Menu

6 Best Tips on How to Study Detached

Contents hide

1.अध्ययन अनासक्तिपूर्वक कैसे करें की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips on How to Study Detached),छात्र-छात्राओं के लिए अनासक्ति भाव से अध्ययन करने की 6 तकनीक (6 Techniques for Students to Study Detached):

  • अध्ययन अनासक्तिपूर्वक कैसे करें की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips on How to Study Detached) के आधार पर अनासक्ति भाव से अध्ययन करना जान सकेंगे।आसक्ति का अर्थ होता है लगाव,मोह,अनुराग आदि जबकि अनासक्ति का अर्थ है आसक्ति का अभाव अर्थात लगाव या मोह का ना होना।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:How to Make Study Result-Focused?

2.आसक्तियुक्त कर्म दु:ख का कारण (Attachment Karma is the Cause of Sorrow):

  • छात्र-छात्राएं अध्ययन करते हैं और भी अपने दैनिक व व्यावहारिक जीवन को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए कर्म करते हैं।माता-पिता और शिक्षक उनकी कामनाओं को भड़काने का काम करते हैं यह बन जाओ,वह बन जाओ (इंजीनियर,डॉक्टर,आईएएस आदि),ऐसा करो,वैसा करो आदि।इस प्रकार उनकी नजर में कोई पद प्राप्त करना तथा धन कमाना ही स्टेटस मेंटेन करने और बड़ा बनने का मापदंड है।
  • फलस्वरूप छात्र-छात्राएं रात-दिन अध्ययन में जुटे रहते हैं और यह कामना करते रहते हैं कि कैसे भी उसे अच्छे अंक प्राप्त हो जाएं,कैसे भी उसको प्रवेश परीक्षा में सफलता मिल जाए।इस प्रकार एक-दूसरे से आगे निकलने की दौड़ में शामिल हो जाता है,जिस दौड़ का कोई अंत नहीं है,जो दौड़ जिंदगी भर चलती रहने वाली है और फिर भी अंत नहीं होता है,हमारा ही अंत हो जाता है।और अंतिम समय भी यही कामना रह जाती है कि उसका अमुक काम अधूरा रह गया है,उसकी अमुक कामनाएँ पूरी नहीं हो पाई।
  • उसे कोई यह समझाए कि अपने अध्ययन कार्य को कर्त्तव्य समझकर करो,निष्ठापूर्वक करो और फल के प्रति आसक्ति का भाव रखकर अध्ययन मत करो।छात्र-छात्राएं इसका प्रत्युत्तर देते हैं कि बिना कामना,बिना फल की इच्छा के अध्ययन ही क्या कोई भी कार्य क्यों किया जाएगा,बिना कामना और इच्छा के कोई कर्म तो किया ही नहीं जा सकता है।यदि कोई लक्ष्य या प्रयोजन सामने होगा तो ही तो अध्ययन करेंगे,लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।लक्ष्य तय करेंगे तो उसके फल प्राप्ति की इच्छा भी की ही जाएगी इस प्रकार वे अपने तर्क से यह सिद्ध करना चाहते हैं कि फल की कामना किए बिना अध्ययन या कोई भी कर्म किया ही नहीं जा सकता है।
  • वस्तुतः अध्ययन अथवा कोई भी कार्य कई प्रकार से किए जा सकते हैं।किसी के दाब-दबाव से जैसे हमारे पढ़ने का मूड नहीं है परंतु माता-पिता या शिक्षकों के दाब-दबाव से पढ़ते हैं।किसी की आज्ञा पालन करने के भाव से अध्ययन करते हैं।इसी प्रकार हम कर्त्तव्य पालन की दृष्टि से भी कर्म करते हैं।जैसे वृद्ध माता-पिता की सेवा-सुश्रूषा करना,कोई सहपाठी बीमार हो जाए या उसके साथ दुर्घटना घट जाए तो उसे अस्पताल में दिखाने जाते हैं।तात्पर्य यह है कि फल की प्राप्ति के बिना भी कर्त्तव्य समझकर भी अध्ययन या अन्य कार्य किया तो जा सकता है और बहुत बार करते भी हैं।
  • छात्र-छात्राएं अध्ययन करते समय परिणाम के प्रति आसक्ति रखते हैं तो इससे नुकसान के अलावा फायदा कुछ भी नहीं है।पहला नुकसान हमारा अध्ययन से ध्यान हटकर अच्छे फल पाने की कल्पना में मन रस लेने लगता है जिससे हमारी एकाग्रता भंग होती है।बिना एकाग्रता के अध्ययन को बेहतरीन तरीके से नहीं किया जा सकता है,पाठ को ठीक से समझ नहीं पाएंगे,पाठ को ठीक से याद नहीं कर पाएंगे।फल में उलझे रहने से उतना समय व्यर्थ बर्बाद होगा,उस समय में हम अध्ययन कर सकते थे।फल के प्रति आसक्ति रखने से हम तनावग्रस्त रहेंगे क्योंकि मन में कई विचार उत्पन्न होते हैं कि फल योजना के मुताबिक नहीं मिला तो।फल के प्रति आसक्ति रखने से,उसके अनुसार फल नहीं मिला तो दुःखी होंगे और फल आशा से अधिक मिल जाएगा तो खुश होंगे और हमारा अहंकार बढ़ेगा।अतः अध्ययन को फल के प्रति आसक्ति रखे बिना करो ताकि जो भी फल मिले उसे सहज भाव से स्वीकार कर दुःखी होने से बच सको।

