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Why Should Students Express Gratitude?

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1.छात्र-छात्राएं कृतज्ञता क्यों व्यक्त करें? (Why Should Students Express Gratitude?),गणित के छात्र-छात्राएं कृतज्ञता क्यों व्यक्त करें? (Why Should Mathematics Students Express Gratitude?):

  • छात्र-छात्राएं कृतज्ञता क्यों व्यक्त करें? (Why Should Students Express Gratitude?) यह जानने से पूर्व कृतज्ञता से क्या तात्पर्य है यह जानना जरूरी है।कोई छात्र-छात्रा,शिक्षक,माता-पिता,भाई-बहन अथवा अन्य कोई व्यक्ति हमारा सहयोग करता है,हमें भलाई की ओर अग्रसर करता है,हमारा उपकार करता है,किसी विपत्ति से बाहर निकालने में मदद,सहयोग करता है,बिना किसी शर्त या मांग के नेकी करता है,सहायता,सहयोग व मार्गदर्शन करता है तो उनका एहसान मानना,उसके लिए धन्यवाद देना,अहोभाव की अभिव्यक्ति करना कृतज्ञता व्यक्त करना है।
  • उदाहरणार्थ भगवान ने हमें निःशुल्क सूर्य का प्रकाश,हवा,पानी उपलब्ध कराया है तथा रक्त संचालन,श्वास-प्रश्वास को भी स्वचालित करके हमारे ऊपर उपकार किया है।इन सबके कारण हम जीवित हैं अतः भगवान् के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना हमारा फर्ज है,कर्तव्य है,हमारा धर्म है।
  • हमें जीवन में जितनी साधन-सुविधाएं मिली हैं,सहयोग व सहायता मिलता रहता है उसकी पूर्ति अपने सत्कर्मों से संसार में करते रहें यही परमात्मा तथा लोगों के प्रति सच्ची कृतज्ञता है।जैसे वर्षा के जल को नदियाँ समुद्र में पहुंचा देती है जहां से पानी आया था इसी प्रकार कृतज्ञ मनुष्य जहाँ से लाभ प्राप्त करता है उसी लाभ को भला करके पहुंचा देता है।
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2.छात्र-छात्राएं कृतज्ञता अपनाएं (Students Should Be Grateful):

  • हर छात्र छात्रा उन्नति,तरक्की और विकास करने की चाहत रखता है।हर छात्र छात्रा को प्रगति व उत्थान प्रिय लगती है और वे अपने जीवन को समुन्नत करना चाहते हैं।यदि हम प्रत्येक छात्र-छात्रा के हृदय को खोल-खोलकर देखें तो पाएंगे कि उनकी अधिकांश क्रियाएं सफलता,प्रगति और विकास के लिए ही होती है।अपने जीवन को उन्नत करने हेतु छात्र-छात्राएं जाने व अनजाने कई क्रियाविधि करते रहते हैं भले ही कई क्रियाविधि ऐसी करते हैं जिनसे उनका जीवन उन्नत नहीं होता है।जैसे मनोरंजन करना,सुख-सुविधाओं का उपयोग करना,गपशप करना,सैर-सपाटे पर जाना,स्वादिष्ट भोजन करना इत्यादि।
  • हालांकि इन कार्यों से कुछ उन्नति तो होती है परंतु वह अस्थायी होती है और कुछ समय बाद छात्र-छात्राएं उन्नति करने की भाग-दौड़ करने लग जाते हैं।हम सारा जीवन उन्नति करने में लगा देते हैं परंतु फिर भी वास्तविक उन्नति नहीं प्राप्त कर पाते हैं।
  • यदि हम विद्या ग्रहण करने और अध्ययन के तौर-तरीके अपनाएं तो वास्तविक व सार्थक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।हमें जीवन में उन्नति व विकास के लिए आवश्यक परिस्थिति और साधन-सुविधाएं मिली हुई है उनका महत्त्व नहीं समझते हैं और जो नहीं है उसके लिए रोते-पीटते हैं,शिकायतें करते रहते हैं।फलस्वरूप हमारा ध्यान उसका उपयोग करने की तरफ जाता ही नहीं है जो कुछ हमें मिला हुआ है।
  • हमारा अधिकतर समय उन बातों के बारे में चिंतन करने में नष्ट होता रहता है जो हमारे पास उपलब्ध नहीं है।जब हम उपलब्ध साधनों व समय का सदुपयोग नहीं करते हैं तो जो कुछ उनके आधार पर कर सकते थे उससे वंचित रह जाते हैं।हमारा ज्यादातर समय दूसरे व्यक्तियों व भगवान् पर दोषारोपण करने में व्यतीत हो जाता है।तात्पर्य यह है कि हम कृतज्ञ होने के बजाय कृतघ्न हो जाते हैं और इस कृतघ्नता की वजह से वर्तमान अवसरों की उपेक्षा कर देते हैं।
  • कृतज्ञता हमें विनम्र बनाती है जबकि कृतघ्नता हमें अहंकारी बनाती हैं।विद्या ग्रहण करने और अध्ययन करने के लिए विनम्र होना आवश्यक है।जब छात्र-छात्रा कृतज्ञ होता है तो जो कुछ उपलब्ध है उसी से लाभ उठाता है।जैसे गणित की संदर्भ पुस्तक नहीं है तो वह गणित की पाठ्यपुस्तक से सवालों व समस्याओं को हल करता है।यदि पाठ्यपुस्तक नहीं है तो मित्रों से सहयोग लेकर ही सवाल व समस्याओं को हल करता है।विद्यालय में गणित का शिक्षक नहीं है तो मित्रों,पाठ्यपुस्तक व सन्दर्भ पुस्तकों की मदद से ही सवाल व समस्याओं को हल करता है।
  • कृतघ्न छात्र-छात्रा अहंकारी होता है वह उपलब्ध साधनों व अवसरों की उपेक्षा करता है।न वह खुद का भला कर सकता है और न दूसरों का भला कर सकता है।न वह स्वयं को स्वीकार करता है और न दूसरों को अपना बना पाता है।जबकि कृतज्ञ छात्र-छात्राओं के बहुत से मित्र बन जाते हैं।उसकी सहायता करने के लिए अन्य छात्र-छात्राएं व शिक्षक तथा अन्य लोग तत्पर रहते हैं।वह स्वयं भी दूसरों की सहायता-सहयोग करने के लिए हमेशा तैयार रहता है।

