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Advancement in Life VS Etiquette

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1.जीवन में उन्नति बनाम शिष्टाचार (Advancement in Life VS Etiquette),जीवन में तरक्की का आधार शिष्टाचार (Etiquette is Basis of Progress in Life):

  • जीवन में उन्नति बनाम शिष्टाचार (Advancement in Life VS Etiquette) अर्थात् उन्नति शिष्टाचार से होती है।जो काम रुपये-पैसो से नहीं कराया जा सकता वे कार्य शिष्टाचार से कराये जा सकते हैं।शिष्टाचार से व्यक्ति का सौंदर्य निखर उठता है,खिलता है।
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2.शिष्टाचार को सभी पसंद करते हैं (Etiquette is loved by everyone):

  • शिष्टाचार द्वारा कोई भी व्यक्ति संसार में अपनी उन्नति कर सकता है।आपको जो कुछ भी चाहिए,उसे आप अपनी मुस्कराहट से प्राप्त कर सकते हैं,तलवार के बल पर नहीं।जीवन का तीन-चौथाई आधार अच्छा चाल-चलन है।
    आंधी ने अपनी छोटी बहन मंद वायु की ओर देखा।वह उसे असहाय-सी जानकर मुस्कुराई।थोड़ी देर बाद बोली-‘क्या तुम मेरी तरह शक्ति संपन्न नहीं बनना चाहती?
  • कुछ उत्तर न पाकर फिर बोली-‘देखो,जिस तरह मैं उठती हूं तो दूर-दूर लोग मेरे तीव्र वेग से भयभीत होकर मेरे आने का समाचार न जाने कहां-कहां तक फैला देते हैं।बड़े-बड़े जहाजों को मैं तिनकों की तरह तोड़कर फेंक देती हूं।समुद्र के जल से ऐसी किलोल करती हूं कि पानी की भारी-से-भारी लहरों को पर्वत की ऊँची चोटियों से भी ऊंचा उछाल देती हूं।समुद्र का किनारा विनाश-लीला का दृश्य उपस्थित करता है।मेरा नाम सुनते ही लोग घरों में घुस जाते हैं,परंतु मैं मकानों को भी झकझोर डालती हूं।कमजोर मकान और टीन-टप्पर वाली झोपड़ियां तो मुझे देखते ही उड़ जाती है।मैं भारी वृक्षों को भी उखाड़ फेंकती हूं,तब पशु-पक्षी भी अपनी जान बचाने के लिए आश्रय ढूंढने लगते हैं।मेरी क्रूर सांस से समुद्र-के-राष्ट्र खाक में मिल जाते हैं।क्या कभी तुम्हें इच्छा नहीं होती कि तुम भी मेरे समान शक्तिशाली बनो?’
  • मंदवायु ने हल्की-सी मुस्कराहट के साथ अपना चेहरा ऊपर उठाया और बिना कुछ उत्तर दिए ही अपनी यात्रा पर निकल पड़ी।उसे आते देख नदियां,ताल-तलैया,खेत और जंगल सभी मुस्कराने लगे,रंग-बिरंगे फूलों का कालीन बिछ गया,चारों ओर के वातावरण में मन-भावन महक हिलोरे लेने लगी।भौंरे गुंजाने लगे।लता-कुंजों में पक्षी चहचहाने लगे।चारों ओर ऐसा प्रतीत होने लगा,मानो चैन की वंशी बज रही हो।सभी का जीवन सुखदायी प्रतीत होने लगा।इस प्रकार मंद वायु ने अपनी शक्ति का परिचय तीव्र वेगवाली आंधी को करा दिया।
  • नम्र होना बहुत ही महान गुण है।अनेक व्यक्ति इस संसार में जो काम स्त्री के सौंदर्य से निकालते हैं,वही काम अकेली नम्रता भी करके दिखा सकती है।उसका तत्काल प्रभाव पड़ता है।
  • जो व्यक्ति हंसमुख और प्रसन्नचित रहता है,वही दूसरों के साथ शिष्टाचार से व्यवहार कर सकता है।ऐसा व्यक्ति संसार के किसी भी कोने में जा सकता है।वह यदि झोपड़ी में भी ठहरेगा तो वहां भी आनंद की लहरें बिखेर देगा।जिस समाज में भी जाएगा,वहीं का रत्न हो जाएगा।वह जिस राष्ट्र में भी चला जाएगा,वही अपने को धन्य मानने लगेगा।जो इस दुख-दर्द भरे विश्व में क्षणभर के लिए भी दूसरों को आनंद दे सकता है,उसका आदर-सत्कार कौन नहीं करेगा?
  • कहा जाता है कि प्रसिद्ध उपन्यासकार चार्ल्स डिकेंस जब कमरे में घुसता था तो ऐसा प्रतीत होता था,मानों अचानक आग जल उठी हो।एक विशिष्ट प्रकार का आलोक फैल जाता था।उसी प्रकार जर्मन महाकवि गेटे जब किसी होटल में प्रवेश करता था तो वहां उपस्थित व्यक्ति खाना छोड़कर निहारने लगते और हर्ष से भर उठते।
  • जुलियन राल्फ काम करने के बाद रात को लगभग 2:00 बजे लौटा और किवाड़ खटखटाने लगा।थोड़ी देर में वह देखता है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने आकर द्वार खोला और पूछा,’कहो कुशल से तो हो?’
  • जूलियन ने क्षमा मांगी।इस पर राष्ट्रपति महोदय बोले-‘यदि मैं न आता तो तुम्हें सारी रात बाहर ही पड़े रहना पड़ता।मेरे अतिरिक्त मकान में इस समय कोई भी नहीं है।नौकर है तो सही,उसे भेज भी सकता था,पर वह सो रहा था।मैंने उसे सोने से जगाना ठीक नहीं समझा।’

