने अनुमान या अनुभव के आधार पर या समक्ष भेंट के आधार पर भी लगाता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित शिक्षण में नैदानिक परीक्षाएँ (Diagnosis Test in Mathematics Teaching),गणित में कमजोर छात्रों का नैदानिक परीक्षण (Diagnostic Test of Students with Weak in Mathematics) के बारे में बताया गया है।

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6.विद्यार्थी का निदान (हास्य-व्यंग्य) (Diagnosis of Student) (Humour-Satire):

  • समझ में नहीं आता तुमने गणित सवालों में इतनी छोटी-छोटी गलतियां कैसे की? तुम्हारा निदान और उपचार कैसे किया जाए?
  • विद्यार्थी:मैडम यह गलती मैंने नहीं की,मम्मी और डैडी ने की है।उन्होंने मुझे सवालों के जो उत्तर बताए हैं वही मैंने उत्तर पुस्तिका में लिखा है।इसलिए निदान और उपचार भी मम्मी और पापा का ही किया जाना चाहिए,मेरा नहीं।

7.गणित शिक्षण में नैदानिक परीक्षाएँ (Frequently Asked Questions Related to Diagnosis Test in Mathematics Teaching),गणित में कमजोर छात्रों का नैदानिक परीक्षण (Diagnostic Test of Students with Weak in Mathematics) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.निदानात्मक परीक्षण का अर्थ स्पष्ट कीजिए। (Explain the meaning of diagnostic test):

उत्तर:वह प्रक्रिया जिसमें अध्यापक छात्र की विभिन्न कमजोरियों का पता लगाने का प्रयास करता है,निदान कहलाती है।

प्रश्न:2.निदानात्मक परीक्षण के चार उद्देश्य लिखिए। (Write the four objectives of the diagnostic test):

उत्तरः(1.)गणित में उपलब्धि की कमी का पता लगाना।
(2.)छात्रों का वर्गीकरण करना।
(3.)अध्यापक की स्वयं के अध्यापन का मूल्यांकन करने में सहायक होना।
(4.)विशिष्ट गुणों का मूल्यांकन करना।

प्रश्न:3.निदानात्मक परीक्षण की कोई दो विशेषताएं लिखिए। (Write any two features of a diagnostic test):

उत्तर:(1.) ये परीक्षण बालक की योग्यता का मापन नहीं करते बल्कि विषय संबंधी कमजोरी का निदान करके उसके उपचार को व्यवस्थित करते हैं।
(2.)इनका संबंध स्कूल में पढ़ाए जाने वाले विषयों से ही है।विशेष रूप से बेसिक विषयों से,जैसे:जोड़,गुणा,भाग,बाकी आदि।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित शिक्षण में नैदानिक परीक्षाएँ (Diagnosis Test in Mathematics Teaching),गणित में कमजोर छात्रों का नैदानिक परीक्षण (Diagnostic Test of Students with Weak in Mathematics) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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