3.छात्र-छात्राएं अनासक्त कर्म करें (Students should do detached work):

  • आप अनासक्त भाव के रहस्य को अभी से समझ लो तो आप भावी जीवन में दुःखी,चिंतित और परेशान होने से बचे रहोगे।ज्यादातर होता यही है कि हम इस रहस्य को बचपन से ही नहीं समझ पाते और अपने आचरण में नहीं ले पाते जिससे हमारा स्वभाव आसक्ति,लोभ,मोह और लालसा करने वाला बन जाता है जिसे बाद में बदल पाना अत्यंत कठिन हो जाता है।अनासक्ति वाला आचरण कैसा होता है इसे समझ लें।
  • आप पूरे वर्ष तक स्कूल या कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करते हो,पढ़ाई लिखाई करते हो और मेहनत व अभ्यास करके परीक्षा देते हो,यह आपका कर्म है,पुरुषार्थ है।परीक्षा का परिणाम (result) निकलता है वह इस कर्म का फल होता है,इस कर्म का प्रारब्ध (भाग्य) होता है।आपके इस कर्म का उद्देश्य होता है शिक्षा ग्रहण करना और परीक्षा पास करना।इसे उद्देश्य तो बनाओ लेकिन इस उद्देश्य के प्रति आसक्ति भाव मत रखो क्योंकि अगर आपने अच्छा और पूरा कर्म किया होगा तो आसक्ति भाव रखे बिना भी आप परीक्षा में पास हो ही जाओगे।अगर उच्च श्रेणी का कर्म और श्रम किया होगा तो उच्च श्रेणी में पास हो सकोगे।परीक्षा का फल उच्च श्रेणी का हो इस कामना के प्रति आसक्ति (attachment) ना रखो बल्कि ऐसा लक्ष्य रखो,ऐसा आदर्श रखो और भरपूर पुरुषार्थ करो,कठोर परिश्रम करो तो आप अवश्य उच्च श्रेणी में उत्तीर्ण हो जाओगे।
  • ऐसा ना करके फल क्या होगा,क्या ना होगा,ऐसी चिंता और आसक्ति करने का कोई लाभ नहीं क्योंकि यदि आपने ठीक से पढ़ाई की ही नहीं यानी उचित कर्म ही नहीं किया तो फल अच्छा ना होगा भले ही आप कितनी ही आसक्ति और कामना क्यों न करते रहें।यह जरूर होगा कि मनचाहा फल न मिलने पर उतना ही दुःख करोगे जितनी आसक्ति फल के प्रति रखोगे।यह ठीक से समझ लो की आसक्ति भाव के कारण कई बार हम उचित-अनुचित कर्म का ख्याल नहीं कर पाते और कर्म की जगह कुकर्म करके मनोवांछित फल पाने में संलग्न हो जाते हैं जबकि विवेक पूर्वक कर्त्तव्यपालन की भावना से कर्म करने पर हम ऐसा कदापि नहीं करते और दुराचरण (आजकल की भाषा में भ्रष्टाचार) करने से बच जाते हैं।परीक्षा में नकल करना,पेपर आउट करना,घूस देकर अंकतालिका में अंक बढ़वाना,विद्यालय में जाए बिना परीक्षा पास करना (नियमित छात्र के रूप में),किसी की सिफारिश करा कर पास होना आदि जो कर्म हैं ये सभी फल के प्रति आसक्ति रखने वाले ही करते हैं,कर्त्तव्यपरायण और अनासक्त भाव रखने वाले नहीं करते।फल के प्रति आसक्त भाव रखकर अनुचित ढंग से परीक्षा पास कर भी ली तो आपको डिग्री भले ही मिल जाए योग्यता नहीं मिल सकेगी।आप उपाधिकारी (Qualified) तो हो जाएंगे पर शिक्षित (Educated) ना हो सकेंगे।
  • याद रखें क्वालिफाइड (Qualified) होना और बात है,एजुकेटेड (Educated) होना और बात है जैसे पंडित होना और बात है तथा अनुभवी होना और बात है।जैसे  शिक्षक होना और बात है,गुरु होना और बात है।जैसे विद्यार्थी होना और बात है,शिष्य होना और बात है।जैसे पुरुष होना और बात है,मानव होना और बात है।इसी भाँति निवास (House) होना और बात है,गृह (Home) होना और बात है।पाठक होना और बात है,स्वाध्यायी होना और बात है।इसी तरह अनेक उदाहरण और भी आपको दिए जा सकते हैं या आप स्वयं भी सोच सकते हैं जिसमें दोनों पक्ष एक जैसे लगते तो हैं पर एक जैसे होते नहीं क्योंकि दोनों पक्षों में बुनियादी फर्क होता है।तीव्र बुद्धि वाले इस फ़र्क को समझ लेते हैं या जो इस फ़र्क को समझने के लिए पर्याप्त विचार-चिंतन करते हैं उनकी बुद्धि तीव्र होने लगती है।आपको किसी एक पक्ष या विपक्ष पर गहराई तक सोच विचार करने की आदत डालना चाहिए ताकि चिंतन करने की प्रवृत्ति का निर्माण हो सके,आपकी चिन्तन शक्ति बढ़ सके और आपका बुद्धि बल बढ़ता रहे।

