6 Best Reviewing Techniques
1.समालोचना करने की 6 बेहतरीन तकनीक (6 Best Reviewing Techniques),आलोचना और समीक्षा में क्या करें? (What to Do Between Criticism and Review?):
- समालोचना करने की 6 बेहतरीन तकनीक (6 Best Reviewing Techniques) के द्वारा आप जान सकेंगे कि समालोचना और आलोचना में क्या फर्क है? छात्र-छात्राओं को समालोचना और आलोचना में से किसका चयन करना चाहिए अर्थात् दोनों में से क्या करें?
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2.आलोचना का अर्थ और उद्देश्य (The Meaning and Purpose of Criticism):
- आलोचना मतलब किसी व्यक्ति,वस्तु,संगठन,लेख आदि की बुराई करना,उसके केवल नकारात्मक तथ्यों का वर्णन करना।बुराई व आलोचना में फर्क यह है कि बुराई हमेशा पीठ पीछे,छिपकर की जाती है और बुराई करने वाले को यह मुगालता रहता है कि वह जिसकी बुराई कर रहा है वह सुन नहीं रहा तथा उस तक उसकी बुराई नहीं पहुंच पाएगी जो कि उसका भ्रम है।आलोचना पीठ पीछे तथा सामने भी की जा सकती है लेकिन आलोचना करने वाला यह भलीभाँति जानता है कि जिसकी वह बुराई कर रहा है वह बात उस तक किसी न किसी प्रकार व माध्यम से पहुंच ही जाएगी।परीक्षा में कुछ ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं कि आलोचनात्मक वर्णन करें,आलोचनात्मक व्याख्या करें।इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर में छात्र-छात्राओं व अभ्यर्थी को नकारात्मक पक्षों का ही अधिक वर्णन किया जाता है और सकारात्मक पक्ष का या तो वर्णन किया ही नहीं जाता और यदि किया जाता है तो बहुत कम साथ ही निष्कर्ष में अपना मत भी प्रकट किया जाता है।
- ऑफिस में होने वाली गपशप से लेकर मीटिंग,व्यक्तिगत चर्चा,हर अनौपचारिक चर्चा और औपचारिक चर्चाओं में,विद्यार्थी आपस में बातचीत करते हैं तब,महिलाएं आपस में चर्चा करती हैं तब,अखबारों आदि में आलोचना देखने-सुनने को मिल जाती है क्योंकि आलोचना करना सबसे सरल कार्य है।किसी भी व्यक्ति,वस्तु,लेख,रचना आदि की बुराई करना,कमियां निकालना सरल कार्य है।
- आलोचना करने का मूल उद्देश्य होता है किसी व्यक्ति को नीचा दिखाना,उसकी प्रतिष्ठा गिराना,संस्था या संगठन की साख खराब करना,कर्मचारी/अधिकारी की प्रतिष्ठा को धूमिल करना।आलोचना करने वाले से सामने वाला नाराज भी हो सकता है और सक्षम तथा समर्थ है तो आलोचना करने वाले को हानि भी पहुंचा सकता है।
- आलोचना करने वाले व्यक्ति से हमेशा दूसरे लोग किनारा करने लगते हैं,उसके साथ बातचीत करना पसंद नहीं करते हैं।आलोचना और बुराई सुनना कोई पसंद नहीं करते हैं लेकिन दिलचस्प तथ्य है कि अधिकांश वार्ताओं में आलोचना और बुराई की जाती है।आलोचना या बुराई गुप्त नहीं रहती है और आलोचना व बुराई करने वाले को नकारात्मक व्यक्ति समझ जाता है।हालांकि कई बार कोई व्यक्ति कठोर आलोचना का तब भी प्रयोग करता है जब सामने वाला सुधरने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं होता है।जैसे किसी विद्यार्थी की विद्यालय में देर से आने की आदत है,किसी कर्मचारी की ऑफिस में देर से जाने की आदत है,काम कम और बातें अधिक करता है जिससे कार्यालय का कार्य प्रभावित होता है।ऐसे लोग चेतावनी देने,अपनी आदत को सुधारने के सुझाव की अनदेखी करते हैं तब कठोर आलोचना की जाती है।
- प्रश्न-पत्र में आलोचना करने को कहा जाता है तब तो उसका उत्तर देना ही है,कभी कोई व्यक्ति अपनी कमियां आपसे पूछ रहा हो और बुरा नहीं मानता हो तब भी आलोचना करनी चाहिए हालांकि ऐसे व्यक्ति बिरले ही होते हैं वरना आलोचना करके बैठे-ठाले आफत मोल लेने से क्या फायदा?
3.समीक्षा का अर्थ और उद्देश्य (Meaning and purpose of review):
- समीक्षा का अर्थ है कि किसी व्यक्ति,वस्तु,संस्था,संगठन, लेख,रचना आदि के सकारात्मक,सुदृढ़,अच्छी बातों के साथ-साथ उसकी कमियों,नकारात्मक पक्ष को भी उजागर करना।समीक्षा,आलोचना का ही सुधरा हुआ रूप है।इसमें सामने वाला व्यक्ति,संस्था या संगठन आदि उससे नाराज नहीं होता है क्योंकि एक तरह से इसे प्यार की भाषा कहा जाता है।आलोचना की तरह निर्दयता पूर्वक वाद-विवाद नहीं किया जाता है हालांकि आलोचना भी प्यार से की जा सकती है।
- एक अध्यापक अपने विद्यार्थियों की समीक्षा कर सकता है अर्थात् उसके गुणों और अवगुणों को बता सकता है।एक मित्र दूसरे मित्र के लिए समीक्षा का प्रयोग कर सकता है।ऑफिस में सहकर्मी आपस में,बाॅस अपने कर्मचारियों की समीक्षा कर सकता है।समीक्षा भी पीठ पीछे की जाती है तो किसी न किसी माध्यम से संबंधित तक पहुंच ही जाती है।
- समीक्षा का उद्देश्य किसी को नीचा दिखाना या प्रतिष्ठा धूमिल करना नहीं है बल्कि सामने वाले को सुधारने की भावना रहती है।परीक्षा में भी किसी प्रश्न में समीक्षा करने को कहा जाता है।ऐसी स्थिति में उसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों का वर्णन करना चाहिए।किसी एक पक्ष को बल नहीं देना चाहिए बल्कि दोनों में संतुलन रहना चाहिए।निष्कर्ष रूप में आप अपना अभिमत भी दे सकते हैं।
- समीक्षा का प्रयोग व्यक्ति द्वारा स्वयं के लिए या किसी संस्था व संगठन के मालिक द्वारा स्वयं की संस्था व संगठन के लिए भी किया जा सकता है।इसमें स्वयं के गुणों और अवगुणों पर वस्तुनिष्ठ रूप से ध्यान दिया जाता है अथवा पूर्वाग्ररहित सोच होनी चाहिए।अपने कमजोर पक्ष को सुदृढ़ करने पर विचार किया जाता है और सबल पक्ष को और अधिक मजबूत करने की रणनीति बनाई जाती है।
- किसी भी व्यक्ति अथवा उसकी रचना,लेख में कमियों को सुनकर हतोत्साहित नहीं होना चाहिए बल्कि उसमें सुधार करने की कोशिश करनी चाहिए।दुनिया में ऐसा कोई भी महान व्यक्ति नहीं मिलेगा जिसकी आलोचना अथवा समालोचना न हुई हो।भगवान राम की भी आलोचना एक धोबी ने कर दी थी तो सामान्य व्यक्ति कहां लगता है।आलोचना,समीक्षा,आत्म-विश्लेषण,बुराई आदि से कुछ ना कुछ सीख लेनी चाहिए तभी आप आगे बढ़ सकते हैं,अपने आपमें सुधार कर सकते हैं,अपनी उन्नति व विकास कर सकते हैं।यदि आप छिद्रान्वेषण से हतोत्साहित हो जाएंगे तो समझ लीजिए आपने अपनी तरक्की के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं।
- कबीरदास जी ने तो यहां तक कहा है कि ‘निंदक नियरे राखिए,आंगन कुटी छवाय।’बिनु साबुन बिनु नीर के,निर्मल करें सुभाय।।अर्थात निंदक,आलोचना करने वालों को हमेशा अपने पास रखना चाहिए,ये लोग बिना साबुन और बिना पानी के ही आपका मन शुद्ध,पवित्र तथा निर्मल कर देते हैं।
- उक्त दोहा का भावार्थ ही यही है कि जब कोई आपकी आलोचना या समीक्षा करे तो उसे कभी घृणा न करें अपितु उसकी बातों पर गौर करें,ठीक से विश्लेषण करें और उसकी बात की तह तक जाएं कि उसने वास्तव में जो बात कही है वह सही ही है या गलत है।यदि सही है तो उन कमियों को दूर करें और गलत है तो उसकी तरफ बिल्कुल ध्यान ना दें।अपनी कमियों को सुनकर फट पड़ने या गुस्सा होने की जरूरत नहीं है बल्कि उस पर विचार करें कि उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है।
4.समीक्षा करने के लिए गुणों को विकसित करें (Develop qualities to review):
- वस्तुतः आलोचना तो कोई भी कर सकता है लेकिन सटीक और सही आलोचना व समीक्षा करना सरल कार्य नहीं है।साधारण स्तर की समीक्षा भी की जा सकती है परंतु सटीक गुणों,सुदृढ़ पक्षों और गंभीर कमियों को ढूंढ निकालना और उसमें कैसे सुधार किया जा सकता है अर्थात् अपना अभिमत बताना विरले व्यक्तियों में ही देखने को मिलता है।यानी उत्कृष्ट स्तर का समीक्षक होने के लिए कुछ गुणों को धारण करना पड़ता है।
- उत्कृष्ट स्तर के समीक्षक में बेहतरीन दिमाग और शुद्ध दिल का होना आवश्यक है।चलते-फिरते और सामान्य सी टीका-टिप्पणी करने का कार्य कोई भी कर सकता है।आपमें बेहतरीन दिमाग और शुद्ध हृदय तभी हो सकता है जबकि आप निरंतर अध्ययन-मनन-चिंतन और कठिन परिश्रम करते हैं।आप गुणों की खान हो और अपने अवगुणों को काफी हद तक दूर कर चुके हो।पवित्र और निर्मल हृदय में किसी भी व्यक्ति,वस्तु अथवा संगठन की सही पिक्चर अंकित हो सकती है।जैसे मेले दर्पण पर सही अक्स दिखाई नहीं देता,लेकिन दर्पण बिल्कुल स्वच्छ हो तो छवि साफ दिखाई देती है।उसी प्रकार अवगुणों से युक्त व्यक्ति के हृदय में किसी दूसरे व्यक्ति के व्यक्तित्व का सही रूप दिखाई नहीं देता है लेकिन निर्मल और पवित्र हृदय में दूसरे व्यक्ति का सटीक व्यक्तित्व दिखाई दे जाता है।
- अपने अंतर को (हृदय) को निर्मल व पवित्र तथा दिमाग को बेहतरीन बनाने का काम एक-दो दिन में नहीं हो जाता,बल्कि इसके लिए सतत साधना करनी पड़ती है।निरंतर सचेष्ट और जिज्ञासु बने रहना पड़ता है,वर्षों तप और साधना की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।एक बार आप जागरूक हो जाते हैं तो यह तप और साधना जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया के रूप में आपकी आदत में शामिल हो जाता है और तब आप एक सही समीक्षक बन पाते हैं।
- अपने आपको पूर्वाग्रह से मुक्त करना होता है।क्योंकि पूर्वाग्रह से ग्रसित समीक्षक एक अपरिपक्व या जल्दी में लिया गया निर्णय है,जो तथ्यों की अपेक्षित परीक्षा से पूर्व कर लिया गया हो और वह निर्णय प्रतिकूल या अनुकूल हो सकता है जिसमें सच्चाई बहुत कम होती है।उदाहरणार्थ कोई हिंदूधर्म का अनुयायी हिंदूधर्म की समीक्षा करने करे तो बहुत संभव है कि वह हिंदूधर्म के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर बताए और अवगुणों की चर्चा नाममात्र ही करें तो यह सही समीक्षा नहीं कही जाएगी।अतः अपने आपको पूर्वाग्रहों से मुक्त करना बहुत आवश्यक है और इसके लिए भी आपको निरंतर सजग व सचेष्ट रहना पड़ता है।
- अपने आप पर पैनी दृष्टि रखनी होती है।क्योंकि ज्यों-ज्यों आप ऊपर चढ़ते जाते हैं त्यों-त्यों फिसलने के बहुत चांसेज होते हैं।लेकिन यदि आप जागरूक हैं और अपने पर पैनी दृष्टि रख रहे हैं तो बहुत संभलकर आगे बढ़ेंगे और एक बेहतरीन समीक्षक बन पाएंगे।
- जिस विषय की,जिस लेख की,रचना की,व्यक्ति या संगठन की समीक्षा कर रहे हैं उसका बहुत गहरा ज्ञान और रुचिपूर्वक अध्ययन किया हो,विषय पर मजबूत पकड़ हो,विषय आदि पर आपकी स्पष्ट धारणा हो।ये बातें आपमें मौजूद नहीं होगी तो आप आधी-अधूरी,अस्पष्ट और छिछली समीक्षा ही कर पाएंगे और आप समीक्षक नहीं बल्कि एक आलोचक कहलाये जाएंगे।दरअसल समीक्षक बनना तलवार की धार पर चलने के समान है जिसे हर कोई नहीं कर सकता है।अब आप अंदाजा लगा लीजिए कि एक समीक्षक में कितने गुणों का होना आवश्यक है।इसकी तुलना में जिसने वह कृति लिखी है,लेख लिखा है,रचना लिखी है उसके लिए तो बहुत आला दर्जे का ज्ञान और समझ होनी चाहिए क्योंकि समीक्षक से श्रेष्ठ तो कृति व लेख को लिखने वाला होता है।समीक्षक के लिए और भी अनेक गुणों से युक्त होना चाहिए तभी उच्च स्तर की समीक्षा की जा सकती है।
5.आलोचना का दृष्टांत (The Parable of Criticism):
- एक नगर में एक शिक्षक ने कोचिंग खोली।वे शिक्षक बायोलॉजी से बीएससी थे,अतः गणित पर पकड़ कमजोर थी।छात्र-छात्राएं उनसे गणित और विज्ञान तथा अंग्रेजी की कोचिंग करने के लिए आना शुरू हो गए।वे शिक्षक अक्सर गणित का सवाल हल करते तो जोड़,गुणा,भाग,बाकी आदि में त्रुटियाँ कर देते थे।कई सवाल भी नहीं बता पाते थे।उसी कोचिंग में एक गणित शिक्षक भी थे।जब उन्हें कोई सवाल नहीं आता तो वे गणित शिक्षक से पूछते और फिर छात्र-छात्राओं को बता देते थे।छात्र छात्राएं उनकी इस कमजोरी को ताड़ गए,अतः वे ऐसे ही सवाल पूछते जो उन्हें नहीं आता था।वे शिक्षक,गणित शिक्षक से छात्र-छात्राओं के सामने ही सवाल पूछकर बता देते थे।
- अब नित्य प्रति छात्र-छात्राएं आपस में चर्चा करते कि सर से तो कोई सा भी सवाल पूछ लो,इनको आएगा ही नहीं।छात्र-छात्राओं के मस्तिष्क में उन शिक्षक की नेगेटिव पिक्चर बन गई।फलतः वे छात्र-छात्राएं उन शिक्षक से सवाल पूछ कर मजे लेने लग गए।धीरे-धीरे वे उन शिक्षक की हँसी उड़ाने लग गए।गणित शिक्षक से यह सब सहन नहीं हुआ।उन्होंने सुझाव दिया कि आप विज्ञान और अंग्रेजी ही पढ़ा दिया करो और गणित विषय की जिम्मेदारी मुझे दे दो।उन शिक्षक के यह बात जँच गई।लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।एक वर्ष तक उनकी आलोचना होती रही,हँसी उड़ाते रहे लेकिन वे इस बात को पकड़ ही नहीं सके।वर्ष समाप्ति पर उन शिक्षक ने छात्र-छात्राओं से फीस जमा कराने के लिए कहा,लेकिन उन्होंने मुंह पर ही कह दिया,सर आपने पढ़ाया ही क्या है? कुछ नहीं,आपको सवाल तो आते ही नहीं,आपने जो सवाल बताए हैं वे अपने मित्र गणित शिक्षक से पूछकर बताएं हैं।
- छात्र-छात्राओं की दो टूक बात सुनकर वे शिक्षक सन्न रह गए।उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें वर्ष के अंत में फीस वसूल करने की एवज में इस प्रकार आलोचना और अपमान सहन करना पड़ेगा।
- ये आलोचना एक छात्र-छात्रा से दूसरे छात्र-छात्रा तक पहुंचने-पहुंचते पूरे नगर में फैल गयी।अब कोई भी उनसे गणित पढ़ने के लिए तैयार नहीं होता था।यहां तक कि वे होम ट्यूशन कराने के लिए भी तैयार हो गए परंतु किसी ने भी उनको घास नहीं डाली।अगले वर्ष उन्होंने काफी प्रयास किया परंतु कोई भी छात्र-छात्रा उनसे पढ़ने के लिए तैयार नहीं हुआ और न ही किसी स्कूल में उन्हें नियुक्ति मिली जबकि उन्होंने काफी प्रयास किया।यह होता है फर्स्ट इंप्रेशन इस लास्ट इंप्रेशन का प्रभाव।दो साल के बाद अंततः उनको कोचिंग बंद करनी पड़ी,कहीं पर उनको जाॅब भी नहीं मिला।अंततः उनको गांव छोड़कर जाना पड़ा और उनकी गृहस्थी भी बेपटरी हो गई।वह सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि इतने बड़े नगर में एक स्कूल के छात्र-छात्रा दूसरे स्कूल के छात्र-छात्रा से मिल नहीं पाते हैं,वहाँ उनके बारे में चारों ओर यह सूचना कैसे पहुंच गई।उन्हें अपने किए गए व्यवहार पर पछतावा हो रहा था कि उन्होंने बिना विषय पर मजबूत पड़क के कोचिंग प्रारंभ क्यों की,परंतु अब पछताने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हो सकता था।ये आलोचना इस प्रकार की होती है जो आग में घी का कार्य करती है।कमजोर नस (कमी) की आलोचना किसी का भविष्य बर्बाद भी कर सकती है,परंतु समीक्षा उसे ऊंचा ही उठाती है यदि वह सीखना चाहे तो।
- उपर्युक्त आर्टिकल में समालोचना करने की 6 बेहतरीन तकनीक (6 Best Reviewing Techniques),आलोचना और समीक्षा में क्या करें? (What to Do Between Criticism and Review?) के बारे में बताया गया है।
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6.आलोचक शिक्षक (हास्य-व्यंग्य) (Critical Educator) (Humour-Satire):
- एक दिन कोचिंग का शिक्षक,कोचिंग की बहुत पतली हालत देखकर चिंतित हो उठे।
- मित्र शिक्षकःअगर यह मेरी कोचिंग होती तो मैं इस कोचिंग को टॉप पर पहुंचा देता।
- शिक्षक (मित्र शिक्षक से):अगर यह कोचिंग तुम्हारी होती तो मैं भी उसे कब का टॉप पर पहुंचा देता।
7.समालोचना करने की 6 बेहतरीन तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 6 Best Reviewing Techniques),आलोचना और समीक्षा में क्या करें? (What to Do Between Criticism and Review?) से संबंधित तक्षक पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.आलोचना करना किसका प्रतीक है? (What does criticism symbolize?):
उत्तर:केवल आलोचना ही करते रहना नकारात्मक व्यक्तित्व की निशानी है और अपनी आलोचना सुनकर निराश होना,सुधार न करना कमजोर व्यक्तित्व।हमें इन दोनों से बचना चाहिए।
प्रश्न:2.आलोचक को नकारात्मक क्यों समझा जाता है? (Why is criticism considered negative?):
उत्तर:क्योंकि हर किसी की आलोचना करने की उसकी आदत हो जाती है।बाॅस,सहकर्मी,आस-पड़ोस के लोग या कोई भी अन्य व्यक्ति अधिक समय तक इनका मित्र नहीं रह सकता क्योंकि जब ये एक व्यक्ति की आलोचना दूसरे के सामने करते हैं तो दूसरा व्यक्ति यही सोचता है कि यह मेरी आलोचना भी किसी न किसी के सामने अवश्य करता होगा।
प्रश्न:3.महान बनने की क्या तकनीक है? (What is the technique to become great?):
उत्तर:महान लोग कठिन परिश्रम करते हैं,वे लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं,अपने विरोधियों को चुनौती देते हैं,मुश्किलों का सामना करते हैं और तब कहीं जाकर महान बनते हैं।महान व्यक्तियों की आलोचना होती रही है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा समालोचना करने की 6 बेहतरीन तकनीक (6 Best Reviewing Techniques),आलोचना और समीक्षा में क्या करें? (What to Do Between Criticism and Review?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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