6Golden Spells for Healthy Competition
1.स्वस्थ प्रतियोगिता के 6 स्वर्णिम मंत्र (6Golden Spells for Healthy Competition),छात्र-छात्राओं के लिए स्वस्थ प्रतियोगिता की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Healthy Competition for Students):
- स्वस्थ प्रतियोगिता के 6 स्वर्णिम मंत्र (6Golden Spells for Healthy Competition) के आधार पर प्रतियोगिता (competition),प्रतिस्पर्धा (Rivalry),स्वयं से प्रतियोगिता आदि के बारे में जान सकेंगे।दूसरों से इस प्रकार प्रतियोगिता करना कि उसे हानि पहुंचाये बिना,ईर्ष्या-द्वेष रखे बिना अपनी उन्नति करना स्वस्थ प्रतियोगिता है।
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2.स्वस्थ प्रतियोगिता अच्छा लक्षण (Healthy competition good traits):
- क्यों मैं अत्यधिक प्रतिस्पर्धा रखता हूं? क्यों मेरे अंदर प्रतियोगिता का असहज भाव पनपता है? मेरे जीवन में हर चीज क्यों प्रतियोगी बन गई है,जिसे मैं किसी भी कीमत पर जीतना चाहता हूं।जीत चाहे कैसी भी हो,मुझे यही पसंद है।जीत मुझे उन्मत्त बना देती है और उस दौरान मैं और कुछ भी नहीं सोच पाता,बस आगे भी ऐसी ही जीत निरंतर हासिल करना चाहता हूं,परंतु हारना मेरे लिए मरणांतक त्रासदी के समान है।हार को मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता।हार मुझे जीवन से विमुख बना देती है और किंकर्त्तव्यविमूढ़ होकर मैं गहरे अवसाद से घिर जाता हूं।ये आज की निजी व सार्वजनिक सेवाओं के एक प्रतियोगी के उद्गार होते हैं।आज के गलाकाट प्रतियोगिता में उस प्रतियोगी के मन में पनपती यह व्यथा है।
- स्वस्थ प्रतियोगिता बुरी नहीं है।यदि प्रतियोगिता का उद्देश्य अपनी आंतरिक क्षमता की अभिव्यक्ति हो तो ऐसी स्वस्थ प्रतियोगिता में कोई दोष नहीं है।यदि हम अपनी मौलिक चीजों को औरों के सामने अपने ढंग से प्रस्तुत करना चाहते हैं और इसके लिए इसकी आवश्यकता पड़ती है तो उससे परहेज नहीं है।चूँकि वर्तमान समय में प्रतियोगिता के इस स्वरूप को अचानक बदल पाना संभव नहीं है,अतः इसके निहितार्थ में परिवर्तन किया जा सकता है।प्रतियोगिता में सफलता एवं असफलता,दोनों बातें आती है।हमें यह समझना होगा कि हम हों या कोई और,सतत सफल होते जाएंगे,यह आवश्यक नहीं और यह भी उचित नहीं है कि सफलता पाने के लिए प्रतियोगिता के मानदंडों की अवहेलना कर दी जाए एवं किसी भी कीमत पर जोड़-जुगाड़ से सफलता हासिल की जाए।
- प्रतियोगिता में ऐसा होना,इसकी विश्वसनीयता को धूमिल करता है।इसके अलावा इसमें एक और बुराई आ गई है पक्षपात की।परिचय,पहुंच एवं पैसे की वजह से जो निर्णय दिया जाता है या जो परिणाम घोषित किया जाता है,उसमें यही दोष अधिकतर देखा जाता है।यह स्थिति किसी प्रतियोगिता-परीक्षा में हो या खेल में या फिर किसी अन्य चीज में,इसकी वैद्यता पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है।ऐसा होने के पीछे प्रतियोगिता को प्रतिष्ठा से जोड़ता है।जब यह प्रतिष्ठा से जुड़ जाती है तो फिर उसे हर दाँव-पेच,साम-दाम से हासिल करना ही मकसद बन जाता है।हमें विजय के साथ पराजय को भी मुक्त हृदय से वरण करना आना चाहिए।पराजय के कारणों को हमें अपने अंदर तलाशना चाहिए,ना कि उसके दोषारोपण की गलत परंपरा बनानी चाहिए।हमेशा हमें निर्णय या परिणाम को संदेह की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।
- मानवीय भूलों की वजह से यदि कहीं निर्णय में कोई गलत होता भी है तो उसे भी स्वीकार करके स्वस्थ परंपरा का विकास करना चाहिए।जब हम हारते हैं,असफल होते हैं तो हमें हमारी कमियों,खामियों के प्रति औरों के जैसा निर्णय करना आना चाहिए।जैसे हम दूसरों की कमियों को बड़ा करके देखते हैं,वैसे ही हमें अपनी कमियों पर उससे भी बड़े और सर्वव्यापक ढंग से सोच-विचार करना चाहिए।इस कुशलता को ही तो अंतर्दृष्टि कहते हैं।अंतर्दृष्टि में हम अपनी त्रुटियों एवं गलतियों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र के द्वारा देखने का प्रयत्न करते हैं,परंतु ऐसा नहीं होने पर द्वेषदृष्टि पैदा होती है,जो सदैव अपनी कमियों को नजरअंदाज करके केवल औरों के दोषों को निहारकर प्रसन्न होती है कि वह कितना बुरा है और हम कितने अच्छे! यह हमारे अवचेतन की गहराई में दबा रहता है कि हम औरों की अपेक्षा कितने श्रेष्ठ एवं समर्थ हैं।
3.सफलता के लिए दूसरों को गिराना उचित नहीं (It is not fair to drop others for success):
- हमारी श्रेष्ठता एवं हमारी मौलिकता मूल्यों पर निर्भर करती है और कोई आवश्यक नहीं कि जो बौद्धिक क्षमता,विचार,योजना आदि हमें प्राप्त हैं,वे औरों को प्रभावित करेंगी ही।यदि नहीं करती हैं तो हमें प्रतिपक्ष के श्रेष्ठ विचारों एवं योजनाओं को ग्रहण करने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए।इससे प्रतियोगिता सहयोग एवं सहकारिता में परिवर्तित हो जाती है।प्रतियोगिता के माध्यम से हम स्वयं को दूसरों की तुलना में श्रेष्ठ बनाने का प्रयत्न करते हैं।इससे हमारे अंदर एक झूठा अहंकार पनपने लगता है,जो हमारे व्यक्तित्व को विषबेल के समान लपेट कर धीरे-धीरे विकृत बना देता है।सहयोग एवं सहकार से हम औरों को नीचा नहीं दिखाते और न देखते हैं,बल्कि उसकी आवश्यकता को यथासंभव पूरा करने का प्रयत्न करते हैं और इसके लिए हम अपना नुकसान भी सहजता से झेल लेते हैं,परंतु नुकसान के बावजूद हमें अपार आंतरिक प्रसन्नता होती है,संतोष मिलता है।
- प्रतियोगिता से प्राप्त सफलता ठीक है,पर उससे दम्भ एवं अहंकार का दोष आ सकता है।सहयोग एवं सहकार की भावना में न केवल अपनी सफलता निहित होती है,बल्कि औरों के प्रयास का भी यथोचित सम्मान किया जाता है; दूसरों की सफलता के लिए भी यथासंभव सम्मिलित होता है।हमें केवल अपनी सफलता पर ही संकीर्ण सोच को प्रश्रय नहीं देना चाहिए,बल्कि टीम में विद्यमान अपने अन्य साथियों का भी ख्याल रखना चाहिए।हमें प्रतियोगिता के अलावा सहकारपूर्ण अन्य कार्यों में भी हाथ बँटाना चाहिए,जिसमें कोई व्यक्तिगत लोभ दृष्टिगोचर ना हो।यह ठीक है कि इससे निजी तौर पर कोई उपलब्धि नहीं मिलती है,पर टीम की सफलता से,अन्य साथियों का सहयोग करके जो संतोष एवं खुशी मिलती है,वह किसी भी उपलब्धि एवं प्रशस्ति पत्र से कम नहीं होती।
- हम सफल हो सकते हैं,परंतु सफल होने के लिए हमें हजारों प्रतिद्वंदियों को गिराने,व्यंग्य करने,हतोत्साहित करने की कतई जरूरत नहीं है।सफल होने के लिए हमें अपना विश्वास एवं आत्मसम्मान का ध्यान रखना चाहिए।विश्वास किसी निश्चित क्षेत्र में कार्य करने हेतु हमारी क्षमता को दर्शाता है।हम क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते,यदि अपनी इस क्षमता से अवगत हो जाएँ तो हमारा विश्वास स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है।आत्मसम्मान एक मूल्य है,जिसके आधार पर हम अपने स्वयं के अस्तित्व का बोध पाते हैं।हम सफलता अर्जित नहीं कर सके या प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर सके तो इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हमारे अंदर आत्मसम्मान नहीं है।हम असफल होने के बावजूद,मान-सम्मान विहीन होकर भी अपनी गरिमा में बने रह सकते हैं।इसका न होना कोई मायने नहीं रखता,परंतु इसे प्राप्त करने का अथक एवं ईमानदार प्रयास किया जा सकता है।