3.कृतज्ञता अपनाने के तरीके (Ways to Adopt Gratitude):

  • यदि आप किसी की सहायता बिना लोभ-लालच और निःस्वार्थ भाव से करते हैं तो वही लौटकर हजार गुना हमें वापस मिलता है।कृतज्ञता उसी के जीवन में रच बस जाती है जो छात्र-छात्रा और व्यक्ति सकारात्मक भाव रखता है।सकारात्मकता का यह अर्थ नहीं है कि जो कुछ हो वह बढ़िया हो बल्कि जो कुछ हो गया है उसे स्वीकार करना सकारात्मकता है।
  • हमेशा भगवान् तथा लोगों के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए क्योंकि सुखी रहने का यही रहस्य है।कृतघ्नता से अहंकार पैदा होता है और अहंकारी व्यक्ति अपने समान किसी को कुछ नहीं समझता है बल्कि सबको अपने से छोटा और हीन समझता है।
  • अहंकारी व्यक्ति दूसरों से सहायता-सहयोग नहीं प्राप्त कर सकता है और न दूसरे लोग उसकी सहायता-सहयोग करने के लिए तत्पर रहते हैं।अहंकारी दूसरों से मधुर व अच्छे संबंध नहीं बना पाता है जबकि कृतज्ञ व्यक्ति के सबसे मधुर संबंध होते हैं।
  • कोई भी सफलता,उन्नति व विकास हुआ है उसका श्रेय स्वयं न लेकर भगवान् तथा दूसरों को देना चाहिए।यह सही भी है क्योंकि किसी सफलता व उन्नति में कई लोगों का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष सहायता-सहयोग होता है।जैसे शिक्षक आपको अध्ययन कराता है,आपकी समस्याओं व सवालों को समझाता है,हल करता है।माता-पिता आपके विद्यालय की फीस,पुस्तकों व नोटबुक,कपड़ों व भोजन,आवास तथा अन्य सुविधाओं की पूर्ति करते हैं।मित्र भी किसी न किसी रूप में आपका सहयोग-सहायता करते हैं।
  • महापुरुषों,गणितज्ञों व वैज्ञानिकों के जीवन से प्रेरणा ग्रहण करें।उन्होंने किसी भी महान् कार्य का श्रेय स्वयं नहीं लिया है।वे हर परिस्थिति में अविचल रहे।कठिन व प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए भगवान् पर दोषारोपण नहीं करते रहे।
    जीवन के हर क्षण का सदुपयोग करें,अध्ययन-मनन व चिंतन करें और आपके भाग्योदय का यही सही तरीका है इससे आपके जीवन में कृतज्ञता का भाव आएगा।
  • अपनी महत्वाकांक्षाओं को सात्त्विक रखें और विवेक से उनको वश में रखें।क्योंकि जीवन में अनंत आकांक्षाएं मन में उत्पन्न होती हैं जिनका पूरा होना संभव नहीं है।परंतु जो आकांक्षाएं पूरी हो जाए उनके लिए भगवान के प्रति कृतज्ञ रहें अन्यथा जीवन में दुःख,पीड़ा और वेदना के सिवा कुछ नहीं मिलेगा।
  • इस संसार में असंख्य छात्र-छात्राएं और व्यक्ति हैं जिनसे हमारी कोई जानकारी नहीं है परंतु उनके प्रति किसी प्रकार की कोई शिकवा-शिकायत नहीं है।अतः हमारे अपने जिनसे हमारा कुछ न कुछ कम या अधिक संबंध है उनसे थोड़ा (अल्प) भी मिल जाता है उनके प्रति शिकवा-शिकायत न करें बल्कि उनका उपकार मानें।उन्होंने क्या नहीं किया यह सोचना निरर्थक है? इसके बजाय यह सोचे कि जो कुछ भी उन्होंने किया है हो सकता है बहुत कष्ट सहकर हमारे लिए कुछ किया है।उनके लिए केवल हमारी सहायता करने का प्रश्न ही नहीं था बल्कि अन्य लोगों की सहायता-सहयोग का प्रश्न भी था।

4.कृतज्ञता अपनाने के लिए मुख्य बातें (Key Things to adopt Gratitude):

  • (1.)जो अपना स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर अपने मित्रों के कार्य को पूरा करने की परवाह नहीं करते उन कृतघ्न पुरुषों को इस संसार में कोई याद नहीं करता है।
  • (2.)यदि कोई छात्र-छात्रा गणित में अथवा अन्य विषय में पढ़ने में कमजोर है और आप मेधावी हैं उस समय आप द्वारा उनकी सहायता करना कितना महत्त्वपूर्ण है इसे कमजोर छात्र-छात्राओं का हृदय ही जानता है।
  • (3.)जरूरतमंदों को थोड़ी सी सहायता भी उससे बढ़कर है जिसकी बिना जरूरतवाले की सहायता बहुत अधिक की जाती है।
  • (4.)विपत्ति,कठिनाई,असहाय की स्थिति में जिसने आपकी मदद की है उसका उपकार मत भूलो।उपकार को भूल जाना कृतघ्नता है।उपकार को सदैव स्मरण रखना चाहिए और उपकारी का ऋण सहायता-सहयोग देकर उतारना चाहिए।
  • (5.)कृतज्ञता मित्रता को स्थायित्व प्रदान करती है और नए मित्र बनाती है अंग्रेजी में कहावत है कि “Gratitude is the memory of the heart” अर्थात् कृतज्ञता निर्मल हृदय की स्मृति है।
  • (6.)वाकई में अध्ययन करने वाला विद्यार्थी अध्ययन तथा सभी कार्य भगवान को अर्पण करके करता है और हमेशा कृतज्ञता की भावना से भरा रहता है।इससे उसमें विनम्रता आती है और शुभ कर्म करने की इच्छा पैदा होती है और अशुभ कर्म करने की इच्छा नहीं होती है।ऐसे विद्यार्थी के मन में सदा खुशी,उत्साह,उमंग और सद्भावना बनी रहती है।उसमें अहंकार नहीं रहता है,छल-कपट की भावना नहीं रहती है और हिंसा की भावना नहीं रहती है,वैर और हिंसा की भावना नहीं रहती और इसका परिणाम यह होता है कि वह मन से निर्विकार रहता है।
  • (7.)जो विद्यार्थी अपने अध्ययन कार्य को समर्पण भाव,पूजा समझकर,साधना समझकर करता है तो यही भावना उसे भगवान् के प्रति कृतज्ञता से युक्त कर देती है,ऐसा करना ही भगवान् के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है।
  • (8.)अपने अध्ययन कार्य के प्रति हमेशा सचेष्ट रहना,स्मरण रखना और अध्ययन का बार-बार अभ्यास करना,एकाग्र मन से अध्ययन करना,सच्चे हृदय से अध्ययन करना भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है।
  • (9.)वस्तुतः आधुनिक युग में विद्या का स्वरूप बदलकर शिक्षा का स्वरूप धारण कर चुका है।शिक्षा चारित्रिक गुणों का विकास और कृतज्ञता अपनाने का माध्यम नहीं है बल्कि आज की शिक्षा का अर्थ केवल जाॅब प्राप्त करने से लिया जाता है।शिक्षा प्राप्त करने के लिए सद्गुणों को धारण करना जरूरी नहीं है।अब वाकई में शिक्षा का संबंध पहले जैसी विद्या से तथा ज्ञान से रहा ही नहीं है तो छात्र-छात्राएं माता-पिता,शिक्षकों,समाज,वरिष्ठजनों और भगवान् के प्रति कृतज्ञ क्यों होंगे?
  • (10.)विद्या ग्रहण करने का पात्र वही होता है जिसका मन निर्मल,निष्कपट हो,ब्रह्मचर्य का पालन करता हो तथा जो आलसी,अकर्मण्य व निकम्मा न हो।

