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How Do Mathematics Student Become Best?

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1.गणित के छात्र-छात्राएं श्रेष्ठ कैसे बनें? (How Do Mathematics Student Become Best?),छात्र-छात्राएं श्रेष्ठ कैसे बनें? (How Do Students Become Best?):

  • गणित के छात्र-छात्राएं श्रेष्ठ कैसे बनें? (How Do Mathematics Student Become Best?) छात्र-छात्राओं में श्रेष्ठता तो पहले से ही मौजूद रहती है लेकिन यदि उसे योग्य गुरु मिल जाता है तो उसके अंदर छिपी हुई श्रेष्ठता को पहचान कर उसे तराशता है।उस श्रेष्ठता के ऊपर छाए हुए अज्ञान के पर्दे को हटा देता है,दूर कर देता है तो विद्यार्थी की श्रेष्ठता प्रकट हो जाती है।छात्र-छात्राओं में गणितीय श्रेष्ठता को उभारने में माता-पिता,शिक्षक तथा समाज के शिक्षित व्यक्तियों का योगदान होता है।वे बच्चों की गणितीय क्षमता को संवारकर खूबसूरत व्यक्तित्त्व के रूप में ढाल देते हैं।
  • माता-पिता व बच्चों तथा बच्चों व शिक्षक में मधुर तथा सकारात्मक सम्बन्ध होता है तो बच्चों का चहुंमुखी विकास सहज ही हो जाता है वहीं आपस में तनावपूर्ण संबंध बच्चों के जीवन को अनेक कुंठाओं एवं विकारों से भर देता है।फलस्वरूप छात्र-छात्राओं में दमन,निराशा,हताशा और पराजय जैसे भाव पनपने लगते हैं।यह याद रखना चाहिए कि बच्चे आयु में छोटे जरूर होते हैं परंतु समझ में नहीं।वे चेहरे की भाषा,हावभाव को पढ़ने,परखने में सर्वाधिक निपुण होते हैं।
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2.श्रेष्ठ बनने के योग्य बनें (Be Able to Be the Best):

