7 Criteria for Maths Accomplishment
1.गणित की सिद्धि की 7 कसौटियाँ (7 Criteria for Maths Accomplishment),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए गणित की सिद्धि की 7 कसौटियाँ (7 Mathematics Achievement Criteria for Mathematics Students):
- गणित की सिद्धि की 7 कसौटियाँ (7 Criteria for Maths Accomplishment) के आधार पर आप जान सकेंगे कि सिद्धि से क्या आशय है? कैसे जाने कि गणित की सिद्धि प्राप्त हो गई है? अर्थात गणित में सिद्धहस्त होने,पूर्णता प्राप्त करने की क्या कसौटियाँ हैं? अर्थात् किन मानदंडों के आधार पर यह मानना या परखना चाहिए कि गणित में हम सिद्धहस्त हो गए हैं,ऐसे क्या पैरामीटर या लक्षण हैं जिनके आधार पर परखा जा सके।
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2.गणित की महत्ता (Importance of Mathematics):
- गणित जीवन पथ का दीपक है।गणित में जो जितना प्रखर,तेजस्वी,मेधावी है,जीवन पथ उसमें उतना ही प्रकाशित हो जाता है।प्रसिद्ध जैन गणितज्ञ महावीराचार्य ने गणित विषय के बारे में लिखा है कि:अर्थात् बहुत अधिक प्रलाप करने से क्या लाभ है।इस सचराचर जगत में जो कुछ भी वस्तु है वह सब गणित (आधार) के बिना संभव नहीं है।बेकन के अनुसार “गणित सभी विज्ञानों का मुख्य द्वार एवं कुंजी है।” कार्ल फ्रेडरिक गाउस के अनुसार “गणित विज्ञान की रानी है।” गणित में प्रगाढ़ता ज्ञान की परिपक्वता का पर्याय है।जो गणित में सिद्धहस्त है,समझना चाहिए कि उसे जीवन की सिद्धि प्राप्त है।गणित की इस महिमा से कम-ज्यादा अंशों में प्रायः सभी गणित के साधक परिचित हैं।साधक समुदाय में हर किसी की यही कोशिश रहती है कि वह गणित में प्रगाढ़ हो।परंतु किसी-न-किसी कारण से ऐसा नहीं हो पाता।यदि कभी हुआ भी तो सही परख नहीं हो पाती।
- कैसे परखें अपने गणित में सिद्धहस्तता को? क्या है गणित-साधना के सिद्ध होने की कसौटियाँ? ये सवाल इन पंक्तियों को पढ़ रहे प्रत्येक साधक के मन में कभी-न-कभी पनपते रहते हैं।शायद इन क्षणों में भी कहीं मानस उर्मियों में तरंगित हो रहे हैं।इन महत्त्वपूर्ण प्रश्नों की चर्चा तो बहुत होती है,पर प्रायः सही समाधान नहीं जुट पाता।गणित के विषय में जब भी बात उठती है तो उसकी विधि-प्रक्रियाएं ही समझाई जाती हैं।इसकी सिद्धि के मानदंड क्या हैं? यह सवाल हमेशा अधूरा रह जाता है।
- गणित प्रक्रिया की सूक्षमताओं पर और इसकी सिद्धि के मानदंडों पर शास्त्रों और ग्रन्थों में काफी विस्तार से विचार किया गया है।प्रायः साधक गणित के सवालों को हल करना,विभिन्न तरीकों से हल करना,मानसिक रूप से गणित को हल करना,गणित की पहेलियां को हल करना,गणित के कूट प्रश्नों को हल करना,गणित वर्ग को हल करना,उससे आनंद की अनुभूति होना आदि बातों को गणित सिद्धि का लक्षण मान लेते हैं,पर यथार्थता यह नहीं है।ऊपर गिनाए गए ये सभी लक्षण तो इतना भर सूचित करते हैं कि साधक गणित प्रक्रिया में गतिशील है,पर यह उसकी गणित सिद्धि की सूचना नहीं देते।गणित सिद्धि के मानदंड तो कुछ और हैं।शास्त्रकारों और गणितज्ञों ने इनकी संख्या काफी गिनाई है,लेकिन मुख्य तौर पर इन्हें सात तरीकों से परखा-जाना जा सकता है।