4.कामनाओं का कोई अंत नहीं (There is no end to desires):

  • भौतिक सुखों और विलासिता की चीजों को प्राप्त करने के लिए हमें इतने लालायित नहीं होना चाहिए कि हम उचित और अनुचित,शुभ और अशुभ तथा हितकारी और अहितकारी का भेद भूलकर किसी भी तरह से भौतिक सुखों और विलासिता की वस्तुओं को पाने के लिए पागल हो जाएं क्योंकि जिन्हें भौतिक सुख प्राप्त है और जो विलासिता की वस्तुओं को प्राप्त कर चुके हैं क्या वे अध्ययन कर सकेंगे।स्कूल या कहीं भी कार से आना-जाना,एसी (Air condition) वातावरण में अध्ययन करना,स्वादिष्ट भोजन करना,नाच-गानों में समय बिताना,ऐशोआराम की जिंदगी व्यतीत करना आदि विद्यार्थी करेगा तो क्या विद्याध्ययन कर सकेगा?
  • संसार की वस्तुओं को हम तीन वर्गों में बांट सकते हैं: (1.)आवश्यकता (Necessity),सुविधा (comfort) और (3.)विलासिता (Luxury)।जो-जो वस्तुएं हमारे जीवन-निर्वाह के लिए आवश्यक हों उन्हें प्राप्त करना जरूरी होता है अतः ऐसी आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए हमें अवश्य प्रयत्नशील रहना चाहिए क्योंकि इन्हें प्राप्त करना हमारी मौलिक आवश्यकता है,बुनियादी जरूरत है।
  • जब आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता प्राप्त हो तब थोड़ी सुविधाओं (comfort) को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए जैसे अध्ययन करने के लिए पुस्तकों का होना विद्यार्थियों की ‘बुनियादी जरूरत’ है और पुस्तकों के साथ अध्ययन कक्ष भी हो,अध्ययन कक्ष हवादार हो और इसके साथ अच्छे शिक्षकों वाला स्कूल भी हो यह इससे एक कदम आगे का ‘सुविधावाला’ (comfort) मामला है।यानी अध्ययन करने के लिए पुस्तकें तो उपलब्ध हों ही,अच्छी तरह और सुविधा के साथ अध्ययन कर सकें इसके लिए हवादार शांत अध्ययन कक्ष व अच्छे शिक्षकों वाला स्कूल भी हो,संदर्भ पुस्तकें हों,कोचिंग या ट्यूटर की व्यवस्था वगैरह भी हो तो यह सुविधा के क्षेत्र की बात है।इस तरह आवश्यकता और सुविधा की पूर्ति करने तक का मामला तो ठीक है और आवश्यक भी,पर इससे आगे सुख,ऐश्वर्य को भोगने का,विलासत्ता की वस्तुओं का उपभोग करने का जो मामला है बस वही घपले वाला है क्योंकि आवश्यकता (Necessity) और सुविधा (comfort) की तो सीमा होती है पर जैसे कामनाओं का यानी तृष्णा का कोई अंत नहीं होता वैसे ही विलासिता का भी कोई अंत नहीं होता,विलासिता की वस्तुओं का कोई अंत नहीं होता।
  • इसलिए बुद्धिमानी और दूरदर्शिता का तकाजा यही है कि आप आवश्यकता और सुविधा की पूर्ति करने में तो कोई कसर बाकी ना छोड़े ताकि अध्ययन ठीक से कर सकें पर विलासिता और विषय भोग के चक्कर से दूर रहने की भी सावधानी रखें।एक बात याद रखें की विलासिता का उपयोग आवश्यकता के अनुसार सीमित मात्रा में करना,सुविधा वाला काम होता है लेकिन सुविधा का विस्तार करना विलासिता बन जाता है अतः अधिक सुविधा भोगी प्रवृत्ति भी दुःखकारी सिद्ध होती है।सुविधा और विलासिता के बीच एक लक्ष्मण रेखा होनी ही चाहिए।

5.आसक्ति और अनासक्ति का दृष्टांत (The Parable of Attachment and Detachment):

  • दो मित्र एक ही स्कूल में अध्ययन करते थे।एक विद्यार्थी रईस घर का था तो दूसरा विद्यार्थी साधारण घर का था।एक बार दोनों ने एक साथ ग्रुप में अध्ययन करने का निश्चय किया।रईस छात्र ने साधारण घर वाले छात्र को अपने बंगले में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया।साधारण विद्यार्थी रईस विद्यार्थी के घर गया।वहाँ उसे मधुर व स्वादिष्ट व्यंजनों का नाश्ता कराया।उसका घर भी एसी (AC) से सुसज्जित था।नाश्ता करने के बाद दोनों विद्यार्थी पढ़ने के लिए बैठ गए परंतु एसी के वातावरण और स्वादिष्ट व्यंजनों का नाश्ता करने के कारण दोनों को ही थोड़ी देर में नींद आ गई।सोने के लिए शानदार मखमल और गुदगुदे पलंग पर गहरी नींद आ गई।धीरे-धीरे कुछ दिनों में साधारण सुविधा वाले विद्यार्थी का अध्ययन करने का क्रम टूट गया।वह सोचने लगा कि यह रईस विद्यार्थी कितने ठाट-बाट से रहता है और स्वादिष्ट व्यंजनों को रोज खाता है।इसके द्वारा रोज मुझे कराया जाने वाला नाश्ता कितना स्वादिष्ट,जायकेदार और मधुर व्यंजन हैं।मेरा जीवन तो साधारण घर में यूं ही बीता जा रहा है,नष्ट होता जा रहा है,संसार के सुख-भोगों और ऐश्वर्य से वंचित ही रहा है।काश! मुझे भी इस तरह के ठाट-बाट नसीब होते।कुछ दिनों में ही रईस घर में रहने से ही उसके आचार-विचार बदल गए और वह अध्ययन करना भूल गया।इसके बाद दोनों ने विचार-विमर्श किया कि यहां अध्ययन ठीक से नहीं हो पा रहा है अतः अब कुछ दिन साधारण घर वाले विद्यार्थी के घर पर अध्ययन करेंगे।रईस विद्यार्थी को साधारण घर में अध्ययन करने में शुरू में थोड़ी असुविधा हुई क्योंकि वह ऐश्वर्य का भोग करने का अभ्यस्त था।परंतु शीघ्र ही वहाँ अभ्यस्त हो गया।खुले और शांत वातावरण की भीनी-भीनी मस्त हवा में प्रसन्नचित होकर दोनों पढ़ने लगे।थोड़े दिन बाद स्कूल में टेस्ट हुआ तो वे अच्छे अंक पाकर दोनों दंग रह गए जबकि रईस घर में रहते हुए उनके औसत से भी कम अंक प्राप्त हुए थे।रईस विद्यार्थी सोचने लगा कि वाकई अध्ययन तो ऐसे ही किया जा सकता है।कहने को तो मेरे पास बहुत से ठाट-बाट और ऐशोआराम तथा विलासिता की वस्तुएं हैं परंतु उस कृत्रिम वातावरण में न तो ठीक से नींद आती है और न ठीक से सो पाता हूं,अध्ययन तो करने का मन ही नहीं करता।साधारण विद्यार्थी के होशियार होने का कारण यहाँ की आबोहवा और साधारण भोजन ग्रहण करना ही है।वहाँ देर रात तक करवटें बदलता रहता हूं तब जाकर दो घड़ी सो पाता हूं।
  • रईस विद्यार्थी के मन में ऐसा ख्याल आया,उधर साधारण विद्यार्थी रईस विद्यार्थी के ठाट-बाट से आकर्षित और मोहित था।परंतु स्कूल टेस्ट से उनको अपनी असलियत का पता चल गया।रईस विद्यार्थी ऐसा सोचकर साधारण घर वाले विद्यार्थी से बोला कि मैं तो अपने घर नहीं जाना चाहता हूं,तुम्हारे घर ही रहना चाहता हूं।मैं तुम्हारे दिव्य व्यक्तित्व और यहां की आबोहवा व प्राकृतिक सुरम्य वातावरण को देखकर प्रभावित हूँ।मैं चाहता हूं कि यहीं रहूं और तुम मेरे घर पर चले जाओ,तुम वहाँ रहो।
  • रईस विद्यार्थी का वैराग्य देखकर उस साधारण घर वाले विद्यार्थी की विचारधारा को झटका लगा।उसका विवेक वापिस लौट आया और वह सोचने लगा कि अभी मैं मोहवश और आसक्तिवश कैसे खोटे विचार कर रहा था। मैं रईस विद्यार्थी के रहन-सहन,खान-पान और ऐश्वर्य के साथ जीने की कामना कर रहा था उसे यह रईस विद्यार्थी खुद ही त्यागने की बात कर रहा है और मेरे जैसा जीवन अपनाना चाह रहा है।मैंने रईस खानदान के घर का भोजन कर लिया,वहाँ की आबोहवा और वातावरण में कुछ दिन रहने से ही में आसक्त हो गया और सुखों को भोगने की बात सोचने लगा यह तो मेरे मन में वासना होने की सूचक है और इस बात की सूचक है कि मैं जो त्याग कर रहा हूं वह सुख भोग और धन-ऐश्वर्य को पाने की लालसा से त्याग कर रहा हूं मैं त्यागी से भोगी होना चाहता हूं,अब तक की तपस्या को मिट्टी में मिलाना चाहता हूं तो मैं त्याग नहीं कर रहा बल्कि भोग में लिप्त हो रहा हूं।वास्तव में त्याग तो यह रईस विद्यार्थी कर रहा है क्योंकि यह विरक्त भाव से यह कार्य करने की इच्छा कर रहा है।जो इसे छोड़ने योग्य लग रहा है उसे मैं प्राप्त करने योग्य समझ रहा हूं यह मेरा मोह है,भ्रम है और आसक्ति भाव है।जिसे मैं छोड़ना चाह रहा हूं उसे पाने के लिए रईस विद्यार्थी सारा वैभव छोड़ने के लिए तैयार हो गया,यह इस विद्यार्थी के मन में ‘बोध’ जागृत होना है।मैंने ऐसी भूल की इसके लिए मुझे धिक्कार है।इस निष्कर्ष पर पहुंचकर साधारण घर वाले विद्यार्थी ने कहा तुम्हारे और मेरे मन में जो विचार परिवर्तन हुआ है यह वातावरण,आहार-विहार और रहन-सहन,खान-पान के कारण हुआ है।इसलिए हमें दोनों को ही अनासक्ति का भाव रखकर सुविधाओं का भोग करना होगा तभी अध्ययन कर सकेंगे और सब चिताओं से छूट जाएंगे।सारा दुःख इस मोह के ही कारण होता है कि हम उसे अपना समझते हैं जो दरअसल अपना होता नहीं और उसे भूल जाते हैं जो दरअसल अपना होता है जिसे आत्मा कहते हैं,जिसकी शक्ति को पहचान कर सब दुःखों,कष्टों,मोह,माया से मुक्त हो सकते हैं।

6.अनासक्ति के दृष्टान्त का निष्कर्ष (The conclusion of the parable of detachment):

  • इस दृष्टान्त से दो बातें सीखने को मिलती है।पहली तो यह है कि हमें अपने कर्त्तव्यों का पालन निष्ठापूर्वक,पूरे मनोयोग के साथ भरपूर प्रयत्न करते हुए किया करें और फल क्या होगा इसकी चिंता ना करें क्योंकि फल क्या होगा यह हमारे हाथ में नहीं होता।यद्यपि हम कर्म किसी फल को पाने के लिए ही करते हैं और चाहते भी हैं कि हमें ऐसा ही फल मिले पर फिर भी फल वही होता है जो होना होता है।हमारी चिंता करने से फल बदल नहीं जाता,हाँ,प्रयत्न करें तो फल मन के अनुकूल हो भी सकता है,लेकिन प्रयत्न करने से ही,चिंता करने से नहीं,यह याद रखें।यदि एक बार के प्रयत्न से मन के अनुकूल फल न मिले तो पुनः प्रयत्न करना चाहिए।चिंतित,दुःखी और निराश नहीं होना चाहिए।बार-बार प्रयत्न करने से आप मन माफिक फल प्राप्त करने में सफल भी हो सकते हैं पर मात्र चिंता और शोक करने से तो सिवाय मानसिक स्थिति खराब करने के और कोई फायदा नहीं होता।अतः अब सत्रारम्भ से ही ऐसा प्रयत्न चालू कर दो।अनासक्ति भाव से सिर्फ कर्त्तव्य का पालन करने की भावना से अध्ययन करो।इससे आसक्ति (लगावट) मत रखो,सब कुछ समझ कर करो वैभव-विलास की वस्तुएं तुम्हारी नहीं है,केवल लक्ष्य प्राप्ति के साधन हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अध्ययन अनासक्तिपूर्वक कैसे करें की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips on How to Study Detached),छात्र-छात्राओं के लिए अनासक्ति भाव से अध्ययन करने की 6 तकनीक (6 Techniques for Students to Study Detached) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:How to Study Mathematics as Game?

7.अनासक्तिपूर्वक अध्ययन (हास्य-व्यंग्य) (Detached Study) (Humour-Satire):

  • शिक्षक (छात्र से):अब अध्ययन करने के क्या हाल हैं?
  • छात्र:अब अध्ययन से मोह तो टूट गया है,बिल्कुल भी पढ़ने का मन नहीं करता,लेकिन परीक्षा का सिरदर्द है।
  • शिक्षक:फिक्र मत करो,उससे भी जल्दी ही मोह (आसक्ति) भंग हो जाएगा।

8.अध्ययन अनासक्तिपूर्वक कैसे करें की 6 बेहतरीन टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 6 Best Tips on How to Study Detached),छात्र-छात्राओं के लिए अनासक्ति भाव से अध्ययन करने की 6 तकनीक (6 Techniques for Students to Study Detached) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.निष्काम कर्म का क्या अर्थ है? (What is the meaning of selfless work?):

उत्तर:किसी भी कार्य को करने का अपने आप को कर्त्ता ना मानना बल्कि निमित्त मात्र समझना और फल के प्रति आसक्ति न रखना ही निष्काम कर्म करना होता है।

प्रश्न:2.आसक्त को स्पष्ट करें। (Clarify the attachment):

उत्तर:कोई भी व्यक्ति और विद्यार्थी आसक्त होते हैं,वे ऐसे हैं जैसे सरोवर की कीच में वन का बूढ़ा हाथी फंसकर उसी में पड़ा समाप्त हो जाता है।

प्रश्न:3.विलासिता और तृष्णा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो। (Write a short note on luxury and craving):

उत्तर:विलासिता और तृष्णा की मनोवृत्ति के प्रति जानकार और सतर्क हो जाएं और भावी जीवन में कभी भी सांसारिक प्रपंचों में इस तरह न उलझ जाएं कि आपको अपना जीवन,सब कुछ बोझ और त्यागने योग्य लगने लगे।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अध्ययन अनासक्तिपूर्वक कैसे करें की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips on How to Study Detached),छात्र-छात्राओं के लिए अनासक्ति भाव से अध्ययन करने की 6 तकनीक (6 Techniques for Students to Study Detached) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here
7. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *