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5 Tips for Using Power of Intuition

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1.अंतर्ज्ञान शक्ति का प्रयोग करने की 5 टिप्स (5 Tips for Using Power of Intuition),अन्तर्ज्ञान शक्ति का प्रयोग कैसे करें? (How to Use Intuition Power?):

  • अंतर्ज्ञान शक्ति का प्रयोग करने की 5 टिप्स (5 Tips for Using Power of Intuition) के आधार पर जान सकेंगे की अंत:चक्षु,इनट्यूशन पावर का प्रयोग कैसे किया जाए? सामान्यतः आधुनिक शिक्षा में छात्र-छात्राओं को मानसिक क्षमता (बौद्धिक शक्ति) को बढ़ावा दिए जाने के ही प्रयास किए जाते हैं।
  • परंतु आत्मिक शक्ति,अंतर्ज्ञान शक्ति के बिना बौद्धिक शक्ति का उपयोग नहीं किया जा सकता है।केवल बौद्धिक ज्ञान से छात्र-छात्राएं तथा व्यक्ति अहंकारी हो जाते हैं।
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2.अंतर्ज्ञान शक्ति के उदाहरण (Examples of intuition power):

  • दृश्य एक:जनक याज्ञवल्क्य से पूछते हैं-“पुरुष किस ज्योति के आश्रय से उबरता है,भटकता नहीं,कर्म करता है।” याज्ञवल्क्य उत्तर देते हैं-“सूर्य की ज्योति से।” जनक आगे पूछते हैं-“यदि सूर्य अस्त हो जाए,तो?” उत्तर मिलता है, “चंद्र की ज्योति से।” जनक पूछते हैं-“यदि सूर्य और चंद्र दोनों अस्त हों,तो?” याज्ञवल्क्य का उत्तर है-” अग्नि के आश्रय से।” जनक फिर पूछते हैं-” यदि अग्नि भी शांत हो जाए,तो?” अब याज्ञवल्क्य का उत्तर एकदम संकेत पूर्ण हो जाता है,” तब पुरुष वाक् का आश्रय लेता है,अंधकार में एक-दूसरे को पुकार कर।” परंतु यह संवाद यहीं समाप्त नहीं हो जाता है।जनक फिर प्रश्न करते हैं-” यदि वाक् भी शांत हो जाए तो?” याज्ञवल्क्य आनन्दपूर्ण मुद्रा में उत्तर देते हैं-“तब पुरुष आत्मा की शरण लेगा।आत्म-ज्योति के आश्रय से संकट से उबरेगा।”
  • दृश्य दो:महर्षि याज्ञवल्क्य अपनी संपत्ति दोनों पत्नियों (मैत्रेयी व कात्यायनी) में बराबर-बराबर बाँटकर गृहत्याग के लिए तैयार हुए।मैत्रेयी को संतोष नहीं हुआ।मैत्रेयी बोली ‘यन्नु म इयं भगोः सर्वा पृथ्वी वित्तेन पूर्णा स्यात्कथं तेनाभृदा स्यामिति अर्थात् हे भगवान (पतिदेव)! अगर धन संपदा से भरी पूरी यह सारी पृथ्वी भी मुझे मिल जाए तो ‘कथं तेन अमृता स्याम’ यानी मैं उससे क्या अमर हो जाऊंगी।महर्षि ने कहा-“साधन-सुविधा संपन्न सुखी जीवन जैसा अब तक चला है आगे भी चलता रहेगा और अन्य सांसारिक लोगों की तरह तुम भी जीवन सुखमय बिता सकोगी।मैत्रेयी बोली यदि केवल भौतिक सुख ही प्राप्त कर पाऊंगी और अमर ना हो पाऊंगी तो “सो होवाच मैत्रेयी येनाहं नामृतास्यां किमहं।तेन कुर्या यदेव भगवान्वेद तदेद मे ब्रूहीति।” (बृहदारण्यक उपनिषद) अर्थात मैत्रेयी ने कहा कि जिस वस्तु से में अमरत्व प्राप्त न कर सकूं उस वस्तु को लेकर मैं क्या करूं? भगवन्! अमर (आत्मज्ञान) होने का जो रहस्य आप जानते हों मुझे उसी का ज्ञान दीजिए।
  • यह थी एक भारतीय नारी की सच्ची अभिलाषा! वास्तविक नारी की गरिमापूर्ण,आदर्शपूर्ण और अद्वितीय महत्वाकांक्षा।दूसरी तरफ कात्यायनी ने भौतिक सुख-सम्पत्ति-ऐश्वर्य को वरीयता दी और उसे पाया।मैत्रेयी चाहती थी उस परम-तत्त्व का साक्षात्कार,एकानुभूति,नित्य-दर्शन जो सत्य,ज्योतिर्मय स्वरूप है,जो उसके जीवन का चिर प्रकाश बन सके।याज्ञवल्क्य ने प्रसन्नचित्त हो मैत्रेयी को ब्रह्मज्ञान की शिक्षा दी।
  • दृश्य तीन:मगध के राजा सर्वदमन को राजगुरु की नियुक्ति अपेक्षित थी।वह स्थान बहुत समय से रिक्त पड़ा था।एक दिन वहां पंडित दीर्घ लोभ उधर से निकले।राजा से भेंट-अभिवादन के उपरांत महापंडित ने कहा-“राजगुरु का स्थान आपने रिक्त छोड़ा हुआ है।उचित समझें तो उस स्थान पर मुझे नियुक्त कर दें।
  • राजा बहुत प्रसन्न हुए।साथ ही एक निवेदन भी किया।आपने जो ग्रंथ पढ़ें हैं कृपया एक बार सबको फिर पढ़ लें।इतना कष्ट करने के उपरांत आपकी नियुक्ति होगी।जब तक आप आएंगे नहीं वह स्थान रिक्त ही पड़ा रहेगा।
    विद्वान वापस अपनी कुटी में चले गए और सब ग्रंथ ध्यानपूर्वक पढ़ने लगे।जब पढ़ लिए तो फिर नियुक्ति का आवेदन लेकर राज दरबार में उपस्थित हुए।
  • राजा ने अबकी बार फिर और भी अधिक नम्रतापूर्वक एक बार फिर उन ग्रन्थों को पढ़ लेने के लिए कहा।दीर्घ लोभ असमंजस पूर्वक फिर पढ़ने के लिए चल दिए।
  • नियत अवधि बीत गई पर पंडित वापस न लौटे।तब राजा स्वयं पहुंचे और न आने का कारण जानने लगे।पंडित ने कहा-“गुरु अंतरात्मा में रहता है।बाहर के गुरु काम चलाऊ भर होते हैं।आप अपने अंदर के गुरु से परामर्श लिया करें।
    राजा ने नम्रतापूर्वक पंडित जी को साथ ले लिया और उन्हें राजगुरु के स्थान पर नियुक्त किया।बोले-” अब आपने शास्त्रों का सार जान लिया,इसलिए आप उस स्थान को सुशोभित करें।

3.अंतर्ज्ञान के उपर्युक्त उदाहरणों का निष्कर्ष (Conclusion of the above-mentioned examples of intuition):

  • वाक् का आश्रय लेकर उबरने का अर्थ यह होता है कि समस्त बाह्य अथवा स्थूल स्रोतों से प्राप्त ज्योतियों के अस्त हो जाने पर,वाक् अर्थात् भाषा और सत्साहित्य ही बच निकलने,उबरने का,एकमात्र उपाय है।परंतु भारतीय मनीषी यहीं नहीं रुक जाते हैं।वे चरम स्थिति की कल्पना करते हैं-“कोई असुर या कोई अधिनायक या कोई कुटिल तंत्र वाणी को स्तब्ध कर दे,तब क्या किया जाए?” बस,इस चरम स्थिति के परे “आत्मा का क्षेत्र आ जाता है।आत्मा की परिकल्पना शुद्ध भारतीय है।याज्ञवल्क्य का अंतिम उत्तर भारतीय प्रज्ञा का उत्तर है।
  • राजा वाजश्रवा के पुत्र नचिकेता ने यमराज से आत्मज्ञान का रहस्य पूछा तो उन्होंने बताया कि सद्ज्ञान प्राप्त करो और विद्या का अध्ययन (आजकल की केवल भौतिक शिक्षा ही नहीं) करो तो तुम्हें सिर्फ इसी प्रश्न का नहीं बल्कि संसार के सभी प्रश्नों का उत्तर प्राप्त हो सकता है।क्योंकि विद्या वह खजाना है जिसकी बराबरी संसार की कोई वस्तु नहीं कर सकती।यमराज से लौटने के बाद नचिकेता अध्ययन में लग गया।क्योंकि जीवन की सही राह उसे प्राप्त हो चुकी थी।

4.अंतर्ज्ञान शक्ति को कैसे जागृत करें? (How to awaken intuition power?):

  • आत्म-ज्योति,आत्मज्ञान,अंतर्ज्ञान,आत्मिक ज्ञान,प्रज्ञा,आत्म-शक्ति,आत्मिक प्रकाश आदि समानार्थक शब्द हैं इसलिए इनसे भ्रमित नहीं होना चाहिए।आत्म-ज्योति के आश्रय से व्यक्ति सारे संकटों के मध्य अपने भीतर ‘अंतर्यामी’ को,अपनी अस्मिता की दिव्यशक्ति को,दृढ़ भाव से पकड़ेगा और गहनतम संकट में भी अपनी रक्षा कर लेगा।आत्म-ज्योति के आश्रय से भारतीय प्रज्ञा आत्म-साक्षात्कार का मार्गदर्शन करती है।इसे एक सच्चा विद्यार्थी साक्षात्कार की अनुभूति करता है।दार्शनिकों ने इसे आत्मा की मुक्तावस्था कहा है और साहित्य की भाषा में इसे हृदय की मुक्तावस्था अथवा रस दशा कहा है।मंतव्य सबका एक समान है।
  • आत्मा का आश्रय ग्रहण करने पर किसी बाह्य आश्रय की आवश्यकता नहीं रह जाती है।बाह्य का आश्रय परतंत्रता या पराधीनता है,आत्म का आश्रय स्वतंत्रता या स्वाधीनता है।’स्व’ का अस्मिता (individuality) है,जो परमात्मतत्व (divinity) के समक्ष है।मात्र ‘स्व’ के आश्रय में रहने वाला व्यक्ति ही अपने को स्वतंत्र कह सकता है।’स्व’ का अर्थ आत्मनिर्भरता है।वही व्यक्ति अथवा राष्ट्र स्वतंत्र है,जो आत्मनिर्भर है,जो अपने में पूर्ण नहीं है,वह कैसे कह सकता है कि वह स्वतंत्र है।स्वतंत्रता का अभाव परतंत्रता है,आत्मनिर्भरता का अभाव पराश्रयता है अथवा परोपजीविता है।
  • जो व्यक्ति,छात्र छात्राएं तथा लड़का-लड़की आत्मनिर्भरता का महत्त्व समझते हैं,वे उसका स्वाद भी जानते हैं,इसी से भीख मांगना (निष्कृष्ट कर्म करना) बुरा समझते हैं और इस स्वार्थी दुनिया से बचकर रहते हैं,क्योंकि दुनिया के अधिकांश व्यक्ति आत्मनिर्भर नहीं हैं,वे आत्मनिर्भर बनना भी नहीं चाहते हैं,क्योंकि आत्मनिर्भरता का मार्ग कठिन है,कंटकाकीर्ण है।जिसे अस्मिता की दिव्यशक्ति की ज्योति प्राप्त है,वह किसी बाह्य ज्योति का आश्रय क्यों ग्रहण करने लगा? पश्चिमी मनीषा ‘वाक्’ के आगे सोच नहीं पाती है।अतएव पश्चिमी मनीषा द्वारा प्रभावित व्यक्ति अपनी सामर्थ्य एवं स्वतंत्रता के प्रति सदैव सशंकित बना रहता है।वह आत्म-ज्योति के अस्तित्व से ही अपरिचित है।
  • बाह्य-ज्योति का आश्रय प्राप्त (भौतिक ज्ञान) करने के लिए वह कुंडल में कस्तूरी धारण करने वाले मृग की भाँति सदैव भटकाव की स्थिति में बना रहता है।वह प्रत्येक पदार्थ और प्रत्येक व्यक्ति का आश्रय प्राप्त करने के लिए लालायित बना रहता है-यह सोचकर कि सम्भवतः इससे मुझे वह ज्योति प्राप्त हो सके,जो शाश्वत है,जिसके आश्रय में किसी बाह्य-ज्योति की,वाक्शक्ति की भी आवश्यकता नहीं रह जाएगी।
  • यह तो हुई उच्चादर्श के अनुसरण की दशा,परंतु इतनी उच्च मनोभूमि पर व्यक्ति कहां टिक पाता है? वह सूक्ष्म जगत में अपनी इच्छा का प्रतिबिंब देखकर वासना के जगत में भिखारी की भाँति व्यवहार करने लग जाता है,क्योंकि उसको प्रत्येक व्यक्ति आत्मनिर्भर दिखाई देता है।
  • लोभ का चश्मा हटते ही सब विद्यार्थी और छोटे दिखाई देने लगते हैं,क्योंकि वे सब बाहायाश्रय की प्राप्ति हेतु छीना-छपटी,लूट-खसोट,हिंसा-अपहरण आदि में संलग्न है।
  • परंतु हमारा दुर्भाग्य यह है कि विज्ञान,तकनीकी,प्रौद्योगिकी के सर्वग्रासी प्रभाववश हम अपनी बौद्धिकता पर दम्भ करने के कारण भारतीय प्रज्ञा के आनुवंशिक उत्तराधिकार से अपने को वंचित कर बैठे हैं और इंद्रिय-सामर्थ्य को ही सब कुछ अंतिम उपलब्धि समझ बैठे हैं।यही कारण है कि हमारा बुद्धिजीवी वर्ग ‘छिन्नमूल’ हो गया है और वह ‘आत्म-ज्योति’ के आश्रय के प्रति अनभिज्ञ बना हुआ है।वह यदि आत्म-ज्योति का आश्रय ग्रहण कर सके,तो उसकी नेत्र-ज्योति को भी नई ज्योति प्राप्त हो जाए और वह बाह्य-ज्योति के आश्रयों सूर्य,चंद्र,अग्नि,वाक् आदि को एक नवीन अर्थवत्ता प्रदान कर सके।संश्लेषणात्मक मेधा द्वारा,मूल संश्लिष्ट होकर ही,हम स्वयं को तथा समाज को कुछ विशुद्ध एवं शिव दे सकेंगे अन्यथा।पराश्रय अथवा भिक्षावृत्ति के आश्रित बने रहने में ही अपना कल्याण देखेंगे।
  • आप और हम सब उस ज्योति का आश्रय ग्रहण करने के लिए प्रयत्नशील क्यों ना हो,जो हमारी अस्मिता है और स्थाई रूप से हमारे भीतर स्थित है तथा जिसकी ज्योति अन्य समस्त ज्योतियों को निरर्थक और व्यर्थ न बताकर उन्हें भी एक नवीन आयाम और अतिरिक्त गुणवत्ता प्रदान कर देती है।

5.अंतर्ज्ञान में बाधक तत्व (Barriers to intuition):

  • अधिकांश छात्र-छात्राओं तथा व्यक्तियों को बाह्य चक्षुओं के अतिरिक्त आन्तरिक चक्षु भी प्राप्त हैं।हमारे आदि ग्रंथ बराबर आंतरिक तथा आत्मिक प्रकाश की चर्चा करते आए हैं।उनके विचार से आंतरिक प्रकाश सर्वथा विश्वसनीय रहता है।बाह्य प्रकाश में भ्रम उत्पन्न होते हैं, परंतु आंतरिक जगत में प्राप्त प्रकाश में भ्रम उत्पन्न होने की कोई संभावना नहीं होती है।लोक-व्यवहार में भी कहा जाता है कि ‘कपार की फूट गई थी,हिय की तो मौजूद थी’।अस्तु बाह्य और आन्तरिक चक्षुओं में बाह्य चक्षुओं अर्थात् बुद्धि का विकास करने पर तो बहुत ध्यान दिया जाता है।परंतु इस बौद्धिक विकास से मिलने वाली सफलता में अहंकारी,लोभी,कामुक,क्रोधी आदि मानसिक विकारों से भी ग्रस्त कर देती है।
  • हमारा ध्यान इस तरफ रहता नहीं है तथा संग-साथियों की संगत,दुनियादारी की हवा तथा विद्या (उचित शिक्षा),गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आंतरिक गुणों को विकसित करने वाली शिक्षा न मिलने के कारण छात्र-छात्राएँ तथा लोग मनोविकारों से ग्रस्त होते चले जाते हैं।
  • दरअसल वे सांसारिक व्यवहार,स्वार्थी दुनिया से निपटने के लिए काम,क्रोधादि विकारों को स्वयं ग्रहण करते हैं और जीवन जीने के लिए इन दुर्गुणों को अपनाना आवश्यक समझते हैं।परंतु जब वे किसी संकट में फँसते हैं और उस संकट से निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता है तब उन्हें एहसास होता है कि उनके व्यक्तित्व में कोई कमी खामी रह गई है।
  • लेकिन एक बार दुर्गुणों के जाल में फंसने के बाद उनसे पीछा छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है।सद्गुणों को धारण करने में शुरू में भले ही उन्हें परेशानी महसूस होती है परंतु आगे का पूरा जीवन निष्कंटक हो जाता है।
  • मनोविकारों से मुक्ति मिलने पर ही हमें अंतर्ज्ञान की अनुभूति होती है।हमारे अंतर्चक्षु खुलते हैं।जिसके अंतर्चक्षु खुल चुके हैं,जिसे आत्मज्ञान का रास्ता पता चल गया है और उस पर चल पड़े हैं उन्हें स्वयं किसी भी विपत्ति,संकट,समस्या,अध्ययन में आने वाली अड़चनों का समाधान करने के लिए दूसरों पर आश्रित नहीं रहना पड़ता है बल्कि वे स्वयं ही अंतर्ज्ञान के आधार पर मार्गदर्शन प्राप्त कर लेते हैं।उन्हें कहीं भटकना नहीं पड़ता है।
  • परंतु यह हमारी शिक्षा पद्धति,शिक्षा प्रणाली की विडम्बना ही है कि शिक्षा प्रणाली के कर्त्ता-धर्ता,शिक्षा के पाठ्यक्रम को निर्माण करने वाले विद्वान भारत की पुरातन संपदा को भुला बैठे हैं।गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का समावेश नहीं कर पा रहे हैं।फलतः आज युवा वर्ग आधुनिक शिक्षा प्राप्त करके भी चोरी,डकैती,लूटपाट,अपहरण,बैंक डकैती,हत्या,यौन शोषण,बलात्कार,मादक द्रव्यों के सेवन करने,परीक्षा में अनुचित साधनों के अपनाने आदि कृत्यों को करने में संकोच नहीं करता है।आज का अधिकांश युवावर्ग दिशाहीन,संवेदनहीन हो चुका है लेकिन तब भी भारत के नेताओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लागू करने की आवश्यकता महसूस नहीं होती है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अंतर्ज्ञान शक्ति का प्रयोग करने की 5 टिप्स (5 Tips for Using Power of Intuition),अन्तर्ज्ञान शक्ति का प्रयोग कैसे करें? (How to Use Intuition Power?) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:How is Knowledge and Wisdom True Guide?

6.कितनो से पिट चुके? (हास्य-व्यंग्य) (How Many Have You Been Beaten?) (Humour-Satire):

  • पत्नी (शिक्षक से):यह तुम यहाँ बैठे-बैठे क्या हरकत कर रहे हो?
  • शिक्षक:छात्र-छात्राओं से पिट रहा हूं।
  • पत्नी:अब तक कितनों से पिट चुके हो?
  • शिक्षक:एक मेल और चार फीमेल स्टूडेंट से।
  • पत्नी:आजकल की ड्रेस और हुलिए से तो पता चलता ही नहीं है कि लड़की है या लड़का।फिर तुम्हें कैसे मालूम?
  • शिक्षक:मेल से पिटने पर ऐसा महसूस हो रहा था जैसे हथोड़े से पिट रहा हूं जबकि लड़कियों से पिटने पर ऐसा महसूस हो रहा था जैसे फोम के गद्दे से पिटाई हो रही है।

7.अंतर्ज्ञान शक्ति का प्रयोग करने की 5 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Tips for Using Power of Intuition),अन्तर्ज्ञान शक्ति का प्रयोग कैसे करें? (How to Use Intuition Power?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.विद्याहीन व्यक्ति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो। (Write a short note on a person without learning):

उत्तर:रूप-यौवन से संपन्न तथा बड़े कुल में जन्मे व्यक्ति भी विद्यहीन होने पर गंध रहित टेसू के फूल के समान शोभा नहीं देता।

प्रश्न:2.किस तरह के छात्र विद्या ग्रहण नहीं कर पाते? (What kind of students are not able to learn?):

उत्तर:अविद्या के भीतर रहते हुए भी अपने को बुद्धिमान और विद्वान मानने वाले मूर्ख उसी प्रकार भटकते और ठोके खाते रहते हैं जैसे अन्धे के पीछे चलने वाले अंधे।

प्रश्न:3.अंतर्ज्ञान को ग्रहण क्यों नहीं कर पाते? (Why can’t we grasp intuition?):

उत्तर:जो (अंतर्ज्ञान,आत्म ज्ञान) बहुतों को सुनने को नहीं मिलता और जिसे बहुत लोग सुनकर भी नहीं समझ सकते,इसका वर्णन करने वाला आश्चर्य अर्थात दुर्लभ है।उसे प्राप्त करने वाला भी बड़ा कुशल कोई एक ही होता है और ऐसे कुशल मनुष्य से शिक्षा प्राप्त करने वाला ज्ञाता भी आश्चर्य है अर्थात् परम दुर्लभ है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अंतर्ज्ञान शक्ति का प्रयोग करने की 5 टिप्स (5 Tips for Using Power of Intuition),अन्तर्ज्ञान शक्ति का प्रयोग कैसे करें? (How to Use Intuition Power?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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