Menu

3Tips for Youth to Become Self-Reliant

Contents hide

1.युवाओं के लिए आत्मनिर्भर बनने के 3 टिप्स (3Tips for Youth to Become Self-Reliant),युवाओं के लिए बेरोजगारी का समाधान के लिए 3 टिप्स (3 Tips to Solve Unemployment for Youth):

  • युवाओं के लिए आत्मनिर्भर बनने के 3 टिप्स (3Tips for Youth to Become Self-Reliant) के आधार पर बेरोजगारी से निजात प्राप्त कर सकते हैं।शिक्षा का अर्थ सर्वांगीण विकास करना होता है।परन्तु आधुनिक शिक्षा प्राप्त करके भी युवावर्ग बेरोजगारी का सामना करता है तथा सबसे अधिक बेरोजगारी से युवावर्ग त्रस्त है।यदि युवावर्ग को वाकई में शिक्षित किया जाए तो वह बेरोजगार हो ही नहीं सकता है।परन्तु आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद बेरोजगारी विकराल रूप धारण चुकी है।
  • उसमें भी कोरोनावायरस के कारण फैली महामारी कोविड-19 कोढ़ में खाज सिद्ध हुई है। बहुत से युवाओं के रोजगार के अवसर समाप्त हो गए हैं तथा जो युवा अब डिग्रियाँ प्राप्त कर रहे हैं उन्हें रोजगार प्राप्त करने के लिए पापड़ बेलने पड़ रहे हैं।
  • वस्तुतः वर्तमान शिक्षा युवाओं को साक्षर करती है शिक्षित नहीं।यह वर्तमान शिक्षा पद्धति का दोष तो है ही परन्तु युवावर्ग, माता-पिता, अभिभावक भी अपने स्तर पर सावधान और सचेत होकर शुरू से ही इस समस्या का समाधान अपने स्तर पर करने की कोशिश नहीं करते हैं।
  • वर्तमान शिक्षा पद्धति से मात्र डिग्री प्राप्त होती है। इस शिक्षा को प्राप्त करने के बाद युवावर्ग परिश्रम करने से जी चुराता है।युवावर्ग निजी,अर्द्धसरकारी, सरकारी नौकरी करना चाहता है।
  • इसके प्रमुख कारण है श्रम के प्रति निष्ठा का भाव विकसित न करना, नौकरियों में आराम से जीवन व्यतीत करने की प्रवृत्ति, अधिक उच्च वेतनमान प्राप्त करना तथा वेतन के बजाय काम कम करना या जी में आए तो कर लो, न करो तो भी कोई पूछनेवाला नहीं।ऐसे में कार्यवाही करना तो दूर की बात है।यदि कार्यवाही की भी जाए तो आलसी,अकर्मण्य कर्मचारी रिश्वत व भ्रष्टाचार के कारण ले देकर बरी हो जाता है।
  • आश्चर्य की बात तो यह है कि निजीकरण तथा उदारीकरण के कारण सरकारी तथा अर्द्धसरकारी सेवाओं में भारी कमी के बावजूद युवावर्ग का सरकारी नौकरी के प्रति आकर्षण कम नहीं हुआ है। जबकि निजी क्षेत्र में आकर्षक पैकेज तथा सुविधाएँ और प्रतिभा को निखारने के अपार मौके मिल रहे हैं।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके । यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए । आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:Math Capable of Solving Unemployment?

2.युवावर्ग के बेरोजगार होने के कारण (Due to being Unemployed):

  • (1.)युवावर्ग को शिक्षा प्रदान करते समय श्रम के प्रति निष्ठा जाग्रत करने के कार्य नहीं किए जाते हैं। इसलिए युवावर्ग ऐसे जाॅब तथा कार्य पसन्द करता है जिसमें परिश्रम नहीं करना पड़े।चूँकि सरकारी नौकरी में परिश्रम कम करना पड़ता है और वेतनमान उच्च हैं तथा अन्य बहुत सी सुविधाएँ दी जाती है।
  • (2.)दूसरा मुख्य कारण है जनसंख्या का विस्फोट।भारत में जनसंख्या गुणोत्तर रूप से बढ़ रही है परन्तु जनसंख्या की तुलना में रोजगार का सृजन नहीं हो पाता है।
  • (3.)उदारीकरण तथा निजीकरण के कारण छोटे-छोटे उद्योग धन्धे नष्ट हो रहे हैं।छोटे-छोटे उद्योग धन्धे बहुराष्ट्रीय या राष्ट्रीय कम्पनियों की प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पाते हैं।
  • (4.)चौथा कारण है कि कम्प्यूटर के कारण बीस-तीस व्यक्तियों का कार्य एक व्यक्ति कर सकता है।आधुनिक युग में दिनोदिन कम्प्यूटर से कार्य करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।अतः युवावर्ग को रोजगार प्राप्त करने के सीमित अवसर रह जाते हैं।
  • (5.)पाँचवा कारण है कि माता-पिता व अभिभावक तथा युवावर्ग आधुनिक शिक्षा की वस्तुस्थिति को जानते हुए भी बालकों में शुरू से ही उनकी प्रतिभा को पहचानकर किसी हुनर या स्किल को पार्ट टाइम में विकसित नहीं किया जाता है।

3.युवावर्ग को वर्तमान स्थिति को समझने की आवश्यकता (Young People Need to Understand Current Situation):

  • (1.)आज का युग प्रतिस्पर्धा अथवा यों कहें कि गलाकाट प्रतिस्पर्धा का युग है।युवावर्ग को संसार में कदम रखते ही उसे चारों ओर से उलझन,भटकाव से युक्त बातों का सामना करना पड़ता है।युवाओं के सामने जब इस तरह की परिस्थितियां आती है तो वह अपने आपको भले-बुरे पक्षों को समझने में असमर्थ पाता है।
  • वर्तमान संसार की कठोर सच्चाइयों से सामना होते ही उसके पसीने छूट जाते हैं।इसलिए युवावर्ग को प्रारम्भिक काल से ही व्यावहारिक ज्ञान,जीवन में आनेवाली समस्याओं को पहचानने और समाधान करने की कूवत पैदा करनी चाहिए।वरना दुनियादारी की समस्याओं से टकराने पर गलत दिशा में भटकने की सम्भावना प्रबल हो जाती है।
  • (2.)संसार के हरक्षेत्र में इतनी प्रतिस्पर्धा तथा प्रतियोगिता है कि अपनी प्रतिभा को पहिचानना तथा निखारना बहुत कठिन कार्य हो गया है।बौद्धिक प्रखरता,समस्याओं से टकराने का साहस,धैर्य,विवेक के बिना निर्वाह करना मुश्किल है।
    प्राचीनकाल में लोगों में पारस्परिक स्नेह,सामंजस्य, सहयोग, संयम,संतोष के कारण जीवन सरलता से गुजर जाता था।इसलिए शिक्षा की इतनी आवश्यकता प्राचीनकाल में नहीं थी।शैक्षिक गुण लोगों में परिवार, समाज के द्वारा आपसी व्यवहार से ही विकसित हो जाते थे।
  • परन्तु आधुनिक जीवन शैली साधन, सुविधायुक्त तथा मँहगी शिक्षा में इन गुणों को विकसित करने की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता है। माता-पिता, अभिभावक व युवावर्ग को अपने स्तर पर वास्तविक रूप में शिक्षित होने का प्रयास करना चाहिए।सरकार तथा शिक्षा संस्थानों के भरोसे पर रहना उचित नहीं है।
  • (3.)प्राचीनकाल में शान्ति से गुजारा हो जाता था परन्तु वर्तमान समय में शान्ति से गुजारा करने के दिन लद गए हैं।अतः युवाओं को शुरू से ही अपनी प्रतिभा को पहचान कर पार्ट टाइम में कोई हुनर अवश्य सीखना चाहिए।
  • (4.)माता-पिता, अभिभावक तथा युवावर्ग के सामने धर्म संकट यह है कि डिग्री प्राप्त करने पर वह अपने आपको ठगा सा महसूस करता है और चौराहे पर आकर खड़ा हो जाता है।जिसमें वह अपने आपको कोई भी जाॅब करने के काबिल नहीं पाता है। वह विचार करता है कि शिक्षा अर्जित करने से उसे आखिर लाभ क्या हुआ है? आखिर वह अपना पेट ही न भर सके? मँहगी शिक्षा अर्जित करने के कारण घर का आर्थिक बजट सन्तुलन बिगड़ जाता है परन्तु पाया कुछ नहीं।अतः इस स्थिति को पहले से ही समझकर इसका उपाय बाल्यकाल से ही करना चाहिए।
  • (5.)वर्तमान युग में घर-घर में बेकारी का चिन्तन होने लगे तो इसे शर्मनाक तथा युवाओं के लिए दुर्भाग्य की ही बात है।
    जीवन की मूलभूत आवश्यकता है भोजन,वस्त्र और शिक्षा।यदि सही मायने में शिक्षा अर्जित की जाए तो भोजन और वस्त्र की समस्या से निजात मिल सकती हैं।यदि शिक्षा में आत्मनिर्भरता तथा उपयोगिता को भी शामिल किया जाए तो इन समस्याओं से युवाओं को छुटकारा मिल सकता है।
  • (6.)युवाओं को आजीविका,उपार्जन,चरित्र गठन एवं जीवनोपयोगी ज्ञान बालक को शुरू से ही प्रारम्भ कर दिया जाए।इसका प्रमुख दायित्व माता-पिता,अभिभावक,शिक्षा संस्थानों,समाज तथा युवावर्ग खुद का है।