3.शिष्टाचार को सभी समझ लेते हैं (Etiquette is understood by all):

  • नेपोलियन का जोसेफीन से विवाह हो गया।यह बात बहुत ही सौभाग्यप्रद सिद्ध हुई।यह महिला बड़े विशाल हृदयवाली थी और अद्भुत शक्तिसंपन्न थी।नेपोलियन के एक दर्जन सेवक जो काम न कर पाते,उसे जोसेफीन मुस्कुराहटों से कर देती थी।जिस प्रकार नेपोलियन युद्धक्षेत्र में वीरता दिखाता था,उसी प्रकार जोसेफीन समाज में वीरता दिखाती थी।
  • शारीरिक सुंदरता में कमी को शिष्टाचार से दूर किया जा सकता है।सर्वाधिक सुंदर व्यक्ति वही है जो अपने शिष्टाचार द्वारा दूसरे लोगों पर विजय प्राप्त कर लेता है।शिष्टाचाररहित सौंदर्य का कोई मूल्य नहीं।शिष्टाचार नहीं,प्रेम नहीं,दया,संतोष और सहृदयता नहीं-तो ऐसे सौंदर्य को दूर से प्रणाम।उस समय वह केवल देखने की चीज रह जाती है,व्यवहार की नहीं।
  • शिक्षित मानव के चरित्र और जीवन में एक विशेष सौंदर्य विद्यमान रहता है।हम दूसरे व्यक्तियों की भलाई करते हैं,परंतु भलाई करने का ढंग हमें ज्ञात नहीं होता,इसीलिए उससे हमें अलौकिक आनंद की प्राप्ति नहीं होती।
  • किसी कुत्ते के सामने हड्डी का एक टुकड़ा फेंक दीजिए।वह उसे उठाकर आप पर नज़रें डाले बिना एक ओर चला जाएगा।इसके विपरीत यदि हड्डी के बजाए कुत्ते को रोटी का टुकड़ा देंगे और उसे अपने पास बुलाकर उसके सिर पर हाथ फेरेंगे तो वह बड़े प्रेम से पूछ हिलाकर आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करेगा।इससे यही प्रकट होता है कि एक पशु भी मनुष्य के शिष्टाचारपूर्ण व्यवहार को समझता है।यदि आप अपने अच्छे कार्यों को यों ही फेंक देंगे तो उनसे लाभ उठानेवाले व्यक्तियों के चेहरों पर धन्यवाद-भरी मुस्कराहट का भी न पता चलेगा और वे हर्ष से प्रफुल्लित भी नहीं होंगे।
  • सुशील होना अपने आपमें एक उत्तम संपदा का स्वामी होना है।सदाचारी और शिष्टाचारयुक्त व्यक्ति बिना पैसे के ही सारे संसार की यात्रा सहजता से कर सकते हैं।वे जहां भी जाएंगे,उन्हें सबके द्वार खुले हुए मिलेंगे।वे खरीदे बिना ही सब श्रेष्ठ पदार्थों और वस्तुओं का आनंद लूटते हैं।जिस प्रकार सूर्य का उजाला सब जगह पहुंचता है,उसी प्रकार प्रत्येक घर उनके स्वागत को तत्पर मिलता है।ऐसा हो भी क्यों नहीं? वस्तुत: वे भी तो सब जगह एक विशेष प्रकार का उजाला,शिष्टाचार का प्रकाश और आनंद लेकर ही जाते हैं।वे लोग सबकी भलाई चाहते हैं और ईर्ष्या और द्वेष समूल नाश कर देते हैं।
  • क्या आपको ज्ञान नहीं कि शहद से लिपटे व्यक्ति को मधुमक्खियाँ नहीं काटतीं?
    सभ्य और सुजान व्यक्ति अपने हृदय में कभी भी ऐसे दुर्गुणों को स्थान नहीं देते,जिससे दूसरों का विकास रुके और उनके सुख में बाधा पहुंचे।ऐसे व्यक्ति ईर्ष्या,द्वेष और बदला लेने की प्रवृत्तियों को दूर से ही नमस्कार कर देते हैं,अपने पास नहीं आने देते।शिष्टाचार को समझनेवाले व्यक्ति का हृदय विशाल होता है।वह उदारता से पूर्ण होता है और सदा दूसरों के हित की बात सोचता है।
  • परंतु इस संसार में कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं,जो अपने परिजनों और सेवकों को बात-बात पर झिड़का और डांटा करते हैं।ऐसे लोग स्वभावतः चिड़चिड़े होते हैं,पर यदि उनसे अचानक कोई मिलने आता है तो वह बड़े निरीह और सीधे-सादे से बनकर उससे मिलते हैं।उस समय ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे कभी क्रुद्ध ही नहीं होते।उस समय वे बहुत ही नम्रता से पेश आते हैं,बहुत उदार बन जाते हैं,परंतु उस अभ्यागत के जाते ही उनके व्यवहार में पहले की सी उदासीनता,रूखापन और दुष्टता आ जाती है।