5.कृतज्ञता का दृष्टान्त (The Parable of Gratitude):

  • एक विद्यार्थी के पिता का बचपन में ही देहान्त हो गया था।उस विद्यार्थी के पालन-पोषण और शिक्षा का भार मां को वहन करना पड़ा।परिवार सीमित नहीं था परंतु माँ ने हिम्मत नहीं हारी।अपनी मेहनत और पुरुषार्थ के बल पर बच्चों का पालन-पोषण किया।उसके बच्चों में एक बच्चा मेघावी था।उसकी शिक्षा का भार माँ के कंधों पर आ गया।उसने जैसे-तैसे करके उसे पढ़ाया-लिखाया।हायर सेकेंडरी गणित विषय से उत्तीर्ण कर लिया।
  • गांव में उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज (महाविद्यालय) नहीं था अतः उस विद्यार्थी ने कहा कि माँ मुझे बस कॉलेज में दाखिला दिला दो,उसके बाद मैं स्वयं कुछ करूंगा।मां ने जैसे-तैसे उसको कॉलेज में एडमिशन दिला दिया।उस विद्यार्थी ने गणित से उच्च शिक्षा प्राप्त कर ली।माँ ने अपना कर्त्तव्य पूरा कर दिया और अब बेटे द्वारा मां के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की बारी थी।
  • बेटे की शिक्षा अभी अधूरी थी क्योंकि आजकल की शिक्षा में जाॅब प्राप्त करने के योग्य ही सिखाया-पढ़ाया जाता है।अतः उसने स्वयं ही कठोर तप (पुरुषार्थ) और संघर्ष किया।संघर्ष से उसके अंदर की बुराइयां दूर होती गई।इसके पश्चात माँ का ऋण उतारने के बारे में विचार-चिंतन किया।उसने महसूस किया कि गांव में शिक्षा का अभाव है इसलिए उसने शिक्षा का केंद्र खोला।धीरे-धीरे गांव के छात्र-छात्राएं उसके पास पढ़ने के लिए आने लगे।वह छात्र-छात्राओं को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ विद्या तथा अध्यात्म के गुर भी सीखाता था।
  • उसके शिक्षा संस्थान में छात्र-छात्राओं की काफी संख्या रहती थी।धीरे-धीरे उस शिक्षा संस्थान की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैलती गई।दूर-दूर के गांवों के छात्र-छात्राएं उससे पढ़ने के लिए आने लग गए।
  • उसे ऐसी धुन सवार हुई कि बच्चों को पढ़ाते समय उसको कुछ भी भान नहीं रहता था।वह शिक्षा संस्थान में जी तोड़ मेहनत करता था।
  • मां के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का उसको यही एक लक्ष्य नजर आया।उसकी तप और साधना से माँ अभिभूत हो गई।
  • एक दिन माँ ने कहा कि तुम्हारे मुख पर तेज दमक रहा है।बेटे ने माँ से कहा कि यह सब आपकी कृपा का फल है।बेटे के विनम्रतापूर्ण वचनों को सुनकर माँ आत्मविभोर होकर बोली:पुत्र तुमने मन को एकाग्र तो कर लिया है और उस पर संयम करने में भी सफल हुए हो।लेकिन भूलना मत मन की एकाग्रता और संयम एक बार के प्रयास से सदा के लिए नहीं हो जाती है।उसे बनाए रखने के लिए सतत अभ्यास और वैराग्य (बुराईयों से छुटकारा) की आवश्यकता होती है।मेरा विश्वास है उस लक्ष्य को हमेशा ध्यान रखोगे।पुत्र ने कृतज्ञता भरी दृष्टि से माँ की ओर देखा और बोला माँ आपके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का यही सबसे सुन्दर तरीका है।माँ ने पुत्र को आशीर्वाद दिया और अपने मेधावी पुत्र को लक्ष्य पर डटे रहने की अनुमति प्रदान की।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं कृतज्ञता क्यों व्यक्त करें? (Why Should Students Express Gratitude?),गणित के छात्र-छात्राएं कृतज्ञता क्यों व्यक्त करें? (Why Should Mathematics Students Express Gratitude?) के बारे में बताया गया है।