- गणित साधक यदि अपने गणित की सिद्धि को जांचना चाहता है तो उसे निम्न मानदण्डों पर अपने को परखना चाहिए (1.)आहार संयम,(2.)वाणी का संयम, (3.) जागरूकता,(4.)दौर्मनस्य (द्वेष) का ना होना,(5.)दु:ख का अभाव,(6.)श्वास की संख्या में कमी हो जाना और (7.)संवेदनशीलता।सात ऐसे मानदण्ड हैं,जिनके आधार पर कोई भी साधक कभी भी अपने को जांच सकता है कि उसकी गणित-सिद्धि कितनी परिपक्व और प्रगाढ़ हो रही है।एकबारगी उक्त सातों मानदण्डों को देखकर यह लगता है कि इनका गणित-सिद्धि से संबंध है या हो सकता है क्या?
3.आहार-संयम और अन्य कसौटियाँ (Dietary restraint and other criteria):
- पहली कसौटी आहार संयम की है।गणित साधक में यदि आहार संयम सध रहा है तो समझना चाहिए उसका गणित की सिद्धि सध रही है।यह आहार संयम है क्या? इसका उत्तर है:साधक को आहार कुछ इस तरह से लेना चाहिए जैसे कि औषधि ली जाती है।यानि कि आहार वही हो और उतना ही हो जितना देह पोषण के लिए पर्याप्त है।विद्यार्थी के पांच लक्षणों में कम खाने का निर्देश है।संक्षेप में ज्यों-ज्यों गणित प्रगाढ़ होता है,साधक की स्वाद में समाप्ति होती जाती है।वस्तुतः गणित की पुस्तकों का अध्ययन कर लेना,उसमें पारंगत होना ही पर्याप्त नहीं है।बल्कि विद्यार्थी में अन्य गुणों का विकास भी होना चाहिए तभी गणित में सिद्धि प्राप्त हो सकती है।अल्पाहारी ही गणित जैसे जटिल विषयों का अध्ययन कर सकता है।अधिक आहार ग्रहण करने से आलस्य आता है।आलस्य से गणित में सिद्धि प्राप्त करना तो बहुत दूर की बात है,गणित के सवालों को हल ही हल नहीं किया जा सकता है।गणित सिद्धि द्वारा मिलने वाली ऊर्जा बढ़ने के कारण उसका आहार भी बहुत न्यून हो जाता है।
- दूसरी कसौटी है-वाणी संयम।वाणी का संयम का अर्थ प्रायः विद्यार्थी मौन समझ लेते हैं,लेकिन ऐसा उसी तरह से नहीं है जिस तरह से आहार संयम का अर्थ उपवास करना नहीं है।इसका अर्थ इतना भर है कि गणित साधना ज्यों-ज्यों प्रगाढ़ होती है,अंतर्बोध के द्वार खुलते जाते हैं।ज्ञान और प्रकाश का एक नया लोक उसे मिल जाता है।फिर उसकी रुचि बेवजह की बातों में अपने आप ही समाप्त हो जाती है।यानी गणित के अध्ययन,गणित से चारित्रिक गुणों के विकास के लिए जितना जरूरी है उतना बोलना,वार्तालाप करना।उपयोगी वार्तालाप से ज्ञान चक्षु खुलते हैं और अनुपयोगी वार्तालाप गणित विषय से ध्यान को हटाता है।इस क्रम में एक बड़ी रहस्यपूर्ण स्थिति भी आती है,जिसे केवल गणित साधक ही समझ सकते हैं कि वाणी की अपेक्षा अंतश्चेतना कहीं अधिक सक्रिय एवं प्रभावी होती है।
