1.विदेशी टीवी चैनलों का दुष्प्रभाव (Side Effects of Foreign TV Channels),विदेशी टीवी चैनलों का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव (Impact of Foreign TV Channels on Indian Culture):
विदेशी टीवी चैनलों का दुष्प्रभाव (Side Effects of Foreign TV Channels) भारतीय संस्कृति पर पड़ता जा रहा है।अब भारतीय नवयुवक-युवतियाँ रहन-सहन,बोलचाल,चाल-चलन आदि में विदेशी सभ्यता और संस्कृति के रंग में रंगते जा रहे हैं। विदेशी चैनलों का आगमन उदारीकरण के दौर से शुरू हुआ था जब भारत में प्रसार भारती विधेयक पारित होने के बाद दूर संचार को स्वायत्तता दी गई थी जिसका विदेशी और भारतीय चैनल दुरुपयोग कर रहे हैं।
आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
उदारीकरण की पूरी प्रक्रिया में विश्व के विभिन्न देशों में विशेषकर,विकासशील देशों की संस्कृतियाँ बाधक हो रही है।उपनिवेशीकरण के युग में जो अवरोध सामरिक और राजनीतिक था,इस वैश्वीकरण (ग्लोबलाइजेशन) के युग में वह सांस्कृतिक है।इस अवरोध को हटाने के लिए जिन आधुनिक हथियारों का प्रयोग हो रहा है,उसका एक प्रमुख माध्यम विदेशी चैनल बन चुके हैं।इसके माध्यम से पश्चिम विशेषकर अमरीकी संस्कृति और उस पर हावी उपभोक्तावाद का प्रसार सारी दुनिया में हो रहा है।इसके चलते जीवन का मुख्य लक्ष्य उपभोग बन गया है और पारिवारिक बंधन,सामाजिक मानदण्ड,सांस्कृतिक विरासत,नैतिक मूल्य जैसे समस्त आदर्श इस उपभोक्तावादी मानसिकता की परिधि में सिमट गए हैं।
इन विदेशी टीवी चैनलों द्वारा दिन-प्रतिदिन अश्लीलता को मिलता बढ़ावा हमारी संस्कृति के समक्ष चुनौती बन गया है।इन टीवी चैनलों द्वारा निर्मित किये जा रहे समाज में व्यक्ति की संवेदनशीलता और सृजनशीलता धीरे-धीरे मृत प्रायः होती जा रही है।रूसी चैनल द्वारा एक व्यस्क चैनल के अंतर्गत देर रात ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं जो हमें एकबारगी तथाकथित आधुनिकता के अंतिम सोपान पर पहुंचा देंगे।बिना किसी बेरोकटोक के ये जारी है।
इन टीवी चैनलों द्वारा स्थापित किये जा रहे सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का जेम्स पेट्रा ने ’20वीं सदी के अंत में सांस्कृतिक साम्राज्यवाद’ शीर्षक लेख में दर्शाया है कि कैसे संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी संस्कृति को तीसरी दुनिया पर राजनैतिक और आर्थिक आधिपत्य कायम करने के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है।पेट्रा के अनुसार सांस्कृतिक प्रभुत्व इस वैश्विक शोषण की स्थायी व्यवस्था का अभिन्न आयाम है।पेट्रा द्वारा मान्य आधुनिक सांस्कृतिक उपनिवेशीकरण के लक्षणों में मुख्य लक्षण निजी मास मीडिया के प्रयोग से साम्राज्यवादी राज्य के स्वार्थों को समाचार और मनोरंजन की तरह प्रस्तुत करना है जो इन चैनलों के समग्र प्रसारण का मूल उद्देश्य है।
इन टीवी चैनलों द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे कार्यक्रमों में नारी पात्रों का जो रूप प्रस्तुत किया जा रहा है,वो भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते’ के लिए कोढ साबित हो रहा है।
अश्लीलता और अप-संस्कृति के पर्याय बन चुके इन कार्यक्रमों ने संविधान के अनुच्छेद 19(2) को अर्थहीन और उद्देश्यहीन कर दिया है जिसमें नैतिकता और शालीनता को महत्त्वपूर्ण माना गया है और जो हमारे सामाजिक जीवन को संपूर्ण राष्ट्र में निर्देशित करती है।इन विदेशी टीवी चैनलों द्वारा दिखाए जा रहे कार्यक्रम अनियंत्रित बाजार अर्थव्यवस्था के अंतर्गत शान्ति और समृद्धि के वायदों और बढ़ती हुई गरीबी एवं हिंसा की वास्तविकता की बीच की खाई को छिपाने की जोरदार कोशिश बना चुके हैं।
