8 Ways to Removing Thought of Weakness
1.दुर्बलता के विचार हटाने के 8 उपाय (8 Ways to Removing Thought of Weakness),दुर्बलता का विचार घातक कैसे है? (How is Idea of Infirmity Fatal?):
- दुर्बलता के विचार हटाने के 8 उपाय (8 Ways to Removing Thought of Weakness) के द्वारा आप अपनी दुर्बलता की पहचान कर सकेंगे और इसे हटा सकेंगे।यह दुर्बलता मानसिक भी हो सकती है और शारीरिक भी।इसमें शारीरिक दुर्बलता इतनी दुःखदायी नहीं होती जितनी की मानसिक दुर्बलता होती है।
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2.दुर्बलता के विचार का परिचय (Introduction to the idea of weakness):
- आशा के कितने ही लहलहाते खेतों के लिए दुर्बलता तथा निम्नता का काल्पनिक संकेत प्रचंड वायु और तूफान सिद्ध हुआ है।कितने ही बहुमूल्य जीवन-मात्र इस अनुभव के कारण नष्ट-भ्रष्ट हो गए।माता-पिता अथवा शिक्षक द्वारा छात्र-छात्रा को हर समय बुद्धिहीन और मूर्ख कहने से अंत में जो हानि होती है,उसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता।यदि विद्यार्थी को बार-बार यह कहा जाए कि तुम तो निरे बुद्धू हो,मूर्ख हो,तुम सदा गलतियां करते रहते हो,तुम्हारा कोई काम ठीक नहीं होता,तुम कभी भी कुछ नहीं बन सकते…….. तो यह सब विद्यार्थी के कोमल तथा सरल हृदय एवं मस्तिष्क पर इस प्रकार छा जाता है कि युवा होने पर भी उस चिन्ह को मिटाना अत्यंत दुष्कर हो जाता है फलस्वरूप वह भारी क्षति का कारण सिद्ध होता है।
3.विद्यार्थी को अनावश्यक ताने न दें (Don’t taunt the student unnecessarily):
- क्या विद्यार्थी की बुद्धिहीनता और मूर्खता का कारण जानते हैं? प्रायः इसका कारण विद्यार्थी का भय,लज्जा और संकोच होता है।विद्यार्थी में अपने विचारों की निर्भीक अभिव्यक्ति और साहस नहीं होता।उसे अपना विचार प्रकट करते हुए अज्ञात भय अनुभव होता है।वह समझता है कि उसके माता-पिता तथा अध्यापकों का ज्ञान और अनुभव उसकी योग्यता तथा समझ से बढ़कर है।वह डर जाता है और अपने मन में कहता है कि इसमें संदेह नहीं कि वह मुझसे अधिक शिक्षित और अनुभवी है।वे मुझे मूर्ख तथा अज्ञानी कहने में कदाचित न्यायपूर्ण हों,फिर मैं वास्तव में मूर्ख तथा अज्ञानी ही हूं।जब उसे इस बात का अनुभव होता है कि वह वास्तव में मूर्ख है तो वह हताश हो जाता है।उसका सुकुमार कोमल हृदय टूक-टूक हो जाता है,फिर बाद में चाहे कितना ही प्रयत्न क्यों न किया जाए,कुछ बनाए नहीं बनता।
- एक ऐसा विद्यार्थी था,जो बड़े अद्भुत कार्य कर सकता था किंतु उसका जीवन केवल इस कारण से नष्ट हो गया कि जब वह बच्चा था तो बहुधा उसके कानों में यही आवाज पड़ती थी कि तुम मूढ़ हो,निरक्षर हो,अज्ञानी हो।उसके बाद में जब कभी उसे सार्वजनिक अथवा निजी रूप से किसी दायित्व का पद सौंपा जाता है तो उसकी दुर्बलता का जो चित्र उसके मानस पटल पर अंकित था,सामने घूम जाता और उसके विश्वास को धक्का लगता,आत्मविश्वास को ठेस पहुंचती और वह अनुभव करने लगता कि मुझ में वह योग्यता नहीं है,जिसकी मेरे दूसरे साथियों में बहुलता है।मेरी प्रकृति में कुछ कमी है,कमजोरी है।इस प्रकार वह बड़े घाटे में रहता और हानि उठाता।कर्मभूमि में वह कभी अपने पौरुष के साथ नहीं आया और इस प्रकार अपने जीवन का श्रेष्ठतम भाग उसने गंवा दिया।