- गणित की तीसरी कसौटी जागरूकता है।जागरूकता का अर्थ है,बाह्य जागृति के साथ अंतःजागृति गणित की सिद्धि सध रही है तो जागरूकता भी अपने आप ही सध जाती है।गणित साधक की प्रगाढ़ता में साधक के अंदर एक गहरी समझ पैदा होती है।गणित में नवीन शोध के बारे में जागरूक रहना,गणित का ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ वह बाह्य जीवन को भी अच्छी तरह से समझता है और आंतरिक जीवन को भी।उसे न केवल गणित को हल करने से ही मतलब रहता है बल्कि अपने कर्त्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों का भली प्रकार बोध हो जाता है।वह जिंदगी की सूक्ष्म-से-सूक्ष्म बातों को यहां तक कि आसानी से नजरअंदाज कर दी जाने वाली बातों को न केवल समझता है,बल्कि उसका समुचित उपयोग भी कर लेता है।उसे आंतरिक एवं सूक्ष्म प्रकृति के संकेतों की भी बहुत गहरी समझ होती है।गणित की प्रगाढ़ता साधक में जिस क्रम में बढ़ती है,उसी क्रम में वह मानवीय चेतना के सभी आयामों में जागरूक एवं सक्रिय हो जाता है।
- गणित की चौथी कसौटी दौर्मनस्य का समाप्त हो जाना है।गणित के छात्र-छात्राओं के मन में एक के बाद एक नई-नई इच्छाएं अंकुरित होती रहती हैं।यह प्रश्नावली हल कर लूँ।इन सवालों को हल कर लूँ।इनमें से सभी समस्याओं को हल कर पाना,पूरी हो पाना प्रायः असंभव होता है।इच्छा पूरी न होने की स्थिति में छात्र-छात्रा या तो शिक्षक,विद्यालय या गणित विषय को उसका दोषी मानता है अथवा फिर किसी सम्बन्धित छात्र-छात्रा को कि उसने मुझे सवाल नहीं समझाया,मेरी मदद नहीं की और मन-ही-मन उससे वैर ठान लेता है।यही दौर्मनस्य (द्वेष) की भावदशा है।गणित साधना करने वाले छात्र-छात्रा के मन में इच्छाओं की बाढ़ नहीं आया करती है।उसके अंतःकरण में निरंतर जलने वाली ज्योति उसके सामने इस सत्य को प्रकाशित करती रहती है कि यहां अथवा किसी अन्य लोक में कुछ भी पाने योग्य नहीं है।इससे उसे इस महासत्य का हमेशा बोध होता है कि सृष्टि में सब कुछ भगवान की इच्छानुसार हो रहा है,फिर भला दोष किसका? जब दोष ही नहीं तब द्वेष क्यों? ये भावनाएं उसे हमेशा दौर्मनस्य से बचाए रखती हैं।
4.दुःख का अभाव और अन्य कसौटी (Lack of grief and other criteria):
- गणित की पांचवी कसौटी है:दुःख का अभाव।गणित में इतनी जटिल समस्याएं होती है कि उन्हें हल करते-करते कष्ट-कठिनाइयों ही आनन्द स्वरूप लगने लगती हैं।गणित साधक की चेतना में स्थिरता और नवीनता का इतना अभेद्य कवच चढ़ा रहता है कि उसे दुःख स्पर्श ही नहीं कर पाते।दुःख चित्त की चंचलता का परिणाम कहा गया है।जिसका चित्त जितना ज्यादा चंचल है,वह दुःखी भी उतना ही होता है।जहाँ चंचलता ही नहीं वहाँ दुःख कैसा! चंचल चित्त वाले छात्र-छात्रा एक छोटी-सी घटना से भी बहुत दुःखी हो जाते हैं,किंतु जिनका चित्त स्थिर है,उन्हें भारी-से-भारी दुःख भी विचलित नहीं कर पाते।गणित की साधना से चित्त एकाग्र होता चला जाता है,चंचलता समाप्त होती जाती है।मन में दृढ़ता उत्पन्न हो जाती है।
- श्वास की संख्या का कम होना,गणित-साधना की छठी कसौटी है।इस सत्य को हम सभी ने कई बार अनुभव किया होगा कि आवेग-आवेग में श्वास की संख्या बढ़ जाती है।इसी तरह शारीरिक असामान्यता में भी श्वास की गति बढ़ जाती है।गणित साधक की न केवल अंतश्चेतना में स्थिरता और आवेगशून्यता आती है,बल्कि उसके शरीर में धातुसाम्यता बनी रहती है।ऐसी स्थिति में स्वभावतः श्वास की गति कम हो जाती है।कभी-कभी तो श्वास की गति बड़ी आश्चर्यजनक ढंग से कम हो जाती है।गणित सिद्धि की इस कसौटी पर कोई भी साधक स्वयं को परख सकता है।
- इस क्रम में एक चमत्कारी स्थिति और उत्पन्न होती है।गणित साधक के सामने स्वरोदय शास्त्र एवं स्वयं ही प्रकट हो जाता है।अनुभवीजन जानते हैं कि स्वरोदयशास्त्र का समग्र विकास श्वास की गति के आधार पर हुआ है।जो श्वास की गति को समझ जाता है,वह ऐसी चमत्कारी भविष्यवाणियां कर देता है,जिसकी सामान्य व्यक्ति कल्पना भी नहीं कर सकते।इस बारे में विशिष्ट चर्चा इस लेख में करना संभव नहीं है,पर श्वास की गति का सूक्ष्म ज्ञान और उसका कम होना गणित सिद्धि की एक कसौटी है,जिस पर स्वयं को साधकगण जाँच-परख सकते हैं।
- गणित-साधना की सातवीं और श्रेष्ठतम कसौटी है-संवेदनशीलता यानी भाव-संवेदना का जागरण।जिसका गणित ज्ञान जितना प्रगाढ़ होगा,उसमें भाव-संवेदना भी उतनी सघन होगी।उसकी करुणा भी उतनी ही तीव्र होगी।गणित के साधक के अंदर करुणा जागी है तो जानना चाहिए कि गणित की सिद्धि सध रही है।यदि अपनी संवेदनशीलता में पहले की तुलना में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई तो साधक को समझना चाहिए कि अभी अपनी गणित की प्रगति भी शून्य है।गणित की सिद्धि सध रही है तो गणित में कमजोर छात्र-छात्रा के प्रति,सहपाठी के प्रति,मित्र के प्रति,मिलने-जुलने वालों के प्रति व्यवहार अपने आप ही करुणापूर्ण हो जाएगा।केवल आप अन्य से गणित की समस्याओं को पूछकर अपना स्वार्थ ही सिद्ध नहीं करेंगे बल्कि गणित में परेशानी अनुभव कर रहे अपने सहपाठियों को भी हल करने में मदद करेंगे।स्वार्थ और अहं में भारी कमी और करुणा का निरंतर विस्तार गणित सिद्धि की श्रेष्ठतम कसौटी है।
5.गणित की सिद्धि का निष्कर्ष (Conclusion to the accomplishment of mathematics):
- उपर्युक्त वर्णित इन सभी कसौटियों का एक ही मर्म है कि गणित सिद्धि छात्र-छात्रा की चेतना के रूपांतरण का सबसे समर्थ प्रयोग है।गणित की सिद्धि ठीक से हो रही है तो रूपांतरण भी होगा।यदि 5-10 साल गणित की सिद्धि करने के बाद भी जीवन-चेतना में रूपांतरण की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई तो समझना चाहिए कि हमने गणित की सिद्धि किया ही नहीं।हमने केवल गणित की सिद्धि के स्थान पर केवल गणित सवालों को हल किया है,जोड़-गुणा-भाग-बाकी आदि करने को ही गणित समझ लिया है,जबकि गणित की सिद्धि किसी तरह केवल गणना करने तक ही सीमित नहीं है।यह तो एक बहुत ही गहन वैज्ञानिक प्रयोग है,जिसे ऊपर बताई गई सात कसौटीइयों के आधार पर कभी भी परखा जा सकता है।यदि आप गणित के साधक हैं तो आज और अभी इस बात की जांच कीजिए कि आपकी गणित-साधना सिद्धि के किस सोपान तक पहुंच सकी है।जांच का यह क्रम एक नियमित अंतराल में बना रहे,इसकी सावधानी हमें हर एक गणित साधक को रखनी चाहिए।
- गणित का अध्ययन केवल परीक्षा उत्तीर्ण करने,जाॅब प्राप्त करने के दृष्टिकोण से करते हैं तो हमें यह केवल संख्याओं का गणित अर्थात् संख्याओं का खेल ही नजर आता है।इससे हमारे जीवन का रूपांतरण नहीं होता है,हमारा व्यक्तित्व अपरिपक्व रह जाता है,गणित को हल करना हम मजबूरी समझने लगते हैं।जबकि गणित को साधना समझकर,तप समझकर हल करते हैं तो हमारे व्यक्तित्व का पूरी तरह रूपांतरण हो जाता है।साधना से ही सिद्धि प्राप्त होती है।यहाँ इस आर्टिकल में सिद्धि या सिद्धि से तात्पर्य Theorem (प्रमेय) से नहीं है बल्कि सिद्धि का व्यापक अर्थ लिया जाना चाहिए और इसी दृष्टिकोण से इस लेख को लिखा गया है।
- आप भी अपने जीवन में रूपांतरण महसूस करेंगे यदि गणित को आराधना समझकर,पूजा समझ कर हल करेंगे।गणित में न केवल आप पारंगत ही हो जाएंगे बल्कि आपके व्यक्तित्व के विभिन्न गुणों का विकास होता जाएगा।सिद्धियां प्राप्त करने का यह अर्थ नहीं है कि आप लोगों को चमत्कार दिखाते फिरें।गणित की सिद्धि से सिद्धि की सीढ़ियों तक पहुंचने का अर्थ है कि आपकी भौतिक उन्नति के साथ-साथ आपकी आत्मिक,आध्यात्मिक उन्नति भी हो,आप जीवन में पूर्णता महसूस करें।अध्ययन करें,जाॅब करें,जीवन का कोई भी कार्य करें तो आत्मिक संतुष्टि प्राप्त कर सकें,जीवन को आनंद के साथ जी सकें।
- परंतु शिक्षकों व छात्र-छात्राओं का अधिकांश ध्यान केवल गणित की समस्याओं व सवालों को हल करने की तरफ ही रहता है।छात्र-छात्राएं गणित हल करते-करते तनावग्रस्त महसूस करते हैं।इस प्रकार गणित के सवालों को बौद्धिक रूप से हल करने पर तनाव,कुण्ठा,निराशा ही पल्ले पड़ती है।परंतु गणित का अध्ययन दिल से करें,डूबकर करें तो गणित विषय आनंददायक विषय लगेगा,आत्मिक उन्नति होगी।हमारे अंदर संवेदना का जागरण होगा।गणित की साधना से सिद्धि तक पहुंचने में समय भी लगता है,अतः धैर्य रखना जरूरी है।हालांकि यह हर छात्र-छात्रा की योग्यता,सामर्थ्य,तीव्र उत्कण्ठा,धैर्य आदि गुणों पर निर्भर करता है।कुछ छात्र-छात्राओं को साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है,जबकि अन्य छात्र-छात्राओं को बहुत अधिक समय लगता है,लग सकता है।इस जन्म में हमारी साधना सफल न हो पाए।साधना सफल न हो पाएं तो साधना से सिद्धि की यात्रा को इसलिए नहीं त्याग देना चाहिए कि ये सब बेकार की बातें हैं,कपोल-कल्पित बातें हैं,ऐसा कुछ भी नहीं होता है और गणित का सांसारिक जीवन में,जाॅब प्राप्त करने में जितना काम पड़ता है उतना काम साध लो।ऐसी स्थिति में साधना सफल नहीं हो सकती है,साधना सफल नहीं होगी तो सिद्धि भी प्राप्त होना मुश्किल है।जितना बड़ा लक्ष्य है तो उस लक्ष्य प्राप्ति में उतने ही अवरोध,विघ्न,बाधाएँ उपस्थित होते हैं और संघर्ष भी उतना ही अधिक करना पड़ता है।अतः विचलित न हों और लक्ष्य पर चलते हुए उक्त कसौटियों के आधार पर अपना परीक्षण करते रहें।
- उपर्युक्त आर्टिकल में गणित की सिद्धि की 7 कसौटियाँ (7 Criteria for Maths Accomplishment),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए गणित की सिद्धि की 7 कसौटियाँ (7 Mathematics Achievement Criteria for Mathematics Students) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:3 Tips for Self-Study With Mathematics
6.गणित की सिद्धि (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics Accomplishment) (Humour-Satire):
- एक बार एक छात्र कक्षा में गणित के सवाल हल करने में ध्यान मग्न था।अचानक उसके जोर से झटका लगा और जमीन पर बेसुध होकर गिर गया,थोड़ी देर बाद उसे होश आया।और वह मुस्कुराने लगा।
- गणित शिक्षक:तुम तो बेसुध हो गए थे,मरने जैसी हालत हो गई थी,फिर भी मुस्कुरा रहे हो।
- छात्र:मैंने सोचा कि मुझे गणित के सवाल करने से सिद्धि मिल गई है और सिद्धि मिलने पर ऐसा ही होता होगा।
7.गणित की सिद्धि की 7 कसौटियाँ (Frequently Asked Questions Related to 7 Criteria for Maths Accomplishment),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए गणित की सिद्धि की 7 कसौटियाँ (7 Mathematics Achievement Criteria for Mathematics Students) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.पूजा करने का क्या अर्थ है? (What does it mean to pray?):
उत्तर:सच्चा गणित का साधक केवल गणित के सवालों को हल करके संतुष्ट नहीं होता बल्कि अपने मन को विषय विकारों और वासनाओं से रिक्त करता है,गणित का अध्ययन अहंकार की तुष्टि के लिए नहीं करता यही पूजा है,आराधना है।
प्रश्न:2.साधना को समझाइए। (Explain the practice):
उत्तर:साधना से आत्म-बल मिलता है।साधना से उस सत्य की झांकी मिलती है जो ज्ञान की पराकाष्ठा है। साधना से बुद्धि सात्विक होती है और छात्र-छात्रा दुःखों और बाधाओं को पार कर जाता है।
प्रश्न:3.सिद्धि से क्या आशय है? (What do you mean by Siddhi?):
उत्तर:किसी भी कार्य की पूर्णता तक पहुंचना सिद्ध होती है।सिद्धियों से सांसारिक वस्तुएं प्राप्त नहीं होती बल्कि सिद्धियों से आत्मिक उन्नति होती है,आत्मा की अनुभूति होती है।अतः सिद्धि से पहले कष्ट या दुःख मिले तो उसे सहने की क्षमता भी पैदा करनी चाहिए।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित की सिद्धि की 7 कसौटियाँ (7 Criteria for Maths Accomplishment),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए गणित की सिद्धि की 7 कसौटियाँ (7 Mathematics Achievement Criteria for Mathematics Students) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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