8 Technique for Learning from Failures
1.असफलताओं से सीख लेने की 8 तकनीक (8 Technique for Learning from Failures),असफलताओं से कैसे सीखें? (How to Learn from Failures?):
- असफलताओं से सीख लेने की 8 तकनीक (8 Technique for Learning from Failures) के आधार पर आप जान सकेंगे कि असफलताएं क्यों मिलती है और सफलता के लिए क्या कुछ किया जाना चाहिए।
- यह लेख बोर्ड,काॅलेज परीक्षार्थियों और विभिन्न प्रतियोगिताओं के अभ्यर्थियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।
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2.अध्यवसाय जरूरी (Perseverance required):
- जीवन में प्रत्येक व्यक्ति आगे बढ़ता है,सफलता प्राप्त करना चाहता है और यह मनुष्य की विकास यात्रा का सहज एवं स्वाभाविक प्रेरक तत्व भी है।सफलता की दिशा में किए गए प्रयास के बावजूद देखा जाता है कि असाधारण योग्यता,प्रतिभा,शिक्षा एवं साधनों वाले व्यक्ति भी जीवन में स्वयं को असफल प्रायः अनुभव करते हैं,जबकि सामान्य-सी परिस्थिति में जन्में सामान्य शिक्षा एवं प्रतिभा वाले व्यक्ति भी सफलता के चरमशिखर पर पहुंच जाते हैं।सफल जीवन की ज्योतिर्मय आभा उनके चेहरे पर स्पष्टतः झलकती रहती है।
- इन दोनों तरह के व्यक्तियों का सूक्ष्म विश्लेषण करने पर इस रहस्य का उद्घाटन हो जाता है कि सफलता का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व है,अध्यवसाय की वृत्ति।इसी के कारण एक व्यक्ति अपने समस्त अभाव व व्यक्तिगत न्यूनताओं के बावजूद अपने लक्ष्य को सिद्ध करने के प्रयास में डटे रहते हैं,जबकि दूसरे थोड़ी ही असफलताओं के बाद मैदान छोड़कर भाग निकलते हैं।उस व्यक्ति के लिए कुछ भी कठिन नहीं है जिसमें अध्यवसाय की वृत्ति है।कठिन-से-कठिन परिस्थितियों के बावजूद ऐसे व्यक्ति बार-बार प्रयास करते हैं व लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते जाते हैं।
- मनीषियों के अनुसार,सामान्य प्रतिभा एवं असामान्य अध्यवसाय द्वारा सब कुछ हासिल किया जा सकता है।जिन्हें हम असामान्य प्रतिभासम्पन्न या ‘जीनियस’ कहते हैं वे और कुछ नहीं अथक एवं अनवरत अध्यवसाय का ही तो परिणाम है।असाधारण प्रतिभा संपन्न मात्र एक प्रतिशत जन्मजात होते हैं।शेष 99% को उनकी अध्यवसाय वृत्ति गढ़ती-ढालती बनाती एवं तैयार करती है।वैसे भी जन्मजात प्रतिभा अध्यवसाय एवं कठिन परिश्रम का सहारा लेकर ही मूर्त होती है।अध्यवसाय की यह वृत्ति विकसित की जा सकती है।सुविख्यात मनोवैज्ञानिक इसके विकास की चार अवस्थाएं या चार चरण बताते हैं।इनमें से प्रथम है:लक्ष्य का निश्चित होना एवं उसको सिद्ध करने की प्रखर व प्रबलतम इच्छा का होना।द्वितीय है:लक्ष्यसिद्धि की निश्चित योजना व उस दिशा में अनवरत प्रयास।तृतीय चरण है:लक्ष्य में बाधक निराशाजनक विचार,संकल्प व व्यक्तियों से सावधानी एवं चतुर्थ है:लक्ष्यसिद्धि में सहायक व्यक्तियों का सानिध्य।
3.सही लक्ष्य का निश्चित होना (Setting the Right Goal):
- अध्यवसाय की सफलता के लिए लक्ष्य का निश्चित होना प्रथम एवं अनिवार्य शर्त है।लक्ष्यहीन व्यक्ति पेंडुलम की तरह इधर-उधर डोलता रहता है,लेकिन पहुंचता कहीं नहीं।लक्ष्य के निश्चित होने के बाद ही प्रयास में वह गति आती है,जो लक्ष्यबेध की ओर ले जाए।लक्ष्य जितना रुचिकर,उदात्त व लुभावना होगा,उसकी पूर्ति में समायोजित विचार,भाव व क्रिया की शक्ति भी उतनी ही एकाग्रचित होगी।इसके अभाव में प्रयास का उथलापन व शक्तियों का बिखराव अधिक दूरी तक नहीं ले जा सकता।’दि मास्टर की टू रीचिंग’ पुस्तक के अनुसार यह हमारी मानव सभ्यता का दुर्भाग्य है कि 98% व्यक्ति बिना किसी निश्चित लक्ष्य का जीवन जीते हैं।ये जब कोई निश्चित प्रयास करते भी हैं,तो कुछ क्षणिक व अस्थाई असफलताओं के बाद अपना प्रयास ही छोड़ देते हैं व असफल जीवन जीते हैं।