Also Read This Article:6 Tips for Building a Good Career

4.युवावर्ग को बेकारी से निजात दिलाने के उपाय (Ways to Rid the Youth of Unemployment):

  • (1.)उच्च शिक्षा केवल योग्य तथा प्रतिभाशाली युवाओं को ही प्रदान करने का प्रावधान होना चाहिए।बाकी अन्य युवाओं को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान कराना चाहिए।इसके लिए शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन करना आवश्यक है।आज डेनमार्क,स्काॅटलैण्ड तथा जापान जैसे देशों में व्यावसायिक शिक्षा लगभग 80% युवावर्ग हासिल करता है।परन्तु हमारे देश में बिल्कुल इसका उल्टा है।हमारे 80% युवावर्ग सामान्य शिक्षा प्राप्त करता है जो डिग्री प्राप्त करके बेकारों की संख्या बढ़ाता है।
  • (2.)शिक्षा संस्थानों में आधुनिक तकनीक अर्थात् कम्प्यूटर शिक्षा को अनिवार्य किया जाए।कम्प्यूटर शिक्षा सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक (Practical) दी जाए।
  • (3.)माता-पिता बालकों की प्रतिभा को पहचान कर शुरू से ही कोई एक हुनर पार्ट टाइम में अवश्य सीखना चाहिए जिससे डिग्री प्राप्त करने के बाद युवा बेरोजगारी का सामना न करे।
  • (4.)चौथा उपाय यह है कि युवावर्ग की शुरू से ही श्रम के प्रति निष्ठा जाग्रत करनी चाहिए।माता-पिता सक्षम भी हों तो भी कोई न कोई श्रम का कार्य उनसे करवाना चाहिए।जैसे ट्यूशन कराना,कोचिंग में पार्ट टाइम पढ़ाना, अखबार वितरण करना,कोई लेख लिखना,कोई खेल सीखना,गमलों-पौधों में पानी डालना, अपने कपड़े स्वयं तथा बिना वाशिंग मशीन के धोना, घर की साफ-सफाई करना,रस्सी कूदना इत्यादि।यानी शुरू से ही बालक को व्यावसायिक शिक्षा सीखाने तथा श्रम के प्रति निष्ठा जाग्रत करने का प्रयास करना चाहिए।
  • यदि युवावर्ग परिश्रमी और पुरूषार्थी हो तो डिग्री प्राप्त करने के बाद स्वयं का व्यवसाय भी खड़ा कर सकता है।उसे बेकारी का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • (5.)पाँचवा उपाय है कि युवावर्ग को शुरू से ही फिजूलखर्ची न करके पाॅकेट मनी को संचय करना चाहिए, बचत करते रहना चाहिए।स्कूल,काॅलेज की शिक्षा समाप्त होते ही उसे कोई भी छोटा-मोटा व्यवसाय करने के लिए आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • (6.)युवावर्ग तथा माता-पिता को सरकार से ज्यादा कुछ उम्मीद नहीं पालनी चाहिए।बल्कि स्वयं अपने पैरों पर खड़ा होने का पुरुषार्थ करें। क्योंकि शिक्षा पद्धति में बदलाव करना भारत के स्वतन्त्र होते ही आसान था।आज वर्तमान शिक्षा की जड़ें जम चुकी है इसलिए सरकार से शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन की उम्मीद रखना उचित नहीं है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में युवाओं के लिए आत्मनिर्भर बनने के 3 टिप्स (3Tips for Youth to Become Self-Reliant),युवाओं के लिए बेरोजगारी का समाधान के लिए 3 टिप्स (3 Tips to Solve Unemployment for Youth) के बारे में बताया गया है।

5.छात्र की पिटाई (हास्य-व्यंग्य) (Student Beating) (Humour-Satire):

  • एक बार एक छात्र को बार-बार समझाने पर भी वह सवाल को गलत कर देता था।दरअसल उसका ध्यान पढ़ाई में नहीं था।इसलिए शिक्षक के समझाने पर भी शारीरिक रूप से हाँ में गर्दन हिला देता था। शिक्षक द्वारा पुनः उस सवाल को हल करवाने पर गलती कर देता था।केवल शारीरिक रूप से उपस्थित होने पर सवालों को नहीं समझा जा सकता है बल्कि मानसिक रूप से भी उपस्थित रहना चाहिए।शिक्षक ने परेशान होकर छात्र की जोरदार पिटाई कर दी।
  • शिक्षक (छात्र से):इतनी पिटाई के बाद भी तुम हंस रही हो।
  • छात्र (शिक्षक से):हमारे शास्त्रों में तथा बड़ों ने कहा है कि मुसीबत के समय को हंस-हंस कर गुजारना चाहिए।

6.युवाओं के लिए आत्मनिर्भर बनने के 3 टिप्स (3Tips for Youth to Become Self-Reliant),युवाओं के लिए बेरोजगारी का समाधान के लिए 3 टिप्स (3 Tips to Solve Unemployment for Youth) के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.व्यावहारिक शिक्षा किस प्रकार के बालक पसंद करते हैं? (What Kind of Children Prefer Practical Education?):

उत्तर:जो बालक वस्तुओं की उपयोगिता,आर्थिक पहलू में रुचि प्रकट करते हैं ऐसे बालक भौतिक आवश्यकताओं पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। ऐसे बालक व्यावहारिक शिक्षा को पसंद करते हैं। उन्हें सैद्धान्तिक तथा आदर्शवादी शिक्षा में रुचि नहीं होती है।परमात्मा में यदि उनकी आस्था होती भी है तो वे भौतिक सम्पत्ति,धन सम्पत्ति को अर्जित करने की मंशा रखते हैं।

प्रश्न:2.रचनात्मक शिक्षा किस प्रकार के बालक पसंद करते हैं? (What Kind of Creative Education Do Children Like?):

उत्तर:जो बालक आर्थिक क्षेत्र,व्यापार,विज्ञापन आदि को अपने सिद्धांतों के विपरीत मानते हैं उनकी रूचि सामाजिक क्षेत्र के रचनात्मक कार्यों में होती है।

प्रश्न:3.धार्मिक वृत्ति किस प्रकार के बालकों में होती हैं? (What Kind of Religious Instincts Occur Children?):

उत्तर:कुछ विद्यार्थियों की रुचि धार्मिक व आध्यात्मिक क्षेत्र में होती है।वे शुरू से ही भजन,पूजन,धार्मिक तत्वों को अपने जीवन में उतारने में रुचि रखते हैं।उन्हें विश्व-ब्रह्माण्ड में परमात्मा की छवि दिखाई देती है।प्रारंभ में ही वे ध्यान,उपासना, चिन्तन-मनन में रुचि व जिज्ञासा प्रकट करते हैं।अतः माता-पिता,अभिभावक व शिक्षा संस्थानों इत्यादि को इसे विकसित करना चाहिए।

  • उपर्युक्त आर्टिकल में युवाओं के लिए आत्मनिर्भर बनने के 3 टिप्स (3Tips for Youth to Become Self-Reliant),युवाओं के लिए बेरोजगारी का समाधान के लिए 3 टिप्स (3 Tips to Solve Unemployment for Youth) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

3Tips for Youth to Become Self-Reliant

युवाओं के लिए आत्मनिर्भर बनने के 3 टिप्स
(3Tips for Youth to Become Self-Reliant)

3Tips for Youth to Become Self-Reliant

युवाओं के लिए आत्मनिर्भर बनने के 3 टिप्स (3Tips for Youth to Become Self-Reliant)
के आधार पर बेरोजगारी से निजात प्राप्त कर सकते हैं।
शिक्षा का अर्थ सर्वांगीण विकास करना होता है।परन्तु आधुनिक शिक्षा प्राप्त

No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *