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4 Technique for Students to Be Virtuous

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1 1.छात्र-छात्राओं के लिए धार्मिक होने की 4 तकनीक (4 Technique for Students to Be Virtuous),आध्यात्मिक और धार्मिक होने की 4 बेहतरीन तकनीक (4 Best Techniques for Being Spiritual and Pious):
1.3 4.सच्चे धर्म और धार्मिक की पहचान (True Virtuous and the Identity of Virtuous):

1.छात्र-छात्राओं के लिए धार्मिक होने की 4 तकनीक (4 Technique for Students to Be Virtuous),आध्यात्मिक और धार्मिक होने की 4 बेहतरीन तकनीक (4 Best Techniques for Being Spiritual and Pious):

  • छात्र-छात्राओं के लिए धार्मिक होने की 4 तकनीक (4 Technique for Students to Be Virtuous) के आधार पर आप जान सकेंगे कि हमें धार्मिक वृत्ति वाला क्यों होना चाहिए? चार पुरुषार्थों में प्रथम पुरुषार्थ धर्म ही है क्योंकि धर्म के बिना धन और काम (कामनाएं,वासनाएँ,उपभोग) हमें हमारे कर्त्तव्य से भटका देती हैं।धर्म भावना के कारण ही मनुष्य पशुओं से भिन्न है।
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2.धर्म के तीन अंग (The Three Parts of Virtuous):

  • कोई भी व्यक्ति अपने विवाद की गांठे सुलझाने के लिए वकील को सहज ही ₹4000 दे देगा,परंतु अपने प्रतिवादी के साथ ग्रंथि-बंधन के लिए धार्मिक व्यक्ति को ₹1000 देते हुए भी वह आनाकानी करता है।अधिकांश व्यक्तियों का व्यवहार प्रायः इसी कोटि का होता है।हम थोड़े से सहिष्णु होकर सद्भावपूर्वक नहीं रह सकते हैं,परंतु संघर्ष मोल लेने के उपरांत संधि स्थापित करते समय बहुत कुछ दे देते हैं।यह नियम व्यक्ति के स्तर पर ही नहीं,समाज और राष्ट्रों के स्तर पर भी लागू होता है।छोटी-सी बात को लेकर युद्ध की विभीषिका उत्पन्न करने के उपरांत उनके मध्य संधि होती देखी जाती है।
  • हम सब लोग किसी न किसी धर्म के अनुयायी हैं और साथ ही धर्म के नाम पर परस्पर लड़ते भी हैं।हम शांति के क्षणों में यह भी स्वीकार करते हैं कि दुनिया का कोई भी धर्म लड़ना नहीं सिखाता है।आखिरकार यह विसंगति क्योंकर उत्पन्न होती है? सीधा-सा उत्तर है-धर्म के मर्म को न समझने के कारण।धर्म वह वस्तु है जिसके सहारे हम जीवित रहते हैं,परंतु ऐसा न करके हम उसके सहारे जीवन की श्वासें पूरी करते रहते हैं।इस दृष्टि से प्रत्येक धर्म का लक्ष्य एक ही ठहरता है-मानव को जीवन का संबल प्रदान करना।
  • महाभारत में वन-पर्व में राजा उशीनर ने कहा है कि, “जो धर्म दूसरे धर्म का बाधक हो,वह धर्म नहीं है,धर्म तो वही है जिससे किसी दूसरे धर्म का विरोध ना हो।” जिस प्रकार जल का धर्म शीतलता प्रदान करना है,इसी प्रकार मनुष्य का धर्म मानव बनना अथवा मानवता का विकास करना है।
  • धर्म के वस्तुतः तीन अंग होते हैंःसाधना पक्ष,दार्शनिक पक्ष तथा आध्यात्मिक पक्ष अथवा नैतिक पक्ष।नैतिक पक्ष पर निर्विवाद रूप से सभी धर्म का समान रहता है।यह वस्तुतः धर्म का भावात्मक पक्ष है।इस पक्ष का निर्वाह करने वाला व्यक्ति समस्त उदात्त गुणों से युक्त होकर एक श्रेष्ठ मानव अथवा एक नेक इंसान बन जाता है।प्रत्येक के प्रवर्तक ने यही उपदेश दिया है कि-श्रेष्ठ मानव बनो।एक परम धार्मिक आत्मा ने अंतिम समय में यह इच्छा प्रकट की थी, “मेरी कब्र पर यह वाक्य लिख देना-He was a Gentleman” वह एक नेक इंसान था।क्या हम लोग अपने जीवन के विषय में इस प्रकार कभी विचार करते हैं?
  • दार्शनिक पक्ष के अंतर्गत परमात्मा के स्वरूप की चिंता की जाती है।इस संदर्भ में भांति-भांति के मत व्यक्त किए जाते हैं और यह प्रायः शास्त्रार्थ का हेतु बनता है और वितण्डावाद में इसकी परिणति होती है।इस वितण्डावाद में उलझे हुए तथाकथित विद्वजन परस्पर शत्रु भाव विकसित करते हुए देखे गए हैं।मंसूर को सूली पर केवल इसलिए चढ़ा दिया गया था क्योंकि उसने मुसलमान होते हुए भी एक काफिर की तरह बंदे को खुदा कह दिया था।

3.धर्म का साधना पक्ष विवादास्पद (The Spiritual Side of Virtuous Controversial):

  • धर्म का साधना पक्ष सर्वाधिक मतभेद और संघर्ष का कारण बनता है।जो लोग एक मिनट पहले यह कहते हुए देखे जाते हैं कि परमात्मा एक है,वह सब का परमपिता है,हम सब भाई-भाई हैं आदि,वे ही साधना-पद्धति और साधना-स्थल के नाम पर लड़ते हुए देखे जाते हैं।यह वस्तुतः धर्म का उन्माद पक्ष है।साधना अथवा पूजा या इबादत के स्थलों के नाम पर होने वाले झगड़ों एवं संघर्षों को हम इसी उन्माद का व्यक्त रूप मानते हैं।
  • धार्मिक स्थल के नाम पर लड़ने वाले यह भूल जाते हैं कि हमारे शहीद हो जाने के उपरांत लड़ने वाले तो समाप्त हो जाएंगे,केवल ईंट-पत्थर से निर्मित इमारतें रह जाएंगी।अगर तथाकथित धर्म-ध्वजों ने संयत होकर मंदिर-मस्जिद विवाद पर मानवीय दृष्टि अपनाई होती,तो हिंसा का रक्तरंजित तांडव कदापि न होता।हिंदू-मुसलमानों के मध्य होने वाले सांप्रदायिक दंगों के बारे में कहा जा सकता है कि, “जब तक जीवमात्र के साथ एकता महसूस ना हो,तब तक प्रार्थना,उपवास,जप-तप सब थोथी बातें हैं।”
  • हिन्दुओं के धर्म,सनातन धर्म और मुसलमानों के धर्म इस्लाम धर्म के साधना पक्ष एवं दार्शनिक पक्ष के मध्य कुछ मौलिक विभेद दिखाई देते हैं जबकि दोनों के नैतिक पक्ष में मूलभूत एकता है।उक्त विभेदों को ब्रिटिश शासकों ने इस प्रकार प्रस्तुत किया कि दोनों संप्रदायों के मध्य बन जाने वाली खाई आज सवा सौ-डेढ़ सौ वर्ष के प्रयत्नों के उपरांत भी समाप्त अथवा कम नहीं की जा सकी है।
  • इस्लाम धर्म की भाँति सनातन धर्म में जिहाद जैसी शिक्षा न होने के कारण सनातन धर्मावलम्बी अपेक्षाकृत अधिक सहिष्णु रहा है,परंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत हमारे शासको ने इस खाई को कम करने के लिए भाषण तो किए,परंतु व्यावहारिक रूप में दोनों संप्रदायों के मध्य एकता के भाव नहीं पनपने दिए।मुसलमान को अल्पसंख्यक कहकर उन्हें कतिपय विशेष सुविधाएं प्रदान कर दीं।फलतः वे अपने पृथक अस्तित्व के प्रति अनावश्यक रूप से सजग बन गए।इस पृथकत्व भाव का विस्फोट चाहे जब सांप्रदायिक दंगों के रूप में भारत के नाम को कलंकित कर देता है।
  • हमको यह देखकर आश्चर्य भी होता है और दुःख भी होता है कि वर्षों से भाईचारे की तरह रहने वाले व्यक्ति अथवा अच्छे पड़ोसियों के रूप में प्रसिद्ध व्यक्ति सांप्रदायिक संघर्ष के नाम पर पल भर में एक-दूसरे के जानी दुश्मन बन जाते हैं।हमारा मस्तक तब लज्जा से झुक जाता है,जब शिक्षित व्यक्ति इस रक्तरंजित सांप्रदायिकता के शिकार हो जाते हैं।श्री राम मंदिर-मस्जिद विवाद से उत्पन्न विध्वंस लीला को देखकर मन में यह प्रश्न उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि एक मस्जिद के ढाँचे के नाम पर एक संप्रदाय देश के विरुद्ध विदेशी शक्तियों को भी आमंत्रित करने की बात कह सकता है।सांप्रदायिकता के गर्भ से सचमुच भयंकर ज्वालामुखी पनप रहा है तथा अगणित आस्तीन के सांप पल रहे हैं।
  • एक वर्ग विशेष के लिए वैधानिक रूप से आयोग का निर्माण करके हमने प्रयोग करके देख लिया।अब अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक नामक वर्गों को समाप्त करके सबको राष्ट्रीयता की धारा में बहते देखने का समय उपस्थित हो गया है।हमारी धारणा है कि अलगाव की स्थिति समाप्त होने के साथ सांप्रदायिकता का दंश भी कुंठित हो जाएगा और हम धर्म के मर्म को पहचान कर राष्ट्रीयता एकता को दृढ़ता प्रदान करने में सहभागी बन जाएंगे।सच्ची धर्म भावना में अवगाहन करके प्रत्येक भारतीय निस्संदेह श्रेष्ठ मानव अथवा नेक आदमी तो बन जाएगा।इसी राष्ट्रीय सौहार्द की परिकल्पना पर हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की विचारधारा थी कि, “हिंदू,मुसलमान,पारसी,सिख,इसाई आदि सब इसी देश के रहने वाले हैं।उनके मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारे अलग-अलग हो सकते हैं,परंतु भारत रूपी जो बड़ा मंदिर है,वह सबका है।सब धर्मों के लोग एक ही भगवान की पूजा (इबादत) करते हैं।किसी अज्ञात विचारक के ये शब्द मनन करने योग्य है कि, “एकता का किला बड़ा प्रौढ़ है,इसके भीतर रहकर कोई प्राणी दुःख नहीं पाता।

4.सच्चे धर्म और धार्मिक की पहचान (True Virtuous and the Identity of Virtuous):

प्रश्न:1.सच्चा धार्मिक कौन है? (Who is truly religious?):

  • उत्तर:धार्मिकता है संवेदनशीलता का चरमोत्कर्ष।इसकी प्राप्ति के लिए एक ही साधना है-दूसरों की शांति के लिए अशांत होना,अपने आप को दलित द्राक्षा की भांति निचोड़कर महाअज्ञात के चरणों में उँडेल देना।
  • निश्चित रूप से सच्चा धार्मिक वही हो सकता है,जिसके हृदय में दूसरों के कष्ट,पीड़ा एवं दुःख को समझने की संवेदना हो और उस कष्ट के निवारण की तत्परता हो।ऐसी धार्मिकता ही व्यक्ति का कल्याण करती है।धार्मिकता के नाम पर किए जाने वाले बाहरी कर्मकांड,प्रदर्शन व्यक्ति की वास्तविक प्रगति नहीं कर सकते।धर्म का एक अर्थ कर्त्तव्यपरायणता भी है।अपने कर्त्तव्य को समझना और उसका पालन करने का यथासंभव प्रयत्न करना भी धार्मिक होना है।ऐसे ही धार्मिक लोगों की धर्म रक्षा करता है,सन्मार्ग व सद्गति देता है।
  • धर्म परायण होने पर व्यक्ति के भाव में परिष्कार होता है,हृदय का विस्तार होता है।दूसरों के दुःख-दर्द अपने प्रतीत होते हैं और उन्हें दूर करने की कसक-पीड़ा भी मन में उत्पन्न होती है।अतः धार्मिक-आस्तिक होने के लिए वह सब कार्य करना चाहिए,जिससे सबका कल्याण हो,फिर चाहे वह जप,यज्ञ,दान,सेवा,परोपकार,सहायता ही क्यों ना हो।वे सभी कर्म,जिनसे सब का हित हो,आंतरिक भावों की शुद्धि हो एवं भावनाओं का विस्तार हो,धर्म के अंतर्गत आते हैं और वे सभी कर्म,जो इसके विपरीत हैं,अधर्म के अंतर्गत आते हैं।
  • आज की परिस्थिति में धर्म,जाति के नाम पर किए जाने वाले झगड़े हिंसा की प्रवृत्ति के होते हैं।इनमें से किसी का हित नहीं सधता है और न ही इनका परिणाम कल्याणदायक होता है।अतः धार्मिकता के सही अर्थों को समझकर जीवन में उसे अपनाना बहुत आवश्यक है।तभी धर्म की समाज में सच्चे अर्थों में स्थापना हो पाएगी और यह धर्म ही व्यक्ति एवं समाज की रक्षा कर पाएगा।

प्रश्न:2.धर्म की व्याख्या करें (Explain Virtuous):

  • उत्तर:धर्म की संपूर्ण व्याख्या करना तो बहुत मुश्किल है। परंतु संक्षिप्त में कहें तो जिन कर्मों को करने से वर्तमान और आगामी जीवन सुधरता हो वही धर्म है।जितने भी सत्कर्म है,जिनसे हमको सुख मिलता है और दूसरों को सुख मिलता है,वे सब धर्म के अंदर आ जाते हैं।

प्रश्न:3.धार्मिक मनुष्य की कैसे पहचान करें? (How to identify a religious person?):

  • उत्तर:जिस मनुष्य में धैर्य हो,क्षमा हो,मन पर नियंत्रण हो,जो मन,वचन,कर्म से किसी वस्तु की चोरी न करता हो,जो भीतर और बाहर से पवित्र हो,जो इंद्रियों को विषयों की ओर से रोकता हो,जो विवेकशील हो,जो विद्वान हो,जो सत्यवादी,सत्यमानी और सत्यकारी हो,जो क्रोध न करता हो,वही धार्मिक है।इन बातों को कोई व्यक्ति अपने आचरण में उतार ले तो,न तो स्वयं दुःख पावे,न कोई उसको दुःख दे सके और न वह किसी को दुःख दे सके।

प्रश्न:4.मरने के बाद मनुष्य का साथ कौन देता है? (Who supports people after they die?):

  • उत्तर:मनुष्य इस संसार में जो सत्कर्म करता है,जो कुछ वह धर्म संचय करता है,वही इस लोक (वर्तमान जीवन) में उसके साथ रहता है और उस लोक (आगामी जीवन) में भी वही साथ जाता है।
  • मनुष्य के मरने पर घर के लोग उसके मृत शरीर को काठ अथवा मिट्टी के ढेले की तरह श्मशान में विसर्जन करके विमुख लौट आते हैं,सिर्फ उसका सत्कर्म-धर्म ही उसके साथ जाता है।

प्रश्न:5.अधर्म से क्या हानि है? (What is the harm in unrighteousness?):

