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Obscenity is Deep Problem of New Age

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1.अश्लीलता आधुनिक युग की गंभीर समस्या (Obscenity is Deep Problem of New Age),अश्लीलता से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of Pornography?):

  • अश्लीलता आधुनिक युग की गंभीर समस्या (Obscenity is Deep Problem of New Age) बनती जा रही है।तमाम शक्ति,सख्त कानून,सजाएं होने के बावजूद भी अश्लील हरकतों पर लगाम लगाना मुश्किल होता जा रहा है।इस मुद्दे पर गंभीर विचार करना होगा और इसका स्थायी समाधान ढूंढना होगा।
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2.कामदेव का कौतुक (Cupid’s Prodigy):

  • ऐसा कहा जाता है कि एक बार ‘कामदेव’ ने लोगों को परेशान करने की ठानी और अपनी माया चारों ओर फैला दी।वह लोगों के मनों में घुस गया और हर एक के मन में असीम काम-वासनाएँ भड़का दी।पहले लोग अपनी सीमित आवश्यकताएँ थोड़े से श्रम में पूरी कर लेते थे,संतुष्ट रहते थे एवं सभी के मन में शांति थी,पर जब कामनाएं भड़कीं तो उद्विग्नता सवार हो गई।कोई धन-संग्रह की,कोई काम-वासनाओं की पूर्ति की और कोई किसी पदवी को पाने की इच्छा पूरी करने की होंड़ में लग गया।इस प्रतिस्पर्धा में औचित्य छूट गया,प्रतिद्वन्द्विता बढ़ी,मन उत्तेजित हुआ,ईर्ष्या-द्वेष बढ़ गए और चारों ओर अशांति फैल गई।कामदेव ने इतना ही नहीं किया,विलासिता के एक से एक बढ़कर एक साधन-प्रसाधन उपलब्ध करा दिए।इंद्रिय भोगों को भड़काने वाली ढेरों सामग्री रच दी।बुद्धि विलासिता को जीवन का सर्वोपरि आनंद मानने लगी।सजावट,शोभा,श्रृंगार,शान,विलास वासना,क्रीडा-कौतुक,नंगे प्रदर्शन का आकर्षण इतना बढ़ा कि लगने लगा कि अब विलासिता और कामनाओं की पूर्ति ही मानव जीवन का लक्ष्य बनकर रह गया है।
  • कामदेवता अपने इस कौतुक पर बड़ा प्रसन्न था।उसने सज्जनों की भी दुर्दशा कर डाली,आम लोगों की भी।सभी को वासना-विलास का प्रतीक प्रतिनिधि बना दिया।श्रृंगार,रास,हास-विलास,भोग-उपभोग के माध्यम ही भगवान की पूजा कहलाने लगे।तप-त्याग,संयम-सेवा के सज्जनों के प्रमुख विधान न जाने कहां तिरोहित हो गए।भगवान के चरित्रों की भी श्रृंगारपरक चर्चाएं होने लगीं।लोग उन्हीं में रस लेने लगे।सज्जनता का भी जब यही स्वरूप प्रचलित हो उठा तो भगवान की आत्मा भी कराह उठी।उसने सोचा की इस दुष्ट कामदेवता ने मुझ भगवान की भी ऐसी दुर्गति कर डाली।
  • सृष्टि के मुकुटमणि,परमेश्वर के उत्तराधिकारी मनुष्य की यह स्थिति देवाधिदेव भगवान महादेव ने भी देखी।उनने ध्यानमग्न होकर देखा कि स्थिति वैसी ही है,जैसी कि धरती की करुण कराह बता रही है।तब उनने प्रत्यावर्तन-प्रक्रिया को गति देने के लिए कामदेवता को उचित दंड देने और उसकी माया-मरीचिका को निरस्त करने के लिए त्रिशूल उठाया।भगवान शिव ने तीसरा नेत्र खोला।उसके खुलते ही एक भयंकर दावानल प्रकट हुआ,जिससे वह सारा माया-कलेवर देखते-देखते जलकर भस्म हो गया।संसार को शांति मिली और मनुष्य-भगवान अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए।दसों दिशाओं में महाकाल की जय-जयकार होने लगी एवं सभी की जीवन शैली पुनः आध्यात्मिक प्रधान हो गई।
  • भगवान शंकर ने काम पर विजय प्राप्त की और तीसरे नेत्र यानी ज्ञान के द्वारा,साक्षी भाव के द्वारा,निष्काम भाव के द्वारा विजय प्राप्त की।सृष्टि को काम को सजृन कार्य करने का महत्त्व समझाया।लोगों को कामुक वृत्ति की दिशा से हटाकर सही दिशा दी,ज्ञान प्रदान किया,काम का सही अर्थ और उपयोग बताया।मालूम नहीं,हम इस कथानक को मात्र पौराणिक प्रसंग भर मान बैठे हैं या एक काल्पनिक वृतांत,परंतु यह आज फिर पुनरावृत्ति कर रहा है।

