Review of Secularism in Indian Context
1.भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता की समीक्षा (Review of Secularism in Indian Context),भारत में धर्मनिरपेक्षता की समीक्षा (Review of Secularism in India):
- भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता की समीक्षा (Review of Secularism in Indian Context) अर्थात् भारत में धर्मनिरपेक्षता से क्या आशय है तथा धर्मनिरपेक्षता भारत में कितनी सफल अथवा कितनी असफल है? धर्मनिरपेक्षता की पाश्चात्य देशों में क्या अवधारणा है?
- आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
Also Read This Article:How to Prevent Corruption in India?
2.धर्मनिरपेक्षता का अर्थ (Meaning of Secularism):
- शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से धर्मनिरपेक्ष (secular) का आशय है,धार्मिक अथवा आध्यात्मिक मामलों से कोई संबंध नहीं होना।एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका (खण्ड 20) के अनुसार धर्मनिरपेक्ष का अर्थ है,”…. गैर-आध्यात्मिक,प्रत्येक वस्तु जो धार्मिक और आध्यात्मिक मामलों की विरोधी तथा उससे असम्बद्ध होने के कारण स्वयं में पहचान योग्य है,आध्यात्मिक तथा धार्मिक मामलों के विपरीत सांसारिक है।” जैसे कि धर्म-निरपेक्ष साहित्य का आशय है,ऐसा साहित्य जो धर्म से असम्बद्ध अथवा जिसका उद्देश्य धार्मिक नहीं है; धर्मनिरपेक्ष शिक्षा वह है जिसके पाठ्यक्रम में धार्मिक शिक्षा का समावेश ना हो।इसी प्रकार एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण धर्म तथा मानव जीवन के अन्य पक्षों के मध्य पृथकता पर आधारित होता है।
- कुल मिलाकर धर्मनिरपेक्षता एक विचारधारा है जो धर्म द्वारा इंगित जीवन तथा व्यवहार के सिद्धांत से सर्वथा भिन्न दर्शन प्रदान करती है।इसलिए सामान्य अर्थ में धर्मनिरपेक्ष राज्य का आशय धर्म तथा राज्य के मध्य पृथकता के सिद्धांत पर आधारित राज्य से है।
- प्रोफेसर डोनाल्ड स्मिथ ने अपनी विख्यात पुस्तक ‘India as a secular state’ (princeten univ. press,1963) में धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, “… धर्मनिरपेक्ष राज्य व्यक्तिगत और सामूहिक आधार पर अपने निवासियों को धर्म की स्वतंत्रता प्रदान करता है;व्यक्ति के प्रति इसका दृष्टिकोण इस तथ्य पर आधारित होता है कि वह राज्य का एक नागरिक है न कि इस पर कि वह किस धर्म से संबंधित है;संवैधानिक रूप से यह किसी धर्म विशेष से संबंधित नहीं होता और न ही किसी धर्म विशेष को प्रोत्साहित करने के लिए अथवा अवरोधित करने के लिए प्रयास करता है।”प्रोफेसर स्मिथ की उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर धर्मनिरपेक्ष राज्य की निम्नांकित तीन विशेषताएं बताई जा सकती हैं:
- (1.)धर्मनिरपेक्ष राज्य प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता प्रदान करता है अथवा दूसरे शब्दों में राज्य किसी भी व्यक्ति पर कोई धर्म आरोपित नहीं करता।
- (2.)धर्मनिरपेक्ष राज्य धार्मिक आधार पर नागरिकों के मध्य कोई भेदभाव नहीं करता।यह धार्मिक समानता के सिद्धांत पर आधारित होता है।
- (3.)धर्मनिरपेक्ष राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता है। इसके साथ ही यह न तो किसी धर्म विशेष से संबंधित होता है और न ही किसी धर्म विशेष के प्रसार अथवा अवरोध में सहायक होता है।
3.धर्मनिरपेक्षता और आधुनिक राज्य (Secularism and Modern State):
- वर्तमान विश्व में विद्यमान संवैधानिक व्यवस्थाओं (constitutional systems) में संयुक्त राज्य अमेरिका पहला राज्य है जहां संवैधानिक रूप से धर्म तथा राज्य के मध्य पृथक्करण पर आधारित राज्य की स्थापना की गई।अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांत को प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा मान्यता प्रदान की गई।इसके अनुसार कांग्रेस ऐसी किसी विधि का निर्माण नहीं करेगी जिसका उद्देश्य किसी नए धर्म को स्थापित करना अथवा किसी धर्म के स्वतंत्र अनुपालन में बाधा पहुंचाना हो।कालान्तर में राज्य और धर्म के मध्य पृथक्करण की सीमा के मसले पर अमरिकी उच्च न्यायालय के समक्ष अनेक मामले आए जिनमें न्यायालय ने धर्म तथा राज्य के मध्य संबंध तथा दोनों की विभाजक रेखा को स्पष्ट करने का प्रयास किया।
- इस श्रेणी का एक प्रसिद्ध वाद ‘Aversion VS Board of Education’ (वी.पी. लूथरा की पुस्तक ‘कांसेप्ट ऑफ दी सेक्यूलर स्टेट इन इंडिया’ में उद्धृत) का था जिसमें निर्णय देते हुए जस्टिस ब्लैक ने कहा कि, “संघ अथवा किसी राज्य सरकार द्वारा किसी धर्म की स्थापना नहीं की जा सकती।इसी प्रकार किसी भी सरकार द्वारा ऐसी विधियों का निर्माण नहीं किया जा सकता जिसका उद्देश्य किसी एक अथवा सभी धर्मों की सहायता करना अथवा किसी एक को अन्य पर प्राथमिकता देना हो।”
- इस दृष्टिकोण के अनुसार धर्म के संदर्भ में राज्य की किसी प्रकार की भूमिका-सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होती है।अमरिकी सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक प्रश्न यह भी उठाया गया कि क्या धर्म और राज्य के मध्य पृथक्करण का अर्थ यह है कि राज्य सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करे।जस्टिस रटलेज ने एक वाद में स्पष्ट किया की चर्च से राज्य के पृथक्करण का उद्देश्य राज्य द्वारा विभिन्न धर्मों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करना नहीं था,बल्कि इन दोनों के मध्य किसी प्रकार के संबंध का अंत कर देना था।धर्म सार्वजनिक विषय नहीं है।अतः व्यक्ति के धार्मिक मामलों का राज्य से कोई संबंध नहीं होना चाहिए।
- अमरिका से भिन्न ग्रेट ब्रिटेन का अपना राज-धर्म है।एंग्लिकन चर्च राज्य-संस्था है और ब्रिटेन में यह सुस्थापित परंपरा है कि सम्राट अथवा सम्राज्ञी को कैथोलिक मत का ही होना चाहिए।इसके बावजूद ब्रिटेन को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य माना जाता है क्योंकि ब्रिटिश दृष्टिकोण के अनुसार धर्म और राज्य में पूर्ण पृथक्करण संभव नहीं है।चर्च और राज्य दोनों ही मानव जीवन से संबंधित इकाइयां है इसलिए एक धर्म के अनुयायी और नागरिक के रूप में मनुष्य के आचरण के बीच पूर्ण पृथक्करण करना संभव नहीं है।
- इस प्रकार मोटे तौर पर आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को धर्मनिरपेक्षता के धरातल पर दो वर्गों में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है:(क)हस्तक्षेप न करने वाले राज्य (Non-interventionary states) (ख)विभेद न करने वाले राज्य (Non-discriminatory states)