- यदि उसके माता-पिता तथा शिक्षक बचपन में यह समझ लेते कि यह बालक भीरु तथा लजीला है,इसके मस्तिष्क में किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं,संभव है इसकी प्रगति की गतिमंद हो तो उसका परिणाम यह होता कि उसका जीवन बिल्कुल ही बदल जाता।वह आजीवन डरपोक तथा लज्जाशील रहने की अपेक्षा साहसी तथा पराक्रमी होता।इसके अतिरिक्त दुर्बलता और निम्नता का अनुभव और भी अनेक कठिनाइयों तथा विपत्तियों के लिए उत्तरदायी होता है।
4.चापलूसी कभी न करें (Never be flattered):
- हमारे देश में हजारों-लाखों मनुष्य ऐसे हैं जिनके मन में यह विचार घर कर लेता है कि हमारे कारखानों या कार्यालयों के अफसरों और उनमें बहुत अंतर है।वे उच्चवर्ग से संबंध रखते हैं और हम निकृष्ट संस्था के सदस्य हैं।इसी प्रकार वे अपने आत्मविश्वास,आत्मसम्मान,साहस,उत्साह,स्थिरता तथा सफलता की अन्य समस्त शक्तियों को भारी क्षति पहुंचाते हैं।इस प्रकार के व्यक्ति हर स्थान पर चाटुकारिता करते,शीश रगड़ते और तलवे चाटते दिखाई पड़ते हैं।वे सर्वदा यही कहा करते हैं-हां-हां साहब! जी,हुजूर ने ठीक कहा।सर,आपका कथन सर्वथा सत्य व उचित है।जब उनका कोई अधिकारी उनसे कोई वस्तु मांगता है तो वह मांग चाहे कितनी ही हास्यास्पद एवं अनुचित क्यों ना हो,उन लोगों के व्यवहार से प्रकट होता है कि उनके पास कोई अधिकार है ही नहीं,और यदि है तो वे अपने स्वामी अथवा अधिकारी से अस्थायी रूप से लिए हुए हैं।
- माना कि आप निर्धन हैं,दरिद्र हैं और आपका मालिक लखपति है,तब भी आपको परमात्मा की इस पृथ्वी पर रहने का उतना ही अधिकार है,जितना आपके मालिक को।यदि आपके संकल्प उच्च तथा महान् हैं और यथाशक्ति प्रयत्न भी करते हैं तो आपको भय किस बात का? आपको अपना सिर ऊंचा रखना चाहिए और मालिक तथा दुनिया वालों से आंखों-से-आंखें मिलाने में किसी प्रकार का संकोच अनुभव नहीं करना चाहिए।
- संसार आपको वही समझता है जो आप स्वयं को समझते हैं-यदि आप अपने आपको बहुत निम्न तथा साधारण योग्यतावाला व्यक्ति समझते हैं तो आप हेय और निम्न ही रहेंगे।यदि आप स्वयं अपना आदर नहीं करते तो आपके चेहरे और आपकी बातों से आपके विचार तथा अनुभूतियाँ प्रकट होंगी।आपकी निर्बलता और विवशता पुकार-पुकार कर कहेगी कि आप अपने संबंध में बहुत बुरी राय रखते हैं।आपकी सफलता तो संदिग्ध हो ही जाएगी,किंतु यह स्मरण रहे कि संसार आपको वही कुछ समझेगा,जो आप खुद अपने मन में समझ बैठे हैं।
5.विद्यार्थी में निर्बलता का कारण (Causes of Weakness in Student):
- विद्यार्थी में निर्बलता का कारण है,अपनी योग्यता,क्षमता,सामर्थ्य में अविश्वास होना।अपनी सामर्थ्य में यह अविश्वास नकारात्मकता से और बढ़ता जाता है।विद्यार्थी सोचता है कि मैं यह पाठ स्मरण नहीं कर सकता हूं,मैं होशियार नहीं हूं,मुझमें बुद्धि और दिमाग नहीं है।ऐसी अनेक कुकल्पनाएं करके वह अपनी क्षमता को नुकसान पहुंचाता रहता है।उसकी क्षमता का ह्रास होने लगता है।हर विद्यार्थी या व्यक्ति असीम सामर्थ्य,योग्यता और गुणों को लेकर जन्म लेता है परंतु वे सुप्त रहती हैं।अपने गुणों और प्रतिभा को जगाना पड़ता है और जगाने के लिए अपने आप को तपाना पड़ता है,साधना करनी पड़ती है तब कहीं जाकर एक-एक गुण धीरे-धीरे विकसित होता है और उसकी प्रतिभा में निखार आ जाता है।
