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Mathematician Sridharacharya

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1.गणितज्ञ श्रीधराचार्य (Mathematician Sridharacharya),श्रीधराचार्य (Sridharacharya):

  • गणितज्ञ श्रीधराचार्य (Mathematician Sridharacharya) या श्रीधर आचार्य एक भारतीय गणितज्ञ और दार्शनिक थे।वे कर्नाटक प्रांत के निवासी थे।श्रीधर बीजगणित के आचार्य थे जिनका उल्लेख भास्कराचार्य ने बीजगणित में कई जगह किया है।उनकी माता का नाम अब्बोका तथा पिता का नाम वसुदेव शर्मा था।उन्होंने बचपन में अपने पिताजी कन्नड़ तथा संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया था।प्रारंभ में वे शैव थे किन्तु बाद में जैन अनुयायी हो गए।इनका समय 10 वीं शताब्दी का अंतिम समय माना जाता है।
  • इनकी पुस्तक का नाम त्रिशतिका और पांगिता है।त्रिशतिका की एक प्रति पंडित सुधाकर द्विवेदी के मित्र राजा जी ज्योतिर्विद तथा गणित तरंगिनी के अनुसार राज्य पुस्तकालय में थी।इस पुस्तक में 300 श्लोक हैं जिनके एक श्लोक से विदित होता है कि यह श्रीधर के बड़े ग्रंथ का सार है।यह मुख्य रूप से पाटीगणित (अंक गणित) की पुस्तक है जिसमें गिनती,प्राकृत संख्या,शून्य, माप,गुणन, भिन्न,भाग,वर्ग,घन,तीन का नियम,ब्याज गणना,संयुक्त व्यवसाय या साझेदारी,क्षेत्रमिति (आकार का पता लगाने से संबंधित ज्यामिति का मुख्य भाग),श्रेणी व्यवहार व छाया व्यवहार पर चर्चा की गई है।तीन अन्य कार्यों के लिए उन्हें जाना जाता है अर्थात् बीजगणित नवसती और बृहतपति।
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(1.)गणितज्ञ श्रीधराचार्य का गणित में योगदान (Mathematician Sridharacharya’s Contribution to Mathematics):

  • गणित सार में मुख्य देन अभिन्न,गुणक,भागाहार,वर्ग,वर्गमूल,घन,घनमूल,भिन्न,,समच्छेद,भाव जाति,प्रमाण जाति,भागानुबन्ध,त्रैराशिक, सप्तराशि, नवराशिक भाण्ड,प्रतिभाण्ड,मिश्रण व्यवहार,भाव्यक व्यवहार सूत्र,सुवर्ण गणित प्रक्षेपक,समक्रय-विक्रय सूत्र,श्रेणी व्यवहार,क्षेत्र व्यवहार,स्वात व्यवहार, चितव्य व्यवहार,काष्ठ व्यवहार,छाया व्यवहार का निरूपण किया गया है।वृत,क्षेत्रफल,परिधि और व्यास का चतुर्थांश बताया गया है।
  • उन्होंने शून्य पर एक प्रदर्शनी की।उन्होंने लिखा “यदि किसी संख्या में शून्य जोड़ा जाता है तो योग वही संख्या होती है।यदि किसी संख्या से शून्य घटाया जाता है तो संख्या अपरिवर्तित रहती है।यदि शून्य को किसी संख्या से गुणा किया जाता है तो गुणनफल शून्य होता है।
  • भिन्न को विभाजित करने के मामले में उन्होंने भाजक के व्युत्क्रम से भिन्न को गुणा करने की विधि का पता लगाया है।उन्होंने बीजगणित के व्यावहारिक अनुप्रयोग पर लिखा।उन्होंने बीजगणित को अंकगणित से अलग किया।वह द्विघात समीकरणों को हल करने के लिए एल्गोरिथ्म देने वाले पहले व्यक्ति थे।

(2.)गणितज्ञ श्रीधराचार्य से संबंधित अन्य बातें (Other Things Related to Mathematician Sridharacharya):

  • सुधाकर द्विवेदी का मत है कि न्यायकंदली के भी रचयिता श्रीधराचार्य माने जाते हैं।उस ग्रंथ की रचना 913 (991 ईस्वी सन्) में की गई थी।इसलिए श्रीधराचार्य का समय भी 913 शक संवत (991 ईस्वी सन्)माना जाता है।लेकिन यह ठीक नहीं है क्योंकि इस बात का समर्थन न तो दीक्षित और न डॉक्टर सिंह ही करते हैं।महावीर की गणित सार संग्रह नामक पुस्तक में श्रीधर के कुछ वाक्य आए हैं जिनसे प्रगट होता है कि श्रीधर महावीर से पहले हुए थे,महावीर का समय दीक्षित मत से 775 शक (853 ईस्वी सन्) तथा डॉक्टर सिंह के मत से 850 शक (928 ईस्वी सन्) होता है।

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(3.)निष्कर्ष (Conclusion):

  • प्राचीन भारत के गणित के नवरत्न है:आर्यभट (प्रथम),भास्कराचार्य द्वितीय,ब्रह्मगुप्त,महावीराचार्य,श्रीधराचार्य,बौद्धायन, लल्ल (लल्लाचार्य) (Lalla),श्रीपति (Tripti),वराहमिहिर (उज्जैन) [जिन्होंने संचय तथा क्रमचय के क्षेत्र में कार्य किया]।रत्न का मूल्य तो फिर भी कम हो सकता है परंतु गणित के क्षेत्र में इनका योगदान हमेशा अमर रहेगा।गणित में गणितज्ञों के योगदान के रूप में वे हमेशा याद रहेंगे।
  • गणित क्षेत्र विस्तृत है इसमें समस्त विश्व तथा ब्रम्हांड समाया हुआ है।हम हमारे गणितज्ञों की बहुत सी जानकारियों से अपरिचित हैं।
  • इन गणितज्ञों के मन में हमेशा अंक इस कदर समाये हुए थे कि हजारों साल पहले उन्होंने बिना साधन-सुविधा के ऐसी खोजें प्रस्तुत की है जिससे उनके लिए हमारा मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है। यदि इन गणितज्ञों की जीवन से प्रेरणा ली जाए तो भारत में गणित का स्वर्ण युग पुनः आ सकता है। भारत में ऐसे चोटी के गणितज्ञ और प्रतिभाएं उत्पन्न हो सकती हैं।आवश्यकता है हमारे देश के कर्णधारों द्वारा गांव,कस्बों और शहरों में छुपी हुई इन गणित की प्रतिभाओं को ढूंढकर आगे बढ़ाने की।उचित देखभाल के अभाव में हमारी बहुत सी प्रतिभाओं की प्रतिभा सड़-गल जाती है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणितज्ञ श्रीधराचार्य (Mathematician Sridharacharya),श्रीधराचार्य (Sridharacharya) के बारे में बताया गया है।

2.गणितज्ञ श्रीधराचार्य (Mathematician Sridharacharya),श्रीधराचार्य (Sridharacharya) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.श्रीधराचार्य सूत्र का आविष्कार किसने किया? (Who invented Sridharacharya formula?):

उत्तर:श्रीधर आचार्य (Sridhar Acharya)
हालाँकि, एक व्यक्ति जो उस कुलीन समूह का हिस्सा है,उसका उल्लेख शायद ही उसके साथी बंगालियों द्वारा किया जाता है।श्रीधर आचार्य – लगभग 870 ईस्वी में बलदेवाचार्य (Baladevacharya) और अचोका बाई (Acchoka Bai) से पैदा हुए, जो आज हुगली जिले के भुरसुत (Bhursut in Hooghly district) में है – यहां तक ​​​​कि उनके नाम पर एक सूत्र भी है, जिसे श्रीधर आचार्य के सूत्र के रूप में जाना जाता है।
उनका जन्म (870 सीई-सी 930 सीई) दक्षिण राधा के भूरीश्रेणी (भूरीश्री या भुरशु) गाँव में हुआ था,जो वर्तमान में पश्चिम बंगाल में हुगली है,फिर अविभाजित बंगाल की राजधानी गौर में है।उनके पिता का नाम बलदेवाचार्य और माता का नाम अचोका बाई था।

प्रश्न:2.श्रीधराचार्य सूत्र का प्रसिद्ध नाम क्या है?) (What is the famous name of Sridharacharya formula?):

उत्तर:श्रीधराचार्य सूत्र को द्विघात सूत्र के रूप में भी जाना जाता है।श्रीधराचार्य सूत्र का उपयोग ax^2+bx + c=0, a ≠0 के रूप के द्विघात समीकरणों के समाधान खोजने के लिए किया जाता है और x=\frac{(-b±√(b^2-4ac))}{2a} द्वारा दिया जाता है।  इसका नाम प्रसिद्ध गणितज्ञ श्रीधराचार्य के नाम पर रखा गया है जिन्होंने श्रीधराचार्य सूत्र को व्युत्पन्न किया था।

प्रश्न:3.श्रीधराचार्य पद्धति क्या है? (What is Sridharacharya method?):

उत्तर: श्रीधराचार्य विधि द्विघात समीकरण को हल करने का एक तरीका है।इसे आमतौर पर द्विघात सूत्र के रूप में भी जाना जाता है।श्रीधराचार्य पद्धति को आमतौर पर द्विघात सूत्र के रूप में जाना जाता है।

प्रश्न:4.आप श्रीधराचार्य सूत्र का उपयोग कैसे करते हैं? (How do you use Sridharacharya formula?):

उत्तर:यह किसी द्विघात समीकरण के दो मूल ज्ञात करने का व्यापक सूत्र है।इस सूत्र को द्विघात सूत्र या श्रीधर आचार्य के सूत्र के रूप में जाना जाता है।  श्रीधर आचार्य के सूत्र को लागू करने वाले द्विघात समीकरण को हल करने का उदाहरण: द्विघात समीकरण 6x^2-7x + 2 = 0 को द्विघात सूत्र लागू करके हल करें।

प्रश्न:5.द्विघात सूत्र का आविष्कार किसने किया? (Who invented the quadratic formula?):

उत्तर:सभी मामलों को कवर करने वाला द्विघात सूत्र (quadratic formula) पहली बार 1594 में साइमन स्टीविन (Simon Stevin) द्वारा प्राप्त किया गया था।1637 में रेने डेसकार्टेस (René Descartes) ने जियोमेट्री (La Géométrie) को प्रकाशित किया जिसमें द्विघात सूत्र शामिल था जिसे आज हम जानते हैं।

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणितज्ञ श्रीधराचार्य (Mathematician Sridharacharya),श्रीधराचार्य (Sridharacharya) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Mathematician Sridharacharya

गणितज्ञ श्रीधराचार्य (Mathematician Sridharacharya)

Mathematician Sridharacharya

गणितज्ञ श्रीधराचार्य (Mathematician Sridharacharya) या श्रीधर आचार्य एक भारतीय गणितज्ञ और दार्शनिक थे।
वे कर्नाटक प्रांत के निवासी थे।श्रीधर बीजगणित के आचार्य थे जिनका उल्लेख भास्कराचार्य ने बीजगणित में कई जगह किया है।

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