- प्रथम श्रेणी में अमरिकी राजनीतिक व्यवस्था को रखा जा सकता है जहाँ धर्म और राज्य के मध्य एक स्पष्ट सीमांकन रेखा है।इस श्रेणी में वे राज्य आते हैं जिनका धर्म से नकारात्मक अथवा सकारात्मक किसी प्रकार का संबंध नहीं है,जबकि विभेद न करने वाला राज्य मानव जीवन के अन्य पक्षों की भाँति धार्मिक पक्ष में भी हस्तक्षेप करता है।इस श्रेणी का राज्य धर्म के प्रति उदासीन नहीं होता और व्यवहार में भू-क्षेत्र के अंतर्गत क्रियाशील विभिन्न धर्मों को सहायता भी प्रदान करता है।पर ऐसा करते समय इसके द्वारा विभिन्न धर्मों के मध्य किसी प्रकार का विभेद नहीं किया जाता।
- ब्रिटिश तथा भारतीय राजनीतिक व्यवस्थाओं को इस श्रेणी में रखा जा सकता है।विद्वत जनों का ऐसा मानना है कि किसी राज्य का धर्मनिरपेक्ष होना इस तथ्य पर अधिक निर्भर नहीं है कि उस राज्य का अपना कोई धर्म है अथवा नहीं बल्कि महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि सार्वजनिक नीतियों के निर्माण तथा अन्य ऐच्छिक संस्थाओं के साथ राज्य के संबंध को धर्म किस सीमा तक प्रभावित करता है।
- यूरोप में धर्मनिरपेक्ष राज्य की कल्पना रोमन कैथोलिकों और प्रोटेस्टेण्टों के मध्य लम्बे आत्म-विनाशी युद्धों के बाद विकसित हुई।जब ईसाई कॉमनवेल्थ के ये दोनों फिरके आपस में लड़-लड़कर थक गए और उन्हें यह एहसास हो गया कि दोनों में अंतिम विजय किसी की नहीं होगी तो अंत में वेस्टफेरलिया की संधि में यह तय हुआ कि राज्य और धर्म के मध्य शक्तियों का विभाजन हो-राज्य को लौकिक जीवन में सर्वोपरि माना जाए और चर्च को पारलौकिक या धार्मिक जीवन में।इस प्रकार बहुत कटु अनुभवों से गुजरने के बाद वहां धर्मनिरपेक्ष राज्य (secular state) की कल्पना सर्वस्वीकृत हुई।
4.धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा (Indian Concept of Secularism):
- भारतीय संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पाश्चात्य प्रभाव का परिणाम है।यद्यपि कुछ विद्वानों का मानना है कि धर्मनिरपेक्षता के आदर्श से भारत हमेशा से परिचित था,क्योंकि विभिन्न मतों के संदर्भ में सहिष्णुता भारतीय समाज की लंबी परंपरा रही है।परंतु इस मत को आंशिक रूप से ही सत्य माना जा सकता है।जैसा कि John. T Flint ने अपने आलेख ‘India as a secularizing society’ में लिखा है कि “हिंदू समाज एक पवित्र समाज था,जिसमें परंपरागत धार्मिक व्यवस्था जीवन के सभी पक्षों को आत्मसात किए हुए थी और सामाजिक प्रक्रिया की निर्धारक थी।” इस प्रकार हिंदू सामाजिक व्यवस्था में लौकिक और पारलौकिक के मध्य कोई स्पष्ट विभाजन रेखा नहीं खींची गई।
- यही स्थिति इस्लाम के संदर्भ में भी देखी जा सकती है जो लगभग 400 वर्षों तक भारत के शासको का धर्म रहा।इस्लाम में भी मनुष्य के लौकिक और पारलौकिक पक्षों के मध्य कोई स्पष्ट विभेद नहीं किया गया।कहने का आशय यह है कि ऐतिहासिक रूप से स्वायत्त होते हुए भी भारतीय समाज में “Render unto Caesar the things that are Caesar’s and unto God the thing that are Gods” जैसी कोई अवधारणा प्राप्त नहीं होती।इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता का भारतीय आदर्श ऐतिहासिक धरातल पर धार्मिक सहिष्णुता के परे नहीं जा सका।दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि धार्मिक सहिष्णुता भारतीय परंपरा में एक सिद्धांत रहा,यह नीति का रूप नहीं ले सका।
- यथार्थ यह है कि हमने अन्य संकल्पनाओं की भांति धर्मनिरपेक्षता की संकल्पना को यूरोप से ग्रहण किया और हमने अपने विशिष्ट अनुभवों के आधार पर उसका विस्तार भी किया।पश्चिम के सर्वथा विपरीत,भारत में धर्मनिरपेक्षता का उद्देश्य परस्पर भिन्न धार्मिक मतों के अनुयायियों के मध्य एक प्रकार के मैत्रीपूर्ण और भाईचारे की भावना का विकास करना था।यह आशा की गई थी कि धर्मनिरपेक्षता की स्थापना अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ (Divide and Rule) की नीति के चलते विकसित सांप्रदायिकता के रोग की प्रभावकारी औषधि सिद्ध होगी।
- स्वतंत्रता आंदोलन के प्रारंभ से ही यह सोच आम रही कि हिंदू,मुस्लिम,सिख,ईसाई,पारसी आदि सभी संप्रदायों को समान अधिकार दिए जाने चाहिए और संप्रदायों के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े नेतागण असाम्प्रदायिक या गैर-साम्प्रदायिक राजनीतिक व्यवस्था के लिए संघर्ष करते रहे।अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग आदि कुछ फिरकों को प्रोत्साहन देकर राष्ट्रीय आंदोलन के इस विचार को उपेक्षित करने की कोशिश की।उन्होंने मुस्लिम लीग से मिलकर दो राष्ट्रों का सिद्धांत उछाला लेकिन गांधी जी के नेतृत्व में हमारा राष्ट्रीय आंदोलन असाम्प्रदायिक राजनीति पर दृढ़ रहा।ब्रिटिश सरकार ने सांप्रदायिक आधार पर पहले मुसलमानों को और फिर अन्य फिरकों को विशेष सुविधाएं दी और अंत में देश का विभाजन कर दिया,लेकिन राष्ट्रीय आंदोलन ने कभी इस राजनीति को स्वीकार नहीं किया और अपना संविधान बनाते समय राष्ट्र के नेताओं ने सभी धर्मों को समान अधिकार दिया तथा धर्म के आधार पर कोई भेदभाव न करने की सुनिश्चित व्यवस्था की।
- इस प्रकार हमारे संविधान में प्रयुक्त धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ लौकिक भी है और असांप्रदायिक भी।एक समय था जब ‘धर्मनिरपेक्ष’ के लिए हिंदी में असाम्प्रदायिक का ही इस्तेमाल किया जाता था।हिंदी में मौलिक राजनीतिक निबंध लिखने वाले आचार्य नरेंद्र देव की रचनाओं में इस शब्द का कई जगह प्रयोग हुआ है।यूरोप में ‘सेक्यूलर’ शब्द लौकिक (Temporal) के अर्थ में प्रयुक्त होता है।कई देशों में राजकीय चर्च भी हैं जैसे इंग्लैंड का चर्च।भारत में राष्ट्रीय आंदोलनों के अनुभवों के कारण हम किसी एक धर्म या संप्रदाय को राज्य का धर्म नहीं बना सकते इसीलिए हिंदू राष्ट्र की संकल्पना हमारे संविधान के अंतर्गत मान्य नहीं हो सकती।
5.धर्मनिरपेक्षता से संबंधित संवैधानिक उपबंध (Constitutional Provisions Relating to Secularism):
- संविधान में अनेक ऐसे उपबंध है जो धर्मनिरपेक्षता से प्रत्यक्षतः या परोक्षतः संबंधित हैं।यद्यपि स्पष्ट रूप से संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द का उल्लेख संविधान के 42 वे संविधान संशोधन अधिनियम (1976) द्वारा किया गया।अनुच्छेद 15 तथा 16 प्रत्येक नागरिक को बिना किसी धार्मिक भेदभाव के समान नागरिक अधिकार प्रदान करते हैं।अनुच्छेद 25 प्रत्येक नागरिक को विवेक की समान स्वतंत्रता तथा किसी भी धर्म का व्यवहार करने,शिक्षा देने तथा प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।अनुच्छेद 26 किसी भी धार्मिक मत को धार्मिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संस्थाओं की स्थापना तथा चल एवं अचल संपत्ति क्रय करने का अधिकार देता है।अनुच्छेद 27 के अनुसार किसी भी नागरिक को किसी विशेष धार्मिक मत के प्रसार हेतु कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।अनुच्छेद 28 के तहत् राज्य द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से संचालित किसी भी शैक्षणिक संस्था में अनिवार्य धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती।अनुच्छेद 325 के तहत धर्म के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों को समाप्त किया गया है।
- आलोचनात्मक विश्लेषण करने पर भारतीय धर्मनिरपेक्षता की निम्नांकित तीन विशेषताएं दृष्टिगत होती हैंः
- (1.)इसका स्वरूप उदारवादी (Liberal) है।इसका आशय यह है कि यद्यपि भारत की जनसंख्या का बहुसंख्यक भाग हिंदू है,परंतु फिर भी न केवल सभी नागरिकों को धार्मिक समानता तथा स्वतंत्रता के अधिकार दिए गए हैं,वरन विभिन्न अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए पृथक उपबंध रखे गए हैं।
- (2.)अन्ततः भारतीय धर्मनिरपेक्षता निरपेक्ष न होकर सापेक्ष है,इस अर्थ में कि धार्मिक स्वतंत्रता को सामाजिक व्यवस्था के हित में प्रतिबंधित किया जा सकता है।
- (3.)अंततः भारतीय धर्मनिरपेक्षता जड़ न होकर निरंतर गतिशील है।यह जागरूक है,क्योंकि यह धर्म को राज्य के कार्यों में हस्तक्षेप के लिए प्रतिबंधित करती है,जबकि सामाजिक कल्याण की दृष्टि से राज्य इसमें हस्तक्षेप कर सकता है।राज्य को किसी भी धार्मिक मत के व्यक्तिगत कानून को परिवर्तित करने का अधिकार प्राप्त है।
- क्या ऐसा प्रतीत नहीं होता कि इन विशेषताओं के बावजूद भारतीय धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप मात्र वैधानिक (Legislative Brand of Secularism) है।अपनी इस अवधारणा की पुष्टि हम निम्नांकित तत्वों के संदर्भ में कर सकते हैं:
- (1.)मूलभूत मान्यताओं के अभाव में किसी भी राज्य के नागरिकों के लिए व्यवहार तथा कार्य के सार्वकालिक नियमों तथा मानदंडों का निर्माण संभव नहीं हैं।
- (2.)इस प्रकार के किसी भी विधान का तब तक कोई प्रतिफल नहीं निकलेगा जब तक कि शिक्षा के माध्यम से पहले ही इनका व्यापक प्रसार न कर दिया गया हो।
- (3.)नैतिकीकरण की एक इकाई के रूप में धर्म का महत्त्व सन्देहरहित है तथा
- (4.)लोकतंत्र की भावना की भाँति ही धर्मनिरपेक्षता की भावना का भी किसी राज्य के जनजीवन में क्रमिक विकास होना चाहिए।
वैधानिक प्रकार की भारतीय धर्मनिरपेक्षता में उपयुक्त सभी तत्वों को कोई महत्त्व नहीं दिया गया है,परिणामस्वरूप भारतीय धर्मनिरपेक्षता का ढांचा दो दोषों से ग्रस्त है:प्रथम यह है कि इसका दृष्टिकोण नकारात्मक है;और दूसरे; इसके प्रावधान अपूर्ण हैं। - उपर्युक्त आर्टिकल में भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता की समीक्षा (Review of Secularism in Indian Context),भारत में धर्मनिरपेक्षता की समीक्षा (Review of Secularism in India) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:UN Organisation Security Council
6.फेल होने पर नहीं हँसा (हास्य-व्यंग्य) (I did not laugh when failed) (Humour-Satire):
- एक छात्र (अपने मित्र से):आज हमारी कक्षा में परीक्षा परिणाम सुनाया गया,एक छात्र सभी विषय में फेल हो गया,सभी विषयों में जीरो नंबर आए।सभी छात्र-छात्राएं हंसने लगे,लेकिन मैं बिल्कुल नहीं हँसा।
- मित्र:तुम क्यों नहीं हँसे?
- छात्र:कैसे हँसता,वह फेल होने वाला छात्र स्वयं मैं ही तो था।
7.भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता की समीक्षा (Frequently Asked Questions Related to Review of Secularism in Indian Context),भारत में धर्मनिरपेक्षता की समीक्षा (Review of Secularism in India) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत की तुलना किससे की जा सकती है? (What can the theory of secularism be compared to?):
उत्तर:धर्मनिरपेक्ष राज्य का प्रत्यय राज्य,धर्म तथा व्यक्ति के मध्य तीन पृथक परन्तु परस्पर सम्बद्ध संबंधों पर आधारित है।धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत की तुलना त्रिभुज के ज्यामितीय आकार से की जा सकती है जिसके आधार के दो कोण धर्म और राज्य तथा शीर्ष कोण व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।त्रिभुज की तीनों भुजाएं तीन प्रकार के संबंधों की द्योतक हैं।व्यक्ति और राज्य को जोड़ने वाली भुजाएँ नागरिक अधिकारों की ओर,व्यक्ति और धर्म को जोड़ने वाली भुजा स्वतंत्रता की ओर,और आधार भुजा दोनों के मध्य पृथक्करण की ओर इंगित करती है।
प्रश्न:2.क्या पश्चिमी तर्ज पर धर्म को भारत में राजनीति से अलग किया जा सकता है? (Can religion be separated from politics in India on Western lines?):
उत्तर:बुनियादी प्रश्न यह है कि क्या धर्म को पश्चिमी तर्ज पर भारत में भी अलग किया जा सकता है? क्या भारतीय मानस ‘धर्म’ को इतना बाहरी आवरण समझता है कि उसे उतार कर जब चाहे रख दे? धर्म हमारे लिए बहुत गहरे तक छूने वाला भाव बोध रहा है।जब हम किन्हीं द्वन्द्व के क्षणों में रहते हैं कि “इस समय हमारा धर्म क्या है?” तो इसका क्या अर्थ होता है? क्या यहाँ धर्म का अंग्रेजी पर्याय’ रिलीजन’ हो सकता है? क्या इसका उत्तर ‘हिंदू’,’मुस्लिम’ इत्यादि हो सकता है? यह कितना हास्यास्पद है,यह स्वतः स्पष्ट है।
प्रश्न:3.भारत के संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का सार क्या है? (What is the essence of secularism in the Indian context?):
उत्तर:धर्मनिरपेक्षता न तो धर्म का नकार है और न ही धर्म की अवहेलना।सर्वधर्म समभाव-यह दर्शन न तो नेहरू का है और न ही अंबेडकर का।यह भारतीय परंपरा का दर्शन है-परंपरा,जिसमें तुलसी ने राम के हाथों शिव की पूजा कराकर शैवों और वैष्णवों के बीच की दूरी समाप्त की थी;वह परंपरा जिसमें अनीश्वरवादी बुद्ध भी भगवान का अवतार मान लिए गए।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता की समीक्षा (Review of Secularism in Indian Context),भारत में धर्मनिरपेक्षता की समीक्षा (Review of Secularism in India) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. | Social Media | Url |
---|---|---|
1. | click here | |
2. | you tube | click here |
3. | click here | |
4. | click here | |
5. | Facebook Page | click here |
6. | click here |
Related Posts
About Author
Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.