- परंतु हम किसी भी कार्य को करने से पहले ही हथियार डाल दें कि मुझसे यह कार्य नहीं होगा तो सचमुच वैसा ही होता है।यदि आप ठान लेते हैं कि मुझमें इतनी सामर्थ्य नहीं है तब भी मैं इसे करूंगा और भगवान मेरा साथ देगा तो ऐसा विद्यार्थी अपनी सामर्थ्य और योग्यता से भी ज्यादा कुछ करके दिखाता है,ऊंची छलांग लगाता है।
- दूसरा कारण है निकम्मों,असहायों और बुजदिल विद्यार्थियों या लोगों के साथ रहना और उनके सुझाव के अनुसार कार्य करना।विद्यार्थी के सामने अनेक संकट,विपत्ति और समस्याएँ आती हैं और उन सभी का समाधान नहीं जानता है।अतः ऐसे बुजदिल और नाकाबिल विद्यार्थियों से जब वह सलाह लेता है तो वे उसकी रही-सही (बची हुई) हिम्मत को भी तोड़ देते हैं।ऐसे विद्यार्थी या लोग सुझाव देते हैं कि तुममें इतनी सामर्थ्य नहीं है कि तुम इंजीनियर,डॉक्टर आदि बन सको।अच्छे-अच्छे लोगों,विद्यार्थियों,प्रतिभावनों का ही उनमें चयन नहीं हो पाता है।मेरी मानो तो तुम ऐसे अधिकारी बनने का ख्वाब छोड़ दो।इस प्रकार ऐसे विद्यार्थियों और लोगों के साथ-संगत और सुझावों के कारण उसमें निर्बलता आ जाती है।जब तक विद्यार्थी ऐसे विद्यार्थियों और लोगों का साथ-संगत नहीं छोड़ता है और उनसे सुझाव लेना बंद नहीं करता है तब तक उसकी निर्बलता दूर नहीं हो सकती है क्योंकि ऐसे लोग किसी को ऊंचे उठने नहीं देते हैं।
- तीसरा कारण है माता-पिता,भाई-बहन,संबंधियों अथवा शिक्षकों द्वारा हतोत्साहित करना,ऐसी टीका-टिप्पणी करना जो विद्यार्थी की मानसिकता को दुर्बल कर देती है यथा तुम तो फिसड्डी हो,तुम्हारे पढ़ने की वश की बात नहीं है,उस विद्यार्थी को देखो वह कितना होशियार है,आज्ञाकारी है,सुसंस्कारी है और एक तुम बिल्कुल नालायक हो,किसी काम के नहीं हो,ना तो घर का काम करते हो और ना पढ़ाई-लिखाई करते हो (दूसरों से तुलना करना)।इस प्रकार विद्यार्थी को प्रेरित करना तो दूर रहा इसके विपरीत नेगेटिव सजेशन देना,दूसरों से तुलना करके कमतर बताने से विद्यार्थी में निर्बलता के विचार मस्तिष्क में दृढ़ हो जाते हैं।
- माता-पिता,शुभचिन्तकों और शिक्षकों का दायित्व है कि विद्यार्थी को प्रेरित करना,समस्याओं का समाधान करने के उपाय बताना,विद्यार्थी का हौसला बढ़ाना।हर विद्यार्थी अपने जन्म के साथ-साथ अलग-अलग सुप्त गुणों को लेकर जन्म लेता है।इसी कारण किसी विद्यार्थी को थोड़े से प्रयास से सफलता मिल जाती है और किसी विद्यार्थी को बहुत अधिक पुरुषार्थ करने पर सफलता मिलती है।यह पुरुषार्थ और भाग्य का खेल है परंतु विद्यार्थी के हाथ में पुरुषार्थ करना है अतः पुरुषार्थ करने में कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए।संघर्ष से घबराना और हतोत्साहित बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए।कुछ विद्यार्थियों में जन्मजात निर्बलता भी होती है।
6.विद्यार्थी निर्भय बनें (Students should be fearless):
- भय उन्नति में एक बहुत बड़ा बाधक तत्व है,भय से निर्बलता पैदा होती है।भय वास्तविक कम होकर कल्पित अधिक होता है।आसन्न संकट की कल्पना प्रायः भय का भाव उत्पन्न कर देती है।परीक्षा में कठिन प्रश्न-पत्र की कल्पना तथा असफल हो जाने की आशंका से विद्यार्थी भयभीत हो जाता है।वैसे परिस्थितियों के परिवर्तन होने पर न मालूम वहां क्या होगा,कैसे कटेगी आदि विचार भय का भाव उत्पन्न कर देता है।आपदा की भावना या दुःख के कारण के साक्षात्कार से जो एक प्रकार का आवेगपूर्ण अथवा मनोविकार होता है,उसी को भय कहते हैं।क्रोध दुःख के कारण पर प्रभाव डालने के बहुत आकुल करता है और भय इसकी पहुंच से बाहर होने के लिए,भय के लिए कारण का निर्दिष्ट होना जरूरी नहीं; इतना भर मालूम होना चाहिए कि दुःख या हानि पहुँचेगी।
- दुःख का स्पष्ट कारण ज्ञात या उपस्थित होने पर भय उत्पन्न होना समझ में आता है,परंतु अकारण हर अवसर पर भयभीत बना रहना उचित नहीं रहता है।ऐसी स्थिति में व्यक्ति कुछ भी नहीं कर सकता है,वह भय के मारे हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहना चाहता है।अतएव भय जब स्वभावगत हो जाता है तब कायरता या भीरुता कहलाता है।परीक्षा भवन में कठिन प्रश्न-पत्र को सामने देखकर असफल होने का भय सताने लगे,यह बात तो समझ में आने वाली है,परंतु उसके पहले से ही असफलता के भय द्वारा ग्रसित हो जाना उचित नहीं कहा जा सकता है।भीरुता के संयोजक अवयवों में क्लेश सहने की आवश्यकता और अपनी शक्ति का अविश्वास प्रधान रहता है।इसका तात्पर्य यह है कि भीरु स्वभाव वाले व्यक्ति का आत्मविश्वास विदा हो जाता है।आत्मविश्वास के अभाव में क्या कोई कार्य संपन्न कर सकता है अथवा परीक्षा में उत्तीर्ण हो सकता है।यह एक ऐसा विषय है जिस पर पूरी गंभीरता के साथ विचार किया जाना चाहिए।महान कार्यों के लिए पहली जरूरत आत्मविश्वास है।जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है वह शक्तिमान होकर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है।
7.निर्भय होने पर निर्बलता से मुक्ति (Freedom from Weakness by Being Fearless):
- मन में भय का भाव उपस्थित रहने पर क्या हम और आप कोई कार्य कर सकेंगे? भय से ग्रसित विद्यार्थी ना तो स्कूल जा सकेगा और जॉब पर लग जाएगा तो कार्यालय नहीं जा सकेगा।ऐसे विद्यार्थियों की कार्य क्षमता बहुत ही सीमित होती है तथा ये विद्यार्थी प्रायः पराश्रित हो जाते हैं।ऐसे विद्यार्थियों से समाज क्या आशा कर सकता है? हर काम में भय की कल्पना करने वाले विद्यार्थियों के बारे में यही कहा जा सकता है कि वे बेवकूफी के अन्य सब कामों में भय की कल्पना करते हैं।
- दूसरी ओर विद्यार्थियों का ऐसा वर्ग होता है जो किसी काम को करते हुए भय की बात नहीं करता है।ये मृत्यु से भी भयभीत नहीं होते हैं,जबकि मृत्यु का भय शाश्वत है और उससे सब लोग भय करते हैं।हम स्वयं देख सकते हैं दुनिया के बड़े-बड़े काम उन्हीं लोगों द्वारा संपन्न हो सके हैं जिन्हें किसी बात का भी,मृत्यु का भी,भय नहीं सताता है।यह संसार निर्भीक व्यक्तियों के बल पर चलता है,कायरों के बूते पर नहीं।कायर सोचता है मैं क्यों जान आफत में डालूँ,कोई ना कोई इस काम को कर ही देगा।निर्भीक व्यक्ति सोचता है कि जब इस कार्य को किसी के द्वारा होना ही है,तब इस काम को मैं ही क्यों न संपन्न कर डालूं? इस वर्ग के विद्यार्थियों के मस्तिष्क में दुर्बलता के विचार आते ही नहीं।दुर्बलता के विचार को अस्वीकार करने वाला विद्यार्थी नए एवं चुनौती भरे काम को करने के लिए लालायित रहता है,जबकि कायर विद्यार्थी इस प्रकार के काम पर जाने से जी चुराता है।भय से दुर्बलता के विचार पैदा होते हैं और दुर्बलता के विचार से भय उत्पन्न होता है।
- भय हमारा बहुत बड़ा शत्रु है,हमको अनेक प्रकार के भय सताते रहते हैं:परीक्षा में फेल हो जाने का भय,शिक्षक द्वारा कोई सवाल पूछे जाने पर न आने का भय,माता-पिता या शिक्षक द्वारा डांटने का भय,अधिकार छिन जाने का भय,नौकरी छिन जाने का भय,समाज का भय,भगवान का भय आदि।गंभीरतापूर्वक विचार करने पर हमारे सामने यह तथ्य उभरकर आता है कि हमें सर्वाधिक भय स्वयं अपने से लगता है,क्योंकि भय के कारण ही हमें अंधेरे में बल खायी रस्सी सर्प नजर आता है।जिस छात्र-छात्रा के मन में भय की जड़े इतनी गहरी जम रही हों,वह जीवन में क्या कर सकेगा/सकेगी? मन में व्याप्त भय उसको हर जगह,हर घड़ी सताता रहेगा।
- वे ही विद्यार्थी समाज के घटक कहे जा सकते हैं जो अंदर-अंदर एक दूसरे से डरते नहीं,जहां डर आया,वहाँ द्वेष आ ही गया।जहां द्वेष आया वहाँ आत्मीयता टूट गई।इसलिए हमें चाहिए कि हम दूसरों से डरे नहीं और अपना बर्ताव ऐसा रखें कि जिससे दूसरों के मन में डर पैदा होने का कोई कारण ना रहे।निर्भीक होने के पहलू हैं:(1.) हमारे दिल में कोई डर ना हो और (2.)हमारे कारण औरों के दिल में डर पैदा ना हो।
- विद्यार्थी कभी भी कठिन परिश्रम करने से ना डरें,कष्ट से ना डरें,धन नाश से न डरें,अकेले पड़ने से ना डरें,निरपराध होने पर भी न्यायालय दंडित करे तो ना डरें या सामाजिक निंदा सहन करनी पड़े,तो उससे ना डरें और मृत्यु से भी ना डरें।यही है निर्भीक होने का स्वरूप।
- विद्यार्थी अध्ययन करें या जॉब करें निर्बलता का विचार त्यागना ही होगा।यदि एक बार आपने निर्बलता के विचारों को मस्तिष्क में प्रश्रय दे दिया तो फिर कोई भी गुण टिक नहीं पाएगा।यदि आप शरीर से ताकतवर हैं तो मानसिक रूप से भी ताकतवर बनना होगा अन्यथा शारीरिक ताकत आपके लिए उपयोगी नहीं रहेगी।कोई भी बंदर घुड़की देगा और आप भाग खड़े होंगे।अध्ययन करेंगे तो दूसरे रास्ते से पढ़ा हुआ निकल जाएगा (भूल जाएंगे)।अपने आप पर यह आत्मविश्वास होगा ही नहीं कि आप कुछ श्रेष्ठ कार्य कर सकते हैं।अध्ययन को श्रेष्ठ तरीके से अंजाम दे सकते हैं।