- किसी भी कार्य को करने या फिर प्रतियोगिता में भाग लेने के संबंध में हमें अपने अंदर की आशंका,कुशंका को त्याग देना चाहिए कि इसका परिणाम क्या होगा और यदि असफल हो जाते हैं तो लोग क्या कहेंगे।हमें तो बस अपने कार्य पर पूरी तरह से केंद्रित हो जाना चाहिए।अपनी सारी क्षमता एवं प्रतिभा इसी पर संपूर्ण रूप से उँड़ेल देनी चाहिए।हमारी ईमानदार एवं कठोर मेहनत हमारे अंदर एक नवीन उत्साह एवं उमंग का संचार करती है और सफलता मिलने पर आगे और अच्छा करने की प्रेरणा देती है।अतः हमें अपने संबंधित क्षेत्र में अन्य साथियों का भी भरपूर सहयोग करना चाहिए।सहयोग से आपसी विश्वास बढ़ता है एवं स्वस्थ परंपरा का विकास होता है,जिससे हमारी आंतरिक भावनाएं पुष्ट होती है।यहां पर सफलता-असफलता अपना अर्थ खो देती है,बस सहयोग एवं सहकार ही जीवंत रहते हैं।
4.प्रतियोगिता और सहयोग (Competition and cooperation):
- प्रतियोगिता दो प्रकार की होती है:स्वयं से प्रतियोगिता और दूसरों से प्रतियोगिता।प्रतियोगिता सकारात्मक रूप है,इसका नकारात्मक रूप प्रतिस्पर्धा (rivalry) है। प्रतिस्पर्धा में दूसरे व्यक्ति को गिराकर,हानि पहुंचाकर आगे बढ़ा जाता है।जबकि प्रतियोगिता (competition) में अपनी स्थिति को उन्नत करके,दूसरों को नुकसान पहुंचाएँ बिना आगे बढ़ा जाता है।पुराने भारतीय सामंती समाज में प्रतिस्पर्धा अधिक देखने को मिलती थी,आधुनिक समाज में भी प्रतिस्पर्धा के बीज देखने को मिल जाएंगे।इसके बारे में आगे चर्चा करेंगे।
- सहयोग-सहकारिता की भावना तब आती है जब लक्ष्य असीमित होते हैं तथा प्रतियोगिता की भावना उस समय जन्म लेती है जब लक्ष्य सीमित होते हैं।आधुनिक तकनीकी युग में अवसरों की कमी है,परंतु अभ्यर्थी अधिक होते हैं।किसी भी कार्य को manual करेंगे तो अधिक अभ्यर्थियों की आवश्यकता होगी और तकनीकी,कंप्यूटर व मशीन के जरिए करेंगे तो अभ्यर्थियों की आवश्यकता कम होगी।
- आधुनिक युग तकनीकी और कंप्यूटर का युग है अतः कम अभ्यर्थियों से किसी भी संस्था,विभाग,कार्यालय,कंपनी का काम चल जाता है।अतः सीमित पदों के लिए हजारों-लाखों की संख्या में अभ्यर्थी आवेदन करते हैं,फलतः उनमें गलाकाट प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है।इसलिए बहुत से योग्य अभ्यर्थी किसी भी पद के लिए वंचित कर दिए जाते हैं।थोड़े से पदों के लिए प्रशिक्षण देने,परीक्षा की तैयारी कराने हेतु कोचिंग संस्थान अपनी ओर आकर्षित करते हैं।कोचिंग संस्थान पदों को घटा-बढ़ा नहीं सकते हैं परंतु प्रतियोगिता की दौड़ को तीव्र गति से करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
- यह यथार्थ है कि किसी भी क्षेत्र में,किसी भी पद को प्राप्त करने के लिए आपको प्रतियोगिता का सामना करना ही पड़ेगा।इस प्रतियोगिता से बचा नहीं जा सकता है।हर छात्र-छात्रा दूसरे छात्र-छात्रा से आगे निकल पड़ने का भरसक प्रयास करता है।जब प्रतियोगिता से बचा ही नहीं जा सकता है तो फिर आपको प्रतियोगिता के क्षेत्र में उतरना ही पड़ेगा,उतरना ही चाहिए।यदि आप प्रतियोगिता का सामना नहीं करेंगे तो अन्य लोग उन पदों पर चयनित कर लिए जाएंगे।किसी भी व्यक्ति के अटकी नहीं पड़ी है कि वह वह आपसे कहेगा कि आप प्रतियोगिता का सामना करें,मैं आपकी मदद करता हूं।
- वस्तुतः किन्हीं बहुत बड़े संगठनों में सहयोग-सहकार की भावना देखने को मिलती है,जहां आपस में एक-दूसरे के हित की सोचते हैं,एक-दूसरे को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हैं।परंतु अब दुनिया पूरी तरह से व्यावसायिक हो चली है,अतः उनमें चयनित होने के लिए,चयन करने के लिए प्रतियोगिता ही एकमात्र विकल्प के रूप में नजर आता है।जब प्रतियोगिता करनी ही है तो स्वस्थ प्रतियोगिता करें,स्वयं से प्रतियोगिता करें।यानी प्रतिस्पर्धा करने से,दूसरों को हानि पहुंचकर आगे बढ़ने से बचा जा सकता है,बचना चाहिए भी तभी आपका वास्तविक रूप में विकास होगा,आप अपनी उन्नति कर पाएंगे।
5.गलाकाट प्रतिस्पर्धा का परिणाम (The result of cut-throat rivalry):
- अत्यधिक प्रतियोगिता के कारण आज कई व्यक्ति आगे बढ़ने के लिए अपने आपको ऊंचा उठाने या उच्च पद प्राप्त करने के लिए गलाकाट प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है।एक व्यक्ति किसी ऊंचे पद पर पहुंच जाता है तो उसे दूसरा व्यक्ति उस पद को पाने,उससे ऊपर उठने के लिए तिकड़में भिड़ाता है,अपनी पहुंच का इस्तेमाल करता है और मौका मिलते ही उसे गिराकर स्वयं पद हासिल कर लेता है।कई व्यक्ति इसी टोह में रहते हैं कि कौनसा विभाग मलाईदार है,उसमें पद कैसे हासिल किया जा सकता है।किसी को रिश्वत देकर उसका ट्रांसफर कराकर स्वयं पद हासिल कर लेता है।कई व्यक्ति यह सोचकर दुबले हो जाते हैं कि वह ऊंचा चढ़ रहा है,कहीं ऊंचा चढ़कर मुझे तो चुनौती नहीं देगा,अतः उसको वहीं पर रोकने के षड्यंत्र या उसको बाहर निकाले जाने के षड्यंत्र रचे जाते हैं।उन्हें अपने पद के खो जाने का डर सताता रहता है।साम,दाम,दंड,भेद से पद को हासिल करने के षड्यंत्र और कुचक्र रचे जाते हैं। भ्रष्टाचार की विषबेल इसीलिए पनपती,बढ़ती और पोषण पाती है।
- यदि आप प्रतियोगिता का सामना नहीं करेंगे,अपने अधिकारों के प्रति सचेत नहीं रहेंगे तो आपको अलग-थलग पटक दिया जाएगा।हो सकता है आपको गुमनामी की जिंदगी जीना पड़े।ऊपर-ऊपर से ऐसा दिखाई देता है कि जैसे स्वस्थ प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है।लाखों कैंडिडेट अपना भविष्य तय करने के लिए रात-दिन कड़ी मेहनत करते हैं।परंतु जब स्कैन्डल खुलता है तो मालूम पड़ता है कि पूरे कुएँ में ही भाँग मिली हुई है।जांच करने वाला व्यक्ति जब देखता है कि उसके निजी व्यक्ति भी चपेट में आ रहे हैं तो उस पर ऊपर से लीपापोती होती है।
- राजस्थान में सब इंस्पेक्टर भर्ती में भ्रष्टाचार के द्वारा या अपने लोगों का चयन करने का खुलासा होने के बावजूद भर्ती को रद्द क्यों नहीं किया जा रहा है,कारण स्पष्ट है कि सरकार में बैठे हुए लोगों की गर्दन भी उसमें फँसी हुई है।अतः लीपापोती की जा रही है,लीपापोती संभव है।किसी चीज का फायदा,निजी फायदा उठाने की मानसिकता रहेगी तो यह सब गोरखधंधा चलता रहेगा।आम छात्र-छात्रा स्वस्थ प्रतियोगिता करने वाला कैंडिडेट के पास यह सब होते हुए देखने के सिवाय कोई चारा नहीं है।आखिर लोग चुने तो किसे चुने,जब गुंडे-बदमाश,चोर-उच्चके,भ्रष्टाचारी थोड़े-अधिक हर जगह,हर संगठन में बैठे हुए हैं।नीट-यूजी घोटाला हुआ,अब फिर हो गया।अंदर खाने कितना भ्रष्टाचार और अपनी पहुंच का इस्तेमाल करके गोलमाल किया जाता होगा,अपने लोगों को ऊंचे पदों पर बिठाया जाता होगा इसकी यह केवल एक बानगी है।पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाला हुआ और उन सबको सेवा से निकाल दिया गया।इन सभी बातों को देखकर ईमानदार,सच्चे आदमी को,छात्र-छात्रा को यह नहीं सोच लेना चाहिए कि उन्हें भी बहती गंगा में हाथ धो लेना चाहिए।पाप का घड़ा एक न एक दिन भरता ही है,बेईमान,रिश्वतखोर इंसानी अदालत में बच भी जाए तो भी भगवान की अदालत से बच नहीं सकता है।उसकी लाठी सर पर पड़ती है तो आवाज भी नहीं आती,दिखाई भी नहीं देती और ढेर करके रख देती है।अतः छात्र-छात्रा को स्वयं से प्रतियोगिता,दूसरों से प्रतियोगिता का स्वस्थ तरीका ही अपनाना चाहिए।भगवान के घर देर हो सकती है पर अंधेर नहीं हो सकती।जो करेगा,उसको यहीं पूरा का पूरा ब्याज सहित दंड भुगतना पड़ेगा।
- उपर्युक्त आर्टिकल में स्वस्थ प्रतियोगिता के 6 स्वर्णिम मंत्र (6Golden Spells for Healthy Competition),छात्र-छात्राओं के लिए स्वस्थ प्रतियोगिता की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Healthy Competition for Students) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:Who Choose in Competition and Jealousy?
6.प्रतियोगिता करके आगे बढ़ें (हास्य-व्यंग्य) (Compete and Move Forward) (Humour-Satire):
- गणित शिक्षक (छात्र से):तुम बहुत बड़े गधे हो,इस प्रतियोगिता के युग में गणित की कितनी अहमियत है,फिर भी ढंग से तैयारी नहीं करते,सवाल हल नहीं करते।
- छात्र:सर मैं तो अभी छोटा हूं,बड़े तो आप हैं,गणित को पढ़ाने के लिए चिकनी-चुपड़ी बातें नहीं करनी आती।
7.स्वस्थ प्रतियोगिता के 6 स्वर्णिम मंत्र (Frequently Asked Questions Related to 6Golden Spells for Healthy Competition),छात्र-छात्राओं के लिए स्वस्थ प्रतियोगिता की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Healthy Competition for Students) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.स्वयं से प्रतियोगिता क्यों करें? (Why compete with yourself?):
उत्तर:दूसरों से प्रतियोगिता करने में हम स्वयं का विकास करना,उन्नति करना भूल जाते हैं।दूसरों से प्रतिस्पर्धा करने से तनाव,कुंठा,निराशा या पीड़ा से ग्रसित हो जाते हैं।
प्रश्न:2.दूसरों से प्रतियोगिता करने में क्या ध्यान रखें? (What to keep in mind when competing with others?):
उत्तर:प्रतियोगिता के इस युग में दूसरों से प्रतियोगिता करना पड़ता है परंतु इस चक्कर में हम अपने प्रति प्रतियोगिता करना,अपनी उन्नति करना भूल जाते हैं इसलिए अपनी आत्मोन्नति नहीं कर पाते।
प्रश्न:3.दूसरों से प्रतियोगिता किसके समान है? (What is the competition from others?):
उत्तर:दूसरों से प्रतिस्पर्धा करने में संघर्ष करना पड़ता है,द्वन्द्व की दृष्टि है।जो भूल,दुष्कर्म आज कर चुके हैं,वे आगे न करें,जो अच्छाई अभी तक नहीं कर पाएं उसे करने में आगे सफल हों।जो कमी कल थी आज वह दूर हो ऐसे प्रयास करना स्वयं से प्रतियोगिता करना है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा स्वस्थ प्रतियोगिता के 6 स्वर्णिम मंत्र (6Golden Spells for Healthy Competition),छात्र-छात्राओं के लिए स्वस्थ प्रतियोगिता की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Healthy Competition for Students) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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