4.अपनी क्षमता के अनुसार प्लान बनाना (Plan to the best of your ability):
- लक्ष्य के निश्चित होने के बाद उसको मूर्त रूप देने की व्यावहारिक योजना बनाना अध्यवसाय के विकास का अगला चरण है,जिसे हम सतत क्रियान्वित कर सकते हैं,योजना अपनी सामर्थ्य का यथार्थ आकलन करते हुए बनाई जाए,तो ही शुभ एवं औचित्यपूर्ण होगी,अन्यथा अपनी क्षमता से बाहर की दिवास्वप्नी योजना प्रथम चरण में ही पथिक की हिम्मत तोड़ देती है,उसे मानसिक रूप से परास्त कर देती है।आगे बढ़ने का सारा उत्साह ही ठंडा पड़ जाता है,प्रत्येक कदम उत्साह के साथ आगे बढ़ते जाएं,इसके लिए आवश्यक है कि प्रारंभ में छोटे-छोटे कदम बढ़ाएँ जाएं।छोटी-छोटी योजनाएं बनाकर उन्हें सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया जाए। छोटी-छोटी सफलताएं उत्साह व आत्मबल को उत्तरोत्तर बल देंगी,जो कि आगे की बड़ी सफलताओं का मार्ग प्रशस्त करेगा।
5.असफलता मिलने के बावजूद डटे रहना (Persevering in spite of failure):
- लक्ष्य के निश्चित होने व योजना तथा कार्य पद्धति के निर्धारण के बाद अध्यवसाय के विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है,मार्ग की बाधाओं के बावजूद डटे रहना।बाहर से प्रतिकूल परिस्थितियों के थपेड़े व अन्दर के ध्वंसात्मक,निराशावादी विचार प्रगति की दिशा में बढ़ रहे चरणों को रोककर सफलता की आशा पर पानी फेर सकते हैं।ऐसे में पुनः नए सिरे से प्रयास करने का साहस करना होगा।इस संदर्भ को एक प्रेरणादायी संस्मरण से समझा जा सकता है।दो साथी परीक्षा की तैयारी हेतु नोट्स बना रहे थे।लगभग 80% भाग नोट्स लिखे जा चुके थे।अचानक बिजली चली गई।उन्होंने इंतजार करने के मूड से कुछ देर के लिए मोमबत्ती जलाने का प्रयास किया।ज्योंही मोमबत्ती जलाई तो अचानक वह नोट्स पर गिर पड़ी और सारे नोट्स जलकर खाक हो गए।दूसरे साथी ने उदासी भरे हताश शब्दों में कहा:अब क्या करें? पहले मित्र ने दृढ़ स्वर में कहाःपूरे उत्साह से दोबारा नोट्स बनाना शुरू करो।ऐसा ही किया गया एवं सफलता प्राप्त हुई।
- प्रतिकूल परिस्थितियों की विषम घड़ी में यदि व्यक्ति हिम्मत ना हारे व प्रयास करता रहे-तो इससे उबरने का मार्ग मिल ही जाता है।हाथ-पर-हाथ धरे रहने से तो अपनी दुर्गति ही सुनिश्चित होती है।एक नाविक से पूछा गया कि यदि कोई व्यक्ति नाव से गिर पड़े तो क्या वह पानी में डूब जाएगा? नाविक का जवाब था-नहीं! कोई पानी में गिरने से डूबता नहीं।डूबता तो वह पानी में खड़ा रहने से है।
- अनवरत असफलताओं के बावजूद बार-बार प्रयास करने का साहस अध्यवसाय का सार है और इस साहस का रहस्य असफलता के गर्भ में छिपे सफलता के संदेश में छिपा है,जिसे समझते हुए साधारण परिवेश में जन्मे अभावग्रस्त व्यक्ति भी सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए इतिहास के सफलतम व्यक्ति बन गए।एडीसन ऐसे ही एक उदाहरण हैं।एक दिन मंदबुद्धि एडीसन ने स्कूल से निकाले जाने के बाद सड़कों पर अखबार बेचते हुए अपना जीवन शुरू किया और सतत अध्यवसाय के बल पर विज्ञान क्षेत्र के महानतम अन्वेषी बन गए।एडीसन के सहयोगी ने एडीसन को रात के 2:00 बजे मुस्कराते हुए देखा।