- यदि आप जॉब कर रहे हैं तो टेक्नोलॉजी की तकनीक नहीं सीख पाएंगे।ट्रेनिंग लेंगे तो समझ में ही नहीं आएगा कि आपको क्या सिखाया जा रहा है।अफसर आपकी लचर कार्य प्रणाली देखकर धमकी दे देगा कि आपकी छँटनी कर दी जाएगी,आपकी ऑफिस से छुट्टी कर दी जाएगी।आप कितनी ही जी हुजूरी करें,कितनी ही चापलूसी करें,पर यह तरकीब काम नहीं आने वाली है।आज के जमाने में नई तकनीक,कौशल न केवल सीखना जरूरी है बल्कि इसमें पारंगत होना भी जरूरी है।यदि आपको कहीं भी अपनी क्रेडिबिलिटी बनानी है तो चापलूसी जैसे हथकंडों से काम चलने वाला नहीं है।आपका जीवन दूभर हो जाएगा।एक बार आपको जॉब मिल भी गया तो वहां अपनी जगह कायम करने के लिए अपना हुनर दिखाना ही होगा।एक बार आपकी दुर्बलता,आपके दुर्बलता के विचार अफसर ने पहचान लिए तो जॉब मार्केट में आपकी वैसी ही इमेज बन जाएगी।आपको जॉब देने के लिए कोई भी तैयार नहीं होगा।आप ज्योंही नयी,दूसरी कंपनी में जाएंगे तो आपके पहुंचने से पहले ही आपकी इमेज,आपकी साख वहाँ पहुंच जाएगी।दुर्बलता के विचारों को त्यागने के लिए आपको ऐसे अच्छे (कठिन) कार्य करने होंगे जिनको करने से आपको डर लगता है।धीरे-धीरे जब काम में सफलता मिलती जाएगी तो आपके अंदर आत्मविश्वास पैदा होगा।मनोबल गिराने वाले लोगों की संगति न करें।अपने आंतरिक गुणों को विकसित करें।
- उपर्युक्त आर्टिकल में दुर्बलता के विचार हटाने के 8 उपाय (8 Ways to Removing Thought of Weakness),दुर्बलता का विचार घातक कैसे है? (How is Idea of Infirmity Fatal?) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:छात्र-छात्राएं विचारों का संयम कैसे करें?
8.छात्र में दुर्बलता का विचार (हास्य-व्यंग्य) (Idea of Weakness) (Humour-Satire):
- जगन (अपने दोस्त दुर्गा शंकर से):क्या तुम लगातार कई प्रतियोगिता परीक्षाएं दे सकते हो?
- दुर्गाशंकर:हां,कई नहीं बल्कि अनेक प्रतियोगिता परीक्षाएं दे सकता हूं।
जगन:कैसे? - दुर्गाशंकर:क्योंकि मैं किसी भी परीक्षा की तैयारी नहीं कर सकता,फेल हो जाऊंगा और बार-बार परीक्षा देता रहूंगा।
9.दुर्बलता के विचार हटाने के 8 उपाय (Frequently Asked Questions Related to 8 Ways to Removing Thought of Weakness),दुर्बलता का विचार घातक कैसे है? (How is Idea of Infirmity Fatal?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.दुर्बल व्यक्ति का क्या स्वभाव होता है? (What is the nature of a weak person?):
उत्तर:दुर्बल तथा अज्ञानी लोग ही हमेशा सबसे अधिक नुक्ताचीनी किया करते हैं।सारी दुर्जनता दुर्बलता है।
प्रश्न:2.मानव स्वभाव की दुर्बलता क्या है? (What is the weakness of human nature?):
उत्तर:विलासिता,भोग-विलास की ओर आकर्षण और तपस्या की ओर से विरक्ति का होना मानव स्वभाव की दुर्बलता है।
प्रश्न:3.क्या दुर्बलता जन्मजात होती है? (Is the debilitation congenital?):
उत्तर:हमारी कुछ दुर्बलताएं पैदाइशी होती हैं और कुछ शिक्षा का परिणाम है।यह एक प्रश्न है कि इन दोनों में से कौन हमें अधिक कष्ट देती है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा दुर्बलता के विचार हटाने के 8 उपाय (8 Ways to Removing Thought of Weakness),दुर्बलता का विचार घातक कैसे है? (How is Idea of Infirmity Fatal?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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