3.विदेशी टीवी चैनलों के कारनामें (Exploits of foreign TV channels):
अमेरिकी संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ मानने वाले डेविड कोर्टन भी अपनी पुस्तक ‘when corporation rule of world’ में यह मानने को विवश हो चुके हैं कि विकास का अमेरिकी मॉडल ही समस्त समस्याओं की जड़ है।उनके अनुसार ये देश अपनी संस्कृति के प्रसार द्वारा एक वैश्विक मानव तैयार करते हैं,जिससे कि वे अपनी वैश्विक नीतियों को नियंत्रित कर सकें।
इन विदेशी टीवी चैनलों की एक बड़ी उपलब्धि दिनों-दिन पनपता ‘सूचना साम्राज्यवाद’ है।सुप्रसिद्ध लातिन अमेरिकी शोधकर्ता जान सोमाविया के अनुसार,संसार की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी ‘यूनाइटेड प्रेस इंटरनेशनल’ (यू.पी.आई.) की संपूर्ण सूचना में 70% से अधिक हिस्सा उत्तरी अमेरिका से संबंधित होता है।यू०पी०आई० द्वारा भेजी गई खबरों का प्रमुख शीर्षक अपराध होता है,सारे लेखों का 19.5% होता है जबकि विश्व समाचार 10% होते हैं।
सी०एन०एन० और बी०बी०सी० जैसे चैनलों ने सूचनाओं के प्रसारण के नाम पर समय-समय पर अपनी मंशा का परिचय भी दिया है।सी०एन०एन० द्वारा अपने प्रसारण में भारत के नक्शे से कश्मीर गायब कर देना व बी०बी०सी० द्वारा चरार-ए-शरीफ की घटनाओं में चेचन्या के दृश्य दिखाना इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं।यही नहीं,ये बहुराष्ट्रीय संचार माध्यम भी राजनीतिक समस्याओं और युद्धों में विकसित देशों की ओर से एक पूरा मीडिया युद्ध लड़ते हैं और सिद्ध कर देते हैं कि उनके प्रतिद्वन्द्वी देश गलत है।
विदेशी मीडिया के इन्हीं खतरों को देखते हुए आजादी के तुरंत बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने भारत में विदेशी मीडिया को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया था।इन विदेशी चैनलों द्वारा उत्पन्न सांस्कृतिक खतरे को देखते हुए ही दिल्ली के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट श्री प्रेम कुमार ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद 3 जुलाई,1996 को एक ऐतिहासिक फैसला देकर भारत में विदेशी चैनलों और केबल ऑपरेटरों द्वारा प्रसारित किए जाने वाले अश्लील कार्यक्रमों,विज्ञापनों और फिल्मों पर अगस्त 1996 से रोक लगा दी।
इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘एस रंगराजन बनाम जगजीवनराम’ के मामले में 1989 में दिए गए फैसले को भी ध्यान में रखना उचित होगा,जिसमें सेंसर बोर्ड से ऐसी फिल्मों और कार्यक्रमों के बारे में सतर्कता बरतने को कहा गया है,जो देश की सांस्कृतिक विरासत,नैतिकता एवं मानवीय गरिमा को चोट पहुंचाती है।
विकास के काल्पनिक आंकड़े,समाज को दूषित करने वाले मनोरंजन,साहित्य को तिरस्कृत करने वाली शैली एवं अश्लीलता के पोषक कार्यक्रमों के स्थान पर आज आवश्यकता अपने सांस्कृतिक परिवेश के अनुरूप वातावरण तैयार करने की है,जिसमें अमीर-गरीब,स्वर्ण-अवर्ण सभी आत्म-सम्मान के साथ जी सकें।स्वास्थ्य विभाग का धन यदि एड्स,कोविड-19 महामारी जैसी बीमारी के पीछे बर्बाद हो रहा तो क्या उसके पीछे इसी तथाकथित पश्चिमी संस्कृति का योगदान नहीं है?
तमाम उत्पन्न कुप्रभावों के बाद भी भोगवादी जीवन-दर्शन प्रचारित करते हुए चैनलों पर रोक नहीं लगा पाने का एकमात्र कारण सरकारी इच्छाशक्ति का अभाव है अन्यथा ‘केबल टीवी रेगुलेशन एक्ट’,’इंडिसेंट रिप्रेजेंटेशन ऑफ वूमेन एक्ट’ व ‘इंडियन पैनल कोड’ के अंतर्गत ऐसे कई प्रावधान हैं,जो इन विदेशी चैनलों की शक्ति को कुचलने के लिए पर्याप्त हैं।
4.विदेशी चैनलों का दुष्प्रभाव (Side effects of foreign channels):
भारत में दूरदर्शन व भारतीय चैनल में एकरसता तथा अधकचरे कार्यक्रमों से ऊबे दर्शकों का विदेशी चैनलों की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही है।आज विदेशी चैनल निश्चय ही भारतीय चैनलों से अधिक त्वरित तथा नवीनतम जानकारी देकर दर्शकों की मानसिक क्षुधा को शांत करती है।यदि भारतीय संचार माध्यम उच्च स्तरीय तथा निष्पक्ष प्रसारण करने लगे तो निश्चय ही लोग पुनः भारतीय चैनलों तथा दूरदर्शन की ओर लौटेंगे।
संचार माध्यमों की स्वतंत्रता का महत्त्व तो निर्विवाद है,लेकिन जब विदेशी चैनलें इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके भारत के युवावर्ग को नैतिक पतन की ओर धकेलने का प्रयत्न करें तो हमें सतर्क होना ही चाहिए।इन चैनलों का चूँकि भारत से कोई आत्मिक रिश्ता नहीं होता इसलिए ये बेहिचक व बिना झिझक हमारी आस्थाओं तथा मान्यताओं पर प्रहार करती हैं।इन चैनलों का मुख्य ध्येय है-बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए उपभोक्ता तैयार करना।भारत विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्रों में एक है और मतभेद लोकतंत्र की आत्मा है।ऐसे में मतभेदों को मनभेदों का रूप देकर,खोजी पत्रकारिता के नाम पर उन्हें उछालकर राजनीतिक मनोमालिन्य और गलतफहमियों को बढ़ाना इन चैनलों की प्रथम रुचि है।
कहने का तात्पर्य यह है कि संचार माध्यमों को स्वायत्तता तो दी ही जानी चाहिए,लेकिन इस स्वायत्तता के परिणामों पर भी नजर रखनी चाहिए।यदि स्वायत्तता उच्छृंखलता तथा उद्दण्डता हो जाए,इसका दुरुपयोग यदि कार्यक्रमों को रंगीन तथा उत्तेजक बनाने में होने लगे,यदि स्वायत्तता का मतलब खबरें तैयार करने या सूचनाओं को मनमाना रूप देने का पर्याय हो जाए,तो ऐसी स्वायत्तता नियंत्रित होनी ही चाहिए।
5.विदेशी टीवी चैनलों का भारतीय चैनलों पर प्रभाव (Impact of Foreign TV Channels on Indian Channels):
आज भारतीय टीवी जिस तरह कार्यक्रम पेश कर रहे हैं,उसने हमारे नैतिक मूल्यों,संस्कृति व समृद्धशाली परंपरा को कुचला है।उसका एकमात्र उद्देश्य पैसा कमाना रह गया है।पूंजीवादी और उपभोक्तावादी युग में हम कह सकते हैं कि टीवी भी व्यावसायीकरण से बच नहीं पाया है।
आज टीवी से प्रसारित कार्यक्रमों में हिंसा,आतंक,सेक्स,पश्चिमी जीवन शैली को अपनाने की होड़,यही सब तो दर्शकों को आज देखने को मिलता है।इस तरह के कार्यक्रमों को उच्च वर्ग से लेकर मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग सभी काफी मजे लेकर देखते हैं।एक समय तक जब दूरदर्शन से रामायण,महाभारत,विश्वामित्र,भारत एक खोज आदि जैसे धारावाहिकों का प्रसारण होता था तो सभी वर्गों के लोग उसे चाव से देखते थे।परंतु आज हम दूरदर्शन व अन्य भारतीय प्राइवेट चैनलों को किसी कार्यक्रम के स्तर से इस तरह की उम्मीद नहीं कर सकते जो संपूर्ण जनमानस को बाँध सके।भले कितने नए-नए चैनल क्यों न आ गए हों।
नित नए-नए चैनलों,केबुल व डिश एंटीना व सेटेलाइट चैनल से बराबरी करने के लिए दूरदर्शन ने भी अपनी सोच बदल दी है। एक समय था जब दूरदर्शन से प्रसारित धारावाहिक ‘हम लोग’ व ‘बुनियाद’ जैसे धारावाहिक सुपरहिट रहे थे।ये धारावाहिक आम जनता के लिए थे,जिसमें हर वर्ग के लिए मनोरंजन था,परंतु आज के धारावाहिकों की स्थिति दूसरी है।आज के धारावाहिक वर्ग विशेष को प्रभावित कर रहे हैं।जिनकी शैली का पूर्णतया पश्चिमीकरण हो चुका है,जो पश्चिम के मानदंडों को ही श्रेष्ठ मानते हैं।इन धारावाहिकों में समाज की सभी मान्यताओं को खुलेआम चुनौती दी जा रही है।ज्यादातर धारावाहिकों में नकारात्मक चरित्रों की संख्या बढ़ती जा रही है।
सबसे चिंता का विषय है कि इन धारावाहिकों के पात्रों में पश्चाताप के लिए कोई स्थान नहीं है।’स्वाभिमान’ धारावाहिक के महेंद्र तीन औरतों के साथ संबंध रखते हैं और सीना ताने घूमते हैं।सब काम यहाँ डंके की चोट पर हो रहा है चाहे वह नैतिक दृष्टि से कितना ही गलत क्यों ना हो?
टीवी पर उन्मुक्तता की आंधी के चलते और यौन संबंध,विवाहेतर संबंध,समलैंगिकता जैसे विषय भी बाजार में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।पहले इस पर विरोध भी होता था,पर अब धारावाहिकों के माध्यम से खुलेआम इस तरह के विषय दर्शकों तक पहुंच रहे हैं।भारतीय समाज धीरे-धीरे इसे स्वीकृति दे रहा है।जिस गति से उसे इन सब चीजों की घुट्टी पिलाई जा रही है,उस परिप्रेक्ष्य में आम दर्शक यही कहकर स्वीकार कर लेता है कि ‘सब चलता है’।
दूरदर्शन व टीवी विज्ञापन का सफल और प्रभावी माध्यम है।स्त्रियों का विज्ञापन संबंधी अंग प्रदर्शन,सौंदर्य-प्रसाधन,भाव-भंगिमा,उत्तेजक दृश्य और संवाद आज की नवयुवतियों तथा नवयुवकों को बेहद आकर्षित करते हैं जिसका उन पर बुरा असर पड़ता है।टीवी बच्चों,वयस्कों तथा वृद्धों के संकोच के अंतर को समाप्त करता जा रहा है,जिससे व्यावहारिक स्तर गिर रहा है,क्योंकि आज बहुत से आपत्तिजनक दृश्य अभिभावक अपने बच्चों,युवा पुत्रियों के साथ बैठकर देखते हैं।बच्चों की टीवी कार्यक्रम में गहरी रुचि उनकी शिक्षा पर बुरा असर डालती है।फैशन तथा विलासिता में वृद्धि भी इसी की देन है।
टीवी के अश्लीलता,नग्नता,उद्दण्डता,बलात्कार,अपहरण,सेक्स तथा अन्य अनेक असामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया है।इसने उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा देकर हमारे समाज को खोखला कर दिया है।
टीवी पर प्रसारित खिचड़ी भाषा भारतीय भाषाओं की स्वाभाविकता को नष्ट कर दिया है।यही स्थिति रही तो,21वीं सदी के दौरान हमारी सांस्कृतिक सोच,सांस्कृतिक प्रदूषण इस कदर बदतर हो जाएगा कि भारत अपनी अस्मिता ही खो देगा।अतः जरूरत है हमें भी जनसंचार नीति के विशेषज्ञों द्वारा अपनी रणनीति तय करने की।
उपर्युक्त आर्टिकल में विदेशी टीवी चैनलों का दुष्प्रभाव (Side Effects of Foreign TV Channels),विदेशी टीवी चैनलों का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव (Impact of Foreign TV Channels on Indian Culture) के बारे में बताया गया है।
एक बार दो छात्रों के बीच लड़ाई हो रही थी।एक छात्र नकल न करने के पक्ष में तर्क दे रहा था और दूसरा छात्र नकल करने के तर्क दे रहा था।
पहला छात्र:आखिर तुम नकल करने पर इतने आमदा क्यों हों,जबकि आज नकल करने वालों को पकड़ने के अनेक तरीके सरकार अमल कर रही है।पकड़े जाओगे तो जेल के सींखचों के पीछे चले जाओगे।
दूसरा छात्र:जिसने नकल करने में की शर्म उसके फूटे कर्म।
7.विदेशी टीवी चैनलों का दुष्प्रभाव (Frequently Asked Questions Related to Side Effects of Foreign TV Channels),विदेशी टीवी चैनलों का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव (Impact of Foreign TV Channels on Indian Culture) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.विदेशी टीवी चैनलों के दुष्प्रभाव कैसे रोकें? (How to prevent the ill effects of foreign TV channels?):
उत्तर:किसी भी नीति की सफलता नीयत के साफ रहने पर निर्भर करती है।विदेशी चैनलों पर होने वाले सारहीन कार्यक्रमों के दुष्प्रभाव पर तो सरकार ध्यान रखे ही,साथ ही दूरदर्शन तथा प्राइवेट भारतीय चैनलों पर अच्छे,नैतिक,ज्ञानवर्धक,संस्कृति को बढ़ावा देने वाले चैनलों को प्रोत्साहित करना चाहिए।टीवी के कार्यक्रमों का काम सिर्फ मनोरंजन करना या अर्थ लाभ एकत्र करना नहीं होना चाहिए।
प्रश्न:2.भारतीय टीवी के कार्यक्रमों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो। (Write short comments on Indian TV programmes):
उत्तर:आज टीवी के बहुतेरे कार्यक्रम ऐसे हैं कि जिसे पूरा परिवार एक साथ बैठकर देख नहीं सकता है,तो अब प्रश्न उठता है कि भारतीय संस्कृति जो प्राचीनकाल से पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय रहे हैं।वेदों,पुराणों,आध्यात्मिक व सांस्कृतिक रूप से समृद्ध अपने देश की संस्कृति को बचाए रखने के लिए भारतीय टीवी को अपने नजरिये में बदलाव लाना होगा।उन्हें पूर्ण व्यावसायिक नजरिया में बदलाव लाना होगा।ऐसे अच्छे-अच्छे स्वस्थ कार्यक्रम दिखाएं जाएं जिससे जनमानस को सही दिशा मिले।स्वच्छ मनोरंजन हो।प्राचीन संस्कृति के बहुतेरे ऐसे पहलू हैं जिन पर कार्यक्रम बनाया जा सकता है।
प्रश्न:3.टीवी चैनलों का सकारात्मक व नकारात्मक उदाहरण दो। (Give positive and negative examples of TV channels):
उत्तर:संचार माध्यमों की स्वतंत्रता के फलस्वरूप एक ओर अमेरिका के वॉटरगेट का रहस्य खुला तथा भारत में अनेक घोटाले सामने आए।दूसरी ओर राजकुमारी डायना एवं उनके प्रेमी की मृत्यु हो गई,क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता ने उच्छृंखलता का रूप धारण कर लिया था।
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विदेशी टीवी चैनलों का दुष्प्रभाव (Side Effects of Foreign TV Channels),विदेशी टीवी चैनलों का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव (Impact of Foreign TV Channels on Indian Culture) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
About my self
I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.
We use cookies on our website to give you the most relevant experience by remembering your preferences and repeat visits. By clicking “Accept”, you consent to the use of ALL the cookies.
This website uses cookies to improve your experience while you navigate through the website. Out of these, the cookies that are categorized as necessary are stored on your browser as they are essential for the working of basic functionalities of the website. We also use third-party cookies that help us analyze and understand how you use this website. These cookies will be stored in your browser only with your consent. You also have the option to opt-out of these cookies. But opting out of some of these cookies may affect your browsing experience.
Necessary cookies are absolutely essential for the website to function properly. This category only includes cookies that ensures basic functionalities and security features of the website. These cookies do not store any personal information.
Any cookies that may not be particularly necessary for the website to function and is used specifically to collect user personal data via analytics, ads, other embedded contents are termed as non-necessary cookies. It is mandatory to procure user consent prior to running these cookies on your website.
Side Effects of Foreign TV Channels
1.विदेशी टीवी चैनलों का दुष्प्रभाव (Side Effects of Foreign TV Channels),विदेशी टीवी चैनलों का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव (Impact of Foreign TV Channels on Indian Culture):
Side Effects of Foreign TV Channels
विदेशी चैनलों का आगमन उदारीकरण के दौर से शुरू हुआ था जब भारत में प्रसार भारती विधेयक पारित होने के बाद दूर संचार को स्वायत्तता दी गई थी जिसका विदेशी और भारतीय चैनल दुरुपयोग कर रहे हैं।
2.विदेशी टीवी चैनलों का प्रस्तुतीकरण (Presentation of Foreign TV Channels):
Side Effects of Foreign TV Channels
Side Effects of Foreign TV Channels
3.विदेशी टीवी चैनलों के कारनामें (Exploits of foreign TV channels):
Side Effects of Foreign TV Channels
Side Effects of Foreign TV Channels
4.विदेशी चैनलों का दुष्प्रभाव (Side effects of foreign channels):
Side Effects of Foreign TV Channels
5.विदेशी टीवी चैनलों का भारतीय चैनलों पर प्रभाव (Impact of Foreign TV Channels on Indian Channels):
Side Effects of Foreign TV Channels
एक समय था जब दूरदर्शन से प्रसारित धारावाहिक ‘हम लोग’ व ‘बुनियाद’ जैसे धारावाहिक सुपरहिट रहे थे।ये धारावाहिक आम जनता के लिए थे,जिसमें हर वर्ग के लिए मनोरंजन था,परंतु आज के धारावाहिकों की स्थिति दूसरी है।आज के धारावाहिक वर्ग विशेष को प्रभावित कर रहे हैं।जिनकी शैली का पूर्णतया पश्चिमीकरण हो चुका है,जो पश्चिम के मानदंडों को ही श्रेष्ठ मानते हैं।इन धारावाहिकों में समाज की सभी मान्यताओं को खुलेआम चुनौती दी जा रही है।ज्यादातर धारावाहिकों में नकारात्मक चरित्रों की संख्या बढ़ती जा रही है।
Side Effects of Foreign TV Channels
6.नकल करने में कैसी शर्म? (हास्य-व्यंग्य) (What Shame in Cheating?) (Humour-Satire):
Side Effects of Foreign TV Channels
7.विदेशी टीवी चैनलों का दुष्प्रभाव (Frequently Asked Questions Related to Side Effects of Foreign TV Channels),विदेशी टीवी चैनलों का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव (Impact of Foreign TV Channels on Indian Culture) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.विदेशी टीवी चैनलों के दुष्प्रभाव कैसे रोकें? (How to prevent the ill effects of foreign TV channels?):
उत्तर:किसी भी नीति की सफलता नीयत के साफ रहने पर निर्भर करती है।विदेशी चैनलों पर होने वाले सारहीन कार्यक्रमों के दुष्प्रभाव पर तो सरकार ध्यान रखे ही,साथ ही दूरदर्शन तथा प्राइवेट भारतीय चैनलों पर अच्छे,नैतिक,ज्ञानवर्धक,संस्कृति को बढ़ावा देने वाले चैनलों को प्रोत्साहित करना चाहिए।टीवी के कार्यक्रमों का काम सिर्फ मनोरंजन करना या अर्थ लाभ एकत्र करना नहीं होना चाहिए।
प्रश्न:2.भारतीय टीवी के कार्यक्रमों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो। (Write short comments on Indian TV programmes):
उत्तर:आज टीवी के बहुतेरे कार्यक्रम ऐसे हैं कि जिसे पूरा परिवार एक साथ बैठकर देख नहीं सकता है,तो अब प्रश्न उठता है कि भारतीय संस्कृति जो प्राचीनकाल से पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय रहे हैं।वेदों,पुराणों,आध्यात्मिक व सांस्कृतिक रूप से समृद्ध अपने देश की संस्कृति को बचाए रखने के लिए भारतीय टीवी को अपने नजरिये में बदलाव लाना होगा।उन्हें पूर्ण व्यावसायिक नजरिया में बदलाव लाना होगा।ऐसे अच्छे-अच्छे स्वस्थ कार्यक्रम दिखाएं जाएं जिससे जनमानस को सही दिशा मिले।स्वच्छ मनोरंजन हो।प्राचीन संस्कृति के बहुतेरे ऐसे पहलू हैं जिन पर कार्यक्रम बनाया जा सकता है।
प्रश्न:3.टीवी चैनलों का सकारात्मक व नकारात्मक उदाहरण दो। (Give positive and negative examples of TV channels):
उत्तर:संचार माध्यमों की स्वतंत्रता के फलस्वरूप एक ओर अमेरिका के वॉटरगेट का रहस्य खुला तथा भारत में अनेक घोटाले सामने आए।दूसरी ओर राजकुमारी डायना एवं उनके प्रेमी की मृत्यु हो गई,क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता ने उच्छृंखलता का रूप धारण कर लिया था।
Side Effects of Foreign TV Channels
Related Posts
About Author
Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.