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How to Make Study Result-Focused?

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1.अध्ययन को परिणाम केंद्रित कैसे करें? (How to Make Study Result-Focused?),जाॅब को परिणाम केन्द्रित कैसे करें? (How to Make Job Result-Focused?):

  • अध्ययन को परिणाम केंद्रित कैसे करें? (How to Make Study Result-Focused?) परिणाम-केंद्रित होने का अर्थ है कि अध्ययन में कठोर परिश्रम करने से ही संतुष्ट न रहना बल्कि अध्ययन में आने वाली समस्याओं,कठिनाइयों और बाधाओं को दूर करते हुए आगे बढ़ते जाना और अपने लक्ष्य को हासिल कर लेना।कई बार विद्यार्थी अत्यधिक मेहनत करने पर भी असफल हो जाते हैं उसका मूल कारण यही होता है कि वे कठिन परिश्रम से ही संतुष्ट रहते हैं।कठिन परिश्रम को परिणाम तक अर्थात् परीक्षा में सफलता अर्जित करने पर केंद्रित नहीं कर पाते हैं।
  • इसीलिए कई विद्यार्थियों को यह कहते हुए सुना जाता है कि मैंने परीक्षा उत्तीर्ण करने,प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने अथवा जाॅब प्राप्त करने के लिए होने वाली परीक्षा के लिए तो खूब मेहनत की थी परंतु सफल नहीं हो सका।विद्यार्थी जब यह सोचकर ही संतुष्ट हो जाता है कि उसने कठिन परिश्रम तो किया परंतु प्रतियोगिता के इस युग में इस प्रकार की भावना से आपके व्यक्तित्त्व का निर्माण नहीं हो सकता है।
  • ऐसे किसी भी कठोर परिश्रम का कोई महत्त्व नहीं है जो परिणाम न दिला सके।परिणाम केंद्रित सोच का अर्थ है कि एक ऐसी सोच के साथ काम करना जिसमें लक्ष्य की प्राप्ति सबसे महत्त्वपूर्ण होती है।
  • उदाहरणार्थ यदि आप गणित के सवाल हल करते हैं परंतु प्रयत्न करने पर भी सवाल हल नहीं होता है तो सवाल को हल करने के अन्य विकल्पों पर विचार करते हैं।अन्य तरीकों से सवाल हल करने का प्रयत्न करते हैं।जब तक सवाल हल नहीं हो जाता है तब तक प्रयत्न करते रहते हैं।एक तरीके से हल नहीं होता है तो दूसरा,तीसरा तरीका आजमाते हैं।
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2.दृढ़ इच्छाशक्ति (Strong Will Power):

  • विद्यार्थी में दृढ़ इच्छाशक्ति का होना बहुत आवश्यक है।जिन विद्यार्थियों को परीक्षा में असफलता के अन्य कारण हो या ना हो परंतु एक कारण इच्छाशक्ति की निर्बलता भी है।यदि पूर्ण मनोयोग से अध्ययन अथवा जाॅब को किया जाए तो यह निर्बलता शीघ्र दूर हो सकती है।यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है,तो इच्छाशक्ति को दृढ़ कीजिए।इच्छाशक्ति दृढ़ होने पर कोई कार्य अधूरा नहीं रहेगा।
  • अध्ययन में,जॉब में या किसी भी कार्य में विघ्न,बाधाएँ आना स्वाभाविक है परंतु उससे घबराना नहीं चाहिए।विद्या प्राप्ति का मार्ग कठिनाइयों से भरा हुआ है और वे कठिनाइयाँ प्रयत्नपूर्वक ही दूर हो पाती हैं।
  • इच्छाशक्ति के दृढ़ रहने में कई बाधाएँ सामने आ जाती है,कई प्रलोभन आ जाते हैं।जब विद्यार्थी इन प्रलोभनों का शिकार हो जाता है तो इच्छाशक्ति निर्बल पड़ जाती है।जैसे कोई विद्यार्थी शिक्षा अर्जित करने के बाद कोचिंग सेंटर खोल लेता है।आज के प्रतियोगिता के युग में एकाएक सफलता नहीं मिलती है।परंतु ज्योंही कोचिंग सेंटर की प्रसिद्धि फैलने लग जाती है तो किसी विद्यालय के निदेशक आपको विद्यालय में अधिक वेतन देने का प्रलोभन देता है और विद्यालय में पढ़ाने के लिए कहता है।यदि आप इस प्रलोभन के शिकार हो जाते हैं तो इच्छाशक्ति निर्बल पड़ जाती है।
  • प्रलोभन के अलावा भी कई अन्य प्रकार की बाधाएँ सामने आती हैं जिनकी आपने कल्पना भी नहीं की थी।उन कठिनाइयों से हमारा मन डाँवाडोल हो जाता है।हमें ऐसी स्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए और डटकर उसका मुकाबला करना चाहिए।लक्ष्य प्राप्त करने में कौनसी बाधा कहाँ से आ जाए,अस्तु उसका सामना धैर्यपूर्वक और साहस के साथ करना चाहिए तभी दृढ़ इच्छाशक्ति बनी रह सकती है।
  • इच्छाशक्ति की दृढ़ता और प्रबलता मनुष्य को पराक्रमी,पुरुषार्थी और धीर-गंभीर बना देती है।दृढ़ इच्छाशक्ति वाला अपने लक्ष्य को प्राप्त किए बिना बीच में नहीं छोड़ता है।वह बाधाओं,विरोधों से साहसपूर्वक लड़ता हुआ बढ़ता रहता है।उन्नति और सफलता का इसके सिवाय ओर कोई उपाय नहीं है। संसार की सभी सफलताओं का मूल मंत्र है:दृढ़ इच्छाशक्ति।इसी के बल पर विद्या,संपत्ति और साधनों की प्राप्ति होती है।दृढ़ इच्छाशक्ति,लक्ष्य एवं आत्मविश्वास के आधार अपना कार्य का आरंभ करें तो प्रतिकूलताएं,कठिनाइयां जो कभी निराश एवं हताश कर देती थी,हमें अपने मार्ग में आगे बढ़ाने की प्रेरणा देगी।
  • दृढ़ इच्छाशक्ति प्रयास केंद्रित न होकर लक्ष्य केंद्रित होना चाहिए।यदि आप प्रयासों को ही अपनी सफलता मानते हैं तो इसका अर्थ है कि लक्ष्य का आपके जीवन में अधिक महत्त्व नहीं है।ऐसी स्थिति में आपके अंदर लक्ष्य प्राप्ति के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति पैदा नहीं होगी।आपके लिए लक्ष्य अपनी रुचि,क्षमता व योग्यता के अनुसार होना चाहिए जिसके लिए आप हरदम यही सोचें कि करना है तो बस यही करना है,कोई दूसरी सोच नहीं होनी चाहिए।

3.युक्तियों को तलाशने की क्षमता (Ability to Explore Tips):

  • युक्तियों का प्रयोग करना,उनकी तलाश करना एक बहुत बड़ी कला है।कुछ विद्यार्थी एक युक्ति (तरीके) को काम न करने पर हार मान जाते हैं।जैसे कोई सवाल एक तरीके से हल नहीं हो रहा हो तो दूसरा तरीका ढूंढने का प्रयास करना चाहिए।दूसरे तरीके से हल नहीं हो रहा हो तो तीसरा तरीका ढूंढना चाहिए।
  • परंतु अधिकांश विद्यार्थी गणित को हल करना प्रारंभ करते हैं और कोई सवाल एक तरीके से हल नहीं होता तो अन्य विकल्पों पर,तरीकों पर विचार नहीं करते हैं।किसी परीक्षा में किसी एक रणनीति से सफलता प्राप्त नहीं होती है तो दूसरी रणनीति अपनाने के बारे में विचार ही नहीं करते हैं।जेईई-मेन तथा जेईई एडवांस्ड,गैट अथवा अन्य कोई परीक्षा में ऐसे बहुत कम विद्यार्थी होते हैं जिन्हें प्रथम प्रयास में ही सफलता मिल गई हो।
  • कुछ विद्यार्थी तब तक हार नहीं मानते जब तक वे सभी युक्तियां प्रयोग नहीं कर लेते और ऐसे विद्यार्थी विकल्पों को तलाशने की क्षमता रखते हैं।
  • जरा उन महान् गणितज्ञों और वैज्ञानिकों के बारे में सोचिए जिनके कारण आधुनिक गणित का स्वरूप दिखाई दे रहा है।क्या उन्होंने एक तरीके का प्रयोग करके ही गणित व विज्ञान के सिद्धांत,नियम और प्रमेय की खोज कर ली थी।नहीं,वे असफल होते रहे और नए विकल्पों के साथ प्रयास करते रहे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।कोई न कोई विकल्प उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचाया है।वे कई तरीकों,विकल्पों का प्रयोग करते रहे और आगे बढ़ते रहे।
  • कई बार किसी समस्या को करने के लिए हमारे सामने कई विकल्प सामने आते हैं।अतः उन सभी विकल्पों में सही विकल्प का चुनाव करने पर ही समस्या का हल निकल सकता है अथवा समस्या को हल किया जा सकता है।कई विकल्पों में से कुछ विकल्प का चुनाव करना या सही विकल्प का चुनाव करना अनुभव और ज्ञान के द्वारा ही संभव हो पाता है।

4.सकारात्मक चिंतन (Positive Thinking):

  • सकारात्मक सोच परिणाम प्राप्ति के लिए बहुत आवश्यक है।जब किसी समस्या को हल करना एक तरीके से संभव नहीं होता है तो अन्य विकल्पों की ओर तभी बढ़ते हैं जब हम सकारात्मक होते हैं।यदि एक तरीका असफल हो जाए और यह सोच लें कि अब किसी सवाल,समस्या को हल नहीं किया ही नहीं जा सकता है तो नए विकल्प की तलाश नहीं करेंगे।
  • पहले तरीका असफल होते ही निराशा से ग्रस्त हो जाएंगे।निराशा मन में न आए इसके लिए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए तभी हमें लक्ष्य हासिल करने के नए-नए विकल्प दिखाई देते हैं और उन्हीं में से कोई एक हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचा देता है।
  • सकारात्मक सोच रखने के लिए कुछ तरीकों को अपने जीवन में अपनाना होगा।दरअसल आज के प्रतिस्पर्धा के युग में हमारे चारों ओर नकारात्मकता का माहौल है।ऐसे माहौल में अपने आपको मानसिक रूप से कुछ अच्छा सोचने का अभ्यास करते रहना चाहिए।सकारात्मक सोच ही हमें परिणाम केंद्रित या लक्ष्य केंद्रित की सही दिशा में ले जा सकती है।
  • यदि किसी समस्या को हल करने में कुछ तरीके आजमा चुके हैं तो इसमें आपको निराश होने के बजाय यह सोचना चाहिए कि इतने तरीकों से यह समस्या हल नहीं हो सकती है।सकारात्मक सोच का अर्थ ही यह है कि बुरी से बुरी स्थिति में भी कुछ अच्छा सोचना।
  • उदाहरणार्थ कोई विद्यार्थी विद्यालय जाते समय एक्सीडेंट हो जाता है और पैर फैक्चर हो जाता है।ऐसी स्थिति में उसे सोचना चाहिए कि भगवान् ने जीवित रख दिया वरना इस एक्सीडेंट में जान भी जा सकती थी।
  • यदि आप गणित के सवाल हल कर रहे हैं तो एक ही समस्या के बारे में विचार करें,इससे आपकी शक्ति केंद्रित रहेगी।यदि आप एक सवाल हल नहीं हो रहा है तो उसके साथ-साथ अन्य सवालों को हल करने के बारे में भी सोच रहे हैं तो आपकी एकाग्रता कायम नहीं रहेगी।बल्कि समस्या विकराल रूप धारण कर लेगी और कोई सा भी सवाल हल नहीं हो पाएगा।
  • अध्ययन करते समय अथवा जॉब करते समय आनेवाली चुनौतियों का धैर्यपूर्वक साहस के साथ सामना करना चाहिए यानी पलायनवादी मनोवृत्ति नहीं रखनी चाहिए।ऐसा करने से आपका व्यक्तित्त्व निखरता है।एक स्थिति ऐसी आएगी कि ये समस्याएं और चुनौतियां हमें खेल के समान नजर आने लगेगी।
  • हमेशा अपने लक्ष्य पर विचार करते रहें और उस पर चिंतन करते रहना चाहिए कि लक्ष्य को किस युक्ति से हासिल किया जा सकता है।
  • वस्तुतः असफलता मिलने में बाहरी परिस्थितियाँ उतनी निमित्त नहीं होती जितनी अपनी आंतरिक दुर्बलता और परिष्कृत चिंतन की कमी।यदि हम सकारात्मक चिंतन करने की आदत डाल सकें और जीवन धारण किए रखने के लिए आवश्यक मात्रा में साहस इकट्ठा कर सके तो मन की दुर्बलताओं से सहज ही छुटकारा मिल सकता है जो दिन-प्रतिदिन हमारे ऊपर आक्रमण करते हैं और चिंतन को नकारात्मक बना देते हैं।

5.परिणाम केंद्रित सोच का दृष्टांत (An Example of Result-Centric Thinking):

  • एक कोचिंग निदेशक ने दो गणित शिक्षकों को रखा।उनको दिसंबर तक गणित का कोर्स पूरा करने का लक्ष्य दिया।पहला शिक्षक दिखने में स्मार्ट था और संवाद में भी कुशल था।उसके पास गणित में डिग्री भी अच्छी थी और गणित में ज्ञान भी बहुत अच्छा था।दोनों गणित के शिक्षकों को दो-दो क्लास दे दी गई।जब दिसंबर का महीना आया तो निदेशक ने दोनों शिक्षकों को बुलाया।
  • पहला शिक्षक काफी परेशान और चिन्तित था जबकि दूसरा शिक्षक शांत और प्रसन्नचित लग रहा था।पहले शिक्षक ने कहा कि लक्ष्य कठिन था,लेकिन मैंने बहुत प्रयत्न किया,मैं दिसंबर तक शांति से सो नहीं सका।बस विद्यार्थियों की गणित में समस्याओं को हल करता रहा।लेकिन विद्यार्थी नई-नई गणित की समस्याएं प्रस्तुत करते रहते थे,उन्हें भी हल करता था।मैंने अतिरिक्त कालांश लेकर काफी मेहनत की।
  • निदेशक ने कहा कि बहुत अच्छा तब तो तुमने दो कक्षाओं को गणित का कोर्स पूरा करवा दिया होगा।पहला शिक्षक बोला,श्रीमान मैं आधा कोर्स ही पूरा करा पाया।निदेशक ने कहा मगर ऐसा कैसे हुआ? पहला शिक्षक बोला जिस टॉपिक को पढ़ाता था,उससे संबंधित अतिरिक्त सवालों को हल करता रहा।मैंने कड़ी मेहनत की तब जाकर मैं आधा कोर्स पूरा करा पाया।निदेशक उसके तरीके को देखकर हैरान रह गया।पहला शिक्षक प्रयास केंद्रित था,परिणाम केंद्रित नहीं।
  • फिर निदेशक ने दूसरे गणित शिक्षक से पूछा।दूसरा शिक्षक बोला मैं इतने अधिक सवालों को तो हल नहीं कर पाया परन्तु मैंने गणित का कोर्स पूरा करा दिया।निदेशक ने पूछा तुमने यह कैसे किया? दूसरा शिक्षक बोला:जो पहले शिक्षक के साथ हुआ वह मेरे साथ भी हुआ।मैं यह जानने की कोशिश करता था की गणित के टॉपिक से संबंधित अतिरिक्त सवाल विद्यार्थी क्यों पूछते हैं? इसका अर्थ है की गणित का टॉपिक सही से समझ में नहीं आया।मैं अगले टॉपिक को पढ़ाने के लिए उसको ठीक से समझाता और उसे पर आधारित सवालों को ठीक से समझाता जिससे विद्यार्थी अतिरिक्त सवाल नहीं पूछते थे।मैंने इस बात को ठीक से समझा तथा विद्यार्थियों को भी पूछता की उसे इस टॉपिक में क्या बात समझ में नहीं आई? इस प्रकार हर टॉपिक को इस ढंग से पढ़ाता और समझाता की अतिरिक्त सवालों को पूछने की संख्या कम होती गई,फलस्वरूप मैं समय पर पूरा कोर्स करा चुका।निदेशक दूसरे शिक्षक के पढ़ाने के तरीके से गद्गद हो गया।दूसरे शिक्षक के पढ़ाने का तरीका परिणाम केंद्रित अर्थात् लक्ष्य केंद्रित था।निदेशक ने दूसरे शिक्षक को कोचिंग में रख लिया तथा पहले शिक्षक को कोचिंग से हटा दिया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अध्ययन को परिणाम केंद्रित कैसे करें? (How to Make Study Result-Focused?),जाॅब को परिणाम केन्द्रित कैसे करें? (How to Make Job Result-Focused?) के बारे में बताया गया है।

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6.गृह कार्य करने का ढंग (हास्य-व्यंग्य) (How to Do Homework) (Humour-Satire):

  • नीतीश को समझाते हुए शिक्षक ने कहा कि कक्षा में बैठकर सवालों को हल नहीं करना चाहिए।
  • नीतीश:सर,आपको धोखा हुआ है,मैं कक्षा में बैठकर सवालों को हल नहीं कर रहा हूं। 
  • शिक्षक:तो फिर क्या कर रहे हो?
  • नीतीश:गणित का गृहकार्य कर रहा था। 

7.अध्ययन को परिणाम केंद्रित कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Make Study Result-Focused?),जाॅब को परिणाम केन्द्रित कैसे करें? (How to Make Job Result-Focused?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या इच्छाएं पूरी हो सकती है? (Can Wishes Be Fulfilled?):

उत्तर:सभी कामनाएं व इच्छाएँ किसी की पूरी नहीं होती है।इच्छाएँ अपनी रुचि,क्षमता व योग्यता के अनुसार ही करना चाहिए तथा अपनी इच्छाओं को पूरी करने का प्रयास करना चाहिए।सदाशयी में एक स्थायी लगन होती है जिससे वह अपने ध्येय के प्रति निष्ठावान होकर अपनी समग्र शक्तियों को लगाकर प्रयत्न में लगा रहता है।इच्छा एवं प्रयत्न की एकता उसे ध्येय की ओर अग्रसर करती जाती है।एक इच्छा,एक निष्ठा और शक्तियों की एकता मनुष्य को उसके अभीष्ट लक्ष्य तक अवश्य पहुंचा देती है।इसमें किसी प्रकार के संदेह की गुंजाइश नहीं।

प्रश्न:2.कामनाओं को पूरी करने के लिए क्या करें? (What to Do to Fulfill Your Wishes?):

उत्तर:अपनी शक्ति के बाहर की गई कामनाएं कभी पूर्ण नहीं हो सकती और अपूर्ण कामनाएँ हृदय में कांटे की तरह चुभा करती है।विद्यार्थी तथा मनुष्य को अपनी रुचि,क्षमता योग्यता,सामर्थ्य और साधनों के अनुसार ही कामना करते हुए अपने पूरे पुरुषार्थ को उस पर लगा देना चाहिए।इस प्रकार एक सिद्धि के बाद दूसरी सिद्धि के लिए पूर्व सिद्धि और उपलब्धिययों का समावेश कर आगे प्रयत्न करते रहना चाहिए।इस प्रकार एक दिन वह कोई बड़ी कामना की पूर्ति भी कर लेगा।

प्रश्न:3.संकल्प से क्या तात्पर्य? (What Do You Mean by Resolution?):

उत्तर:संकल्प में एक निश्चित लक्ष्य पर पहुंचने के लिए अभीष्ट पुरुषार्थ करने की लगन होती है,उसमें प्रतिफल के लिए उतावली नहीं होती,उसका निश्चय होता है।उतावली में आदमी समय लगने पर अधीर हो उठता है।व्यवधान पड़ जाने पर भी उसे अपनाए रहने और कठिनाइयों से जूझते रहने का भी साहस नहीं होता,कार्य पद्धति में कोई हेर-फेर अभीष्ट हो तो उसे करने के लिए भी सूझ-बूझ साथ देती है।संकल्प में इच्छाशक्ति और भावनाशक्ति दोनों जुड़ी होती है।उसकी रूपरेखा विचारपूर्वक बनाई जाती है और उसे उपलब्ध करने के लिए जिन साधनों और सहयोग की अपेक्षा है,उनकी भी समय रहते व्यवस्था जुटा ली गई होती है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अध्ययन को परिणाम केंद्रित कैसे करें? (How to Make Study Result-Focused?),जाॅब को परिणाम केन्द्रित कैसे करें? (How to Make Job Result-Focused?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।How to Make Study Result-Focused?
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