3.अश्लीलता की पुनरावृत्ति (Repetition of obscenity):

  • आज कामदेवता ने अश्लीलता के उद्भव द्वारा मानवीय चेतना में असंख्य प्रकार की कामनाएं भड़का दी हैं।विलासिता के अगणित आकर्षण विनिर्मित हो गए हैं।स्वार्थ बढ़ रहा है,पाप प्रचंड हो रहा है और नरक की ज्वालाएं हर क्षेत्र में धधकती चली जा रही हैं।स्थिति फिर असह्य हो उठी है और हम सर्वनाश के कगार पर आ खड़े हुए हैं।ऐसा लगता है कि महाकाल का तीसरा नेत्र नहीं खुला तो यह स्थिति और भयंकर हो जाएगी।यह तीसरा नेत्र और कुछ नहीं,व्यापक विवेक (कलेक्टिव विजडम-कन्साइंस) ही है।इसी के उन्मीलन से अज्ञान का अवसान होगा और आज की असंख्य समस्याओं का समाधान निकलेगा।यह तीसरा नेत्र (ज्ञान का नेत्र,आज्ञा चक्र) तभी खुलेगा जब सही दृष्टिकोण,सही शिक्षा,सही पाठ्यक्रम का उपाय किया जाएगा,सत्संग,सत्संगति,स्वाध्याय ही हमें सही दिशा का ज्ञान करा सकता है ऐसा हमारा मत है।
  • जरा आज की स्थिति का विश्लेषण करें।ऐसा क्या हुआ कि हमें लिखना पड़ा कि आज वैसी ही स्थिति पैदा हुई,जैसी कि पौराणिक काल में कामदेव-दहन-त्रिपुरारी-हनन प्रसंग में उत्पन्न हुई थी।आज का समय वस्तुतः कलयुग की पराकाष्ठा का समय है-ऐसा समय,जब वर्जनाएं-मर्यादाएं समाज में गौण मानी जाने लगी हैं एवं उच्छृंखलता का नंगा नृत्य देखा जाने लगा है।भोगवाद ने मनुष्य के अंदर ढेर सारी महत्वाकांक्षाएं पैदा की हैं।आर्थिकी (इकोनॉमिक्स) के विशेषज्ञ इसे अच्छा समय बताते हैं व कहते हैं कि आर्थिक विकास हुआ है,इसलिए ही व्यक्ति की क्रयक्षमता बढ़ी है एवं वह और ज्यादा,और ज्यादा चाहने लगा है,पर इस भोगवाद से उत्पन्न विषमता और रीतापन,भविष्य के संघर्ष की संभावनाएं इन्हें दिखाई नहीं पड़तीं।नैतिकी,आत्मिकी (अध्यात्म विज्ञान) के विशेषज्ञ कहते हैं कि यह सबसे बुरा समय है,जब आदमी अपनी नैतिक मर्यादाओं को भुलाकर भौतिक-ऐन्द्रिक सुख को ही सब कुछ मान बैठा है।उसे इसके लिए येन-केन-प्रकारेण कुछ भी करना पड़े तो वह चूकता नहीं।इसमें धोखा,रिश्वतखोरी,बेईमानी,गबन,कर्ज से लद जाना और यदि किसी को मारना पड़े तो वह भी कर बैठना,सभी शामिल है।आज के कस्बाई,नगरीय-महानगरीय माहौल में तथाकथित विकास के साथ यही सब दिखाई दे रहा है।
  • सबसे खतरनाक है अश्लीलता का नंगा नाच,जो अब इतना अधिक,इतना सार्वजनीन हो गया है कि मानो जीवनशैली पर बलात उसने आक्रमण कर उसे अस्त-व्यस्त कर डाला है।मनुष्य की काम-वासना नैतिक मर्यादाओं के नियंत्रण में चलती रही है।हमारे देश में प्राचीनकाल से अभी तक इसके अनेक विशेषज्ञ रहे हैं,जो काम को उल्लास में,ज्ञान बीज के रूप में परिष्कृत,उसका उर्ध्वारोहण करने की बात करते रहे हैं।
  • आज हॉस्टलों में,क्लबों में,तथाकथित शिक्षा केन्द्रों में छात्राओं की ब्लू फिल्में,पोर्न वीडियो बनाई जाती हैं और उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है।जब तक बात ताजा रहती है तब तक प्रशासन कानून का हंटर लगाकर वाहवाही लूट लेता है और जब बात ठंडी होती है तो अश्लील हरकते करने वाले,अय्याशी,ब्लैकमेल करने वाले जमानत पर छूट जाते हैं और फिर वही कुकृत्य करना चालू कर देते हैं।क्योंकि जनता की याददाश्त कमजोर होती है और वे ऐसे हादसों को समय के साथ भूल जाती हैं।फिर कोई नया कांड (अश्लीलता,ग्रुप बलात्कार आदि) सामने आता है तो फिर वही पुरानी लीपापोती आरंभ हो जाती है।यही कारण है कि बलात्कार,अश्लील हरकतों के कारनामों में लगातार इजाफा होता जा रहा है।

4.अश्लीलता के जहर को फैलाने के माध्यम (Means of spreading the poison of obscenity):

  • अश्लीलता का व्यापार आज अरबों डॉलर का है।जीवन शक्ति छूँछ होती जा रही है।गुप्त रोगों (एस०टी०डी०) एवं एड्स जैसी महामारियों की बाढ़ आ रही है,पर हम है कि चेतते नहीं।पांच माध्यमों से यह प्रक्रिया विगत 40 वर्षों में तीव्रगति पकड़कर आज की स्थिति को पहुंच गई है।पहला माध्यम है सिनेमा,दूसरा टेलीविजन,तीसरा प्रिंट मीडिया,चौथा मॉडलिंग का संसार,जिसके साथ सारे समाज को बाजार बनाने का षड्यंत्र बन गया है और पांचवा इंटरनेट,पोर्न वेबसाइट्स,पॉर्न वीडियो की अंधेरी अंतहीन दुनिया।सिनेमा का जब भी आविष्कार हुआ था,मनोरंजन उसका उद्देश्य था।थिएटर की दुनिया बड़ी सौम्य थी।कलातंत्र के माध्यम से लोक-मंगल की प्रक्रिया को गति देना,यही उसका उद्देश्य था।राष्ट्रभक्ति से लेकर परिवारों में सुसंस्कारिता-संवर्द्धन के कई रूप शुरू के सिनेमा के दिनों में देखे जाते हैं।1970 के बाद धीरे-धीरे स्थिति बदली एवं मर्यादा से युक्त अभिनेत्री-अभिनेता देखते-देखते बदल गए।संगीत भी बदल गया है एवं ऐसे गीत लिखे जाने लगे,जो काम-वासना को भड़काने वाले थे।रंगीन सिनेमा के साथ कम कपड़ों वाली हीरोइन एवं देखते-देखते कैबरे आदि ने सिनेमा का वह स्वरूप बनाया कि विगत 15 वर्षों में विवाहेतर संबंधों से लेकर,खुलेआम यौन संबंधों का समर्थन आदि एक सामान्य बात हो गई है।हिंसा इतनी कि आदमी दहल जाए।आज तो यह नाजुक उम्र वालों पर भी प्रहार कर रहा है एवं इसके परिणाम देखने में आ रहे हैं।
  • टेलीविजन 1982 में एशियाड के आगमन के साथ रंगीन हुआ।संचार-क्रांति ने सारे देश को ग्लोबल विलेज (विश्व ग्राम) का एक अंग बना दिया।दो चैनल वाले टीवी में 400 से ज्यादा चैनल आने लगे।पहले लोगों को खुले विचारों वाली या हल्का मनोरंजन करने वाली फिल्मों के लिए जाने में संकोच होता था,अब वह खुलेआम हमारे घर ड्राइंगरूम-बेडरूम तक पहुंच गया।पूरा परिवार आराम से बैठकर देखता है एवं उस समय वहां क्या दिखाया जा रहा है,इसके औचित्य पर भी विचार नहीं किया जाता।विज्ञापन तक इतने अश्लील आने लगे हैं कि समाचारों के बीच उनका हस्तक्षेप बलात्कार की तरह लगता है।धारावाहिकों का संसार खलनायकी सिखाता है; परिवारों को तोड़ता है; षडयंत्रों का ताना-बाना बुनना सिखाता है।टेलीविजन को लोक-शिक्षण का माध्यम बनना चाहिए था,पर वह अश्लीलता परोसने वाला,क्रिकेट खिलाड़ियों की कमेंट्री दिखाता,सौदेबाजी सिखाता तथा सनसनी के रूप में अंधविश्वास बढ़ाने वाला माध्यम बन गया है।
  • प्रिंट मीडिया में हम उन समाचार-पत्रिकाओं की बात कह रहे हैं,जो आज खुलेआम समाचारों के साथ नंगी तस्वीरें छाप रहे हैं।इन पर किसी सेंसर का नियंत्रण नहीं है।सभी बड़े प्रतिष्ठित समाचार पत्र हैं,राष्ट्रीय स्तर के हैं,पर इनमें जो भी नग्नता परोसी जाती है,वह आज किसी राष्ट्र में नहीं देखी जाती।वहाँ इस तरह की पत्र-पत्रिकाएं अलग होती हैं।कामुक मनोवृत्ति के लोग उन्हें पढ़ते रहते हैं।उनकी सीमित दुनिया होती है,पर हमारे यहां तो यह सार्वजनीन ‘कंपलसरी एजुकेशन’ का पर्याय बन गई है।समाचार पत्र आज जासूसी उपन्यास अधिक नजर आते हैं।मॉडलिंग के संसार के बारे में जितना लिखा जाए,कम है।यह पत्रिका की गरिमा के अनुकूल भी नहीं।विश्व सुंदरी,ब्रह्मांड सुंदरी से लेकर भारत सुंदरी (मिस इंडिया),प्रांत सुंदरी,नगर व कस्बों की सुंदरी-प्रतियोगिताएँ होने लगी हैं।यह उत्पादों की खपत बढ़ाने एवं नारीशक्ति की अवधारणा का षड्यंत्र है।फैशन के नाम पर जो भी दिखाया जाता है,वह हेय है,निंदनीय है एवं खुलेआम इसके औचित्य पर बहस की जानी चाहिए।रैंप पर होने वाली प्रतिस्पर्धाओं पर रोक लगनी चाहिए एवं ये मर्यादाएं तय होनी चाहिए कि भारतीय संस्कृति के अनुरूप हमारा पहनावा क्या हो?