4.शिष्टाचार हमें ऊपर उठाता है (Etiquette lifts us up):

  • एक दिन गोल्डस्मिथ एक दावत में जॉनसन के साथ ही बैठे हुए थे।गोल्डस्मिथ ने जॉनसन से अमेरिका के मूल इंडियन लोगों के बारे में कुछ जानना चाहा।इस पर जॉनसन ने उत्तर दिया-‘सारे उत्तरी अमेरिका में कोई भी ऐसा महामूर्ख व्यक्ति नहीं,जो ऐसा बेहूदा प्रश्न पूछे।’
  • निश्चय ही गोल्डस्मिथ को बहुत बुरा लगा,फिर भी उस विद्वान व्यक्ति ने नम्रतापूर्वक कहा-‘महोदय,एक भले व्यक्ति के साथ इस तरह बातचीत करनेवाला अशिष्ट व गँवार व्यक्ति भी सारे अमेरिका में दूसरा ना होगा।’
  • भद्र पुरुष गंभीर हृदय का व्यक्ति अच्छे और बुरे समय में सदा सादगीपूर्ण व्यवहार करता है।वह न तो अपनी प्रशंसा करना चाहता है और नीच तथा बुरा भी नहीं कहलाना चाहता।वह न तो सफलता से अधिक प्रसन्न होता है और न विफल होने पर दुखी होता है।वह गंदी बातों का पक्ष नहीं लेता और न ही उनकी खोज करता है।वह कभी अपने और दूसरों के विषय में बात नहीं करता।उसे इस बात की भी चिंता नहीं रहती कि दूसरे व्यक्ति उसकी प्रशंसा करें और न वह दूसरों को कभी दोषी ठहराता है।
  • एक सभ्य व्यक्ति सदा सभ्य ही रहेगा।उसमें शील की कमी कभी नहीं आती।वह तो सदा चमकदार हीरे की तरह चमकता रहता है।वह भीतर से और बाहर से एक-सा ही रहता है।वह सदा नम्रता से युक्त होगा,साथ ही वह दयालु और शिष्ट भी होगा।दूसरों की बुरी बातों की ओर उसकी दृष्टि नहीं जाती।वह कभी भी किसी का अनिष्ट नहीं चाहता,वह ऐसा विचार ही नहीं करता।उसकी इच्छाएं उसके वश में रहती है और वह शिष्ट होती है।उसका अपनी भावनाओं पर काबू होता है और उसकी वाणी सदा उसके वश में रहती है।वह सभी को अपने समान भद्र और शिष्ट समझता है।
  • किसी व्यक्ति के लिए शिष्टाचार से होने वाले लाभ का अनुमान लगाना बहुत कठिन है।शिष्टाचार से ही हम प्रसन्न अथवा खिन्न होते हैं।वही हमें ऊपर उठाता और नीचे गिराता है।उसी के कारण हम जंगली अथवा सभ्य कहलाने हैं।जिस प्रकार वायुमंडल का सब पर प्रभाव पड़ता है,उसी प्रकार शिष्टाचार का हम और आसपास रहनेवाले पड़ोसियों पर भी पड़ता है।बहुत शक्ति लगाने पर भी जो काम नहीं होता,वह शिष्टाचार के द्वारा सहज ही हो जाता है।समाज की सुंदर परंपरा को व्यवस्थित करने के लिए प्रसन्नमुख शिष्टाचार-रूपी शासक की आवश्यकता होती है।समाज के सब कलह उससे दूर हो जाते हैं और सब एक-दूसरे को अपना समझने लगते हैं।
  • शिष्टाचार जैसी उत्तम कोई नीति नहीं,क्योंकि जहां बढ़िया-बढ़िया बातों से भी कोई काम नहीं बनता,वहां शिष्टाचार विजयी होता है।लोगों को खुश करने की कला यदि आप जानते हैं तो आप आगे बढ़ सकते हैं,क्योंकि यही आगे बढ़ने की कुंजी अथवा मूलमंत्र है।
  • सेंट हेलेना नामक द्वीप में बंदी नेपोलियन अपने साथी के साथ कहीं जा रहा था।सामने से एक कुली सिर पर बोझ लादे चला आ रहा था।नेपोलियन का साथी रास्ता छोड़ना नहीं चाहता था।यह देखकर नेपोलियन ने कहा-‘कृपया बोझ का सम्मान कीजिए,एक ओर हटकर उसे रास्ता दे दीजिए।’
  • नम्रता और शिष्टाचार से कभी-कभी अनजाने ही ऐसा प्रभाव भी पड़ता है कि उसे आर्थिक लाभ भी हो जाता है।
    एक टीचर रात के समय कोचिंग संस्थान को बंद करके घर जा रहा था।इतने में परीक्षा के दिनों में एक लड़की भागते-भागते कुछ पूछने आई।टीचर तुरंत लौटा,उसने कोचिंग खोली और लड़की को अच्छी तरह पढ़ाकर विदा किया।इस छोटी-सी घटना से गांवभर में उसकी कोचिंग प्रसिद्ध हो गई और उसमें इतनी छात्र-छात्राओं की संख्या हो गई कि वह काफी धनी हो गया।
  • एक कोचिंग संस्थान के निदेशक ने देखा कि कुछ शरारती लड़के दो लड़कियों को उनके आधुनिक ढंग के पहनावे के कारण फब्तियां कस रहे हैं और तंग कर रहे हैं,उनकी हँसी उड़ा रहे हैं और छेड़खानी कर रहे हैं।लड़कियां डर रही थी कि पास के कोचिंग में गई तो कहीं वहां भी वैसा ही व्यवहार न हो।निदेशक ने यह देखा तो वह आगे बड़ा और बहुत ही नम्रतापूर्वक उन्हें अपने साथ ले गया और कोचिंग में बिठा दिया।निदेशक का उन लड़कियों से कोई परिचय ना था।वे लड़कियां निदेशक के व्यवहार से बहुत प्रसन्न हुई और अनेक प्रकार से समय-समय पर उसकी सहायता और प्रशंसा करती रहीं।

5.बालकों को बचपन से ही शिष्टाचार सिखाएं (Teach children manners from childhood):

  • दो व्यापारी एक ही मार्केट में काम करते हैं।दोनों ही कष्ट उठाते हैं,मेहनत करते हैं,परंतु उनमें से एक व्यापारी बड़ा भला आदमी है,सबसे नम्रता से पेश आता है,ग्राहकों की पूरी तसल्ली करता है।दूसरा जरा-जरा सी बात पर बिगड़ जाता है,ग्राहकों से अभद्र व्यवहार भी कर बैठता है।परिणाम यह हुआ कि नम्रता से व्यवहार करनेवाले का व्यापार बढ़ता गया और दूसरा अपने व्यापार को ठप्प होता देख हाथ मलता रह गया।
  • यदि व्यक्ति ईमानदार है,परिश्रमी है,परंतु उसका व्यवहार अभद्र है तो बड़े से बड़ा सद्गुण भी बेकार हो जाता है।इसके विपरीत यदि व्यक्ति में शिष्टाचार है तो अन्य दोषों के रहते हुए भी उसका आदर होता है और उसे काम भी मिलता है।
    बहुत-से छात्र-छात्राएं सवाल हल करने में बहुत माहिर होते हैं,कठिन से कठिन सवाल को भी चुटकियों में हल कर देते हैं।परंतु उनमें एक कमजोरी होती है कि वे सांस्कृतिक कार्यक्रमों,सभा,समारोह में बड़े दब्बू और झेंपू सिद्ध होते हैं।वहां उनकी जुबान नहीं खुलती।बोलते हैं तो लड़खड़ा जाते हैं।अपनी बात प्रकट करना उनके लिए बहुत कठिन होता है।ऐसी बात नहीं है कि वे योग्य नहीं होते।उनमें योग्यता तो होती है,परंतु उसका ज्ञान नहीं होता और उस पर भरोसा भी नहीं होता।
  • ऐसा शिष्टाचार की कमी के कारण होता है।इस कमी को दूर करने का उपाय है कि बालकों को बचपन से ही बोलने-चालने,उठने-बैठने,लोगों से मिलने-जुलने आदि सामाजिक जीवन से संबंधित बातों की शिक्षा दी जाए।इस प्रकार उनकी झेंप मिट जाएगी।
  • ऐसे व्यक्तियों को अपने पहनावे और कपड़े-लत्ते का भी ध्यान रखना चाहिए।उन्हें चाहिए कि वे बहुत तड़क-भड़कवाले कपड़े न पहनें,परंतु कपड़े सीधे-सादे,साफ-सुथरे और ढंग के हों।कपड़ों का भी सांसारिक व्यक्तियों पर असर पड़ता है।
  • हमारे चरित्र की तरह हमारे आचार-व्यवहार की भी जांच-पड़ताल हुआ करती है।लोगों की आंखें यह जांच करती हैं।हम किसी सभा या समारोह में जाते हैं तो वहां सैकड़ो-हजारों आंखें हमारे आचार-व्यवहार को तोलती-परखती हैं।वे आंखें जांच लेती है कि व्यक्ति अपने व्यवहार में नीचे गिरा हुआ है या आगे बढ़ा हुआ है।वे आंखें आदमी को पूरी तरह परखती हैं कि संपूर्ण रूप में यह आदमी कितना खरा है।
  • इसलिए यह आवश्यक है कि हम इस बात की जानकारी रखें कि हमारे आचार-व्यवहार के बारे में हमारे मिलनेवालों और साथियों के क्या विचार हैं।यह बात सदा ध्यान में रखनी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति बहुत समय तक लोगों को प्रेम या धोखे में नहीं रख सकता,क्योंकि न्याय का तराजू हरदम उसके अंतःकरण में विद्यमान रहता है।वह अंतर्यामी हमारी सब चेष्टाओं,हरकतों और आचार-व्यवहार को देखता रहता है।इसलिए अंतःकरण में विद्यमान सच्चाई शिष्टाचार-संबंधी महान गुण है।
  • मिलने जुलने वालों को धन्यवाद,आभार व्यक्त करके उनसे दो शब्द बोल दें कि मिलते रहा करो।तनिक से शिष्टाचार से लोगों पर इतना प्रभाव पड़ता है कि वे सबसे कहते फिरते हैं कि अमुक व्यक्ति बहुत भला आदमी है।थोड़े ही दिनों में उस व्यक्ति की प्रसिद्धि,यश चारों तरफ फैलने लगती है।
  • शिष्टाचार ऐसी संजीवनी है जिससे बिना मूल्य के बड़े-बड़े काम संपन्न कराए जा सकते हैं।बच्चों में बचपन से ही माता-पिता व अभिभावक को शिष्ट व्यवहार की नींव डालनी चाहिए।प्रेम,स्नेह,मीठी वाणी,बड़ों का आदर करना,उदारता,क्षमा भाव रखना आदि शिष्टाचार के अंतर्गत ही आते हैं।विद्यार्थियों को कोर्स की पुस्तकें पढ़ने के साथ-साथ शिष्ट व्यवहार की कला भी सीखनी चाहिए।विद्यार्थी काल ही ऐसा काल होता है जिसमें जीवन के अनेक गुर सीखते हैं और इसी काल में उनकी नींव लगती है।परंतु होता ऐसा है कि माता-पिता व अभिभावक इस तरफ ध्यान नहीं देते हैं फलतः कई छात्र-छात्राओं का रूढ़,अक्कड़,उज्जड़,बेढंगा व्यवहार देखने को मिलता है जो जीवन भर ऐसा ही बना रहता है फलस्वरूप वे कदम-कदम पर हानि उठाते हैं,अपमानित होते हैं परंतु सुधरने के लिए तैयार नहीं होते हैं क्योंकि विद्यार्थी काल के बाद उनकी नींव मजबूत हो चुकी होती है जिसे बदलना बहुत कठिन है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में जीवन में उन्नति बनाम शिष्टाचार (Advancement in Life VS Etiquette),जीवन में तरक्की का आधार शिष्टाचार (Etiquette is Basis of Progress in Life) के बारे में बताया गया है।

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6.भगवान मान बैठे (हास्य-व्यंग्य) (Believe Me to Be God) (Humour-Satire):

  • टीचर (गणित टीचर से):यार,तुझे लोग भगवान कैसे मान बैठे?
  • गणित टीचर:आज जब मैं पुनः कक्षा में छात्र-छात्राओं को पढ़ने गया,तो उन्होंने मुझे देखते ही कहा-हे भगवान,आज वो ही फिर आ गए।

7.जीवन में उन्नति बनाम शिष्टाचार (Frequently Asked Questions Related to Advancement in Life VS Etiquette),जीवन में तरक्की का आधार शिष्टाचार (Etiquette is Basis of Progress in Life) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.शिष्टाचार का क्या अर्थ है? (What does etiquette mean?):

उत्तर:सभ्य व्यक्तियों का आचार,व्यवहार,सदाचार,विनम्रता,किसी समाज,संस्था,कार्यालय आदि द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार आचरण आदि को शिष्टाचार कहा जाता है।

प्रश्न:2.शिष्ट से क्या आशय है? (What do you mean by chivalry?):

उत्तर:सभ्य,शिक्षा-दीक्षा द्वारा सुसंस्कृत,सभ्य समाज में रहने योग्य,आधुनिक लोकाचार,व्यवहार आदि में पटु,सुशील,शांत,बुद्धिमान,धीर,विनीत,नीतिमान,प्रधान,उच्च कोटि का,श्रेष्ठ,श्रेष्ठ व्यक्ति,चतुर मनुष्य आदि।

प्रश्न:3.शिष्टाचार का मूल सिद्धांत क्या है? (What is the basic principle of etiquette?):

उत्तर:शिष्टाचार का मूल सिद्धांत है दूसरे को अपने प्रेम और आदर का परिचय देना और किसी को असुविधा और कष्ट न पहुंचाना।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा जीवन में उन्नति बनाम शिष्टाचार (Advancement in Life VS Etiquette),जीवन में तरक्की का आधार शिष्टाचार (Etiquette is Basis of Progress in Life) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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