  • उत्तर:जो लोग धर्मपूर्वक कार्य नहीं करते,अधर्म से कार्य करते हैं-उनकी पहले वृद्धि होती है,परंतु वही वृद्धि उनके नाश का कारण होती है।कहा भी है कि “बोया पेड़ बबूल का,तो आम कहाँ ते होय”।
  • मनुष्य अधर्म से पहले खूब बढ़ता है,उसको सुख मालूम होता है (अन्याय से),शत्रुओं को भी जीतता है;परंतु अन्त में जड़ से नाश हो जाता है।इसलिए धर्म की मनुष्य को रक्षा करनी चाहिए अर्थात् धर्म का पालन करना चाहिए।जो मनुष्य धर्म को मारता है,धर्म भी उसको मार देता है; और जो धर्म की रक्षा करता है,धर्म भी उसकी रक्षा करता है।अतः धर्म को किसी भी दशा में नहीं छोड़ना चाहिए।

प्रश्न:6.धर्म का त्याग क्यों नहीं करना चाहिए? (Why should we not renounce Virtuous?):

  • उत्तर: न तो किसी कामनावश,न किसी भी प्रकार के भय से;और न लोभ से-यहां तक की जीवन के हेतु से भी-धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए; क्योंकि धर्म नित्य है और ये सब सांसारिक सुख-दुख अनित्य हैं।जीव,जिसके साथ धर्म का संबंध है,वह भी नित्य (हमेशा रहने वाला,शाश्वत) है ;और उसके हेतु जितने हैं,वे सब अनित्य हैं।इसलिए किसी भी कारण से धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए।
  • अपना धर्म चाहे उतना अच्छा ना हो;और दूसरे का धर्म चाहे बहुत अच्छा भी हो,पर तो भी (दूसरे का धर्म स्वीकार नहीं करें) अपने धर्म में मर जाना अच्छा;पर दूसरे का धर्म खतरनाक है।

प्रश्न:7.मनुष्य और पशु में क्या भेद है? (What is the difference between man and animal?):

  • उत्तर:मनुष्य और पशु में यही तो भेद है कि,मनुष्य को भगवान ने धर्म दिया है,और पशुओं को धर्माधर्म का कोई ज्ञान नहीं।
    आहार,निद्रा,भय,मैथुन (संतान उत्पत्ति करना) इत्यादि सांसारिक बातें पशु और मनुष्य,दोनों में एक ही समान होती हैं।एक धर्म ही मनुष्य में विशेष होता है; और जिस मनुष्य में धर्म नहीं,वह पशु के तुल्य है।

प्रश्न:8.मनुष्य धर्म का पालन क्यों नहीं करते और पालन क्यों करना चाहिए? (Why do human beings not follow Virtuous and why should they follow it?):

  • उत्तर:मनुष्य को चाहिए कि,अपने इस जीवन और आगामी जीवन की उन्नति के लिए सदैव अच्छे गुणों को धारण करें।कई लोग कहा करते हैं कि,अभी तो हमारा बहुत-सा जीवन बाकी पड़ा है।जब तक बच्चे हैं,खेले-कूदें,जवानी में खूब आनंद भोग करें;फिर जब बूढ़े होंगे,तो धर्म देख लेंगे।यह भावना बहुत ही भूल की है।क्योंकि जीवन का कोई ठिकाना नहीं है।ना जाने मृत्यु कब आ जावे।फिर यौवन,धन,संपत्ति का भी यही हाल है।ये सब सदैव रहने वाली चीजें नहीं है।धर्म तो मनुष्य का जीवन भर साथी है;और मरने के बाद भी वही साथ देता है।इसलिए बाल-अवस्था से ही धर्म का अभ्यास करना चाहिए।धर्म के लिए कोई समय निश्चित नहीं है कि,अमुक अवस्था में ही मनुष्य धर्म करे।
  • महाभारत में वेदव्यास जी ने कहा है कि,”मनुष्य के धर्माचरण का कोई समय निश्चित नहीं है;और न मृत्यु ही उसकी प्रतीक्षा करेगी।मृत्यु ऐसा नहीं सोचेगी कि,कुछ दिन और ठहर जाओ,जबकि यह मनुष्य धर्म कर ले,तब इसका ग्रास करो।इसलिए जबकि मनुष्य,एक प्रकार से सदैव ही मृत्यु के मुख में रहता है,तब मनुष्य के लिए यही शोभा देता है कि,वह सदैव धर्म का आचरण करता रहे।