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6.सहशिक्षा में साथ बैठने की मनाई (हास्य-व्यंग्य) (Prohibition of Sitting Together in Co-education) (Humour-Satire):

  • गर्लफ्रेंड ने बॉयफ्रेंड से कहा:सुना है सहशिक्षा में बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड को साथ-साथ नहीं बैठने देते हैं।
    बॉयफ्रेंड:इसीलिए तो उसे विद्यालय कहते हैं।विद्यालय कोई रोमांस क्लब या फिल्म हॉल नहीं है जहाँ आजकल के लड़की-लड़के उटपटांग हरकतें करते रहते हैं।

7.छात्र-छात्राएं कृतज्ञता क्यों व्यक्त करें? (Frequently Asked Questions Related to Why Should Students Express Gratitude?),गणित के छात्र-छात्राएं कृतज्ञता क्यों व्यक्त करें? (Why Should Mathematics Students Express Gratitude?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.दूसरों से कुछ मिलने का क्या नजरिया होना चाहिए? (What Should Be the Attitude of Meeting Others?):

उत्तर:दूसरों से मिलने,प्राप्त होने के दो नजरिए हैं।पहला यह नजरिया हैं कि जितना मिलना चाहिए उतना नहीं मिला,जितना दूसरा दे सकता था उतना नहीं दिया गया।ऐसी दृष्टि दूसरों की उदारता नहीं बल्कि कंजूसी का संकेत करती है।ऐसी दशा में असंतोष बढ़ता है।दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार दूसरों ने मुझे जो कुछ दिया है वह मेरी योग्यता से अधिक मिला है।हमारा उस पर कोई ऋण और दबाव नहीं था ऐसी दशा में दूसरों की दया,उदारता,प्रेम के प्रति कृतज्ञता व्यक्त होती है।यदि दूसरे लोग न चाहते तो नहीं भी देते तब हम क्या कर सकते थे,ऐसा सोचकर मन को संतोष मिलता है।अतः दूसरे वाले दृष्टिकोण से ही हमें सोचना चाहिए तथा प्रथम दृष्टिकोण को त्याग देना चाहिए।

प्रश्न:2.हमें किनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए? (To Whom Should We Be Grateful?):

उत्तर:हमें माता-पिता,गुरुजनों,शिक्षकों,मित्रों,जिनसे भी सहायता-सहयोग मिलता है उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।जो लोग किसी न किसी प्रकार निःस्वार्थ भाव से मदद करते हैं,हमारे प्रयोजन को पूरा करने में सहयोगी हैं उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।यहां तक कि जो हमारे पूर्वज हैं गणितज्ञ,वैज्ञानिक,महापुरुष जिन्होंने अपने पराक्रम-पुरुषार्थ से हमारे लिए ज्ञान का संचय हमें सभ्य बनाने,सुसंस्कृत बनाने में योगदान दिया है उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है इसी प्रकार अकेला व्यक्ति पढ़ने-लिखने,चिन्तन-मनन करने,सोचने-विचारने,शिक्षा ग्रहण करने,व्यावहारिक ज्ञान,कला,कौशल इत्यादि का कार्य नहीं कर सकता है।

प्रश्न:3.हमें सबसे अधिक किसके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए? (To whom Should We Be Most Grateful?):

उत्तर:सबसे अधिक माता-पिता और गुरु व शिक्षक के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।माता-पिता स्वयं कष्ट सहकर भी निःस्वार्थ भाव से हमारा पालन-पोषण करते हैं,हमें बोलना-चलना तथा बातचीत करने के तौर-तरीके सिखाते हैं।उनका ऋण किसी भी हाल में नहीं चुकाया जा सकता है।गुरु व शिक्षक हमें अनगढ़ से सुगढ़ बनाते हैं।शिक्षित करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखते हैं।उनकी आत्मीयता और समर्पण का मूल्य नहीं चुकाया जा सकता है।भाई-बहन कितना प्यार और विश्वास प्रदान करते हैं इनके प्रति हमें हमेशा कृतज्ञ रहना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं कृतज्ञता क्यों व्यक्त करें? (Why Should Students Express Gratitude?),गणित के छात्र-छात्राएं कृतज्ञता क्यों व्यक्त करें? (Why Should Mathematics Students Express Gratitude?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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