सहायक ने सोचा कि अवश्य ही आज उन्हें वर्षों पुरानी गुत्थी का समाधान मिल गया है।लेकिन एडीसन का यह प्रयास असफल था।प्रसन्नता तो उन्हें इस असफल प्रयास में छिपे संदेश को पाने की थी,क्योंकि अब वह नए ढंग से अपना सार्थक प्रयास आरंभ कर सकते थे।असफलता मात्र एक अवसर है,दुबारा प्रयास करने का,लेकिन अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से,क्योंकि प्रत्येक असफलता हमें अधिक समझदार बनाती है,यदि हम इससे सीख लेने के लिए तैयार हैं,बजाय कि असफलता का रोना-रोने,दूसरों को दोष देने,खीझने व निराश होने के।असफलता हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती-यदि हम इससे सीख लेने के लिए तैयार हैं।
- असफलता के गर्भ में पड़े रहने का एक कारण यह भी है कि हम इसके लिए दूसरों को दोष देते रहते हैं।यह सफलता के मार्ग का वह भारी अवरोध है,जिससे हमें सतत सावधान रहना होगा।एक व्यक्ति कई बार फिसल सकता है,किंतु यह असफलता तब तक नहीं होगी जब तक कि वह यह न कहे कि मुझे किसी दूसरे ने गिराया है।दोष बाहर दिख सकता है,लेकिन तटस्थ होकर सतर्कतापूर्वक निरीक्षण करने पर हमें अंदर ही प्रधान कारण मिल जाएगा,जिसे हम अनदेखा करने की भूल करते हैं।
6.असफलता मिलने पर घबराए नहीं (Don’t panic when you fail):
- असफलता आने पर इससे घबराने व भागने की वृत्ति भी उभर सकती है लेकिन इससे सफलता का प्रयोजन सिद्ध होने वाला नहीं।जो युद्ध से भागता है,उसे अगले दिन फिर से युद्ध लड़ना होगा।अपने आप से युद्ध करना होगा,अपनी दुर्बलताओं,दुर्गुणों से युद्ध करना है।यही बात जीवन की असफलताओं पर भी लागू होती है।भागने की सार्थकता इतनी भर हो सकती है कि हम एकांत में जाकर अधिक शक्ति संपादन करें,ताकि अगले मोर्चे पर अधिक दम-खम से जूझ सकें।
- प्रत्येक असफलता को पलायन की बजाय एक चुनौती के रूप में स्वीकारना ही श्रेयस्कर है।तभी हम अगला प्रयास अधिक उत्साह के साथ कर सकते हैं।यदि हम जितना नीचे गिरे हैं,उससे दुगनी छलांग लगाने का दृढ़ निश्चय कर चुके हैं,तो फिर हमारी असफलता का कोई अर्थ नहीं रह जाता।उसे गंभीरता से मत लीजिए और हँसी में उड़ा दीजिए।असफल होने पर अपने समूचे व्यक्तित्व को ही असफल मान बैठने के निराशावादी विचार से सावधान रहना चाहिए।क्षणिक असफलता को व्यक्तित्व से जोड़कर आत्महीनता की ग्रंथि को पालना एक भ्रामक धारणा है।
- असफलता के बारे में सबसे मजेदार बात यह है कि वास्तव में इसका कोई अस्तित्व नहीं है।यह मन की एक कल्पना मात्र है।वह पूर्णतः मानसिक है व भय की माँ है। ‘पुलिंग योर ओन स्ट्रिंग्ज के अनुसार,यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि असफलता का कोई अस्तित्व नहीं है।असफलता एक धारणा मात्र है कि अमुक विचार कैसे किया जाना चाहिए था।उसके अनुसार,असफलता मानसिक दृष्टिकोण की उपज है,मानसिक क्षमता की नहीं।संक्षेप में यह एक प्रतिक्रिया भर है,जिसका स्वरूप जीवन को असफलता का वाटरलू बनाता है या सफलता की विजयभूमि।
- जीवन का विकास वास्तव में सतत पूर्णता की ओर गतिशील है।अधिक प्रगति व सफलता उसकी स्थिति है।असफलता के भ्रामक विचार में उलझ कर इसे नीचे की ओर धकेलना भी विशुद्धतः हमारा विकृत सोच है,। ‘इंडिविजुअल साइकोलॉजी’ के जनक अल्फ्रेड एडलर के अनुसार,जीवन निरंतर विजय,सफलता व पूर्णता के उच्चतर सोपानों की ओर बढ़ता है।उसे असफलता की ओर नहीं मोड़ा जा सकता।सार रूप में कोई भी असफलता हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती,जब तक कि हम उसे सबक लेते हैं और आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं।