प्रश्न:9.अध्यात्म और धर्म में क्या संबंध है? (What is the relationship between Virtuous and spirituality?):

  • उत्तर:अध्यात्म,धर्म का मार्ग निर्देशक है जिसके ज्ञान के बिना धर्म अंधविश्वास एवं पाखंड मात्र रह जाता है तथा वह अपने मार्ग से ही भटक जाता है।धर्म जीवात्मा की आध्यात्मिक उपलब्धि की निधि है।बिना आध्यात्मिक दिशा-निर्देश के,धर्म पर चलने वाला,अंधेरे में तीर चलाने के समान है,लक्ष्यहीन जीवन जीने के समान है,जिससे वह कभी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकता।धर्म वह विद्या है जिसे मनुष्य वर्तमान जीवन और आगामी जीवन को सुखी बनाकर स्वचेतना का विकास करते हुए अंत में उस भगवदीय चेतना से संयुक्त हो जाता है जो उसकी परमगति है।धर्म इसी परमगति को प्राप्त करने की विधि है।अध्यात्म विज्ञान है और धर्म उसकी तकनीक है।आध्यात्मिक ज्ञान पक्ष और धर्म उसका आचरण और क्रियापक्ष है जिस पर चलकर जीवात्मा अपनी उन्नति करता चला जाता है।धर्म के बिना उसकी उन्नति नहीं होती।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए धार्मिक होने की 4 तकनीक (4 Technique for Students to Be Virtuous),आध्यात्मिक और धार्मिक होने की 4 बेहतरीन तकनीक (4 Best Techniques for Being Spiritual and Pious) के बारे में बताया गया है।

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5.बलवान आर्ट्स का छात्र (हास्य-व्यंग्य) (Powerful Arts Student) (Humour-Satire):

  • आर्ट्स का छात्र (गणित के छात्र से):सभी छात्र-छात्राओं में मुझसे बलवान कोई छात्र नहीं है (अपनी शारीरिक गठन को दिखाते हुए)।
  • गणित का छात्र:अगर इतने ही बलवान हो तो एक छोटा सा गणित का सवाल हल करके बता दो।

6.छात्र-छात्राओं के लिए धार्मिक होने की 4 तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 4 Technique for Students to Be Virtuous),आध्यात्मिक और धार्मिक होने की 4 बेहतरीन तकनीक (4 Best Techniques for Being Spiritual and Pious) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:10.धर्म का सार क्या है? (What is the essence of Pious?):

उत्तर:धर्म का सार है सदाचार और कर्त्तव्य का पालन करना।श्रेष्ठ,सदाचारी पुरुषों के जीवन की उदात्त,हितकारी,आचरण की बातों पर अमल करना धर्म का सार है।जो कुछ तुम अपने लिए हानिप्रद और दुखदायी समझते हो वह दूसरों के साथ मत करो।

प्रश्न:11.जगत का सार क्या है? (What is the essence of the world?):

उत्तर:धर्म से अर्थ उत्पन्न होता है।धर्म से सुख प्राप्त होता है।धर्म से मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है।धर्म जगत का सार है।

प्रश्न:12.धर्म के लक्षण क्या हैं? (What are the characteristics of Pious?):

उत्तर:मनुस्मृति के अनुसार धर्म के 10 लक्षण हैं:धैर्य,क्षमा,मन पर नियंत्रण,चोरी न करना,बाहर-भीतर की पवित्रता,इंद्रिय निग्रह,सद्बुद्धि (विवेक),विद्या,सत्य और अक्रोध।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए धार्मिक होने की 4 तकनीक (4 Technique for Students to Be Virtuous),आध्यात्मिक और धार्मिक होने की 4 बेहतरीन तकनीक (4 Best Techniques for Being Spiritual and Pious) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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