  • समस्त दुनिया में ऐसी खुशी नहीं है जिसको प्राप्त करने की आपमें तड़प हो और जिसे आप प्राप्त न कर सको।कोई ऐसी आशा नहीं है जिसे अपने मन में संयोजा हो और उसके लिए प्रयत्न करने पर भी पूरी न हो।परंतु इच्छित खुशी या आशा आपको तभी प्राप्त होगी जब आप उसके योग्य हो और उसके लिए कठिन प्रयत्न किया हो।लेकिन कोई भी पद,सफलता या जॉब के लिए पात्रता अर्जित करने के लिए पहला कदम है उसके लिए इच्छा करना क्योंकि इच्छा जितनी तीव्र होती जाएगी,उतना ही आप अपने लक्ष्य के निकट पहुंचते जाएंगे।आप किसी परीक्षा में सफलता पाना चाहते हैं,कोई जॉब प्राप्त करना चाहते हैं या अन्य कोई वस्तु पाना चाहते हैं तो उसके लिए आपके मन में पाने की सच्ची तड़प होनी चाहिए,ईमानदारी से उसके लिए प्रयत्न करते हैं तो एक दिन वही आपके लिए साकार रूप ले लेगी।
  • आपके सामने जो लक्ष्य है,उसकी वास्तविक रूपरेखा है,जिसको पाने के लिए आप तहेदिल से कामना करते हैं तो ये कामनाएं उन्हीं वास्तविक रूपरेखा की झलक है।
  • एक विद्यार्थी अच्छी तरह जानता है कि उसने जाॅब प्राप्त करने का लक्ष्य मन में सोच रखा है वह केवल कोरी कल्पना नहीं है बल्कि भविष्य में उसे साकार रूप देना है उसी का संकल्प है।जाॅब को वास्तविक रूप में साकार करना है तो उसके आदर्श का,लक्ष्य का प्रतिबिंब ही मन में है।
  • जब आप किसी परीक्षा में सफल होने या जाॅब प्राप्त करने के लिए इच्छा करना प्रारंभ करते हैं या आपके हृदय में उसको पाने की तीव्र तड़प है तब आपका उससे तादात्म्य हो जाता है और जितनी तड़प,जितनी शक्ति और जितने धैर्य के साथ आप उस मनोकामना के लिए बुद्धिमता युक्त एवं सतर्कतापूर्ण प्रयत्न करते हैं,उतना ही आप उसे प्राप्त करने के योग्य बनते जाते हैं।
  • हमारे कष्टों,हमारी असफलताओं और हमारे दुःखों का कारण यह है कि जितना हमें लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित्त होकर उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए उतना नहीं करते हैं।उसकी सफलता प्राप्ति के लिए अपनी मनःस्थिति वैसी ही बनानी होगी।जैसे आप एक श्रेष्ठ गणितज्ञ बने रहना चाहते हैं तो हमें सदा अपनी मनःस्थिति एक गणितज्ञ की भावना से पूर्ण रखनी चाहिए।हमें हमेशा एक गणितज्ञ की तरह मनःस्थिति में रहना चाहिए।किसी लक्ष्य में जीने,मनःस्थिति को लक्ष्य से पूर्ण रखने का लाभ यह होता है कि सारी शारीरिक,मानसिक और चारित्रिक त्रुटियां दूर हो जाती हैं।गणितज्ञ को लक्ष्य बनाकर उसी के विचारों से मग्न होकर जीने का लाभ यह होता है कि अन्य किसी बात की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता है।हमारे लक्ष्य से अन्य बातों का मेल ही नहीं क्योंकि वह अपूर्ण है और लक्ष्य में उसे घुसने तक नहीं देते हैं फलतः हम लक्ष्य से विचलित नहीं होते हैं।
  • अपनी कल्पना द्वारा हम गणित में शोध का आदर्श मॉडल तैयार करते हैं,वह गणितज्ञ की हैसियत का होता है,गणित के शोध के तथ्यों से भरा-पूरा होता है।वहां क्षीणता,विकृति एवं अन्य किसी लक्ष्य का स्थान लेशमात्र भी नहीं होता है।इसलिए आदर्श (लक्ष्य) को मन में संजोकर जीवन जीने की कला से आश्चर्यजनक लाभ होता है क्योंकि उस दशा में निरंतर अंतःचक्षुओं के सम्मुख हमारा लक्ष्य ही विराजमान रहता है,जो पूर्णता से समन्वित होता है और उसी को पाने के लिए हम प्रयत्नशील रहते हैं।
  • इससे हमारे हृदय में उसे पाने की तड़प बढ़ती है और लक्ष्य को पूर्ण रूप से प्राप्त करने से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है,अपनी पूर्णता एवं दिव्यता पर हमारा आत्मविश्वास दृढ़ होता है क्योंकि हम अन्तःचक्षुओं द्वारा उसे साकार होने की झलक पाते हैं,जिसे हम स्वभावतः कभी-न-कभी,कहीं-न-कहीं पाना चाहते हैं,उस लक्ष्य को निरंतर सामने रखिए।
  • अपनी कार्यकुशलता,विलक्षणता तथा संपूर्णता पर अपने ध्यान को लगाकर केंद्रित रखिए और त्रुटियों,दुर्बलता और अपूर्णता का विचार मन से बाहर निकाल दीजिए।दृढ़तापूर्वक अपने लक्ष्य की सौन्दर्यनुभूति अपने नेत्रों के समक्ष रखिए तथा उसे प्राप्त करने के लिए निरंतर उत्साह एवं उल्लास से प्रयत्न करते रहिए,तब आप अपने मनोवांछित आदर्श लक्ष्य (गणितज्ञ बनना) को प्राप्त करने में अवश्य सफल होंगे।

3.अपने अंदर सच्ची तड़प जगाएं (Awaken True Yearning within Yourself):

  • आशा में अपार शक्ति है।इस विश्वास में कि हम जो कुछ चाहते हैं,उसे पाकर ही रहेंगे,बड़ा भारी सामर्थ्य छिपा हुआ है।हमारे स्वप्न अवश्य ही साकार होकर रहेंगे,इस विश्वास में ही हमारी सफलता की रूपरेखा निहित है।अपने मन में एक पल के लिए भी अविश्वास की रेखा न घुसने दीजिए।यदि वह आपके मन में घुसने की कोशिश भी करे,तो उसे परे धकेल दीजिए।हमेशा जागरुक,सचेत और सावधान रहें और हमेशा आशा-उमंग,उत्साह-उल्लास तथा कर्मठता के विचारों को ही अपने मन में स्थान दीजिए।
  • अपने मन में केवल अपने आदर्श की सर्वगुण संपन्न मूर्ति का ही ध्यान कीजिए।अपने आदर्श के समान ही अपने कार्य को भी निर्दोष एवं त्रुटिहीन बनाने के लिए कठिन परिश्रम कीजिए।अपने मन के शत्रुओं जैसे निराशा,हताशा,हीनता,उत्साहहीनता व खिन्नता आदि को दूर कर दीजिए।जो विचार आपका उत्साह भंग करें,जिससे आपका मन असफलता,अनुत्तीर्णता तथा पराजय की तरफ जाए,उस हीनभाव को ही जड़ से खोदकर फेंक दीजिए।सदा मन में आशा भरे रहिए।आशावादी बनिए,आशापूर्ण बातें कीजिए,आशा पूरी होने के उल्लास से मन को निरंतर प्रफुल्लित रखिए।यदि आप ऐसा कर पाएंगे तो आपको अत्यंत आश्चर्य होगा कि आपकी योग्यताओं का अद्भुत विकास हो जाएगा,आपकी कुशलता तथा कार्यशक्ति में आश्चर्यजनक वृद्धि हो जाएगी।
  • जब मन एक बार प्रसन्न रहने के स्वभाव वाला हो जाएगा,हर्ष से प्रफुल्लित रहने की आदत वाला बन जाएगा,धन-समृद्धि के चित्र देखने की प्रवृत्ति वाला हो जाएगा,तब उसके लिए जलना,कुढ़ना,शिथिल रहना और ओछे विचारों की ओर नहीं जाएगा।
  • हम जिस लक्ष्य को पाने के लिए बार-बार,निरंतर प्रयत्न करते हैं,वह शुरू-शुरू में चाहे बिल्कुल असंभव प्रतीत होता हो,लेकिन हम अपनी कोशिशों से उसे प्राप्त करने के लगातार योग्य होते हैं और हम अपने ऊँचे लक्ष्य को,अपने आदर्श को बार-बार वाणी से प्रकट करते रहें,बार-बार उसी के बारे में कहते रहें,जिसे हम अपने जीवन में एक सच्चाई के रूप में परिणित हुआ देखना चाहते हैं,उसे हम एक दिन अवश्य प्राप्त करके रहेंगे,चाहे परीक्षा में सफलता प्राप्त करना हो,प्रवेश परीक्षा में चयन होना हो या उत्तम चरित्र,अच्छा जॉब हो या उत्कृष्ट व्यवसाय।
  • छात्र-छात्राएँ अपनी इच्छाओं को मन्द होने देते हैं,आशाओं को बुझने देते हैं।वे इस तथ्य और सत्य को समझने का प्रयत्न ही नहीं करते की यदि इच्छा को निरन्तर मन में दोहराया जाए,यदि उसे दृढ़ बनाने की प्रक्रिया जारी रखी जाये,तो वह छात्र-छात्रा की सामर्थ्य और उसकी कार्य-शक्ति को बेहद बढ़ा देता है,जिसे अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता मिलती है।सिद्धि के लिए निरंतर आशावादी दृष्टिकोण बनाये रखना पहली शर्त है।इच्छा को सदैव जागृत रखने से ही व्यक्ति में ऐसा सामर्थ्य आता है कि वह अपने सपनों को साकार कर सकें।इच्छा भी तभी सार्थक है,जब उसे प्रयत्न के दृढ़ निश्चय द्वारा पुष्ट किया जाए।उत्साहयुक्त दृढ़ निश्चय वाली इच्छा ही व्यक्ति की रचनात्मक शक्ति को उत्पन्न करती है।

4.उत्कर्ष विचारों को मन में संजोए (Cherish the Best Thoughts in Your Mind):

  • दृढ़ इच्छाशक्ति यानी विल पाॅवर के साथ-साथ हम विचारों के उत्कर्ष से भी अपनी कार्यकुशलता बढ़ाते हैं और विचारों की हीनता से ही अपनी कार्यकुशलता को कम करते रहते हैं।हर समय आप या तो उत्साह भरे विचारों से अपनी कार्यकुशलता व कार्यशक्ति को बढ़ा रहे होते हैं या फिर घटा रहे होते हैं।आप अपने चरित्र द्वारा,भावनाओं द्वारा या तो अपने आदर्श के समीप जा रहे होते हैं या फिर उससे दूर जा रहे होते हैं।इसलिए आप जो करना चाहते हैं,जो बनना चाहते हैं,केवल उसी पर अपना सारा ध्यान टिकाकर रखिए,उसे टालने के लिए बहाना मत सोचिए।
  • अपने को थका-हारा,परास्त और अभागा मत समझिए।दिमाग से यह बात पूरी तरह निकाल दीजिए कि भाग्य आपके विरुद्ध है या आपकी पराजय भी हो सकती है।एक पल के लिए भी अपने मन में बीमारी,दुर्बलता,अकर्मण्यता,पराजय या असफलता का विचार मत आने दीजिए।ये विचार तब तक आपके मन में नहीं घुस सकते,जब तक कि आप शिथिल न हों।यदि आप इन हीनभावों को मन में जरा सा भी स्थान दे देंगे,तो फिर ये आशा को बाहर धकेल कर अपनी काया को फैलाने में जरा भी चूक नहीं करेंगे।
  • यदि आप किसी विशेष कार्य में स्वयं को अधिक कुशल,प्रखर,तेजस्वी और विलक्षण योग्यता से संपन्न बनाना चाहते हैं तो फिर आप अपने कार्य के सर्वोत्तम स्वरूप की स्पष्ट कल्पना अपने सामने रखिए।कल्पना की आंखों से अपने कार्य के आदर्श रूप का प्रत्यक्ष साक्षात्कार कीजिए और अपनी आकांक्षा के अनुरूप अपने कार्य को आदर्श की हद तक ले जाने का पूरा प्रयत्न कीजिए।इन ऊँचे विचारों को तब तक लगातार अपने मन में बनाए रखिए,जब तक कि आपकी आकांक्षा साकार या कार्य ठोस रूप धारण न कर ले।कुछ छात्र-छात्रा सोचते हैं कि निरर्थक कल्पनाओं में समय नष्ट करना बेकार है लेकिन यह विचार पूर्णतया गलत है।यदि हम कल्पना ही नहीं करेंगे,सपने ही नहीं देखेंगे तो फिर उसकी ओर कैसे बढ़ेंगे? हाँ,यह ओर बात है कि केवल सपने देखकर ख्याली पुलाव पकाना गलत है।

5.श्रेष्ठता का दृष्टान्त (The Example of Excellence):

  • यदि हम कोई आदर्श बनाते हैं,कोई कल्पना करते हैं तो जब हम उस दिशा में परिश्रम करेंगे,तभी हमारा आदर्श फलित होगा।बिना प्रयत्न के फल की इच्छा करना अकर्मण्यता है।फल की आकांक्षा करने में कोई बुराई नहीं है।लेकिन फल की आकांक्षा समय से पहले मत कीजिए और समय से पहले फल न मिलने पर अपने भाग्य को मत कोसिए।यदि हम किसी कार्य को समय से पहले पूरा हुआ देखना चाहते हैं,तो यह हमारी भूल है,प्रकृति की नहीं।जब कोई छात्र या छात्रा परिपक्व अवस्था से पहले ही फूल या फल के लिए उतावले होने लगते हैं,तो अपनी श्रेष्ठ योग्यता को कम कर देते हैं।वे तब असीम संभावनाओं को असंभव बना देते हैं।
  • क्या पकने से पहले फल तोड़ने से उसमें वही स्वाद मिल सकता है,जो अच्छी तरह पके हुए फल को खाने से मिलता है।इसलिए धीरज रखिए,आपका परिश्रम सफल होकर रहेगा,आपकी इच्छा पूरी होकर रहेगी,आपकी आशाओं का फूल खिलकर रहेगा।बस प्रयत्न में रहिए,अपनी शक्ति,योग्यता,कुशलता व सामर्थ्य के साथ अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठावान रहकर कार्य कीजिए,सफलता आपको मिलकर रहेगी।
  • एक बार एक शिष्य अपने गणितज्ञ गुरु के पास गया और उनसे पूछा आपमें और मेरे में श्रेष्ठ कौन हैं? शिष्य बहुत मेधावी था।गुरुजी ने उससे कहा कि समय पर तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा।काफी दिन व्यतीत हो गए परंतु शिष्य को उसके प्रश्न का उत्तर नहीं मिला।शिष्य गुरु से गणित शिक्षा पूरी करके,अपने घर चला गया।उसने बहुत अच्छा जाॅब प्राप्त कर लिया और सुख-शान्ति से जीवन व्यतीत करने लगा।
  • काफी वर्षों बाद अचानक उस शिष्य के पास संदेश पहुंचा कि तुम्हें गणित के गुरुजी ने बुलाया है।शिष्य गुरुजी का काफी सम्मान करता था तथा गणित में अच्छा ज्ञान प्राप्त करने के पीछे गणित के गुरुजी का समर्पण,त्याग और तप भी था।इसलिए वह उनको कैसे भूल सकता था?
  • वह जॉब से तत्काल छुट्टी लेकर गुरुजी के पास चला गया।गुरुजी के चरणस्पर्श करके आशीर्वाद लिया और नीचे फर्श पर बैठ गया।गुरुजी मरणासन्न की स्थिति में थे और लेटे हुए थे।गुरुजी ने कहा कि तुमने मुझसे एक प्रश्न पूछा था कि तुम्हारे और मेरे में श्रेष्ठ कौन है? इसका उत्तर यह है कि मैं श्रेष्ठ हूँ।शिष्य ने कहा कि यह उत्तर तो आप उस समय भी दे सकते थे।
  • गुरुजी ने कहा कि संसार में अनेक प्रलोभन हैं पता नहीं किसी व्यक्ति का पतन कब हो जाए? उदाहरणार्थ विश्वामित्र अप्सरा मेनका के तथा नारद मुनि मोहिनी के मोहजाल में फंस गए थे।परंतु अर्जुन उर्वशी के लुभाने,सुखदेवजी रम्भा के लुभाने पर भी विचलित नहीं हुए थे,पितामह भीष्म पतित नहीं हुए थे।वर्तमान में भी महर्षि दयानंद,महर्षि स्वामी रामदेव,स्वामी विवेकानंद,गुरु हनुमान जैसे कई संत हुए हैं जिन्होंने मन को वश में रखा है।अतः अंतिम समय तक इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है।
  • अब मेरी मृत्यु निकट है तो मेरे विचलित होने के लिए कोई समय नहीं है परंतु तुम्हारे सामने पूरा जीवन है,कभी भी विचलित और भ्रष्ट हो सकते हो।जैसे ऋषि आसाराम,संत राम रहीम आदि पथभ्रष्ट हो गए।अतः इसका उत्तर अब दे सका हूँ।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित के छात्र-छात्राएं श्रेष्ठ कैसे बनें? (How Do Mathematics Student Become Best?),छात्र-छात्राएं श्रेष्ठ कैसे बनें? (How Do Students Become Best?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित एकदम ठंडी हो जाएगी (हास्य-व्यंग्य) (The Math Will be Very Cold) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक (छात्र से):ये क्या तुम गणित की पुस्तक को हाथ लगाने से क्यों डर रहे हो? दूर क्यों खड़े हो,गणित की पुस्तक क्यों नहीं ला रहे हो?
  • छात्रःमैं जाँच कर रहा हूँ कि गणित गर्म तो नहीं,कहीं हाथ लगाने से हाथ जल न जाए इसलिए गणित के ठंडी होने का इन्तजार कर रहा हूँ।

7.गणित के छात्र-छात्राएं श्रेष्ठ कैसे बनें? (Frequently Asked Questions Related to How Do Mathematics Student Become Best?),छात्र-छात्राएं श्रेष्ठ कैसे बनें? (How Do Students Become Best?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.श्रेष्ठ बनने के लिए घमंड क्यों नहीं करना चाहिए? (Why Not Boast About Being the Best?):

उत्तर:घमंड करने से हमारा पतन हो जाता है तथा सच्ची विद्या ग्रहण करने से वंचित हो जाते हैं।इसलिए न तो कभी घमंड करना चाहिए और न किसी पर हंसना चाहिए।अभी तो हमारी जीवन नैया समुद्र के बीच में ही है,पता नहीं कब क्या हो जाए?

प्रश्न:2.चिंता और चिता में क्या फर्क है? (What is the Difference Between Anxiety and Pile of Wood Which Hindus Cremate Their Dead?):

उत्तर:चिंता,चिता से भी कठिन होती है क्योंकि चिता तो निर्जीव शरीर को जलाती है लेकिन चिंता सजीव शरीर को जला देती है।चिन्ता से अहंकार पैदा होता है जो हमारे लिए गणित का ज्ञान और अन्य विद्या ग्रहण करने में बाधक सिद्ध होता है।

प्रश्न:3.गणित में श्रेष्ठता हासिल करने के लिए क्या सावधानी रखनी चाहिए? (What Precautions Should One Take to Excel in Mathematics?):

उत्तर:गणित में श्रेष्ठता हासिल करने के लिए लक्ष्य निर्धारण में सावधानी रखनी चाहिए।हर छात्र-छात्रा न तो गणितज्ञ बन सकता है,न गणित प्राध्यापक,न गणित में शोधकर्ता बन सकता है।अतः लक्ष्य का चुनाव करते समय अपनी सामर्थ्य,साधन,बौद्धिक स्तर,वातावरण आदि बातों पर गौर कर लेना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के छात्र-छात्राएं श्रेष्ठ कैसे बनें? (How Do Mathematics Student Become Best?),छात्र-छात्राएं श्रेष्ठ कैसे बनें? (How Do Students Become Best?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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