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Claims India to UN Security Council

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1.संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी (Claims India to UN Security Council),संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी में दम (Strength in India Claim to UN Security Council):

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी (Claims India to UN Security Council) मजबूत है।विश्व संस्था को अधिक प्रतिनिधिक स्वरूप प्रदान करने के लिए इसके सर्वाधिक शक्ति संपन्न एवं प्रमुख अंग सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की संख्या में बढ़ोतरी संबंधी मुद्दा यदा-कदा सर्वाधिक चर्चा में रहा है।भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए औपचारिक रूप से दावा पेश किया हुआ है।
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2.स्थायी सदस्यता के दावेदार (Contenders for permanent membership):

  • स्थायी सदस्यता के लिए अधिकांश देश अपनी दावेदारी प्रस्तुत करते हैं।यद्यपि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाकर उसे लोकतांत्रिक स्वरूप दिया जाना आवश्यक है,लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे ही देश यह सदस्यता ग्रहण करें जिनकी रुचि अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने में है।अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए सदस्यता प्राप्त करने वाले राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच पर संयुक्त राष्ट्र को एक नायक की तरह कभी व्यवहार नहीं करने देंगे।अतः ऐसे राष्ट्रों के हाथ में ‘वीटो’ एक खिलौने से अधिक नहीं होगा।
  • स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिए भारत,जापान,इंडोनेशिया,ब्राजील,जर्मनी,मिस्र एवं नाइजीरिया जैसे देश विशेष रूप से प्रयासरत हैं।
  • ब्राजील एवं नाइजीरिया जैसे राष्ट्र स्थायी सदस्यता की प्राप्ति के लिए काफी गंभीर हैं।ब्राजील एवं नाइजीरिया अपनी भौगोलिक स्थिति एवं जनसंख्या के मद्देनजर अपनी दावेदारी को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं तो साथ ही उनकी यह दलील भी है कि उनके महाद्वीपों से कोई भी राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी रूप से नहीं है।अतः उन्हें सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए।
  • दूसरी तरफ जापान और जर्मनी अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था के बल पर येन-केन प्रकारेण स्थायी सदस्यता का दावा कर रहे हैं।उनकी दावेदारी और मजबूत इसलिए भी हो जाती है,क्योंकि उनके ऊपर अमेरिका का वरदहस्त है और वह खुलेआम उन्हें स्थायी सदस्य बनाए जाने का समर्थन कर रहा है।इस समर्थन के पीछे जो सबसे बड़ी वजह है वह है कि ये दोनों राष्ट्र इस समय विश्व की मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में से हैं और इन देशों के साथ अमेरिका अपने आर्थिक सहयोग को और अधिक बढ़ाना चाहता है।साथ ही अमेरिका संयुक्त राष्ट्र के खर्चे में अपने योगदान को कम करना चाहता है जिसे पूरा करने के लिए जापान सहर्ष तैयार है।इस तरह इन दोनों राष्ट्रों के दावेदारी का पलड़ा अधिक मजबूत लग रहा है।

3.भारत का दमदार दावा (India’s strong claim):

