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5 Tips for Students to Develop Talent

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1.छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिभा को विकसित करने की 5 टिप्स (5 Tips for Students to Develop Talent),छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिभा को निखारने की 5 टिप्स (5 Tips for Students to Make Glamorous Talent):

  • छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिभा को विकसित करने की 5 टिप्स (5 Tips for Students to Develop Talent) से संबंधित कई लेख पूर्व में इस वेबसाइट पर पोस्ट कर चुके हैं।आपको अपनी प्रतिभा को विकसित करने के लिए उन लेखों को पढ़कर तो अमल करना ही चाहिए।इस लेख में कुछ नवीन सामग्री है जिसके आधार पर आप अपनी प्रतिभा में धार और पैनापन ला सकते हैं।दरअसल प्रतिभा किसी एक गुण को विकसित करने से ही नहीं बढ़ती है बल्कि प्रतिभा अनेक गुणों को विकसित करने से बढ़ती है,प्रतिभा अनेक गुणों का जोड़ है।
  • भगवान ने सभी छात्र-छात्राओं और मनुष्यों को समान शक्ति,सामर्थ्य दी है अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि उस शक्ति,सामर्थ्य को कितना उभारते हैं,विकसित करते हैं।हमारे अंदर दिव्य शक्तियों का अनंत जखीरा भरा पड़ा है।हम अपनी संकल्पशक्ति,चिंतन शक्ति एवं जुझारूपन से जितना अपनी सुप्त शक्तियों को जागृत करते हैं उतना ही अपने तथा दूसरों के लिए उपयोगी बनते हैं।
  • प्रतिभा के बल पर ही हम प्रतिकूल परिस्थितियों,विकट परिस्थितियों के बीच अपना मार्ग निकालकर आगे से आगे बढ़ते जाते हैं।शर्त यही है कि उसे उचित रीति से,उचित दिशा में विकसित किया जाए।
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2.सतत पुरुषार्थ करें (Make Continuous Effort):

  • महापुरुषों,महान गणितज्ञों,वैज्ञानिकों एवं अतिप्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं के जीवन का अवलोकन किया जाए तो हम पाएंगे कि उन्होंने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रचंड पुरुषार्थ किया है।दुनिया के लोगों की टीका-टिप्पणियों से अप्रभावित रहकर वे सतत पुरुषार्थ करते रहे तथा सफलताएं अर्जित करते गए।यह बात केवल किसी विशेष छात्र-छात्रा अथवा गणितज्ञ व वैज्ञानिक के लिए ही लागू नहीं होती बल्कि हर प्रतिभाशाली व्यक्तित्त्व के लिए लागू होती है।
  • प्रतिभा का अनंत भंडार हर व्यक्ति के अंदर भरा पड़ा है परंतु अनेक छात्र-छात्राएं लोभ,लालच,प्रलोभनों में फंस जाते हैं अथवा आलस्य,लापरवाही,फालतू गप्पे हाँकने,अनावश्यक कार्यों में अपने समय को नष्ट करते रहते हैं अतः उनकी प्रतिभा अनावश्यक कार्यों में नष्ट होती रहती है।
  • यों पुरुषार्थ तो मजदूर,कृषक भी करते हैं परंतु उनके जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन नजर नहीं आता है।वस्तुतः हर प्रतिभाशाली व्यक्ति में शारीरिक शक्ति,विचार शक्ति,अंतःकरण (भाव शक्ति) जागरण होता है तभी वे महामानव के स्तर पर पहुंचते हैं।अन्य सभी गुण इन तीन पक्षों के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं।यह हो सकता है कि किसी में शारीरिक शक्ति का जागरण मुख्य रूप से हुआ हो और विचार व भाव शक्ति का विकास गौण रूप से हुआ हो।इसी प्रकार विचार शक्ति का जागरण जिसमें अधिक हुआ हो तो शारीरिक व भाव शक्ति का विकास गौण रूप से हुआ हो।
  • जो छात्र-छात्राएं प्रारंभ से ही कठिनाइयों,समस्याओं से जूझते हैं और भौतिक सुखों को तिलांजलि देते हैं वे ही अपने पुरुषार्थ के बल पर अल्प साधनों के बल पर जेईई-मेन,आईआईएम,एनआईटी,आईएएस,आईएफस जैसी कठिन प्रतियोगिता परीक्षाओं को उत्तीर्ण कर पाते हैं।इनकी सफलता का रहस्य उनके अध्यवसाय में ही निहित रहा है।
  • अपनी अंतर्निहित प्रतिभा को पहचानते हुए प्रयत्न-पुरुषार्थ न किया जाए तथा धैर्य न रखा जाए तो ऐसे छात्र-छात्राएं थोड़ी कठिनाइयां,समस्या आने पर अपना मार्ग बदल लेते हैं।ऐसे छात्र-छात्राओं की प्रतिभा सुप्त ही रह जाती है अथवा सड़ गल जाती है।अतः प्रतिभा को निखारने के लिए निरंतर पुरुषार्थ,बार-बार अभ्यास करते रहने की आवश्यकता है।
  • पुरुषार्थ वह घर्षण है जो हमारी प्रतिभा में चमक पैदा करता है,निखार लाता है।यदि फर्श चिकना हो तो,घर्षण ना हो तो उस पर चलते हुए हम गिर पड़ेंगे।अवरोध,घर्षण के बिना हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते हैं।अतः हम बुद्धिपूर्वक विचार करें तो पुरुषार्थ,अध्यवसाय व जीवट की महत्ता समझ में आ जाएगी।

3.क्षमताओं में वृद्धि करें (Increase Capabilities):

  • प्रतिभा केवल कठिन परिश्रम व सतत प्रयास का नाम ही नहीं है बल्कि अपनी क्षमताओं में निरंतर वृद्धि करते रहना है।परंतु कुछ छात्र-छात्राओं की मानसिकता केवल परीक्षा को उत्तीर्ण करने की तरफ रहती है।अपनी क्षमताओं के जागरण तथा उनमें वृद्धि करते रहने की तरफ नहीं होती है।इसी कारण बहुसंख्यक छात्र-छात्राओं की क्षमताएं सुप्त पड़ी रहती है।उनके मस्तिष्क पर तमोगुण का प्रभाव छाया रहता है।ऐसे छात्र-छात्राओं की स्थिति उस नशेड़ी की तरह है जो अपनी सामर्थ्य को भुलाकर किसी नाली अथवा कचरे के ढेर पर पड़ा रहता है।
  • मस्तिष्क की जड़ता और उन्माद को दूर करने का प्रयास नहीं करते हैं तो क्षमताओं का सदुपयोग नहीं हो पाता है।वस्तुतः जन्म से प्रतिभाशाली विरले ही होते हैं।जन्म से जो प्रतिभाशाली होते हैं वे पूर्व जन्म के संस्कार अपने साथ लेकर आते हैं अन्यथा अधिकांश छात्र-छात्राओं और व्यक्तियों को प्रायः यहीं पर अपनी प्रतिभा को विकसित करना होता है,अपनी सामर्थ्य व क्षमताओं में लगातार वृद्धि करनी होती है।
  • क्षमताओं का केवल जागरण ही पर्याप्त नहीं है बल्कि क्षमताओं का उपयोग सही दिशा में करना तथा उसका सुनियोजन करना भी आवश्यक है।क्षमताओं में वृद्धि तथा जागरण आलस्य व प्रमाद से बचकर सदैव जागरूक,सावधान,सचेत और स्फूर्तिवान बने रहना होता है।एक-एक क्षण को अध्ययन,मनन,चिंतन में खपाना होता है।योजनाबद्ध अपने लक्ष्य की रणनीति बनाना और पूर्ण निष्ठा के साथ उसका पालन करना होता है।
  • आमतौर से छात्र-छात्राएं उत्तीर्ण होने को ही अपनी सफलता मान बैठते हैं।उत्तीर्ण तो 33 या 36% अंक प्राप्त करके हुआ जा सकता है।परंतु इस तथ्य पर विचार करें कि यदि कोई रसोइया 100 में से 67 या 64 रोटियां जला दे तथा 33 या 36 रोटियां सही सेक दे तो उस रसोइये को क्या सफल कहा जा सकता है? आज के छात्र-छात्राओं के साथ यही हो रहा है कि वे उत्तीर्ण होने से ही संतोष कर लेते हैं तथा अपनी क्षमताओं में वृद्धि का कोई प्रयास नहीं करते हैं।
  • होना तो यह चाहिए कि हमें पिछले दिन के बजाय आज अपनी क्षमता में वृद्धि करने का प्रयास करना चाहिए।अपनी क्षमताओं को परिष्कृत बनाने के लिए लालायित रहना चाहिए।उदाहरणार्थ यदि किसी छात्र-छात्रा के कक्षा 12 में 60% अंक आए हैं तो उसे आगामी कक्षा में 60% से अधिक अंक अर्जित करने की चेष्टा और भरसक प्रयास करना चाहिए।प्रतिभाशाली छात्र-छात्राएं अपनी क्षमताओं का श्रेष्ठतम उपयोग करते हैं और उसमें अभिवृद्धि करते रहते हैं।
  • ऐसा वे छात्र-छात्राएं ही कर सकते हैं जो सदैव जागरूक,सचेष्ट,सावधान और स्फूर्तिवान रहते हैं,लगातार अपना मूल्यांकन करते हैं।प्रतिदिन अपना आत्मनिरक्षण करते हैं तथा की गई त्रुटियों में अगले दिन सुधार करते हैं।प्रतिदिन कुछ ना कुछ नवीन बात सीखते हैं,पिछले दिन की तरह ही अगला दिन नहीं गुजार देते हैं।सतत अपने आप पर निगरानी रखते हैं,अपनी क्षमताओं को अपने सही लक्ष्य की तरफ नियोजित रखते हैं।

4.मनोयोग की भूमिका (The Role of Mindfulness):

  • संसार में महान् गणितज्ञ आर्किमिडीज,महान् गणितज्ञ न्यूटन,आर्यभट आदि ने महान् खोजें और आविष्कार केवल पुरुषार्थ के बल पर ही नहीं कर पाए थे बल्कि इसके अन्य पहलू भी हैं:विनम्रता,धैर्य और मनोयोग।इनके बिना सफलता,महानता का होना,क्षमतावान बनना प्रायः असंभव ही है।
  • जो छात्र-छात्राएं कठिन परिश्रम तो करते हैं परंतु जिनमें धैर्य,विनम्रता और मनोयोग नहीं है उनकी वास्तव में पुरुषार्थ के प्रति सच्ची निष्ठा नहीं है।मनोयोग,मन की एकाग्रता के बिना ऐसे छात्र-छात्राएं अध्ययन को भार समझते हैं।मन में हमेशा यही भाव रहता है कि कैसे अध्ययन से मुक्ति मिले,कैसे इससे छुट्टी मिले।अध्ययन को भी लादे गए भार की तरह उतार फेंकना चाहते हैं।यही कारण है कि एक बार भी असफल होने पर उनका मनोबल लड़खड़ा जाता है।
  • इस तरह की मनोवृत्ति आजकल के छात्र-छात्राओं में खूब घर कर रही है।पढ़ाई का सीधा संबंध नौकरी से मान लिए जाने के कारण मन का अधिकांश भाग उसी में लगा रहता है।तरह-तरह की कल्पनाएं गढ़ा करता है,ऊंची-ऊंची कल्पनाएं किया करता है।अपनी वास्तविक स्थिति से ज्यादा की आकांक्षा पाल लेता है और वैसा नहीं होता तो औंधे मुँह गिरता है।
  • इस सबके लिए शिक्षकों,शिक्षा पद्धति और अन्य को दोषी ठहराता रहता है।यदि पुरुषार्थ के साथ ही धैर्य व मनोयोग को शामिल कर लिया जाए तो इस स्थिति से बचा जा सकता है।इसी से जीवन खिलता और निखरता है।
  • मनुष्य ने जो कुछ उपलब्धियां अर्जित की है उसके मूल में उसका पुरुषार्थ,धैर्य,विनम्रता,मनोयोग ही है।आज हम जिन साधन-सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं,ये सभी इसी का परिणाम है।मनुष्य की सभ्यता इसी की देन है।मनुष्य में जो कुछ भी महान है,इन्हीं की बदौलत है।
  • मनोबल में चमत्कारी परिणाम प्रस्तुत करने की क्षमता है।कोई भी व्यक्ति किसी भी स्थिति में क्यों न काम कर रहा हो,वह खिलाड़ी हो,विद्यार्थी हो,प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाला अभ्यर्थी हो,गणित के क्षेत्र में खोजकर्ता हो,गणितज्ञ हो,वैज्ञानिक हो,गणित का अध्यापक या प्राध्यापक हो अथवा अन्य कोई भी क्यों ना हो जैसे ही वह पुरुषार्थ,विनम्रता,धैर्य एवं मनोयोग के मिश्रित स्वरूप को अपनाता है,उसमें कार्य के प्रति एक नया उत्साह जागता है।अंदर से कर्त्तव्य के प्रति समर्पण की भावना जागती है।फिर पहले की बेचैनी भाग जाती है,क्योंकि इसका कारण ही मनोयोग का अभाव था।इतना ही नहीं अध्ययन अथवा कार्य की बारीकियां समझ में आने लगती है।कठिनाइयां,समस्याएं और गुत्थियाँ सुलझने लगती हैं।मौलिक सूझ-बूझ जाग जाती है।
  • इसी के बलबूते साधारण से छात्र-छात्रा इंजीनियर,गणितज्ञ,प्राध्यापक,प्रोफेसर,वैज्ञानिक बनते देखे जाते हैं और अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ।माइकल फैराडे प्रसिद्ध वैज्ञानिक हम्फ्री डेवी के यहां मजदूर के रूप में भर्ती हुआ था।उसका काम था,प्रयोगशाला की सफाई करना।सफाई तो दूसरे भी करते थे पर उनका श्रम रोजी-रोटी का साधन भर था।उनका मन इसे भारभूत समझता।जैसे ही छुट्टी मिलती गदगद हो जाते,किंतु माइकेल तो काम के समय में भी प्रसन्न रहता।उत्साह के साथ सूझबूझ जगी।श्रम के साथ धैर्य व मनोयोग के बल पर मजदूर माइकेल डायनेमो और इलेक्ट्रिलिसिस के सिद्धांत का आविष्कारकर्ता मूर्धन्य वैज्ञानिक माइकेल फैराडे बन गया।

5.कठिन परिश्रम और मनोयोग के साथ धैर्य भी जरूरी (Patience is Also Necessary Along with Hard Work and Single-Mindedness):

  • पुरुषार्थ,धैर्य और मनोयोग के अभाव में प्रतिभा दबी पड़ी रह जाती है।छात्र-छात्राओं के विभिन्न अंगों का विकास अधूरा ही रह जाता है।धैर्य तो आलसियों को भी होता है।अपनी लेटलतीफी (दीर्घसूत्रता) को वे धैर्य का नाम देते देखे जाते हैं।इससे किसी तरह का विकास होने से रहा उल्टे जड़ता ही आती है।
  • किसी भी तरह का एकांगी क्रम जीवन की क्षमताओं को भली प्रकार नहीं उभार पाता।आधा-अधूरापन बना रहता है।यह अधकचरी और भौंडी स्थिति ना रहे,इसके लिए पुरुषार्थ,मानसिक एकाग्रता और इन दोनों की अंतर्क्रिया का परिणाम धैर्य बना रहे।इन तीनों का सम्मिश्रण आयुर्वेदिक औषधि त्रिफला की तरह बल्कि उससे भी कहीं बढ़कर है।
  • इसे अपनाएं और स्वीकारें,इसके परिणाम स्वरुप जीवन एक नए रूप में ढलेगा।इस कायाकल्प की प्रक्रिया से पुराने मल-विक्षेप,आवरण-आलस्य,प्रमाद,जड़ता सबसे उसी तरह से विमुक्त होते बन सकेगा जैसे कि सांप अपनी केंचुल छोड़ देते हैं।निखरी हुई प्रतिभा अपने नूतन सौंदर्य को पा सकेगी।स्वयं भी कृतकृत्य होंगे,औरों को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
  • एक छात्र ने 12वीं कक्षा गणित विषय से उत्तीर्ण की।उसके बाद उसने बीएससी में दाखिला लिया।बीएससी के प्रथम वर्ष में अनुत्तीर्ण हो गया।बीएससी का अध्ययन छोड़कर उसने इंजीनियरिंग करना प्रारंभ किया।3 वर्ष में उसके कई विषय बेक रह गए,अतः इंजीनियरिंग छोड़कर आर्ट्स विषय से बीए करने लग गया इस प्रकार कई बार उसने विषय बदला पर धैर्य और मनोयोग के अभाव में उसका पुरुषार्थ निष्फल ही रहा।पुरुषार्थ की परिणिति हताशा में हुई।
  • इस तरह अनेको हताश संसार में मिल जाएंगे,जो कठिन परिश्रम तो करते हैं,पर धैर्य-मनोयोग से रिश्ता नहीं रखते।सही कहा जाए तो ऐसे लोगों में पुरुषार्थ के प्रति निष्ठा नहीं होती है।मनोयोग के अभाव में अध्ययन को बोझ समझते हैं।मन में हमेशा यही भाव रहता है की पढ़ाई-लिखाई से कैसे छुटकारा मिले।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिभा को विकसित करने की 5 टिप्स (5 Tips for Students to Develop Talent),छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिभा को निखारने की 5 टिप्स (5 Tips for Students to Make Glamorous Talent) के बारे में बताया गया है।

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6.गणितज्ञ द्वारा औसत का खेल (हास्य-व्यंग्य) (Games of Averages by Mathematician) (Humour-Satire):

  • एक गणितज्ञ नदी के किनारे टहल रहे थे तभी।कुछ लोग आए और गणितज्ञ से पूछा कि हम नदी को पार कर सकते हैं या नहीं।गणितज्ञ महोदय ने नदी के दूसरे किनारे,नदी के बीच तथा अपने वाले किनारे का औसत निकालकर कहा:आप निसंकोच नदी को पार कर सकते हो।ज्योंही वे लोग नदी के बीच पहुंचे और नदी में डूब गए।
  • तभी एक सज्जन आए तो उन्होंने कहा इसे कहते हैं व्यावहारिक ज्ञान की कमी।

7.छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिभा को विकसित करने की 5 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Tips for Students to Develop Talent),छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिभा को निखारने की 5 टिप्स (5 Tips for Students to Make Glamorous Talent) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.प्रतिभा से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Talent?):

उत्तर:(1.)दूरदर्शिता,साहसिकता और नीति-निष्ठा का समन्वय प्रतिभा के रूप में परिलक्षित होता है।
(2.)संयम अपनाने,सूझबूझ उभारने और दूरवर्ती परिणामों को ध्यान में रखते हुए जागरूकता बनाए रखने की आवश्यकता है।इसी मन:स्थिति को प्रतिभा कहते हैं।
(3.)जो विशेषता प्रयत्नपूर्वक उभारी,तरशी,निखारी जाती है उसे प्रतिभा कहते हैं।
(4.)प्रतिभा वस्तुतः वह संपदा है,जो व्यक्ति की मनुष्यता,ओजस्विता,तेजस्विता के रूप में बहिरंग में प्रकट होती है।
(5.)मनुष्य में जब इतनी प्रखरता आ जाए कि वह विपरीत परिस्थितियों में भी रुके-झुके नहीं,वरन् प्रवाह को मोड़कर अपने अनुकूल कर ले,इसी को प्रतिभा कहते हैं।

प्रश्न:2.प्रतिभावान की क्या विशेषता होती है? (What is the Speciality of Genius?):

उत्तर:(1.)प्रतिभा है जो वैभव को उपार्जित ही नहीं करती,वरन उसके सदुपयोग भर के लिए उच्चस्तरीय सुझाव,संकल्प और साहस भी प्रदान करती है।बड़प्पन भी तो इसी पर आश्रित है।
(2.)प्रतिभावानों की सबसे बड़ी विशेषता विनम्रता होती है।
(3.)परिष्कृत प्रतिभा,दुर्बल सहयोगियों की सहायता से भी बड़े-बड़े काम संपन्न कर लेती है,जबकि डरकर समर्थ व्यक्ति भी हाथ-पैर फुला बैठते हैं।
(4.)प्रतिभा जिधर भी मुड़ती है,जिस क्षेत्र में भी अपना कार्य प्रारंभ करती है उसमें इतना कार्य खड़ा कर देती है कि लोग चमत्कृत हो जाते हैं।
(5.)पदार्थ के छोटे कण में छिपी असाधारण शक्ति की भांति प्रतिभावान जहां,जब,जिस लक्ष्य पर भी चल पड़ता है,बम की तरह धमाका करता हुआ,लोगों के अंतराल को झकझोर कर अपने साथ चल पड़ने के लिए बाधित करता है।

प्रश्न:3.सफलता से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Success?):

उत्तर:मित्रता,प्रतिष्ठा,प्रशंसा से लदा हुआ जिन्हें आप देखते हैं,जिनके बहुत से मित्र,भक्त,प्रशंसक पाते हैं,उनकी मानसिक दशा का निरीक्षण कीजिए।आप पाएंगे कि उनमें बहुत से ऐसे गुण हैं,जिनके कारण लोगों का मन उनकी ओर आकर्षित होता है,उनमें बहुत सी ऐसी विशेषताएं है,जिनसे लोग लाभ उठाते हैं,उन्हें मुफ्त के माल की तरह प्रतिष्ठा एवं प्रशंसा नहीं मिलती,वरन उसके अनुरूप अपने आपको बनाने के पश्चात उसके अधिकारी हुए हैं।गंधरहित पुष्प के पास भौंरे नहीं आते।अपने चारों ओर भ्रमरों को मधुर स्वर के साथ गूँजते फिरते देखने का सौभाग्य उन्हीं पुरुषों को प्राप्त होता है जो अपने अंदर मनमोहिनी सुगंध छिपाए बैठे हैं।कमल के फूल पर यदि भौंरे के झुंड मँडराते रहते हैं तो यह भौंरों की कृपा नहीं,कमल की विशेषता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिभा को विकसित करने की 5 टिप्स (5 Tips for Students to Develop Talent),छात्र-छात्राओं के लिए प्रतिभा को निखारने की 5 टिप्स (5 Tips for Students to Make Glamorous Talent) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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