- इस तरह जो अपनी समस्त अपूर्णताओं व बाह्य प्रतिकूलताओं के बावजूद अपने अभीष्ट लक्ष्य की ओर अध्यवसाय द्वारा अभिमंत्रित,सुनियोजित पग के साथ आगे बढ़ते हैं,वे अपने जीवन की सफलता व सार्थकता को सुनिश्चित करते हैं।इस संदर्भ में एक छोटा-सा प्रसंग विचारणीय है।एक वृद्ध अपने अंतिम दिनों में गणित के सवालों को हल कर रहा था।धीरे-धीरे सवाल हल करने में जूझ रहा था।एक नवयुवक उसके पास गुजरते हुए तथा उसकी मजाक करते हुए बोला कि बाबा तुम इतना भी नहीं जानते कि गणित के सवालों को इस अवस्था में भी सीखना कितना दुष्कर है और फिर सीख लेने पर कब उसका उपयोग कर सकोगे जबकि तुम्हारी उम्र थोड़ी सी बाकी है।तुम व्यर्थ में ही श्रम कर रहे हो।वृद्ध ने बिना रुके,बिना उसकी तरफ झांके,सवाल हल करते हुए उत्तर दिया कि तुम्हारे जैसे नवयुवक आगे इस दृष्टिकोण को रखते हुए आगे नहीं बढ़ सकते हैं।मैं अंतिम दम तक गणित सीखूंगा और तुम जैसे नवयुवकों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करूंगा कि विद्या सीखने की कोई उम्र नहीं होती है,उसे कभी भी,किसी भी उम्र में सीखा जा सकता है।
- उस वृद्ध का यह दृष्टान्त अध्यवसाय के भावों को विकसित करने की प्रेरणा देता है।यदि हमारे हृदय में अपने लक्ष्य के प्रति अगाध श्रद्धा एवं विश्वास है एवं उसको सिद्ध करने के लिए हम प्रत्येक मूल्य चुकाने के लिए तैयार हैं,तो मार्ग की असफलताएं एवं सामयिक पतन भी आवश्यक शिक्षा देते हुए हमारी सफलता का मार्ग प्रशस्त करेंगे।फिर तो समस्त अभाव,अपूर्णता,दुर्बलता व प्रतिभा की कमी के बावजूद हमारी अंतिम सफलता उतनी ही सुनिश्चित होगी,जितनी कि लंबी रात्रि के बाद का आने वाला अरुणिमा सूर्य।
7.असफलता से सीख का निष्कर्ष (Conclusion of Learning from Failure):
- निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि असफलता मिलने के मुख्य कारण हैं:सही लक्ष्य का चुनाव न करना,योजना न बनाना और उसकी क्रियान्विति का अभाव,कर्मफल में आसक्ति,स्वयं प्रेरित तथा किसी के द्वारा प्रेरणा न मिलना,संघर्ष की वृत्ति का अभाव,द्वन्द्व उत्पन्न होना,नकारात्मक चिंतन,दिनचर्या व जीवनशैली गलत होना,स्वार्थी प्रवृत्ति अर्थात स्वयं लेना चाहता है परंतु देना नहीं चाहता,अहंकार,लोभ-लालच आदि।अनेक ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से असफलता का स्वाद चखना पड़ता है।सफलता के लिए उपर्युक्त कारणों को दूर करना होगा और अनेक ऐसे गुणों को धारण करना होगा जो सफलता तक पहुंचाते हैं।
- कई विद्यार्थी प्रयत्न और कठिन परिश्रम तो बहुत करते हैं लेकिन उनको सफलता नहीं मिलती या मनोवांछित सफलता नहीं मिलती है।यदि असफलता से सीख लेकर आगे बढ़ा जाए तो कोई कारण नहीं है कि उन्हें सफलता न मिले।असफल होने वाले छात्र-छात्राएं अक्सर असफलता के लिए दूसरों पर दोषारोपण करते हैं।जो विद्यार्थी जितना संघर्ष करता है,कष्ट-कठिनाइयों से जूझता है वह उतना ही ऊपर चढ़ता है।कष्ट-कठिनाइयों या प्रतिकूल परिस्थितियों में उन्हें यह सोचना चाहिए कि वह उनसे कैसे पार पा सकता है।अपने आप पर विश्वास रखें और आगे बढ़ता रहे।कठिन परिस्थितियाँ हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करने के लिए ही आती हैं।संघर्ष करने,कठिन परिस्थितियों से जूझने,टकराने से विद्यार्थी अधिक मजबूत बनता है।कठिनाइयों से टक्कर लेने वाला अधिक तपता है और तप व्यक्ति को अधिक सक्षम बनाता है।
- कठिन,विपरीत परिस्थितियों में आध्यात्मिक उपाय जप,तप,उपासना,पूजा,पाठ,स्मरण,कीर्तन आदि भी फलदायी होते हैं।इन उपायों से कठिन से कठिन परिस्थितियों से गुजरना आसान हो जाता है।ऐसे अनेक व्यावहारिक व आध्यात्मिक उपाय हैं जो हमें प्रतिकूल परिस्थितियों में संबल प्रदान करते हैं,टूटने नहीं देते हैं।
- कुछ विद्यार्थी अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए तो सवाल,प्रश्न पूछ लेते हैं,कोई समस्या होती है तो उसका समाधान प्राप्त कर लेते हैं परंतु यदि उनसे कोई विद्यार्थी कुछ पूछता है तो टका-सा जवाब दे देते हैं।अहंकारवृत्ति भी हमें सफलता से वंचित कर देती है।अहंकार के कारण कोई भी विद्यार्थी अहंकारी विद्यार्थी की मदद नहीं करता है।अहंकार के कारण हम विद्या ग्रहण नहीं कर पाते हैं।विद्या वही ग्रहण कर सकता है जिसमें विनम्रता हो।आप उपर्युक्त उपायों को करके देखें,आपकी सहायता में ये उपाय अवश्य मददगार साबित होंगे।
- उपर्युक्त आर्टिकल में असफलताओं से सीख लेने की 8 तकनीक (8 Technique for Learning from Failures),असफलताओं से कैसे सीखें? (How to Learn from Failures?) के बारे में बताया गया है।
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8.छात्र के असफल होने का कारण (हास्य-व्यंग्य) (Reason for Student’s Failure) (Humour-Satire):
- गणित टीचरःबताओ पप्पू यदि मैं तुम दोनों में से एक को सवाल हल करने के लिए कह दूं यानि तुम दोनों को यह कह दूं कि तुम में से कोई भी इस सवाल को हल कर दो तो क्या होगा?
- पप्पू:दोनों असफल हो जाएंगे?
- गणित टीचर:वो कैसे?
- पप्पू:मैं अपने साथी को कहूंगा कि तू ही हल कर दे।साथी मुझसे कहेगा कि तू हल कर दे।इस प्रकार सवाल को कोई भी हल नहीं करेगा और हम दोनों ही फेल हो जाएंगे।
9.असफलताओं से सीख लेने की 8 तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 8 Technique for Learning from Failures),असफलताओं से कैसे सीखें? (How to Learn from Failures?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.कर्मफल में आसक्ति क्यों न हो? (Why should there be no attachment to the fruits of your actions?):
उत्तर:कर्मफल में आसक्ति से विद्यार्थी का अध्ययन पर से ध्यान हटकर परीक्षा परिणाम पर ध्यान केंद्रित हो जाता है जिससे उसकी कार्यक्षमता का ह्रास हो जाता है,पूरे मनोयोग से अध्ययन नहीं कर पाता है,जिससे वांछित परिणाम नहीं प्राप्त होती है।
प्रश्न:2.नकारात्मक चिंतन से क्या आशय है? (What do you mean by negative thinking?):
उत्तर:प्रायः कई विद्यार्थी सदैव यह सोचते हैं कि वे कितना अध्ययन कर लें परंतु उनके साथ हमेशा बुरा ही होता है,इससे वह निराशा के गर्त में गिरता जाता है।अपनी योग्यताओं का ठीक मूल्यांकन नहीं करता,स्वयं को कमतर समझते हैं और असफल हो जाते हैं।
प्रश्न:3.द्वन्द्व से असफलता कैसे मिलती है? (How does conflict lead to failure?):
उत्तर:जब विद्यार्थी में कर्त्तव्य व भावना के मध्य द्वंद उत्पन्न हो जाता है तो वह क्रिया,विचार व भावना में तालमेल नहीं बिठा पाता है और असफल हो जाता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा असफलताओं से सीख लेने की 8 तकनीक (8 Technique for Learning from Failures),असफलताओं से कैसे सीखें? (How to Learn from Failures?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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