  • भारत संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य रहा है और उसकी संस्कृति,सभ्यता एवं विदेश-नीति भी ‘वसुधैव कुटुंबकम’ एवं ‘पंचशील’ जैसे सिद्धांतों पर आधारित है जो संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख ध्येय अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा से सर्वथा मेल खाती है।उभरती अर्थव्यवस्था,विशाल जनसंख्या,महत्त्वपूर्ण एवं विशाल भौगोलिक क्षेत्र उसकी दावेदारी को और सशक्त करते हैं।भारत संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रमों एवं नीतियों का समर्थक रहा है,क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा में उसकी उपयोगिता को समझता है।संयुक्त राष्ट्र के प्रति समर्थन को व्यक्त करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि “संयुक्त राष्ट्र हमारे जीवन में इतना महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुका है कि उसके बिना हम विश्व की कल्पना नहीं कर सकते हैं।”
  • भारत शुरू से ही संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों एवं अभिकरणों में यथासंभव अपना सहयोग देता रहा है।भारतीय सैनिक संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में शामिल होकर
  • कोरिया,मिस्र,सीरिया,गाजापट्टी,कांगो,यमन,साइप्रस,नामीबिया,अंगोला,कंबोडिया,बोस्निया,सोमालिया एवं रवांडा जैसे विभिन्न देशों में शांति स्थापना के प्रयासों में भाग ले चुके हैं।संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में उसका दावा सर्वथा उचित है।
  • भारत अपने इस दावे के प्रति काफी गंभीर भी है।पूर्व प्रधानमंत्री श्री इंद्रकुमार गुजराल ने भारतीय दावे के औचित्य सिद्ध करते हुए कहा था कि:”भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।हमारी हजारों साल लंबी सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास है जो सार्वभौमिक परंपरा एवं मूल्य से ओत-प्रोत हैं।सरकार में आम आदमी की भागीदारी है।इसके अलावा हम अपने अनुभव के आईने में विश्व-राजनीति में सकारात्मक भूमिका निभाने को इच्छुक हैं।इससे परिषद का भला ही होगा।”
  • इतना सब होने के बावजूद भी सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता प्राप्त करना भारत के लिए आसान नहीं है।अक्टूबर 1996 में जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों का चुनाव हुआ था,उसमें एशिया से भारत एवं जापान उम्मीदवार थे।गुटनिरपेक्ष देशों के बल पर भारत अपनी जीत सुनिश्चित मान रहा था पर परिणाम आने पर जापान 142 मत पाकर निर्वाचित हो गया और दूसरी तरफ भारत को मिले मात्र 40 मत।अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत की यह एक बड़ी कूटनीतिक पराजय थी।इस पराजय से कई प्रश्नों ने जन्म लिया।साथ ही भारत की स्थायी सदस्यता के दावे को भी गहरा धक्का लगा।भारत ने जापान पर आरोप लगाया कि उसने पैसों के बल पर गुटनिरपेक्ष देशों के मतों को खरीद लिया।
  • भारत अब चाहे जो तर्क दे पर अदूरदर्शिता एवं अतिआत्मविश्वास ने उसे गहरी परेशानी में डाल दिया।भारतीय कूटनीति को नए सिरे से प्रयास करना होगा।उसे गुटनिरपेक्ष देशों को यह विश्वास दिलाना होगा कि स्थायी सदस्यता के मसले पर वे जापान की अपेक्षा भारत को समर्थन दें,क्योंकि वह उनकी तरह एक विकासशील देश है,जापान की तरह विकसित एवं धनाढ्य नहीं।अतः भारत विकासशील एवं अविकसित देशों की आवश्यकताओं में विकास को अधिक शिद्दत के साथ पूरी करने में रुचि लेगा।अपने विशाल बाजार के मद्देनजर वह अमरीकी समर्थन प्राप्त करने के लिए भी प्रयास कर सकता है।
  • भारत को इस मुद्दे पर चीन एवं पाकिस्तान से भी सतर्क रहने की आवश्यकता है।यद्यपि साम्यवादी चीन को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने के लिए भारत ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी,पर चीन शायद यह कभी नहीं चाहेगा कि उसका पड़ोसी भारत सुरक्षा परिषद में उसके समकक्ष बैठे।आपसी विवादों के चलते दूसरी तरफ पाकिस्तान भी भारत की दावेदारी को कमजोर करने के लिए अपने इस्लामी मित्र राष्ट्रों पर दबाव बनाएगा।
  • भारत द्वारा मई 1998 में किए गए परमाणु परीक्षणों की विश्व की प्रमुख राजनीतिक शक्तियों ने तीव्र निंदा की जिसके परिणाम स्वरूप भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में दावेदारी निर्बल हो गई थी।परंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह सदस्यता मिलना संभव हो गया है क्योंकि परमाणु परीक्षण गत जमाने की बात हो गई है।साथ ही विश्व के देश समझ चुके हैं कि भारत शक्ति का दुरुपयोग कभी नहीं करेगा।
  • संक्षेप में कहें तो सुरक्षा परिषद में नए स्थायी सदस्यों को प्रवेश देकर संयुक्त राष्ट्र को लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान करना आवश्यक है।तभी यह विश्व संस्था अपने उत्तरदायित्वों को सफलतापूर्वक पूरा करने में सक्षम होगी,जो मानव जाति के लिए एक बड़ी उपलब्धि कही जाएगी।

4.भारत का निर्बल और सबल पक्ष (The weak and strong side of the India):

  • विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला देश तथा विश्व में चीन के बाद दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश भारत काफी लंबे समय से सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है।इस दिशा में प्रयास करने वाले अन्य देश हैं:जापान,जर्मनी,आस्ट्रेलिया आदि।भारत की इस मांग का विरोध मुख्य रूप से पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान तथा चीन द्वारा किया जाता रहा है।सन 1998 में भारत द्वारा दूसरी बार नाभिकीय परीक्षण किए जाने के बाद भारत ने स्वयं को एक नाभिकीय शक्ति के रूप में स्थापित कर लिया है।ज्ञातव्य है कि सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्य राष्ट्र नाभिकीय शक्ति से संपन्न हैं।परमाणु प्रसार पर रोक लगाने के नाम पर विश्व के सभी देशों ने केवल इसी आधार पर भारत को स्थायी सदस्यता प्राप्त करने का विरोध किया था।भारत में भयंकर गरीबी,सांप्रदायिक तनाव,व्यापक पैमाने पर फैला भ्रष्टाचार,राजनीति में अपराधीकरण,जातिगत समस्या,बढ़ता आतंकवाद,आर्थिक स्थिति में सुदृढ़ता का अभाव आदि संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे को कमजोर बनाते हैं।
  • लेकिन आर्थिक मंच पर बदलते परिदृश्य में किसी भी विकसित देश द्वारा भारत के पास उपलब्ध एक बड़े बाजार,इसकी उत्पादन क्षमता तथा इसके पास उपलब्ध उच्च शिक्षित-प्रशिक्षित मानव संसाधनों की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती।इसी के साथ आर्थिक प्रतिबंधों जो 1998 परमाणु परीक्षणों के बाद भारत पर लगाए गए थे,के बावजूद अपने आर्थिक विकास की दर को 5% से ऊपर रखने में कामयाब भारत ने यह साबित कर दिया है कि अब वह किसी देश का पिछलग्गू नहीं है।
  • आर्थिक-राजनीतिक-सामरिक दृष्टि से भारत सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता पाने का हकदार है।शीत युद्धकाल में भारत के निकट सहयोगी रहे रूस ने पहले ही भारत को स्थायी सदस्यता प्राप्त करने का समर्थन किया था।ब्रिटेन तथा फ्रांस ने भी भारतीय नेताओं को यह आश्वासन दिया है कि वे सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता हेतु भारत का समर्थन करेंगे।इससे भी महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत में अमेरिका के राजदूत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका भारत को स्थायी सदस्यता प्रदान करने के मामले में गंभीरतापूर्वक विचार करने के लिए तैयार है।मार्च 2000 में अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा के दौरे से भी यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका भी भारत की स्थायी सदस्यता के लिए तैयार है।इस प्रकार अब पांच स्थायी सदस्य राष्ट्रों में चीन ही केवल एकमात्र देश है जो सार्वजनिक तौर पर भारत की इस माँग का विरोध न करते हुए भी परोक्ष रूप से इसी कार्य को जापान का पक्ष लेकर भारत के प्रयासों का प्रबल विरोध कर रहा है।

5.भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का निष्कर्ष (India concludes permanent membership of the Security Council):

  • संयुक्त राष्ट्र संघ की यह आठ दशकीय इतिहास के विश्लेषण से एक बात स्पष्टतः दृष्टिगोचर होती है कि इसके क्रियाकलापों को सन्देह के घेरे में लाने वाले पहलुओं में विकसित राष्ट्रों की स्वार्थपरक सोच एवं सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यों को प्राप्त निषेधाधिकार मुख्य हैं।इसके जरिए ये राष्ट्र सदा संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयों को अपनी विदेश नीति के अनुरूप ढालने की कोशिश करते रहे हैं।इसका परिणाम यह होता है कि जहां इससे एक ओर संयुक्त राष्ट्र संघ की छवि कलंकित होती है,वहीं अधिसंख्यक गरीब देशों को न्याय नहीं मिल पाता है।यही कारण है कि भूतपूर्व महासचिव बुतरस घाली ने निषेधाधिकार की व्यवस्था को ही समाप्त कर देने की घोषणा की थी।इतना ही नहीं; विश्व के गरीब राष्ट्रों ने तो संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की संख्या में वृद्धि कर उसमें विकासशील देशों को प्रतिनिधित्व देने की मांग पर बल दिया था।यद्यपि विकसित राष्ट्रों द्वारा इसका विरोध किया गया था,लेकिन संयुक्त राष्ट्र के सार्वभौमिक एवं निष्पक्ष स्वरूप को और मुखरित करने हेतु सुरक्षा परिषद में विकासशील राष्ट्रों को प्रतिनिधित्व मिलना एक न्यायसंगत कदम होगा।विश्व में कुल 9% आबादी वाले यूरोप से सुरक्षा परिषद में तीन स्थायी सदस्य हैं,जबकि 57% आबादी वाले एशिया से चीन एकमात्र स्थायी सदस्य है।
  • सन 1994 में संयुक्त राष्ट्र संघ के 49वें अधिवेशन में भारत ने स्थायी सदस्यता के लिए दावा पेश किया था।गत कुछ वर्षों में भारत विश्व के छोटे-बड़े देशों से इस संबंध में समर्थन जुटाने में आंशिक रूप से सफल भी हुआ।न्यूयार्क में 6 सितंबर से 9 सितंबर 2000 तक संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी शिखर सम्मेलन संपन्न हुआ था।इस सम्मेलन में 153 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया।वहां संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान समेत ब्रिटेन,फ्रांस तथा रूस ने इस संबंध में भारत को सकारात्मक आश्वासन भी दिया।अमेरिका भी कश्मीर मामले में संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों को भारत द्वारा न मानने के कारण आने वाली बाधाओं के बावजूद भारत को उसके विशाल आकार तथा प्रजातांत्रिक स्वरूप के कारण एक बेहतर दावेदार मानता है।जबकि चीन भारत के बजाय जर्मनी और जापान को प्रबल दावेदार मानता है।
  • शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि 1950 से ही संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में भारत का उल्लेखनीय योगदान रहा है।इसका उदाहरण भारत द्वारा 3000 भारतीय सैनिकों को सियरालियोन में शांति के लिए भेजना है,जिसका विश्व के प्रत्येक राष्ट्र ने स्वागत किया था।भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है।विश्व शांति एवं एकता के प्रति अपनी वचनबद्धता एवं संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रमों एवं शांति अभियानों में निभायी गई भागीदारी को देखते हुए भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता मिलना संयुक्त राष्ट्र के निष्पक्ष स्वरूप के लिए सराहनीय कदम होगा।यूक्रेन-रूस युद्ध में भारत की महती सक्रिय भूमिका और शांति के प्रयासों तथा दोनों देशों को वार्ता द्वारा मतभेदों को निपटाने में किए गए प्रयासों से भी बात की दावेदारी मजबूत बनाती है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी (Claims India to UN Security Council),संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी में दम (Strength in India Claim to UN Security Council) के बारे में बताया गया है।

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6.सुरक्षा परिषद में भारत क्यों दावेदारी कर रहा?(हास्य-व्यंग्य) (Why is India Claiming to Security Council?) (Humour-Satire):

  • रजत:सुरक्षा परिषद में ये स्थायी सदस्य आपस में क्यों टांग खींच रहे हैं।
  • दोस्त:विश्व में शांति स्थापना के लिए आपस में वार्ता करने के नाम पर अपनी खुन्नस निकाल रहे हैं और एक-दूसरे को नीचा दिखाना चाहते हैं।
  • रजत:विश्व में शांति कैसे कायम हो सकती है जबकि इसका स्थायी सदस्य रूस यूक्रेन पर हमला कर रहा है?
  • दोस्त:इसीलिए तो भारत सुरक्षा परिषद में अपनी दावेदारी कर रहा है।इनका कोई कप्तान (मॉनिटर) नहीं है।इनको नियंत्रित करने के लिए ही तो भारत को स्थायी सदस्यता की जरूरत है।वरना ये पांचों देश लड़-झगड़कर विश्व की अशांति को और अधिक अशांत कर रहे हैं।

7.संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी (Frequently Asked Questions Related to Claims India to UN Security Council),संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी में दम (Strength in India Claim to UN Security Council) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सुरक्षा परिषद में अब कितने सदस्य होने चाहिए?  (How many members should the Security Council now have?):

उत्तर:संयुक्त राष्ट्र के संविधान की समीक्षा करके इसका न्यायपूर्ण एवं तर्कसंगत पुनर्गठन किया जाए तथा सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की संख्या को कम से कम 12 कर दी जाए,जिसमें भारत को तो शामिल किया ही जाए,साथ में अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो।जहां तक भारत का प्रश्न है भारत में वे समस्त क्षमताएं मौजूद है जो एक शिखर शक्ति में होनी चाहिए।भारत ने संयुक्त राष्ट्र की लगातार सभी कार्यवाही में सक्रिय सहयोग प्रदान करके एवं भाग लेकर यह प्रमाणित भी कर दिया है कि भारत संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों एवं लक्ष्यों के प्रति सजग ही नहीं अपितु सहभागी भी है।

प्रश्न:2.संयुक्त राष्ट्र संविधान में संशोधन संबंधी क्या प्रावधान हैं? (What are the provisions for amending the UN Constitution?):

उत्तर:संयुक्त राष्ट्र संविधान के 18वें अध्याय की धारा 108 और 109 में संविधान संशोधन करने और समीक्षा करने की कार्यविधि अंकित है।धारा 108 में स्पष्ट किया गया है कि संविधान में किया गया कोई भी संशोधन तभी लागू माना जाएगा जब संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य संयुक्त राष्ट्र महासभा में संशोधन को दो-तिहाई बहुमत से स्वीकृति प्रदान कर दें और प्रत्येक सदस्य अपनी-अपनी संवैधानिक कार्य प्रणाली के अनुसार संसद में संशोधन स्वीकार करने के लिए आवश्यक प्रस्ताव पारित करें,इसके अतिरिक्त धारा 100 के पैरा 2 में यह भी अंकित है कि संयुक्त राष्ट्र में किसी भी संशोधन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी  सदस्यों की अनुमति मिलनी चाहिए।यानी स्थायी सदस्यता में परिवर्तन के लिए वर्तमान पाँचों स्थायी सदस्यों की अनुमति अनिवार्य है।

प्रश्न:3.भारत की अर्थव्यवस्था का विश्व में कौन-सा स्थान है? (What is the position of India’s economy in the world?):

उत्तर:वर्तमान में भारत विश्व की तीसरी-चौथी सर्वाधिक शक्तिशाली अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है और इस सूची में चीन का क्रम सर्वोपरि होगा।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी (Claims India to UN Security Council),संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी में दम (Strength in India Claim to UN Security Council) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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