5.इंटरनेट एक अंधी दुनिया (The Internet is a blind world):

  • इंटरनेट आज का सबसे सशक्त माध्यम है जानकारियों को पाने का।यह एक अंतहीन विश्वव्यापी दुनिया है,जिसमें सूचनाओं का विस्फोट देखा जा सकता है,पर एक आंकड़ा चौंकाने वाला है।80% व्यक्ति ‘पोर्नोग्राफी’ (अश्लीलता दर्शन) के लिए इसका दुरुपयोग करते हैं।इस पर नियंत्रण भी खासा मुश्किल है।यह तो विवेक ही तय कर सकता है कि इस माध्यम का रचनात्मक नियोजन कैसे हो? आज वर्तमान से भी दस हजार गुनी गति से चलने वाली इंटरनेट कनेक्टिविटी आने की बात की जा रही है।आगामी वर्षों में हमारे मोबाइल पर,हमारे लैपटॉप में,कंप्यूटर में यह सब कुछ उपलब्ध होगा।आज के मोबाइल तो संचार-क्रांति कम,संगीत व फोटो कैमरे की क्रांति ज्यादा कर रहे हैं।किसी का भी अश्लील वीडियो ‘ब्लूटूथ’ द्वारा कहीं भी अगणितों को भेजा जा सकता है।
  • आज अनेक युवा-युवति (भटके हुए) इन पोर्न वेबसाइट्स को खंगालते हैं और पॉर्न वीडियो,पोर्न फोटो,पोर्न लेख आदि को देखते हैं,पढ़ते हैं।जिस उम्र में उन्हें अच्छा साहित्य,अच्छी पुस्तकें पढ़नी चाहिए,अच्छी बातें सीखनी चाहिए उस उम्र को वे अश्लील हरकतें सीखने में गुजारते हैं।ऐसे युवाओं को सही दिशा नहीं मिलती है तो वे अनैतिक,अश्लील कार्यों को सीखते हैं और समाज में व्यभिचार फैलाते हैं।साथ ही उन्हें रुपया-पैसा चाहिए चाहे वह कैसे भी मिले? इसलिए ऐसे लोग लड़कियों की पोर्न फोटो,वीडियो बनाना और फिर ब्लैकमेल करके पैसे ऐंठना आदि कार्यों में संलग्न हो जाते हैं।एक बार इस गोरखधंधे में लिप्त होने के बाद वे फँसते चले जाते हैं और उन्हें कोई रास्ता दिखाई नहीं देता,वे अन्धी गली में फंस जाते हैं।उन्हें कोई रास्ता दिखाने वाला भी नहीं मिलता है और मिलता है तो वे तब तक इस कदर गलत धंधे में फंस चुके होते हैं कि उन्हें ज्ञान ध्यान की बातें बुरी लगने लगती है।

6.विवेक जागृत करें (Awaken the conscience):

  • यह कहां जा रहे हैं हम? हमें स्वयं विचार करना होगा एवं एक व्यापक विचार-क्रांति की बात सोचनी होगी,जिसमें सभी का विवेक जागे।विवेक जागेगा,दृष्टि परिष्कृत होगी एवं लोकहित की बात मन में होगी तो इस काम-कौतुक पर नियंत्रण भी होगा,समाज मर्यादित होगा एवं हम सतयुग की वापसी की ओर बढ़ेंगे।विवेक जागृत करने के लिए यों तो अनेक संगठन कार्य करें हैं लेकिन वे नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं।दरअसल पाश्चात्य शिक्षा एवं भारतीय शिक्षा में भी पाश्चात्य मॉडल अपनाए जाने के कारण युवावर्ग भटक रहे हैं।यदि उन्हें शिक्षा संस्थानों में भी नैतिक,चारित्रिक और व्यावहारिक शिक्षा मिले तो उन्हें सही दिशा मिल सकती है।लेकिन इस तरफ ध्यान नहीं न दिये जाने के कारण युवावर्ग को सही दिशा नहीं मिल रही है।
  • शासक,प्रशासक,नीति निर्माता कड़े से कड़ा कानून बनाने की तरफ तो ध्यान दे रहे हैं परंतु शिक्षा का ढर्रा सुधारने के बारे में विचार नहीं करते हैं।यदि केवल कानून से ही समस्या हल होती तो निर्भया के दोषियों को फांसी लगने के बाद सुधार आना चाहिए लेकिन सुधार कहां दिखाई दे रहा है? कानून तो कड़ा होना चाहिए ही परंतु शिक्षा में भी बदलाव होना चाहिए।
  • इसके अलावा उपर्युक्त पांचों माध्यमों को भी अपने आपमें सुधार की जरूरत है।हालांकि ऐसा नहीं है कि उपर्युक्त पांचो माध्यमों (टेलीविजन,सिनेमा,प्रिंट मीडिया,मॉडलिंग और इंटरनेट) पर अश्लीलता ही परोसी जाती है और अच्छी बातें,ज्ञान,ध्यान की बातें नहीं परोसी जाती हैं।परंतु युवावर्ग में इतना विवेक नहीं होता है कि अच्छी और बुरी बातों की पहचान कर सके।युवाओं में जोश ज्यादा होता है और होश कम होता है इसलिए वे भटक जाते हैं।अतः उन्हें सही मार्गदर्शक की आवश्यकता है,सही रास्ता दिखाने वालों की जरूरत है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अश्लीलता आधुनिक युग की गंभीर समस्या (Obscenity is Deep Problem of New Age),अश्लीलता से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of Pornography?) के बारे में बताया गया है।

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7.अश्लीलता की डिग्री (हास्य-व्यंग्य) (Degree of Obscenity) (Humour-Satire)

  • विनीता (सरिता से):पहले कई साल तक तो तुम अपने बॉयफ्रेंड के साथ कॉलेज आती थी।अब क्या हुआ?
  • सरिता:यार,उस बॉयफ्रेंड ने अश्लीलता की डिग्री पूरी कर ली है,अब उसने खाट पकड़ ली है।

8.अश्लीलता आधुनिक युग की गंभीर समस्या (Frequently Asked Questions Related to Obscenity is Deep Problem of New Age),अश्लीलता से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of Pornography?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या युवावर्ग विकास कर रहा हैं? (Is the youth developing?):

उत्तर:यदि हम चरित्रहीन और ऐयाश होकर चांद पर भी पहुंच जाएं तो ऐसी उन्नति दो कौड़ी की है।हम बड़े-बड़े कंप्यूटर लगा लें,बड़ी-बड़ी बिल्डिंग,कोठी बंगले बना लें,ऐशोआराम के साधन जुटा लें,लेकिन हमारा खुद का मकान (अय्याशी के कारण) जर्जर हो जाए तो यह सारा ठाट-बाठ बेकार हो जाएगा।हम इनका उपयोग करने के लायक ही नहीं रहेंगे।।

प्रश्न:2.क्या कामुकता बुरी है? (Is sexuality bad?):

उत्तर:कामुकता का अर्थ है यौन चिन्तन करना।और यौन का चिन्तन करते रहने वाला काम (sex) से मुक्त नहीं हो पाता है,उसकी मानसिक ऊर्जा का क्षय होता रहता है अतः कामुकता बुरी है।

प्रश्न:3.अश्लील हरकतें कौन-कौन सी है? (What are obscene acts?):

उत्तर:छेड़छाड़ करना,सीटी बजाना,फब्ती कसना,कामुक गाली-गलौज करना,आंख मारना,लाइन मारना,कामुक बातें बोलना जैसे शिट आदि।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अश्लीलता आधुनिक युग की गंभीर समस्या (Obscenity is Deep Problem of New Age),अश्लीलता से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of Pornography?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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